प्रश्नः- गरीबी के दुश्चक्र से आप क्या
समुझते है ? इस दुश्चक्र के कारण एवं उनके समाधान के लिए सुझाव दीजिए ?
उत्तर:- "एक व्यक्ति की निरपेक्ष गरीबी से अर्थ है
कि उसकी आय या उपभोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण पोषण स्तर
के नीचे स्तर पर रह रहा है"।
अल्पविकसित या अर्द्धविकसित देशों में एक
विशेषता पायी जाती है कि उनके यहाँ गरीबी का दुश्चक्र चलता रहता है। इसीलिए रेगनर
नर्कसे ने अपनी पुस्तक 'Problem of Capital Formation in Underdeveloped Countries' में लिखा है कि इन देशों में शक्तियों का ऐसा
चक्राकार नक्षत्रमण्डल होता है कि वह एक दूसरे पर क्रिया एवं प्रतिक्रिया करता रहा
है जिससे एक निर्धन देश निर्धनता की स्थिति में बना रहता है। जब एक निर्धन देश के
पास पर्याप्त भोजन का अभाव रहता है तो वहाँ के लोग भूखे रहते है जिससे उनका शरीर
कमजोर रहता है जिससे उनकी कार्यक्षमता निम्न रहती है फलतः उनको
कम पारितोषण मिलता है जिससे वे निर्धन ही बने रहते है। इस प्रकार का चक्र बराबर
चलता रहता है। इस सन्दर्भ में एक देश के लिए यह कहा जा सकता है कि एक देश गरीब है,
क्योंकि वह गरीब है।
अल्प-विकसित देशों में साधनों व पूँजी का अभाव रहता है
जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादकता निम्न रहती है जिसके फलस्वरूप उस देश मे वास्तविक
आय निम्न होती है। अतः बचत एवं माँग भी निम्न होती है जिससे विनियोग दर कम रहती
है। अतः साधनों का उचित विदोहन नहीं हो पाता है। इस प्रकार उत्पादन न बढ़ने से न
तो उत्पादकता बढ़ती है और न प्रति
व्यक्ति आय । अतः गरीबी का कुचक्र चलता रहता है।
इस दुश्चक्र को निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है :-
उपर्युक्त चार्ट प्रदर्शित करता है कि अल्प विकसित व अर्द्ध-विकसित
देशों में गरीबी का दुश्चक्र चलता रहता है जिससे वे अपना विकास उचित प्रकार से
नहीं कर पाते है।
प्रो. आर. एन भट्टाचार्या ने अपनी पुस्तक 'Indian Plans'
में लिखा है कि अर्थव्यवस्था का अल्प विकास एवं दरिद्रता पर्यायवाची शब्द है, कोई
भी देश इसलिए गरीब है कि वह अल्प विकसित है और कोई देश इस कारण अल्प विकसित है कि
वह दरिद्र है। अतः वह अल्प विकसित रहता है, क्योंकि उसके पास विकास के लिए आवश्यक
साधनों का अभाव बना रहता है। दरिद्रता अभिशाप है, लेकिन इससे भी बड़ा अभिशाप यह है
कि वह स्वयं को चिरस्थायी बनाये हुए है।
गरीबी के दुश्चक्र के कारण
गरीबी के दुश्चक्र के कारणों के सम्बन्ध में विभिन्न
विद्वानों ने विभिन्न मत दिये है। प्रो. नर्कसे के अनुसार इस दुश्चक्र का कारण
पूँजी निर्माण की कमी है जबकि किण्डलबर्गर के मत में इसका कारण बाजार का छोटे आकार
का होना है, लेकिन रोडन की राय में पूँजी का अधिक मात्रा में प्राप्त होना है।
इस प्रकार अल्प विकसित देशों में साधनों व पूँजी का अभाव
रहता है जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादकता निम्न रहती है जिसके फलस्वरूप उस देश में
वास्तविक आय निम्न होती है अतः बचत एवं मांग भी निम्न होती है जिससे विनियोग दर कम
रहती है, अतः साधनों का उचित विदोहन नहीं हो पाता है। इस प्रकार उत्पादन न बढ़ने से न तो उत्पादकता बढ़ती
है और न प्रति व्यक्ति आय। अतः गरीबी का कुचक्र चलता रहता है। रेगनर नर्कसे ने आर्थिक
कुचक्र को मांग एवं पूर्ति पक्ष की दृष्टि से निम्न प्रकार समझाया है:
(1) पूँजी का माँग पक्ष :-जनता की निग्न आय होने के कारण उसकी क्रय
शक्ति कम हो जाती है जिससे विनियोग की प्रेरणा भी कम हो जाती है। इसका परिणाम यह होता
है कि उत्पादन में पूँजी का उपयोग कम होता है जिससे उत्पादकता निम्न होकर पुनः निम्न
आय की स्थिति में आ जाती है।
(2) पूंजी का पूर्ति पक्ष :- उनके अनुसार पूर्ति पक्ष की ओर से आर्थिक कुचक्र इस प्रकार
उत्पन्न होता है कि निम्न आय से बचत करने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पूँजी निर्माण कम
हो जाता है, इससे उत्पादकता कम हो जाती है। कुछ विद्वानों का मत है कि निर्धनता के
कुचक्र का एक कारण अर्थव्यवस्था का पिछडापन भी है।
(3) अर्थव्यवस्था का पिछड़ापन :- अल्प विकसित देशो में पिछड़ापन होता है, क्योंकि आय की कमी
के कारण वहाँ शिक्षा कम पायी जाती है। उनका स्वास्थ्य खराब होता है। उनकी कार्यकुशलता
कम होती है। उनका जीवन स्तर नीचा होता है। इन सभी कारणों से उत्पादकता कम होती है अतः
अर्थव्यवस्था निर्धन ही बनी रहती है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकास में अनेक बाधाएँ होती है,
लेकिन इन बाधाओं को धीरे-धीरे दूर किया जा सकता है और देश का आर्थिक विकास किया जा
सकता है। यदि ऐसा होना सम्भव न होता तो कोई भी अर्द्ध विकसित
देश विकसित देश नहीं हो सकता था।
अतः अन्त में यही कहा जा सकता है कि अल्प विकसित व अर्द्ध विकसित
देशों में गरीबी का कुचक्र तो चलता है, लेकिन उसको धीरे-धीरे तोड़ा जा सकता है और देश
का विकास किया जा सकता है।
गरीबी के दुश्चक्र का समाधान
गरीबी के दुश्चक्र का समाधान निम्न तीन प्रकार से किया जा सकता
है।
(1) बचत में वृद्धि तथा उसका उत्पादक कायों में निवेश :- गरीबी के दुश्चक्र से निकलने के लिए यह आवश्यक है कि बचतों
को बढ़ाया जाए तथा उसको उत्पादन कार्यों में लगाया जाए। बचत बढ़ाने के
लिए आवश्यक व्ययो को कम किया जाना चाहिए। जैसे शादी-विवाह व रीति रिवाज पर होने
वाले व्ययों में कमी की जानी चाहिए। शान व शौकत पर व्यय नहीं
करना चाहिए या कम से कम करना चाहिए। सरकार को ऐच्छिक बचतों पर जोर देना चाहिए। यदि
ऐच्छिक बचते कम हो तो राजकोषीय नीति में परिवर्तन कर बचतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
इसके लिए अनिवार्य बचत योजनाओं को अपनाया जा सकता है।
गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए बचत करना ही आवश्यक नहीं
है बल्कि बचत का निवेश भी आवश्यक है जिसके लिए अल्पकालीन व दीर्घकालीन योजनाएं बनायी
जानी चाहिए तथा उनमे समन्वय इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उनसे अधिकाधिक लाभ हो । अल्पकालीन
योजनाएं या निवेश में कृषि पर जोर दिया जाना चाहिए जिसके लिए सिचाई साधनों, यन्त्रों
व खादो में निवेश किया जाना चाहिए। साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों में भी निवेश
किया जाना चाहिए। दीर्घकालीन निवेश के अन्तर्गत लोहा एवं इस्पात उद्योग व आधारभूत उद्योगों में
निवेश किया जाना चाहिए।
लेकिन अर्थशास्त्रियों की रणनीति के सम्बन्ध में एक राय नहीं
है। रोडान का मत है कि निवेश एक साथ बहुत बड़ी मात्रा में एक धक्के के रूप में किया
जाना चाहिए, लेकिन हर्शमैन का कहना है कि विकास के लिए असन्तुलित विकास की नीति अपनायी
जानी चाहिए।
अतः गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए बचत की दर बढ़नी चाहिए
तथा उसका उचित निवेश होना चाहिए।
(2) बाजार का विस्तार :- गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के
लिए बाजारों का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि वस्तु की माँग बढ़े व निवेश करने
वाले को प्रेरणा मिले । इसके लिए योजनात्मक विकास की नीति अपनायी जानी चाहिए एवं
सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि मुद्रा की पूर्ति बढ़ सके
तथा मौद्रिक आय व बाजारों का विस्तार हो सके।
माँग बढ़ाने के लिए एक दूसरा उपाय भी काम में लाया जा सकता
है जिसके अन्तर्गत सन्तुलित विकास की नीति अपनाकर निवेश इस प्रकार किया जाना चाहिए
कि एक उद्योग में निवेश होने से दूसरे उद्योग में माँग बढ़ सके।
(3) पिछड़ेपन में सुधार :- गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए अल्प विकसित देशों
को अपने पिछड़ेपन में सुधार करना चाहिए। इसके लिए शिक्षा का प्रसार, तकनीकी ज्ञान
में वृद्धि व प्रबन्धकीय प्रशिक्षण सुविधाओं में वृद्धि की जानी चाहिए। साथ ही
समाज में स्वास्थ्य में भी सुधार किया जाना चाहिए जिसके लिए चिकित्सा सुविधाओं का
विस्तार होना चाहिए। गाँव व शहरों को जोड़ने के लिए सड़को, परिवहन व संचार साधनों
का विकास किया जाना चाहिए। इन सभी के विकास से मानव शक्ति की कुशलता बढ़ेगी और वह
अधिक आय अर्जित करने योग्य बन सकेगी जिससे उसके जीवन स्तर में सुधार होगा।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचनाओं के आधार पर हम कह सकते है कि गरीबी के दुश्चक्र को समाप्त करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना अति आवश्यक है तभी देश का पूर्ण विकास संभव है।
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