प्रश्न :- सिटोवस्की, कैल्डर एवं हिक्स के क्षतिपूरक
सिद्धांत की व्याख्या करें?
→ क्षतिपूर्ति सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए?
उत्तर
:- पेरेटो द्वारा प्रस्तुत सामान्य अनुकूलतम विचार उपयोगिता के क्रमवाचक
विचार पर आधारित था। पेरेटो का मानदण्ड उन परिस्थितियों में सामाजिक कल्याण की
वृद्धि अथवा कमी को मापने में असमर्थ है जिनके अन्तर्गत किसी नीति परिवर्तन के
फलस्वरूप समाज
के एक वर्ग के कल्याण में वृद्धि होती है तथा किसी दूसरे वर्ग के कल्याण में कमी आती है। ऐसी स्थितियों
के अन्तर्गत सामाजिक कल्याण के परिवर्तनो का मूल्यांकन करने के लिए नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्री हिक्स, कैल्डोर तथा सिटोवस्की आदि अर्थशास्त्रियों
द्वारा विकसित किया गया जिसे क्षतिपूर्ति सिद्धांत का नाम दिया गया।
क्षतिपूर्ति
सिद्धांत के अनुसार जब किसी नीति परिवर्तन से कुछ को लाभ और कुछ को हानि होती है तो वह परिवर्तन सामाजिक कल्याण
को बठाएगा यदि लाभान्वित व्यक्ति हानि उठाने वाले व्यक्तियों की क्षतिपूर्ति करने के
पश्चात भी शुध प्राप्त होता है।
मान्यताऐ
क्षतिपूर्ति
सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है।
(1)
प्रत्येक व्यक्ति की रुचियों को स्थिर मान लिया जाता है।
(2)
प्रत्येक व्यक्ति अपने कल्याण का सर्वोत्तम निर्णायक होता है,अतः प्रत्येक व्यक्ति
का कल्याण दूसरे व्यक्ति के कल्याण से स्वतंत्र होता है।
(3)
उत्पादन तथा उपभोग में कोई बाह्य प्रभाव
नहीं होते हैं।
(4)
उपयोगिता के क्रमवाचक विचार को स्वीकार किया गया है तथा उपयोगिता
की अन्तरवैयक्तिक तुलनाओं की सम्भावना को नहीं माना गया है।
(5)
यह भी माना गया है कि उत्पादन और विनिमय की समस्या को वितरण की समस्या से अलग किया
जा सकता है, अर्थात् सामाजिक कल्याण का स्तर उत्पादन के स्तर पर निर्भर करता है।
उपर्युक्त
मान्यताओं
को ध्यान
में रखते हुए कैल्डर-हिक्स तथा सिटोवस्की ने क्षतिपूरक भुगतान का विचार देकर आर्थिक कल्याण का वस्तुपरक
मानदण्ड प्रस्तुत करने का दावा किया है तथा उनका विचार है कि उनका मानदण्ड
निर्णयों से स्वतंत्र है, इसलिए वैज्ञानिक है।
प्रो. कैल्डोर का मानदण्ड
सुप्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो. निकोलस कैल्डोर ने क्षतिपूरक
भुगतान के आधार पर सामाजिक कल्याण के माप का वस्तुपरक मानदण्ड प्रस्तुत किया है। वास्तव में, जैसे
कि हमने एजवर्थ बाउले बाक्स रेखाचित्र में यह अवलोकन किया है कि प्रसंविदा वक्र
के एक बिन्दु से दूसरे पर पहुंचने में सामाजिक कल्याण की मात्रा मे जो शुद्ध वृद्धि अथवा कमी होती है, उसकी माप तथा व्याख्या प्रो कैल्डोर के क्षतिपूरक सिद्धांत द्वारा की जा सकती है।
प्रो. कैल्डोर के मानदण्ड को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा
सकता है, "यदि एक नीति परिवर्तन समाज को स्थिति A से
स्थिति B में ले जाता है तो स्थिति
B स्थिति A की
तुलना में उस दशा में पसन्द की जाएगी तथा अर्थशास्त्री भी नीति के सम्बंध में नैतिक
निर्णयों से स्वतंत्र संस्तुति कर सकेंगे, जबकि लाभ प्राप्त करने वाले इस योग्य है
कि वे हानि
उठाने वाले की क्षतिपूर्ति
कर सके तथा फिर
भी वे स्थिति
B में पहले की अपेक्षा श्रेष्ठ दशा में रह सकें"।
दूसरे शब्दों में प्रो कैल्डोर के मानदण्ड का सारांश यह होगा
कि यदि किसी नीति परिवर्तन के फलस्वरूप समाज के एक वर्ग को लाभ तथा दूसरे वर्ग को हानि
होती है तो ऐसी स्थिति में लाभ पाने वाला वर्ग अपने लाभ का मूल्यांकन दूसरे वर्ग की हानि की अपेक्षा अधिक करता है, तो ऐसा नीति-परिवर्तन निश्चित
ही सामाजिक कल्याण में वृद्धि को
दिखलाता है।
प्रो. हिक्स का मानदण्ड
प्रो. जे. आर. हिक्स
ने मानदण्ड को इस प्रकार प्रस्तुत किया है, "यदि व्यक्ति A एक
परिवर्तन के फलस्वरूप इतनी अच्छी
स्थिति में लाया जा सकता है कि वह दूसरे व्यक्ति
B की हानि की क्षतिपूर्ति कर सकता है और फिर भी उसके पास कुछ
अतिरेक शेष रह जाता है तो इस प्रकार का परिवर्तन निश्चित रूप से एक सुधार है"।
प्रो. हिक्स द्वारा
दी गई उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि सामाजिक कल्याण की दृष्टि से परिवर्तन की वह
स्थिति वांछनीय होगी जिसमे लाभ प्राप्त करने वाले हानि उठाने वाले व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति कर देने के बाद भी स्वयं
पहले की तुलना में श्रेष्ठतर दशा
में बने रहते हैं। अतः हानि उठाने
वाले की क्षति को पूरा करने के लिए यह
आवश्यक है कि परिवर्तन के फलस्वरूप लाभ उठाने
वालो को प्राप्त लाभ की मात्रा उत्पन्न हानि से अधिक हो ।
प्रो. कैल्डोर तथा प्रो हिक्स दोनों के दृष्टिकोण समान है, केवल
उनकी शब्दावली में अन्तर है। दोनों के द्वारा प्रतिपादित मानदण्डो में केवल इतना
अंतर है कि प्रो. कैल्डोर ने समस्या का अध्ययन लाभ प्राप्तकर्ताओं के दृष्टिकोण से
किया है, जबकि प्रो. हिक्स ने समस्या को हानि उठाने वालों की दृष्टि से देखा है। यहीं
कारण है कि इन दोनो अर्थशास्त्रियों द्वारा दिए गए मानदण्डो को कैल्डोर-हिक्स
मानदण्ड के नाम से जाना जाता है।
कैल्डर के मानदण्ड तो उपयोगिता सम्भावना वक्र द्वारा सरलतापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है।
चित्र में X तथा Y अक्षों पर क्रमशः A तथा B व्यक्ति की उपयोगिता को क्रमवाचक
रूप में प्रदर्शित किया गया है। DE उपयोगिता सम्भावना वक्र है जो वस्तुओं तथा
सेवाओं के एक निश्चित समूह के दो व्यक्तियों A तथा B के मध्य वितरण के परिणामस्वरूप उन्हें प्राप्त होने वाली व्यक्तिगत
उपयोगिताओं के विभिन्न संयोगों को बतलाता है।
चित्र में, वस्तु के एक निश्चित
वितरण से प्राप्त होने वाली दोनों व्यक्तियों की उपयोगिताएँ G बिन्दु द्वारा व्यक्त है। यदि वस्तु तथा सेवा का पुनर्वितरण
किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप A व्यक्ति द्वारा उपभोग की जाने
वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की कुछ मात्रा को B व्यक्ति को हस्तान्तरित कर दिया जाता है। अतः B व्यक्ति की उपयोगिता में वृद्धि तथा A व्यक्ति की उपयोगिता में कमी हो जाती है। DE उपयोगिता सम्भावना वक्र T बिन्दु से होकर भी जाता है जिसका
अर्थ है कि वस्तुओं तथा सेवाओं के वितरण से प्राप्त दोनो व्यक्तियों की उपयोगिताओं
जिसे T बिन्दु द्वारा प्रदर्शित किया गया
है, को उनमे वस्तुओं अथवा आय को पुनर्वितरित करके (क्षतिपूर्ति करके) R,G,S उपयोगिता संयोगो को प्राप्त किया
जा सकता है। इस प्रकार Q बिन्दु से T बिन्दु की ओर चलन कल्याण में वृद्धि को प्रदर्शित करता है
क्योंकि T बिन्दु पर प्राप्त वस्तुओं तथा सेवाओं को दोनों
व्यक्तियों में इस प्रकार वितरित किया जाना सम्भव है जिससे कि किसी व्यक्ति की
उपयोगिता Q बिन्दु द्वारा प्रदर्शित उपयोगिता
के स्तर से कम नहीं होती है।
B व्यक्ति अपनी उपयोगिता में लाभ को A व्यक्ति की उपयोगिता में हानि की अपेक्षा अधिक मूल्यांकित करता है जो कैल्डर के मानदण्ड के अनुसार सामाजिक कल्याण में वृद्धि है। इस प्रकार कैल्डर के अनुसार Q बिन्दु से T बिन्दु की ओर चलन केवल तभी सुधार होता है यदि Q बिन्दु T बिन्दु से होकर गुजरने वाली उपयोगिता सम्भावना वक्र के नीचे होता है।
चित्र में, आरम्भ में उपयोगिता
सम्भावना वक्र UV है जिसके बिन्दु Q पर व्यवस्था सन्तुलन में है। अब यदि किसी नीति परिवर्तन के
कारण उपयोगिता सम्भावना वक्र ऊपर की ओर विवर्तित होकर U'V' हो जाता है जिसकी सन्तुलन अवस्था अब बिन्दु R पर आ गई है। बिन्दु R पर बिन्दु Q की तुलना में A का उपयोगिता अधिक जबकि B का उपयोगिता कम है। किंतु निचले
उपयोगिता संभावना वक्र UV के बिन्दु Q के ऊपर के उपयोगिता सम्भावना वक्र U'V' के बिन्दु R को चलन कैलेंडर हिक्स मानदण्ड की दृष्टि से सामाजिक कल्याण में वृद्धि
करेगा। कारण यह है कि बिन्दु R से केवल पुनर्वितरण द्वारा ऐसे
बिन्दु जैसे कि S तक पहुँचा जा सकता
है जो कि निश्चय ही Q की तुलना में श्रेष्ठतर है। बिन्दु S पर दोनो व्यक्तियों की उपयोगिता
अधिक है या एक का अधिक है जबकि दूसरे व्यक्ति का Q बिन्दु पर प्राप्त उपयोगिता
के बराबर है।
सिटोवस्की का दोहरा मानदण्ड
टी. सिटोवस्की का विचार है कि कैल्डर- हिक्स मानदंड में आन्तरिक विरोध है क्योंकि इस मानदण्ड के अनुसार एक समय A स्थिति B स्थिति की अपेक्षा श्रेष्ठ है तथा किसी अन्य समय में B स्थिति A स्थिति की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध होती है, जिसे वास्तव में अपेक्षाकृत हीन होना चाहिए। चूंकि इसका स्पष्टीकरण टी. सिटोवस्की ने किया अतः इसे सिटोवस्की विरोधाभास या विपरीत परीक्षण भी कहा जाता है। इसे उपयोगिता सम्भावना वक्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं -
चित्र में GH तथा JK
दो उपयोगिता सम्भावना वक्र है। कैल्डर- हिक्स मानदण्ड के आधार पर स्थिति C, स्थिति D की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण को
व्यक्त करती है क्योंकि D स्थिति C बिन्दु से होकर जाने वाले उपयोगिता
सम्भावना वक्र JK के नीचे स्थित है। किंतु कैल्डर- हिक्स
मानदण्ड से ही यह सिद्ध किया जा सकता है कि स्थिति D, स्थिति C की अपेक्षा श्रेष्ठ है, क्योंकि D बिन्दु से होकर जाने वाले GH रेखा
पर ही F बिन्दु स्थित है जो निश्चित रूप से C स्थिति की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण प्रदर्शित करता है क्योंकि F बिन्दु C की अपेक्षा एक व्यक्ति A की
उपयोगिता में वृद्धि को प्रदर्शित करता है जबति B की उपयोगिता समान रहे। अतः स्थिति D भी
स्थिति C की अपेक्षा अधिक सामाजिक कल्याण को
व्यक्त करती है क्योंकि C बिन्दु D, F बिन्दुओ से होकर जाने वाले
उपयोगिता सम्भावना वक्र GH के नीचे स्थित है।
इसे ही सिटोवस्की विरोधाभास कहा जाता है। क्योंकि कैल्डर-हिक्स मानदण्ड मे एक बार D की अपेक्षा C स्थिति श्रेष्ठ तथा दूसरी बार C स्थिति की अपेक्षा D श्रेष्ठ है जो
असंगत निष्कर्ष है।
इस विरोधाभास को दूर करने के उद्देश्य
से सिटोवस्की ने अपना दोहरा मानदण्ड प्रस्तुत किया। जिसके व्याख्या निम्न प्रकार से
की जा सकती है "कोई परिवर्तन सुधार होता है यदि परिवर्तित स्थिति से लाभान्वित
व्यक्ति परिवर्तन स्थिति को स्वीकार करने के लिए क्षतिग्रस्त व्यक्तियों को प्रेरित करने में समर्थ
है तथा साथ ही क्षतिग्रस्त व्यक्ति लाभान्वित व्यक्तियों को मौलिक स्थिति में बने रहने
के लिए प्रेरित करने में असमर्थ है"।
इसे एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है
चित्र में CD तथा EF दो उपयोगिता सम्भावना वक्र है जो एक
दूसरे को नहीं काटते है। ऐसी दशा में Q से G बिन्दु को
परिवर्तन कैल्डर-हिक्स के अनुसार सामाजिक कल्याण में वृद्धि को व्यक्त करता है
क्योंकि G बिन्दु ऐसी उपयोगिता सम्भावना वक्र पर स्थित है जो R बिन्दु से होकर
जाता है। R बिन्दु वस्तु तथा सेवा के एक निश्चित समूह के क्षतिपूरक पुनर्वितरण से
प्राप्त उपयोगिता के संयोग को व्यक्त करता है जहाँ पर Q की
अपेक्षा दोनो व्यक्तियो को अधिक उपयोगिता प्राप्त होती है। इसके विपरीत G बिन्दु से पुनः Q बिन्दु
को परिवर्तत सुधार नहीं है। इस प्रकार कैल्डर-हिक्स मानदण्ड की पूर्ति हो जाती है
तथा साथ ही विपरीत परीक्षण की पूर्ति नहीं होती है।
आलोचनाऐ
कैल्डर, हिक्स तथा सिटोवस्की द्वारा
प्रतिपादित क्षतिपूर्ति सिद्धांत कल्याणकारी
अर्थशास्त्र में सन् 1939 से लेकर अब तक बड़े वाद विवाद का प्रश्न रहा है। यह ठीक है कि इस सिद्धांत के रचयिताओं का यह दावा है कि उन्होंने उपयोगिता की क्रमवाचक अवधारणा के आधार पर एक ऐसे कल्याणवादी क्षतिपूरक सिद्धांत
का प्रतिपादन किया है, जो नैतिक मूल्यों से परे है। फिर भी इसकी कटु आलोचना की गई जो निम्नलिखित
है:
(1) आर्थिक कुशलता का मानदण्ड :- प्रो. लिटिल के अनुसार कैल्डोर हिक्स ने सामाजिक कल्याण का कोई नवीन
मानदण्ड प्रस्तुत नहीं किया है बल्कि उन्होंने एक तरह से केवल धन में वृद्धि की परिभाषा
दी है। लिटिल के अनुसार, यह मानदण्ड कोई जांच सिद्धांत नहीं है, बल्कि यह अति क्षतिपूर्ति
के शब्दों में आर्थिक कुशलता की एक परिभाषा मात्र है।
(2) नैतिक मूल्यों से स्वतंता नहीं :- क्षतिपूर्ति सिद्धांत की रचना में पेरेटों की भाँति कैल्डोर
तथा हिक्स का भी यह दावा है कि इनका सामाजिक कल्याण का मानदण्ड मूल्य-निर्णयों तथा नैतिक मानदण्डों से सर्वथा
मुक्त है, लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि उनका कल्याणात्मक विश्लेषण मूल्य रहित नहीं है
यद्यपि कैल्डोर तथा हिक्स दोनों ने ही अपने विश्लेषण को यथासम्भव मूल्य-निर्णयों से अलग रखने का प्रयास
किया है, लेकिन ये मूल्य-निर्णय किसी न किसी रूप में इनके कल्याणात्मक मानदण्ड को प्रभावित
किए हुए हैं।
(3) वितरण की समस्या का अध्ययन नहीं :- इस सिद्धांत की यह एक महत्त्वपूर्ण आलोचना है कि इसमे वितरण
की समस्या को उत्पादन की समस्या से अलग कर दिया गया है। इस सिद्धांत का विश्लेषण केवल
उत्पादन के क्षेत्र तक सीमित है क्योंकि इसके प्रतिपादक सामाजिक कल्याण की समस्या को
केवल उत्पादन के दृष्टिकोण से देखते है। ऐरो, सैम्युलसन, बॉमोल इत्यादि अर्थशास्त्रियों का यह कहना है कि
कैल्डोर, हिक्स, सिटोवस्की द्वारा वितरण की इस प्रकार उपेक्षा किया जाना उचित नहीं है। वास्तव में,
वितरण से अलग उत्पादन में वृद्धि का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि धन के वितरण का सामाजिक कल्याण पर उतना
ही प्रभाव पड़ता है, जितना कि धन के उत्पादन का।
(4) कैल्डोर-हिक्स मानदण्ड की सर्वमान्य वैधता नही :- कैल्डोर-हिक्स के कल्याणात्मक विश्लेषण के विरुद्ध एक आलोचना
यह है कि इस मानदण्ड की वैधता सर्वमान्य नहीं है। कैल्डोर-हिक्स की कसौटी समाजवाद मे
तो खरी उतरती है, किंतु पूँजीवादी अर्थव्यवस्था मे लागू नहीं होती
है, क्योकि पूँजीवादी सरकार के ऊपर समाज में आय के समान
तथा न्यायपूर्ण वितरण की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। यही कारण है कि प्रो. सिटोवस्की
के अनुसार " नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्र द्वारा प्रस्तुत मार्गदर्शन की कोई सार्वभौमिक
वैधता नहीं है"।
(5) कैल्डोर-हिक्स मानदण्ड द्वारा वास्तविक सामाजिक कल्याण का
अध्ययन नहीं :- कैल्डोर-हिक्स
के मानदण्ड के अनुसार किसी नीति परिवर्तन के फलस्वरूप लाभ उठाने वाले व्यक्ति हानि
उठाने वाले की क्षतिपूर्ति कर देने के बाद भी श्रेष्ठ स्थिति में बने रहते है तो उक्त
परिवर्तन के कारण से सामाजिक कल्याण की मात्रा में सुधार होगा यद्यपि
वास्तविक दृष्टि से यह आवश्यक नही है कि उपरोक्त क्षतिपूर्ति की जाये। लेकिन लिटिल
तथा ऐरो के विचार में यह दृष्टिकोण सही नहीं है। उनका कहना है कि
काल्पनिक क्षतिपूर्ति के विचार के आधार पर कैल्डोर-हिक्स का मानदण्ड, वास्तविक सामाजिक
कल्याण की उपेक्षा करता है।
(6) क्षतिपूर्ति मानदण्ड द्वारा बाहरी प्रभावो की उपेक्षा :- यह मान
लेना उचित नहीं है कि एक व्यक्ति का कल्याण केवल उसके अपने उत्पादन
तथा उपभोग पर निर्भर करता है। आलोचको के अनुसार कैल्डोर-हिक्स का मानदण्ड
व्यक्ति के कल्याण पर पड़ने वाले इन बाहरी प्रभावो का अध्ययन नहीं करता है।
(7) सिटोवस्की का दोहरा मानदण्ड
अपर्याप्त :- सिटोवस्की के दोहरे
मानदण्ड के द्वारा सामाजिक कल्याण पर पड़ने वाले प्रभावों को आंकने के लिए किन्ही दो
स्थितियों के बीच तुलना आसानी से की जा सकती है। लेकिन यह मानदण्ड अपर्याप्त पाया
जाता है यदि सामाजिक कल्याण में उत्पन्न प्रभावों का सम्बंध दो से अधिक स्थितियों से
होता है।
निष्कर्ष
क्षतिपूर्ति सिद्धांत के विश्लेषण में सबसे बड़ा दोष यह है कि वह निहित नैतिक निर्णयों से मुक्त नहीं है तथा इसकी वैधता सर्वमान्य नहीं पायी जाती है। फलस्वरूप बर्गसन, सैम्युलसन, ऐरो जैसे अर्थशास्त्रियों ने कैल्डोर-हिक्स-सिटोवस्की के मानदण्ड में पायी जानेवाली दोषों को दूर करने के लिए सामाजिक - कल्याण का प्रतिपादन किया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)