पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

प्रश्न :- परेटों के अनुकूलतम की मुख्य दशाओं को समझाइए ?

→ पेरेटों के कल्याणकारी अर्थशास्त्र का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए?

→पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत पेरेटो अनुकूलतम की शर्ते कैसे पूरी होती है? सविस्तार वर्णन कीजिए

उत्तर :- प्रसिद्ध इटालियन अर्थशास्त्री वी. पेरेटों ने सर्वप्रथम उपयोगिता के क्रमवाचक विचार के आधार पर कल्याणकारी अर्थशास्त्र का विचार प्रस्तुत किया। परेटों की सामाजिक अनुकूलतम वह स्थिति है जिसके अन्तर्गत साधनो अथवा उत्पादनों के पुनरावंटन द्वारा बिना किसी व्यक्ति को हीनतर किये हुए किसी अन्य व्यक्ति को श्रेष्ठतर करना सम्भव नहीं होता है। अतः यदि किसी स्थिति में समाज से वस्तुओ तथा सेवाओं अथवा उत्पादन के साध‌नों के विभिन्न प्रयोगों में पुनर्वितरण द्वारा कल्याण में वृद्धि सम्भव है तो वह अनुकूलतम दशा नहीं होगी।

पेरेंटों के अनुसार "हम लोग अधिकतम सन्तुष्टि या कल्याण की स्थिति को परिभाषित करते है जिसके अन्तर्गत किसी प्रकार का ऐसा सुक्ष्म परिवर्तन करना असम्भव होता है जिससे कि स्थिर रहने वाली संतुष्टियों को छोड़कर, सभी व्यक्तियों की सन्तुष्टियाँ बढ़ जाएँ अथवा बाट जाएँ"।

प्रो. बामोल ने अपनी पुस्तक 'Economic theory and operations Analysis' में स्पष्ट किया है की, "कोई परिवर्तन जो किसी को हानि नहीं पहुंचाता तथा कुल लोगों को श्रेष्ठतर बनाता है, आवश्यक रूप से सुधार समझा जाना चाहिए"

पेरोटों के विचार को एजवर्थ बाक्स रेखाचित्र द्वारा सरलता पूर्वक समझा जा सकता है -

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

हमने यह माना है कि समाज में A तथा B दो व्यक्ति है जो वस्तु X तथा Y का उपभोग करते है। उप‌रोक्त रेखाचित्र में X तथा Y के विभिन्न संयोगों को उपभोग से प्राप्त होने वाले दोनों व्यक्तियों के संतोष के स्तर को उदासीन वक्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है। व्यक्ति A तथा B के मूल बिन्दु क्रमशः OA तथा OB है, Ia1, Ia2, ...... Ia5 क्रमशः व्यक्ति A के बढ़ते हुए संतोष को व्यक्त करता है। इसी प्रकार Ib1, Ib2, ....... Ib5 व्यक्ति B की क्रमशः बढ़ती हुई संतुष्टि को प्रदर्शित करते हैं । चित्र में X तथा Y वस्तु‌ओं को व्यक्ति A तथा B में वितरण की स्थिती K है जो स्पष्ट करता है कि व्यक्ति A के पास X वस्तु की OAX1 तथा Y वस्तु की OAY1 की मात्रा है। इसी प्रकार B व्यक्ति के पास X वस्तु की OBX2 तथा Y वस्तु की OBY2 मात्रा उपलब्ध है। इस प्रकार X तथा Y वस्तु की कुल मात्रा A तथा B व्यक्तियों के बीच वितरित हो जाता है। पेरोटो मानदण्ड के अनुसार यदि K बिन्दु से E बिन्दु की ओर कोई पुर्नवितरण होता है तो A की संतुष्टि का स्तर वहीं रहता है किन्तु B के संतोष का स्तर पहले के अपेक्षा बढ़ जाता है। इसी प्रकार यदि K से F बिन्दु की ओर कोई पुर्नवितरण होता है तो B की संतुष्टि का स्तर वहीं रहता है लेकिन A व्यक्ति के संतुष्टि का स्तर बढ़ जाता है अत: K बिन्दु पेरोटो के अनुसार सामान्य सामाजिक अनुकूलतम की स्थिति नहीं है।

दोनों व्यक्ति के विभिन्न उदासीन वक्र के स्पर्श बिन्दु सामान्य अनुकूलतम के बिन्दु होते है जिन्हें जोड़ देने पर संविदा वक्र (CC') प्राप्त होता है। इस वक्र पर यदि हम ऊपर अथवा नीचे की ओर चलते है तो एक की संतुष्टि में वृद्धि और दूसरे की संतुष्टि में कमी होती है। इस कारण इसे संघर्ष वक्र भी कहते है। उपर्युक्त विश्लेषण में E तथा F में से कौन सी स्थिति अपेक्षाकृत श्रेष्ठ है, इस प्रश्न का उत्तर पेरेटो का मानदण्ड प्रदान नहीं करता है।

पेरेटो के सामान्य अनुकूलतम को सैमुएल्सन द्वारा प्रस्तुत उपयोगिता सम्भावना वक्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

"उपयोगिता सम्भावना वक्र वस्तुओं के एक निश्चित समूह से दो व्यक्तियों द्वारा प्राप्त उपयोगिताओं के विभिन्न संयोगों का बिन्दु पथ है"

रेखाचित्र में X तथा Y अक्ष पर A तथा B में व्यक्ति की उपयोगिता को प्रद‌र्शित किया गया है। TT' वक्र दोनो व्यक्तियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली उपयोगिता के विभिन्न संयोगों को प्रदर्शित करता है।

पेरेंटों के अनुसार Q से R, D तथा S बिन्दु के ओर कोई परिवर्तन सामाजिक कल्याण में वृद्धि को प्रकट करता है क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप A या B या दोनों के उपयोगिता में वृद्धि होती है किंतु Q से R, S वक्र के बाहर की ओर किसी परिवर्तन के कल्याण पर प्रभावों को पेरोटो के मापदण्ड से नहीं मापा जा सकता है। E बिन्दु पर पेरोटो अनुकूलतम की स्थिती को व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

मान्यताएं

उपभोग, उत्पादन तथा विनिमय के क्षेत्रों में सीमांत दशाओं के आधार पर प्राप्त पेरेटो की अनुकूलतम स्थिति‌यां निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है:

1. प्रत्येक उपभोक्ता अपने संतोष को अधिकतम करना चाहता है।

2. प्रत्येक उत्पादक का उद्देश्य न्यूनतम लागत पर अपनी वस्तु के उत्पादन को अधिकतम करना होता है ताकि उसे अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो सके।

3. उपयोगिता का विचार क्रमवाचक है तथा प्रत्येक उपभोक्ता का क्रमवाचक उप‌योगिता फलन दिया हुआ होता है।

4. प्रत्येक उत्पादक फर्म का उत्पादन फलन उत्पादन की तकनीकी या समय की दी हुई अवधि के आधार पर दिया हुआ होता है।

5. सभी वस्तुएँ विमाज्य होती है।

6. प्रत्येक उपभोक्ता सभी वस्तुओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अवश्य उपभोग करता है।

7. प्रत्येक वस्तु के उत्पादन में सभी उत्पादन साधनों का प्रयोग किया जाता है।

उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर हम अनुकूलतम की दशाओ या प्रथम क्रम की दशाओ अथवा सीमांत दशाओं की व्याख्या निम्न प्रकार से कर सकते हैं-

(1) उपभोग में पेरेटो अनुकूलतम अथवा वस्तुओं का अनुकूलतम वितरण :- पहली अनुकूलतम दशा वस्तुओं की मात्रा के विभिन्न उपभोक्ताओं में अनुकूलतम वितरण से सम्बंधित है। "समाज में प्रत्येक व्यक्ति के लिए किन्ही दो वस्तुओं के मध्य प्रतिस्थापन की सीमांत र (MRS) समान होनी चाहिए"। यदि यह समान नहीं होता है तो दोनो व्यक्ति परस्पर विनिमय करेंगे जिससे किसी एक अथवा दोनो व्यक्तियों के संतुष्टि के स्तर में वृद्धि होगी। वस्तुओं के उपभोग अथवा वितरण के पेरेंटो अनुकूलम को विनिमय कुशलता भी कहते है।

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

इस रेखाचित्र मे CC' संविदा वक्र पर दोनो व्यक्तियों के लिए दोनों वस्तुओं के मध्य प्रतिस्थापन की सीमांत दर समान होती है। संविदा वक्र से दूर दोनों व्यक्तियों के किसी वस्तु संयोग पर प्रतिस्थापन की सीमांत दर समान नहीं होती।

(2) साधनों का अनुकूलतम आण्टन :- किसी वस्तु के उत्पादन में दो साधनों का प्रयोग करने वाली किन्ही दो फर्मों के लिए दो साधनों के मध्य तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत र समान होनी चाहिए। यदि यह दशा पुरी नहीं होती है तो साधनों को एक फर्म से दूसरे फर्म में स्थांतरित कर के कुल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। एजवर्थ बॉक्स रेखाचित्र में समोत्पादक वक्रो द्वारा इस दशा को स्पष्ट किया जा सकता है-

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

रेखाचित्र में Ia1, Ia2, Ia3 तथा Ib1, Ib2, Ib3 क्रमश: A तथा B के बढ़ते हुए उत्पादन स्तर है। Q,R,S बिन्दुअनुकूलतम स्थिति को प्रदर्शित करते है। यदि हम K बिन्दु से Q, R या S की ओर जाते है तो कुल उत्पादन में वृद्धि होती है। चित्र से स्पष्ट है कि श्रम तथा पूंजी के बीच तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर दोनो साधनों के कीमत अनुपात के बराबर होगी

इसलिए श्रम की पूंजी के लिए तकनीकी सीमांत प्रतिस्थापन दर = श्रम की कीमत ÷ पूँजी की कीमत

`MRTS_{LK}=\frac{P_L}{P_K}----(1)`

इसी प्रकार दूसरे उत्पादक भी संतुलन की द‌शा में दोनो साधनों के बीच तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत र को, दोनो साधनों के कीमत अनुपात के समान करेगा।

इसलिए `MRTS_{LK}=\frac{P_L}{P_K}----(2)`

equation (1) and (2) में श्रम और पूंजी की कीमतों का अनुपात `\frac{P_L}{P_K}` समान होगा।

अतः A उत्पादक की MRTS = B उत्पादक की MRTS

या, `MRTS_{LK}^A=MRTS_{LK}^B`

(3) विशिष्टता के अनुकूलतम अंश की शा :- इस दशा का सम्बंध दो फर्मों में दो वस्तुओं के उत्पादन की अनुकूलतम मात्रा निर्धारण करने से है। इस दशा के अनुसार किन्ही दो फर्मों के लिए किन्ही दो वस्तुओं के मध्य रुपान्तरण की सीमांत दर समान होनी चाहिए जो दोनों वस्तुओं का उत्पादन करती है। इस अनुकूलतम दशा को दो फर्मों के रु‌पान्तरण वक्र की सहायता से समझा जा सकता है।

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

इन चित्रों में FT और GH रूपांतरण वक्र है जो फर्म A और B के लिए बने हैं। इनके ढाल से MRTXY को मापा जाता है। मान लेते है कि फर्म AX वस्तु की OL तथा Y वस्तु की OQ ईकाई उत्पादन करती है। B फर्म X वस्तु की OE तथा Y वस्तु की ON ईकाई का उत्पादन करता है। इस स्थिति में हम यह देखते हैं कि tt' का ढाल kk' के ढाल की अपेक्षा अधिक है। ऐसी स्थिति में दोनो फर्मों तब तक दोनों वस्तुओं के उत्पादन में रूपान्तरण करते रहेंगे जब तक दोनो फर्मों का ढाल समान न हो जाए।

मान लीजिए दो उत्पादन वस्तुएं A तथा B है और दोनों वस्तुओं X तथा Y का उत्पादन करती है तो विशिष्टीकरण अंश को प्राप्त करने के लिए आवश्यक होगा कि :

MRTSAXY  = MRTSBXY

यही विशिष्टीकरण के अनुकूलतम अंश की दशा है।

(4) विभिन्न उत्पादक फर्मों में किसी साधन के अनुकू‌लतम प्रयोग की शर्त :- इस दशा के अनुसार किसी साधन का प्रयोग किसी फर्म द्वारा उस सीमा तक किया जाना चाहिए कि दोनों फर्मों में साधन की सीमांत उत्पादकता समान हो।

प्रो. रेडर के अनुसार "किसी साधन तथा किसी पदार्थ के मध्य रुपान्तरण की सीमांत दर किन्ही दो फर्मों के लिए समान होनी चाहिए जो उस साधन का प्रयोग तथा पदार्थ का उत्पादन करती है"। यदि ऐसा नहीं हो तो साधन का स्थानान्तरण करके वस्तु विशेष के कुल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

इस रेखाचित्र में X अक्ष पर फर्म A तथा फर्म B में प्रयुक्त साधन की मात्रा को दाई से बाई ओर दिखाया गया है। उत्पादित वस्तु को Y अक्ष पर व्यक्त किया गया है। चित्र से स्पष्ट है कि दोनो रुपान्तरण वक्रो पर वस्तु का उत्पादन OQ + OQ' है लेकिन स्थिती में श्रम का सीमांत उत्पादन में अन्तर आ जाता है जो दोनो फर्मों के उत्पादन स्तर की ढाल से ज्ञात होता है। इस स्थिति में हम पेरोटो अनु‌कूलतम को प्राप्त करने के लिए फर्म B में साधन की मात्रा बढागे तथा फर्म A में साधन की मात्रा को कम कर देगे जिससे उत्पादन में भी वृद्धि होगी और MRT of Labour दोनो फर्मों में बराबर हो जाएंगी।

(5) साधन के समय का अनुकूलतम वितरण :- यह दशा किसी उत्पादन के साधन विशेषततः मानवीय साधन के समय कार्य तथा अवकाश के मध्य अनुकूलतम वितरण से सम्बंधित है। इस दशा के अनुसार, "किसी वस्तु की उत्पादित मात्रा तथा उसमे व्यय समय के मध्य प्रतिस्थापन की सीमांत दर, साधन द्वारा व्यय किये गए समय तथा वस्तु के उत्पादन में रुपांतरण की सीमांत दर के समान होनी चाहिए"

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

एक श्रमिक का अनधिमान वक्र अवकाश तथा कार्य करने से प्राप्त आय के विभिन्न संयोगों को व्यक्त करता है अतः जहाँ पर अनधिमान वक्र रुपान्तरण वक्र को स्पर्श करती है। वह बिन्दु अनुकूलतम की स्थिती को व्यक्त करता है। इस बिन्दु पर MRT=MRS होगा।

(6) पूंजी का अन्तः कालीन अनुकूलतम आवण्टन :- इस दशा मे हम पूंजी को समय के आधार पर विभाजित करते हैं। यह दशा यह बताती है कि उधार देने वाले व्यक्ति के लिए पूँजी पर व्याज दर, उधार लेने वाले व्यक्ति की पूंजी की सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है।

पेरेटों मानदण्ड (Pareto Optimum)

इस रेखाचित्र में IC1 तथा IC2 ऋणदाता का वर्त्तमान उपभोग उदासीन वक्र है। उत्पादन सम्भावना वक्र उदासीन वक्र के हर बिन्दु पर वर्तमान तथा भविष्य आय के समान संतुष्टि के स्तर को व्यक्त करता है। AB उधार लेने वाले व्यक्ति का उत्पादन सम्भावना वक्र है जो मूल बिन्दु के नतोदर है जिसका अभिप्राय यह है कि वर्तमान पूँजी की सीमांत उत्पादकता घटती हुई होने के कारण उत्पादन की लागत बढ़ती हुई है। इस चित्र में AB वक्र E बिन्दु पर मिलते है जहाँ ऋणदाता का वर्तमान उपभोग व भविष्य उपभोग में प्रतिस्थापन की सीमांत दर ऋणग्राही के रुपान्तरण की सीमांत दर के समान है।

E बिन्दु पर वर्तमान उपभोग C'O तथा भविष्य का उपभोग C'1 निर्धारित होता है जिसका अर्थ यह है कि वर्तमान उपभोग स्तर में C'O,CO1 की कटौती की गई है जिससे भविता में C'C, उपभोग में वृद्धि की जा सके।

पेरेटो अनुकूलतम की द्वितीय क्रम की तथा समस्त शर्ते -

उपर्युक्त प्रथम क्रम की शर्तों की दशाएँ अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति के लिए आवश्यक तो है लेकिन पर्याप्त नहीं है क्योंकि ये सीमांत दशाऐ न्यूनतम सामाजिक कल्याण की स्थिति में भी पूरी हो सकती है। इसलिए अधिकतम सामाजिक कल्याण अथवा पेरोटो अधिकतम की प्राप्ति के लिए पर्याप्त शर्तें की पूर्ति भी आवश्यक है। इन पर्याप्त शर्ते की आवश्यकता के अनुसार जहाँ पर सीमांत दशाओं की पूर्ति हो रही है वहाँ यदि अनधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उत्तल हो और रुपान्तरण वक्र मूल बिन्दु की ओर अवतल हो तो ही सामाजिक कल्याण अधिकतम होगा।

अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति के लिए समस्त दशाओ की पूर्ति होना भी आवश्यक है। इन समस्त शर्तों या दशाओं के अनुसार "अधिकतम कल्याण की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि कोई ऐसी वस्तु उत्पादित करके जो पहले उत्पादित नहीं की जा रही है अथवा ऐसे साधन का प्रयोग करके जिसका प्रयोग नहीं हो रहा है कल्याण में वृद्धि करना असम्भव हो"।

यदि वर्तमान स्थिति में समस्त दशाओं की पूर्ति नहीं होगी तो पेरोटो अनुकूलतम की स्थिति नहीं होगी।

आलोचनाएँ

पेरोटों के कल्याणकारी मानदण्ड तथा उस पर आधारित अनुकूलतम की अवधारणा की निम्न दृष्टिकोण से आलोचना की जाती है

1. पेरोटों अनुकूलतम नैतिक निर्णयो से स्वतंत्र नहीं है।

2. पेरोटों के मानदण्ड की सीमित व्यवहारिकता

3. पेरोटों अनुकूलतम की अनिश्चिता

4. पेरोटों अनुकूलतम के विश्लेषण में वर्तमान आय वितरण का समर्थन किया गया है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी पेरोटो अनुकूलतम की स्थिती कल्याणकारी अर्थशास्त्र की मूल बिन्दु है। यह इसलिए उप‌योगी है कि यह "पेरेटो दृष्टि से गैर-अनुकूल विकल्पों को अलग कर देने से उस क्षेत्र को घटा देता है जिससे सर्वोत्तम विकल्पों की खोज हमे करनी है और इस प्रकार यह एक प्रथम कदम के रूप में उपयोगी है। कठिनाई तब होती है जब कोई इस प्रथम कदम से इतना मोहित हो जाता है कि वह आगे जाने का प्रयास ही नहीं करता। परन्तु इसे, पेरोटो मानदण्ड की त्रुटि नहीं कहा जा सकता"।

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