Class 11 Political Science 4. सामाजिक न्याय

Class 11 Political Science 4. सामाजिक न्याय

 Class 11 Political Science 4. सामाजिक न्याय

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11

राजनीति विज्ञान (Political Science)

4. सामाजिक न्याय

स्मरणीय तथ्य

प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था और न्यायोचित सामाजिक व्यवस्था कायम रखना राजा का प्राथमिक कर्तव्य माना जाता था।

चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वालों को दंडित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम करना चाहिए।

ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द रिपब्लिक' में न्याय के मुद्दों पर चर्चा की है।

सुकरात के अनुसार यदि सभी अन्यायी हो जाएंगे तो कोई भी सुरक्षित सुरक्षित नहीं रहेगा। साधारण शब्दों में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना न्याय है।

जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार हर मनुष्य की गरिमा होती है। इसलिए हर व्यक्ति का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए समान अवसर प्राप्त हो।

सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज में मनुष्य एवं मनुष्य के बीच किसी प्रकार का भेदभाव ना हो और कानून सबके लिए एक समान हो।

राजनीतिक न्याय के अंतर्गत लोकतंत्र में सभी को राजनीति में भाग लेने और अपनी सरकार चुनने के लिए वोट देने का अधिकार है।

आर्थिक न्याय का अर्थ देश की भौतिक साधनों का उचित बँटवारा और उनका उपयोग लोगों के हित के लिए हो।

जॉन रॉल्स ने 'अज्ञानता के आवरण' द्वारा न्याय के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

मुक्त बाजार के समर्थकों को मानना है कि अगर बाजारों को राज्य के हस्ताक्षेप से मुक्त कर दिया जाए तो बाजारी कारोबार का योग कुल मिलाकर समाज में लाभ और कर्तव्यों का न्याय पूर्ण वितरण सुनिश्चित कर देगा।

मार्क्सवादी सिद्धांत के अनुसार वर्ग विहीन समाज में ही न्याय उपलब्ध हो सकता है।

न्याय शब्द लैटिन भाषा के जस् से बना है जिसका अर्थ है बांधना या बंधन ।

जॉन रॉल्स ने 'ए थ्योरी ऑफ जस्टिस' नामक पुस्तक लिखी है।

समान कार्य के लिए समान वेतन आर्थिक न्याय का अंश है।

समान अधिकारों के अलावा समकक्षों के साथ समान बर्ताव के सिद्धांत के लिए जरूरी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए।

डॉ भीमराव अंबेडकर के अनुसार न्यायपूर्ण समाज वह है जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करें।

जे एस मिल के अनुसार न्याय में ऐसा कुछ अंतर्निहित है जिससे करना न सिर्फ सही है और न करना सिर्फ गलत, बल्कि जिस पर बतौर अपने नैतिक अधिकार कोई व्यक्ति विशेष हमसे दावा जता सकता है।

कानूनी न्याय अथवा वैधानिक न्याय का अर्थ है कानून के समक्ष समानता तथा न्यायपूर्ण कानून व्यवस्था है।

वैधानिक सिद्धांत न्याय को मूर्त एवं निश्चयवादी रूप में देखता है।

अवसर की समानता सामाजिक न्याय का एक प्रमुख तत्व है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. प्राचीन भारत में न्याय का संबंध था?

a. धर्म से

b. ध्यान से

c. राज्य से

d. राजा से

2. 'द रिपब्लिक' किसकी रचना है?

a. अरस्तु की

b. प्लेटो की

c. मैकियावेली की

d. बोदा की

3. सुकरात कौन था?

a. एक दार्शनिक

b. एक राजनीतिज्ञ

c. एक राजा

d. एक विद्यार्थी

4. "हर मनुष्य की गरिमा होती है" यह कथन किसका है?

a. प्लेटो का

b. अरस्तु का

c. इमैनुएल कांट का

d. राल्स का

5. न्याय की देवी आंखों पर पट्टी इसलिए बाँधे रहती है क्योंकि

a. उसे निष्पक्ष रहना है

b. वह देख नहीं सकती

c. यह एक परंपरा है

d. वह एक स्त्री है

6. प्रसिद्ध व्यक्ति कन्फ्यूशियस किस देश का निवासी था?

a. जापान

b. फ्रास

c. जर्मनी

d. चीन

7. विकलांग व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों में कितना प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है?

a. 5

b. 10

c. 3

d. 7

8. किसने कहा था न्याय हर व्यक्ति को चमकाने का एक साधन है?

a. प्रो० सेलमंड

b. प्लेटो

c. सुकरात

d. इनमें से कोई नहीं

9. 'न्याय का सिद्धांत 'नामक पुस्तक के लेखक कौन है?

a. ऑस्टिन

b. प्रोडा

c. जॉन रॉल्स

d. डायसी

10. 'सामाजिक न्याय' का प्रमुख तत्व क्या है?

a. विधिक अवसर की समानता

b. विधि की तार्किकता

c. कल्याणकारी विधिक प्रावधान

d. इनमें से कोई नहीं

11. न्याय के लिए काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है?

a. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

b. नागरिक सेवाएं

c. आईएमएफ

d. विश्व व्यापार संगठन

12. प्लेटो ने अपनी किस पुस्तक में न्याय संबंधी अवधारणा की व्याख्या की है?

a. पॉलिटिक्स

b. सोशल कॉन्ट्रैक्ट

c. द रिपब्लिक

d. इनमें से कोई नहीं

13. किस सिद्धांत के अनुसार वर्गहीन समाज में ही न्याय उपलब्ध हो सकता है?

a. उदारवादी

b. लोकतांत्रिक समाजवादी

c. मार्क्सवादी

d. फासीवादी

14. 'अज्ञानता के आवरण 'का विचार किसने दिया?

a. प्लेटो

b. अरस्तु

c. जॉन रॉल्स

d. रूसो

15. 'न्यायपूर्ण समाज वह है जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भर समाज का निर्माण करें।' यह कथन किसका है

a. जे ०एस० मिल्स

b. डॉ भीमराव अंबेडकर

c. महात्मा गांधी

d. प्लेटो

16. 'समान कार्य के लिए समान वेतन 'किस प्रकार के न्याय का अंश है?

a. सामाजिक न्याय

b. आर्थिक न्याय

c. राजनीतिक न्याय

d. धार्मिक न्याय

17. मुक्त बाजार किसका उत्पाद है?

a. समाजवाद

b. नारीवाद

c. नव उदारवाद

d. इनमें से कोई नहीं

18. न्याय का मतलब क्या है?

a. अपने मित्र का भला करना

b. दुश्मनों का नुकसान करना

c. अपने हितों की रक्षा करना

d. व्यक्तियों को उसका वाजिब हिस्सा देना

19. सामाजिक न्याय का तात्पर्य है?

a. सभी को समान राजनीतिक अधिकार

b. सभी को समान आर्थिक अधिकार

c. सभी को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

d. सभी प्रकार के भेदभाव तथा जाति, रंग, धर्म, लिंग इत्यादि पर आधारित विशेष अधिकार की समाप्ति

20. न्याय शब्द 'जस' शब्द से बना है यह किस भाषा का शब्द है?

a. लैटिन भाषा

b. ग्रीक भाषा

c. अंग्रेजी भाषा

d. फ्रेंच भाषा

21. जॉन रॉल्स द्वारा वकालत की गई समानता की चरणों के कितने प्रकार हैं?

a. दो

b. तीन

c. पांच

d. सात

22. न्याय मूलतः है?

a. कानूनी अवधारणा

b. नैतिक अवधारणा

c. सामाजिक अवधारणा

d. उपरोक्त सभी

23. निम्नलिखित में से कौन सा न्याय का भौतिक सिद्धांत नहीं है?

a. सत्य

b. कानून के समक्ष समानता

c. स्वतंत्रता

d. संपत्ति

24. प्लेटो ने न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए किसे दार्शनिक, सैनिक और उत्पादक जैसे तीन वर्गों में बांटे हैं?

a. मतदाताओं को

b. नागरिकों को

c. पुरोहितों को

d. इनमें से कोई नहीं

25. आधुनिक समय में सामाजिक परिवर्तन की मांग क्या है?

a. मतदान के अधिकार की मांग

b. न्याय की मांग

c. भ्रष्टाचार की मांग

d. अधिक वेतन पाने की मांग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. सामाजिक न्याय का लक्ष्य क्या है?

उत्तर- सामाजिक न्याय का लक्ष्य सामाजिक आर्थिक न्याय की प्राप्ति है ताकि समाज निरंतर अपने निर्धारित लक्ष्यो की ओर बढ़ सके।

2. न्याय के तीन सिद्धांत कौन से हैं?

उत्तर-

a. समान लोगों को प्रति समान बर्ताव

b. समानुपातिक न्याय

c. विशेष जरूरतों का विशेष ध्यान

3. बुनियादी आवश्यकताएँ कौन सी हैं?

उत्तर- स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी बुनियादी आवश्यकता है।

4. प्राचीन भारतीय समाज में न्याय की अवधारणा क्या थी?

उत्तर- प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा हआ था और धर्म या न्यायोचित सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना राजा का प्राथमिक कर्तव्य माना जाता था।

5. जॉन रॉल्स ने न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए किस विचार का प्रतिपादन किया है?

उत्तर- जॉन रॉल्स ने न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए 'अज्ञानता के आवरण' के विचार का प्रतिपादन किया है।

6. डॉ० भीमराव अंबेडकर के शब्दों में न्यायपूर्ण समाज क्या है?

उत्तर- डॉ भीमराव अंबेडकर के शब्दों में न्यायपूर्ण समाज वह है, जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हई भावना और अपमान की घटती हई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करें।

7. न्याय क्या है?

उत्तर- प्रत्येक व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना तथा समाज में सही को बढ़ावा देना और गलत का दंडित करना ही न्याय है।

8. न्याय के संबंध में चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का क्या तर्क था?

उत्तर- न्याय के संबंध में चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वाले लोगों को दंडित करके एवं भले लोगों को पुरस्कार प्रदान करके राजा को न्याय स्थापित करना चाहिए।

9. सुकरात के अनुसार न्याय का अर्थ क्या है?

उत्तर- सुकरात के अनुसार न्याय का मतलब सिर्फ यह नहीं होता है कि हम अपने मित्रों का भला करें और दुश्मनों का नुकसान करें या अपने हितों के पीछे लग रहे। न्याय में तमाम लोगों की भलाई निहित रहती है।

10. इमैनुएल कांट कौन थे?

उत्तर- इमैनुएल कांट एक जर्मन दार्शनिक थे उनका विचार था कि हर मनुष्य की गरिमा होती है। उनका मानना था हर एक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त होना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. क्या विशेष जरूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरुद्ध है?

उत्तर- विशेष जरूरतों को ध्यान में रखने का सिद्धांत सभी के साथ सामान बरताव के सिद्धांत को खंडित नहीं बल्कि उसका विस्तार ही करता है क्योंकि समकक्षों के साथ सामान बरताव के सिद्धांत में यह अंतर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्वपूर्ण संदर्भों में समान नहीं है उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाए।

विशेष जरूरतों या विकलांगता वाले लोगों को कछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता योग्य समझा जा सकता है। लेकिन इस पर सहमत होना हमेशा आसान नहीं होता कि लोगों को विशेष सहायता देने के लिए उनके किन असमानताओं को मान्यता दी जाए। शारीरिक विकलांगता उम्र या अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच न होना कुछ ऐसे कारक हैं जिन्हें अनेक देशों में विशेष बरताव का आधार समझा जाता है। यह माना जाता है, कि जीवनयापन और अवसरों के बहुत ऊंचे स्तर का उपभोग करने वाले और उत्पादक जिंदगी जीने के लिए जरूरी न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित लोगों से हर मामले में बिल्कुल एक जैसा बरताव करने पर परिणाम समतावादी और न्यायपूर्ण बल्कि एक असमान समाज होगा।

2. हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ कैसे बदले?

उत्तर- हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ न्याय में बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों की भलाई निहित रहती है। एक न्यायसंगत शासक या सरकार को भी न्याय हेतु जनता की भलाई की चिंता करनी होगी। जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है। इस प्रकार न्याय में हर व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना शामिल है। इसी को कहा जाता है कि हर व्यक्ति को उसका प्राप्य दिया जाए, यही न्याय है। प्राचीन काल से लेकर आज तक न्याय हमारे समाज का महत्वपूर्ण अंग बना हुआ है।

लेकिन प्राचीन काल से लेकर अब तक इस धारणा में कुछ परिवर्तन आए हैं। उदाहरण के लिए प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ था व्यक्ति की गलत कार्य पर उसे सजा दी जाए और उसके अच्छे कार्य के लिए उसे पुरस्कृत किया जाए लेकिन आधुनिक समय में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ यह लिया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी व्यक्तियों को समुचित और बराबर महत्व दें।

3. न्यायपूर्ण विभाजन के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर- समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियां सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों। लेकिन इतना ही काफी नहीं है और इससे कुछ ज्यादा करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है चाहें यह राष्ट्रों के बीच वितरण का मामला हो या किसी समाज के अंदर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच का। यदि समाज में गंभीर सामाजिक आर्थिक असमानताएं हैं तो यह जरूरी होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों का पुर्नवितरण हो जिससे नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके। इसलिए किसी देश के अंदर सामाजिक न्याय के लिए यह जरूरी है कि न केवल लोगों के साथ समाज के कानूनों और नीतियों के संदर्भ में समान बर्ताव किया जाए, बल्कि जीवन की स्थितियां और अवसरों के मामले में भी वे कुछ बुनियादी समानता का उपभोग कर सकें।

4. भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के क्या प्रावधान है?

उत्तर- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी भारतीय नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करना संविधान का सर्वोच्च उद्देश्य बताया गया है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-

a. सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।

b. प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता प्रदान की गई है।

c. सरकारी नौकरी प्राप्त करने के क्षेत्र में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान किए गए हैं।

d. अस्पृश्यता एवं छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। इसका प्रयोग करने वाले को राज्य द्वारा दंडित किया जाता है।

e. समाज में लोगों के बीच असमानता उत्पन्न करने वाली सभी प्रकार की उपाधियों का अंत कर दिया गया है।

f. प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है। धर्म व्यक्ति का निजी मामला है एवं राज्य को उसमें हस्तक्षेप करने की आज्ञा नहीं दी गई है।

g. समाज में उच्च वर्ग के व्यक्तियों द्वारा पिछड़े, दलितों तथा कम उम्र के बच्चों का शोषण करने की मनाही कर दी गई है।

5. मुक्त बाजार की धारणा क्या है?

उत्तर- मुक्त बाजार के समर्थकों का मानना है कि जहां तक सभव हो, व्यक्तियों को संपत्ति अर्जित करने के लिए तथा मूल्य, मजदूरी और मुनाफे के मामले में दूसरे के साथ अनुबंध और समझौतों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र रहना चाहिए। उन्हें लाभ की अधिकतम मात्रा हासिल करने हेतु एक दूसरे के साथ प्रतिद्वंदिता करने की खुली छूट होनी चाहिए। यह मुक्त बाजार का सरल चित्रण है। मुक्त बाजार के समर्थक मानते हैं कि अगर बाजारों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया जाए तो बाजारी कारोबार का योग कुल मिलाकर समाज में लाभ और कर्तव्यों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित कर देगा। इससे योग्यता और प्रतिभा से लैस लोगों को अधिक प्रतिफल मिलेगा जबकि अक्षम लोगों को कम हासिल होगा। उनकी मान्यता है कि बाजारी वितरण का जो भी परिणाम हो, वह न्यायसंगत होगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. न्याय से आप क्या समझते हैं? विभिन्न दार्शनिकों द्वारा न्याय की व्याख्या किस प्रकार की गई? विस्तार से बताएं?

उत्तर- न्याय से अभिप्राय न्याय एक व्यापक स्थिति एवं धारणा से है। न्याय उस स्थिति, व्यवहार एवं धारणा का नाम जिसमें सभी व्यक्तियों को उनका हक दिया जाए तथा उनके हकों की रक्षा की जाय। न्याय की विभिन्न दार्शनिकों द्वारा व्याख्या अलग-अलग ढंग से की गई है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने न्याय को धर्म से जोड़कर एक आदर्श धारणा के रूप में इसकी व्याख्या की है। प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था और धर्म या न्यायोचित सामाजिक व्यवस्था कायम रखना राजा का प्राथमिक कर्तव्य माना जाता था। चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वालों को दंडित करके और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम करना चाहिए। प्लेटो ने अपनी पुस्तक द रिपब्लिक में न्याय के मुद्दों की चर्चा की है। सुकरात और उनके युवा मित्रों, ग्लाउकोन और एंटीमॉन्टस के बीच लंबी वार्ता के जरिए प्लेटो ने दिखाया है कि हमारा न्याय से सरकार होना चाहिए।

सुकरात ने बताया कि न्याय का मतलब सिर्फ यह नहीं होता है कि हम अपने मित्रों का भला करें और दुश्मनों का नुकसान करें या अपने हितों के पीछे लगे रहे। न्याय में तमाम लोगों की भलाई निहित रहती है। जैसे एक डॉक्टर अपने सभी मरीजों की भलाई की चिंता करता है। इस प्रकार न्यायसंगत शासन या सरकार को भी जनता की भलाई की चिंता करनी होगी। जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देंना शामिल है।

जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमे से हर एक का प्राप्य होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए जरूरी है कि हम तमाम व्यक्तियों को समुचित और बराबर की अहमियत दें।

2. न्याय के तीन सिद्धांतों का वर्णन करें? प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइए?

उत्तर-न्याय के तीन सिद्धांतों का वर्णन निम्नलिखित है-

a. समान लोगों के प्रति समान बर्ताव-न्याय का पहला सिद्धांत यह है कि समकक्षों के साथ समान व्यवहार किया जाए। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य की सभी स्वभावों में कुछ ना कुछ समान चारित्रिक विशेषताएं होती है। इसलिए वे समान अधिकार और समान व्यवहार के अधिकारी हैं। उदाहरण के लिए आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्र में सभी नागरिकों को समान मूल अधिकार और राजनीतिक अधिकार जैसे स्वतंत्रता का अधिकार, लाभ का अधिकार, मताधिकार, जीवन का अधिकार आदि दिए गए हैं।

समान अधिकार के अतिरिक्त समकक्षों के साथ समान व्यवहार के सिद्धांत के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव ना किया जाए। उदाहरण के लिए यदि दो भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के दो व्यक्ति एक ही काम करते हैं, जैसे शिक्षक का काम तो उन्हें समान पारिश्रमिक मिलनी चाहिए। यदि किसी काम के लिए एक व्यक्ति को 100 रुपए और दूसरे व्यक्ति को 75 रुपए इसलिए मिलते हैं क्योंकि वह भिन्न जातियों के हैं या भिन्न रंग के तो यह अनुचित और अन्यायपूर्ण है।

b. समानुपातिक न्याय समान कार्य के लिए समान व्यवहार के न्याय के सिद्धांत के अतिरिक्त न्याय का दूसरा सिद्धांत समानुपातिक न्याय है। इसमें ऐसी परिस्थितियों हो सकती है जिसमें हमें यह महसूस होता है कि हर एक के साथ समान व्यवहार करना अन्याय होगा। उदाहरण के लिए अगर हमारे स्कूल में यह फैसला लिया जाए की परीक्षा में शामिल होने वाले सभी विद्यार्थियों को बराबर अंक दिए जाएंगे, क्योंकि सभी एक ही स्कूल के विद्यार्थी हैं तो वह ऐसा करना अन्यायपूर्ण होगा । यहां पर न्याय संगत यह होगा कि विद्यार्थियों को उनके उत्तर पुस्तिकाओं की गुणवत्ता के आधार पर उन्हें अंक दिए जाएं।

c. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल का सिद्धांत- यह न्याय का तीसरा सिद्धांत है। समाज में पारिश्रमिक या कर्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष आवश्यकताओं का भी ख्याल रखा जाए। इससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है। न्याय के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की विशेष आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाए। उदाहरण के लिए विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझना न्यायसंगत होगा। संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियां और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

3. निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। राल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में अज्ञानता के आवरण के विचार का उपयोग किस प्रकार किया।

उत्तर- समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियां सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू होने के साथ- साथ न्यायसंगत भी हो। इस संबंध में राल्स ने 'अज्ञानता के आवरण का सिद्धांत' प्रतिपादित किया है।

a. अज्ञानता के आवरण से आशय- जॉन रॉल्स ने कहा है कि निष्पक्ष और न्याय संगत नियम तक पहुंचाने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम स्वयं कौ अज्ञानता के आवरण की परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहां हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को किस प्रकार से संगठित किया जाए। राल्स के अनुसार अज्ञानता के आवरण के अंतर्गत समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान और पद के बारे में अनजान रहेगा।

b. अज्ञानता के आवरण में सोचना- जॉन रॉल्स यह तर्क देते हैं कि यदि हमें यह नहीं पता है कि हम कौन हैं और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे तब हम भविष्य के समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे वह सभी सदस्यों के लिए अच्छा होगा। जॉन राल्स इससे अज्ञानता के आवरण के बारे में सोचना कहा, वह उम्मीद करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी यह नहीं जानता है कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभप्रद होगा, अतः हर कोई सबसे बुरी स्थिति के समाज की कल्पना करेगा।

c. कमजोर तबके के लोगों के लिए यथोचित अवसरों की सुनिश्चितता- हालांकि वह अपने स्वभाव के अनुसार अपने स्वयं के हितों को ध्यान में रखकर निर्णय करेगा लेकिन अज्ञानता के आवरण में वह संगठन के ऐसे नियमों के बारे में सोचेगा जो कमजोर तबकों के लिए यथोचित अवसर सुनिश्चित कर सके। इस दृष्टिकोण से वह चाहेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकता सभी लोगों को प्राप्त हो।

d. सभी लोगों से विवेकशीलता की उम्मीद- अज्ञानता के आवरण वाली स्थिति की विशेषता यह है कि इसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बनती है क्योंकि अज्ञानता के आवरण में रहकर जब वे चुनते हैं तो वे पाएंगे की सबसे बुरी स्थिति से ही सोचना उनके लिए हितकर होगा। इससे यह पता चलता है कि विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरी स्थिति को ध्यान में रखकर इन चीजों को देखेंगे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा की उनके द्वारा निर्मित नीतियां पूरे समाज के लिए लाभप्रद हो।

इसलिए सभी के हित में यह होगा कि निर्धारित नीतियों और नियमों से पूरे समाज का लाभ हो किसी एक खास हिस्से को नहीं। यहां निष्पक्षता विवेक सम्मत कार्रवाई का परिणाम है न की किसी प्रकार की परोपकार या उदारता का। इसलिए जॉन रॉल्स तर्क देते हैं कि नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील चिंतन हमें समाज के लाभ और लाभों के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने की ओर प्रेरित करता है और अज्ञानता के आवरण वाली स्थिति लोगों को विवेकशील बनाए रखती है। यही विश्वास जॉन रॉल्स के सिद्धांत को निष्पक्ष और न्याय के प्रश्न को हल करने का महत्वपूर्ण और सबल रास्ता बना देता है।


JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अध्याय सं.

अध्याय का नाम

भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार

1

संविधान क्यों और कैसे?

2

भारतीय संविधान में अधिकार

3

चुनाव और प्रतिनिधित्व

4

कार्यपालिका

5

विधायिका

6

न्यायपालिका

7

संघवाद

8

स्थानीय स्वशासन

9

संविधान एक जीवंत दस्तावेज

10

संविधान का राजनीतिक दर्शन

राजनीतिक सिद्धांत

1

राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

2

स्वतंत्रता

3

समानता

4

सामाजिक न्याय

5

अधिकार

6

नागरिकता

7

राष्ट्रवाद

8

धर्मनिरपेक्षता

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर

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