मनुष्य द्वारा कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु अच्छे
प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षा का कौशल एवं प्रशिक्षण पर
सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिक्षा के फलस्वरूप लोगों की कार्य उत्पादकता बढ़ती है
एवं आर्थिक समृद्धि में उसका योगदान भी अधिक होता है। अतः शिक्षा मानव पूँजी
निर्माण का एक आधार है। देश की विकास प्रक्रिया हेतु मानव पूँजी का निर्माण करना
आवश्यक है।
मानव पूंजी अर्थव्यवस्था को बढ़ने देती है। जब विज्ञान,
शिक्षा और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में मानव पूंजी बढ़ती है, तो इससे नवाचार,
सामाजिक कल्याण, समानता, उत्पादकता में वृद्धि, भागीदारी की बेहतर दरों में वृद्धि
होती है, जो सभी आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
मानव संसाधन से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में उत्पादन की
प्रक्रिया में योगदान करने के लिए मानव की क्षमता से है। मानव पूंजी का अर्थ
मानवीय संपत्ति मानव पूंजी ज्ञान, कौशल, अनुभव और सामाजिक गुणों का योग है।
मानव पूंजी निर्माण का अर्थ -
मानव पूंजी का तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था या राष्ट्र
में किसी समय विशेष पर पाए जाने वाले कौशल, क्षमता, शिक्षा, ज्ञान के भंडार से है।
यह उन इंजीनियरों, डॉक्टरों, अध्यापकों, तथा सभी प्रकार के श्रमिकों के कौशल तथा
निपुणता का कुल जोड़ है जो उत्पादन प्रक्रिया में व्यस्त रहते हैं।
प्रो. नर्कसे के अनुसार, "पूंजी निर्माण का अर्थ है
कि समाज अपनी वर्तमान उत्पादन क्षमता को पूर्णतः उपभोग एवं तात्कालिक आवश्यकताओं
की पूर्ति में नहीं जुटाता है, वरन् उसके एक भाग को पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण मे
लगाता है अर्थात् औजार, उपकरण, मशीन, परिवहन सुविधाओं, संयंत्र एवं साज-सज्जा आदि
के निर्माण मे लगा देता है।
मानव पूंजी के स्टॉक मानव पूंजी के स्टॉक में होने वाले
विधि वृद्धि की प्रक्रिया को मानव पूंजी निर्माण कहते हैं। मानव पूंजी एक स्टॉक
धारणा है जबकि पूंजी निर्माण के प्रवाह धारणा है। उदाहरण यदि 2020 के आरंभ में एक
राष्ट्र का मानव पूंजी स्टॉक 11000 कुशल श्रमिकों का है। यदि 2022 में बढ़कर 14000
कुशल श्रमिकों का हो जाता है, तो 1 वर्ष में मानव पूंजी स्टॉक में 3000 की वृद्धि
निर्माण मानव पूंजी निर्माण को दर्शाता है।
• मानव पूंजी निर्माण- मानव पूंजी में किया गया ऐसा कोई भी निवेश जो मानव की शिक्षा,
प्रशिक्षण स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर में वृद्धि करता हो मानवीय पूंजी निर्माण पर एक
सक्रिय निवेश माना जाएगा।
• भौतिक पूंजी- भौतिक पूंजी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन प्रक्रिया के
लिए प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। भौतिक पूंजी मूर्त संपत्ति है, जिसका निर्माण
मानव द्वारा किया जाता है जैसे धन, संयंत्र, मशीनरी, फर्नीचर, भवन आदि।
मानव पूंजी एवं भौतिक पूंजी में अंतर :
भौतिक पूंजी |
मानव पूंजी |
1. भौतिक पूंजी का अर्थ उत्पत्ति या उत्पादन के साधनों से
है। जैसे मशीन, उपकरण, भवन आदि। |
1. मानव पूंजी देश में कुशल श्रमिकों के स्टॉक को बताता
है। |
2. भौतिक पूंजी दृश्य होती है तथा किसी वस्तु की भांति बाजार
में बेची जा सकती है। |
2. मानव पूंजी अदृश्य होती है तथा किसी वस्तु की भांति
बाजार में बेची नहीं जा सकती केवल सेवाएं बेची जा सकती है। |
3. भौतिक पूंजी स्वामी से पृथक होती है, अर्थात् उत्पादन के
स्थान पर स्वामी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। |
3. मानव पूंजी स्वामी से पृथक नहीं होती है। अर्थात् जिस
स्थान पर सेवाएं बेची जा रही है, उस स्थान पर स्वामी का उपस्थित होना आवश्यक है। |
4. भौतिक पूंजी से केवल निजी लाभ का सृजन होता है। |
4. मानव पूंजी निजी तथा सामाजिक लाभों सृजन करती है। |
पूंजी निर्माण का आर्थिक विकास में महत्व
:
मानवीय पूँजी के निर्माण से मानवीय संसाधनों को अधिक कुशल
एवं उत्पादक बनाया जाता है, इस कारण वे अधिक धन अर्जित करने योग्य होते हैं। इन सबके
फलस्वरूप देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। इसी प्रकार एक स्वस्थ व्यक्ति भी राष्ट्रीय आय में एक
अस्वस्थ व्यक्ति की तुलना में अधिक योगदान देता है। कर्मचारियों के दिए प्रशिक्षण से
उनकी उत्पादकता बढ़ती है जिसका देश की राष्ट्रीय आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अतः मानव पूंजी की वृद्धि के कारण आर्थिक संवृद्धि होती है। इसी कारण भारत में विभिन्न
पंचवर्षीय योजनाओं में मानव पूँजी निर्माण के स्रोतों में भारी सार्वजनिक व्यय किया
गया है। इन सबका भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनेक रूपों से सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अनेक
वैश्विक स्तर की रिपोर्टों में भारत के तीव्र विकास का अनुमान लगाया गया है तथा बताया
गया है कि भारत में आगे चलकर मानव पूँजी निर्माण ही इसकी अर्थव्यवस्था को आर्थिक वृद्धि
के उच्च पथ पर ले जायेगा। मानवीय पूंजी निर्माण का आर्थिक विकास में महत्व को निम्नलिखित
बिंदुओं पर देखा जा सकता है:
1. आर्थिक विकास की क्रियाओं का संपादन करने में जैसे, प्राकृतिक
संसाधनों की उचित विदोहन, उत्पादकता में वृद्धि, पूंजी निर्माण आदि के लिए मानव पूंजी
निर्माण आवश्यक है।
2. आर्थिक विकास की गति आर्थिक विकास की गति में तेजी लाने
के लिए प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, लेखक, वैज्ञानिक आदि की आवश्यकता
होती है।
3. लाभ पूर्ण रोजगार - मानवीय पूंजी निर्माण लाभपूर्ण रोजगार
सृजन करने का एक उचित माध्यम है।
4. औद्योगिक विस्तार - अर्ध विकसित देशों में औद्योगिकरण
को गति प्रदान करने के लिए मानवीय पूंजी निर्माण में विनियोग की आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न
1. मानव पूंजी निर्माण का अर्थ बताएं।
2. पूंजी स्टॉक क्या है।
3. भौतिक पूंजी की परिभाषा दें।
4. भौतिक पूंजी एवं मानव पूंजी में अंतर स्पष्ट करें।
मानवीय पूंजी निर्माण के स्रोत :
मानव पूंजी के स्रोत से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में उन तरीकों
से है, जिसमें मानव पूंजी के स्टॉक में वृद्धि होती है। शिक्षा में निवेश को मानव पूंजी
निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य
में निवेश, नौकरी पर प्रशिक्षण, प्रवास और सूचना, मानव पूंजी निर्माण के अन्य स्रोत
है।
1. शिक्षा
पर व्यय या निवेश- यह देश में उत्पादक
कार्य बल की संख्या बढ़ाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है। शिक्षा पर व्यय मानव पूंजी
निर्माण का महत्वपूर्ण स्रोत है।
2. स्वास्थ्य पर निवेश- स्वस्थ तन पर स्वस्थ मन का वास होता है। स्वास्थ्य पर किया
गया व्यय एक व्यक्ति को अधिक कार्यकुशल तथा अधिक उत्पादनकारी बनाता है। एक बीमार व्यक्ति
की तुलना में, एक स्वस्थ व्यक्ति राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में अधिक वृद्धि करता
है।
3. प्रशिक्षण - प्रशिक्षण श्रमिकों को अपने कार्य कौशल को तीव्र करने में
सहायक होता है। यह श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि करता है।
4. प्रवासन या स्थानांतरण (Migration)- लोग कभी-कभी बेहतर रोजगार की तलाश में एक स्थान से
दूसरे स्थान पर प्रवास करते हैं।
जिसमें उन्हें अपने मूल स्थानों की तुलना में अधिक वेतन मिलता है, क्योंकि यहां उनके
पूर्ण कौशल का उपयोग किया जाता है। अर्थात् स्थानांतरण भी मानव पूंजी निर्माण का एक
स्रोत है।
5. सूचना पर व्यय- उपलब्ध रोजगार के स्थानों तथा विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण प्रदान
करने वाली शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित सूचना कौशल निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत
है।
मानव विकास के संकेत मानव विकास सूचकांक :
मानव विकास के संकेतक के रूप में मानव विकास सूचकांक
(Human Development Index, HDI) की धारणा का प्रतिपादन, यूनाइटेड नेशन्स की एक एजेन्सी
यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (United Nations Development Programme) ने वर्ष
1990 में अपनी पहली मानव विकास रिपोर्ट में किया था। तब से अब तक UNDP प्रतिवर्ष एक
मानव विकास रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट विभिन्न देशों का मानव सूचकांक के
स्तर पर श्रेणीकरण (Ranking) करती है। इन रिपोर्टों का केन्द्र बिन्दु मानव विकास सूचकांक
(HDI) का निर्माण करना है।
मानव विकास सूचकांक क्या है :
मानव विकास सूचकांक (HDI) में तीन सूचक को प्रयोग किया जाता
है।
1. जीवन प्रत्याशा (लम्बा एव स्वस्थ जीवन)
2. शिक्षा सूचकांक (शिक्षा का स्तर)
3. आयु सूचकांक (प्रतिव्यक्ति आये तथा जीवन स्तर)।
इन संयुक्त सांख्यिकी सूचकांक के आधार पर मानव विकास रिपोर्ट
तैयार किया जाता है। जिसका प्रतिपादन महबुल-उल-हक ने किया। जिसे 1990 से UNDP द्वारा
प्रतिवर्ष जारी किया जाता है।
• UNDP की स्थापना 1965 तथा इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में
है।
• विभिन्न देशों को शामिल कर उनकी श्रेणी (Rank) प्रदान किया
जाता है यह श्रेणी 0 से 1 के बीच स्कोर पर आधारित होता है।
• वर्तमान 0.954 स्कोर के साथ नार्वे प्रथम तथा भारत 131
वें स्थान पर है। (2021 अनुसार कुल 189 देशों में)
मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याएँ
भारत जैसे देश में मानवीय पूँजी निर्माण की विशेष भूमिका
होती है। किन्तु इस मानव पूँजी के निर्माण में अनेक समस्याएँ होती है जो कि निम्नानुसार
हैं-
(1) निम्न प्राथमिकता क्षेत्र- आर्थिक विकास के लिए कृषि, उद्योगए आधारित संरचना आदि को
सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने के कारण मानवीय पूँजी निर्माण पर पर्याय ध्यान नहीं दिया
जाता। परिणाम स्वरूप मानव पूँजी निर्माण उचित प्रकार से नहीं हो पाता।
(2) क्षेत्रीय विषमताओं का होना- मानव पूँजी निर्माण में विस्तृत पैमाने पर क्षेत्रीय विषमताएं
विशेष बाधा पहुँचाती हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में इस तरह की विषमतायें बहुतायत
में देखी जाती हैं। जैसे कि शहरों में शिक्षा, स्वास्थ्य विशेष रूप में पायी जाती हैं।
जबकि ग्रामीण अधिकांशतः इन्हीं बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते रहते हैं।
(3) पर्याप्त वित्त का ना होना- देश में मानव पूँजी का निर्माण, उस देश के सर्वांगीण विकास
के लिए विशेष भूमिका करते हैं। लेकिन पर्याप्त वित्त के अभाव में मानव पूँजी के निर्माण
में समस्या आ जाती हैं।
(4) निम्न उत्पादकता का होना- चूँकि मानवीय पूँजी निर्माण के बिना उत्त्पादकता में वृद्धि
करना असंभव है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। इसमें विनियोजित
तरीके से शिक्षण-प्रशिक्षण देकर हम उत्पादकता में अभूतपूर्व सुधार कर सकते है।
(5) जनसंख्या वृद्धि- देश में व्याप्त जनसंख्या के लिए जितनी मानव पूँजी उपलब्ध
करायी जाती है। जनसंख्या इसके अनुपात में कहीं ज्यादा बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप यह
समस्या, एक सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने उभर रही है।
(6) बढ़ती जनसंख्या- तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या मानव पूँजी की गुणवत्ता पर
प्रतिकुल प्रभाव डालती है। क्योंकि इसके फलस्वरूप आवास, जल, अस्पताल, शिक्षा बिजली
आपूर्ति आदि प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटती जा रही है।
(7) प्रतिभा पलायन- देश में मानव पूँजी निर्माण की प्रक्रिया को एक गम्भीर खतरा
उन व्यक्तियों से है जो भारत में जन्मे तथा यहाँ से ही शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्राप्त
करने के बाद विकसित देशों को प्रस्थान कर जाते है। इसके कारण घरेलू अर्थव्यवस्था में
मानव पूंजी निर्माण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।
(8) त्रुटिपूर्ण मानवशक्ति नियोजन- भारत को स्नातक बेरोजगारी से सम्बंधित एक विस्फोटक समस्या
का सामना करना पड़ रहा है। मानव शक्ति तथा मानव कौशल के अपव्यय की यह एक दुःखद आलोचना
है।
(9) निम्न शैक्षिक मानक- उच्च शिक्षा को फैलाने के जूनून में अंधाधुंध विश्वविद्यालय
स्थापित कर रहे है। फलस्वरूप अपरिपक्व स्नातकों तथा स्नातकोत्तरों की एक विशाल फौज
हमारे यहाँ तैयार हो गई है जिनके त्रुटिपूर्ण कौशल के कारण उत्पादकता के स्तरों में
गिरावट आ गई।
मानवीय पूँजी निर्माण हेतु सुझाव
(Suggestions for human capital formation in hindi):
मानवीय संसाधनों का विकास उचित प्रकार से हो सके इसके लिए
अनेक सुझाव दिए जा सकते हैं। आइये कुछ प्रमुख सुझावों को समझने का प्रयास करते हैं-
(1) जनशक्ति नियोजन- सरकार नियोजन करते समय इनके बाद का आंकलन करे कि भविष्य
में कितनी मानव शक्ति की आवश्यकता होगी। जिस प्रकार के प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता
हो उनके अनुरूप उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।
(2) अलग से विकास- यह सही है कि आर्थिक विकास मानवीय संसाधनों के विकास पर
अच्छा प्रभाव डालता है। परंतु केवल आर्थिक विकास पर ही ध्यान न देकर मानवीय पूँजी निर्माण
पर अलग से ध्यान देना चाहिए।
(3) दृष्टिकोण में परिवर्तन- सरकार को यह समझना चाहिए कि मानवीय पूँजी निर्माण होने पर
ही आर्थिक विकास की प्रक्रिया में तेजी आएगी। अतः इसे उत्पादकीय व्यय मानना चाहिए।
(4) जनसंख्या पर नियंत्रण- भारत मे मानवीय संसाधनों को उचित प्रकार से विकसित करने
हेतु जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाना चाहिए। क्योंकि मानव पूंजी के निर्माण में
जनसंख्या भी प्रमुख रूप से बाधा डालने में अपनी भूमिका निभाती है।
(5) वित्त की उपलब्धता- मानवीय पूँजी निर्माण के लिए सरकार को पर्याप्त मात्रा में
वित्त उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि वित्त का अभाव एक ऐसी समस्या
है जिसके चलते मानव पूँजी के निर्माण के विषय में सोचना निरर्थक ही होगा।
कुछ समय पूर्व तक मानव पूँजी में निवेश पर ध्यान न देकर भौतिक
पूँजी में निवेश पर अधिक ध्यान दिया जाता था। मानव पूँजी के रूप में प्रबंध का मुख्य
कार्य भौतिक पूँजी के आवंटन का निर्णय करना ही माना जाता था। परंतु आधुनिक समय में
स्थितियां परिवर्तित हो गयी हैं। आज आर्थिक जगत में नवप्रवर्तन (innovation) अत्यधिक
महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसी पर आर्थिक मूल्यों की प्राप्ति निर्भर है। कड़ी प्रतियोगिता
की दशा में नवप्रवर्तनों की द्वारा ही लाभ प्राप्त हो सकते है। नवप्रवर्तन एक रचनात्मक
कार्य है। जो तकनीकी रूप से कुशल एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति ही पूरा कर सकता है। अतः
देश में जितने अधिक दक्ष एवं प्रतिभावान व्यक्ति होंगे उतनी ही अधिक उत्पादकता होगी।
इसीलिये आज कंपनियां तकनीशियन, वित्तीय विशेषज्ञ, विपणन एवं ग्राहक अन्तर्व्यवहार प्रबन्धों
आदि पर अधिक निर्भर हो रही हैं। अतः कुशल एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों अर्थात मानव संसाधन
का विकास, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, पोषण आदि पर निवेश द्वारा ही संभव होता है।
शिक्षा तथा साक्षरता
समरूप शब्द नहीं हैं
(Education and
Literacy are not Identical Terms)
• साक्षरता की तुलना में शिक्षा एक अधिक विस्तृत अवधारणा
है।
• साक्षरता से अभिप्राय केवल पढ़ने तथा लिखने (Read and
Write) की योग्यता से है।
• इसके विपरीत शिक्षा के निम्न तीन प्राचल (Parameters) इस
प्रकार हैं: (i) प्राथमिक शिक्षा, (ii) माध्यमिक शिक्षा तथा (iii) उच्चतर शिक्षा ।
• सभी शिक्षित व्यक्ति साक्षर होते हैं, परंतु यह जरूरी नहीं
कि सभी साक्षर व्यक्ति अवश्य ही शिक्षित हों।
भविष्य की सम्भावनाएँ
भारत में साक्षरता दर में निरन्तर सुधार हो रहा है। साक्षरता
में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अन्तर कम हो रहा है। भारत में स्त्री शिक्षा पर विशेष
ध्यान दिया जा रहा है। भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या बहुत कम
है तथा शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी की दर भी ऊँची रही है। भारत में मानव पूँजी निर्माण
के अनेक आर्थिक एवं सामाजिक लाभ प्राप्त हुए हैं, अतः देश में मानव पूँजी निर्माण हेतु
निरन्तर प्रयास किया जा रहा है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास :
सन् 1976 से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व
था परन्तु संविधान द्वारा 1976 में किये गये जिस संशोधन से केन्द्र सरकार ने शिक्षा
के राष्ट्रीय एवं एकीकृत स्वरूप को सुदृढ़ करने का गुरुत्तर भार भी स्वीकार किया है।
हमारी 1966 तथा 1986 की शिक्षा प्रणालियों ने सभी क्षेत्रों के लिए सुधरे रूप में शिक्षा
के विस्तार की सिफारिश की है। इन नीतियों में निम्न पहलू सम्मिलित हैं
(I) 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा।
(II) निरक्षरता को पूर्णरूपेण दूर करना।
(III) शिक्षा का व्यवसायीकरण ।
(IV) स्त्री, निर्बल और सीमित वर्ग की शिक्षा पर केन्द्रीकरण।
भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों
के अन्तर्गत किया जा सकता है
1. सर्व शिक्षा अभियान 2001- 2001 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य 2010 तक 6 से
14 आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना था।
2. मध्याहन भोजन योजना- प्राथमिक शिक्षा में नामांकन
बढ़ाने, उन्हें बनाये रखने तथा उपस्थित के साथ-साथ बच्चों में पोषण स्तर सुधारने के
उद्देश्य से यह योजना 15 अगस्त 1995 को प्रारम्भ हुआ।
3. प्रारम्भिक शिक्षा (Elementary Education)- प्राइमरी
या प्राथमिक (Primary) और मिडिल (Middle) या अपर प्राइमरी स्कूल शिक्षा को मिलाकर प्रारम्भिक
शिक्षा कहते हैं। हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा को दो भागों में विभाजित किया गया
है। कक्षा 1 से कक्षा 5 तक (प्राथमिक स्कूल) तथा कक्षा 6 से कक्षा 8 तक (मिडिल या उच्च
प्राथमिक स्कूल)। प्राथमिक पाठशाला में छात्रों की आयु 6 से 11 वर्ष तक और उच्च प्राथमिक
स्कूल में पढ़ने की आयु 11 से 14 वर्ष रखी गयी है। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में
सरकार द्वारा उठा, गये नये कदमों में प्रमुख निम्न हैं।
• सर्वशिक्षा अभियान वर्ष 2001 में शुरू की
गई इस योजना का उद्देश्य 6-14 आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध
कराना है। इस योजना से स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में भारी कमी लाने में सफलता
मिली है।
• मध्याह्न भोजन योजना प्राथमिक शिक्षा में
नामांकन बढ़ाने, उन्हें बनाए रखने तथा उपस्थिति के साथ-साथ बच्चों में पोषण स्तर सुधारने
के उद्देश्य से यह योजना 15 अगस्त, 1995 से आरम्भ की गई।
4. माध्यमिक शिक्षा (Secondary Education) - माध्यमिक
शिक्षा में 14 से 18 वर्ष की आयु समूह के छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश करने के
लिए तैयार करने के साथ-साथ विश्व के कार्य क्षेत्र के लिए भी तैयार किया जाता है। माध्यमिक
शिक्षा के क्षेत्र के विस्तार के लिए निम्नलिखित संस्थाएँ भी कार्यरत हैं।
5. नवोदय विद्यालय (Navodaya Vidyalaya) भारत
सरकार ने सन् 1987-88 में प्रत्येक जिले में औसतन एक नवोदय विद्यालय स्थापित करने का
एक कार्यक्रम शुरू किया था। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली
बच्चों को अच्छे स्तर की आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराना है।
6. केन्द्रीय विद्यालय (Kendriya Vidyalaya) भारत
सरकार ने सन् 1962 में केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना की योजना मंजूर की थी। सभी
केन्द्रीय विद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू है।
7. राष्ट्रीय शैक्षिक- अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्
(National Council of Educational Research and Training NCERT) - इसकी स्थापना
1961 में की गई थी। यह 12वीं कक्षा तक के लिए पाठ्यक्रम और पाठ्य-पुस्तकें तैयार करती
है व अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन देती है।
8. माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायीकरण (Vocationalisation of
Secondary Education) फरवरी 1988 में केन्द्रीय सरकार ने उच्च शिक्षा
को व्यावसायिक बनाने की एक योजना बनाई। इस योजना के अन्तर्गत उन स्कूलों को वित्तीय
सहायता दी जाती है जो उच्च शिक्षा (+2) स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना शुरू
करेंगे। जो बच्चे सफलतापूर्वक पूर्ण व्यावसायिक पाठ्यक्रम पूरा कर लेते हैं, उनको सार्वजनिक
तथा निजी क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने अथवा स्वरोजगार की योजना बनाने के प्रयास
किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् (National
Council of Educational Research and Training NCERT) :- इसकी
स्थापना 1961 में की गई थी। यह 12वीं कक्षा तक के लिए पाठक्रम और पाठ्य-पुस्तकें तैयार
करती है व अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहित करती है।
प्रश्नोत्तर
प्र. 1. मानवीय पूँजी महत्त्वपूर्ण होने का
कारण है?
• भौतिक पूँजी का उत्पादकीय प्रयोग संभव
• उत्पादकता में वृद्धि
• अभिवृत्तियों का आधुनिकीकरण
• इनमें सभी
उत्तर : इनमें सभी
प्र. 2. वर्तमान में कौन से राज्य में साक्षरता
दर अधिक है ?
• बिहार
• झारखण्ड
• त्रिपुरा
• उड़ीसा
उत्तर : त्रिपुरा
प्र. 3. मानव पूँजी निर्माण में बाधा है?
• बढ़ती जनसंख्या
• ब्रेन - ड्रेन
• शिक्षा का निम्न स्तर
• इनमें सभी
उत्तर : इनमें सभी
प्र. 4. मानवीय साधनों के विकास के लिए आवश्यकता
है ?
• नैतिकता
• अनुशासन
• सच्चाई
• शिक्षा
उत्तर : शिक्षा
प्र. 5. मानव विकास सूचकांक (HDI) मानदण्डों
का एक सूचक है?
• आध्यात्मिक
• सामाजिक
• राजनैतिक
• धार्मिक
उत्तर : सामाजिक
प्र. 6. मानव विकास सूचकांक 2016 में भारत
का स्थान था?
• 130
• 129
• 131
• 105
उत्तर: 131
प्र. 7. मानवीय संसाधन विकास का उपाय है?
• स्वास्थ्य सुविधाएँ
• कार्य प्रशिक्षण
• शिक्षा व्यवसाय
• इनमें सभी
उत्तर : इनमें सभी
प्र. 8. मानव विकास है?
• एक साधन
• एक साध्य
• एक साधन और एक साध्य
• इनमें कोई नहीं
उत्तर: एक साध्य
प्र. 9. मानव पूँजी है?
• सामाजिक प्रक्रिया
• आर्थिक प्रक्रिया
• तकनीकी प्रक्रिया
• आर्थिक तथा तकनीकी प्रक्रिया
उत्तर: सामाजिक प्रक्रिया
प्र. 10. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन स्थापित
किया गया था?
• 1988
• 1985
• 1987
• 1956
उत्तर: 1988
प्र. 11. मानवीय पूँजी निर्माण के स्रोत होते
हैं?
• केवल आंतरिक
• केवल बाह्य
• केवल आंतरिक और केवल बाह्य
• इनमें कोई नहीं
उत्तर: केवल आंतरिक और केवल बाह्य
प्र. 12. पूँजी की कमी, तकनीकी पिछड़ापन एवं
बेरोजगारी सामान्यतः पाए जाते हैं?
• विकसित देश
• अल्पविकसित देश
• विकसित देश और अल्पविकसित देश
• इनमें कोई नहीं
उत्तर : अल्पविकसित देश
प्र. 13. वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत शिक्षा
पर निवेश, स्वास्थ्य का सुधार तथा प्रशिक्षण सम्मिलित है?
• भौतिक पूँजी निर्माण
• औद्योगिक पूँजी निर्माण
• बैंकिंग पूँजी निर्माण
• मानव पूँजी निर्माण
उत्तर: मानव पूँजी निर्माण
प्र. 14. शिक्षा पर व्यय एक …….व्यय है ?
• अनुत्पादक
• अनावश्यक
• उत्पादन
• इनमें कोई नहीं
उत्तर: उत्पादन
प्र. 15. मानवीय पूँजी निर्माण की एक समस्या
है?
• लागत
• मृत्युदर
• जनसंख्या में वृद्धि
• उत्पादन
उत्तर : जनसंख्या में वृद्धि
प्र. 16. मानव पूँजी निर्माण में सम्मिलित
है अथवा मानव पूँजी निर्माण का स्रोत है?
• शिक्षा पर व्यय
• स्वास्थ्य पर व्यय
• प्रशिक्षण पर व्यय
• इनमें सभी
उत्तर : इनमें सभी
प्र. 17. शिक्षा से लोगों की बढ़ती है?
• उत्पादकता
• दक्षता
• आय
• इनमें सभी
उत्तर: इनमें सभी
प्र. 18. मानव पूँजी में सम्मिलित है ?
• श्रमिक
• उद्यमी
• श्रमिक और उद्यमी दोनों
• सम्पूर्ण जनसंख्या
उत्तर: श्रमिक और उद्यमी दोनों
प्र. 19. एक सूचक जो किसी देश के मानव विकास
को मापता है?
• PPT
• SBI
• RBI
• HDI
उत्तर: HDI
प्र. 20. 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता
दर है?
• 65.4%
• 74.04%
• 56.05%
• 6.1%
उत्तर: 74.04%
बहुविकल्पीय
प्रश्न
प्र. 1. समय के एक निश्चित बिंदु पर एक राष्ट्र
के 'कौशल और विशेषज्ञता' के भंडार को कहा जाता है
(a) सामाजिक आधारिक संरचना
(b) भौतिक पूँजी
(c) मानव पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
प्र. 2. निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में
पूँजी निर्माण की समस्या है?
(a) प्रतिभा पलायन
(b) निम्न शैक्षिक मानक
(c) जनसंख्या में वृद्धि
(d) उपरोक्त सभी
प्र० 3. पढ़ने तथा लिखने की योग्यता को कहा
जाता है।
(a) शिक्षा
(b) मानव पूँजी
(c) साक्षरता
(d) मानव विकास
प्र. 4. निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन उच्चतर
माध्यमिक स्तर की पाठ्य पुस्तकों की सामग्री की रचना करने में संलग्न है?
(a) UGC
(b) AICTE
(c) ICMR
(d) NCERT
प्र. 5. उच्च शिक्षा के मार्गदर्शन तथा नियंत्रण
की जिम्मेदारी होती है
(a) भारत सरकार की
(b) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की
(c) उच्च शिक्षा विभाग की
(d) इनमें से कोई नहीं
प्र. 6. देश में तकनीकी शिक्षा संबंधी नियमों
तथा अधिनियमों को लागू करने की जिम्मेदारी किसकी है?
(a) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की
(b) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की
(c) अखिल भारतीय तकनीक शिक्षा परिषद की
(d) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की
प्र. 7. सन् 2017-18 में महिलाओं की प्राथमिक
संपूर्ति दर थी-
(a) 93 प्रतिशत
(b) 94 प्रतिशत
(c) 96 प्रतिशत
(d) 97 प्रतिशत
प्र. 8. भारत में साक्षर महिलाएँ हैं-
(a) 75 प्रतिशत
(b) 85 प्रतिशत
(c) 70 प्रतिशत
(d) 66 प्रतिशत
प्र. 9. भारत में साक्षरता दर सन् 2011 की
जनगणना के अनुसार लगभग हैरू
(a) 74 प्रतिशत
(b) 56 प्रतिशत
(c) 65 प्रतिशत
(d) 60 प्रतिशत
प्र. 10. मानव पूँजी निर्माण के कारण होता
है
(a) आगतों का कुशलतापूर्वक उपयोग
(b) भौतिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि
(c) GDP संवृद्धि में वृद्धि
(d) दोनों (a) तथा (c)
प्र. 11. समय के साथ, मानव पूँजी के स्टॉक
में होने वाली वृद्धि की प्रक्रिया को कहते हैं
(a) मानव पूँजी जोड़
(b) मानव पूँजी वृद्धि
(c) मानव पूँजी निर्माण
(d) मानव पूँजी स्टॉक
प्र. 12. मानव पूँजी के मौजूदा स्टॉक में वृद्धि
करने का निम्नलिखित में से कौन-सा महत्त्वपूर्ण तरीका है?
(a) शिक्षा पर व्यय
(b) स्वास्थ्य पर व्यय
(c) नौकरी के दौरान प्रशिक्षण
(d) उपरोक्त सभी
प्र. 13. मानव पूँजी तथा मानव विकासः
(a) विपरीत अवधारणाएँ हैं
(b) भिन्न अवधारणाएँ हैं
(c) दोनों का अर्थ समान है।
(d) संबंधित अवधारणाएँ हैं किंतु निश्चित रूप
से समरूप नहीं हैं।
प्र. 14. निम्नलिखित में से कौन-सा इस तथ्य
को उजागर करता है कि मानव पूँजी निर्माण संवृद्धि और विकास की प्रक्रिया में योगदान
देता है?
(a) भौतिक पूँजी की उच्च उत्पादकता
(b) कौशल में नवीनता
(c) दोनों तथा
(d) इनमें से कोई नहीं
प्र. 15. शिक्षा तथा स्वास्थ्य में सरकारी
हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है क्योंकिः
(a) इन क्षेत्रों को बहुत अधिक स्थिर व्यय के साथ भारी मात्रा
में निवेश की आवश्यकता होती है।
(b) निजी निवेशकों के लिए कीमत विनियमन ढाँचे के अंतर्गत
निवेश करना कठिन होता है।
(c) दोनों (a) तथा (b)
(d) इनमें से कोई नहीं
प्र. 16. निम्नलिखित में से किसके कारण देश
में शिक्षा अभी भी एक चुनौतीपूर्ण समस्या है?
(a) निरक्षर व्यक्तियों की बड़ी संख्या
(b) शिक्षा का अपर्याप्त व्यावसायीकरण
(c) लिंग-भेट
(d) उपरोक्त सभी
प्र. 1. किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख
स्रोत क्या होते हैं?
उत्तर : किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत निम्नलिखित
हैं -
• शिक्षा: शिक्षा न केवल जीवन स्तर के मानक और गुणवत्ता को बढ़ाती है बल्कि लोगों के
आधुनिक दृष्टिकोण को भी प्रोत्साहित करती है। यह देश के कर्मचारियों की कौशल को बढ़ाकर
उत्पादक क्षमता और उत्पादकता में वृद्धि करता है।
• स्वास्थ्य : यह सक्रियए उर्जावान तथा स्वस्थ श्रमशक्ति की आपूर्ति करके
अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास में मदद करता है जो पूरे उत्पादन प्रक्रिया को सक्रिय
करता है।
प्र. 2. किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के
दो सूचक क्या होंगे?
उत्तर : किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक निम्नलिखित
हैं :
• व्यस्क साक्षरता दर यह 15 वर्ष से अधिक आयु कों साक्षरों
का प्रतिशत दर दर्शाता है।
• युवा साक्षरता दर : यह 15 से 24 आयु वर्ग की जनसंख्या का
प्रतिशत दर को दर्शाता है जो पढ़ और लिख सकते हैं।
प्र. 3. भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय
विषमताएँ क्यों दिखाई दे रही हैं?
उत्तर : भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ
दिखाई देती हैं। केरल, तमिलनाडु तथा उत्तरांचल जैसे कुछ राज्यों में उच्च साक्षरता
दर है, जबकि बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में साक्षरता
दर कम हैं। यह बड़े पैमाने पर आय और घन की असमानताओं के कारण शिक्षा पर सरकार द्वारा
निवेश की कमी के कारण है। इन राज्यों के लोग शिक्षा को कम महत्त्व देते हैं और मुख्य
रूप से कृषि क्षेत्र या अनौपचारिक कार्यक्षेत्र में कार्यरत हैं जिसका शिक्षा के साथ
कम संबंध है।
प्र. 4. मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास
के भेद को स्पष्ट करें।
उत्तर: मानव पूँजी बढ़ी हुई उत्पादकता का प्रतिनिधित्व करता
है। यह एक अर्जित योग्यता है और समझ-बूझ से किए गए निवेशगत निर्णयों का परिणाम है,
जो भविष्य में आय के स्रोतों में वृद्धि की अपेक्षा से किए जाते हैं। मानव विकास इस
विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों मनुष्यों के कल्याण के लिए अभिन्न
हैं, क्योंकि जब लोगों के पास पढ़ने और लिखने तथा दीर्घायु तथा स्वस्थ जीवन की योग्यता
होगी, तभी वे इन मूल्यों का मापन करने में सक्षम होंगे जिनको वे महत्व देते हैं।
5. मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस
प्रकार से अधिक व्यापक है?
उत्तर : मानव विकास मानव पूँजी की तुलना में कहीं अधिक व्यापक
अवधारणा है। मानव विकास में उन सभी कारकों को शामिल किया जाता है जो समाज के कल्याण
और विकास को जन्म देते हैं जबकि मानव पूँजी मानव संसाधन पर आधारित होती है जिनका अर्थव्यवस्था
के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। मानव विकास शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से मनुष्य
की समग्र समृद्धि में शामिल है जबकि मानव पूँजी मानव संसाधन को अर्थव्यवस्था की उत्पादकता
बढ़ाने का स्रोत माना जाता है।
प्र. 6. मानव पूँजी के निर्माण में किन कारकों
का योगदान रहता है?
उत्तर : मानव पूँजी के निर्माण में निम्नलिखित कारकों का
योगदान रहता है -
• शिक्षा : यह न केवल व्यक्ति की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है
बल्कि नवीन प्रद्योगिकी को आत्मसात् करने क्षमता भी विकसित करती है। यह वर्तमान आर्थिक
स्थिति को सुधारता है तथा देश के भविष्य की संभावनाओं में सुधार करता है।
• स्वास्थ्य : स्वास्थ्य पर किया गया गया व्यय देश की श्रमबल की क्षमता,
दक्षता और उत्पादकता को बढ़ाता हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधानरहित श्रम
की पूर्ति कर सकता है। अच्छे स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से न केवल जीवन प्रत्याशा
बढ़ती है बल्कि जीवन स्तर में भी सुधार लाती है। इसमें स्वच्छ पेयजल, उत्तम स्वच्छता
सुविधाएँ तथा बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ आदि का प्रावधान है।
• प्रशिक्षण कार्य : प्रशिक्षण पर किया गया व्यय मानव पूँजी का स्रोत है जिसमें
श्रम उत्पादकता में वृद्धि से हुए लाभ कहीं अधिक होते हैं। कार्य स्थल पर प्रशिक्षण
एक प्रशिक्षु के लिए अधिक प्रभावी प्रशिक्षण है जो उसे यह तकनीकी कौशल प्रदान करता
है कि वास्तविक कार्य स्थल पर कैसे कार्य करना है।
• प्रवसनः व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/
पलायन करते हैं। प्रवसन की स्थिति में परिवहन की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ
एक अनजाने सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागत भी शामिल है। चूंकि नए
स्थान उनकी कमाई प्रवास से जुड़ी सभी लागतों से कहीं अधिक होती है, इसलिए प्रवसन पर
व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।
• सूचना : मानव पूँजी के निर्धारण में रोजगार, वेतन तथा प्रवेश से संबंधित सूचनाओं की
उपलब्धता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह जानकारी मानव पूँजी में निवेश करने से
प्राप्त मानव पूँजी के भंडार का सदुपयोग करने की दृष्टि से बहुत अधिक उपयोगी होती है।
इसीलिए श्रम बाजार तथा अन्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने पर किया गया व्यय भी मानव
पूँजी निर्माण का स्रोत है।
प्र. 7. सरकारी संस्थाएँ भारत में किस प्रकार
स्कूल एवं अस्पताल की सुविधाएँ उपलब्ध करती है?
उत्तर : भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य
स्तर पर शिक्षा मंत्रालय तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी परिषद् आती हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत
संघ और राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य मंत्रालय और विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग
तथा भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् आदि कार्य कर रही हैं।
प्र. 8. शिक्षा
को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्वपूर्ण आगत माना जाता है। क्यों?
उत्तर : शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्वपूर्ण
आगत माना जाता है क्योंकि, यह लोगों को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करता है जो उनकी
उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। यह सामाजिक जागरूकता पैदा करता है और लोगों की मानसिक
क्षमताओं को विकसित करता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर सही चुनाव किया जा सके।
• यह एक व्यक्ति की उपार्जन क्षमता को बढ़ाता है जो अंततः
लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाता है।
• एक शिक्षित व्यक्ति जनसंख्या वृद्धि की समस्या को समझता
है जिससे जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आती है। इससे प्रति व्यक्ति अधिक संसाधन उपलब्ध
होते हैं।
• यह आधुनिकीकरण और आधुनिक तकनीकों की स्वीकृति में मदद करता
है जो एक राष्ट्र के विकास को बढ़ावा देता है।
प्र. 9. पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों
पर चर्चा कीजिए। (क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना (ख) प्रवसन पर व्यय ।
उत्तर : (क) स्वास्थ्य का अर्थ पूर्ण शारीरिक, सामाजिक और
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति है। इसमें निवारक और उपचारात्मक दवाएं, स्वच्छ पेयजल की
आपूर्ति और साफ-सफाई आदि शामिल हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में किया गया निवेश मानव पूँजी
निर्माण का एक अच्छा स्रोत है जो स्वस्थ श्रम उपलब्ध कराता है।
(ख) व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार
की तलाश में प्रवसनध्पलायन करते हैं। प्रवसन की स्थिति में परिवहन की लागत और उच्चतर
निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागत
भी शामिल है। चूंकि नए स्थान उनकी कमाई प्रवास से जुड़ी सभी लागतों से कहीं अधिक होती
है, इसलिए प्रवसन पर व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।
प्र. 10. मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग
के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय संबंधी जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण
करें।
उत्तर: मानव पूंजी के विकास के लिए नौकरियों, वेतन और प्रवेश
संबंधी जानकारी की उपलब्धता आवश्यक है। वे लोगों के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के
बीच बेहतर विकल्प चुनने तथा मानव कौशल और ज्ञान का प्रभावी उपयोग करने में सक्षम बनाता
है। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी पर निवेश से स्वास्थ्य, दक्षता, गुणवत्ता
जीवन और लोगों की प्रत्याशा में सुधार होता है। चिकित्सा संबंधी जानकारी तथा परिवार
कल्याण कार्यक्रमों का उपयोग स्वस्थ श्रमबल की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। सूचना के
अभाव के कारण विभिन्न स्वास्थ्य उपायों को अपनाया नहीं जा सकता है जिन्हें कम किया
जा सकता है तथा मानव संसाधनों का प्रभावी प्रयोग करने में सहायता मिलती है।
प्र. 11. मानव पूंजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि
में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर: मानव पूंजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में इस प्रकार
सहायक है
• उत्पादकता में वृद्धिः कुशल और स्वस्थ मजदूर वस्तु आगत
तथा पूंजी के प्रभावी उपयोग करते हैं जो उत्पादकता बढ़ाता है और विकास की दर को तेज
करता है।
• नव परिवर्तन एक शिक्षित व्यक्ति के पास आविष्कारों और नव
परिवर्तनों को समझ पाने की क्षमता होती है जिससे वे अधिक कुशल और उत्पादक हो सकते हैं
तथा यह आर्थिक विकास में सहायक होती है।
• उच्च भागीदारी दरः यदि अधिक लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के
माध्यम से कार्य करने में सक्षम हो गए, तो इससे लोगों की भागीदारी दर में वृद्धि होगी
जो आर्थिक विकास और संवृद्धि की प्रक्रिया की गति देगा।
प्र. 12. विश्व भर में औसत शैक्षिक दर में
सुधार के साथ साथ विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पायी गयी है। टिप्पणी करें।
उत्तर: बेहतर शिक्षा आय की असामनता को कम करती है। एक शिक्षित
व्यक्ति में अधिक क्षमता और योग्यता होती है जिससे उनकी आय अधिक होती है। इससे जीवन
स्तर तथा गुणवत्ता में सुधार होता है। विश्व में शिक्षा का महत्व माना जाता है और राष्ट्रों
की सरकार शिक्षा क्षेत्र में भारी निवेश कर रही है। जब शिक्षा दर में वृद्धि होती है
तो यह असमानताओं को स्वतः कम कर देता है।
प्र. 13. किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में
शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।
उत्तर : किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की निम्नलिखित
भूमिका है :
• ज्ञान तथा कौशल- यह लोगों को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करता है जो उनकी
उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। यह रोजगार तथा आय अर्जन के अवसर प्रदान करता है।
• आधुनिक पद्धतियों की स्वीकार्यता- एक शिक्षित व्यक्ति नई आधुनिक तकनीकों को अपनाने में सक्षम
है जो एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करता है।
• असमानता को समाप्त करना- असमानता समाप्त करने लिए शिक्षा एक प्रभावशाली उपकरण के
रूप में कार्य करता है। यह देश के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के उपार्जन क्षमता को
बढ़ाता है जो आर्थिक असमानता को कम करता है।
• नव परिवर्तन :- एक शिक्षित व्यक्ति के पास आविष्कारों और नव परिवर्तनों
को समझ पाने की क्षमता होती है जिससे वे अधिक कुशल और उत्पादक हो सकते हैं तथा यह आर्थिक
विकास में सहायक होती है।
• उच्च भागीदारी- दर यदि अधिक लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से कार्य
करने में सक्षम हो गए, तो इससे लोगों की भागीदारी दर में वृद्धि होगी जो आर्थिक विकास
और संवृद्धि की प्रक्रिया की गति देगा।
प्र. 14. समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक
संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर : शिक्षा मानव पूँजी निर्माण का प्रमुख स्रोत है। शिक्षा
में निवेश से लोगों की गुणवत्ता कौशल तथा ज्ञान प्राप्त होता है जिससे उत्पादकता में
वृद्धि होती है। यह लोगों को नई आधुनिक तकनीकों को अपनाने में सक्षम बनाता है जो एक
राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करता है। यह लोगों की आय को बढ़ाता
है तथा उनके जीवन स्तर में सुधार लाता है। यह राष्ट्रीय विकास चेतना पैदा करता है।
शिक्षा सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है तथा व्यक्तित्व का विकास करती है।
प्र. 15. किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान
प्रशिक्षण क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर : एक प्रशिक्षु के लिए कार्य स्थल पर प्रशिक्षण सबसे
अधिक प्रभावी होता है, जो उसे तकनीकी कौशल प्रदान करता है कि वास्तविक कार्य स्थल पर
कैसे कार्य करना है। फर्म के अपने कार्य स्थान पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलतम
कर्मचारियों को काम सिखा सकते हैं या कर्मचारियों को किसी अन्य संसथान में प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जाता है।
यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि-
• इससे कर्मचारियों के दक्षता तथा मनोबल में सुधार होता है।
• यह व्यक्ति को संस्था के मूल्यों, मानदंडों तथा मानकों
को अवशोषित करने में सक्षम बनाता है।
• यह कच्चे माल के बेहतर उपयोग को सरल बनाता।
प्र. 16. मानव पूंजी तथा आर्थिक संवृद्धि के
बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर : मानव पूँजी तथा आर्थिक संवृद्धि के बीच सकारात्मक
संबंध है। मानव पूंजी का निर्माण आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया को गति प्रदान करता
है तथा आर्थिक संवृद्धि मानव पूँजी निर्माण की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है। यदि
हमें आर्थिक संवृद्धि में विकास करना चाहते हैं तो हमें अपनी मानवीय पूंजी में वृद्धि
करना होगा। एक अस्वस्थ या अशिक्षित श्रमिक आर्थिक संवृद्धि में अधिक योगदान नहीं दे
सकता है। आर्थिक संवृद्धि में तीव्रता लाने के लिए लोगों को शिक्षित, स्वस्थ और कुशल
बनाने की आवश्यकता है। इसका नव प्रवर्तन तथा लोगों की भागीदारी में भी योगदान है।
प्र. 17. भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन
की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर : शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को हमेशा उपेक्षित
किया गया है। यदि किसी राष्ट्र के आर्थिक संवृद्धि को गति प्रदान करना है तो महिलाओं
की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की
आवश्यकता है क्योंकि महिलाओं की सामाजिक और नैतिक स्थिति में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण
है।
• यह अनुकूल प्रजनन दर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है।
• महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल को स्त्री शिक्षा
के साथ बढ़ाया जा सकता है।
• एक शिक्षित महिला अच्छे नैतिक मूल्यों को लागू कर सकती
है और अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकती है।
प्र. 18. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में
सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर : शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध
प्रकार के हस्तक्षेपों की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है
• शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं
का अस्तित्व है। इसलिए, ऐसे कुछ प्राधिकरण होना चाहिए जिनसे उनकी कार्यप्रणाली पर नजर
रखी जा सके।
• कुछ परिस्थितियों में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध
करा रहीं संस्थाएँ एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती है यहाँ सरकार का
हस्तक्षेप का एक स्वरूप यह हो सकता कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार
सेवाएँ देने तथा उनकी उचित कीमत उगाहने को बाध्य करे।
• शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव
डालते है और उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता। इसलिए, सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य
है।
• सरकार को दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में अपने शैक्षिक
और स्वास्थ्य देखभाल केंद्र स्थापित करने के लिए निजी संस्थानों को स्थापित या प्रोत्साहित
करना चाहिए।
प्र. 19. भारत में मानव पूंजी निर्माण की मुख्य
समस्याएँ क्या है?
उत्तर : भारत में मानव पूंजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित
है
• जनसंख्या में वृद्धि : तीव्र गति से बढ़ती आबादी सीमित संसाधनों पर दबाव डालती
है जिससे प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधनों की कमी हो जाती है।
• निम्न गुणवत्ता : मानव पूंजी को गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। लेकिन शिक्षा प्रदान
करने के लिए, बहुत से शिक्षा संस्थान स्थापित किए गए हैं जो शिक्षा और कौशल की निम्न
गुणवत्ता प्रदान करते हैं। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में यही होता है।
• बुद्धिजीवियों का प्रवसन : व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की
तलाश में प्रवसन / पलायन करते हैं। अत्यधिक कुशल श्रम के प्रवसन के कारण आर्थिक विकास
पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
• अयोग्य श्रमशक्ति नियोजनः भारत में उचित श्रमशक्ति के नियोजन का अभाव है। बढ़ती श्रमशक्ति
के मांग-आपूर्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया गया है। इसलिए,
यह मानव कौशल का अपव्यय और त्रुटिपूर्ण आवंटन करता है।
प्र. 20. क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा
और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी
चाहिए। यदि हो, तो क्यों?
उत्तर : हाँ, सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रक गुणवत्ता पूँजी निर्माण के दो प्रमुख स्रोत है। किसी देश का आर्थिक विकास वहाँ के मानव पूँजी निर्माण पर निर्भर होता है। शैक्षिक और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में निजी संस्थानों का एक बड़ा योगदान है। साथ ही दोनों क्षेत्र में निजी संस्थानों के शुल्क बहुत अधिक हैं क्योंकि इन्हें लाभ के उद्देश्य से निर्देशित किया जाता है। इसलिए, मानव पूंजी की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में हस्तक्षेप शुल्क संरचना निर्धारित करना आवश्यक है।