प्रस्तावना
आजादी के सात दशक के बाद भी निर्धनता देश के लिए एक चुनौती
बनी हुई है। निर्धनता निवारण हमारी सभी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख लक्ष्य रहा है।
परंतु इन प्रयासों के बावजूद हम इस समस्या से उबर नहीं पाएं हैं। विश्व की कुल निर्धन
आबादी का पांचवा हिस्सा भारत में निवास करता है। देश में 30 करोड़ से अधिक लोग निर्धन
हैं।
निर्धनता क्या है?
यद्यपि निर्धनता को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है। इसके
अनेक आयाम हैं। अनेक सूचक है। लेकिन मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि निर्धनता का
तात्पर्य उस अवस्था से है।
1. जब समाज का एक वर्ग अपने जीवन स्वास्थ्य तथा न्यूनतम बुनियादी
आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है।
2. अर्थशास्त्री निर्धनों की पहचान उनके व्यवसाय तथा संपत्ति
के स्वामित्व के आधार पर करते हैं।
3. ग्रामीण निर्धन प्राय भूमिहीन कृषि श्रमिक होते हैं या
फिर बहुत ही छोटे किसान होते हैं।
4. निर्धन लोगों के पास परिसंपत्ति बहुत कम होती है।
5. कितने ही परिवारों को दो बार भोजन नहीं मिल पाता।
6. शहरी क्षेत्रों में अधिकांश निर्धन वही है जो गांव से
वैकल्पिक रोजगार की तलाश में शहर चले आये हैं।
7. रेहड़ी वाले, फेरीवाले, भिखारी, कई तरह के काम करने वाले
मजदूर शहरी क्षेत्र के गरीबों के उदाहरण है।
8. निर्धन वर्ग सामाजिक भेद-भाव का शिकार है।
निर्धनता के दो रूप
1. सापेक्ष निर्धनताः- सापेक्ष निर्धनता आय में पाएं जाने वाली असमानता को प्रकट
करती है। विभिन्न देशों विभिन्न प्रदेशों विभिन्न वर्गों के आय की तुलना कर क्या पता
लगाया जाता है कि किसकी आय कम है और कौन अपेक्षाकृत गरीब है।
2. निरपेक्ष निर्धनता- आधारभूत आवश्यकता जैसे रोटी कपड़ा मकान की बुनियादी सुविधा
जुटा पाने में भी जब मनुष्य असमर्थ होता है तो उसे निरपेक्ष निर्धन कहते हैं। इसका
मापन गरीबी रेखा से होता है।
1.3. निर्धनता मापने का मापदंड (गरीबी रेखा)
निर्धनता निवारण की नीतियां बनाने के लिए निर्धनों की पहचान जरूरी है। इसके लिए मापदंड बनाये गए।
भारत में निर्धनों की संख्या
जब निर्धनों की संख्या का अनुपात निर्धनता रेखा से नीचे के
जनानुपात द्वारा किया जाता है तो उसे व्यक्ति गणना अनुपात विधि कहते है।
वर्ष 2011 12 के गणना के अनुसार
क्रम संख्या |
राज्य |
गरीबी का प्रतिशत |
1 |
छत्तीसगढ |
39.9 |
2 |
झारखंड |
36.9 |
3 |
बिहार |
33.7 |
4 |
ओडिसा |
32.6 |
5 |
असम |
31.9 |
6 |
गोवा |
5.1 |
7 |
केरल |
7.5 |
निर्धनता का अनुपात
वर्ष |
2009-10 |
2011-12 |
ग्रामीण |
33.8 |
25.7 |
शहरी |
20.9 |
13.7 |
कुल |
29.8 |
21.9 |
निर्धनों की संख्या (मिलियन में) |
354.7 |
269.8 |
राज्य अनुसार गरीबी के आंकड़े
☞ 1973-2012 अवधि के दौरान
निर्धनों की संख्या तथा अनुपात दोनों कम हुए हैं परंतु परिणामों की गिरावट का अनुपात
उत्साहवर्धक नहीं रहा है।
☞ देश
में निर्धनों की संख्या में काफी धीमी गति से कमी आ रही है।
निर्धनता के कारण
भारत में निर्धनता के के कारणों को तीन वर्गों में बांट सकते
हैं-
1. ऐतिहासिक कारण-
☞ भारत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा उनकी नीतियों ने
करोड़ों भारतीयों को निर्धन बना दिया।
☞ भारत के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग यहां के विकास के लिए
न कर ब्रिटेन के विकास के लिए किया गया।
☞ अंग्रेजी राज में ग्रामीणों पर कर का भार बहुत अधिक बढ़ा
दिया गया।
☞ किसानों को अपने उत्पाद सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर किया
गया।
☞ अंग्रेजी राज में बड़े स्तर पर वि-औद्योगिकीकरण हुआ।
☞ इंग्लैंड में बने सूती कपड़ों का आयात कर भारतीय कपड़ा उद्योग
को बर्बाद कर दिया गया। भारत कपड़े के स्थान पर सूती धागों का निर्यातक होकर रह गया।
2. भारत में निर्धनता के राजनीतिक
कारण
स्वतन्त्रता के बाद देश के राजनेताओं ने भारत के सर्वांगीण
विकास के प्रयास सच्चे मन से नहीं किये। लोगों का वोटर के रूप में प्रयोग किया और सत्ता
में आने पर वास्तविक दायित्व भूल गये। राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव के कारण देश की
आर्थिक स्थिति कमजोर रह गयी।
3. भारत
में निर्धनता के सामाजिक कारण
परम्पराएँ, कुप्रथाएँ, आराम पसंदगी, सामाजिक विषमता, भेदभाव,
पूर्वाग्रह, जातिवाद सामाजिक कारक भी लोगों की गरीबी के कारण होते हैं जो न सिर्फ रोजगार
के अवसरों को वरन कुल आय को भी प्रभावित करते हैं। गरीबी का सबसे बड़ा कारण अति जनसंख्या
है। भारत की सामाजिक प्रथाएं दहेज प्रथा, धार्मिक उन्माद, अंधविश्वास तथा अशिक्षा आदि
भी महत्वपूर्ण कारण है।
4. भारत
में निर्धनता के आर्थिक कारण
1. जनसंख्या वृद्धि
2. आवश्यक वस्तुओं के मूल्य स्तर में वृद्धि
3. बेरोजगारी
4. तकनीक और कौशल कर अभाव
5. प्रशिक्षण संस्थानों की कमी
6. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों कर अभाव
7. उद्योगों का अभाव
निर्धनता का दुष्चक्र
प्रोफेसर रैगनार नर्कसे (Ragnar Nurkse) ने गरीब देशों में गरीबी का मुख्य कारण संरचनात्मक पिछड़ापन तथा निर्धनता के दुष्चक्र को बताया है। अल्प विकसित देशों में कम पूंजी के कारण कम उत्पादन होता है, जिससे आय में कमी आती है कम पैसे मांग कम होती है तथा कम बचत होता है, जिसके कारण पूंजी पूंजी निवेश में कमी आती है और अंततः कम पूंजी कम उत्पादकता और कमाई का कारण बनती है।
निर्धनता निवारण के लिए नीतियां तथा कार्यक्रम
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही निर्धनता निवारण सरकार
का प्रमुख लक्ष्य रहा। पहली पंचवर्षीय योजना (1951 1956) से अब तक जितनी भी योजनाएं
बनी उसमें निर्धनता कम करना प्राथमिकता में शामिल रहा। सरकार ने निर्धनता निवारण के
लिए त्रिआयामी नीति अपनाई
1. समृद्धि आधारित रणनीति
2. विशिष्ट निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
3. न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना
1. समृद्धि आधारित रणनीति
☞ आजादी के बाद सबसे पहले इसी रणनीति पर कार्य हुआ।
☞ नीति निर्धारकों का मानना था कि तीव्र आर्थिक समृद्धि से
सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी
☞ आय वृद्धि का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचेगा तथा निर्धनता
दूर होगी।
☞ हरित क्रांति तथा बड़े उद्योगों का विकास कर आर्थिक समृद्धि
का मॉडल अपनाने की कोशिश हुई।
☞ इसके परिणाम बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं रहे।
☞ तीव्र जनसंख्या वृद्धि ने बड़ी हुई प्रति व्यक्ति आय के प्रभाव
को समाप्त कर दिया।
2. विशिष्ट निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
• आर्थिक समृद्धि का लाभ निर्धनों तक नहीं पहुंच पाया। जिसके
बाद नीति निर्धारकों को लगा कि अतिरिक्त परिसंपत्ति और कार सृजन के साधनों द्वारा आय
और रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। इससे गरीबी कम हो सकती है।
• तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966) से इस दिशा में प्रयास
प्रारंभ हुए।
• 1970 के दशक में काम के बदले अनाज योजना एक महत्वपूर्ण
योजना थी।
• भारत में गरीबी उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई
कुछ अन्य योजनाओं में शामिल हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP), राष्ट्रीय
मातृत्व लाभ योजना (NMBS), ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP), राष्ट्रीय
पारिवारिक लाभ योजना (NFBS), शहरी गरीबों के लिये स्वरोजगार कार्यक्रम (SEPUP) आदि।
• 1990 के रोजगार नीति में बदलाव किया गया।
• शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने हेतु
पी.एम.आर.वाई. PMRY तथा एस जे एस आर वाई (SJSRY) जैसी योजना चली।
• रोजगार तथा जीविका के अधिक अवसरों के सृजन के लिए स्वयं
सहायता समूह के गठन पर बल दिया गया।
• स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार रोजगार योजना जैसे कार्यक्रमों
से स्वयं सहायता समूह को आंशिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई।
• वर्ष 2005 में मनरेगा योजना रोजगार की दृष्टि से एक बड़ी
उपलब्धि वाली योजना रही।
• वर्ष 2014 में प्रारंभ की गई प्रधानमंत्री जनधन योजना,
वर्ष 2016 मैं प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, वर्ष 2013 में प्रारंभ हुई राष्ट्रीय खा।
सुरक्षा योजना, वर्ष 2000 की अंत्योदय अन्न योजना गरीबी उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण
है।
3. न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना
• निर्धनता निवारण कार्यक्रमों के बावजूद जब तक निर्धन व्यक्ति
अपने लिए आवश्यक वस्तु और सेवा नहीं जुटा पाएंगे तब तक गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को
प्राप्त करना कठिन है।
• सरकार ने निर्धनों के लिए न्यूनतम आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध
कराने हेतु कई कार्यक्रमों पर बल दिया।
• सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास योजनाएं मध्यान्ह
भोजन योजना, खा। उपभोग और पोषण स्तर को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख कार्यक्रम है।
• प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय
योजना, अंबेडकर आवास योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना से जरूरतमंदों को लाभान्वित करने
का प्रयास हुआ।
• सामाजिक सहायता कार्यक्रमों में निराश्रित एवं वृद्ध जनों
को पेंशन गरीबों का स्वास्थ्य बीमा, प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री जनधन योजना,
उज्जवला योजना, अटल पेंशन योजना आदि प्रमुख हैं।
• स्वयं सहायता समूह को आर्थिक सहायता उपलब्ध कर उन्हें स्वरोजगार
के लिए प्रेरित किया गया।
निर्धनता निवारण कार्यक्रमों की समीक्षा -
• 2017 में नीति आयोग ने गरीबी दूर करने हेतु एक विजन डॉक्यूमेंट
प्रस्तावित किया था। इसमें 2032 तक गरीबी दूर करने की योजना तय की गई थी।
• संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी वैश्विक
बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 (Multidimentional Poverty Index-MPI) के मुताबिक,
2005-06 तथा 2015-16 के बीच भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले और
देश में गरीबी की दर लगभग 10 वर्ष की अवधि में आधी हो गई है।
• भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति
की है।
• इस प्रकार दस वर्षों के भीतर, भारत में गरीब लोगों की संख्या
271 मिलियन से कम हो गई जो कि वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है।
• पिछले कुछ सालों में भारत में गरीबी दूर करने की दिशा में
अच्छा प्रयास किया गया है। पिछले आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 22 प्रतिशत भारतीय गरीबी
रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
• भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गाँवों में रहती है। हालाँकि
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त प्रवासन हुआ है लेकिन भारत
की लगभग 68% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
• हालाँकि गरीबी समय के साथ कम होती रही है, शहरी क्षेत्रों
में गरीबी में कमी की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है। शहरी क्षेत्रों
की 13.7% की तुलना में आज भी ग्रामीण भारत की लगभग 26% आबादी गरीब है।
• रंगराजन समिति के अनुमान भी इस बात के संकेत देते हैं कि
2011-12 में ग्रामीण गरीबी का प्रतिशत शहरी गरीबी से अधिक था और यह लगभग 31% थी।
• आजादी के 70 साल बाद भी गाँव सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के
लगभग हर पहलू पर पीछे दिखाई दे रहे हैं।
• आजादी के 70 साल बाद भी गरीबों की वास्तविक संख्या का पता
नहीं चल पाया है।
निर्धनता उन्मूलन हेतु सुझाव
• किसी भी गरीबी उन्मूलन रणनीति का एक आवश्यक तत्त्व घरेलू
आय में बड़ी गिरावट को रोकना है।
• गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का सही ढंग से
क्रियान्वयन की जरूर।
• कई देशों में गरीबी को कम करने के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण
(CCT) को एक प्रभावी साधन के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
• गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण प्रदान करने में
सक्षम सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
• विद्युतीकरण, आवास, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाओं के विकास पर
ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
• कृषि उत्पादन पर्याप्त नहीं है। गाँवों में आर्थिक गतिविधियों
का अभाव है। इन क्षेत्रों की ओर ध्यान देने की जरूरत है।
• कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत है ताकि मानसून पर निर्भरता
कम हो।
• बैंकिंगए क्रेडिट क्षेत्र, सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क, उत्पादन
और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सुधार की जरूरत।
• सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा पर अधिक निवेश किये जाने की
जरूरत है ताकि मानव उत्पादकता में वृद्धि हो सके।
• गुणात्मक शिक्षा, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने के
साथ ही रोजगार के अवसर, महिलाओं की भागीदारी, बुनियादी ढाँचा तथा सार्वजनिक निवेश पर
ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
• हमें आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने की आवश्यकता है। आर्थिक
वृद्धि दर जितनी अधिक होगी गरीबी का स्तर उतना ही नीचे चला जाएगा।
निष्कर्ष
निर्धनता देश के लिये बहुत बड़ी चुनौती है। हमारी सरकार देश
से निर्धनता उन्मुलन के लिये कदम उठा रही है।
इसमें काफी सफलता भी मिली है। फिर भी एक बहुत बड़ी आबादी
निर्धनता के दुष्चक्र से मुक्त नहीं हुई है। गरीबी उन्मूलन अर्थव्यवस्था और समाज की
एक सतत् और समावेशी वृद्धि सुनिश्चित करेगा।
पुनरावृति
• भारत के विकास की रणनीति में निर्धनता उन्मूलन एक प्रमुख
लक्ष्य है।
• प्रति व्यक्ति उपभोग अस्तर ग्रामीण क्षेत्रों में 2400
कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी ही निर्धनता रेखा है इसे निरपेक्ष निर्धनता
कहते हैं।
• 1990 के दशक में निर्धनों की निरपेक्ष संख्या में कमी आई
है।
• अधिकतर निर्धन ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं
• सरकार निर्धनता कम करने के लिए तीन विधियों का प्रयोग कर
रही है। आर्थिक समृद्धि, विशेष निर्धनता निवारण कार्यक्रम तथा न्यूनतम आवश्यकता की
पूर्ति।
• आधारभूत संरचना, परिसंपत्तियों का पुनर्वितरण जैसे कार्यों
पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की
पहचान के लिए क्यों उपयुक्त नहीं है?
उत्तर : कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की पहचान के लिए उपयुक्त
नहीं है क्योंकि 2100/2400 कैलोरी एक मनुष्य जैसा जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है।
यह एक संतुलन आहार की आवश्यकता को महत्त्व नहीं देता। एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के
लिए एक व्यक्ति को वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, उचित स्वच्छ स्थितियाँ, ईंधन,
बिजली आदि की भी आवश्यकता होती है। जब एक व्यक्ति की इन चीजों तक पहुँच होती है तब
वह एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकता है।
प्रश्न 2. 'काम के बदले अनाज' कार्यक्रम का
क्या अर्थ है?
उत्तर : राष्ट्रीय कार्य के बदले अनाज कार्यक्रम को प्रचलित
रूप से काम के बदले अनाज' कहा जाता है जिसे 2004 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य
देश के आठ राज्यों नामित गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,
ओडिशा, राजस्थान और उत्तराखंड के सूखा प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार
द्वारा खा। सुरक्षा प्रदान करना है। खाद अनाज केंद्रीय सरकार द्वारा इन आठ राज्यों
को उपलब्ध कराये जाते हैं। मजदूरी राज्य सरकार द्वारा आंशिक रूप से नकद और खाद अनाजों
के रूप में दी जा सकती है।
प्रश्न 3. भारत में निर्धनता से मुक्ति पाने
के लिए रोजगार सृजन करने वाले कार्यक्रम क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर : निर्धनता और बेरोजगारी में एक कारण प्रभाव संबंध
है। यदि हम बेरोजगारी उन्मूलन कर दे गरीबी स्वतः दूर हो जायेगी। इसीलिए भारत सरकार
ने गरीबी कम करने के लिए रोजगार सृजन कार्यक्रम शुरू किए हैं। अवश्य ही एक व्यक्ति
आय के साधन या रोजगार के साधन की अनुपस्थिति में ही निर्धन होता है। यदि सरकार उसके
लिए रोजगार का प्रबंध कर दे चाहे मजदूरी रोजगार चाहे स्वरोजगार के रूप में, तो वह निर्धनता
के दुष्चक्र से बाहर आ सकता है।
प्रश्न 4. आय अर्जित करने वाली परिसंपत्तियों
के सृजन से निर्धनता की समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर : आय अर्जित करने वाली परिसंपत्तियाँ व्यक्ति को स्वरोजगार
प्रदान करता है। जैसे ही एक व्यक्ति को स्वरोजगार उपलब्ध हो जाता है उसके पास अपने
निर्वाह के लिए आधारभूत आय आ जाती है। अतः व्यक्ति निर्धनता से बाहर आ जायेगा। इसे
एक उदाहरण की सहायता से ज्यादा अच्छी तरह समझा जा सकता है। मान लो एक व्यक्ति निर्धनता
रेखा से नीचे जी रहा है। सरकार उसे एक गाड़ी खरीदने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण दे देती
है। वह उससे बच्चों को स्कूल से घर और घर से स्कूल तक ले जा सकता है। अतः उसे स्वरोजगार
मिल जायेगा और निर्धनता से बाहर आ जायेगा।
प्रश्न 5. भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार निर्धनता दूर करने में
सफल नहीं रहा है। चर्चा करें।
उत्तर : यह कहना बिल्कुल सही है कि भारत सरकार द्वारा निर्धनता
पर त्रि-आयामी प्रहार निर्धनता दूर करने में सफल नहीं रहा है। त्रि-आयामी प्रहार में
निम्नलिखित शामिल हैं
(क) संवृद्धि आधारित रणनीति
(ख) विशिष्ट निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
(ग) न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना
परंतु इतने सारे कार्यक्रमों के बावजूद निर्धनों की संख्या
जो 1973-74 में 321 मिलियन थी। वह 1999-00 में घटकर केवल 260 मिलियन रह गयी। 1990 के
दशक में निर्धनता ग्रामीण क्षेत्रों में कम हुई तथा शहरी क्षेत्रों में बढ़ी जिसका
सीधा अर्थ है कि निर्धनता उन्मूलन नहीं हुआ बल्कि निर्धनता ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी
क्षेत्रों में स्थानांतरित हुई है। ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआ है।
(क) देश की राजनैतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार
(ख) कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में पर्यवेक्षण का
अभाव
(ग) लाभार्थी समूह में उनके लाभ के लिए कार्य कर लाभ कार्यक्रमों
के प्रति जागरूकता का अभाव।
(घ) शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए
कोई कार्यक्रम न शुरू किया जाना।
प्रश्न 6. सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और
असहाय महिलाओं की सहायतार्थ कौन-से कार्यक्रम अपनाए हैं?
उत्तर : सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं की
सहायतार्थ निम्नलिखित कार्यक्रम अपना, हैं राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एन.एस.ए.पी.)
इस कार्य के अंतर्गत गरीब घरों में बुजुर्ग, रोटी कमाने वाले की मृत्यु तथा प्रसूती
देखभाल से प्रभावित लोगों को सामाजिक सहायता प्रदान की जाती है। यह कार्यक्रम 15 अगस्त
1995 को लागू किया गया। इस कार्यक्रम के तीन घटक हैं
a. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (एन.ए.ओ.एस.)
b. राष्ट्रीय परिवार हितकारी योजना (एन.ए.बी.एस.)
c. राष्ट्रीय मातृत्व हितकारी योजना (एन.एम.बी.एस.)
अन्नपूर्णा- यह योजना अप्रैल, 2000 को शुरू की गई थी। यह
100% केंद्रीय प्रयोजित योजना है। यह उन वरिष्ठ नागरिकों को कैलोरी आवश्यकता को खा।
सुरक्षा प्रदान करके पूरा करती है जो राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत
पेंशन पाने के योग्य हैं परंतु उन्हें पेंशन मिल नहीं रही है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत
खाद अनाज 2 रुपये प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलो चावल की रियायती दर पर उपलब्ध
कराई जाती है। वर्तमान में यह योजना पूरे भारत में कार्य कर रही है और 6.08 लाख परिवार
इससे लाभ उठा रहे हैं।
प्रश्न 7. क्या निर्धनता और बेरोजगारी के बीच कोई संबंध
है? समझाइए।
उत्तर : निर्धनता और बेरोजगारी के बीच वृत्तीय संबंध है। यदि एक व्यक्ति बेरोजगार है तो उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होगा। वह अपने जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ खरीदने में भी सक्षम नहीं होगा। अतः वह निर्धन ही बना रहेगा।
प्रश्न 8. मान लीजिए कि आप एक निर्धन परिवार
से हैं और छोटी-सी दुकान खोलने के लिए सरकारी सहायता पाना चाहते हैं। आप किस योजना
के अंतर्गत आवेदन देंगे और क्यों?
उत्तर : हम किस योजना के अंतर्गत आवेदन देंगे वह इस पर निर्भर करता
है कि हम ग्रामीण क्षेत्र के निवासी हैं या शहरी क्षेत्र के। यदि हम शहरी क्षेत्र के निवासी
हैं तो हमें।
• स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अंतर्गत मदद मिल सकती
है। यदि हम ग्रामीण क्षेत्र के निवासी हैं तो हमें
• स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना
• ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम।
• प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत सहायता मिल सकती
है।
प्रश्न 9. ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी में अंतर
स्पष्ट करें। क्या यह करना सही होगा कि निर्धनता गाँवों से शहरों में आ गई है? अपने
उत्तर के पक्ष में निर्धनता अनुपात प्रवृत्ति का प्रयोग करें।
उत्तर : स्वतंत्रता के समय से ग्रामीण बेरोजगारी शहरी बेरोजगारी
से अधिक रही है। यह कहना सही होगा कि निर्धनता गाँवों से शहरों में आ गई है। ग्रामीण
क्षेत्र में छोटे तथा सीमांत किसान और कृषि श्रमिकों में मौसमी तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी
है। वे कर्ज के जंजाल में भी फँस जाते हैं। ऐसे हालात में वे एक बेहतर आय की आशा में
शहरों की ओर भागते हैं। इन क्षेत्रों में वे रेडी विक्रेता, रिक्शा चालकों तथा अनियत
दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करते हैं और शहरी बेरोजगारी को बढ़ाते हैं। समय के
साथ जनसंख्या में वृद्धि से, निर्धनता रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या उतनी कम नहीं
हुई जितना उनका प्रतिशत कम हुआ है।
प्रश्न 10. मान लीजिए कि आप किसी गाँव के निवासी
हैं। अपने गाँव से निर्धनता निवारण के कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर : मैं गाँवों से निर्धनता निवारण के लिए निम्नलिखित
सुझाव दे सकता / सकती हूँ -
(क) मानव पूँजी निर्माण, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य
पर सही रीति व्यय करना।
(ख) विभिन्न सरकारी योजनाओं के विषय में जागरूकता उत्पन्न
करना।
(ग) स्वरोजगार शुरू करने के लिए आसान ऋण उपलब्ध कराना।
(घ) जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना।