11th 7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

11th 7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

11th 6. ग्रामीण विकास Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

1. रोजगार का अर्थ -

यह एक ऐसी स्थिति को बताता है जिसमें लोग आय सृजन के लिए आर्थिक क्रिया में लगे होते हैं।

आर्थिक क्रिया

वैसे सभी कार्य जो सकल राष्ट्रीय उत्पादन में अपना योगदान देते हैं अर्थात् आय सृजन करते हैं आर्थिक क्रिया कहलाते हैं।

श्रमिक -

वैसे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रिया से जुड़े होते हैं स्वरोजगार में लगे या नियोक्ता सभी श्रमिक कहलाते हैं।

2. श्रम संख्या -

2.1 श्रम शक्ति या श्रमबल -

सभी व्यक्ति जो रोजगार में लगे हैं या कार्य करने के इच्छुक है श्रम बल या श्रम शक्ति कहलाते हैं। अर्थात रोजगार में लगे श्रम एवं बेरोजगार श्रम मिलाकर श्रम शक्ति कहलाते हैं।

2.2 कार्यबल -

वास्तव में रोजगार में लगे श्रम बल को व्यक्त करता है।

कार्यबल = श्रम शक्ति बेरोजगार लोगों की संख्या

भारत में कार्यबल जनसंख्या अनुपात

भारत में कार्यबल जनसंख्या अनुपात 2017-2018

लिंग

कार्यबल जनसंख्या अनुपात

संपूर्ण

ग्रामीण

शहरी

पुरुष

52.1

51.7

53.0

स्त्री

16.5

17.5

14.2

संपूर्ण

34.7

35,0

33.9

स्रोत: भारत सरकार (2019)

सारणी 7.1 की व्याख्या

शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में स्त्री श्रम का अनुपात पुरुष श्रम से कम है।

लेकिन शहरी क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में स्त्री श्रम का अनुपात काफी कम है। इसका कारण यह है कि जिन परिवारों में पुरुष की आय अच्छी है वहां महिलाओं को घर से बाहर जाकर रोजगार प्राप्त करने की छूट नहीं है।

कुल कार्यशील श्रम में महिलाओं के योगदान को कम आंकने का मुख्य कारण है रोजगार की संकीर्ण परिभाषा जिससे महिलाओं द्वारा घरेलू एवं कृषि कार्य में दिये गए योगदान की गणना नहीं होती।

सहभागिता दर - कुल जनसंख्या में कार्यबल के प्रतिशत को सहभागिता दर कहते हैं।

सहभागिता दर = कार्यबल / कुल जनसंख्या × 100

3. श्रमिक के प्रकार -

स्वनियोजित श्रमिक 52.2%

भाड़े के श्रमिक 52.2%

नियमित श्रमिक 52.2%

अनियमित श्रमिक 52.2%

3.1 स्वनियोजित श्रमिक :

वैसे व्यक्ति जो अपने स्वयं के उद्यम के स्वामी या संचालक होते हैं और आर्थिक क्रिया को संपन्न करते हैं स्वनियोजित श्रमिक कहलाते हैं।

इन्हें लाभ के रूप में आय प्राप्त होता है।

जैसे दवा दुकान का मालिक।

3.2 भाड़े के श्रमिक :

अपने श्रम की सेवाएं देकर मजदूरी या वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिक को भाड़े के श्रमिक कहते हैं।

3.2.1 नियमित श्रमिक :

वैसे भाड़े के श्रमिक जिन्हें नियमित रूप से मजदूरी या वेतन मिलता है तथा सामाजिक सुरक्षा के लाभ मिलते हैं नियमित श्रमिक कहलाते है। जैसे फैक्ट्री में काम करने वाले स्थाई कर्मचारी।

3.2.2 अनियमित श्रमिक

वैसे भाड़े के श्रमिक जिन्हें नियमित वेतन या मजदूरी नहीं मिलता तथा सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते अनियमित श्रमिक कहलाते हैं। जैसे खेतों में काम करने वाले मजदूर, निर्माण कार्य में लगे मजदूर इत्यादि ।

रोजगार में इन श्रमिकों की हिस्सेदारी को हम निम्न रेखाचित्र से व्यक्त कर सकते हैं:

11th 7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

रेखा चित्र 7.3 की व्याख्या

ग्रामीण क्षेत्र में स्वनियोजित श्रम का प्रतिशत अधिक होने का कारण यह है कि अधिकांश ग्रामीण अपने खेतों में स्वतंत्र रूप से काम करते हैं।

वहीं शहरी क्षेत्र में नियमित श्रम का प्रतिशत अधिक है क्योंकि शहरों में उद्यमों को नियमित श्रम की आवश्यकता होती है।

4. विभिन्न क्षेत्र में रोजगार वितरण

विकास के साथ रोजगार के क्षेत्र में परिवर्तन होता है।

श्रम शक्ति ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करती है।

विकास में कृषि और उद्योग का अंश कम एवं सेवा का तीव्र विस्तार होता है।

आर्थिक क्रिया को आठ भागों में बांटा गया है जिन्हें प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में रखा गया है।

विभिन्न क्षेत्र में रोजगार वितरण

1. प्राथमिक क्षेत्र - कृषि, खनन एवं उत्खनन

2. द्वितीयक क्षेत्र - विनिर्माण, विद्युत गैस एवं जलापूर्ति, निर्माण कार्य

3. सेवा क्षेत्र - वाणिज्य, परिवहन और भंडारण, सेवाएं

तीनों क्षेत्रों में कार्यबल का वितरण प्रतिशत निम्न है:

औद्योगिक वर्ग

निवास स्थान

लिंग

कुल

ग्रामीण

शहरी

पुरुष

महिला

प्राथमिक क्षेत्रक

59.8

6.6

40.7

57.1

44.6

द्वितीयक क्षेत्रक

20.4

34.3

26.5

17.7

24.4

तृतीयक / सेवा क्षेत्रक

19.8

59.1

32.8

25.2

31.0

कुल

100

100

100

100

100

 

सारणी की मुख्य बातें

ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान सबसे ज्यादा है। इस क्षेत्र में स्त्री एवं पुरुष दोनों को ही रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त हैं, किंतु फिर भी महिलाओं का इस क्षेत्र में कार्य बल में हिस्सेदारी पुरुषों से काफी अधिक है।

शहरी क्षेत्र में सेवा क्षेत्र का विकास तेजी से हुआ है, यह 60% शहरी कार्य बल को नियोजित कर रहा है जिसमें पुरुषों की हिस्सेदारी अधिक है।

सेवा क्षेत्र ग्रामीण स्थान में कम किंतु शहरों में ज्यादा नियोजन के अवसर दे रहा है। जिसमें महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक रोजगार प्राप्त है।

कुल रोजगार में प्राथमिक क्षेत्र, सेवा क्षेत्र तथा द्वितीयक क्षेत्र क्रमशः कार्य बल को नियोजित कर रहे हैं।

5. समृद्धि के साथ रोजगार संरचना में परिवर्तन -

समृद्धि को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि तथा रोजगार संरचना को क्षेत्रवार रोजगार अवसर में परिवर्तन से जानने का प्रयास करेंगे। किस तरह सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि और रोजगार में वृद्धि हो रहे हैं। सामान्यतः रोजगार में वृद्धि के साथ सकल घरेलू उत्त्पाद भी बढ़ता है। तो क्या सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि से रोजगार बढ़ता है?

इसे हम नीचे की रेखाचित्र और तालिका से समझने का प्रयास करेंगे

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रोजगार पद्धति की प्रवृत्तियाँ (क्षेत्रक और स्थिति), 1972-2018 (प्रतिशत में)

मद

1972-73

1983

1993-94

2011-12

2017-18

क्षेत्रक

प्राथमिक

74.3

68.6

64

78.9

44.6

द्वितीयक

10.9

11.5

16

24.3

24.4

सेवा

14.8

16.9

20

26.8

31.0

योग

100

100

100

100

100

स्थिति

स्वनियोजित

61.4

57.3

54.6

52.0

51.2

नियमित वेतनभोगी कर्मचारी

15.4

13.8

13.6

18.0

22.8

अनियमित दिहाड़ी मजदूर

23.2

28.9

31.8

30.0

25.0

योग

100

100

100

100

100

रेखाचित्र और तालिका से स्पष्ट है कि -

1951 से 2010 के बीच जीडीपी में वृद्धि हुई है यह वृद्धि रोजगार में वृद्धि से अधिक रही है।

रोजगार में वृद्धि धीमी गति से हुई और यह 2% के आसपास बनी रही।

रोजगार के संदर्भ में एक मुख्य घटनाक्रम देखने को मिलता है कि 1990 के दशक के अंत में रोजगार वृद्धि दर घटकर योजना काल के प्रारंभिक समय से भी नीचे चली गई जबकि इसी समय जीडीपी पहले से अधिक बढ़ी है।

इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय रोजगार में कमी होने पर भी वस्तुओं और सेवाओं का अधिक उत्पादन करने में सक्षम रहे हैं।

अर्थशास्त्रियों ने इस विशेष स्थिति को "रोजगारहीन समृद्धि" कहा है।

रोजगार के वृद्धि का विभिन्न वर्गों के श्रम बल पर प्रभाव अलग-अलग रहे हैं।

सामान्यता माना गया है कि जैसे जैसे हम विकसित होते हैं कृषि पर जनसंख्या का भार कम होता है।

जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ता जाता है।

भारत में 1972-73 में प्राथमिक क्षेत्र का रोजगार में योगदान 74.3% था जो 2011-12 में घटकर 48.9% रह गया।

द्वित्तीय तथा सेवा क्षेत्र का योगदान लगातार बढ़ा है। यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं।

स्थितियों में रोजगार का वितरण नियमित से अनियमित की ओर बढ़ रहा है।

स्वरोजगार में लगे लोगों की प्रतिशत अभी भी ज्यादा बनी हुई है।

अर्थशास्त्रियों ने स्वरोजगार एवं नियमित रोजगार अवसरों से अनियमित रोजगार अवसरों की ओर लोगों के जाने की प्रक्रिया को "श्रमबल का अनियतीकरण" कहा है।

6. श्रमिक का अनौपचारिकरण -

6.1 औपचारिक क्षेत्र -

इसे संगठित क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

इस क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त होते हैं।

सरकारी नियमों के द्वारा इस क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा होती है।

श्रम संगठन भी सक्रिय होते हैं और नियोक्ता से मजदूरी एवं अन्य सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

इस क्षेत्र में सभी सार्वजनिक उपक्रम एवं निजी उपक्रम जिनमें 10 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं शामिल होते हैं।

6.2 अनौपचारिक क्षेत्र -

इसे असंगठित क्षेत्र भी कहते हैं।

इस क्षेत्र के श्रमिक सामाजिक सुरक्षा के लाभ से वंचित होते हैं।

श्रमिक असंगठित होते हैं नियोक्ता द्वारा इनका शोषण भी होता है।

इस क्षेत्र के कर्मचारियों की कमाई भी कम होती है स्वनियोजित, कृषि मजदूर, गैर कृषि मजदूर, निर्माण क्षेत्र के मजदूर, बोझा उठाने वाले, सेवा क्षेत्र के अनियंत्रित मजदूर, अदि इसी वर्ग में आते हैं।

ये श्रमिक गंदी बस्तियों में निवास करते हैं

औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में श्रमिकों (2009-2012) का वितरण

11th 7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

रेखा चित्र की मुख्य बातें :

इस अवधि में भारत में 473 मिलियन श्रमिक थे। केवल 30 मिलियन औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत थे। ये कुल श्रम का केवल 6% है। 94% श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है।

औपचारिक क्षेत्र में 20% महिला तथा अनौपचारिक क्षेत्र में 30% महिलाएं कार्यरत है।

विकास योजनाओं के निर्माताओं ने सैद्धांतिक रूप से यह माना था कि आर्थिक विकास के साथ श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक क्षेत्र में शामिल होंगे, किंतु भारत में वास्तविकता इसके विपरीत है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठनों के प्रयास के फलस्वरूप भारत सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र के लिए कुछ सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था प्रारंभ की है। वर्तमान में एक और समस्या देखने को मिल रही है, वह है संगठित क्षेत्रों में श्रमिकों का अनौपचारिकरण। सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा बहुत से काम ठेका में करवाया जाना। जैसे बहुत से सरकारी विभाग में कंप्यूटर ओपेरटर को कॉन्ट्रैक्ट पर काम दिया जाना।

7. बेरोजगारी -

बेरोजगारी एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति काम करने के योग्य है, काम करने की इच्छा रखता है, और वर्तमान मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है पर उसे काम नहीं मिलता।

बेरोजगारी संबंधी आंकड़ों के स्रोत

भारत की जनगणना रिपोर्ट

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की रोजगार और बेरोजगारी की अवस्था संबंधी रिपोर्ट

रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय के रोजगार कार्यालय में पंजीकृत आंकड़े

7.1 बेरोजगारी की प्रकृति

मौसमी बेरोजगारी

शिक्षित बेरोजगारी

खुली बेरोजगारी

प्रच्छन्न बेरोजगारी

• अर्द्धबेरोजगारी

7.1.1 खुली बेरोजगारी

सामान्यतः बेरोजगारी का अर्थ खुली बेरोजगारी से है, जिसमें व्यक्ति में काम करने की योग्यता और आवश्यकता होती है तथा वह वर्तमान मजदूरी दर पर काम करना चाहता है पर काम नहीं मिलता।

7.1.2 प्रच्छन्न बेरोजगारी या छुपी हुई बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी

यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोग काम करते हुए दिखाई देते हैं पर वास्तव में काम में उनका अंशदान लगभग 0 होता है। इस प्रकार की बेरोजगारी मुख्य रूप से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है। 7.1.3 मौसमी बेरोजगारी- इसके अंतर्गत उन बेरोजगारों को रखा जाता है जिन्हें वर्ष भर काम नहीं मिलता। ऐसा कृषि क्षेत्र में होता है। जहां एक फसल कट जाने के बाद अगली फसल बोने तक के बीच लोगों के पास काम नहीं होता है।

7.1.4 शिक्षित बेरोजगारी

इस प्रकार की बेरोजगारी उस स्थिति को बताती है जिसमें लोग शिक्षा प्राप्त कर भी बेरोजगार रहते हैं। यह मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है।

7.1.5 अर्द्ध बेरोजगारी या अर्द्ध रोजगार-

जब व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता तो उन्हें अर्द्ध रोजगार की श्रेणी में रखा जाता है। इससे लोगों के कार्य क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। जैसे एक व्यक्ति प्रबंधन के कार्य करने की योग्यता और क्षमता रखता है और वह क्लर्क का काम करता है।

7.2 बेरोजगारी के दुष्परिणाम

• श्रम शक्ति का बेकार हो जाती है।

बेरोजगारी से लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आती है।

• उच्च आय और निम्न आय वर्ग के बीच बढ़ते अंतर अर्थात गरीबी में वृद्धि होती।

• सामाजिक समस्या जैसे चोरी बेईमानी अनैतिकता शराब खोरी में वृद्धि।

• श्रमिकों का शोषण होता है।

7.3 बेरोजगारी का कारण

1. सामान्य कारण -

जनसंख्या में तेजी से वृद्धि

• आर्थिक विकाश की धीमी गति

• उद्योगों का यंत्रीकरण

• पंचवर्षीय योजनाओं का रोजगार उन्मुख ना होना

2. विशिष्ट कारण-

A. ग्रामीण क्षेत्र

• कृषि का मौसम पर आधारित होना

• कृषि पर जनसंख्या का बढता भार

• पूंजी की कमी

• सामाजिक एवं धार्मिक अंधविश्वास

B. शहरी क्षेत्र

• शिक्षा का सैद्धांतिक स्वरूप

• उत्पादन प्रणाली का पूंजी प्रधान होना

• विनियोग के स्तर का कम होना

• शिक्षित व्यक्ति का दृष्टिकोण

रोजगार सृजन के सरकारी प्रयास

प्रत्यक्ष - सरकारी विभागों द्वारा रोजगार सृजन जैसे सार्वजनिक उद्योग, परिवहन, विभिन्न सेवा कंपनियां इत्यादि।

अप्रत्यक्ष - सरकारी उद्योगों को माल पूर्ति करने वाले सहायक उद्योग द्वारा रोजगार प्रदान करना।

रोजगार सृजन कार्यक्रम-

1. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

जून 2011 में प्रारंभ

ग्रामीण गरीब परिवारों को स्वयं सहायता समूह और संघों के रूप में संगठित करना

स्वरोजगार के लिए लोगों को कौशल प्रशिक्षण देना

स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना

2. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन

मार्च 2012 में प्रारंभ

शहरी निर्धन लोगों को स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित करना

शहरी गरीबों को रोजगार के लिए कौशल प्रशिक्षण देना और सब्सिडी ब्याज दरों पर ऋण देकर स्वरोजगार करने में सहायता करना

3. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना

25 दिसंबर 2000 को प्रारंभ

2007 तक 500 की जनसंख्या वाले सभी गांव को मुख्य सड़क से जोड़ना

गांव में रोजगार उपलब्ध कराना

4. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मनरेगा

• 2 फरवरी 2006 को प्रारंभ

• सबसे पहले आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में शुरू, देश के 200 जिलों में लागू

• 1 अप्रैल 2008 से संपूर्ण देश में लागू

• प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 1 वर्ष में न्यूनतम 100 दिन अकुशल रोजगार प्रदान करने की गारंटी

• गैर कृषि मौसम में रोजगार की व्यवस्था

• इच्छुक व्यक्ति के पंजीकरण कराने के 15 दिन के अंदर रोजगार प्रदान करना

• रोजगार ना प्रदान कर पाने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने की व्यवस्था

• प्रारंभ में योजना का नाम नरेगा था। 2 अक्टूबर 2009 को इसका नाम बदलकर मनरेगा किया गया

प्रश्नोत्तर

1. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है

(क) शिक्षित बेरोजगारी

(ख) अदृश्य बेरोजगारी

(ग) चक्रीय बेरोजगारी

(घ) प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी

2. पूर्ण रोजगार से बढ़ती है

(क) राष्ट्रीय आय

(ख) रोजगार

(ग) निर्धनता

(घ) बेरोजगारी

3. जब इंजीनियरिंग डिग्री प्राप्त व्यक्ति लिपिक का कार्य करता हैं, तो इसे कहते हैं

(क) मौसमी बेरोजगारी

(ख) खुला रोजगार

(ग) अल्प रोजगार

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

4. श्रम बल एवं कार्य बल का अन्तर होता है

(क) कुल रोजगार श्रम

(ख) अदृश्य बेरोजगार श्रम

(ग) बेरोजगार श्रम

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

5. वास्तविक श्रमशक्ति की माप है

(क) कार्य बल

(ख) श्रम बल

(ग) उक्त दोनों

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

6. 2001 की जनगणना में महिला श्रमिकों की प्रतिशत दर थी लगभग

(क) 15

(ख) 25

(ग) 35

(घ) 40

7. भारत में संगठित क्षेत्र के रोजगार में सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान है

(क) 40 प्रतिशत

(ख) 60 प्रतिशत

(ग) 70 प्रतिशत

(घ) 80 प्रतिशत

8. रोजगार की प्रकृति के अनुसार श्रमिकों का अधिक भाग निम्न रूप का है

(क) अनियमित श्रम

(ख) स्व-रोजगार युक्त

(ग) नियमित वेतनभोगी

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

9. SHG है एक

(क) स्वयं सहायता समूह

(ख) सामाजिक सहायता समूह

(ग) स्वयं उच्चतर समूह

(घ) सामाजिक स्वास्थ्य समूह

10. नरेगा में कितने दिनों का रोजगार प्रावधान है ?

(क) 100

(ख) 70

(ग) 90

(घ) 80

11. एक ऐसी स्थिति जिसमें श्रमिक वर्तमान मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है परन्तु उसे काम नहीं मिलता

(क) बेरोजगारी

(ख) ऐच्छिक बेरोजगारी

(ग) अर्ध बेरोजगारी

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

12. मनरेगा का संबंध है

(क) रोजगार

(ख) शिक्षा

(ग) स्वास्थ्य सेवाएँ

(घ) उद्योग स्थापना

13. पूँजी की कमी, तकनीकी पिछड़ापन एवं बेरोजगारी सामान्यतः पा, जाते हैं

(क) विकसित देश

(ख) अल्पविकसित देश

(ग) (क) और (ख) दोनों

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

14. बल सम्भावित श्रम शक्ति की माप है।

(क) कार्य

(ख) श्रम

(ग) दोनों

(घ) माँग

15. बेरोजगारी के प्रकार हैं

(क) मौसमी बेरोजगारी

(ख) औद्योगिक बेरोजगारी

(ग) शिक्षित बेरोजगारी

(घ) उपर्युक्त सभी

16. शहरी क्षेत्रों में मुख्यतः पायी जाती है

(क) छुपी हुई बेरोजगारी

(ख) खुली बेरोजगारी

(ग) मौसमी बेरोजगारी

(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

17. कृषि क्षेत्र में किस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है ?

(क) छुपी हुई बेरोजगारी

(ख) संरचनात्मक बेरोजगारी

(ग) औद्योगिक बेरोजगारी

(घ) शिक्षित बेरोजगारी

18. भारतीय संसद द्वारा राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी अधिनियम कब पारित किया गया था ?

(क) 1980

(ख) 2012

(ग) 2005

(घ) 2018

प्र. 1. श्रमिक किसे कहते हैं?

उत्तर : सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले क्रियाकलापों को आर्थिक क्रियाकलाप कहा जाता है। आर्थिक क्रियाओं में संलग्न सभी व्यक्ति श्रमिक कहलाते हैं, चाहे वे उच्च या निम्न किसी भी स्तर पर कार्य कर रहे हैं। बीमारी, चोट, शारीरिक विकलांगता, खराब मौसम, त्योहार या सामाजिक-धार्मिक उत्सवों के कारण अस्थायी रूप से काम पर न आने वाले भी श्रमिकों में शामिल हैं। इन कार्यों में लगे मुख्य श्रमिकों की सहायता करने वालों को भी हम श्रमिक ही मानते हैं।

प्र. 2. श्रमिक जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।

उत्तर: यदि हम भारत में कार्य कर रहे सभी श्रमिकों की संख्या को देश की जनसंख्या से भाग कर उसे 100 से गुणा कर दें तो हमें श्रमिक जनसंख्या अनुपात प्राप्त हो जाएगा।

प्र. 3. क्या ये भी श्रमिक हैं एक भिखारी चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?

उत्तर: उपयुक्त में से कोई भी श्रमिक नहीं है क्योंकि किसी का भी अर्थव्यवस्था के वास्तविक उत्पादन में कोई योगदान नहीं है। वे धन कमा नहीं रहे बल्कि धन प्राप्त कर रहे हैं। धन कमाना उसे कहा जाता है जब धन प्राप्ति के बदले में वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन किया जाए।

प्र. 4. इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है?

(क) नाई की दुकान का मालिक

(ख) एक मोची

(ग) मदर डेयरी का कोषपाल

(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक

(ङ) परिवहन कंपनी संचालक

(च) निर्माण मजदूर।

उत्तर: मदर डेयरी का कोषपाल असंगत प्रतीत होता है क्योंकि केवल वह औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है (मदर डेयरी एक बड़े पैमाने का उपक्रम है जिसमें 10 से अधिक लोग कार्यरत हैं।) शेष सभी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं।

प्र. 5. नये उभरते रोजगार मुख्यत ...........  क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/ विनिर्माण)

उत्तर : सेवा।

प्र. 6. चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को ........... क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)

उत्तर: अनौपचारिक ।

प्रश्न 7. राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?

उत्तर : हाँ, हम राज को श्रमिक मानेंगे क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है, तब भी जब वे उन कार्यकलापों में संलग्न मुख्य श्रमिकों की सहायता करते हैं।

प्र. 8. शहरी महिलाओं की अपेक्षा अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?

उत्तर : शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं क्योंकि-

(क) ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी- ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्त्रियों को श्रमबल में शामिल होने के लिए मजबूर करती हैं अन्यथा वे अपने परिवार की आधारभूत आवश्यकताएँ जुटाने में भी सक्षम नहीं हो पाते।'

(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्यों की उपलब्धता- ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत-सी घरेलू नौकरियाँ जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। अतः घर से बाहर जाने और उससे उत्पन्न सुरक्षा मुद्दों का प्रश्न ही नहीं उठता।

(ग) शहरी क्षेत्रों में अधिक स्तर चेतना- शहरों में पुरुष उच्च आय कमा रहे हैं और उनमें स्तर के प्रति अधिक चेतना है। जिसमें वे स्त्रियों के आय अर्जन के लिए कार्य करने को बुरा मानते हैं।

(घ) शहरी क्षेत्रों में अधिक अपराध दर- शहरी क्षेत्र के लोगों को स्त्रियों का काम करना असुरक्षित लगता है क्योंकि स्त्री के विरुद्ध अपराध दर बहुत उच्च है।

प्र. 9. मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?

उत्तर: हाँ, वह एक श्रमिक है क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है। वे भी श्रमिक ही कहलाते हैं जो मुख्य श्रमिकों को आर्थिक क्रियाओं में मदद करते हैं। यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वेतन का भुगतान किया गया या नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद में उनका योगदान है या नहीं।

प्र. 10. यहाँ किसे असंगत माना जाएगाः

(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला,

(ख) राजमिस्त्री

(ग) किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक

(घ) जूते पालिश करने वाला लड़का।

उत्तर : (घ) जूते पालिश करने वाला लड़का क्योंकि वह स्वनियोजित है। अन्य सभी मजदूरी श्रमिक हैं। वे किसी ओर के अधीन निश्चित वेतन पर कार्यरत हैं।

प्र. 11. निम्न सारणी में 1972-73 में भारत के श्रमबल का वितरण दिखाया गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। घ्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।

निवास स्थान

श्रमबल (करोड़ में)

पुरुष

महिलाएँ

कुल

ग्रामीण

12.5

6.9

19.5

शहरी

3.2

0.7

3.9

उत्तर : दरअसल, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या में अंतराल है। इसलिए पूर्ण आँकड़ों पर कुछ भी कहना गलत होगा। बेहतर होगा यदि हम इसे प्रतिशत में तुलना करें। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि-

(क) 1972-73 में भारत की कुल श्रमशक्ति 19.5 करोड़ थी जिसमें से 12.5 करोड़ अर्थात् 83% ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही थी। दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में कर्मचारियों की संख्या केवल 17% थी। ऐसा इसीलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्राथमिक गतिविधियों में नौकरी ढूंढते हैं जो मुख्यतः श्रम गहन तकनीकों का प्रयोग करती हैं जबकि शहरी क्षेत्रों के लोग औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में नौकरी ढूंढते हैं जो पूँजी गहन होती है।

(ख) यह भी तालिका से स्पष्ट है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक कार्यरत हैं। ऐसा लिंग आधारित सामाजिक श्रम विभाजन के कारण है। ऐसा माना जाता है कि पुरुष का काम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है जबकि महिलाओं का काम घरेलू कामकाज करना है। बहुत से घरेलू काम जो स्त्रियाँ करती हैं श्रम/आर्थिक कार्य में नहीं आते। कुशलता की आवश्यकता भी इसका एक कारण है।

(ग) अन्य तथ्य यह सामने आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं। इसका कारण यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता अधिक है जो स्त्रियों को कार्य करने पर मजबूर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्य जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। शहरों में लोग अपने सामाजिक स्तर के प्रति अधिक सचेत हैं, उन्हें स्त्रियों का काम करना बेइज्जती जैसा लगता है। शहरों में स्त्रियों के लिए कार्यस्थल असुरक्षित भी हैं।

प्र. 12. इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?

क्षेत्र

अनुमानित संख्या (करोड़ में)

श्रमिक जनसंख्या

श्रमिकों की अनुमानित संख्या (करोड़ में)

ग्रामीण

71.88

41.9

71.88÷100 x 30.12

शहरी

28.52

33.7

?

योग

100.49

3.5

?

 उत्तर : शहरों में `=\frac{28.52\times33.7}{100}=9.61`

योग `=\frac{39.5\times100.40}{100}=39.65`

प्र. 13. शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?

उत्तर : शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से निम्नलिखित कारणों से अधिक होते हैं

(क) सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व- शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व है और सेवा क्षेत्र में नियमित वेतन श्रमिक अधिक हैं।

(ख) शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का उच्च स्तर- नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है जो शहरी क्षेत्रों में अधिक होता है।

(ग) शहरी क्षेत्रों में कार्यस्थल के प्रति प्रतिबद्धता का उच्च स्तर- शहरी क्षेत्रों के लोग अपने कार्य के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होते हैं। वे अपनी नौकरी को अधिक महत्त्व देते हैं तथा लंबी छुट्टियों पर नहीं जाते जबकि ग्रामीण लोगों की पहली प्राथमिकता उनके सामाजिक दायित्व होते हैं।

प्र. 14. नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?

उत्तर : नियमित वेतनभोगी में महिलाएँ कम पाई जाती हैं। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं:-

पुरुषों में शैक्षिक योग्यता का उच्च स्तर- नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है। जो पुरुषों में अधिक पाई जाती है।

पुरुषों में कार्य जीवन के प्रति अधिक प्रतिबद्धता पुरुषों में कार्य जीवन के लिए प्रतिबद्धता का स्तर अधिक होता है। स्त्रियों की दोहरी जिम्मेदारी हैं।

सामाजिक पूर्वाग्रह- सामाजिक पूर्वाग्रह भी इसमें अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह माना जाता है कि कई नौकरियाँ स्त्रियाँ नहीं कर सकती तथा पुरुष कर्मचारी उन्हें एक उच्चाधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते।

महिलाओं के कैरियर में ठहराव- विवाह के समय स्त्रियों को अपना घर बदलना पड़ता है। संतान के जन्म के समय भी उन्हें एक समयाविधि के लिए नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ती है। बहुत-सी महिलाएँ संतान के लालन-पालन के लिए श्रम बाजार से बाहर चली जाती हैं।

प्र. 15. भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।

उत्तर : नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, हम निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं

प्रत्येक 100 में से 40 व्यक्ति कार्यशील हैं।

इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक 4 व्यक्ति 10 व्यक्तियों के लिए कमा रहे हैं। माना औसतन रूप से 1 व्यक्ति 2.5 व्यक्ति का लालन-पालन कर रहा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में 76.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक में, 10.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 12.5% सेवा क्षेत्रक में कार्यरत हैं।

शहरी क्षेत्रों में 9.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक 31.3% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 59.1% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।

महिलाएँ 75.1% प्राथमिक क्षेत्रक, 11.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 13.1% सेवा क्षेत्र में संलग्न हैं जबकि पुरुष 53.8% प्राथमिक क्षेत्रक, 17.6% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 28.6% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।

प्र. 16. क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में राजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे ?

उत्तर: नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता कि पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है। हम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को रोजगार सृजन की दर से तुलना करके यह सिद्ध कर सकते हैं। स्वतंत्रता के समय से सकल घरेलू उत्पाद औसतन 4.5% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है। जबकि रोजगार का सृजन केवल 1.5% प्रति वर्ष हुआ है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में रोजगारहीन संवृद्धि हुई है।

प्र. 17. क्या औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बताइए ।

उत्तर: हाँ, यह आवश्यक है कि हम औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार सृजन करें क्योंकि

1. औपचारिक क्षेत्रक कर्मचारियों के अधिकार सुनिश्चित करता है।

2. यह काम की सुरक्षा और रोजगार की नियमितता सुनिश्चित करता है।

3. यह एक बेहतर गुणवत्ता का कार्य जीवन सुनिश्चित करता है।

4. औपचारिक क्षेत्रक पर सरकार नियंत्रण रख सकती है।

5. यह अर्थव्यवस्था में अनुशासन और नियम लाता है।

प्र. 18. विक्टर को दिन में केवल दो घंटे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?

उत्तर: हाँ, वर्तमान दैनिक स्थिति (CDS) के अनुसार वह कार्यरत है क्योंकि वर्तमान दैनिक स्थिति (Current Daily Status) के अनुसार, कोई व्यक्ति जो आधे दिन में 1 घंटे का काम प्राप्त करने में सक्षम है वह नियोजित है। विक्टर जैसे लोग रिक्शा चालक, मोची, बिजली, पलंबर, मेसन या छोटे-मोटे रिपेयर जैसे काम करते हैं।

प्र. 19. क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम पंचायत को सलाह देने के लिए कहा जा. तो आप गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।

उत्तर : मैं निम्नलिखित क्रियाकलापों का सुझाव दूंगा / देंगी

(क) नहरों और नलकूपों का निर्माण ताकि सिंचाई सुविधाओं में सुधार हो

(ख) स्कूल और अस्पतालों का निर्माण

(ग) सड़कों, भंडारण गृहों आदि का निर्माण

(घ) कृषि आधारित उद्योगों को विकसित करना

(ङ) छोटे पैमाने के उद्योग जैसे-टोकरी, बुनाई, अचार बनाना, कढ़ाई आदि विकसित करना।

प्र. 20. अनियत दिहाड़ी मजदूर कौन होते हैं?

उत्तर : ऐसे कार्यकर्ता जिन्हें अनुबंध या दैनिक आधार पर भुगतान किया जाता है तथा जिनके काम की कोई नियमितता नहीं है, उन्हें अनियत दिहाड़ी मजदूर कहा जाता है। उदाहरण-निर्माण मजदूर।

प्र. 21. आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?

उत्तर : यह जानने के लिए कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है, हमें निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना होगा

(क) जिस प्रतिष्ठान में व्यक्ति कार्यरत है वहाँ कुल कर्मचारियों की संख्या-यदि कुल कर्मचारियों की संख्या 10 या उससे अधिक है तो व्यक्ति औपचारिक क्षेत्रक में नियोजित है।

(ख) लिखित अनुबंध-यदि एक व्यक्ति को अपने नियोक्ता के साथ लिखित अनुबंध है तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है अन्यथा वह अनौपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

(ग) उसे अतिरिक्त लाभ मिल रहे हैं या नहीं-यदि एक व्यक्ति को तनख्वाह के अतिरिक्त अन्य लाभ पेंशन, बोनस, पी.एफ., सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, मातृत्व लाभ आदि मिल रहे हैं तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

Group-B भारतीय अर्थव्यवस्था

1. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

2. भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)

3. उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा

4. निर्धनता

5. भारत में मानव पूँजी का निर्माण

6. ग्रामीण विकास

7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे

8. आधारिक संरचना

9. पर्यावरण और धारणीय विकास

10. भारत और उसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव

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