11th 8. आधारिक संरचना Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

11th 8. आधारिक संरचना Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

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आधारिक संरचना

आधारिक संरचनाओं से अभिप्राय उन सुविधाओं, क्रियाओं और सेवा से है जो अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास में सहायक होती हैं। ये आधारिक संरचनायें औद्योगिक तथा कृषि उत्पाद, घरेलू तथा विदेशी व्यापार में सहायक सेवायें प्रदान करती हैं। इन सेवाओं में सड़क रेलवे, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, बाँध (Dams), पावर स्टेशन तेल तथा गैस की पाइपलान की सुविधायें, पाठशाला, कॉलेज स्वास्थ्य सेवायें, बैंक बीमा तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं की सेवायें शामिल हैं।

11th 8. आधारिक संरचना Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

आधारिक संरचनाओं के प्रकार

1. आर्थिक आधारिक संरचना

i- ऊर्जा

ii- दूरसंचार

iii- यातायात

2. सामाजिक आधारिक संरचना

i- शिक्षा

ii- स्वास्थ्य

iii- आवास

iv- नागरिक सुविधाएँ

आर्थिक और सामाजिक आधारिक संरचना दोनों एक साथ अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण विकास में सहायता करती है। दोनों एक दूसरे के पूरक व सहायक है।

आधारिक संरचना की प्रासंगिकता

आधारिक संरचना और आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की कार्य कौशल कार्यप्रणाली निर्भर करती है।

1. कृषि का विकास में कीटनाशक दवाई खाद बीज अधिक आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए परिवहन के साधन आवश्यक है। बीमा बैंकिंग जैसी सुविधाएं भी कृषि के लिए जरूरी है।

2. बेहतर जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं पेयजल आपूर्ति संचार परिवहन जैसी सुविधाओं की जरूरत पड़ती है।

3. आधारिक संरचना से विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार बढ़ता है।

4. अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास में सहायता करता है।

भारत में आधारिक संरचना की स्थिति

देश

सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निवेश

सुरक्षित रूप से प्रतिबंधित पेयजल सेवाओं का उपयोग करने वाले (%)

सुरक्षित रूप से प्रतिबंधित सेवाओं का उपयोग करने वाले (%)

मोबाइल प्रयोक्ता / 1000 लोग

ऊर्जा की खपत (मिलियन टन तेल के बराबर)

चीन

44

96

72

115

3274

हांगकांग

22

100

91.8

259

31

भारत

30

94

40

87

809

दक्षिण कोरिया

31

98

99.9

130

301

पाकिस्तान

16

35

64

73

85

सिंगापुर

28

100

100

146

88

इण्डोनेशिया

34

87

61

120

186

1. भारत में आधारिक संरचना को विकसित करने का उत्तरदायित्व सरकार पर था, परंतु इस क्षेत्र में अपर्याप्त निवेश हुआ।

2. भारत की अधिकांश आबादी गांव में निवास करती है विश्व में उन्नत तकनीक के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में ईंधन की आवश्यकता बड़ी समस्या बनी हुई है।

3. जनगणना 2001 के अनुसार ग्रामीण परिवारों में केवल 56% के पास ही बिजली उपलब्ध थी।

4. ग्रामीण भारत के 43% परिवार आज भी मिट्टी तेल का उपयोग करते हैं।

5. नल को पानी की उपलब्धता केवल 24% ग्रामीण परिवारों तक ही सीमित है और शेष परिवार खुले स्रोतों से पानी का उपयोग करते हैं।

6. भारत अपनी GDP का केवल 34 प्रतिशत आधारिक संरचना पर निवेश करता है, जो कि चीन व इन्डोनेशिया से कहीं नीचे है।

ऊर्जा

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यह अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उद्योग कृषि प्रौद्योगिकी यातायात आदि सभी क्षेत्रों के विकास के लिए ऊर्जा आवश्यक है। आर्थिक विकास व ऊर्जा की माँग के बीच धनात्मक सहसंबंध है।

1.ऊर्जा के परम्परागत स्रोत -

इन स्रोतों का उपयोग मनुष्य लम्बे समय से कर रहा है। ऊर्जा के ये साधन सीमित है।

1. मानव, पशु, ईंधन (लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, जलविद्युत शक्ति, ऊर्जा के परम्परागत साधन हैं।

2. ऊर्जा के परम्परागत साधनों को मानव प्राचीनकाल से ही उपयोग में ला रहा है।

3. जलविद्युत शक्ति को छोड़कर अन्य सभी साधन अनव्यकरणीय है अर्थात् इनका एक बार उपयोग कर लिए जाने के उपरान्त ये सदैव के लिए समाप्त हो जाते हैं।

4. ये ऊर्जा के क्षयी संसाधन भी कहलाते हैं। ऊर्जा के परम्परागत साधनों का उपयोग विश्व में व्यापक स्तर पर किया जाता है।

5. ऊर्जा के ये साधन पर्यावरण प्रदूषण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है (जलविद्युत को छोड़कर) । ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों के दो प्रकार हैं।

A- व्यवसायिक ऊर्जा - ऊर्जा के उन स्रोतों से होता है जिनकी एक कीमत होती है और उपयोगकर्ताओं को उनके लिए कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे कोयला, पेट्रोल, बिजली

B- गैर व्यवसायिक ऊर्जा ऊर्जा के वे सभी स्रोत सम्मिलित है जिनकी सामान्यता कोई कीमत नहीं होती। जैसे गोबर, कूड़ा कचड़ा आदि।

2. गैर परम्परागत स्रोत -

1. इनका उपयोग हाल ही में शुरू हुआ है। ये स्रोत असीमित है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वार ऊर्जा आदि।

2. सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायो गैस (कूड़ा-कचरा, मल-मूत्र एवं गोबर से निर्मित) ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन हैं।

3. ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का विकास वैज्ञानिक तकनीकी विकास के साथ-साथ सम्भव हुआ है।

4. ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन नव्यकरणीय होते हैं। इनका निरन्तर उपयोग किया जाता रहेगा, उदाहरण के लिए जब तक ब्रह्माण्ड में सूर्य रहेगा, सौर ऊर्जा अनवरत रूप से प्राप्त होती रहेगी।

5. इन्हें ऊर्जा के अक्षयी संसाधन कहा जाता है। ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों की उपलब्धता तो पर्याप्त है, परन्तु अभी तक उनका व्यापक उपयोग नहीं हो पाया है।

ऊर्जा के ये साधन पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त हैं। अर्थात् प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।

व्यवसायिक ऊर्जा के उपभोग की पद्धति -

व्यवसायिक ऊर्जा उपयोग के क्षेत्रकवार हिस्सेदारी की प्रवृत्तियाँ (% में)

क्षेत्रक

1953-54

1970-71

1990-91

2017-18

परिवार

10

12

12

24

कृषि

01

03

08

18

उद्योग

40

50

45

42

परिवहन

44

28

22

01

अन्य

5

07

13

15

कुल

100

100

100

100

1. व्यवसायिक ऊर्जा के कुल उपभोग का सबसे बड़ा हिस्सा 42% औद्योगिक क्षेत्र का है। लेकिन औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी में गिरावट आई है यह 1950-51 में 62.6% से घटकर 2017-18 में 42% रह गई है।

2. परिवार क्षेत्र (24%) व कृषि क्षेत्र (18%) में विद्युत के उपभोग में निरंतर वृद्धि हो रही है।

3. व्यवसायिक ऊर्जा उपभोग भारत में कुल ऊर्जा उपभोग का लगभग 74% है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा 54% कोयले का, 32% तेल का, 10% प्राकृतिक गैस और 2% पनबिजली का सम्मिलित है।

4. गैर व्यवसायिक ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग भारत में कुल ऊर्जा उपयोग का 26% से ज्यादा है।

शक्ति शक्ति, आधारिक संरचना का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।

शक्ति/विद्युत ऊर्जा

चार्ट 8.1: भारत में विद्युत उत्पादन के विभिन्न स्रोत, 2018

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1. ऊर्जा का सबसे दृष्टिगोचर रूप बिजली है।

2. बिजली आधुनिक सभ्यता की प्रगति का द्योतक माना जाती है।

3. जीडीपी में 8% वृद्धि के लिए बिजली की पूर्ति में 12% की वृद्धि होनी चाहिए।

4. भारत में 2016 में कुल बिजली उत्पादन का 67% तापीय विद्युत है।

5. जल विद्युत की हिस्सेदारी 14% रही।

6. परमाणु ऊर्जा का भाग 2 प्रतिशत है।

7. परमाणु ऊर्जा की औसत खपत 13% है।

विद्युत क्षेत्र की चुनौतियां

1. विद्युत उत्पादन की अपर्याप्तता स्थापित क्षमता का कम उपयोग हो रहा है, नई विद्युत इकाई की अपर्याप्त संख्या

2. जनता को सहयोग का अभाव

3. बिजली बोर्डों की हानियाँ

4. बिजली की चोरी

5. ऊंची बिजली दर

6. परमाणु शक्ति के विकास की धीमी प्रगति

7. कच्चे माल की कमी

8. निजी क्षेत्र की कम भूमिका

9. ऊर्जा के मांग में तीव्र वृद्धि

विद्युत संकट से निपटने हेतु सुझाव

1. विद्युत संयंत्रों की तकनीक में सुधार।

2. उत्पादन क्षमता में वृद्धि।

3. संचारण व वितरण की क्षति पर नियंत्रण।

4. विद्युत उत्पादन में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश तथा निजीकरण को प्रोत्साहन।

5. नवीकरण स्रोतों का प्रयोग।

6. विद्युत क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान

उजाला योजना

ऊर्जा कार्यकुशलता ब्यूरो के अनुसार कॉन्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप सामान्य बल्बों की अपेक्षा 80% बिजली की कम खपत करते हैं। वहीं इन दिनों देश में एलईडी लैंप के प्रयोग को ऊर्जा के बचत के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। एलईडी बल्ब समान बल्ब की अपेक्षा केवल 10% ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड के अनुसार सामान्य बल्ब के स्थान पर एलईडी बल्ब के उपयोग से 90% बिजली बचाई जा सकती है।

स्वास्थ्य -

स्वास्थ्य का मतलब बीमारियों का ना होना ही नहीं बल्कि अपनी कार्यक्षमता प्राप्त करने की योग्यता भी है। इसे किसी देश की सुख-समृद्धि का मापदंड माना जाता है।

स्वास्थ्य आधारिक संरचना के विकास से उत्पादन के लिए स्वस्थ जनशक्ति उपलब्ध होती है।

स्वास्थ्य आधारिक संरचना में अस्पताल डॉक्टर नर्स और अन्य चिकित्सा कर्मी, बेड, अस्पताल जरूरी उपकरण, दवा आदि शामिल है।

स्वास्थ्य आधारित संरचनाओं की स्थिति

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचनात्मक सेवाएँ-

मद

1951

1981

2000

2018

सरकारी अस्पताल

2694

6805

15888

25778

सरकारी अस्पताल / दवाखाना में बेड

117000

504538

719861

713986

दवाखाना 6600

16745

23065

27951

-

सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र

725

9115

22842

25743

उपकेंद्र

-

84736

137311

158417

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

-

761

3043

5624

1. भारत में विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति को विकसित किया गया है।

2. गांव स्तर पर सरकार ने कई प्रकार के अस्पतालों की व्यवस्था की है।

3. पात्रता के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की संख्या में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है।

4. 1951 से 2017 के बीच सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़कर 158417 तक पहुंच गई है।

5. नर्सिंग कर्मियों की संख्या 18000 से बढ़कर 28.8 लाख हो गई है।

6. स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार से चेचक पोलियो तथा कुष्ठ जैसे रोगों का पूर्ण उन्मूलन हो गया है।

7. ग्राम स्तर पर सरकार द्वारा कई किस्म के अस्पताल स्थापित किए गए है।

8. स्वास्थ्य आधारित संरचनाओं के विस्तार के फलस्वरूप ही जानलेवा बीमारियों जैसे चेचक, कुष्ट रोगों का लगभग उन्मूलन सम्भव हो सका है।

निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य आधारिक संरचना

1. भारत में 70% से अधिक अस्पताल निजी क्षेत्र द्वारा संचालित है।

2. लगभग 60% डिस्पेंसरी निजी क्षेत्र द्वारा संम्मीलित होती है।

3. निजी क्षेत्र के अस्पताल 80% वाह रोगियों और 46% अंतर रोगियों के स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं।

4. स्वास्थ्य देखरेख प्रदान करने में सरकार की भूमिका फिर भी महत्वपूर्ण है।

5. गरीब व्यक्ति निजी स्वास्थ्य सेवाओं में भारी खर्चे के कारण केवल सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर रह सकते हैं।

भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था

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भारत में स्वास्थ्य आधारिक संरचना की तीन स्तरीय व्यवस्था है।

1. प्राथमिक स्तर पर ऑग्जीलियरी नर्सिंग मिडवाइफ ANM स्वास्थ्य क्षेत्र का पहला व्यक्ति है।

2. प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ्य की देखभाल के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बने होते हैं।

3. द्वितीय स्तर पर जिला अस्पताल की सुविधा होती है।

4. तृतीय स्तर पर मेडिकल कॉलेज तथा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल होते हैं।

सामुदायिक और गैर लाभकारी संस्थाएँ

एक अच्छी स्वास्थ्य देखरेख व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू सामुदायिक भागीदारी होती है।

उदाहरण के लिए-

1. अहमदाबाद में SEWA

2. नीलगिरी में। CCORD

भारत में चिकित्सा पर्यटन-

भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ अन्य देशों में समान स्वास्थ्य सेवाओं की लागत की तुलना में सस्ती है। परन्तु भारत को अधिक विदेशियों को आकर्षित करने के लिए अपनी स्वास्थ्य आधारित संरचना को बेहतर करने की आवश्यकता है। वर्ष 2016 में 201000 से भी अधिक पर्यटक चिकित्सा के लिए भारत आए।

स्वास्थ्य व स्वास्थ्य आधारित संरचनाओं के संकेतक-

अन्य देशों की तुलना में भारत में स्वास्थ्य सूचक, 2015-17

सूचक

भारत

चीन

अमेरिका

श्रीलंका

1. शिशु मृत्यु दर/प्रति 100 जिन्दा शिशु (2018)

30

7.4

5.6

6.4

2. पांच वर्ष के नीचे मृत्यु दर / प्रति 100 शिशु

36.6

8.6

5

7.4

3. प्रशिक्षित परिचारिका द्वारा जन्म (2016)

81.4

100

99

99

4. प्रतिरक्षित शिशु (डी.पी.टी.) (2018)

89

99

94

99

5. जी.डी.पी. (%) के रूप में कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी हिस्सेदारी (2016)

3.7

5.7

17.0

3.9

6. जेब से बाहर का व्यय, स्वास्थ्य वर वर्तमान व्यय के प्रतिशत के रूप में (2018)

65

36

11.1

50

1. स्वास्थ्य क्षेत्र पर व्यय G.D.P. का केवल 3.9% है।

2. भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जिंदा शिशु पर 34 है जबकि यह कड़ा चीन में 8 अमेरिका में 5.7 तथा श्रीलंका में 7.5 है।

3. भारत में दुनिया की जनसंख्या का लगभग 17% है परन्तु यह रोगियों विश्व वैश्विक भार के 20% को सहन करता है। (जीडीपी के अनुसार)

4. प्रत्येक वर्ष लगभग पांच लाख बच्चे पानी से उत्पन्न होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं।

5. मात्र 38% प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में डॉक्टरों की वांछित संख्या उपलब्ध है।

6. केवल 30% प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में दवाइयों का पर्याप्त भंडार है।

ग्रामीण शहरी विभाजन

1. भारत की जनसंख्या का 70% ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है परन्तु अस्पतालों का केवल 20% और कुल दवाखानों का 50% ग्रामीण क्षेत्र में है।

2. सरकारी अस्पतालों में ग्रामीण इलाकों में केवल 30% बेड उपलब्ध है।

3. ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र X-Ray या खून की जाँच की सुविधा भी प्रदान नहीं करते जोकि आधारभूत स्वास्थ्य देखरेख का अंग है।

4. ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है।

5. भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले निर्धन लोग अपनी आय का 12% स्वास्थ्य सुविधाओं में खर्च करते हैं।

6. भारत के धनी लोग केवल 2% स्वास्थ सुविधा पर खर्च करते हैं।

7. भारत में नगरीय और ग्रामीण स्वास्थ्य देखरेख में बड़ा विभाजन है।

भारतीय चिकित्सा प्रणाली को उनके अंग्रेजी नामों के आधार पर आयूश (AYUSH) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है

1. आयुर्वेद

2. योग

3. यूनानी

4. प्राकृतिक चिकित्सा

5. सिद्ध

6. होम्योपैथी

महिला स्वास्थ्य

1. लिंगानुपात 1951 में 946 से गिरकर 2001 में 933 हो गया। यह देश में बढ़ते कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं को दर्शाता है।

2. 15 से 49 आयुवर्ग के बीच की विवाहित महिलाओं में से 50% से अधिक को एनीमिया है।

3. 15 वर्ष से कम उम्र के 300000 से अधिक लड़कियां ना केवल शादीशुदा बल्कि कम से कम 1 बच्चे की मां भी हैं।

निष्कर्ष

देश के विकास में सामाजिक और आर्थिक दोनों प्रकार की आधारिक संरचना का होना आवश्यक है। आजादी के बाद भारत ने आधारिक संरचना में महत्वपूर्ण प्रगति की है। परंतु इसका वितरण असमान है। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। भारत के आधुनिकीकरण में गुणवत्तापूर्ण आधारिक संरचना की मांग बढ़ी है। आधारिक संरचना के पर्याप्त विकास के लिए निजी क्षेत्र को भी आगे लाने की आवश्यकता है।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. आधारिक संरचना की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: समस्त सहयोगी संरचना जो किसी एक देश के विकास को संभव बनाती है, उस देश की आधारिक संरचना का निर्माण करती है। इन सेवाओं में सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बाँध, बिजली घर, तेल व गैस, पाईप लाइन, दूरसंचार सुविधाएँ, स्कूल-कॉलेज सहित देश की शैक्षिक व्यवस्था, अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था, सफाई, पेयजल और बैंक बीमा व अन्य वित्तीय संस्थाएँ तथा मुद्रा प्रणाली शामिल हैं।

प्रश्न 2. आधारिक संरचना को विभाजित करने वाले दो वर्गों की व्याख्या कीजिए। दोनों एक-दूसरे पर कैसे निर्भर हैं?

उत्तर: आधारिक संरचना को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है-सामाजिक और आर्थिक ऊर्जा, परिवहन और संचार आर्थिक श्रेणी में आते हैं जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास सामाजिक आधारिक संरचना की श्रेणी में आते हैं। ये दोनों संरचनाएँ एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं।

(क) सामाजिक संरचना की आर्थिक संरचना पर निर्भरता शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र भी परिवहन, संचार और ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तथा इनके बिना विकसित नहीं हो सकते। आवास के लिए भी परिवहन की आवश्यकता पड़ती है ताकि माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके तथा संचार की भी समन्वय के लिए आवश्यकता पड़ती है। किसी न किसी रूप में ऊर्जा की भी घरों के निर्माण में आवश्यकता पड़ती है।

(ख) आर्थिक संरचना की सामाजिक संरचना पर निर्भरता शिक्षित और स्वस्थ लोग ही परिवहन सेवाएँ, संचार सुविधाएँ और ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। जिस अर्थव्यवस्था में एक सुदृढ़ आर्थिक संरचना उपलब्ध नहीं है वहाँ पर हम एक सुदृढ़ सामाजिक संरचना होने की आशा नहीं कर सकते। संचार एवं परिवहन स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं के उपयोग को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 3. आधारिक संरचना उत्पादन का संवर्धन कैसे करती है?

उत्तर: आधारिक संरचना वे आधारभूत सेवाएँ प्रदान करता है जिसकी आवश्यकता सभी क्षेत्रकों को होती है।

(क) संरचनात्मक ढाँचा वह समर्थन प्रणाली है जिस पर आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता निर्भर करती है।

(ख) आधुनिक कृषि भी काफी हद तक तीव्र एवं बड़े पैमाने पर बीज, कीटनाशक, उर्वरक के उत्पादन और परिवहन के लिए आधुनिक रेल एवं ऊर्जा पर निर्भर है।

(ग) आधुनिक समय में, कृषि एवं उद्योग बीमा और बैंकिंग सुविधाओं पर भी निर्भर है।

(घ) संरचनात्मक ढाँचा हमें शिक्षित लोग प्रदान करता है जिनकी उत्पादकता अनपढ़ एवं अकुशल लोगों से कहीं अधिक होती है।

(ङ) संरचनात्मक ढाँचा हमें स्वस्थ लोग प्रदान करता है जिनकी उत्पादकता उनके समकक्षों से कहीं अधिक होती है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि आर्थिक संरचना उत्पादकता को बढ़ाती है और आधारिक संरचना का निर्माण करती है जबकि आधारिक संरचना मानव उत्पादकता में सुधार करती हैं और मानव पूँजी का निर्माण करती है।

प्रश्न 4. किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना योगदान देती है। क्या आप सहमत हैं? कारण बताइए।

उत्तर: हाँ, मैं सहमत हूँ कि संरचनात्मक ढाँचा एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में अधिकतम योगदान देता है। यदि संरचनात्मक ढाँचे के विकास पर सही रूप से ध्यान नहीं दिया गया तो यह आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है। आर्थिक विकास में दो आयाम शामिल हैं-

(ख) जीवन की गुणवत्ता में सुधार और

(क) वास्तविक उत्पादन में वृद्धि।

(क) वास्तविक उत्पादन पर आधारिक संरचना का प्रभाव एक आधुनिक अर्थव्यवस्था की कार्य कुशलता आधारिक संरचना पर निर्भर करती है। आधुनिक कृषि भी काफी हद तक अपने आदानों की आपूर्ति एवं मशीनों के लिए आधारिक संरचना पर निर्भर है। यह संचार, परिवहन एवं ऊर्जा का अनेक रूपों में प्रयोग करती है। आधुनिक समय में कृषि और उद्योग बीमा और बैंकिंग सेवाओं पर भी निर्भर है। आधारिक संरचना हमें शिक्षित लोग प्रदान करती है जिनकी उत्पादकता निरक्षर एवं अकुशल लोगों से ज्यादा होती है। यह हमें स्वस्थ जनशक्ति भी प्रदान करता है जिनकी उत्पादकता उनके अस्वस्थ समकक्षों की तुलना में कहीं आर्थिक होती है।

(ख) जीवन की गुणवत्ता पर आधारिक संरचना का प्रभाव जल आपूर्ति, सफाई, आवास आदि में सुधार का अस्वस्थता पर जो विशेष तौर पर जल संक्रामक रोगों से होती है, भारी प्रभाव पड़ता है जब बीमारी होती है तो उसकी गंभीरता भी आधारिक संरचना की उपलब्धता से कम हो जाती है। एक शिक्षित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है। परिवहन, संवाद, बैंकिंगए बीमा, ऊर्जा सबकी उपलब्धता जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाती है।

प्रश्न 5. भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना की क्या स्थिति है?

उत्तर : भारत में ग्रामीण आधारिक संरचना की स्थिति बहुत दयनीय है।

(क) ऊर्जा 2001 की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में केवल 56% परिवारों में बिजली की सुविधा है, 43% परिवार आज भी मिट्टी का तेल प्रयोग करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 90% परिवार खाना बनाने में जैव ईंधन का इस्तेमाल करते हैं।

(ख) जल- केवल 24% ग्रामीण परिवारों में लोगों को नल का पानी उपलब्ध है। लगभग 76% लोग कुआँ, टैंक, तालाब, झरना, नदी, नहर आदि जैसे पानी के खुले स्रोतों का प्रयोग करते हैं।

(ग) सफाई- ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 20% लोगों को सफाई की सुविधा उपलब्ध थी।

(घ) स्वास्थ्य- भारत की 70% जनसंख्या गाँवों में रहती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भारत के केवल 20% अस्पताल स्थित हैं। ग्रामीण भारत में कुल दवाखानों के लगभग आधे दवाखाने हैं। लगभग 7 लाख बेड में से केवल 11% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। ग्रामीण इलाकों में उचित चिकित्सा से वंचित लोगों के प्रतिशत में 1986 में 15 से 2003 में 24 की वृद्धि हुई है।

प्रश्न 6. ऊर्जा का महत्त्व क्या है? ऊर्जा के व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक स्रोतों में अंतर कीजिए।

उत्तर: किसी राष्ट्र की विकास प्रक्रिया में ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(क) यह उद्योगों के लिए आवश्यक है। हम ऐसे एक भी उद्योग को उदाहरण नहीं दे सकते जहाँ ऊर्जा का प्रयोग न होता हो।

(ख) यह कृषि तथा संबंधित क्षेत्रकों में बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है। जैसे उर्वरक, बीज, कीटनाशकों, मशीनरी के उत्पादन एवं परिवहन।

(ग) घरों में भी खाना पकाने, रोशनी करने तथा गर्म करने की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा का उपयोग होता है।

ऊर्जा के व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक स्रोतों में अंतर-

आधार

ऊर्जा के व्यवसायिक स्त्रोत

ऊर्जा के गैर व्यवसायिक स्त्रोत

अर्थ

ऊर्जा के वे स्त्रोत जो बाजार में खरीदे और बेचे जा सकते हैं, उन्हें ऊजार्स के व्यवसायिक स्त्रोत कहा जाता है।

ऊर्जा के वे स्त्रोत जो बाजार में खरीदे और बेचे नहीं जाते हैं उन्हें ऊन्हें ऊर्जा के गैर व्यवसायिक स्त्रोत कहा जाता है।

उदाहरण

कोयला, पेट्रोल और विद्युत ऊर्जा के व्यवसायिक स्त्रोत हैं।

ऊर्जा के गैर व्यवसायिक स्त्रोतों में जलाऊ लकड़ी, समख गोबर, कृषि अवनिष्ठ शामिल हैं।

नवीनकरणीयता

ऊर्जा के वयवसायिक स्त्रोत प्रायः (पनतिबजली एक अपवाद हैं) समाप्त हो जाते हैं।

गैर व्यवसायिक स्त्रोतों का पुनर्नवीनीकरण हो सकता है।

प्रश्न 7. विद्युत के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत कौन से हैं?

उत्तर : विद्युत के उत्पादन के तीन बुनियादी स्रोत हैं

(क) जल- यह पन विद्युत देता हैं। भारत में कुल विद्युत का 28% अंश जल और वायु ऊर्जा का प्रयोग करके उत्पादित होता है।

(ख) तेल, गैस और कोयला इसे तापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में कुल ऊर्जा उत्पादन का 70% तापीय ऊर्जा से प्राप्त होता है।

(ग) रेडियोधर्मी तत्व- इसे परमाणु ऊर्जा कहा जाता है। इसमें यूरेनियम, थोरियम आदि शामिल हैं। यह कुल ऊर्जा उत्पादन में 2% का योगदान देता है।

प्रश्न 8. संचारण और वितरण हानि से आप क्या समझते हैं? उन्हें कैसे कम किया जा सकता है?

उत्तर : ऊर्जा के उत्पादन स्थान तथा उपयोग स्थान के बीच में अंतर होता है। विद्युत का उत्पादन स्थान से उपयोग स्थान पर स्थानांतरित होता है। इस प्रक्रिया में बहुत-सी विद्युत बर्बाद हो जाती है। विद्युत चोरी भी एक समस्या है जिसे नियंत्रित नहीं किया गया है। इन्हें संचारण और वितरण हानि कहा जाता है। भारत में 23% बिजली जो उत्पादित की जाती है, वह संचारण और वितरण में बर्बाद हो जाती है। इसे निम्नलिखित विधियों से रोका जा सकता है।

(क) कंडक्टर्स का उचित आकार

(ख) उचित लोड प्रबंधन

(ग) मीटर पूर्ति

(घ) वितरण कार्य का निजीकरण

(ङ) ऊर्जा अंकेक्षण का आयोजन

प्रश्न 9. ऊर्जा के विभिन्न गैर-व्यावसायिक स्रोत क्या हैं?

उत्तर :

(क) गोबर के उपले

(ख) कृषि अवशिष्ट

(ग) जलाऊ लकड़ी।

प्रश्न 10. इस कथन को सही सिद्ध कीजिए कि ऊर्जा के पुर्ननवीनीकृत स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा संकट दूर किया जा सकता है।

उत्तर : अर्थव्यवस्था में एक ऊर्जा संकट है। ऊर्जा की माँग इसकी आपूर्ति की तुलना में कहीं अधिक है। इसे ऊर्जा के पुनर्नवीनीकृत स्रोतों के इस्तेमाल से दूर किया जा सकता है। सरकार को पन विद्युत और पवन ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। बायो गैस उत्पादन कार्यक्रम को प्रोत्साहन किया गया है। यदि हम सौर ऊर्जा को उपयोग करने में सक्षम हों तो ऊर्जा संकट को दूर किया। जा सकता है। भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जिसमें सौर ऊर्जा की उच्च क्षमता है।

प्रश्न 11. पिछले वर्षों के दौरान ऊर्जा के उपभोग प्रतिमानों में कैसे परिवर्तन आया है?

उत्तर: ऊर्जा के उपभोग प्रतिमान यह दर्शाते हैं कि ऊर्जा का कितना प्रतिशत किस क्षेत्रक द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। घरेलू, कृषि, उद्योग आदि। ऊर्जा के उपभोग प्रतिमान समय प्रति समय परिवर्तित होते रहते हैं।

(क) ऊर्जा के व्यावसायिक स्रोत वर्तमान समय में भारत में ऊर्जा के कुल उपभोग का 65% व्यावसायिक ऊर्जा से पूरा होता है। इसमें सर्वाधिक अंश कोयला की है जो 55% है। उसके बाद तेल (31%) प्राकृतिक गैस (11%) और, जल ऊर्जा (3%) शामिल हैं।

(ख) ऊर्जा के गैर-व्यावसायिक स्रोत- इसमें जलाऊ लकड़ी, गाय का गोबर, कृषि का कूड़ा-कचरा आदि स्त्रोत शामिल हैं, जिसका कुल ऊर्जा उपयोग में 30% से अधिक हिस्सा है।

(ग) व्यावसायिक ऊर्जा के उपयोग की क्षेत्रकवार पद्धति 1953-54 में परिवहन क्षेत्रक व्यावसायिक ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता था। लेकिन परिवहन क्षेत्रक के अंश में लगातार गिरावट आई है। 1953-54 से 1996-97 के दौरान परिवारों के हिस्से में 10 से 12% की, कृषि में 1% से 9% की, उद्योग में 40% से 42% की तथा अन्य में 5% से 15% की वृद्धि आई है जबकि परिवहन का हिस्सा 44% से कम होकर 22% रह गया।

प्रश्न 12. ऊर्जा के उपभोग और आर्थिक संवृद्धि की दरें कैसे परस्पर संबंधित हैं?

उत्तर: जैसे जैसे एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक संवृद्धि दर में वृद्धि बढ़ती है वैसे-वैसे ऊर्जा का उपभोग भी बढ़ता है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि आर्थिक संवृद्धि दर में वृद्धि से लोगों की आय बँट जाती है। जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं और परिवारों के साथ सेवाओं का उपभोग बढ़ जाता है। इन वस्तुओं और सेवाओं। ही उद्योगों में लोगों की आय का उत्पादन उद्योगों में होता है। जिससे ऊर्जा के उपभोग में ऊर्जा की खपत में वृद्धि वृद्धि हो जाती है। यह एक प्रक्रिया है इसे नीचे दि, गए में वृद्धि चित्र में समझाया गया है।

प्रश्न 13. भारत में विद्युत क्षेत्रक किन समस्याओं का सामना कर रहा है?

उत्तर : भारत में विद्युत क्षेत्रक के समक्ष कई प्रकार की वस्तुओं, सेवाओं समस्याएँ हैं उनके उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक

(क) भारत की वर्तमान बिजली उत्पादन क्षमता में वृद्धि वस्तुओं की सात प्रतिशत की प्रतिवर्ष आर्थिक क्षमता अभिवृद्धि के लिए माँग में वृद्धि पर्याप्त नहीं है। 2000-2012 के बीच में बिजली की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए भारत को 1 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन करने की नई क्षमता की आवश्यकता होगी।

(ख) राज्य विद्युत बोर्ड जो विद्युत वितरण करते हैं उनकी हानि 500 करोड़ से ज्यादा है जिसका मुख्य कारण संप्रेक्षण तथा वितरण हानि है। अनेक क्षेत्रों में बिजली की चोरी होती है जिससे राज्य विद्युत निगमों को ओर भी नुकसान होता है।

(ग) बिजली के क्षेत्र में निजी क्षेत्रक की भूमिका बहुत कम है। विदेशी निवेश का भी यही हाल है।

(घ) भारतीय जनता में लंबे समय तक बिजली गुल रहने से और बिजली की ऊँची दरों से असंतोष है।

(ङ) उत्पादन तथा वितरण दोनों में अनुचित कीमतें तथा अकार्यकुशलता भी एक समस्या है।

प्रश्न 14. भारत में ऊर्जा संकटे से निपटने के लिए किए गए उपायों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर : भारत में बिजली की आपूर्ति में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए अधिक सार्वजनिक निवेश, बेहतर अनुसंधान और विकास के प्रयासों अन्वेषण, तकनीकी नवाचार और अक्षय स्रोतों का प्रयोग करने की जरूरत है। परंतु सरकार ने अलग तरह के सुधार किए हैं।

(क) विद्युत क्षेत्रक का निजीकरण वर्तमान में, बिजली का वितरण रिलायंस एनर्जी लिमिटेड, राजधानी पॉवर लिमिटेड, यमुना पॉवर लिमिटेड तथा टाटा पॉवर लिमिटेड को दे दिया गया है। इनसे बेहतर परिणाम अपेक्षित थे परंतु इनका प्रदर्शन असंतोषजनक रहा।

(ख) विद्युत कीमतों में वृद्धि बिजली दरों में निरंतर वृद्धि की गई है। इससे लोगों के बिजली बिलों में वृद्धि हुई है जिससे जनता में असंतुष्टता बढ़ी है और अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति हुआ है।

प्रश्न 15. हमारे देश की जनता के स्वास्थ्य की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर: हमारे देश की जनता के स्वास्थ्य की कुछ अजीब विशेषताएँ हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं

(क) भारत में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लिंग असमानता के कारण स्त्रियों के स्वास्थ्य की बहुतायत अवहेलना की गई है

(ख) भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों की बहुत अनदेखा किया गया है।

(ग) अधिकतर स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्रक द्वारा प्रदान की जा रही हैं जो निर्धनों के लिए दयनीय नहीं है। अतः 50% से अधिक लोगों तक एक अच्छी स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच रही है।

(घ) भारत में विभिन्न स्वास्थ्य सूचकों के अनुसार स्वास्थ्य स्थिति का स्तर अति निम्न है जो शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, जीवने प्रत्याशा आदि से प्रत्यक्ष है। भारत में शिशु मृत्यु दर 66 प्रति 1000 शिशु है, केवल 43% बच्चे पूर्णतः प्रतिरक्षित हैं, सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.4% स्वास्थ्य आधारित संरचना पर खर्च किया जा रहा है जो अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है।

प्रश्न 16. रोग वैश्विक भार (GDB) क्या है?

उत्तर: रोग वैश्विक भार एक सूचक है जो उन लोगों की संख्या दर्शाता है जो किसी विशेष रोग के कारण असमय मर जाते हैं या किसी रोग के कारण जीवन असमर्थता में बिताते हैं।

प्रश्न 17. हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ क्या हैं?

उत्तर: हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रमुख कमियाँ इस प्रकार हैं

(क) स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का असमान वितरण भारत के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में एक विस्तृत खाई है। ये सेवाएँ शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं।

(ख) नई-नई तरह की बीमारियाँ एक ओर वे बीमारियाँ, जो एक समय करोड़ों लोगों की जान ले रही थी जैसे-हैजा, प्लेगए अतिसार आदि पर काबू पा लिया गया है। परंतु बहुत-सी नई बीमारियाँ जैसे एड्स, एच. आई. वी., डेंगू आज करोड़ों लोगों को मार रही है।

(ग) निजी क्षेत्रक का प्रभुत्व स्वास्थ्य आधारिक संरचना में निजी क्षेत्र का प्रमुख है। यह सभी को ज्ञात है कि निजी क्षेत्र केवल लाभ के उद्देश्य से कार्य करता है। बर्हिरोगी तथा 50% अंतः रोगी निजी क्षेत्र में इलाज करा रहे हैं। इससे समाज के कमजोर वर्ग पर बहुत बोझ पड़ता है।

(घ) अकुशल प्रबंधन स्वास्थ्य सेवाओं के संस्थाओं की संख्या तथा स्वास्थ्य कमियों की संख्या में एक विस्तृत खाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति ओर भी बदतर है।

(ङ) दयनीय जन-स्वास्थ्य- भारत में निरक्षरता के कारण लोग सामान्य बीमारियों तथा उनके कारणों से अनभिज्ञ है। बहुत-सी बीमारियों को काले जादू के रूप में लिया जाता है। शुरुआती वर्षों में कई ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वासों के कारण लोगों ने अपने बच्चों को पोलियो दवा तक पिलाने से इंकार कर दिया। बहुत-सी बीमारियाँ जो संक्रामक नहीं हैं, उन्हें संक्रामक माना जाता है। स्वास्थ्य विषयों में सूचना का ये अभाव भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में एक चिंता का विषय है।

प्रश्न 18. महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिंता का विषय कैसे बन गया है?

उत्तर: महिलाओं का स्वास्थ्य गहरी चिंता का विषय बन गया है क्योंकि-

(क) एक महिला का स्वास्थ्य पूरे परिवार के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ महिला ही एक स्वस्थ परिवार को जन्म दे सकती है।

(ख) भारत में भ्रूण हत्या की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार बालिका लिंग अनुपात 944 बालिका संतान प्रति हजार बालक संतान हैं। समग्र लिंग अनुपात 2001 की जनगणना की तुलना में 2011 की जनगणना में 0.75% से बढ़ गया

(ग) 15-40 के आयु समूह में 50% से अधिक महिलाएँ रक्ताभाव तथा रक्तक्षीणता से ग्रसित हैं। यह बीमारी लौह न्यूनता के कारण होती है जिसके परिणामस्वरूप यह 9% महिलाओं की मृत्यु का कारण है।

(घ) गर्भपात भारत में स्त्रियों की अस्वस्थता और मृत्यु का एक बहुत बड़ा कारण है।

प्रश्न 19. सार्वजनिक स्वास्थ्य का अर्थ बतलाइए। राज्य द्वारा रोगों पर नियंत्रण के लिए उठा, गए प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बताइए।

उत्तर: एक समाज के समग्र स्वास्थ्य स्तर को सार्वजनिक स्वास्थ्य की संज्ञा दी जाती है। विशेषज्ञों का यह मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की एक बड़ी भूमिका हो सकती है। राज्य द्वारा रोगों पर नियंत्रण के लिए उठा, गए प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम इस प्रकार हैं।

(क) संचार साधनों के द्वारा एड्स, कैंसर, क्षयरोग जैसी बीमारियों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना- एक समाज में स्वास्थ्य स्तर में सुधार के लिए लोगों में स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर जागरूकता उत्पन्न करना बहुत आवश्यक है। उन्हें स्वच्छ जल के महत्त्व, स्वच्छता सुविधाओं के महत्त्व, सामान्य बीमारियों के लक्षणों, दवाओं की उपलब्धता और बीमारी के मूल कारणों का ज्ञान होना अति आवश्यक है।

(ख) पल्स पोलियो अभियान का आयोजन पल्स पोलियो को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार लंबे समय से पल्स पोलियो अभियान का आयोजन कर रही है।

(ग) स्वच्छ जल एवं स्वच्छता सुविधाओं का प्रावधान यदि हम स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली 'हम सभी को सुधारना चाहते। हैं तो स्वच्छ जल तथा स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराने की अति आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार द्वारा कई कदम उठा, गए हैं। हालाँकि वे संतोषजनक से बहुत कम हैं।

(घ) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सरकार ने जन स्वास्थ्य में सुधार के लिए सभी गाँवों में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण किया है।

(ङ) निजी-सार्वजनिक भागीदारी सरकार ने निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में भागीदारी नीति को अपनाया है। यह औषधियों और स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता, गुणवत्ता और वहनता सुनिश्चित करेगा।

(च) सरकार द्वारा चलित अस्पतालों तथा दवाखानों द्वारा सभी बच्चों के लिए मुफ्त प्रतिरक्षण- सरकार ने सभी बच्चों के लिए सरकारी अस्पतालों, दवाखानों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त प्रतिरक्षण की व्यवस्था की है।

प्रश्न 20. भारतीय चिकित्सा की छह प्रणालियों में भेद कीजिए।

उत्तर: भारतीय चिकित्सा प्रणाली को उनके अंग्रेजी नामों के आधार पर आयुष (AYUSH) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है

1. आयुर्वेद

2. योग

3. यूनानी

4. प्राकृतिक चिकित्सा

5. सिद्ध

6. होम्योपैथी

प्रश्न 21. हम स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता कैसे बढ़ा सकते हैं?

उत्तर : हम, स्वास्थ्य सुविधा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता निम्नलिखित विधियों से बढ़ा सकते हैं।

(क) स्वास्थ्य सेवाओं का शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकरण भारत में शहरी एवं ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच एक गहरी खाई है। यदि हम इस बढ़ती खाई को अनदेखा करते रहे, तो हमें अपनी अर्थव्यवस्था की मानव पूँजी को खोने का जोखिम उठाना होगा तथा दीर्घकाल में इसके दुष्प्रभावों का सामना करना होगा।

(ख) सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाएँ सर्व को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर प्रयास- सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय बढ़ाना चाहि, ताकि स्वास्थ्य सेवाएँ अमीर, गरीब सभी को समान रूप से उपलब्ध हो सकें। सर्व को प्राथमिक सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए सरकार को सेवाओं की पहुँच तथा वहनता पर विशेष ध्यान देना होगा।

(ग) सामाजिक आयुर्विज्ञान पर ध्यान हमें सामाजिक आयुर्विज्ञान जैसे स्वच्छ जल, सामान्य बीमारियों के प्रति जागरूकता आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

(घ) दूरसंचार तथा आई.टी. क्षेत्र की भूमिका स्वास्थ्य कार्यक्रमों की कुशलता बढ़ाने में दूरसंचार तथा सूचना प्रौद्योगिकी विशेष योगदान दे सकती हैं।

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

Group-B भारतीय अर्थव्यवस्था

1. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

2. भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)

3. उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा

4. निर्धनता

5. भारत में मानव पूँजी का निर्माण

6. ग्रामीण विकास

7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे

8. आधारिक संरचना

9. पर्यावरण और धारणीय विकास

10. भारत और उसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव

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