11th 9. पर्यावरण और धारणीय विकास Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

11th 9. पर्यावरण और धारणीय विकास Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

11th 9. पर्यावरण और धारणीय विकास Indian Economy JCERT/JAC Reference Book

पर्यावरण : अर्थ व परिभाषा (Environment: Meaning and definition)

पर्यावरण का तात्पर्य उस समूची भौतिक एवं जैविक व्यवस्था से है जिसमें जीवधारी रहते हैं, बढ़ते पनपते हैं और अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं।

पारिभाषिक रूप में पर्यावरण शब्द से आशय उस समस्त भौतिक पर्यावरण एवं जैविक पर्यावरण से है जिसमें जीवधारी निवास करते हैं।

पर्यावरण के कार्य एवं भूमिका (Functions and Significance of Environment)

(1) पर्यावरण संसाधनों की पूर्ति करता है (Environmentsupplies Resources)

पर्यावरण दोनों प्रकार के संसाधनों नवीनीकरणीय (Renewable) तथा गैर-नवीनीकरणीय (Non - renewable) की आपूर्ति करता है।

नवीनीकरणीय एवं गैर-नवीनीकरणीय संसाधन (Renewable and Non-Renewable Resources)

(क) नवीनीकरणीय साधन इनसे अभिप्राय उन संसाधनों से है जिनका उपयोग संसाधन के क्षय या समाप्त होने की आशंका के बिना किया जा सकता है। उदाहरण वन, समुद्री जन्तु।

(ख) गैर-नवीनीकरणीय साधन इनसे अभिप्राय उन संसाधनों से है जो निष्कर्षण और उपयोग से समाप्त हो जाते हैं। उदाहरण जीवाश्म ईंधन।

(2) पर्यावरण जीवन धारण में सहायक है (Environment System Life)

पर्यावरण के तत्व, जैसे वायु, जल, सूर्य, भूमि आदि जीवनयापन के लिए आवश्यक तत्व हैं। इनकी अनुपस्थिति में जीवन नहीं चल सकता।

(3) पर्यावरण अपशिष्टों को आत्मसात् करता है (EnvironmentAssimilates Waste)

उत्पादन एवं उपभोग की क्रियाएँ अपशिष्ट उत्पन्न करती हैं जिनमें कचरा प्रमुख है पर्यावरण इस कचरे को अंगीकार करता है।

(4) पर्यावरण जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता (Environment Enhances Quality of Life)

वातावरण में नदियाँ, समुद्र, पर्वत, रेगिस्तान आदि सम्मिलित हैं जहाँ मानव आनन्द उठाता है। इससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है।

पर्यावरण के तत्व (Elements of Environment)

पर्यावरण के तत्वों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

I. भौतिक पर्यावरण (Physical Environment),

II. जैविक पर्यावरण (Biological Environment) |

I. भौतिक पर्यावरण (Physical Environment)

इसमें भूमि, जल, मौसम, पर्वत, खनिज आदि निर्जीव तत्वों को सम्मिलित कियाजाता है जो हमें प्रकृति से निःशुल्क उपहारस्वरूप प्राप्त होते हैं।

II. जैविक पर्यावरण (Biological Environment)

इसे जीवित पर्यावरण भी कहा जाता है। इस समूह में चार वर्ग हैं। (i) मानव, (ii) पशु-पक्षी, (iii) पेड़-पौधे तथा (iv) सूक्ष्म जीवधारी।

भारतवर्ष के पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 ने पर्यावरण के उपरोक्त दो अंगों को सम्मिलित करते हुए पर्यावरण की एक व्यापक परिभाषा इस प्रकार दी है

"पर्यावरण के अन्तर्गत जल, वायु और भूमि को तथा जल, भूमि, मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों, पौधों, सूक्ष्म जीवों तथासम्पत्ति में पाये जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध को शामिल किया जाता है।"

वैश्विक उष्णता (Global Warming)

वैश्विक उष्णता औद्योगिकी क्रांति से ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के परिणामस्वरूप पृथ्वी के निचले वायुमंडल के औसत तापमान में क्रमिक बढ़ोत्तरी है।

वैश्विक उष्णता के कारण-

(i) कोयला व पेट्रोल उत्पाद का प्रज्वलन ।

(ii) वन विनाश।

(iii) जानवरों के अपशिष्टों से निकलने वाली मिथेन गैस।

(iv) पशुओं की संख्या में वृद्धि।

वैश्विक उष्णता के प्रभाव-

(i) ध्रुवीय हिम का पिघलना जिसके परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि और बाढ़ का प्रकोप।

(ii) हिम पिघलाव पर निर्भर पेयजल की आपूर्ति में पारिस्थितिक असंतुलन।

(iii) प्रजातियों की विलुप्ति।

(iv) कटिबंधीय तूफानों की बारम्बारता और रोगियों के प्रभाव में बढ़ोत्तरी।

पर्यावरण अवनति या अवनयन (Environmental Degradation)

पर्यावरण अवनति का अर्थ (Meaning of Environmental Degradation)

पर्यावरण अवनति या अवनयन एक व्यापक पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है, मनुष्य के क्रिया-कलापों द्वारा पर्यावरण में संघटकों की आधारभूत संरचना में प्रतिकूल परिवर्तनों के कारण पर्यावरण की गुणवत्ता में इतना अधिक ह्रास हो जाना है कि वह विभिन्न जीवों (पौधों तथा जन्तुओं) के लिए सामान्य रूप से तथा मनुष्य के लिए मुख्य रूप से घातक हो जाता है।

पर्यावरण अवनति व पर्यावरण प्रदूषण में अन्तर (Difference between Environmental Degradation and Environmental Pollution)

सामान्य रूप में जनसाधारण के लिए पर्यावरण अवनति या अवनयन तथा पर्यावरण प्रदूषण समानार्थी होते हैं क्योंकि दोनों का सम्बन्ध पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास से होता है किन्तु इनके कारक (Causative Factors) तथा इनके प्रभाव के क्षेत्र एवं मापक के आधार पर इनमें अन्तर स्थापित किया जा सकता है। पर्यावरणीय अवनति या अवनयन एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत प्राकृतिक एवं मानवजनित दोनों कारणों से स्थानीय, प्रादेशिक एवं विश्व स्तरों पर पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट को सम्मिलित किया जाता है।

इसके विपरीत पर्यावरण प्रदूषण के अन्तर्गत मानवीय कारणों द्वारा स्थानीय स्तर पर पर्यावरण की गुणवत्ता में हास को सम्मिलित किया जाता है।

स्पष्टतः पर्यावरण प्रदूषण पर्यावरण अवनति या अवनयन का ही एक अंग है।

पर्यावरण अवनति के रूप (Forms Environmental Degradation)

प्राकृतिक साधनों का अवक्रमण एक अर्थव्यवस्था के लिए गम्भीर समस्याएं पैदा कर देता है। यह अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता को कम कर देता है और इस प्रकार विकास के आधार को ही खिसका देता है। वैश्विक उष्णता में अधिकांश कारक मानव उत्प्रेरित हैं। यह मानव द्वारा वन विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन यहाँ हम अवक्रमण के दो मुख्य रूपों का अध्ययन करेंगे-

(1) वन विनाश (Deforestation) एवं

(2) भूमि की अवनति या अवक्रमण (Land Degradation)

(1) वन-विनाश (Deforestation)

प्राचीन काल से भारत में वनों को अत्यधिक महत्व दिया जाता रहा है। दुर्भाग्यवश जनसंख्या वृद्धि एवं अज्ञानता के कारण वर्तमान में वनों की अन्धाधुन्ध कटाई की जा रही है।

वनोंमूलन प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effects of Deforestation)

वनोन्मूलन के प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(i) उपजाऊ भूमि का कटाव, बाढ़, सूखा, कम वर्षा वन विनाशके ही परिणाम हैं।

(ii) वन-विनाश के कारण पानी की उपलब्धता कम हो गई है।

(iii) वनों के अभाव में बाढ़ नियन्त्रण नहीं हो पाता है।

(iv) वनों के विनाश से भूस्खलन की मात्रा बढ़ जाती है।

चिपको एवं अप्पिको आन्दोलन (Chipko and Appicco Movement)

चिपको आन्दोलन हिमालय पर्वत क्षेत्र में वनों की कटाई रोकने केलिए सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में किया गया। कर्नाटक में एक ऐसे ही आन्दोलन ने एक दूसरा नाम लिया। अप्पिको जिसका अर्थ लपट जाना। 8 सितम्बर, 1983 को सिरसी जिले के सलकानी में वृक्ष काटे जा रहे थे। तब 160 स्त्री-पुरुष और बच्चों ने पेड़ों को बाँहों में भर लिया और लकड़ी काटने वालों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। वे अगले 6 सप्ताह तक वन की पहरेदारी करते रहे। इन स्वयंसेवकों ने वृक्षों को तभी छोड़ा जब वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वृक्ष वैज्ञानिक आधार पर और जिले की वन सम्बन्धी कार्य योजना के तहत काटे जायेंगे।

(2) भूमि की अवनति या अवनति या अवक्रमण (Land Degradation)

भूमि की अवनति से आशय भूमि के उपजाऊपन की क्षति से है। भूमि एक गैर-पुनर्नवीनीकरणीय संसाधन है और यह सभी प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं का केन्द्र है। वर्षों से देश की भू-सतह विभिन्न प्रकार के अवक्रमणों का शिकार होती रही है।

भारत में भूमि का अवक्रमण कई प्रकार से होता है। ये अवक्रमण इसे कृषि के अयोग्य बना रहे हैं। हमारे देश में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा भूमि गम्भीर अवक्रमण की चपेट में है।

भूमि अवनति के कारण (Causes for Land Degradation)

भारत में भूमि की अवनति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) बाढ़ से भूमि का कटाव व जल प्लावन ।

(2) भू-अपरदन - जल तथा वायु के कारण भूमि की ऊपरी सतह का कटाव

(3) वनों का अधिक मात्रा में कटाव।

(4) अकाल से घास व पौधे सूख जाते हैं।

(5) समुद्री जल से आप्लावन के कारण क्षारिता व खारापन।

(6) घाटियों एवं दरों का अतिक्रमण।

पर्यावरण अवनति के कारण (Causes of Environmental Degradation)

भारतवर्ष में पर्यावरण अवनति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion)- जनसंख्या वृद्धि के तीव्र दबाव के फलस्वरूप प्राकृतिक स्रोतों, यथा भूमि, जल, वन, वायु, खनिज आदि का अनियन्त्रित एवं विकृत उपयोग किये जाने के कारण पर्यावरण संकट एवं प्रदूषण की समस्या भयावह रूप धारण कर रही है।

(2) तीव्र औद्योगिक विकास (Rapid Industrial Growth)- तीव्र औद्योगिक विकास से लोगों का जीवन स्तर तो बढ़ा किन्तु पर्यावरण को अत्यधिक हानि हुई है। औद्योगीकरण के कारण वायुप्रदूषण, जल प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हुई है।

(3) तीव्र नगरीकरण (Rapid Urbanisation)- स्वतन्त्रता के बाद भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति में काफी वृद्धि हुई है। तीव्र नगरीकरण के कारण कृषि क्षेत्र पर अतिक्रमण, गंदी बस्तियाँ, जन सुविधाओं दबाव अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। नगर प्रदूषण के केन्द्र बनते जा रहे हैं और इनका जैसे-जैसे विस्तार हो रहा है पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है।

(4) निर्धनता (Poverty) भारतवर्ष में निर्धनता रेखा से नीचे केलोगों की संख्या अत्यधिक है। ये लोग अपने जीवन निर्वाह के लिए वनोंकी कटाई करते हैं तथा अनेक प्रकार की प्राकृतिक पूँजी का शोषण करते हैं।

(5) रासायनिक उर्वरकों का उपयोग (Use of Chemical Fertilizers) हरित क्रान्ति के कारण कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटाणुनाशक दवाइयों का उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है जिसके कारण भी प्रदूषण में वृद्धि हुई है।

(6) परिवहन के साधनों का विस्तार (Expansion of Means of Transport) औद्योगीकरण के फलस्वरूप जल, थल एवं वायु तीनों ही मार्गों में परिवहनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन प्रत्येक मार्गों के परिवहनों ने धुएँ के द्वारा हमारे पर्यावरण को बहुत तेजी से प्रदूषित किया है।

(7) नागरिक मानदण्डों का त्याग (Discard of Civic Norms) भारतवर्ष में लोगों में नागरिक मानदण्डों के प्रति जागरूकता भी बहुत कम है। उदाहरण के लिए, नालियों की सफाई नहीं करना, कहीं भी कूड़ा फेंक देना, लाउडस्पीकरों का अधिक उपयोग करना आदि। फलतः प्रदूषण फैलता है।

ओजोन अवक्षय (Ozone Depletion)

ओजोन परत (Ozone Layer) ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य की रेडियो एक्टिव किरणों से बचाती है।

ओजोन अपक्षय (Ozone Depletion) समताप मण्डल में ओजोन की मात्रा की कमी होना ओजोन अपक्षय कहलाता है। इसकी कमी से सूर्य की रेडियो एक्टिव किरणें पृथ्वी तक आ जाती हैं।

ओजोन अपक्षय के कारण (Causes of Ozone Depletion) ओजोन अपक्षय की समस्या का कारण समतापमण्डल में क्लोरीन और ब्रोमीन के उच्च स्तर हैं। इन यौगिकों के मूल क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFC) जिनका प्रयोग रेफ्रिजरेटर और एयरकण्डीशनर को ठण्डा रखने वाले पदार्थ या एरासोलप्रोपेलेन्ट्स तथा अग्निशामको में प्रयुक्त किए जाने वाले ब्रोमोफ्लोरोकार्बन्स के रूप में होता है।

ओजोन अपक्षय के प्रभाव (Effects of Ozone Depletion) ओजोन अपक्षय के दीर्घकालीन प्रभाव निम्नलिखित हैं :

(i) इससे मनुष्यों में त्वचा का कैंसर हो जाता है।

(ii) यह पादप प्लवक तथा अन्य जलीय जीवाश्म को कम करता है।

(iii) यह स्थलीय पौधों की संवृद्धि को प्रभावित करता है।

मांट्रियल प्रोटोकाल (Montreal Protocol) मांट्रियल प्रोटोकॉल एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि है जो ओजोन अपक्षय के लिए उत्तरदायी माने जाने वाले तत्वों के उत्पादन को बन्द करके। ओजोन परत की रक्षा के लिए बनाया गया है।

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या (Problem of Environment Pollution)

पर्यावरण में दूषित पदार्थों की उपस्थिति को पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। औद्योगीकरण, शहरीकरण व परमाणु ऊर्जा आदि के द्वारा हम लाभान्वित अवश्य हुए हैं परन्तु इससे पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हुई है।

प्रदूषण के प्रकार (Kinds of Pollution)

प्रदूषण के प्रमुख प्रकार हैं। - I. वायु प्रदूषण, ॥. जल प्रदूषण एवं ।।।. ध्वनि प्रदूषण।

1. वायु प्रदूषण (Air Pollution) वायु प्रदूषण के अन्तर्गत प्राकृतिक व मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्पन्न विभिन्न प्रदूषण वायु में इस सीमा तक मिश्रित कर दिये जाते हैं कि उस वायु से मानव व अन्य जीव-जन्तुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है वायु की गुणवत्ता में गिरावट से ही मानव अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो गया है।

I. उद्योगों द्वारा उत्सर्जित विभिन्न गैसें, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइ-ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन आदि।

2 कोयला व पेट्रोलियम से उत्पन्न धुआँ, कण, गैसें आदि तत्व।

3. वाहनों से निकले विभिन्न तत्वों, जैसे सीसा, नाइट्रोजन, ऑक्साइड, एथिलीन आदि।

4. परमाणु विस्फोट से निकले पदार्थ व रेडियो धर्मिता।

II. जल प्रदूषण (Water Pollution) जल प्रदूषण को पानी में पाये जाने वाले उन सब अजैव, जैव, जैविकीय, रेडियोधर्मी अथवा स्थूल बाह्य पदार्थों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो इसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। इस प्रकार यह पानी में इस प्रकार के अवांछनीय परिवर्तन कर देता है जिससे यह इसके स्वाभाविक प्रयोगकर्ताओं के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।

जल प्रदूषण के स्रोत (Sources of Water Pollution) जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-

1. उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों को नदियों व जलाशयों में बहाना।

2. नालियां तथा नालों के माध्यम से नदियों में मल विसर्जन ।

3. कृषि में छिड़की कीटनाशक पदार्थ व दवाइयाँ मिट्टी के साथ बहकर नदियों में मिल जाना।

4. थरमल पावर हाउस द्वारा छोड़ी राख का पानी में मिल जाना।

5. नदियों में प्रवाहित किए जाने वाले मनुष्या एवं पशुओं के शव नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं।

III. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) उच्च तीव्रता वाली ध्वनि अर्थात् अवांछित शोर के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशान्ति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। स्पष्ट है कि आवाज ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख प्रदूषक (Pollutant) है। ध्वनि की तीव्रता को डेसिबल में मापा जाता है। 50 डेसीबल से अधिक ध्वनि तीव्रता होने पर कानों पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution)

औद्योगीकरण तथा शहरीकरण के साथ-साथ जीवन में कृत्रिमता आयी में ध्वनि वृद्धि के प्रमुख कारण हैं। आधुनिक वैज्ञानिक सभ्यता में ध्वनि है। सुख-सुविधा के विभिन्न कृत्रिम साधन हमारे आस-पास के वातावरण

प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं

(i) यातायात के विभिन्न साधन

जैसे मोटर कार, मोटर साइकिल, स्कूटर, बस, ट्रक, रेल, हवाई जहाज इत्यादि।

(ii) कल-कारखानों में प्रयुक्त बड़ी-बड़ी मशीनें व यन्त्र आदि।

(iii) तेज आवाज में संगीत, जैसे रॉक-एन-रोल, डिस्कोथेक का संगीत, लाउडस्पीकर आदि।

धारणीय (या पोषणीय) आर्थिक विकास एवं पर्यावरण (SUSTAINABLE ECONOMIC DEVELOPMENT AND ENVIRONMENT)

आर्थिक विकास को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके दौरान देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि होती है। उत्पादन में वृद्धि के परिणामस्वरूप स्वाभाविक ही है कि हमारी प्राकृतिक सम्पदा कम होती जाती है। उत्पादन की वर्तमान टेक्नॉलॉजी (Technology) प्राकृतिक साधनों का बड़ी निर्दयता से शोषण कर रही है। यह दोनों ही प्रकार के प्राकृतिक साधनों का उपयोग कर रही है गैर-पुनरुत्पादनीय साधन (Non-renewable Resources), जैसे कोयला, गैस और पेट्रोलियम और पुनरुत्पादनीय साधन (Renewable Resources) जैसे वन, जल, सूर्य का प्रकाश आदि। यदि इन प्राकृतिक संसाधनों का इसी प्रकार प्रयोग होता रहा तो भावी पीढ़ी को इन प्राकृतिक संसाधनों से वंचित होना पड़ेगा। यही नहीं, वर्तमान उत्पादन तकनीक ने पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution) की गम्भीर समस्या को जन्म दिया है।

अनेक उत्पादन क्रियाएं जल, वायु एवं भूमि को प्रदूषित कर रही हैं जो आज एक चिन्ता का विषय है। इन सब समस्याओं के कारण विकास की वर्तमान पद्धति व प्रक्रिया को जारी रखना उचित नहीं कहा जा सकता है। इसके विकल्प के रूप में धारणीय अथवा सतत् विकास की अवधारणा का जन्म हुआ।

सतत् विकास की अवधारणा का प्रतिपादन सबसे पहले 1987 में पर्यावरण एवं विकास के लिए विश्व आयोग में प्रकाशित 'Our Common Future' नामक बुण्डलेण्ड रिपोर्ट में किया गया था।

अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definition)

धारणीय अथवा सतत् विकास का शाब्दिक अर्थ है एक ऐसा विकास जो जारी रह सके, टिकाऊ बना रह सके। धारणीय अथवा सतत् विकास वह प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक, राजकोषीय, कृषि व उद्योग क्षेत्रों में विकास नीतियों का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है जिससे विकास को आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरण की दृष्टि से कायम रखा जा सके। धारणीय अथवा सतत् विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी के बल्कि भावी पीढ़ी के विकास को ध्यान में रखा जाता है। सारभूत बात यह कि वर्तमान पीढ़ी का विकास भावी पीढ़ी के अविकास की लागत पर नहीं होना चाहिए। इस प्रकार सतत् विकास भावी विकास को संरक्षण पूर्तिकर्ता विकास से समझौता किये बिना करता है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि धारणीय अथवा सतत् विकास आर्थिक विकास की वह प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक साधनों तथा पर्यावरण को बिना हानि पहुँचा, वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों दोनों के जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) को बनाये रखना है।

धारणीय अथवा सतत् विकास की विशेषताएँ (Features of Sustainable Development)

सतत् विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. मानव को प्रमुख स्थान (Main Importance to Man) - सतत् विकास की प्रक्रिया में व्यक्तियों को प्रमुख स्थान दिया गया है। इस प्रकार सतत् विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति भावी विकास से समझौता किये बिना ही करता है। इस प्रकार सतत् विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास का भी ध्यान रखा जाता है।

2 समानता पर जोर (Emphasis on Equality)- यह वितरणात्मक-अन्तर्पीढ़ी (विभिन्न पीढ़ियों के बीच) और अन्तर्पीढ़ी (एक ही पीढ़ी के विभिन्न वर्गों के बीच) समानता पर जोर देती है। सतत् विकास समानता तथा सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस संकल्पना में प्रत्येक व्यक्ति को न केवल कुछ विशेषाधिकार व्यक्तियों को उचित अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

3. मानव विकास (Human Development)- सतत् विकास में गरीबी को कम करने पर, रोजगार पर, सामाजिक एकीकरण, पर्यावरणके नवीनीकरण पर जोर देने के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र, जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर अधिक विनियोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया जाता है।

4. पर्यावरण संरक्षण (Environmental Conservation)- विकास की लागत, विशेषकर पर्यावरण-हानि की लागत के बारे में ध्यान दिया जाना चाहिए। अतः पर्यावरण के संरक्षण की बहुत बड़ी आवश्यकता है। अतः सतत् विकास प्रकृति तथा वातावरण के संरक्षण के अनुकूल होता है।

5. गुणात्मक सुधार (Qualitative Improvement)- सतत् विकास में पर्यावरण को केवल संरक्षित नहीं किया जाता है बल्कि उसमें गुणात्मक सुधार के भी प्रयास किये जाते हैं। वस्तुतः सतत् विकास में पर्यावरणीय घटकों, जैसे वायु, जल एवं भूमि की गुणवत्ता अक्षुण्ण बनी रहती है तथा ये वर्तमान व भावी पीढ़ियों की सामूहिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं।

धारणीय अथवा सतत् विकास की शर्ते (Conditions for Sustainable Development)

धारणीय अथवा सतत् विकास की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित हैं-

1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Natural Resources)- सतत् विकास की पहली शर्त यह है कि देश के गैर- पुनरुत्पादनीय एवं पुनरुत्पादनीय प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए आर्थिक विकास किया जाना चाहिए।

2. प्रदूषण रहित विकास (Pollution Free Development)- उत्पादन की ऐसी विधियों को अपनाया जाना चाहिए, जो पर्यावरण (प्रकृति), व्यक्तियों तथा रोजगार के अनुकूल (Pro-nature, Pro-people and Pro-job) हों। वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण व जल प्रदूषण आदि न्यूनतम सम्भावित स्तर पर होना चाहिए। वस्तुतः सतत् विकास हरित जी. एन. पी. (Green G.N.P.) पर जोर देता है जिसमें प्राकृतिक पूँजी में घिसावट को सम्मिलित किया जाता है।

3. जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि (Increase in Quality of Life) - सतत् विकास में जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु निम्नलिखित कार्यक्रमों पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि दीर्घकालीन वास्तविक प्रति व्यक्ति आय की दर में वृद्धि होने के साथ-साथ लोगों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके।

(i) सामाजिक क्षेत्र, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण आदि।

(ii) मानवीय न्याय, सुरक्षा व रोजगार के अवसरों की उपलब्धता।

(iii) भावी पीढ़ी को संरक्षण।

(iv) आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल विकास नीतियों का अनुपालन।

4. आत्म या स्फूर्ति अवस्था (Take-off Stage)- प्रो. रोस्टोव (Rostov) के अनुसार, सतत् विकास की स्थिति आत्म स्फूर्ति अवस्था (Take-off Stage) को पार करने के पश्चात् ही उत्पन्न होती है।

धारणीय अथवा सतत् विकास की माप हरित राष्ट्रीय आय (Measurement of या हरित लेखांकन Sustainable Development: Green National Income or Green Accounting)

धारणीय अथवा सतत् विकास की माप हरित राष्ट्रीय आय द्वारा की जाती है। हरित राष्ट्रीय आय वह राष्ट्रीय आय है जो शुद्ध राष्ट्रीय आय एवं प्राकृतिक साधनों के शोषण तथा पर्यावरण दूषित होने के परिणामों को ध्यान में रखती है।

हरित राष्ट्रीय आय (Green National Income)

हरित राष्ट्रीय आय शुद्ध राष्ट्रीय आय तथा अर्थात् हरित राष्ट्रीय आय शुद्ध राष्ट्रीय आय प्राकृतिक पूँजी की घिसावट के अन्तर के बराबर होती है प्राकृतिक पूँजी की घिसावट

जहाँ,

शुद्ध राष्ट्रीय आय (Net National Income) एक वर्ष की अवधि में किसी देश के निवासियों द्वारा उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं की बाजार कीमत ।

प्राकृतिक पूँजी घिसावट (Depreciation of Natural Capital) विकास की प्रक्रिया में प्राकृतिक साधनों के निरन्तर उपयोग से उनकी कीमतों में होने वाली कमी। सामान्यतः हरित राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि सतत् विकास का संकेतक है।

धारणीय अथवा सतत् आर्थिक विकास का महत्व (Importance of Sustainable Economic Development)

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर आर्थिक विकास की अवधारणा का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता है -

(1) इसमें वर्तमान पीढ़ी का विकास भावी पीढ़ी के विकास की को बिना क्षति पहुँचा, वर्तमान जनसंख्या के जीवन स्तर में वृद्धि पर लागत पर नहीं किया जाता है अर्थात् इसमें भावी पीढ़ी के जीवन स्तर जोर दिया जाता है।

(2) सतत् विकास की अवधारणा प्राकृतिक पूँजी के स्टॉक के पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों की परिसम्पत्तियों के कुल स्टॉक संरक्षण पर जोर देती है। प्राकृतिक पूँजी स्टॉक से आशय सभी प्रकार से है। इस प्रकार सतत् विकास में भविष्य में इन संसाधनों की कमी की सम्भावना नहीं रहती है।

(3) सतत् आर्थिक विकास में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक न्याय पर जोर दिया जाता है जिससे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

(4) सतत् विकास में ऐसी उत्पादन तकनीकी को अपनाया जाता है जो पर्यावरण के अनुकूल हो। फलतः पर्यावरण प्रदूषण की समस्या नहीं उत्पन्न होती है। संक्षेप में, सतत् आर्थिक विकास के पर्यावरण का संरक्षण होता है।

आर्थिक विकास तथा सतत् विकास में अन्तर (Difference between Economic Development and Sustainable Development)

आर्थिक विकास

सतत् विकास

1. इसका सम्बन्ध वास्तविक राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की दीर्घकालीन वृद्धि से है।

इसका सम्बन्ध वास्तविक प्रति व्यक्तिआय की वृद्धि के साथ-साथ वर्तमान तथा भावी पीढ़ी दोनों के कल्याण से है।

2. इसमें प्रदूषण नियन्त्रण एवं पर्यावरण संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

इसमें प्रदूषण नियन्त्रण एवं पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

3. इस प्रक्रिया में प्राकृतिक साधनों का विदोहन किया जाता है।

इस प्रक्रिया में प्राकृतिक साधनों काभावी पीढ़ी को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से विवेकशील विदोहन किया जाता है।

4. इस प्रक्रिया का सम्बन्ध अल्प विकसित अर्थव्यवस्थओं की समस्याओं से है।

इस प्रक्रिया का सम्बन्ध विकसित एवंअल्प विकसित दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं की समस्याओं से है।

 

सतत् विकास के लिए अपनाई जाने वाली पद्धतियाँ (Strategies to beAdopted for Sustainable Development)

(1) ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों का प्रयोग, जैसे वायु एवं सूर्य ऊर्जा।

(2) साधन अनुकूल तकनीक (Input-efficient Technology) को प्रयोग।

(3) जैविक खेती को प्रोत्साहन।

(4) कचरों (Wastes) का पुनर्चक्रीकरण।

(5) जैविक उर्वरक का प्रयोग।

(6) जैविक कीट नियंत्रण।

अध्याय की एक त्वरित पुनरावृत्ति (A Quick Review of the Chapter)

सतत् विकास (Sustainable Development) यह वह प्रक्रिया है जिसमें भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को क्षति पहुँचाये बिना ही वर्तमान पीढ़ी के लोगों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाती है।

हरित राष्ट्रीय आय (Green National Income) घिसावट के अन्तर के बराबर होती है यह शुद्ध राष्ट्रीय आय तथा प्राकृतिक पूँजी की

अर्थात् हरित राष्ट्रीय आय शुद्ध राष्ट्रीय आय प्राकृतिक पूँजी की घिसावट।

पर्यावरण (Environment) पर्यावरण शब्द से आशय उस समस्त भौतिक पर्यावरण एवं जैविक पर्यावरण से है जिसमें जीवधारी निवास करते हैं।

पर्यावरण अवनति या अवनयन (Environmental Degradation) जब मनुष्य के क्रिया-कलापों द्वारा परिस्थितिकीय सन्तुलन बिगड़ जाता है तो उसे पर्यावरण अवनति कहते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) पर्यावरण में दूषित पदार्थों की उपस्थिति को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।

वन विनाश (Deforestation) इसका अभिप्राय वन क्षेत्र के भौगोलिक भाग को कम करना है जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकीय असंतुलन एवं पर्यावरणीय प्रदूषण उत्पन्न होता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत और संसाधनों की समग्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें वे सभी जैविक और अजैविक तत्व आते हैं, जो एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 2. जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?

उत्तर :

प्रश्न 3 निम्न को नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें

(क) वृक्ष

(ख) मछली

(ग) पेट्रोलियम

(घ) कोयला

(ङ) लौह अयस्क

(च) जल

उत्तर: नवीकरणीय ससांधन-वृक्ष, मछली गैर-नवीकरणीय ससांधन-पेट्रोलियम, कोयला, लौह अयस्क जल

प्रश्न 4. आजकल विश्व के सामने "………….” और "………….” की दो मुख्य पर्यावरणीय समस्याएँ हैं।

उत्तर: वैश्विक ऊष्णता और ओजोन अपक्षय।

प्रश्न 5. निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं

बढ़ती जनसंख्या

वायु-प्रदूषण

जल-प्रदूषण

संपन्न उपभोग मानक

निरक्षरता

औद्योगीकरण

वन-क्षेत्र में कमी

अवैध वन कटाई

वैश्विक ऊष्णता

उत्तर :

(क) बढ़ती जनसंख्या बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों की माँग बढ़ जाती है। जबकि प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न होती है जो प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालती है। इन संसाधनों का अत्यधिक उपभोग किया जाता है और उपभोग धारण क्षमता की सीमा से बाहर चला जाता है जिससे पर्यावरणीय हानि होती है। इससे सरकार के समक्ष सर्व की आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थता की समस्या आती है।

(ख) वायु प्रदूषण- इससे कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे दमा, फेफड़ों का कैंसर, क्षय रोग होती हैं। इससे सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय की समस्या उत्पन्न होती है।

(ग) जल-प्रदूषण- इससे हैजा, मलेरिया, अतिसार, दस्त जैसी कई बीमारियाँ होती हैं। इससे भी सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय की समस्या उत्पन्न होती है।

(घ) संपन्न उपभोग मानक इससे प्राकृतिक संसाधनों की माँगें बढ़ जाती हैं। जबकि प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न होती है। जो प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालती है। इन संसाधनों का अत्यधिक उपभोग किया जाता है और उपभोग धारण क्षमता की सीमा से बाहर चला जाता है। जिससे पर्यावरणीय हानि होती है। इससे समस्या ये उत्पन्न होती है कि अमीर वर्ग तो कुत्तों के खाने, सौंदर्य प्रसाधन और विलासिताओं पर व्यय करते हैं और गरीब वर्ग को अपने बच्चों और परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं के लिए भी धन नहीं मिलता।

(ङ) निरक्षरता- ज्ञान के अभाव के कारण लोग ऐसे संसाधनों का प्रयोग करते रहते हैं जैसे-उपले, लकड़ी आदि। इससे संसाधनों का दुरुपयोग होता है। यह दुरुपयोग पर्यावरण को हानि पहुँचाता है। सरकार को लोगों के स्वास्थ्य पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है।

(च) औद्योगीकरण- इसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे काफी बीमारियाँ जैसे दमा, कैंसर, हैजा, अतिसार, मलेरिया, बहरापन आदि हो सकती हैं। अतः सरकार का स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय बढ़ रहा है जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है।

(छ) शहरीकरण- इससे प्राकृतिक संसाधनों की माँग बढ़ जाती है जबकि प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति स्थिर है। इन संसाधनों का अति उपयोग होता है और यह उपयोग धारण क्षमता की सीमा को पार कर देता है जिससे पर्यावरण का अपक्षय होता है। इससे भी आय की असमानताओं के कारण अमीर वर्ग कुत्तों के खाने, सौंदर्य प्रसाधन पर खर्च करता है और गरीब वर्ग परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं के लिए भी धन नहीं जुटा पाता।

(ज) वन क्षेत्र में कमी इससे पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से वैश्विक उष्णता हो रही है। अतः सरकार को स्वास्थ्य के साथ-साथ ऐसे तकनीकी अनुसंधान पर भी व्यय करना पड़ रहा है जिससे एक पर्यावरण अनुकूल वैकल्पिक तकनीक की खोज की जा सके।

(झ) अवैध वन कटाई इससे जैविक विविधता प्रभावित हो रही है, मृदा क्षरण, वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है जिससे खा। श्रृंखला पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

(ट) वैश्विक ऊष्णता वैश्विक उष्णता के कारण पूरे विश्व में तापमान बढ़ रहा है। यदि समुद्र के जल का तापमान मात्र 2°C भी बढ़ गया तो संपूर्ण पृथ्वी जलमयी हो जाएगी।

प्रश्न 6. पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?

उत्तर: पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

(क) यह जीवन के लिए संसाधन प्रदान करता है। नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय दोनों पर्यावरण द्वारा ही प्रदान किये जाते हैं।

(ख) यह अवशेष को समाहित करता है।

(ग) यह जनहित और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।

(घ) यह सौंदर्य विलयक सेवाएँ भी प्रदान करता है।

प्रश्न 7. भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।

उत्तर: भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक इस प्रकार हैं

(क) वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि

(ख) अधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण

(ग) वन भूमि का अतिक्रमण

(घ) भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना

(ङ) कृषि-रसायन का अनुचित प्रयोग जैसे, रासायनिक खाद और कीटनाशक

(च) सिंचाई व्यवस्था का नियोजन तथा अविवेकपूर्ण प्रबंधन

प्रश्न 8. समझायें कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?

उत्तर : नकारात्मक पर्यावरण प्रभाव का सबसे नकारात्मक अवसर लागत पर्यावरण अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत है। वायु तथा जल गुणवत्ता (भारत में 70% जल स्रोत प्रदूषित हैं) में गिरावट के कारण वायु संक्रामक तथा जल संक्रामक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। फलस्वरूप, स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय बढ़ता जा रहा है। वैश्विक पर्यावरण मुद्दों जैसे वैश्विक ऊष्णता और ओजोन क्षय ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है, जिसके कारण सरकार को और अधिक धन व्यय करना पड़ा।

प्रश्न 9. भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

उत्तर: धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

(क) ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग भारत अपनी विद्युत आवश्यकताओं के लिए थर्मल और हाइड्रो पॉवर संयंत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है। इन दोनों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वायु शक्ति और सौर ऊर्जा गैर-पारंपरिक स्रोतों के अच्छे उदाहरण हैं। तकनीक के अभाव में इनका विस्तृत रूप से अभी तक विकास नहीं हो पाया है।

(ख) अधिक स्वच्छ ईंधनों का उपयोग शहरी क्षेत्रों में ईंधन के रूप में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। दिल्ली में जन-परिवहन में उच्च दाब प्राकृतिक गैस के उपयोग से प्रदूषण कम हुआ है और वायु स्वच्छ हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में बायोगैस और गोबर गैस को प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे वायु प्रदूषण कम हुआ है।

(ग) लघु जलीय प्लांटों की स्थापना पहाड़ी इलाकों में लगभग सभी जगह झरने मिलते हैं। इन झरनों पर लघु जलीय प्लांटों की स्थापना हो सकती है। ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।

(घ) पारंपरिक ज्ञान व व्यवहार पारंपरिक रूप से भारत की कृषि व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा व्यवस्था, आवास, परिवहन सभी क्रियाकलाप पर्यावरण के लिए हितकर रहे हैं। परंतु आजकल हम अपनी पारंपरिक प्रणालियों से दूर हो गए हैं, जिससे हमारे पर्यावरण और हमारी ग्रामीण विरासत को भारी मात्रा में हानि पहुँची है।

(ङ) जैविक कंपोस्ट खाद कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग ने न केवल भू-क्षय किया है बल्कि जल व्यवस्था विशेषकर भूतल जल प्रणाली भी प्रदूषित हुई है।

(च) अधारणीय उपभोग तथा उत्पादन प्रवृत्तियों में परिवर्तन धारणीय विकास प्राप्त करने के लिए हमें उपभोग प्रवृत्ति (संसाधनों के अति उपयोग और दुरुपयोग की अवहेलना) तथा उत्पादन प्रवृति (पर्यावरण अनुकूल तकनीकों का प्रयोग) में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 10. भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है-इस कथन के समर्थन में तर्क दें।

उत्तर: क्षेत्र के मामले में भारत विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है जिसका कुल क्षेत्रफल 32.87 263 वर्ग किलोमीटर (32.87 करोड़ वर्ग हेक्टेयर) है। यह विश्व के कुल क्षेत्र का 2.42% हिस्सा है। निरपेक्ष संदर्भ में यह भारत वास्तव में एक बड़ा देश है। हालाँकि भूमि-आदमी अनुपात विशाल जनसंख्या के कारण अनुकूल नहीं है।

दक्षिण के पठार की काली मिट्टी विशिष्ट रूप से कपास की खेती के लिए उपयुक्त है। अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गंगा मैदान है जो कि विश्व के अत्यधिक उर्वरक क्षेत्रों में से एक है और विश्व में सबसे गहने खेती और जनसंख्या वाला क्षेत्र है।

भारत 4 ईंधन खनिजों, 11 धात्विक, 52 गैर-धात्विक, 22 लघु खनिजों और कुल 89 खनिजों का उत्पादन करता है। भारत में उच्च गुणवत्ता लौह अयस्क बहुतायत मात्रा में है। देश के कुल लौह अयस्क भंडार में 14,630 मिलियन टन हेमेटाइट और 10,619 मिलियन टन मैगनेटाइट है। हेमेटाइट लौह अयस्क मुख्यतः छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, गोआ और कर्नाटक में पाया जाता है। कोयला सबसे अधिक मात्रा में उपलब्ध खजिन संसाधन है। कोयला उत्पादन के क्षेत्र में भारत का चीन और अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा स्थान है।

प्रश्न 11. क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?

उत्तर: हाँ, पर्यावरण संकट एक नवीन घटना है। यह पूर्ति-माँग के उत्क्रमण से उत्पन्न हुई है। हाल के वर्षों में जनसंख्या में बहुत वृद्धि हुई है इससे संसाधन की माँग बढ़ गई है जबकि संसाधनों की आपूर्ति स्थिर है। इससे अतिरेक माँग उत्पन्न हुई है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डाल रही है। इन संसाधनों का उपयोग बढ़ रहा है और यह धारण क्षमता की सीमा से बाहर होता जा रहा है। इसने पर्यावरण संकट को जन्म दिया है।

प्रश्न 12. इनके दो उदाहरण दें

(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग।

(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग

उत्तर :

(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग जब लोग कुत्ते के भोजन, सौंदर्य प्रसाधन, अत्यधिक बिजली उपकरण, परिवार के सदस्यों की संख्या से अधिक संख्या में कारें खरीद रहे हैं तो ये पर्यावरणीय संसाधनों के अति प्रयोग के सूचक हैं।

(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग गोबर और लकड़ी ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, प्राकृतिक खाद के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाना, जैविक कीटनाशकों के स्थान पर रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोगए ये पर्यावरणीय संसाधनों के दुरुपयोग के उदाहरण हैं।

प्रश्न 13. पर्यावरण की चार मुख्य क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।

उत्तर: भारत में पर्यावरण संबंधी महत्त्वपूर्ण मुद्दे निम्नलिखित हैं

(क) जल संक्रमण भारत में औद्योगिक अवशिष्ट के कारण पेय जल संक्रामक होता जा रहा है। इससे जल संक्रामक बीमारियाँ फैल रही हैं।

(ख) वायु प्रदूषण शहरीकरण के कारण, भारतीय सड़कों पर वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मोटर वाहनों की संख्या 1951 के 3 लाख से बढ़कर 2003 में 67 करोड़ हो गई। भारत विश्व में दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है परंतु यह पर्यावरण पर अनचाहे एवं अप्रत्याशित प्रभावों की अवसर लागत पर हुआ है।

(ग) वनों की कटाई भारत का वन आवरण बढ़ती जनसंख्या के कारण लगातार कम हो रहा है। इससे वायु प्रदूषण तथा उससे जुड़ी समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। भारत में प्रतिव्यक्ति वन भूमि 0.08 हेक्टेयर है जबकि आवश्यकता 0.47 हेक्टेयर की है।

(घ) भू-क्षय भू-क्षय वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि, वन भूमि का अतिक्रमण, वनों में आग और अत्यधिक चराई, भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना, अनुचित फसल चक्र, कृषि-रसायन का अनुचित प्रयोगए सिंचाई व्यवस्था का नियोजन तथा अविवेकपूर्ण प्रबंधन, संसाधनों की निर्बाध उपलब्धता तथा कृषि पर निर्भर लागतों की दरिद्रता के कारण हो रहा है।

निश्चित रूप से, पर्यावरण हानि की भरपाई की अवसर लागत बिगड़ता स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सुविधाओं पर अतिरिक्त व्यय, खराब पर्यावरण में जीवन की खराब गुणवत्ता के रूप में है जिसे ठीक करने के लिए सरकार को अत्यधिक व्यय करना पड़ता है।

प्रश्न 14. पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति-माँग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: अर्थ-पर्यावरण अपने कार्य बिना किसी रुकावट या बाधा के तब तक कर सकता है जब तक संसाधनों की माँग उनकी पूर्ति से कम हो। जब माँगए पूर्ति से अधिक हो जाती है तो पर्यावरण अपने कार्य सुरीति करने में असक्षम हो जाता है इससे पर्यावरण संकट जन्म लेता है। इसे पूर्ति माँग के उत्क्रमण की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में, जब संसाधनों की उत्पादन तथा उपभोग माँग संसाधनों के पुनर्जनन दर से अधिक हो जाती है तो इससे पर्यावरण की अवशोषी क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है, इसे पूर्ति संसाधनों की पूर्ति माँग का उत्क्रमण कहा जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

(क) विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या

(ख) विकसित देशों के संपन्न उपभोग तथा उत्पादन स्तर

(ग) नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की गहन और व्यापक निकासी।

प्रश्न 15. वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें।

उत्तर भारत के पर्यावरण को दो तरफ से खतरा है। एक तो निर्धनता के कारण पर्यावरण का अपक्षय और दूसरा खतरा साधन संपन्नता और तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्रक के प्रदूषण से है। भारत की अत्यधिक गंभीर पर्यावरण समस्याओं में वायु प्रदूषण, दूषित जल, मृदा क्षरण, वन्य कटाव और वन्य जीवन की विलुप्ति है।

(क) जल प्रदूषण- भारत में ताजे जल के सर्वाधिक स्रोत अत्यधिक प्रदूषित होते जा रहे हैं। इनकी सफाई में सरकार को भारी व्यय करना पड़ रहा है। 120 करोड़ की जनसंख्या के लिए स्वच्छ जल का प्रबंधन सरकार के लिए एक बड़ी समस्या है। जल जीवों की विविधता भी विलुप्त होती दिखाई दे रही है।

(ख) भूमि अपक्षय-भारत में भूमि का अपक्षय विभिन्न मात्रा और रूपों में हुआ है, जो कि मुख्य रूप से अस्थिर प्रयोग और अनुपयुक्त (प्रबंधन) कार्य प्रणाली का परिणाम है।

(ग) ठोस अवशिष्ठ प्रबंधन विश्व की 17% जनसंख्या और विश्व पशुधन की 20% जनसंख्या भारत की मात्र 2.5% क्षेत्रफल में रहती है। जनसंख्या और पशुधन का अधिक घनत्व और वानिकी, कृषि, चराई, मानव बस्तियाँ और उद्योगों के प्रतिस्पर्धी उपयोगों से देश के निश्चित भूमि संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है।

(घ) जैविक विविधता की हानि-प्रदूषण के कारण बहुत से पशु-पक्षियों और पौधों को प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है। इसका हमारे पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पेड़े रहा है।

(ङ) शहरी क्षेत्रों में वाहन प्रदूषण से उत्पन्न वायु प्रदूषण भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बहुत है, जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है। कुछ अन्य क्षेत्रों में उद्योगों के भारी जमाव और तापीय शक्ति संयंत्रों के कारण वायु प्रदूषण होता है। वाहन उत्सर्जन चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह धरातल पर वायु प्रदूषण का स्रोत है और आम जनता पर अधिक प्रभाव डालता है।

(च) मृदा क्षरण- भारत ने एक वर्ष में भूमि का क्षरण 53 बिलियन टन प्रतिशत की दर से हो रहा है। भारत सरकार के अनुसार, प्रत्येक वर्ष मृदा क्षरण से 5.8 मिलियन से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की क्षति होती है।

प्रश्न 16. भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है-एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में संपन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?

उत्तर: भारत विश्व का दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है परंतु यह पर्यावरण की कीमत पर हुआ है। भारत में विकास के दो गंभीर पर्यावरण प्रभाव वायु प्रदूषण तथा जल संक्रमण है।

यह कहना सही है कि भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है। एक ओर यह निर्धनताजनित है क्योंकि निर्धन क्षेत्र भोजन पकाने के लिए, एल.पी.जी. खरीदने में सक्षम नहीं है। अतः वे गाय के गोबर के उपले और जलाऊ लकड़ी को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं, यह संसाधनों का दुरुपयोग है। जबकि दूसरी ओर अमीर वर्ग निकटतम स्थान पर जाने के लिए कारों का प्रयोग करते हैं, हर कमरे में वातानुकूलित का प्रयोग करते हैं, हीटर, माइक्रोवेव और अनेक बिजली उपकरणों का प्रयोग करते हैं जिससे संसाधनों का अति उपयोग हो रहा है तथा परिणामस्वरूप पर्यावरण दूषित हो रहा है।

प्रश्न 17. धारणीय विकास क्या है?

उत्तर : धारणीय विकास की कई परिभाषाएँ दी गई हैं परंतु सर्वाधिक उद्धृत परिभाषा आवर कॉमन फ्यूचर (Our common future) जिसे ब्रुटलैंड रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है, ने दी है।

"ऐसी विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता का समझौता किए बिना पूरा करे।

"इसके अंतर्गत दो महत्त्वपूर्ण अवधारणा, हैं 'आवश्यकता' और 'भावी पीढियों।

इस परिभाषा में आवश्यकता की अवधारणा का संबंध संसाधनों के वितरण से है। मुख्य रूप से संसाधन विश्व के गरीब वर्ग को भी समान रूप से मिलने चाहिए।

भावी पीढ़ियों से तात्पर्य है वर्तमान पीढ़ी को आगामी पीढ़ी द्वारा एवं बेहतर पर्यावरण उत्तराधिकार के रूप में सौंपा जाना चाहिए।

प्रश्न 18. अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए।

उत्तर: अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की निम्नलिखित रणनितियाँ हैं ग्रामीण क्षेत्र के निवासी होने पर

ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी, उपलों या अन्य जैव पदार्थ के स्थान पर रसोई गैस और गोबर गैस का उपयोग

जहाँ पर खुला स्थान है उन गाँवों में वायु मिलों की स्थापना की जा सकती है।

हमें कृषि, स्वास्थ्य, आवास और परिवहन में ऐसा पारंपरिक ज्ञान और व्यवहार का प्रयोग करना चाहि, जो पर्यावरण के अनुकूल हो।

रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर हमें जैविक कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए।

फोटोवोल्टिक सेल द्वारा सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

वाहनों में पेट्रोल या डीजल की जगह उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का प्रयोग किया जाना चाहिए।

हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करना चाहिए।

प्रश्न 19. धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।

उत्तर: यह बहुत सुंदर कहा गया है कि यह पर्यावरण हमें पूर्वजों से विरासत में नहीं मिला बल्कि इसे हमने भावी पीढ़ियों से उधार लिया है। जो चीज उधार ली जाती है उसे समान या बेहतर स्थिति में वापिस करना होता है। यहाँ पर वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता का विचार महत्त्वपूर्ण हो जाता है। हमें पिछली पीढ़ी को उपलब्ध संसाधनों और भावी पीढ़ी को उपलब्ध संसाधनों के बीच समता बनाने की आवश्यकता है। हम अपनी भावी पीढ़ी के भविष्य को दाव पर लगाकर अपने वर्तमान का आनंद नहीं ले सकते। अतः विकास धारणीय तभी हो सकता है जब हम विकास की ऐसी विधियाँ अपनाएँ जिससे वर्तमान समय में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन भविष्य आवश्यकताओं की परवाह किए बिना नहीं करती। हमें भावी पीढियों को उतने ही संसाधन विरासत के रूप में सौंपने की जरूरत है जितने हमने अपने पूर्वजों से प्राप्त किए हैं। संसाधनों का रूप अवश्य अलग हो सकता है जैसे हमने पेट्रोलियम पाया और हम उच्च दाब प्राकृतिक गैस दे रहे हैं, अतः शब्द समान नहीं है, समता है।

JCERT/JAC REFERENCE BOOK

विषय सूची

Group-B भारतीय अर्थव्यवस्था

1. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

2. भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)

3. उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा

4. निर्धनता

5. भारत में मानव पूँजी का निर्माण

6. ग्रामीण विकास

7. रोजगार – संवृद्धि, अनौपचारिक एवं अन्य मुद्दे

8. आधारिक संरचना

9. पर्यावरण और धारणीय विकास

10. भारत और उसके पड़ोसी देशों के तुलनात्मक विकास अनुभव

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