12th Hindi Core 17. शिरीष के फूल JCERT/JAC Reference Book

12th Hindi Core 17. शिरीष के फूल JCERT/JAC Reference Book

 

12th Hindi Core 17. शिरीष के फूल JCERT/JAC Reference Book

17. शिरीष के फूल

पाठ - शिरीष के फूल

पाठ विद्या- ललित निबंध

लेखक परिचय

नाम - हजारी प्रसाद द्विवेदी

जन्म स्थान - उत्तर प्रदेश

जिला - बलिया

जन्म वर्ष - 1907

पहचान-निबंधकार, आलोचक, उपन्यासकार

काल - आधुनिक काल

हजारी प्रसाद द्विवेदी- शिक्षा कार्य एवं उपलब्धियां

शिक्षा - हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की आरंभिक शिक्षा गांव में हुई। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हाई स्कूल (दसवीं की परीक्षा) की पढ़ाई की। ज्योतिषविषय में उन्होंने उपाधि ली। काशी के महाविद्यालय से इन्होंने शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

कार्यक्षेत्र: 1930 से शांति निकेतन में हिंदी का अध्यापन प्रारंभ किया। 1950 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के पद पर काम किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष भी रहे।

हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्यिक परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी एक निबंधकार आलोचक एवं उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। ये हिंदी अंग्रेजी संस्कृत के साथ-

साथ बांग्ला भाषा के भी विद्वान थे। हिंदी साहित्य में आधुनिक निबंधकारों के रूप में इन्हें महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। द्विवेदी जी ने अपने आलोचनात्मक ग्रंथों के माध्यम से हिंदी साहित्य की उल्लेखनीय सेवा की। लंबे समय तक शांति निकेतन में रहने के कारण इनके जीवन पर रवींद्रनाथ ठाकुर का गहरा प्रभाव पड़ा साथ ही गांधी जी के व्यक्तित्व से येबहुत प्रभावित थे। इन्होंने निम्नलिखित विधाओं पर अपनी कलम चलाई आइए इनकी प्रमुख विधाओं को देखा जाए-

1) आलोचनात्मक ग्रंथ - सुर साहित्य 1936 हिंदी साहित्य की भूमिका 1940 हिंदी साहित्य का उद्भव और विकास एवं सहज साधना आदि इनके प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ हैं।

2) निबंध संग्रह- अशोक के फूल, कल्प लता, विचार और वितर्क कुटज, आलोक पर्व, एक कुत्ता और एक मैना उनके प्रमुख निबंध संग्रह है।

3) उपन्यास- बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्रलेख, पुनर्नव, अनामदास का पोथा आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं।

भाषा शैली- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में तत्सम प्रधान साहित्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है उन्होंने हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि भाषाओं का प्रयोग अपनी रचनाओं में खूब किया है। इनकी रचनाओं में आलोचनात्मक व्यंग्यात्मक विवेचनात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया गया है।

शिरीष के फूल लालित्य निबंध में आलोचनात्मक व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग देखने को मिलता है। संस्कृत प्रकांड विद्वान थे इसके बावजूद भी इनकी रचनाओं में पंडितत्य पूर्ण भाषा शैली का प्रयोग देखने को नहीं मिलता।

इन के कुछ प्रमुख रचनाएं एवं रचनाओं के विषय वस्तु

चारुचंद्रलेख, पुनर्नवा एवं अनामदास का पोथा-पौराणिक कथा वस्तु के माध्यम से आधुनिक प्रसंगों को व्यक्त करता उपन्यास।

बाणभट्ट की आत्मकथा-एक महिला की पीड़ा का गहन विश्लेषण करता उपन्यास

कुटज निबंध - अदम्य जिजीविषा से जुड़ा निबंध

एक कुत्ता और एक मैना - मूक प्राणी की संवेदनशीलता की कहानी।

ट्रिक- हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की कुछ प्रमुख रचनाओं को याद रखने का ट्रिक-अशोक पर्व (दिवाली) पर कल्पलता नामक लड़की ने अशोक के फूल के साथ एक कुत्ता और एक मैना घर पर लाया।

मुख्य सम्मान एवं पुरस्कार - 1973 में आलोक पर्व निबंध संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया एवं 1957 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किए गए।

पाठ परिचय

प्रस्तुत ललित निबंध लेखक के निबंध संग्रह 'कल्पलता' से उद्धृत है। इस निबंध के लिए लेखक ने शिरीष के फूल को चुना है। लेखक ने शिरीष के फूल के द्वारा समाज को कुछ संदेश देना चाहा है आइए कुछ बिंदुओं पर विचार करें-

ललित निबंधकार अपने व्यक्तित्व को ही अपने निबंध में प्रस्तुत करता है वह अपने अध्ययन ज्ञान और अनुभव पाठकों के साथ साझा करते हैं। यह अनुभव सरसता और सारगर्भित होते हैं। समसामयिक घटनाओं के साथ हास्य व्यंग, आत्मपरक शैली आदि का प्रयोग करते हुए अतीत से लेकर वर्तमान तक देश का चेहरा पाठकों के समक्ष उभार कर रख देते हैं। मोटे तौर पर इस निबंध को देखें तो हम इसे तीन हिस्सों में पाएंगे-

पहला- शिरीष के वृक्ष के माध्यम से उन्होंने के कई पहलुओं को भेदने का प्रयास किया है।

दूसरा-अतीत से वर्तमान तक एक एतिहासिक गठजोड़ करते दिखते हैं। कालिदास, तुलसी, कबीर कवि रविंद्र नाथ, पंत और गांधीजी जैसे अनासक्त योगियों की बात करते हुए जीवन के कई गूढ़ रहस्य को समझाने का प्रयास करते हैं।

तीसरा- पौराणिक एवं ऐतिहासिक संदर्भोंको आधार बनाकर तत्कालिक मुद्दों पर अभिव्यक्ति करते हैं।

चौथा- आत्मपरक शैली के द्वारा नर पतियों के द्वारा, पूंजीवादी व्यवस्था, नेतागण के द्वारा अधिकार लिप्सा से होने वाले देश को नुकसान और आत्म बल से विहीन तथाकथित कवियों के आचरण से देश की गरिमा का प्रभावित होना आदि विषयों को पाठकों के सामने उभारकर रख देते हैं।

आइए पाठ के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास किया जाए-

कालजयी अवधूत - लेखक ने शिरीष के फूल को अवधूत (सन्यासी) की संज्ञा दी है। शिरीष के फूल की सबसे बड़ी विशेषता उसके प्रतिकूल जलवायु में भी अपने आप को हरा भरा और फूलों से लदा रखना है। अन्य पुष्प वृक्षों के भांति शिरीष का फूल पराजय स्वीकार करना नहीं जानता। जिस प्रकार एक सन्यासी व्यक्ति हर परिस्थिति में प्रसन्न रहता है उसी प्रकार शिरीष का फूल भी हर परिस्थिति में मस्त मौला नजर आता है।

विषम परिस्थिति में भी डटे रहना- पलाश करणी कार (कनेल का वृक्ष) अमलतास आदि के कुछ पौधे हैं जो लू और गर्मी आने के पहले ही अपने पुष्पों का पोषण करते हैं, गर्मी आने तक यह पुष्पा और पेड़ दोनों ही निर्बल हो जाते हैं, ऐसे वृक्ष लेखक की दृष्टि में बेकार है, लेखक मानते हैं कि हमें प्रतिकूल परिस्थितियों से नहीं भागना चाहिए बल्कि इन वृक्षों के समान नहीं अपितु शिरीष के फूल के समान विषम परिस्थितियों में भी डटे रहना चाहिए।

अदम्य जिजीविषा (जीने की इच्छा)- कबीर दास जी को पंद्रह दिनों के लिए पुष्पों का खिलना पसंद नहीं था। यह ऐसे व्यक्तियों का प्रतीक है जो कुछ दिन तो उत्सव में जीवन जीते हैं किंतु अधिक समय इनका निराशाजनक भाव में ही बितता है ऐसी नकारात्मक ऊर्जा कबीरदास जी को पसंद नहीं था। वसंत ऋतु में खिलने वाले पुष्प और कई पशु पक्षी केवल अपनी सुंदरता को बचाए रखने का ही साहस करते हैं जैसे ही ऋतु में बदलाव आता है तो येअपने पुष्प को त्याग देते हैं और पशु-पक्षी अपने सुंदरता के प्रतीक माने जाने वाले अपने पूछ को झार देते हैं कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसी सुंदरता भला किस काम की इससे तो बढ़िया बिना पूछ वाले जानवर ही हैं। लेखक कहते हैं शिरीष का वृक्ष जो विषम परिस्थितियों में भी खिले रहते है आठोंयम (प्रहर) मस्त रहता है। जो वसंत ऋतु के आगमन से फूलों और फलों से लद जाता है और यह कई ऋतु की मार झेलते हुए भी अपने अस्तित्व को बचाए रखता है। लेखक को अदम्य जिजीविषा के कारण शिरीष अत्यंत प्रिय है।

मंगल जनक वृक्षों की सूची में शिरीष - लेखक कहते हैं कि पुरानी भारत के रईस जिस मंगल जनक वृक्षों को अपने घर की शोभा बढ़ाने के लिए लगाया करते थे उसमें एक शिरीष का भी फूल है।

लेखक का तुंदिल नरपतियों (रईसो) पर कटाक्ष - लेखक झूले के लिए पुराने कवियों के द्वारा बकुल के पेड़ पर झूले लगाने की वकालत करते देख कहते हैं कि शिरीष का वृक्ष भी झूले के लिए उपयुक्त है किन्तु नरपतियों के लिए नहीं है ये चाहे तो अपने लिए लोहे का वृक्ष बनवा लें। इस तरह से कुछ व्यंग लेखक भारतीय रईसों के लिए करते हैं। यहां लेखक संदेश देना चाहते हैं कि हमारे देश के रईस थोड़े से विषम परिस्थिति में घबरा उठते हैं ऐसे लोगों सुरक्षित जीवन जीना ही पसंद करते हैं।

लेखक का कालिदास के प्रति सम्मान - कालिदास जी ने शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में बहुत कोमल माना है कवि कहते हैं कि उनके अनुमान से शिरीष का पुष्प बहुत हीकोमल है इस बात का प्रचार कालिदास ने ही सर्वप्रथम किया होगा। लेखक उनके इस अनुमान का सम्मान करते हैं और किसी भी प्रकार से आलोचना नहीं करना चाहते।

अद्भुत उत्पत्ति - शिरीष के पुष्पों को कालिदास जी ने इतना कोमल माना है कि वह केवल भौरों के पद का भार सह सकता है, पक्षियों तक का नहीं किंतु यह आश्चर्य की बात है कि जो शिरीष का वृक्ष इतने कोमल फूलों को विकसित करता है इतने कठोर फल को धारण कैसे कर सकता है। कोमलता और कठोरता एक साथ दोनों गुण को धारण करने की क्षमता शिरीष के फूल में है। हम मनुष्यों को भी ऐसा ही होना चाहिए।

समय और परिस्थिति की पहचान- शिरीष के फूल को कालिदास जी के द्वारा कोमल कहे जाने पर अपनी सहमति व्यक्त की है पर लेखक ने शिरीष के फल को उसके विपरीत अधिक कठोर माना है। शिरीष के फल इतने कठोर होते हैं कि जब तक नए पुष्प और पत्ते मिलकर उसे धकियाकर गिरा ना दे तब तक फलो का अस्तित्व समाप्त नहीं होता। शिरीष के फल लेखक को उन नेताओं की याद दिलाती है जो जबरन अपनी उम्र और योग्यता का हिसाब रखे बिना एक स्थान पर जड़वत बने रहते हैं और दूसरे योग्य व्यक्ति को आगे आने नहीं देते हैं।

जरा (बुढ़ापा) और मृत्यु से कोई मुक्त नहीं- जरा और मृत्यु यह दोनों ही जगत के अति परिचित और अति प्रमाणिक सत्य है। इस बात की पुष्टि करने के लिए लेखक तुलसीदास जी द्वारा दिए गए एक उदाहरण को प्रस्तुत करते हैं-धरा (पृथ्वी) को प्रमान यही तुलसी जो फरा (फालना) जो झरा (झड़ना), जो बरा (जलना) सो बुताना (बुझना) जो इस धरती पर आया है उसे एक न एक दिन जाना ही होगा तो फिर अपने अधिकार लिप्सा के प्रति हम इतना सचेष्ट क्यों रहते हैं। समय और परिस्थितियों के हिसाब से हमें अपने आप को बदल लेना चाहिए। बदलते रूप को पहचानना चाहिए स्वीकार कर लेना चाहिए कि वृद्धावस्था और मृत्यु दोनों से बचा नहीं जा सकता।

जमे की मरे- लेखक कहते हैं कि जरा और मृत्यु अति प्रमाणिक सत्य है इसके बाद भी लोग इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहते। वे इससे आंख मिचौली खेलते हैं किंतु वैसे लोग जो परिस्थितियों के अनुकूल बदलना जानते हैं वह अपना अस्तित्व बचाने में सफल हो जाते हैं। लेखक कहते हैं कि एक स्थान पर, एक स्वभाव के साथ टिके रहने से व्यक्ति का अस्तित्व नष्ट होने में समय नहीं लगता। अपनी गतिविधियों में परिवर्तन लाना आवश्यक है निष्क्रियता किसी भी उम्र वर्ग के लिए उचित नहीं है।

अद्भुत अवधूत - लेखक की दृष्टि में शिरीष का वृक्ष एक अद्भुत अवधूत है। जिस प्रकार अवधूत सुख और दुख से विरक्त होकर अपने में मग्न रहते हैं ठीक उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भी किसी भी प्रकार के वातावरण में अपने आप को स्थिर रखता है। लेखक को आश्चर्य होता है कि जब सारी धरती गर्मी के मारे जान दे रही होती तो यह वृक्ष इतने कोमल सुकुमार पराग को कैसे विकसितकर सकता है। ऐसी विशेषताएं तो केवल योगियों में ही हो सकती है।

अनासक्त योगियों सा लक्षण- लेखक ने कबीर और कालिदास को अनासक्त योगी माना है। लेखक ने कबीर और तुलसीदास की तुलना शिरीष के साथ की है। लेखक कहते हैं कि जैसे शिरीष का वृक्ष हर परिस्थिति में मस्त और वेपरवाह रहते हुए है विषम परिस्थितियों में भी सुंदर कोमल पुष्प का सृजन करने में सक्षम है। वैसे ही संसार में जितने भी बड़ी रचनाएं हुई है वह सब अनासक्त योगियों के द्वारा ही संभव हो पाया है और इसका मूल कारण इनका पक्षपात रहित होना है साथ ही साथ अपने आप को सुख दुख की परिभाषा के घेरे में ना रखना है।

कबीर कालिदास अनासक्त फक्कड़ - मेघदूत की रचना कालिदास ने की हैं। मेघदूत की रचना कोई पवित्र भावना से परिपूर्ण हृदय वाला व्यक्ति ही कर सकता है। जिनके भाव सुख और दुख में समान रहते हैं वही फक्कड़ कहलाते हैं और कालिदास और कबीर दोनों में ही गुण था तभी यह संसार के महान रचनाएं करने में सफल रहे।

स्वघोषित कवियों को फटकार- जहां सहज सरल हृदय के द्वारा रचनाएं की गई हो उसकी तुलना कोई नहीं कर सकता। कालिदास द्वारा रचित मेघदूत काव्य उस कोटि की रचना है जहां शकुंतला की सुंदरता दैहिक नहीं बल्कि हृदय की है। कालिदास की पवित्र भावना को मेघदूत काव्य में स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। छंद और तुक जोड़ लेने से कोई कवि नहीं हो जाता हालांकि यह कवि होने का आवश्यक गुण अवश्य है किंतु जिन लोगों को जीवन की गणित सुलझाने से ही फुर्सत नहीं है आत्मबल की अपेक्षा मस्तिष्क बल पर ही जोड़ देने में जो लगे रहते हैं वे कभी भी वास्तविक कवि नहीं बन सकते।

कर्नाटक रानी की चुनौती- कर्नाटक राज्य की प्रिया बज्जिका देवी ने ब्रह्मा द्वारा रचित पुराण वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और व्यास द्वारा रचित महाभारत को ही केवल श्रेष्ठ रचना मानती हैं। रानी ने इन तीनों के अतिरिक्त किसी अन्य को श्रेष्ठ रचनाकार की श्रेणी में नहीं रखा है। किंतु लेखक जानते हैं कि ऐसे कई लोग हैं जो श्रेष्ठता के स्तर पर अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते। लेखक को इस बात का भी अहसास है कि उदाहरण देने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि कोई भी उनकी बात नहीं सुनेगा।

फक्कड़ मस्त अनासक्त योगियों की सूची- कालिदास सौंदर्य के वाह्यआवरण को भेद करके उसके भीतर तक पहुंच सकते थे जो हमें मेघदूत की रचना काव्य में देखने को भी मिलता है लेखक के अनुसार कालिदास के समान आधुनिक कवियों में रविंद्र नाथ व सुमित्रानंदन पंत भी किसी अनासक्त योगी से कम नहीं थे। क्योंकि यह दोनों कवि भी बाहरी सुंदरता को भेदते हुए आंतरिक सुंदरता को अपनी रचनाओं में उभार कर रख देते थे। दुख हो या सुख यह यह अपने भाव रस सामान रखा करते थे।

स्थिर प्रज्ञता और विद्ध प्रेमी का हृदय- लेखक कालिदास के एक-एक श्लोक को देख कर हैरान हो जाते हैं। शकुंतला को विधाता ने सुंदरता देने में कोई कमी नहीं रखी थी किंतु वास्तव में शकुंतला कितनी सुंदर थी यह कोई नहीं जानता किंतु शकुंतला को कालिदास ने अपने अपने काव्य में सुंदरता का प्रतीक बनाकर अंकित किया है। लेखक ने उसकी सुंदरता को उसके बाहरी सुंदरता से नहीं बल्कि उसकी हृदय की सुंदरता से अंकित किया। सुख और दुख में एक समान भाव रखना और प्रेम पीड़ा को कालिदास भली भांति जानते थे। महाराजा दुष्यंत ने शकुंतला का एक चित्र बनाने का प्रयास करते हैं किंतु वे असफल रहते हैं। बहुत विचार करने के बाद उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ कि उन्होंने शकुंतला के कानों में शिरीष के फूल देना भूल गए हैं जिसके केसर उसके गालों को छूआ करती थी। शिरीष के पुष्प की सौम्यता के साथ ही उसने शकुंतला को स्वीकार किया था शिरीष के अभाव में शकुंतला की सुंदरता अधूरी लग रही थी इसलिए उसचित्र मे शिरीष पुष्प कीउपस्थिति अनिवार्य थी।

कोई भी लक्ष्य अंतिम लक्ष्य नहीं है- कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर लक्ष्य के बारे में सचेत करते हुए कहते हैं कोई भी लक्ष्य अंतिम लक्ष्य नहीं होता कोई भी वस्तु कितना भी अग्रभेदी हो या शिल्प के दृष्टिकोण से सुंदर हो हमें इसे अंतिम सुंदरता या लक्ष्य नहीं मान लेना चाहिए हमें ऐसा मानकर चलना चाहिए कि इससे भी अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति हमारे द्वारा किया जा सकता है। अर्थात लक्ष्य के आगे भी एक लक्ष्य है ऐसा मानकर चलना चाहिए।

अनासक्त योगियों की सूची- लेखक ने अपने ललित निबंध के लिए ऐसे विभूतियों को चुना है जिनकी रचनाएं लोगों को प्रभावित करते रही है। लेखक ने मध्य काल से लेकर आधुनिक काल के उन कवियों का चयन किया है जो स्थिर प्रज्ञता के सूचक हैं। स्थिर प्रज्ञता का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो आनंद और दुख में एक समान भाव रखता हो। लेखक कहते हैं कि ये गुण कालिदास में था। कालिदास की अनासक्त गुणों की तुलना उन्होंने ऐसे कृषक से की है जो अपने उपयोग के लिएगन्ने के रस को तो भली-भांति निकालना जानते ही हैं साथ ही रस विहीन गन्ने से भी रस निकाला लाता हैं। कालिदास में भी यही गुण था अपनी रचना के लिए केवल वाह्य सुंदरता से रस नहीं ग्रहण करते थे बल्कि आंतरिक सुंदरता से भी रस को ग्रहण किया करते थे। उनके साथ यही गुण कबीर, रविन्द्रनाथ ठाकुर एवं सुमित्रानंदन पंत में भी विद्यमान था। यही कारण है कि इन विभूतियों की रचनाएं श्रेष्ठ रचनाओं की गिनती में आती है।

आत्मबल की तुलना में देहबल को अधिक महत्व- लेखक ने वर्तमान में विषम परिस्थितियों में घटते जीने की कला से दुखित है। लेखक कहते हैं कि आजकल लोग अपने आत्मबल की तुलना में देह बल को अधिक महत्व का विषय मान रहे हैं, जो देश के लिए उचित नहीं है।

गांधी और शिरीष में समानत- लेखक को एक वनस्पति शास्त्री के द्वारा ज्ञात हुआ की शिरीष का वृक्ष वायुमंडल से अपने लिए उर्जा एकत्रित करता है और तपती धरती मे भी अपने आप को जीवित रखता है। चाहे इसके नरम फूल हो या कठोर फल दोनों ही सुरक्षित और पोषित होते रहते हैं। महात्मा गांधी जी भी अपने आपको वातावरण के अनुसार कठोर एवं कोमल बना लिया था। गलत होने पर वे सख्त हो जाया करते थे, लेकिन विषयाअनुकूल वे कोमलता भी बनाए रखते थे।

शिरीष के फूल सारांश-

1. लेखक जहां बैठकर लेख लिख रहे थे उसके आगे - पीछे शिरीष के फूल थे।

2. जेठ की जलती धूप में भी शिरीष झूम रहा था।

3. कबीरदास जी को पलाश, अमलतास आदि जैसे पंद्रह दिनों के लिए पुष्पों का खिलना पसंद नहीं था।

4. लेखक कहते हैं कि पुराने भारत के रईस जिन मंगल जनक वृक्षों को अपने घर की शोभा बढ़ाने के लिए लगाते थे उसमें एक शिरीष भी था।

5. कालिदास जी ने शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में बहुत कोमल माना है जो केवल भौरे का भार सहन कर सकता है।

6. लेखक नरपतियों पर व्यंग करते हुए कहते हैं शिरीष वृक्ष इनके झूले के लिए नहीं उपयुक्त है, वे चाहे तोअपने लिए लोहे का वृक्ष बनवा लें।

7. शिरीष के फल इतने कठोर होते हैं कि जब तक नए पुष्प और पत्ते मिलकर उसे धकियाकर गिरा ना दे तब तक फल का अस्तित्व समाप्त नहीं होता।

8. शिरीष के फल लेखक को उन नेताओं की याद दिलाती है जो जबरन अपनी उम्र और योग्यता का हिसाब रखे बिना एक स्थान पर जड़वत बने रहते हैं।

9. तुलसीदास जी अनुसार जरा और मृत्यु यह दोनों ही जगत के अति परिचित और अति प्रमाणिक सत्य है।

10. लेखक की दृष्टि में शिरीष का वृक्ष एक अद्भुत अवधूत है।

11. लेखक के अनुसार कालिदास के अतिरिक्त सुमित्रानंदन पंत और कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर में अनासक्त गुण विद्वान थे।

12. लेखक ने वर्तमान युग में गांधीवादी मूल्यों की आवश्यकता पर जोर दिया है।

13. लेखक ने वर्तमान में विषम परिस्थितियों में घटते जीने की कला से दुखित है।

14. लेखक कहते हैं कि आजकल लोग अपने आत्मबल की तुलना में देह बल को अधिक महत्व का विषय मान रहे हैं।

शब्दार्थ - धरित्री-पृथ्वी। निर्धूम - धूआ रहित। कर्णिकार कनेर। आरग्वध-अमलतास। पलाश -ढाक। महकना खिलना। खंखड़-ठूंठ, शुष्क। दुमदार - पूछ वाले। लंडूरे - पूंछ विहीन। निर्घात-बिना आघात या बाधा के। उमस-गर्मी, लू गर्म हवाएं, एकमात्र एकलौता। कालजई समय को पराजित करने वाला। अवधूत सांसारिक बंधनों से ऊपर उठा हुआ सन्यासी। नितांत -पूरी तरह से। हिल्लोल लहर। मंगल जनक सुखदायक, अरिष्ट रीठा नामक वृक्ष। पुन्नाग दक्षिण भारत में पाए जाने वाला वालाएक सदाबहार वृक्ष। घन मसृण-घना चिकना, मुलायम। हरीतिमा - हरियाली। परिवेष्टित - ढका हुआ। कामसूत्र-वात्सायन ऋषि के द्वारा लिखी गई ग्रंथ का नाम। बकुल मौलसिरी का वृक्ष। दोला झूला। तुंदिल तोंद वाला, मोटे पेट वाला। परवर्ती बाद के मर्मरित-पत्तों की खरखड़ाहट, सरसराहट। सपासप कोड़े पड़ने की आवाज। जीर्ण बूढ़ा, पुराना। उध्वमुखी-प्रगति की ओर। दुरंत -जिसका विनाश होना मुश्किल है। सर्वव्यापक - सर्वत्र व्याप्त। कालाग्नि-मृत्यु की आग। हजरत- श्रीमान (व्यंग से किया गया संबोधन)। अनासक्त विषय भोग से ऊपर उठा हुआ। अनाविल-शुद्ध, स्वच्छ। उन्मुक्त-द्वंद रहित। फक्कड़ अपने आप में मस्त। कर्णाट-प्राचीन काल का कर्नाटक राज्य। उपालंभ-उलहाना, ताना। स्थिरप्रज्ञता-अविचल बुद्धि की अवस्था। विदग्ध तपा हुआ। मुग्धा आनंदित। विस्मय-विमूढ़ आश्चर्यचकित। कार्पण्य-कंजूसी कृपाणता। गांड स्थल-गाल, कापोल। शरच्चंद्र शरद ऋतु का चंद्रमा। शुभ्र-श्वेत। मृणाल कमल नाल, कमल की डंडी कृपीवल-किसान। निर्दलित भली-भांति निचोड़ा हुआ। ईक्षुदंड गन्ना। अभ्रभेदी- गगनचुंबी (गगन को चूमने वाला)। गंतव्य - लक्ष्य। खून-खच्चर लड़ाई -झगड़ा। हूक वेदना ।

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न : 1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) के तरह क्यों माना है?

उत्तर - अवधूत का जीवन समरसता से भरा होता है अर्थात सुख दुख दोनों ही भावों वे एक समान रहते हैं। विषम परिस्थितियों में भी मस्त मौला बने रहते हैं और समाज को कुछ ना कुछ देने की स्थिति में रहते हैं। ठीक उसी प्रकार शिरीष लहलहाते धूप और प्रचंड गर्मी में अपने फूलों की सुगंध कोमलता और वृक्ष की शीतलता से लोगों में प्राण ऊर्जा भरता रहता है।

प्रश्न : 2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- जीवन में सुख और दुख दोनों उपहार की तरह है। दुख को हम ढो सके इससे पार पा सके इसके लिए आवश्यकता है अपने व्यवहार में कठोरता लाना। विषम परिस्थितियों में हम अपने आप को बचाए रख सके इसके लिए हमें शिरीष के फल के समान होना पड़ेगा। जिस प्रकार शिरीष प्रचंड गर्मी में विषम परिस्थितियों के परवाह किए बिना अपने कठोरफल को बचाए रखता है ताकि भविष्य में उससे कोमल फूल और वृक्ष की उत्पत्ति हो सके। फल की कठोरता की वजह से ही बाद में समस्त पेड़ फूलों से लद जाता है।

प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है।

उत्तर - लेखक कहते हैं कि जब सारी पृथ्वी गर्मी से हाहाकार करते रहती है तब भी शिरीष के फल फूल अपने वृक्षों में लदे रहते हैं यह उसके जीने की प्रबल इच्छा को दिखाती है। अतः हमें भी विषम परिस्थितियों में शिरीष भांति जीवन जीने की प्रबल इच्छा रखनी चाहिए।

हाय अवधूत आज कहां है ऐसा कह कर लेखक ने आत्म बल पर देह बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है स्पष्ट करें।

लेखक कहते हैं कि देश में आज आत्म बल की तुलना में देह बल को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। गांधी जी ने अपने आत्मबल के बदौलत ही देश को आजादी दिलाई। आज ऐसे लोगों के अभाव में समाज दिशाहीन हो रहा है इसलिए लेखक इस विषय पर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं।

प्रश्नः 5. कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता (बुद्धि) और विदग्ध (तपा) प्रेम का हृदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाएं।

उत्तर- लेखक ने एक कवि में दो गुणों का होना आवश्यक मानते हैं। स्थिर प्रज्ञता अर्थात बुद्धि और विदग्ध प्रेम अर्थात् तपा हुआ प्रेम। इन दोनों के मेल से ही कोई भी कवि मानवता के लिए साहित्य की रचना कर सकता है इसके अभाव में कविता या रचना केवल रचना ही रह जाएगी जन सामान्य के लिए उपयोगी नहीं हो पाएगी जैसे कालिदास ने अपनी रचना में सौंदर्य से अधिक मन के सौंदर्य को बल दिया।

प्रश्नः 6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर - मृत्यु और बुढ़ापा अति परिचित और अति प्रमाणित सत्य है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। लोग अपनी लिप्सा (इच्छा शक्ति) के कारण नए परिवर्तन को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं चाहे वह राजनीतिक हो या सामाजिक। ऐसे लोगों को जबरदस्ती धकिया कर बाहर फेंक दिया जाता है। नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे लोगों को स्वता ही अपने स्थान को छोड़ देना चाहिए।

प्रश्नः 7. आशय स्पष्ट कीजिए

(क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।

(ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?... मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।

(ग) फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।

उत्तर (क) मृत्यु और बुढ़ापा अति परिचित और अति प्रमाणित सत्य है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। लोग अपनी लिप्सा (इच्छा शक्ति) के कारण नए परिवर्तन को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं चाहे वह राजनीतिक हो या सामाजिक। अभी होकर ऐसे लोगों को जबरदस्ती धकिया कर बाहर फेंक दिया जाता है। नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे लोगों को स्वता ही अपने स्थान को छोड़ देना चाहिए।

(ख) विषय वासनाओं में लिप्त होकर कविता नहीं की जा सकती है ऐसा लेखक का मानना है। लेखक कहते हैं कि एक कवि को फक्कड़ मस्त मौला विदग्ध प्रेमी (तपा हुआ प्रेमी) और स्थिर प्रज्ञता (बुद्धि) वाला होना चाहिए, तभी कालिदास जैसी रचनाएं लिख पाना संभव है।

(ग) उपरोक्त गद्यांश का अर्थ यह है कि सृष्टि मैं पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु का अपना कुछ ना कुछ महत्व है। चाहे वह पेड़ या पौधे ही क्यों ना हो। जो कुछ संसार में दिख रहा है वही अंतिम लक्ष्य नहीं है उससे आगे भी लक्ष्य है। आगे बढ़ने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्नः जब सारी धरती गर्मी से तप रही होती है तो कौन सा वृक्ष फूलों से लदा रहता है?

उत्तर - शिरीष का।

प्रश्नः शिरीष के साथ आरग्वध (अमलतास) की तुलना नहीं की जा सकती क्यों?

उत्तर- दोनों ही पुष्प वसंत ऋतु में खिलना प्रारंभ करते हैं किंतु वसंत ऋतु के समाप्त होते होते अमलतास के पुष्प झड़ जाते हैं किंतु शिरीष का पुष्प लंबे समय तक अपना अस्तित्व बनाए रखता है इसलिए कवि शिरीष के साथ अमलतास की तुलना करना पसंद नहीं करते।

प्रश्नः कबीर दास वसंत में खिलने वाले पुष्पों को पसंद क्यों नहीं करते?

उत्तर- वसंत ऋतु के समाप्त होते ही ऐसे पुष्पों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह पुष्प विषम परिस्थितियों में अपना अस्तित्व बनाए रखने में असफल होता है इसलिए कबीरदास को ऐसे अस्तित्वहीन पुष्प पसंद नहीं थे।

प्रश्नः ऐसे दूमदारो से तो लंडूर भले का अर्थ बताएं

उत्तर- दूमदार का अर्थ पूछ वाले पक्षी या पशु होते हैं। यह पक्षी या पशु वसंत ऋतु के बाद अपने पूंछ गिरा देते हैं, झाड़ देते हैं कबीर दास ऐसे पक्षी या पशुओं से भले उनको मानते हैं जिनके कुछ नहीं है।

प्रश्नः शिरीष का पुष्प कौन से महीने में खिलता है?

उत्तर- वसंत के आगमन के साथ यह पुष्प खिल उठता है।

प्रश्नः लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत क्यों माना है?

उत्तर- जिस प्रकार से योगी अपने योग के द्वारा काल पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं, ठीक उसी प्रकार शिरीष का पुष्प विषम परिस्थितियों में भी अपने जीवित रहने की कला से काल को मात देती है इसलिए लेखक इस पुष्प को कालजई अवधूत मानते हैं।

प्रश्नः शिरीष का पुष्प लेखक को क्यों पसंद है?

उत्तर - शिरीष का पुष्प वसंत ऋतु के आगमन से लेकर आषाढ़ तक खिला रहता है। जहां सभी पुष्प वसंत ऋतुकी समाप्ति तक झड़ जाते हैं वहां शिरीष विषम परिस्थितियों वाले माह में भी अपने अस्तित्व को बचाए रखता है इसलिए लेखक को यह पुष्प प्रिय हैं।

प्रश्नः पुराने भारत का रईस किन-किन मंगल वृक्षों को अपने चाहर दीवारी में लगाया करते थे?

उत्तर- अशोक, अरिष्ट, पून्नाग और शिरीष।

प्रश्नः कामसूत्र किसकी रचना है?

उत्तर- कामसूत्र वात्सायान की रचना है।

प्रश्नः वात्सायान ने झूले के संबंध में क्या कहा है?

उत्तर- झूला वाटिका के समान छायादार वृक्षों की छाया में ही लगाए जाना चाहिए।

प्रश्नः कौन सा फूल संस्कृत साहित्य में बहुत कोमल माना गया हैऔर क्यों?

उत्तर- शिरीष के पुष्प को संस्कृत साहित्य में बहुत ही कोमल माना गया है लेखक का अनुमान है कि कालिदास की इस प्रचार के बाद की शिरीष का पुष्प केबल भौरे का ही वजन उठा सकता है पक्षियों का नहीं।

प्रश्नः तुंदिल नरपतियों पर लेखक क्या व्यंग करते हैं?

उत्तर- लेखक के अनुसार इन्हें अपने वजन के हिसाब से लोहे का वृक्ष बनवा लेना चाहिए। ऐसे भारी-भरकम लोग शिरीष के वृक्ष पर झूला नहीं झूल सकते।

प्रश्नः तुंदिल नरपतियों पर लेखक व्यंग क्यों करते हैं?

उत्तर- यह वर्ग देश का ऐसा वर्ग है जो विषम परिस्थितियों को देखकर घबरा उठता है। इन्हें अपने आसपास सब कुछ सामान्य चाहिए।

प्रश्नः लेखक कालिदास की किस बात की अवहेलना करना नहीं चाहते?

उत्तर- कालिदास के अनुसार शिरीष का पुष्प केवल भौरों का भार उठा सकता है पक्षियों का नहीं।

प्रश्नः शिरीष के फल को लेखक ने कैसा माना है ?

उत्तर- शिरीष के फल को लेखक ने हठी माना है। शिरीष का फल इतना कठोर होता है कि जब तकनए फलऔर पत्तियां उसे जबरन धकिया कर उसके स्थान से अलग ना कर दे वो अपने स्थान पर जमा रहता है।

प्रश्नः कालिदास के परवर्ती (बाद के) कवियों ने शिरीष के फूल के बारे में क्या धारणा बनाई?

उत्तर- शिरीष के वृक्ष में सब कुछ कोमल है।

प्रश्नः लेखक ने आधुनिक नेताओं की तुलना किससे की है और क्यों?

उत्तर- लेखक ने आधुनिक नेताओं की तुलना शिरीष के कठोर फल से की है। वसंत आने पर जहां चारों और नए फूल पत्ते वातावरण की शोभा बढ़ाने लगते हैं वही शिरीष का फल बुरी तरह से खड़खड़ते हुए पेड़ पर लगा रहता है। यह स्थिति आज के आधुनिक नेताओं की ओर संकेत करता है जो नए योग्य व्यक्तियों को आगे बढ़ने का मौका नहीं देता।

प्रश्नः आज के आधुनिक नेता जमाने का रुख नहीं पहचानते ऐसा लेखक क्यों कहते है?

उत्तर- आज के नेतागण अपने अधिकार लिप्सा को छोड़ना नहीं चाहते। वे एक ही स्थान पर जमे रहना चाहते हैं किंतु जरा और मृत्यु से कोई मुक्त नहीं है। इससे आंख मिचौली खेला नहीं जा सकता।

प्रश्नः नई पौध से लेखक किसकी ओर संकेत कर रहे हैं?

उत्तर- नई पौध का अर्थ यहां नई पीढ़ियों, नई लोग, नई योग्यता से हैं।

प्रश्नः धक्का मारकर कैसे लोगों को निकाला जाता है और क्यों?

उत्तर- अधिकार लिप्सा के कारण जो नेतागण अपने स्थान को नहीं छोड़ते वैसे लोगों को नए पीढ़ियों के योग्य व्यक्ति धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाते हैं।

प्रश्नः अधिकार लिप्सा ना छोड़ने वाले लोगों को लेखक की क्या चेतावनी देते है?

उत्तर- लेखक ऐसे व्यक्तियों को सावधान करते हुए कहते हैं कि जरा (बुढ़ापा) और मृत्यु दोनों से कोई मुक्त नहीं है यह अति परिचित और अति प्रमाणिक सत्य है इसलिए लेखक ऐसे लोगों से आग्रह करते हैं कि वक्त रहते ही वे अपने अधिकार लिप्सा को त्याग दें ताकि ऐसे लोग समय और परिस्थितियों के हिसाब से जीवन जी सके।

प्रश्नः 'धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा जो झरा जो बरा सो बुताना' का अर्थ बताएं।

उत्तर- 'धरा' का अर्थ पृथ्वी है 'फरा' का अर्थ जन्म लेने से है 'झरा' से मृत्यु से है 'बरा' का अर्थ जलने से है वहीं 'बुताना' का अर्थ बुझाने से है। यह वाक्य इस बात की ओर संकेत करता है कि जो जन्म लिया है उससे बुढ़ापा और मृत्यु जैसे अति प्रमाणिक सत्य को मानना ही होगा।

प्रश्नः तुलसीदास जी ने किस बात की सच्चाई पर अपनी मुहर लगाई थी?

उत्तर- जरा और मृत्यु दोनों ही जगत के अति परिचित और अति प्रमाणिक सत्य है इस बात की इस सच्चाई पर तुलसीदास जी ने भी अपनी मुहर लगाई थी।

प्रश्नः क्यों नहीं फलते ही समझ लेते बाबा की झरना निश्चित है लेखक इस वाक्य के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर-लेखक इस वाक्य के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जो व्यक्ति धरती पर जन्म लेता है उसे एक ना एक दिन इस धरती से विदा भी होना पड़ता है क्योंकि जरा और मृत्यु दोनों ही अति प्रमाणिक सत्य है।

प्रश्नः महाकाल देवता के कूड़े से कौन व्यक्ति बचा रहता है और कैसे?

उत्तर- जो व्यक्ति समय और परिस्थिति के साथ अपने आप को बदल लेता है ऐसे व्यक्ति महाकाल देवता के कूड़े से बच जाते हैं।

प्रश्नः दुरंत (कठिन) प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। इस वाक्य का अर्थ बताएं?

उत्तर- उपरोक्त वाक्यांश में सर्व व्यापक कालाग्नि का अर्थ मृत्यु से है। एवं दुरंत प्राणधारा का अर्थ ऐसे व्यक्तियों से है जिनके अंदर जीवित रहने की इच्छा प्रचंड हो, किसी भी कीमत पर अपने अधिकार लिप्सा को छोड़ने की इच्छा नहीं रखते हो। व्यक्ति जरा और मृत्यु जैसे आती प्रमाणित सत्य को जानने के बाद भी काल से होड़ लगाने से पीछे नहीं हटते।

प्रश्नः 'जमे की मरे' ऐसा लेखक ने क्यों कहा हैं?

उत्तर- लेखक कहना चाहते हैं कि जो व्यक्ति समय और परिस्थितियों के साथ नहीं बदलता वैसे व्यक्ति का जीवित रह पाना मुश्किल है क्योंकि जमने का अर्थ है अपनी अधिकार लिप्सा को ना छोड़ पाना किंतु जरा और मृत्यु दोनों ही व्यक्ति की उर्जा को प्रभावित करता है ऐसे में वक्त रहते ही अपने आप को बदल लेना चाहिए।

प्रश्नः लेखक ने शिरीष को अद्भुत अवधूत क्यों माना है?

उत्तर- लेखक शिरीष को अद्भुत अवधूत मानते हैं जिस प्रकार से एक सन्यासी दुख और सुख की परिभाषा से अपने को अलग रखते हैं और विषम परिस्थितियों में भी आठों पहर मस्त रहते हैं उसी भांति शिरीष भी विषषमपरिस्थिति में अपने आप को जीवित रखने की कला को जानता है।

प्रश्नः किन कवियों को लेखक ने अनासक्त योगी की श्रेणी में रखा हैऔर क्यों?

उत्तर- कालिदास, कबीर, रविन्द्रनाथ ठाकुर एवं सुमित्रानंदन पंत को लेखक ने अनासक्त योगियों की श्रेणी में रखा है। लेखक के अनुसार अवधूत के मुंह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएं निकली है क्योंकि यह बिना पक्षपात किए, सुख और दुख की परिभाषा से अलग रहते हुए जीवन को जिया है इसलिए इनकी रचनाएं भी सबसे अधिक सरल हो सकी।

प्रश्नः कालिदास के काव्य मेघदूत के बारे में लेखक ने क्या कहा है?

उत्तर- कालिदास की काव्य मेघदूत के विषय में लेखक कहते हैं कि यह कोई पवित्र विचार को धारण करने वाला व्यक्ति ही ऐसी रचना कर सकता है। गर्मी, उमस, लू की परवाह किए बगैर शिरीष कोमल पुष्पों को उत्पन्न कर सकता है शिरीष के समान मस्त बेपरवाह फक्कड़ किंतु सरस औरमादक हो वही मेघदूत जैसी रचनाओं को लिख सकता है।

प्रश्नः किस विचारधारा के कवियों को फटकार लगाते हैं?

उत्तर- लेखक कहते हैं कि तुक और छंद जोड़ लेने से कोई कवि भर नहीं हो जाता। कविहोने के यह आवश्यक गुण अवश्य है किंतु जिन कवियों को जीवन की गणित को सुलझाने से फुर्सत नहीं है, और जिनका हृदय आत्म केंद्रित नहीं है ऐसे व्यक्ति को लेखक ने श्रेष्ठ कवि की श्रेणी से बाहर रखा है।

प्रश्नः कर्नाट की रानी प्रिया विज्जिका देवी ने श्रेष्ठ कवि किसे माना है?

उत्तर- कर्नाट की रानी प्रिया विज्जिजका देवी ने वेदों के रचयिता ब्रह्मा जी, रामायण के रचयिता बाल्मीकि और महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी को श्रेष्ठ कवियों की श्रेणी में रखा है। इनकी रचनाएं मानव कल्याण निहित लिखी गई थी इसलिए रानी ने इन कवियों को श्रेष्ठ कवि के श्रेणी में रखा है।

प्रश्नः कवि बनने के लिए लेखक ने क्या उपाय सुझाए हैं?

उत्तर- लेखक कवि बनने के लिए सबसे आवश्यक तत्व कवि का फक्कड़ाना स्वभाव को माना है। फक्कड़ का अर्थ होता है जो व्यक्ति हर परिस्थिति में खुश रहना जानता हो। अति लगाव से जो रिक्त हो, आनंद और दुख से विशेष प्रभावित ना हो वैसे व्यक्ति ही श्रेष्ठ कवि बन सकते हैं।

प्रश्नः लेखक के अनुसार श्रेष्ठ कवि बनने के लिए कवियों को किस वृक्ष भांति बनना चाहिए?

उत्तर- कवि बनने के लिए लेखक एक के अनुसार श्रेष्ठ कवि बनने के लिए कवियों को शिरीष के वृक्ष की भांति होना चाहिए।

प्रश्नः कवियों के बारे में लेखक ने अपने अनुभव से क्या समझा?

उत्तर- लेखक कवियों को श्रेष्ठ कवि बनने के लिए विशाल हृदय का होना आवश्यक माना है आसक्त रहित होकर ही कोई कवि बन सकता है जिसमें कोई विशेष लगा बना हो और जो आनंद और दुख की सीमा से परे हो। किंतु किंतु लेखक ने यह महसूस किया कि लोग छंद और तुक भर बना लेने से ही अपने आप को श्रेष्ठ कवि समझने लगते हैं। इन्हें जितना भी उपदेश दिया जाए यह वर्ग इसे अनसुना कर देता है।

प्रश्नः लेखक ने कालिदास को अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय पाने वाला व्यक्ति क्यों माना है?

उत्तर-अनासक्त योगी का अर्थ है लगाव रहित होना और स्थिर प्रज्ञता का अर्थ है किसी भी भाव में सम रहना चाहे वह दुख हो या सुख और विद्‌ध प्रेमी का अर्थ है प्रेम में पीड़ा पाया हुआ व्यक्ति। कालिदास 11 श्लोक को देखने के बाद लेखक को यह महसूस होता है कि उपयुक्त सारे गुण कवि में विद्यमान थी तभी वे इतने बेजोड़ साहित्यक रचनाएं करने में सफल रहे।

प्रश्नः शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी ऐसा लेखक ने ऐसा क्यों कहां है?

उत्तर- लेखक कहते हैं कि शकुंतला बहुत सुंदर थी ऐसा अनुमान लगाया जाता है किंतु वास्तव में वह कितनी सुंदर थी यह किसी को ज्ञात नहीं किंतु नायिका के रूप में कालिदास ने उन्हें अत्यंत सुंदरता के साथ अपने काव्य में चित्रित किया है। लेखक कहते कि इतनी सुंदर नायिका को केवल एक भावपूर्ण हृदय रखने वाला कवि कालिदास ही चित्रित कर सकता हैं।

प्रश्नः दुष्यंत शकुंतला का चित्र बनाते समय क्यों खींझ (क्रोध) उठे?

उत्तर- दुष्यंत शकुंतला का चित्र बनाते समय इसलिए खीझ उठे क्योंकि कई बार प्रयास करने के पश्चात भी शकुंतला जितनी सुंदर है उतनी सुंदर उसकी तस्वीर दुष्यंत बना नहीं पा रहे थे।

प्रश्नः शिरीष का फूल शकुंतला के चित्र को किस प्रकार प्रभावित कर रहा था?

उत्तर- दुष्यंत शकुंतला का चित्र बनाते हैं चित्र बनाते समय उन्हें बार-बार कुछ कमी लग रही थी वे समझ नहीं पा रहे थे कि चित्र में आखिर कमी क्या है किंतु कुछ क्षण के पश्चात उन्हें समझ आया कि शकुंतला अपने कानों में जो शिरीष के फूल पहना करती थी उन्होंने उसे चित्र में उभारा ही नहीं और शिरीष फूल के अभाव में शकुंतला की सुंदरता फीकी लग रही थी।

प्रश्नः लेखक ने कालिदास को अनासक्त कृपीवल (किसान) की भांति क्यों माना है?

उत्तर- कालिदास की तुलना उस किसान से की है जो रस निकालने में समर्थ तो होता ही है किंतु रसविहीन गन्ने से भी रस निकालने की क्षमता रखता है। कालिदास अपनी रचनाओं के लिए ना के लिए ना केवल वही सौंदर्य से रस भावको ग्रहण करते थे बल्कि आंतरिक सुंदरता से भी रस ग्रहण करते थे। सुख हो या दुख दोनों के उत्तम भावों को भी अपने काव्य में सृजित करते थे इसलिए तो उनकी उनके काव्य विश्व के श्रेष्ठ रचनाओं में गिने जाते हैं।

प्रश्नः रविंद्र नाथ ठाकुर ने लक्ष्य के विषय में क्या कहा है?

उत्तर- रवींद्रनाथ ठाकुर एक अनासक्त कवि थे वे सुंदरता को आंतरिक रूप से देखा करते थे उनका मानना था कि कोई भी वस्तु अंतिम रूप से सुंदर नहीं हो सकता। प्रकृति में पाए जाने वाले पेड़ पौधे हो या गगन की ओर सिर उठायाराज्य उद्यान का सिंह द्वार ही क्यों ना हो उसके सुंदरता और लक्ष्य के बाद भी एक लक्ष्य अवश्य होता है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें उत्सुक होना चाहिए।

प्रश्नः शिरीष कोमलता और कठोरता दोनों का गुण धर्म कैसे निभाता है?

उत्तर- तपती धरती, लो के असहनीय थपेड़ों के बीच भी शिरीष कोमल पुष्प को विकसित करने में सक्षम होता है। किंतु यह देखने योग्य है कि शिरीष के फल अत्यधिक कठोर होते है। आश्चर्य की बात है कि एक ही दो विभिन्न गुणधर्म वाले पुष्प और फल को पोषित करता है यह इसलिए संभव है क्योंकि शिरीष अति लगाव एवं पक्षपात से रहित है।

प्रश्नः लेखक ने गांधीजी की तुलना शिरीष से क्यों की है?

उत्तर- लेखक ने गांधीजी की तुलना शिरीष से की है इसका पहला कारण तो यह है कि जिस प्रकार शिरीष हर ऋतु में अपने आप को सम भाव में रखता है। देश में जब आरजकता का काल था और सारा देश प्रभावित हो रहा था तब गांधीजी बिना विचलित हुए सम भाव से पूरे देश के लिए पक्षपात रहित कार्य कर रहे थे। दूसरा कारण यह है कि जिस प्रकार शिरीष कोमल पुष्प को विकसित करता है वही कठोर फल काभी पोषण करता है। कुछ वैसे ही गांधीजी का भी आचरण था। हृदय से वे जितने कोमल थे आवश्यकता पड़ने पर कुछ गलत होता देखकर वे बड़ी कठोरता के साथ विरोध भी करते थे।

शिरीष के फूल : बहु वैकल्पिक प्रश्न उत्तर

1. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म किस वर्ष हुआ?

क) 1960

ख) 1970

ग) 1980

घ) 1907

ट्रिक- हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के जन्म वर्ष याद रखने का ट्रिक-(1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना की गई)

2. 'शिरीष का फूल' किस विधा की रचना है?

(क) ललित निबंध

(ख) कहानी

(ग) नाटक

(घ) कविता

उत्तर -क) ललित निबंध

3. अमलतास कितने दिन के लिए फूलता है?

(क) 10 दिन

(ख) 5 दिन

(ग) 15-20 दिन

(घ) 30 दिन

उत्तर:ग) 15-20 दिन

4. शिरीष के फूल को किस भाषा में कोमल माना जाता है?

(क) संस्कृत

(ख) उर्दू

(ग) अंग्रेजी

(घ) हिब्रू

उत्तरः (क) संस्कृत

5. राजा दुष्यंत ने किसका चित्र बनाया था?

(क) मीरा

(ख) रत्ना

(ग) पद्मावती

(घ) शकुंतला

उत्तरः (घ) शकुंतला

6. शिरीष के फूल किन का दबाव सहन कर सकते हैं?

(क) सांप

(ख) भौंरो

(ग) गिद्धों

(घ) चूहों

उत्तरः (ख) भौंरो

7. कौन से महान कविनुसार बगीचे में घने छायादार वृक्षों में झूला लगाना चाहिए?

(क) वात्स्यायन

(ख) कालिदास

(ग) कबीर

(घ) पाश

उत्तरः (क) वात्स्यायन

8. लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे पहले क्या बनने की ज़रूरत है?

(क) उदास

(ख) प्रेमी

(ग) फक्कड़

(घ) आज़ाद

उत्तरः (ग) फक्कड़

9. लेखक ने शिरीष की तुलना किसके साथ की है?

क) भिखारी के साथ

ख) अवधूत के साथ

ग) साधु के साथ

घ) गृहस्थ के साथ

उत्तर ख) अवधूत के साथ

10. 'शिरीष के फूल' के रचयिता का क्या नाम है?

क) डॉ० नगेन्द्र

ख) रामवृक्ष बेनीपुरी

ग) उदय शंकरभट्ट

घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

उत्तरः घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

11. आरग्वध किस पेड़ का नाम है?

क) आम का

ख) नीम का

ग) अमलतास का

घ) शिरीष का

उत्तरः ख) अमलतास

12. किस ऋतु के आने पर शिरीष लहक उठता है?

क) वर्षा ऋतु

ख) शरद ऋतु

ग) वसंत ऋतु

घ) शीतल ऋतु

उत्तर: ख) वंसत ऋतु

13. शिरीष की डालें कैसी होती हैं?

क) कमजोर

ख) मोटी

ग) मजबूत

घ) पतल

उत्तर: क) कमजोर

14. "धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना" कथन किस कवि का है?

क) कबीरदास

ख) सूरदास

ग) तुलसीदास

घ) बिहारी

उत्तरः ग) तुलसीदास

15. कौन सपासप कोड़े चला रहा है?

क) रावण

ख) अत्याचारी राजा

ग) ब्रह्मा

घ) महाकाल देवता

उत्तरः घ) महाकाल देवता

16) 'मेघदूत' किस कवि की रचना है?

क) कालिदास

ख) व्या

ग) वाल्मीकि

घ) भवभूति

उत्तर -क) कालिदास

17. कर्णाट-राज की कन्या का क्या नाम है?

क) विजय देवी

ख) लक्ष्मी देवी

ग) पार्वती देवी

घ) विज्जिका देवी

उत्तरः घ) विज्जिका देवी

18. अंत में लेखक ने शिरीष की तुलना किसके साथ की है?

क) महात्मा गांधी

ख) जवाहर लाल नेहरू

ग) सरदार पटेल

घ) लाल बहादुर शास्त्री

उत्तर: क) महात्मा गांधी

19. शिरीष का पुष्प कौन से महीने में खिलता है?

क) वंसत ऋतु

ख) हेमंत ऋतु

ग) शिशिर ऋतु

घ) शरद ऋतु

उत्तर -क) वंसत ऋतु

20. जब सारी धरती गर्मी से तप रही होती है तो कौन सा वृक्ष फूलों से लदा रहता है?

क) महुआ का

ख) नीम का

ग) शिरीष का

घ) बबूल का

उत्तर -ग) शिरीष का

21. पुराने भारत का रईस किन-किन मंगल वृक्षों को अपने चाहर दीवारी में लगाया करते थे?

क) बरगद, पीपल, बबूल, जामुन

ख) अशोक, अरिष्ट, पून्नाग, शिरीष

ग) बबूल, बांस, कत्था, महुआ

घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -ख) अशोक, अरिष्ट, पून्नाग, शिरीष

22. 'कामसूत्र' किसकी रचना है?

क) जयशंकर प्रसाद

ख) वात्सायायन

ग) कालिदास

घ) केशव

उत्तर -ख) वात्सायायन

23. कौन सा फूल संस्कृत - साहित्य में बहुत कोमल माना गया है?

क) शिरीष का फूल

ख) कनेर का फूल

ग) पलाश का फूल

घ) सेमल का फूल

उत्तर -क) शिरीष का फूल

24. लोहे का वृक्ष बनवाने की सलाह लेखक किसके लिए देना चाहते हैं?

क) महिलाओं क

ख) तुंदिल नरपतियों को

ग) नव युवतियों को

घ) बच्चों को

उत्तर -ख) तुंदिल नरपतियों को

25. कालिदास के अनुसार शिरीष का पुष्प केवल भौरों का भार उठा सकता हैऔर किसका नहीं -

क) पुष्प का

ख) पक्षियों का

ग) फलों का

घ) पराग का

उत्तर -ख) पक्षियों का

26. तुलसीदास जी ने किस बात की सच्चाई पर अपनी मुहर लगाई थी?

क) जरा और मृत्यु पर

ख) अमरता पर

ग) बचपन पर

घ) स्वस्थ जीवन पर

उत्तर -क) जरा और मृत्यु पर

27. सर्वव्यापक 'कालाग्नि' का अभिप्राय बताएं?

क) जीवन

ख) जरा

ग) मृत्यु

घ) बचपन

उत्तर -ग) मृत्यु

28. शिरीष के फल की प्रकृति कैसी मानी गई है?

क) कठोर

ख) कोमल

ग) मृदु

घ) कमजोर

उत्तर -क) कठोर

29. लेखक ने शिरीष को क्या माना है?

क) अद्भुत अवधूत

ख) साधारण पेड़

ग) कांटेदार वृक्ष

घ) नुकीली पत्तियों वाला वृक्ष

उत्तर -क) अद्भुत अवधूत

30. कालिदास, कबीर, रविन्द्रनाथ ठाकुर एवं सुमित्रानंदन पंत को लेखक ने किस श्रेणी में रखा है?

क) साधारण व्यक्ति

ख) साधारण कवि

ग) अनासक्त योगी

घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -ग) अनासक्त योगी

31. लेखक ने श्रेष्ठ कवि होने के क्या गुण माने हैं?

क) फक्कड़ होना

ख) मस्त मौला रहना

ग) सुख-दुख में समभाव रखना

घ) इनमें से सभी

उत्तर -घ) इनमें से सभी

32. ब्रह्मा, वाल्मीकि, वेद व्यास को किस रानी ने श्रेष्ठ कवि माना है?

क) रानी लक्ष्मीबाई

ख) कर्नाट की रानी प्रिया विज्जिजका देवी

ग) अहिल्याबाई

घ) जोधा बाई

उत्तर -ख) कर्नाट की रानी प्रिया विज्जिजका देवी

33. लेखक ने किसे अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय पाने वाला व्यक्ति माना है?

क) कालिदास

ख) तुलसीदास

ग) मीराबाई

घ) विद्यापति

उत्तर -क) कालिदास

34. प्रज्ञता का अर्थ है-

क) दुख

ख) सुख

ग) बुद्धि

घ) क्रोध

उत्तर -ग) बुद्धि

35. विदग्ध प्रेमी का अर्थ बताएं

क) सुंदर व्यक्ति

ख) प्रेम में पीड़ा पाया हुआ व्यक्ति

ग) महात्मा व्यक्ति

घ) शांत व्यक्ति

उत्तर -ख) प्रेम में पीड़ा पाया हुआ व्यक्ति

36. दुष्यंत किसके चित्र को बनाने में असफल हो रहे थे?

क) महल का

ख) शकुंतला क

ग) कालिदास का

घ) रानी प्रिया का

उत्तर -ख) शकुंतला का

37. राजा दुष्यंत शकुंतला के चित्र बनाते समय क्या बनाना भूल गए थे?

क) कानों में शिरीष का फूल

ख) गले का हार

ग) मोती की माला

घ) आभूषण

उत्तर -क) कानों में शिरीष का फूल

38. लेखक ने किसे अनासक्त कृपीवल (किसान) की भांति माना है?

क) कालिदास

ख) तुलसीदास

ग) मीराबाई

घ) विद्यापति

उत्तर -क) कालिदास

39. समभाव का अर्थ है-

क) दुखी रहना

ख) सुखी रहना

ग) सुख दुख में एक समान भाव में रहना

घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर -ग) सुख दुख में एक समान भाव में रहना

40. लेखक ने गांधीजी के कोमल एवं कठोर गुण धर्म को धारण करने के कारण किस वृक्ष से तुलना की है?

क) अशोक

ख) कनेर

ग) शिरीष

घ) पलाश

उत्तर -ग) शिरीष

पाठ के आसपास

ललित निबंध- ऐसे निबंध जिसमें भावना, कल्पना, अनुभूति की प्रधानता हो ऐसे निबंध को ललित निबंध कहते हैं। मनोरंजक, हल्के फुल्के और विनोद पूर्ण और आत्मपरक शैली द्वारा गंभीर समस्याओं पर निबंधकार अपनी बात को पाठकों के सामने रखते हैं।

प्रमुख ललित निबंधकार- भारतेंदु हरिश्चंद्र, पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बालमुकुंद गुप्त एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी।

कालिदास-कालिदास गुप्तकालीन संस्कृत भाषा के महान कवि एवं नाटककार थे । मेघदूत एवं अभिज्ञान शकुंतलम इनकी द्वारा रची गई प्रसिद्ध रचना है।

मेघदूत-मेघदूत कालिदास जी द्वारा रचित एक दूतकाव्य है। इसमें एक यक्ष की कथा है जो कुबेर द्वारा अलकापुरी स्थान से निष्कासित किया जाता है। वह अपनी प्रेमिका को मेघ द्वारा संदेश भेजना चाहता है।

अभिज्ञान शकुंतलम-अभिज्ञान शाकुंतलम् कालिदास जी द्वारा रचित नाटक है। इस नाटक में राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रणय, विरह और पुनर्मिलन की कहानी को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया गया है।

राजा दुष्यंत-राजा दुष्यंत कालिदास जी द्वारा रचित नाटक अभिज्ञान शकुंतलम के नायक हैं। वे पुरुवंशी राजा थे जिन्होंने ऋषि कण्व द्वारा पोषित पुत्री शकुंतला से गंधर्व विवाह किया था। विवाह के पश्चात वे ऋषि कण्व की अनुपस्थिति में शकुंतला के बिना ही अपने राजमहल को लौट जाते हैं। महल लौटते समय दुष्यंत ने शकुंतला को निशानी स्वरूप अंगूठी प्रदान की थी।

शकुंतला-शकुंतला ऋषि कण्व द्वारा पोषित ऋषि कन्या थी। मान्यता अनुसार राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर ही भारत देश का नाम रखा गया है।


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