स्टोपलर-सेम्युलसन प्रमेय (Stopler-Samuelson Theorem)
प्रश्न. उन स्थितियों का वर्णन कीजिए जिनमें ओहलिन
का साधन - कीमत समानीकरण सिद्धांत वैध होता है।
☞ "वस्तुओं का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन के साधनों की अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता
का एक प्रतिस्थापन है।" इस दृष्टिकोण की व्याख्या विकासशील एवं विकसित देशों के
मध्य होने वाले व्यापार के संदर्भ में कीजिए ।
☞ साधन-मूस्य समानीकरण सिद्धांत
को दो साधनों व वस्तुओं के संदर्भ में प्रमाणित कीजिए।
सन्
1941 में स्टोपलर और सेम्युलसन द्वारा प्रस्तुत एक लेख "Protection and Real Wages" in A.
E.A. Readings in the Theory of International Trade', में
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उत्पादन के साधनों की आय पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण
किया गया। इस लेख में हेक्चर-ओहलिन सिद्धांत के एक उल्लेखनीय प्रयोग को प्रस्तुत
किया गया था। हेक्चर-ओहलिन
सिद्धांत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण दुर्लम साधनों का राष्ट्रीय आय में तुलनात्मक अंश कम हो
जाता है। स्टोपलर-सेम्युलसन
ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उत्पादन साधनों की कीमत पर निरपेक्ष प्रभाव का
विश्लेषण किया है। स्टोपलर-सेम्युलसन के लेख प्रकाशित होने से पूर्व लोगों का यह
मत था कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उत्पादन के किसी घटक के तुलनात्मक हिस्से
पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है परंतु उसके निरपेक्ष हिस्से पर विपरीत प्रभाव
पड़ने की संभावना कम रहती है। स्टोपलर-सेम्युलसन
ने इस मत का खंडन किया और
कहा कि "अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उत्पादन के तुलनात्मक दुर्लभ साधन
(उदाहरणार्थ अमरीका में पूंजी की तुलना में श्रम दुर्लभ साधन है) पर स्वतंत्र
व्यापार के कारण निरपेक्ष रूप से न कि तुलनात्मक रीति से विपरीत प्रभाव पड़ेगा
जिससे कुल राष्ट्रीय आय में उसके हिस्से में कमी हो जाए।" स्टोपवर-सेन्युलसन
प्रतिष्ठित विचारों के साथ इस सीमा तक तो सहमत हैं कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के
कारण देश को वास्तविक
आय में वृद्धि होती
है परंतु वे उनकी
इस बात से सहमत नहीं है कि व्यापार के कारण विभिन्न साधनों को आय का अनुपात प्रभावित नहीं होता।
मान
लीजिए A देश में दो उद्योग हैं : गेहूं और घड़ी तथा दो
उत्पादन साधन हैं : श्रम और पूंजी। जब मान लीजिए,
गेहूं श्रम-प्रधान
उत्पादन और घड़ी पूंजी-प्रधान उत्पादन है। यदि हम मान लें कि A देश में पूंजी की
प्रचुरता है तो ऐसी स्थिति में A देश को घड़ियों के उत्पादन में तुननात्मक लाभ
प्राप्त होगा। अतः विदेशी
व्यापार की स्थिति में A देश में घड़ियों का उत्पादन बढ़ेगा और गेहूं का उत्पादन
घटेगा
क्योंकि गेहूं
की अब
आंशिक पूति आयात द्वारा की जाएगी। गेहूं का उत्पादन कम
होने पर उसमें कार्यरत उत्पादन के साधन अब अन्य क्षेत्रों में प्रयुक्त होने के लिए
उपलब्ध होंगे। चूंकि घड़ियों का उत्पादन पूंजी-प्रधान है और गेहूं का श्रम-प्रधान।
इसलिए घड़ियों
के उत्पादन में श्रम की तुलना में पूंजी का अधिक उपयोग और गेहूं के उत्पादन में
पूंजी की तुलना में श्रम
का अधिक उपयोग होता है। अतः
जो श्रम
और पूंजी गेहूं के उत्पादन कम होने
के कारण शेष रह जाती है वह घड़ियों
के उत्पादन हेतु उपलब्ध हो जाती है। परंतु उल्लेखनीय बात यह है कि घड़ियों का उत्पादन पूंजी-प्रधान होने के कारण गेहूं के उत्पादन में कमी के कारण जो पूंजी बची रहती है उस
समस्त पूंजी का घड़ी के उद्योग में प्रयोग हो जाता है परंतु समस्त श्रम का नहीं।
अतः घड़ियों का उत्पादन बढ़ने से श्रम को आवश्यकता कम होगी और कुछ श्रम बेकार हो जाएंगे। फलतः
श्रम की कीमत अर्थात् मजदूरी की दर में अब कमी होगी।
स्टोपलर-सेम्युलसन प्रमेय का एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह
निकलता है कि सस्ते श्रम से उत्पन्न वस्तुओं
का अमरीका में आयात होने पर वहां के
श्रमिकों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सस्ते श्रम वाले देशों के आयात पर भारी
आयात कर लगाकर पूंजी-प्रधान देशों के श्रमिकों की मजदूरी का उच्च स्तर कायम रखा जा
सकता है।
मान्यताएं- प्रमेय की निम्न मान्यताएं हैं-
1. उत्पादन-फलन पूर्ण रूप से समान है।
2. उत्पत्ति के दोनों साधनों की मात्रा निश्चित है तथा उन्हें
पूर्ण रोजगार प्राप्त है।
3. हम एक ऐसे देश को लेते हैं जो उत्पत्ति के दो साधानों श्रम और पूंजी की सहायता से केवल दो वस्तुओं X और Y का
उत्पादन कर रहा है।
4. देश में पूर्ण प्रतियोगिता है तथा उसे निश्चित व्यापार
की शर्तों का सामना करना पड़ता है जिन्हें वह
प्रभावित नहीं कर सकता ।
5. वस्तु X का उत्पादन सापेक्षिक रूप से पूंजी प्रधान है
तथा Y का श्रम-प्रधान ।
आलोचना
(1) जब हम स्टोपलर-सेम्युलसन के प्रशुल्क संबंधी तर्क को
व्यवहार में लाने का प्रयास करते हैं तो उसमें कई कठिनाइयां आती है। सबसे महत्त्वपूर्ण कठिनाई उत्पादन के कई घटकों का
होना है। आय वितरण पर आयात-कर या शुल्क दर के प्रभावों संबंधी उपर्युक्त निष्कर्ष को
उत्पादन के दो साधनों की ही स्थिति में भली भांति स्पष्ट किया जा सकता है परंतु जब
दो से अधिक साधनों का उपयोग किया जाता है तो अपेक्षाकृत दुर्लभ साधन' और 'अपेक्षाकृत
प्रचुर साधन' अपना बहुमूल्य अर्थ
खो बैठते हैं। साथ ही कुछ साधन
केवल पूरक हों तो यह कहना संभव नहीं होता। किसी विशेष साधन का सीमांत उत्पादन दूसरे
साधन की अपेक्षा उसकी स्वयं की मात्रा पर निर्भर करता है।
(ii) बेस्टेबल, टॉजिग, बाइनर व विक्सेल जैसे विद्वानों का
मत है कि जहां तक आर्थिक नीति का संबंध है, स्टोपलर-सेम्युलसन प्रमेय गलत निष्कर्षों
पर पहुंचता है। इन अर्थशास्त्रियों का मत है कि अतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रभाव आयात
और निर्यात उद्योगों पर अलग अलग पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण निर्यात-उद्योगों
में प्रयुक्त उत्पादन-साधन के स्वामियों की आय पर अनुकूल और आयात उद्योगों में प्रयुक्त
उत्पादन घटकों के स्वामियों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
(iii) स्टोपलर-सेम्युलसन प्रमेय कुछ
कड़ी मान्यताओं पर आधारित है। हेक्श्चर-ओलिन के निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए जिन मान्यताओं
की आवश्यकता होती है वही स्टोपलर-सेम्युलसन प्रमेय की भी होनी चाहिए। इस प्रकार स्टोपलर-सेम्युलसन
प्रमेय के निष्कर्ष वास्तविक नहीं है क्योंकि वे अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित हैं।
प्रो० हैबरलर के शब्दों में "मेरी राय में तीन या अधिक उत्पादन साधन वाले अधिक वास्तविक मॉडल पर यह सिद्धांत लागू नहीं होता। उदाहरणार्थ ऐसे मॉडल पर जिसमें
निर्यात उद्योगों में एक विशिष्ट साधन और दो या अधिक स्थानांतरणीय साधन हों, ऐसी स्थिति में यह सिद्धांत क्रियाशील नहीं होगा।"
साधन कीमत समानीकरण-एक समापन विवेचन
(Factor Price Equalisation-A Concluding Remark)
जहां तक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
के फलस्वरूप साधनों की कीमतों में समानीकरण का प्रश्न है व्यावहारिक अनुभव इसके
विपरीत है क्योंकि वास्तविक जगत में यह देखने में आता है कि व्यापार के फलस्वरूप
साधन कीमतों में समानता स्थापित नहीं हुई है बल्कि साधनों की आय में असमानता ही
बढ़ी है। गुन्नार मिडंल के शब्दों में "जबकि अन्तर्राष्ट्रीय असमानताएं बढ़
रही हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इनका दबाव बढ़ता जा रहा है,
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त का विकास इस दिशा में हो रहा है कि व्यापार
विभिन्न देशों में साधनों की कीमतों और आय में क्रमशः समानता स्थापित करने की
प्रवृत्ति दिखा रहा है।
ओहलिन का समानता का सिद्धान्त
इसलिए पूर्ण रूप से क्रियाशील नहीं हो पाता है क्योंकि प्रशुल्क की बाधाएं और
परिवहन लागतें साधनों की कीमतों में समानता स्थापित नहीं होने देतीं। इसके
अतिरिक्त वस्तु और साधनों के बाजार में पूर्ण
प्रतियोगिता का अभाव और कई वस्तुओं में पूर्ण विशिष्टीकरण भी बाधा उपस्थित करता
है।
यद्यपि यूरोपियन साझा बाजार के
देशों में व्यापार के माध्यम से साधनों की कीमतों में समानता होने की प्रवृत्ति
अधिक शक्तिशाली है किन्तु अन्य देशों में उक्त सिद्धान्त के लागू होने में अधिक
शंका ही व्यक्त की जाती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)