केन्जीय सिद्धान्त (The Keynesian Theory)

केन्जीय सिद्धान्त (The Keynesian Theory)
केन्जीय सिद्धान्त (The Keynesian Theory)
केन्ज का सिद्धान्त अल्पविकसित देशों की समस्याओं का विश्लेषण नहीं करता। यह उन्नत पूँजीवादी देशों से संबद्ध है। परन्तु यह जानने के लिए कि केन्ज़ का सिद्धान्त अल्पविकसित देशों पर कहाँ तक लागू होता है, हमें केन्ज के सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन करना चाहिए। केन्ज का सिद्धान्त (KEYNES' THEORY) किसी देश में कुल आय उसके रोजगार का फलन होती है। राष्ट्रीय आय जितनी अधिक होगी, उससे रोजगार की मात्रा उतनी ही अधिक होगी, और उलट भी। रोजगार की मात्रा वास्तविक मांग पर निर्भर करती है। वास्तविक माँग रोजगार तथा आय के संतुलन स्तर को निर्धारित करती है। वास्तविक माँग उस बिन्दु पर निश्चित होती है, जहाँ कुल माँग-कीमत कुल पूर्ति-कीमत के बराबर होती है। वास्तविक मांग में उपभोग-माँग तथा निवेश-माँग शामिल है। उपभोग-मांग उपभोग प्रवृति पर निर्भर करती है। जिस सीमा तक आय बढ़ती है, उस सीमा तक उपभोग प्रवृत्ति नहीं बढ़ती। आय तथा उपभोग के बीच के अन्तर को निवेश के द्वारा पूरा किया जा सकता है। यदि निवेश की अपेक्षित मात्रा उपलब्ध नहीं होती, तो कुल पूर्ति-कीमत से कुल माँग-कीमत कम रह जाएगी। परिणामस्वरूप, आय तथा रोजगार तब तक कम…