David Ricardo |
डेविड
रिकार्डो (David Ricardo) ने अपनी पुस्तक The Principles of Political Economicy
and Taxation में स्मिथ की तरह अव्यवस्थित ढंग से आर्थिक विकास से सम्बन्धित अपने विचार
व्यक्त किए। यह पुस्तक 1917 में प्रकाशित हुई और इसके 1921 के तीसरे संस्करण एवं कई
अर्थशास्त्रियों के साथ किए गए पत्र-व्यवहारों के आधार पर रिकार्डों का सिद्धान्त प्रस्तुत
किया गया है।
रिकार्डो का सिद्धान्त (RICARDO'S
THEORY)
रिकार्डो
ने आर्थिक विकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया। शूम्पीटर के अनुसार उसने केवल
वितरण के सिद्धान्त का विवेचन किया। इसलिए रिकार्डो का विश्लेषण एक चक्करदार मार्ग
है। यह सीमान्त और अतिरेक नियमों पर आधारित है। 'सीमान्त नियम राष्ट्रीय उत्पादन
में लगान के भाग की व्याख्या करता है और 'अतिरेक नियम' बाकी बचे भाग के मजदूरी और लगान
में विभाजन की।
सिद्धांत की मान्यताएं (Assumption of the
Theory)
रिकार्डो
का सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है:
(i)
कि अनाज के उत्पादन में समस्त भूमि का प्रयोग होता है और कृषि में कार्यशील शक्तियाँ उद्योग में वितरण निर्धारित करने का काम करती हैं;
(ii)
कि भूमि पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है;
(iii)
कि भूमि की पूर्ति स्थिर है;
(iv)
कि अनाज की माँग पूर्ण अलोचशील है;
(v)
कि पूँजी और श्रम परिवर्तनशील आगत (inputs) हैं;
(vi)
कि समस्त पूँजी समरूप है;
(vii)
कि पूँजी में केवल चल पूँजी ही शामिल है;
(viii)
कि तकनीकी ज्ञान की स्थिति दी हुई है।
(ix)
कि सभी श्रमिकों को निर्वाह-मजदूरी दी जाती है;
(x)
कि श्रम की पूर्ति कीमत स्थिर तथा दी हुई है;
(xi)
कि श्रम की मांग, पूँजी के संचय पर निर्भर करती है। श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति-कीमत दोनों ही श्रम की सीमान्त उत्पादकता से स्वतंत्र होती हैं;
(xii)
कि पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है;
(xiii)
कि पूंजी-सचंय लाभ से उत्पन्न होता है।
तीन वर्ग (Three groupsy-इन
मान्यताओं के आधार पर रिकाडों की प्रणाली में समस्त अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़ी
फर्म है जो पूर्ति में स्थिर है तथा उस पर श्रम और पूंजी की समरूप इकाईयां लगाकर
केवल अनाज उत्पादित किया जाता है । यह इस अर्थव्यवस्था का विकास तीन वर्गों के
परस्पर सम्बन्धों पर आधारित है। वे है: (i) भूमिपति, (ii) पूँजीपति, तथा (iii) श्रमिक-जिनमें भूमि की समस्त
उपज बाँटी जाती है। इन तीन वर्गों में कुल राष्ट्रीय उत्पादन क्रमशः लगान, लाभ और
मजदूरी के रूप में बाँट दी जाती है।
लगान, लाभ एवं मजदूरी का बंटवारा (Division of rent, profit and
wages)-अनाज का कुल उत्पादन दिया होने पर प्रत्येक
वर्ग का भाग निर्धारित हो सकता है। श्रम का प्रति इकाई लगान, श्रम के औसत और
सीमान्त उत्पादन का अन्तर होता है या कुल लगान, उत्पादन की औसत मात्रा तथा श्रम के
सीमान्त उत्पादन का अन्तर (गुणा) भूमि पर लगाई गई श्रम और पूँजी की मात्रा। श्रम
के सीमान्त उत्पादन और मजदूरी की दर का अन्तर'लाभ' होता है। मजदूरी कोष (भाग)
निर्वाह-स्तर पर लगाए गए मजदूरों की संख्या के आधार पर मजदूरी की और निर्धारित की
जाती है। इस प्रकार उत्पादन और विक्रय किए गए कुल अनाज में से पहला हक है लगान का
और शेष उत्पादन घटा लगान] मजदूरी और लाभ में विभाजित कर दिया जाता है, जबकि ब्याज
लाभ में ही शामिल होता है।'
पूजी-संचय की प्रक्रिया (Process of Capital Accumulation)
रिकार्डो
के अनुसार पूँजी-संचय लाभ से होता है क्योंकि लाभ में ही धन को बचाया जाता है जो पूँजी
निर्माण के काम आता है। पूँजी-संचय दो घटकों पर निर्भर करता है : प्रथम बचत करने
की क्षमता और द्वितीय, बचत करने की इच्छा। पूँजी-संचय में बचत करने की क्षमता अधिक
महत्त्वपूर्ण होती है। यह समाज की शुद्ध आय पर निर्भर करती है, जो श्रमिकों के
जीवन-निर्वाह के पश्चात कुल उत्पादन में से अतिरेक (surplus) के रूप में बचती है।
जितना यह अतिरेक अधिक होगा, उतनी ही बचत करने की क्षमता अधिक होगी। जैसाकि
रिकार्डो ने कहा, "दो रोटियों में से मैं एक बचा सकता हूँ, और चार में से
तीन।" भूमिपति एवं पूँजीपति इसी अतिरेक द्वारा निवेश करते हैं। इस शुद्ध आय
के अतिरेक का आकार लाभ की दर पर निर्भर करता है।
(1) लाभ की दर (Profit rate)-लाभ की दर = लाभ/मजदूरी, अर्थात,
लाभ की दर निवेशित पूँजी के लाभों के अनुपात के बराबर होती है।
लेकिन क्योंकि पूँजी केवल चल पूँजी है इसलिए यह मजदूरी बिल के बराबर है। जब तक लाभ
की दर धनात्मक रहेगी, पूँजी-संचय होता रहेगा; श्रम की मात्रा में आनूपातिक वृद्धि
होती रहेगी और कुल मजदूरी कोष भी बढ़ता रहेगा। वास्तव में, लाभ मजदूरी पर निर्भर
करते हैं, मजदूरी अनाज की कीमत पर और अनाज की कीमत सीमान्त भूमि की उर्वरता पर। इस
प्रकार लाभ और मजदूरी में विपरीत सम्बन्ध होता है और मजदूरी अनाज की कीमत के
अनुसार कम या अधिक होगी। जब कृषि में सुधार होते हैं तो भूमि की उत्पादन शक्ति बढ़
जाती है या बढ़िया मशीनें लगाने से कम श्रमिकों द्वारा अधिक उपज प्राप्त होती है।
इनसे अनाज की कीमत कम होती है जिससे निर्वाह-मजदूरी भी कम हो जाती है परन्तु लाभ
बढ़ते हैं और पूँजी-संचय अधिक होता है। इससे श्रम की माँग बढ़ेगी और मजदूरी दर में
वृद्धि होगी, जिससे जनसंख्या बढ़ने का कारण अनाज की माँग और कीमत भी बढ़ेगी तथा
मजदूरी में और वृद्धि होगी। इस प्रकार मजदूरी बढ़ने पर लाभ कम होंगे।
(2) मजदूरी की वृद्धि (Increase in wages)-रिकार्डो
ने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि पूँजी-संचय केवल विभिन्न
परिस्थितियों में भी लाभों को कम करेगा। रिकार्डो-प्रणाली के अनुसार पूँजी तथा
श्रम के बीच आय का निर्धारण करने में मजदूरी सक्रिय भाग लेती है। मजदूरी तब बढ़ती
है, जब मजदूर के निर्वाह को बनाने वाली वस्तुओं का मूल्य भी बढ़ता है। जिन वस्तुओं
का मजदूर उपभोग करते हैं, वे प्रमुख रूप से कृषि-वस्तुएं होती हैं। ज्यों-ज्यों
जनसंख्या और खुराक के लिए माँग बढ़ती है, त्यों-त्यों कम उपजाऊ भूमि पर काश्त होने
लगती है। उस उद्देश्य के लिए वस्तु की एक इकाई का उत्पादन करने में अधिक मजदूरों
की आवश्यकता होती है। श्रम के लिए माँग बढ़ने लगेगी, जिससे मजदूरी बढ़ जाएगी। फिर निर्वाह
की लागत का साथ देने के लिए मुद्रा-मजदूरी भी बढ़ती रहेगी। अनाज की कीमत के साथ मजदूरी
बढ़ेगी और तब आवश्यक है कि लाभ कम हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में लगान भी बढ़ जाता है,
जो अनाज की कीमत में हुई वृद्धि को खपा लेता है। क्योंकि मजदूरी की दरें भी बढ़ जाती
हैं, इसलिए लाभों में कमी हो जाती है। ये दोनों विरोधी प्रवृत्तियाँ अन्त में पूँजी-संचय
को रोक देती हैं।
(3) अन्य उद्योगों में भी लाभों की कमी (Declining profits in
other industries)-रिकार्डो के अनसार, "किसान के लाभ अन्य
सब व्यापारियों के लाभों को नियमित करते हैं।' इसलिए यह आवश्यक है कि संतुलन में कृषि
और उद्योग दोनों से पूँजी पर अर्जित लाभ की मौद्रिक दर समान हो। विनिर्माणकारी उद्योग
में अनाज को आगत के रूप में प्रयोग किया जाता है और औद्योगिक वस्तुओं की कीमतों तथा
अनाज की कीमत में निश्चित सम्बन्ध के माध्यम से लाभ की दर में समानता आती है। अतः जब
कृषि क्षेत्र में लाभ की दर कम होती है तो विनिर्माणकारी उद्योग में भी यह कम हो जाती
है क्योंकि अनाज की कीमत बढ़ने से उद्योग को श्रमिकों की मजदूरी बढ़ानी पड़ेगी जिससे
उसके लाभ भी कम हो जाएंगे। इस प्रकार कृषि क्षेत्र में लाभ कम होने से सभी व्यापारियों
में लाभ की दर कम होगी।
पूँजी-संचय के अन्य साधन (Other Sources of Capital Accumulation)
रिकार्डो
के अनुसार, आर्थिक विकास उत्पादन तथा उपभोग के अन्तर पर निर्भर करता है। इसलिए वह उत्पादन
के बढ़ाने और अनुत्पादक उपभोग में कमी करने पर जोर देता है। श्रम की उत्पादकता को तकनीकी
परिवर्तनों द्वारा बढ़ाकर पूँजी-संचय अधिक किया जा सकता है। परन्तु मशीनों के अधिक
प्रयोग से कम श्रमिक रोजगार पर लगाए जाएंगे जिससे बेरोजगारी होगी और मजदूरी कम हो जाएगी।
क्योंकि मशीनों के प्रयोग से लोगों की आर्थिक दशा खराब हो जाती है, रिकार्डो तकनीकी
परिवर्तनों को स्थिर मानता है।
(i) कर (Taxes)-कर सरकार के हाथ में पूँजी-संचय का एक साधन
है। रिकार्डो के अनुसार करों को केवल दिखावटी उपभोग को कम करने के लिए ही लगाना आवश्यक
होता है अन्यथा पूँजीपतियों, भूमिपतियों एवं मजदूरों पर कर लगाने से साधनों का हस्तांतरण
इन वर्गों से सरकार
को
होगा। परन्तु करों का निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसलिए रिकार्डो कर लगाने
के विरुद्ध है क्योंकि करों द्वारा आय, लाभ एवं पूँजी-संचय कम होते हैं।
(ii) बचतें (Savings)- इसलिए रिकार्डों करों के स्थान
पर बचतों की पूँजी-संचय के लिए अधिक महत्व देता है। उसके अनुसार बचतें लाभों की दरों
को बढ़ाकर, वस्तुओं के मूल्यों में कमी करके, व्यय तथा उत्पादन से की जा सकती हैं।
जितनी बचतें अधिक होंगी, जी-संचय भी उनके साथ अधिक होगा।
(iii) मुक्त व्यापार (Free trade)-रिकार्डो मुक्त व्यापार
के पक्ष में है। देश की आर्थिक उन्नति के लिए मुक्त व्यापार एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व
है। अनाज का आयात करके लाभ की दर को गिराने से बचाया जा सकता है। जिससे पूँजी-संचय
अधिक होता रहेगा। इस प्रकार मुक्त व्यापार द्वारा संसार के साधनों का अधिक दक्षतापूर्ण
उपयोग किया जा सकता । परन्तु पूँजी निर्यात से देश में श्रम की माँग कम हो जाती है
जिससे श्रमिकों की आर्थिक दशा खराब हो जाती है। दूसरी ओर, भूमिपति एवं पूँजीपति विदेशों
से सस्ता अनाज मैंगवाना उचित नहीं समझते जिस कारण उनके लाभों में कमी होती है। ऐसा
स्वाभाविक होता है क्योंकि जनसंख्या के बढ़ने और भूमि पर घटते प्रतिफल का नियम लागू
होने से जब अनाज की कीमत और मजदूरी दर बढ़ती है, तो लाभ दर 'कम होती है; इसलिए वे विदेशों
से अनाज नहीं मॅंगवाना चाहते।
रिकार्डों के मॉडल को चित्र द्वारा व्यक्त किया गया है।
अनाज
की मात्रा को अनुलम्ब अक्ष मापता है और कृषि में लगाई गई श्रम की मात्रा को क्षैतिज
अक्ष मापता है। श्रम के औसत उत्पादन को AP वक्र प्रकट करता है और सीमान्त उत्पादन को
MP वक्र। श्रम की OM मात्रा से OQRM अनाज का कुल उत्पादन होता है। आयताकार क्षेत्र
PQRT लगान को प्रकट करता है जो AP तथा MP का अन्तर है। निर्वाह-मजदूरी दर OW पर श्रम
का पूर्ति वक्र WL अनन्त लोचदार है तथा कुल मजदूरी-बिल OWLM है। कुल लाभ WPTL है जो
कुल उत्पादन में से लगान तथा मजदूरी घटाने पर अवशिष्ट (residue) के बराबर है। WPTL
= OQRM-(PQRT+ OWLM).
आर्थिक
विकास होने से जब कुल उत्पादन बढ़ता है तो मजदूरी कोष भी बढ़ता है। इससे श्रम की मात्रा
में भी अनुपातिक वृद्धि होती रहती है। जनसंख्या बढ़ने से अनाज की मांग एवं कीमत बढ़ती
है तथा भूमि पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होने से लगान बढ़ता जाता है और लाभ कम होते
जाते हैं। अन्त में, बढ़ती हुई श्रम की मात्रा तथा लगान, लाभों को समाप्त कर देते हैं।
चित्र में यह स्थिति वह है, जब ON श्रम लगाने से कुल उत्पादन OABN होता है जिसमें से
OWSN मजदूरी-बिल निकाल देने से WABS लगान प्राप्त होता है तथा लाभ बिल्कुल प्राप्त
नहीं होते।
स्थिर अवस्था (Stationary State)
रिकार्डो के अनुसार अर्थव्यवस्था में लाभ की दर में निरन्तर कमी की प्रवृत्ति पाई जाती है। जिससे अन्ततः देश स्थिर अवस्था में पहुँच जाता है। जब लाभों की वृद्धि से पूँजी-संचय अधिक होता है तो कुल उत्पादन बढ़ता है जिससे मजदूरी कोष बढ़ता है। मजदूरी कोष बढ़ने से जनसंख्या बढ़ती है जिससे अनाज की माँग बढ़ती है और अनाज की कीमत भी। जब जनसंख्या बढ़ती है तो अनाज के लिए बढ़ रही माँग को पूरा करने के लिए घटिया किस्म की भूमियों पर खेती की जाती है। बढ़िया किस्म की भूमियों पर लगान बढ़ते हैं और इन पर उत्पादित उपज का बहुत बड़ा भाग खपा लेते हैं। इससे पूँजीपतियों और श्रमिकों के भाग कम हो जाते हैं जिससे लाभ कम होते हैं और मजदूरी की निर्वाह-स्तर तक गिरने की प्रवृत्ति होती है। बढ़ रहे लगान और घट रहे लाभों की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि सीमान्त भूमि से उत्पादन काम पर लगाए गए श्रमिक की निर्वाह मजदूरी को पूरा नहीं करता। तब लाभ शून्य होते हैं और स्थिर अवस्था आ जाती है। ऐसी अवस्था में पूँजी-संचय रुक जाता है, जनसंख्या में वृद्धि नहीं होती, मजदूरी दर निर्वाह-स्तर पर होती है, लगान ऊँचा होता है तथा आर्थिक प्रगति रुक जाती है। रिकार्डो के सिद्धान्त में स्थिर अवस्था की ओर गति को चित्र में दर्शाया गया है, जो उसकी वितरण की धारणा को और भी स्पष्ट करता है।
जनसंख्या
को क्षैतिज अक्ष पर मापा गया है और कुल उत्पादन घटा लगान को अनुलम्ब अक्ष पर। वक्र
OP जनसंख्या फलन है जो कुल उत्पादन घटा लगान को जनसंख्या का फलन प्रदर्शित करता है।
जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ OP वक्र घटते प्रतिफल का नियम लागू होने से चपटा होता
जाता है। किरण OW स्थिर वास्तविक मजदूरी मापती है। क्षैतिज रेखा जिस पर जनसंख्या ली
गई है और मजदूरी दर रेखा OW का अनुलम्ब (vertical) अन्तर जनसंख्या के विभिन्न स्तरों
पर कुल मजदूरी-बिल मापता है। इस प्रकार, ON1, ON2 और ON3
जनसंख्या स्तरों पर W1 N1, W2 N2 और
W3 N3 क्रमशः कुल मजदूरी-बिल हैं। जब मजदूरी बिल W1
N1 है, तो लाभ P1 W1 हैं, अर्थात कुल उत्पादन घटा
लगान ÷ कुल मजदूरी बिल = P1N1 ÷ W1 N1
= P1W1 जब लाभ P1 W1 है तो निवेश प्रोत्साहित
होता है। श्रम की मांग बढ़ कर ON2 हो जाती है जो मजदूरी-बिल को W2
N2 पर बढ़ा देता है परन्तु लाभ कम होकर P2 W2 हो
जाते हैं। इस प्रकार श्रम की मांग ON3 पर बढ़ने से मजदूरी-बिल और बढ़ता
है और W3 N3 हो जाता है परन्तु लाभ कम होकर P3 W3
हो जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक कि अर्थव्यवस्था S बिन्दु पर नहीं
पहुंच जाती और स्थिर अवस्था प्रारंभ हो जाती है। ऐसी स्थिति में लाभ बिल्कुल समाप्त
हो जाते हैं और समस्त उत्पादन लगान और मजदूरी में वितरित हो जाता है।
समीक्षात्मक टिप्पणी (CRITICAL APPRAISAL)
रिकार्डो
के सिद्धान्त में कई गुण व त्रुटियाँ पाई जाती हैं जिनका विवेचन निम्नलिखित है :
सिद्धान्त के गुण (Merits of the Theory)
1. कृषि विकास (Agricultural development)-रिकार्डो
ने देश के आर्थिक विकास के लिए कृषि के विकास पर जोर दिया क्योंकि इसी पर औद्योगिक
विकास निर्भर करता है। विकास का यह क्रम ग्रेट ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय देशों में
रहा और यही भारत जैसे अविकसित देशों में पाया जाता है।
2. लाभ की दर (Profit rate)-रिकार्डो ने आर्थिक विकास में
लाभ की दर बढ़ाने के लिए कहा क्योंकि पूँजी-संचय इसी पर निर्भर करता है। लुइस जैसे
आधुनिक अर्थशास्त्री भी इसी का प्रतिपादन करते हैं।
3. बचत का महत्त्व (Importance of saving)-रिकार्डो
ने आधुनिक अर्थशास्त्रियों की तरह ही अधिक पूँजी-संचय के लिए बचतों को बढ़ाने पर बल
दिया। इस प्रकार रिकार्डो आधुनिक अर्थशास्त्रियों का अग्रगामी (forerunner) था।
4. विदेशी व्यापार (Foreign trade)-रिकार्डो ने देश की
आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विदेशी व्यापार को बहुत महत्त्व दिया क्योंकि इससे
साधनों का उच्चतम प्रयोग होता है और आय में वृद्धि होती है। वह औपनिवेशिक व्यापार के
भी विरुद्ध था क्योंकि यह "अधम और कपटी" होता है तथा सभी देशों के उद्योगों
को शक्तिहीन करता है। इस विचार में वह मार्क्स का अग्रगामी था।
5. गत्यात्मक सिद्धान्त (Dynamic theory)-रिकार्डो
ने एक गत्यात्मक सिद्धान्त प्रस्तुत किया जो विभिन्न चरों (variables) में परिवर्तनों
के आर्थिक विकास पर क्रमबद्ध प्रभावों का अध्ययन करता है, जैसे जनसंख्या, मजदूरी, लगान,
लाभ आदि ।
सिद्धांत की त्रुटियां (Weaknesses of the Theory)
रिकार्डो
के सिद्धान्त में कई गुण होने के बावजूद अनेक त्रुटियाँ भी पाई जाती हैं, जो निम्नलिखित
है:
1. प्रौद्योगिकी के महत्त्व की अवहेलना (Neglect of the importance
of technology)-रिकार्डो ने यह बताया कि जब सुधरी हुई प्रौद्योगिकी
से श्रम हटाया जाता है तथा अन्य प्रतिकूल परिणाम प्रकट होते हैं। प्रारम्भ में तो प्रौद्योगिकीय
प्रगति घटते प्रतिफलों की क्रिया को रोकती है। परन्तु अन्त में जब प्रौद्योगिकी प्रगति
का प्रभाव समाप्त हो जाता है तो घटते प्रतिफल प्रारम्भ होने लगते हैं तथा अर्थव्यवस्था
स्थिर अवस्था की ओर बढ़ती है। रिकार्डो की यह विचारधारा वास्तविकता से मेल नहीं खाती
क्योंकि विकसित राष्ट्रों के तीव्र विकास का कारण विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में उन्नति
थी जिसे रिकार्डो समझने में असमर्थ रहा।
2. स्थिर अवस्था की गलत धारणा (Wrong notion of the stationary
state)-
रिकार्डो का यह मत कि अर्थव्यवस्था अन्त में अपने-आप स्थिर अवस्था में पहुँच जाती है,
यह बिल्कुल निराधार है क्योंकि कोई भी अर्थव्यवस्था जिसमें लाभ बढ़ रहे हों, पूँजी-संचय
हो रहा हो तथा उत्पादन में वृद्धि हो रही हो, ऐसी स्थिर अवस्था में नहीं पहुँचती।
3. जनसंख्या सम्बन्धी निर्मूल धारणा (Baseless notion regarding
population)- रिकार्डो की यह धारणा कि जनसंख्या बढ़ने के कारण मजदूरी
दर में कोई वृद्धि नहीं होती, निर्मूल है। प्रथम, पश्चिमी संसार में प्रवर्तमान जनसंख्या
की प्रवृत्तियों ने माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत को गलत साबित कर दिया है। दूसरा, मजदूरी
का जनसंख्या के साथ ऐसा संबंध नहीं पाया जाता जैसा कि रिकार्डो ने बताया। इसके विपरीत
विकसित देशों में मजदूरी दर बढ़ी है तथा उसके बढ़ने के साथ जनसंख्या में कमी हई है।
4. घटते प्रतिफल के नियम को अनावश्यक महत्त्व (Unnecessary
importance to the law of diminishing returns)-रिकार्डो का सिद्धान्त
घटते प्रतिफल के नियम पर मुख्यतः आधारित है। उन्नत राष्ट्रों में कृषि-उत्पादन की तीव्र
वृद्धि ने यह सिद्ध कर दिया है कि रिकार्डो ने भूमि के संबंध में घटते प्रतिफलों के
निवारण में प्रौद्योगिकीय प्रगति की क्षमताओं का कम मूल्यांकन किया। इस प्रकार उसने
घटते प्रतिफल के नियम को अनावश्यक महत्त्व दिया।
5. अबंध की अव्यावहारिक नीति (Impracticable laissez-faire
policy)-रिकार्डो
का सिद्धान्त अबंध नीति की अव्यावहारिक धारणा पर आधारित है। इसके अनुसार अर्थव्यवस्था
में सरकारी हस्तक्षेप नहीं पाया जाता और यह अपने-आप पूर्ण प्रतियोगिता के अनुसार कार्य
करती रहती है। वास्तव में, आजकल कोई भी ऐसी अर्थव्यवस्था नहीं पायी जाती जिसमें सरकारी
हस्तक्षेप न हो और पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाए।
6. संस्थानिक तत्त्वों की अवहेलना (Neglect of institutional
factors)-रिकार्डो के सिद्धान्त की एक मुख्य त्रुटि यह है कि इसमें
संस्थानिक तथा राजनैतिक साधनों की अवहेलना की गई है। इन्हें निश्चित मान लिया गया है
जबकि आर्थिक विकास करने में ये बहुत सहायक सिद्ध होते हैं।
7. आर्थिक विकास नहीं बल्कि वितरण का सिद्धान्त (Distribution
rather than growth theory)-शूम्पीटर के अनुसार रिकार्डो का मॉडल आर्थिक
विकास का सिद्धान्त नहीं अपितु वितरण-सिद्धान्त है जो मजदूरों, भूमिपतियों एवं पूँजीपतियों
के भाग निर्धारित करता है। इसमें भी भूमि का भाग प्रमुख मानता है और शेष भाग को श्रम
और पूँजी का हिस्सा समझता है। रिकार्डो वितरण के फलनात्मक सिद्धान्त को प्रस्तुत करने
में असफल रहा क्योंकि उसने प्रत्येक साधन की सेवा का अलग-अलग पुरस्कार निर्धारित नहीं
किया।
8. भूमि अनाज के अतिरिक्त अन्य वस्तुएं भी उत्पन्न करती है (Land
also produces goods other than corn)-रिकार्डो केवल यह मानता है
कि भूमि पर केवल एक ही वस्तु, अनाज उत्पन्न किया जाता है। परन्तु यह एक प्राचीन विचार
है क्योंकि भूमि अनाज के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को उत्पन्न करती है। यह
विचार और भी पिछड़ा मालूम होता है, जब रिकार्डो यह कहता है कि उत्पादन के अन्य साधनों
को केवल भूमि का उत्पादन ही सहारा देता है।
9. पूँजी व श्रम स्थिर गुणांक नहीं होते (Capital and labour not
fixed coefficients)-रिकार्डो की
यह धारणा भी सही नहीं कि पूँजी एवं श्रमिक स्थिर गुणांक होते हैं। इस धारणा का खण्डन
इसी तथ्य से हो जाता है कि पूँजी और श्रम स्वतंत्र चल साधन हैं।
10. ब्याज की आर्थिक विकास में अवहेलना (Neglect of interest rate
in economic growth)-रिकार्डो के विकास सिद्धान्त में ब्याज का कोई
प्रसंग नहीं आता जो इसका एक गंभीर दोष है। वह ब्याज को स्वतंत्र पुरस्कार नहीं मानता
और इसे लाभों में शामिल करता है। यह गलत धारणा पूँजीपति और उद्यमी को अलग-अलग व्यक्ति
न मानने से उत्पन्न हुई।
11. स्थैतिक मॉडल (Static model)-हिक्स के अनुसार, रिकार्डो
अपने मॉडल को चल पूँजी और पूँजी समरूपता तक सीमित करके एक गत्यात्मक प्रक्रिया के विश्लेषण
के लिए स्थैतिक ढंग का प्रयोग करता है। रिकार्डो मॉडल एक निरन्तर प्रगतिशील अर्थव्यवस्था
का नहीं है। यह स्थिर अवस्थाओं के स्थैतिक संतुलनों की तुलना तक सीमित है। इसलिए इसे
एक गत्यात्मक प्रक्रिया के विश्लेषण तक बढ़ाया नहीं जा सकता।
अल्पविकसित देश तथा रिकार्डो का सिद्धान्त (UNDER DEVELOPED
COUNTRIES AND RICARDO'S THEORY)
इन
त्रुटियों के होते हुए भी रिकार्डो का सिद्धान्त अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए
कृषि विकास, बचतों के विभिन्न साधनों तथा लाभ की दर बढ़ाने की ओर पूँजी-संचय के महत्त्व
की ओर संकेत करता है।
रिकार्डो
का मॉडल अल्पविकसित देशों पर पूर्ण रूप से व्यवहार्य न हो, परन्तु यह निश्चय ही उन
साधनों की ओर संकेत करता है जो उनकी आर्थिक वृद्धि की दर को रोकते हैं। रिकार्डो की
दो आधारभूत धारणाएँ, भूमि के घटते प्रतिफल तथा माल्थस का जनसंख्या विषयक सिद्धान्त,अति-जनसंख्या
वाली अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं की समस्याओं को समझने के लिए विशेष महत्त्व की हैं।
भारत जैसे अल्पविकसित देश में खाद्य की पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ती है। भूमि के लिए भूख रहती है परन्तु भूमि में तकनीकी सुधारों का अभाव होता है। परिणामस्वरूप, घटते प्रतिफलों का नियम पूरे जोर से काम करता है और उत्पादकता गिर जाती है। मांग के अनुपात में काश्त-योग्य भूमि की पूर्ति दुर्लभ होने के कारण लगान अधिक होते हैं। परन्तु मजदूरी कम होती है क्योंकि माँग की अपेक्षा श्रम-पूर्ति अधिक होती है और श्रम के स्थान पर पूँजी को स्थानापन्न करने की प्रवृत्ति नहीं होती। इन परिस्थितियों में आय का स्तर कम होता है और बचत करने की क्षमता तथा निवेश की प्रेरणा नहीं होती।