सूचना प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) उद्योग (INFORMATION TECHNOLOGY INDUSTRY)

सूचना प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) उद्योग (INFORMATION TECHNOLOGY INDUSTRY)

सूचना प्रौद्योगिकी वह उद्योग है जो कम्प्यूटर एवं सहायक उपकरणों को सहायता से ज्ञान का प्रसार करना है। सूचना प्रौद्योगिकी शब्द में कम्प्यूटर और संचार प्रौद्योगिकी (Communication Technology) और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर (Software) का भी समावेश होता है। इसे डिजिटल क्रान्ति व ज्ञान अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।

सभ्यत के इतिहास में बुनियादी रूप से चार प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं की पहचान की गई है। आदिकालीन-अर्थव्यवस्था में आजीविका का एकमात्र साधन शिकार था। इसके उपरान्त कृषि- अर्थव्यवस्था आई। आदिकालीन अर्थव्यवस्था से कृषि अर्थव्यवस्था में आने में कुछ हजार वर्ष लगे। अगले चरण में औद्योगिक-अर्थव्यवस्था का अभ्युदय हुआ। कृषि अर्थव्यवस्था से औद्योगिक- अर्थव्यवस्था में परिवर्तन में महज 200 वाई लगे। डिजिटल क्रान्ति एवं इण्टरनेट ने ज्ञान अर्थव्यवस्था को जन्म दिया। ज्ञान-अर्थव्यवस्था का सर्वाधिक उल्लेखनीय गुण इसकी गति है। इसके विकास में मात्र 25 वर्ष लगे।

ज्ञान-अर्थव्यवस्था के आर्थिक एवं सामाजिक संगठन सूचना के इर्द-गिर्द घूमते हैं। यहाँ चूंकि सूचना ही कच्चा माल है, इसलिये ज्ञान अर्थव्यवस्था के स्वरूप निर्धारण में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ज्ञान अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत इन दो प्रौद्योगिकियों में मौजूदा उत्पादों तथा सेवाओं का मूल्यवर्धन कर धनोपार्जन बढ़ाने की सम्भावना निहित होती है।

अवधारणा व परिभाषा (Concept and Definition)

सूचना प्रौद्योगिकी आँकड़ों की प्राप्ति, सूचना (Information) संग्रह, सुरक्षा, परिवर्तन, आदान-प्रदान, अध्ययन, डिजाइन आदि कार्यों तथा इन कार्यों के निष्पादन के लिए आवश्यक कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों से सम्बन्धित हैं। सूचना प्रौद्योगिकी कम्प्यूटर पर आधारित सूचना-प्रणाली का आधार है। सूचना प्रौद्योगिकी, वर्तमान समय में वाणिज्य और व्यापार का अभिन्न अंग बन गयी है। संचार क्रान्ति के फलस्वरूप अब इलेक्ट्रॉनिक संचार को भी सूचना प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख घटक माना जाने लगा है और इसे सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology, ICT) भी कहा जाता है। एक उद्योग के तौर पर यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है।

सूचना टेक्नोलॉजी से अभिप्राय उस समग्र व्यवस्था से हैं जिसके द्वारा संचर माध्यम और उपकरणों को सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है और इसका प्रयोग समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा किया जाता है। इस कारण सूचना टेक्नोलॉजी की संज्ञा सूचना एवं संचार क्रान्ति (Information and Communication Revolution) के रूप में दी जाती है।

सूचना टेक्नोलॉजी वह उद्योग है जो कम्प्यूटर और सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार करता है। सूचना टेवनोलॉजी शब्द में कम्प्यूटर और संचार टेक्नोलॉजी (Communication Technology) और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर (Software) का भी समावेश होता है। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी को इन शब्दों में परिभाषित किया गया है- "सूचना प्रौद्योगिकी का अर्थ है, सूचना का एकत्रीकरण, भण्डारण, प्रसार प्रोसेसिंग और प्रयोग। यह केवल हार्डवेयर अथवा सॉफ्टवेयर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इस प्रौद्योगिकी के लिए मनुष्य की महता और उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहित मूल्य, यह निर्णय लेने के लिए प्रयुक्त मानदण्ड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियन्त्रित कर रहा है और इससे उसका ज्ञान सम्वर्धन हो रहा है।"

सूचना प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत् वे सब उपकरण एवं पद्धतियाँ सम्मिलित हैं, जो "सूचना के संचालन में काम आते हैं।

यदि इसकी संक्षिप्त परिभाषा देनी हो, तो कहेंगे-

"सूचना प्रौद्योगिकी एक ऐसा अनुशासन है जिसमें सूचना का संचार अधवा अदान-प्रदान त्वरित गति से दूरस्थ समाजों में विभिन्न तरह के साधनों तथा संसाधनों के माध्यम से, सफलतापूर्वक किया जाता है और उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहित मूल्य, वह निर्णय लेने के लिए प्रचुक्त मानदण्ड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियन्त्रित कर रहा है, और इससे उसका ज्ञान सम्बर्धन रहा है।"

सूचना प्रौद्योगिकी के प्रमुख संघटक (Main Components of Information Technology)

1. कम्प्यूटर हार्डवेयर प्रौद्योगिकी (Computer Hardware Technology)-इसके अन्तर्गत माइको-कम्प्यूटर, सर्वर, बड़े मेनफ्रेम कम्प्यूटर के साथ-साथ इनपुट, आउटपुट एवं संग्रह (Storage) करने वाली युक्तियाँ (device:s) आती हैं।

2. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी (Computer Software Technology)-इसके अन्तर्गत् प्रचालन प्रणाली (Operating System), वेब ब्राउजर, डेटाबेस प्रबन्धन प्रणाली (DBMS), सर्वर तथा व्यापारिक वाणिज्यिक सॉफ्टवेयर आते हैं।

3. दूरसंचार व नेटवर्क प्रौद्योगिकी (Telecommunication and Network Technology)- इसके अन्तर्गत् दूरसंचार के माध्यम, प्रक्रमक (Processor) तथा इण्टरनेट से जुड़ने के लिए तार या बेतार पर आधारित साफ्टवेयर, नेटवर्क सुरक्षा, सूचना का कूटन (क्रिप्टोग्राफी) आदि हैं।

4. मानव संसाधन (Human Resources)- तन्त्र प्रकाशक (System Administrator)- नेटवर्क प्रशासक (Network Administrator) आदि।

सूचना प्रौद्योगिकी का महत्व (Importance of Information Technology)

1. सूचना प्रौद्योगिकी, सेवा अर्थतन्त्र (Service Economy) का आधार है।

2. पिछड़े देशों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एक सम्पक तकनीकी (Appropriate Technology) है।

3. गरीब जनता को सूचना सम्पन्न बनाकर ही निर्धनता का उन्मूलन किया जा सकता है।

4. सूचना सम्पन्नता से सशक्तिकरण (Empowerment) होता है।

5. सूचना तकनीकी प्रशासन और सरकार में पारदर्शिता लाती है, इससे भ्रष्टाचार को कम करने में सहायता मिलती है।

6. सूचना तकनीकी का प्रयोग बोजना बनाने, नीति निर्धारण तथा निर्णय लेने में होता है।

7. यह नए रोजगारों का सृजन करती है।

सूचना प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने वाले घटक (Factors Encouraging Information Technology)

परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस सूचना युग को संचालित करने वाली शक्तियाँ ये हैं-

1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के अनुसन्धान कार्य में निवेश में बढ़ती जनरुचि।

2. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के संरक्षण को लेकर बढ़ती चिन्ता।

3. दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के भूमण्डलीकरण के कारण सभी स्तरों पर प्रतिस्पर्धा में व्यापक वृद्धि।

4. प्रौद्योगिकी, खासकर नेट तथा दूरसंचार प्रौद्योगिकी में तीन परिवर्तन।

5. नेटवर्किग नीतियों में तीव्र प्रगति ।

6. सहभागी कार्य संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता में वास्तविक वृद्धि ।

7. ज्ञान-आधारित च्यापार का विकास।

8. कौशल परिवर्द्धन की बढ़ती माँग ।

डिजिटल क्रान्ति ने मनुष्य के लिए अवसरों के नये द्वार खोल दिये हैं जिसकी बदौलत ज्ञान- अर्थव्यवस्था के तहत् व्यक्ति समृद्धि एवं धनोपार्जन कर सकता है। नयी सहस्राब्दि ने दुनियाभर में ज्ञान क्रान्ति के जरिये अन्तरनिर्भरता का बोध बढ़ाया है, जिससे भूमण्डलीय अन्तरसंवाद व्यापक, सघन, त्वरित तथा प्रभावी हुआ है। इससे वैश्कि शक्ति की संरचना में परिवर्तन हुआ है।

विकास एवं वर्तमान स्थिति (Development and Present Position)

सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र हाल ही में आरम्भ हुआ है। इसने नब्बे के दशक में गति प्राप्त की। वास्तव में इसका विकास 1994 की अन्तर्राष्ट्रीय-सन्धि के पश्चात् ही आरम्भ हुआ। वर्ष 1999-2000 से 2014-15 तक इस उद्योग का लगभग 10 गुना विकास हुआ है। सॉफ्टवेयर निर्यात भारत के निर्यात तथा भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गये हैं। सॉफ्टवेयर में भारत की सफलता मानक पूँजी में सरकारी निवेश, नीतियों को बहिर्मुखी बनाने एवं एक उच्च प्रतियोगी निजी क्षेत्र के उद्योग की आधारशिलाओं पर निर्मित की गई है।

इस उद्योग की वर्तमान स्थिति का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर कर सकते हैं-

1. कुल कारोबार-भारत वर्ष में सॉफ्टवेयर एवं सम्बद्ध सेवाओं के कुल कारोबार में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए 2000-01 में भारत का सॉफ्टवेयर एवं सम्बद्ध सेवाओं का कुल कारोबार लगभग 56.6 करोड़ रुपए था जो 2012-13 में बढ़कर लगभग र 693 करोड़ हो गया।

यदि हम कुल भारतीय आई.टी. बाजार के कारोबार को GDP के प्रतिशत के रूप में देखें तो वह 2000-01 में GDP का 2.7% था जो 2012-13 में बढ़कर 8% हो गया। जैसा कि नीचे सारणी 1 में दर्शाया गया है।

सारणी -कुल भारतीय आई. टी. बाजार

 

करोड़ रुपए

सकल देशीय उत्पाद का प्रतिशत

2000-01

56,592

2.66

2010-11

4,76,180

6.3

2011-12

5,67,835

6.8

2012-13

6,92.900

8.0


2. आई. टी. सॉफ्टवेयर का कुल निर्यात-भारत के आई. टी. सॉफ्टवेयर के निर्यात में अत्यधिक वृद्धि हुई है। जैसा कि नीचे की सारणी के अंकों से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2001-02 में कुल आई. टी. निर्यात मात्र 365.00 करोड़ रुपए का था जो बढ़कर 2011-12 में 410836 करोड़ रुपए हो गया।

सारणी 2 आई. टी. सॉफ्टवेयर का कुल निर्यात

 

आई. टी. निर्यात् करोड़ रुपए

2001-02

36,500

2010-11

2,69,630

2011-12

3,32,769

2012-13

4,10,836


उपर्युक्त सारणी के अंकों से स्पष्ट होता है कि आई. टी. निर्यात भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण बन गया है और यदि यही प्रवृत्ति बनी रही तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एकमात्र अत्यन्त महत्वशील विदेशी मुद्रा अर्जक बन जाएगा।

3. भारतीय आई. टी. बाजार के संघटक-विगत वर्षों में यद्यपि आई. टी. वस्तुओं और सेवाओं की सभी नदों में वृद्धि हुई है। परन्तु सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात् का प्रतिशत सर्वाधिक (59.3%) रहा है। जैसा कि सारणी के अंक स्पष्ट करते हैं।

सारणी 3 :–कुल भारतीय आई. टी. बाजार के संघटक (2012-13)

 

करोड़ रुपए

कुल का प्रतिशत

1. हार्डवेयर, पेरीफरल एवं नेटवर्किंग

1.77,500

25.6

2. देशी सॉफ्टवेयर सेवाएँ

1.04,700

16.1

3. सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात

4,10,835

59.3

कुल

6,92,900

100.0


4. देशानुसार सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का व्यापार-यदि हम सूचना प्रौद्योगिकी व्यापार को देखें तो हमें विदित होगा कि वर्ष 2013 में कुल वस्तु निर्यात के प्रतिशत के रूप में भारत का हिस्सा केवल 1.6% है जबकि चीन का 27.4% और कोरिया का 19.1% था व अमेरिका का 8.9% था। इसी प्रकार कुल वस्तु आयात के प्रतिशत के रूप में भारत में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी व्यापार 5.8% था, जबकि चीन का 20.5%, अमेरिका का 13.8% व कोरिया का 10.4% (देखें सारणी) था।

सारणी 4-सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी व्यापार (वस्तुएँ)

 

निर्यात, कुल वस्तु निर्यात का प्रतिशत

आयात कुल वस्तु आयात का प्रतिशत

 

2013

2013

संयुक्त राज्य अमेरिका

8.9

13.8

इंग्लैण्ड

3.8

7.9

फ्राँस

4.0

6.2

जर्मनी

4.3

7.2

जापान

8.6

10.9

कोरिया

19.1

10.4

ब्राजील

0.5

8.6

चीन

27.4

20.5

भारत

1.6

5.8

पाकिस्तान

0.2

3.8

विश्व

10.4

11.2


5. देशी आई.टी. बाजार का ढाँचा/संरचना- भारतीय सॉफ्टवेयर का निर्यात होने वाली सेवाएँ और गन्तव्य स्थान को नीचे सारणी 5 में दर्शाया गया है-

भारतीय सॉफ्टवेयर का गन्तव्य स्थान

देशीय आई. टी. बाजार का ढाँचा

उत्तरी अमेरिका (यू.एस.. एवं कनाडा)

आई. टी./टेलीकॉम

बैंकिंग एवं वित्त

यूरोप

विनिर्माण

जापान

सरकार

पेसेफिक (जापान को छोड़कर)

शिक्षा

अमेरिका और शेष विश्व

छोटा दफ्तर/घर

ऊर्जा, परिवहन


सूचना प्रौद्योगिक विकास प्रक्रिया प्रबन्धन सेवाएँ (IT-BPM Services)

1. भारत में 1990 के दशक में शुरू होने वाला यह उद्योग आज भारतीय अर्थव्यवस्था का एक निर्णायक घटक बन गया है।

2. भारतीय आईटी-बोपीएम उद्योग में सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ शामिल हैं। लगभग 52% शेयर के साथ इसका यह बड़ा हिस्सा है।

(i) 20 प्रतिशत भाग-बीपीएम

(ii) 19 प्रतिशत भाग- सॉफ्टवेयर उत्पाद इंजीनियरिंग अनुसन्धान व विकास

(iii) 10% भाग हार्डवेयर

3. वर्तमान में इस उद्योग में 3.7 मिलियन से ज्यादा लोग नियोजित हैं और यह भारत में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा नियोक्ता है।

4. नास्कॉम को रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में सकल मूल्यवर्धन में इसका शेयर 9.5% और कुल सेवा निर्यातों में इसका शेयर 450 से ज्यादा रहने का अनुमान है।

5. सीएसओ के अनुसार जीडीपी में इसका योगदान है तथा 2014-15 में इसमें 9.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

बारहवीं योजना के लिए विस्तृत उद्देश्य, लक्ष्य तथा महत्वपूर्ण क्षेत्र (Objectives, Targets and Thrust Areas for the Twelfth Plan)

बारही योजना में इलेक्ट्रॉनिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का दृष्टिकोण तथा विस्तृत उद्देश्य बहु-आयामी कार्यनीति के जरिए भारत का ई-विकास (e-development) करता है। ई-विकास में सुविधाएँ प्रदान करने तथा फास्ट ट्रैक ई-शासन के लिए अवसंरचना का विकास, सॉफ्टवेयर (IT. ITES) उद्योग का सम्वर्धन, ज्ञान नेटवर्क का निर्माण तथा भारत के साइबर स्पेस (Cyber Space) को सुरक्षित करना शामिल है।

बारहवीं योजना में इलेक्ट्रॉनिकी एवं IT-ITES उद्योग को बढ़ावा देने पर, ध्यान देने की बात को गई है। जिसमें हार्डवेयर डिजाइन, सेमीकण्डक्टर वेफर फेब (Semiconductor Wafer Fab) विनिर्माण सुविधाओं का विकास तथा अनुसन्धान व विकास की क्षमताओं को मजबूत बनाना है।

बारहवीं योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निानलिखित चुना गया है-1.ई-सरकार, 2.ई-अधिगम (e-learning), 3.ई-सुरक्षा, 4, ई-उद्योग (इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एवं विनिर्माण), 5. ई-उद्योग (IT-TTES), 6. ई-अन्वेषण तथा 7.ई-समावेशन।

इस क्षेत्र की समग्र कार्यनीति बारहवीं पंचवर्षीय योजना में इन मुख्य विषयों में से प्रत्येक के लिए कार्यवाही कार्यक्रमों, परियोजनाओं की योजना तैयार करना है, जिसमें प्रत्येक के लिए अन्वेषण एक सगावेशन गौलिक प्रतिगान (Fundamental Paradigm) होंगे। इलेक्ट्रान की तथा IT-ITES उद्योग के लिए बारही योजना के मुख्य लक्ष्य सारणी में दिए गए हैं।

सारणी 6–इलेक्ट्रॉनिकी तथा IT-ITES उद्योग के लिए बारहवीं योजना के मुख्य लक्ष्य (मूल्य अमेरिकी डॉलर में)

I. उत्पादन एवं निर्यात् के लक्ष्य (इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर)

A. उच्च विनिर्माण परिदृश्य (आशावादी)

विवरण

वित्त वर्ष

(2011-12)

लक्ष्य वित्त वर्ष

(2016-17)

निर्यात (विकास दर : 22%)

7

20

आयात (विकास दर : 30%)

33

122

II. IT-ITES उद्योग के लिए राजस्व रोजगार लक्ष्य

B. प्रत्यक्ष रोजगार

28 लाख

42 लाख


समस्याएँ (Problems)

वर्तमान में सूचना तकनीकि उद्योग की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

1. आउटसोर्सिंग (बहिस्रोतीकरण) विरोधी कानून-सूचना तकनीकि (Information Technology) क्षेत्र में बहिस्रोंतीकरण ने एक अन्तर्राष्ट्रीय आयाम प्राप्त कर लिया है। अमेरिका की फर्मे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों से आई.टी. साफ्टवेयर एवं सेवाएँ ठेके पर प्राप्त करना अधिक लाभदायक समझती हैं। विकासशील देशों में इनकी लागत विकसित देशों की तुलना में कहीं कम है। परन्तु यू.एस.ए. में बड़े जोर से यह आवाज उठायी गयी कि बहिसौतीकरण से अमेरिकी नौकरियों का अन्य देशों को निर्यात होता है।

2. मॉडेम की अधिक कीमत-इण्टरनेट लिए परिमाणित पहुँच उपकरणों अर्थात् वेयक्तिक कम्प्यूटरों, इण्टरनेट के साथ टी.वी. को जोड़ने के उपकरणों, केबल मोडेम (Cable Modem) आदि की लागत बहुत अधिक है जो आम आदमी की पहुँच के बाहर है।

3. अधिक लागत-किसी निजी सेवा उपलब्ध कराने वाले के लिए जिला स्तर पर इण्टरनेट सुविधा स्थापित करने की वर्तमान लागत अधिक है। इस कारण देश के बहुत से भागों में इस सेवा को उपलब्ध कराना अत्यन्त कठिन एवं अक्षय बन जाता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय नीतियाँ-यू.एस.ए. में आई.टी. सेवाओं में लागत कम करने के लिए विदेशों से प्राप्ति के विरुद्ध आवाज बुलन्द की जा रही है। कुछ राज्यों में विदेशों से अनुबन्ध करने के विरुद्ध कानून भी पास किये गये हैं और अन्य में भी इनका अनुकरण हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप भारत से यू. एस.ए. में आई.टी. निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यदि आई.टी. साफ्टवेयर के मुख्य क्रेता यू.

एस.ए. में ऐसा होता है, तो इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप भारत के सूचना तकनीकि उद्योग में निर्यात क्षेत्र के चालन के स्थान पर बने रहने में कठिनाई हो सकती है।

निर्यात प्रेरक विकास (Export-led growth} की मुख्य समस्या अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों के परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अनिश

5. विश्व बाजार में कम हिस्सा-1,20,000 करोड़ डालर के कुल विश्व आई.टी. बाजार में भारत का भाग केवल 2% है। 12वीं योजना ने इस बात की ओर हमारा ध्यान दिलाया है कि भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग को उभरते हुए प्रतिस्पर्धियों अर्थात् चीन, फिलिपीन्स, स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रगण्डल, दक्षिण कोरिया आदि में खतरा है। अत: अवितरित विकास के लिए रणनीति को मोड़ना होगा।

6. हार्डवेयर की ऊँची कीमतें भारत में हार्डवेयर की कीमतें काफी ऊँची हैं। यू.एस.ए. में एक वैयक्तिक कम्प्यूटर खरीदने के लिए 12 दिन की प्रति व्यक्ति आय खर्च करनी पड़ती है, जबकि इसके लिए चीन में 4 मास की और भारत में इसी प्रकार की वैयक्तिक कम्प्यूटर खरीदने के लिए 2 वर्ष की प्रति व्यक्ति आय खर्च करनी होगी।

7. सीमित क्षेत्र-अतिरिक्त, उन्नत आई. टी. कौशल भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग में कुछ ही कम्पनियों तक सीमित है, जो सॉफ्टवेयर निर्यात का 65% जुटाती हैं। लघु एवं मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises-SMES) जिनकी संख्या बहुत अधिक है, साफ्टवेयर निर्यात में लगभग 35% योगदान देते हैं।

8. ऊँची शिक्षा लागत-सूचना टेक्नोलॉजी के परीक्षण से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण समस्या ऊँची लागते हैं। यह समस्या चाहे वह पॉलीटेकिाक हो या इंजीनियरिंग कालेज या एन आई.आई.टी. या एपटेक (APTECH) जैसे संस्थान या विश्वविद्यालय भी। अच्छी किस्म के संस्थान सूचना टेक्नोलॉजी सम्बन्धी शिक्षा के लिए 20,000 रुपए से 1 लाख रुपए प्रतिवर्ष की फीस वसूल करते हैं जो गरीब या निम्न, मध्यम वर्ग के लोग दे नहीं पाते और इस प्रकार वे इस शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। बहुत से योग्य विद्यार्थी जिनके अभिभावक सम्पन्न नहीं होते, उनकी इन पाठ्यक्रमों तक पहुँच नहीं हो पाती।

सुझाव (Suggestion)

सूचना तकनीकि उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

1. इन्टरनेट की पहुँच में वृद्धि-भारत में प्रति 100 व्यक्तियों के लिए इन्टरनेट की पहुँच 0.40 है, जो बहुत ही नीची है, जबकि इसके विरुद्ध चीन में यह 2, मलेशिया में 11 और दक्षिण कोरिया में 58 है। अत: इन्टरनेट को निम्नस्तरीय तक पहुँचाया जाना चाहिए।

2. ब्राडबैंड फैलाव-ब्राडबैंड अर्थात् सदा चालू रहने वाला नेटवर्क आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी प्रतिस्पर्धा के लाभ को कायम रखने के लिए. प्रभावी और आर्थिक सामर्थ्य योग्य, ब्राडबैंड सेवाएँ एक अनिवार्य उपकरण हैं। विकास और परिवर्तन का इंजन बनाने के लिए जनता को उनकी आर्थिक सामर्थ्य के अनुकूल कीमतों पर ब्राडबैंड उपलब्ध कराना चाहिए।

3.साफ्टवेयर विकास-देशीय बाजार को विकास की आवश्यकता है। अत: चीन जैसे देशों के अनुभव का यह अध्ययन करना होगा जिसमें एक मजबूत और शक्तिशाली देशीय बाजार उपलब्ध है। हर्ष की बात चह है कि दसवीं योजना के कार्यदल ने 100 करोड़ रुपये से एक इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेन्ट विकास निधि (Electronic Component Development Fund) कायम करने की सिफारिश की है। विश्वसनीय उद्यमकर्ताओं को साहायित ब्याज दर (Suhsidised interest rate) पर इससे ऋण उपलब्ध कराने चाहिए। ग्यारहवीं योजना में देशीय बाजार को विकसित करने में भारी बल दिया गया है, जो अभिनन्दनीय है। देश का कल्याण इसी बात में है कि आई.टी. के देशीय बाजार को विकसित किया जाये, क्योंकि यह एक विश्वसनीय विकल्प है।

4. सॉफ्टवेयर निर्यात-उन्नत आई.टी. कौशल भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग में कुछ ही कम्पनियों तक सीमित है, जो सॉफ्टवेयर-निर्यात का 65% जुटाती है। लघु एवं मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises-SME) जिनकी संख्या बहुत अधिक है, सॉफ्टवेयर निर्यात में लगभग 35% योगदान देते हैं। अत: जब तक लघु एवं मध्यम उद्यमों को उचित नीतियों से जिनमें राजकोषीय प्रोत्साहन भी शामिल है, बढ़ाया जाना चाहिए।

5. हार्डवेयर की कीमतों में कमी की आवश्यकता- भारत में हार्डवेयर की कीमतें अपेक्षाकृत अधिक हैं। अत: इस बात को आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में शुल्क अर्थात सीमा शुल्क, केन्द्रीय बिक्री कर, और स्थानीय बिक्री कर कम किये जायें, जो आज एकत्रित हार्डवेयर की कीमतों में 30-40 प्रतिशत का बोगदान देते हैं। इससे ही आई.टी. क्षेत्र को अधिक विस्तार हो सकता है।

6. नवीन उत्पाद एवं सेवाओं का निर्माण-नवीन तथा उन्नत उत्पादों, प्रक्रियाओं, प्रणालियों और सेवाओं के निर्माण एवं मूल्यवर्धन में ज्ञान के योगदान को बढ़ाना होगा ताकि भारतीय उद्यमों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ायी जा सके। इससे मूल्यवर्धन, नवाचार और उत्पादकता के देशभर में प्रचार के लिए नवीन ज्ञान और प्रौद्योगिकीय परिवर्तन को गति देना जरूरी हो जाता है।

7.शोध को प्रोत्साहन-भारत में शोध एवं विकास बढ़ रहा है, परन्तु इस क्षेत्र में और अधिक वृद्धि के लिये सरकार को और भी कदम उठाने की आवश्यकता है। सुयोग्य शोधकर्ताओं (पीएचडी) का अभाव और सार्वजनिक संस्थानों में गिनेचुने शोधपत्रों का प्रकाशन, कुछ ऐसे विषय हैं, जिन पर तुरन्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय करने होंगे-

(i) सार्वजनिक अकादमियों और शोध संस्थाओं में नियन्त्रण को कम करना।

(ii) शोधकर्ताओं के लिए 'पुरस्कार और दण्ड' प्रणाली लागू करना।

(iii) शोध संस्थाओं की ब्रांड इक्विटी तैयार करना अर्थात उनके नाम की ख्याति बढ़ाना।

(iv) बौद्धिक सम्पदा संरक्षण के लिये कानूनों को कठोरता से लागू करना।

8. उपयुक्त आर्थिक नीतियाँ-ज्ञान समाज की अवधारणा के अनुसार इसके लिये शिक्षा और प्रशिक्षण की ही नहीं बल्कि उपयुक्त आर्थिक नीतियों की भी जरूरत है जो अधिक रोजगार जुटाने में सहायक हों। यह एक ऐसी बात है जिस पर करीब डेढ़ दशक पहले सुधार शुरू किये जाने के बाद से किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। बौद्धिक सभ्यता अधिकार सेवा क्षेत्र में विदेशी भागीदारी, ई-कॉमर्स नियमन और कराधान, कार्मिकों की गतिशीलता और वीजा सीमाएँ जोखिम भरे परियोजना प्रस्तावों को मूर्तरूप देने वाली पूँजी की उपलब्धता, व्यावसायिक योग्यताओं को पारस्परिक मान्यता-आदि विषय ऐसे हैं, जो अन्य अनेक महत्वपूर्ण हितों से सम्बन्धित हैं, और सबको साथ लेकर देखा जाये तो वे एक वृहद और क्षोभकारक जटिलता का अहसास कराते हैं। इनके बीच के पारस्परि सम्बन्ध महत्वपूर्ण हैं।

9. अन्य सुझाव-

(i) कुछ नयी और कम लागत वाली तकनीकियाँ जो कि दूरदराज के इलाकों में टेलीसंचार या नेटवर्किंग आधार संरचना उपलब्ध करा सकती हैं जैसे-स्थानीय लूप में वायरलेस (Wireless in Local Loop : WILL) को सीधा प्रोत्साहन देना चाहिए।

(ii) मार्ग के अधिकार (Right of Way) के लिए राष्ट्र नीति के निर्माण को सख्त जरूरत है ताकि केबल-टी. बी. या टेलीकॉम नेटवर्क के लिए आधारसंरचना (Intrastructure) न्यूनतम समय-सीमा में उपलब्ध कराई जा सके।

(iii) बैंड-भिन्न वेयक्तिक कम्प्यूटरों (Non-branded PCs) का हाल वर्षों में बाजार- भाग काफी बढ़ गया है बाजार के इस अंग को स्वीकार करना चाहिए और इसे गुणवत्ता (Quality) के बारे में सजग बनाने के लिए प्रोत्साहन देने चाहिए।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय द्वारों (International Gateways) की स्थापना और उनके संचालन में बहुत समय भी लगता है और ऐसे द्वारों की अनुमति देने में बहुत सी एजेंसियाँ भी शामिल हैं।

(v) टेली-संचार विभाग द्वारा इण्टरनेट सेवा उपलब्ध कराने वालों को डेटा-सर्किट (Data Circuit) उपलब्ध कराने में बहुत ही अधिक समय लगता है और इस कारण सेवाओं की गुणवत्ता और उनके पहुँचाने में बड़ी अनिश्चितता बनी रहती है। इसे दूर करना चाहिए।

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare