JPSC_Sustainable_Developmen(धारणीय विकास)
JPSC Sustainable Developmen(धारणीय विकास)
( संकल्पना और धारणीय विकास के संकेतक, आर्थिक, सामाजिक और वातावरणीय
धारणीयता, हरित जी.डी.पी. की संकल्पना, भारत में धारणीय विकास की नीति और रणनीति ) सतत विकास यह
अवधारणा वर्तमान में पर्यावरण नीति और अन्तर्राष्ट्रीय विकास का मार्गदर्शक
सिद्धान्त बन गयी है। यह अवधारणा सामाजिक व आर्थिक नीति तथा राष्ट्रीय-सामुदायिक
या वैयक्तिक स्तर पर पहलकदमी में वांछित दिशा में परिवर्तन कर विवाद और निर्णय के
लिए व्यापक रूपरेखा तैयार करता है। सतत
विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उपलब्धा संसाधनों का उपयोग इस तरह से किया जाता
है, कि वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ ही भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं का भी
ध्यान रखा जाए। आधुनिक
अर्थों में सतत या धारणीय विकास का प्रयोग वर्ष 1972 में क्लव ऑफ रोम ने अपनी
रिपोर्ट वृद्धि की सीमाएँ (Limits to Growth) में किया था। डेनिस व डोनेल मीडोज ने
वृद्धि की सीमाओं में वैश्विक सन्तुलन (Global Quilibrium) के लिए सतत
(Sustainable) शब्द का प्रयोग किया। वर्ष
1972 में स्वीडन स्टॉकहोम में मानव एवं पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन का आयोजन
किया गया तथा इसमें पहली बार पर्यावरणीय विकास को अन्तर्राष…