झारखण्ड
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद राँची (झारखण्ड)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा (2021-2022)
प्रतिदर्श प्रश्न पत्र सेट- 05
कक्षा-12 |
विषय- समाजशास्त्र |
समय- 1 घंटा 30 मिनट |
पूर्णांक- 40 |
सामान्य
निर्देश:
»
परीक्षार्थी यथासंभव अपनी ही भाषा-शैली में उत्तर दें।
»
इस प्रश्न-पत्र के खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।
»
सभी प्रश्न के लिए निर्धारित अंक उसके सामने उपांत में अंकित है।
»
प्रश्नों के उत्तर उसके साथ दिए निर्देशों के आलोक
प्रश्न 1. लैंगिक विषमता क्या है?
उत्तर-स्त्रियों
तथा पुरुषों की लैंगिक विषमता का तात्पर्य पुरुष तथा स्त्रियों के बीच शक्तियों तथा
अधिकारों के मामलों में लिंग के आधार पर विभेद करना।
प्रश्न 2. प्रभुसत्ता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-प्रभुसत्ता
का अर्थ है पूर्णरूपेण अवाधित स्वतंत्रता अर्थात् ऐसी सरकार को किसी अन्य सत्ता द्वारा
नियंत्रित नहीं होती।
प्रश्न 3. संघीय संरचना क्या है?
उत्तर-संघीय
सरंचना वह व्यवस्था है जिसमें सरकार का गठन दो स्तरों पर होता है-केन्द्र सरकार तथा
राज्य सरकार संविधान द्वारा दोनों सरकारों का कार्यादायित्व तथा अधिकार बँटा हुआ है।
प्रश्न 4. संसद क्या है?
उत्तर-संसद
सर्वोच्च केन्द्रीय विधायिका है जिसका निर्माण जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों द्वारा
होता है । संसद में बहुमत के अनुसार कानून बनाए जाते हैं।
प्रश्न 5. मूल (एकाकी) परिवार क्या है ?
उत्तर-मूल
परिवार में माता-पिता (एक दम्पति) और उनके बच्चे शामिल होते हैं
प्रश्न 6. पितृवंशीय परिवार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-'पिता'
और उसके बच्चों से मिलकर एक पितृवंशीय पिता की होती है तथा निर्णय का अधिकार भी पिता
के पास होता है। पारिवारिक संपत्ति का हस्तांतरण पिता से पुत्र के हाथ में होता है।
विश्व के अधिकांश परिवार उसी श्रेणी में आते हैं।
प्रश्न 7.जनजातियों को वाह सीमान्तीकरण क्या है ?
उत्तर-जनजातियों
का वाह्य सीमान्तीकरण एक प्रक्रिया है जो जनजातियों की समुचित आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक
और राजनीतिक सुविधाओं को न मिलने के कारण क्रियाशील होता है।
प्रश्न 8. झारखंड आंदोलन का एक परिचय दें।
उत्तर-झारखंड
आंदोलन का आरंभ संथाल परगना के संथाल जनजातियों द्वारा सन् 1920 में किया गया। सन्
1939 में इसका नेतृत्व जयपाल सिंह के हाथों में आया तो झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
हुई । सन् 1964 में मुण्डा तथा संथाल नेताओं ने अलग-अलग झारखंड पार्टियाँ बना ली। सन्
1973 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नाम से पुनः एक संगठन बना जिसके बढ़ते प्रभाव के
फलस्वरूप 15 नवम्बर सन् 2000 को अलग झारखंड राज्य की स्थापना हुई।
प्रश्न 9. पण्यीकरण या वस्तुकरण की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-पण्यीकरण
तब होता है जब कुछ चीजें या प्रक्रियाएँ जो पहले बाजार का हिस्सा नहीं थी अब वह बाजार
में मिलने वाली वस्तु हो जाए। जैसे पारम्परिक रूप से पहले विवाह परिवार के सदस्यों
द्वारा तय किया जाता था। पर अब व्यवसायिक विवाह ब्यूरों की भरमार है जो बेबसाईट या
किसी और माध्यम से लोगों का विवाह तय करते हैं और इसका मेहनताना लेते हैं।
प्रश्न 10. जाति व्यवस्था से क्या समझते हैं ?
उत्तर-भारतीय
समाज की एक प्रमुख विशेषता जाति व्यवस्था है, जो समाज के स्तरीकरण में महत्त्वपूर्ण
भूमिका अदा करती है। जाति जन्म द्वारा निर्धारित होती है। प्रत्येक जाति का क्रम सोपान
का वर्णन है। इस क्रम में क्रमशः हैं-ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र । उच्च जातियाँ
प्राय: उच्च सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति की थी जबकि निम जातियाँ प्रायः निम्न आर्थिक
परिस्थिति की होती थीं। लेकिन आधुनिक काल में जाति और व्यवसाय के संबंध में शिथिलता
आयी है। इससे आज अमीर और गरीब हर जाति में पाये जाते हैं।
प्रश्न 11. क्षेत्रवाद की समस्या पर प्रकाश डालें।
उत्तर
भारत में क्षेत्रवाद भाषाओं, संस्कृतियों और धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है
। इसके कारण लोग देश और समाज को भूल कर अपने क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देते हैं
। स्थानीय भावनाओं के कारण क्षेत्र के आधार पर आंदोलन होते रहते हैं। कुछ राज्यों में
क्षेत्रवाद के चलते सीमा तथा जल-विवाद कायम है। क्षेत्रवाद की समस्या के कारण जब भावनाएँ
उग्र हो जाती हैं, तो विभाजन की बात होती है । जब कभी भी क्षेत्रीय विभिन्नताएँ उग्र
हुई; देश और राज्यों का विभाजन हुआ
क्षेत्रवाद
के कारण संकीर्णता जन्म लेती है। एक क्षेत्र के लोग अपनी ही संस्कृति तक सीमित रहना
चाहते हैं और दूसरों की संस्कृति की अवहेलना करते हैं। इससे संघर्षों को गति मिलती
है । अतः क्षेत्रवाद राष्ट्रीय भावना के प्रतिकूल है।
प्रश्न 12. परियोजना कार्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-प्रत्येक
परियोजना कार्य कुछ विशेष उद्देश्यों को लेकर किया जाता है। इनमें से निम्नांकित उद्देश्य
प्रमुख हैं-
(i)
किसी समस्या विशेष के विषय में जानकारी प्राप्त करके उस समस्या के कारण और परिणामों
को ज्ञात करना।
(ii)
एक विशेष समूह, समुदाय या समस्या के बारे में 'सैद्धांतिक ज्ञान' की सहायता से अनुभवसिद्ध
जानकारी प्राप्त करना ।
(iii)
समाज सुधार तथा सरकार को ऐसी सूचनाएँ उपलब्ध कराना जिनकी सहायता से किसी विशेष समस्या
का समाधान किया जा सके।
(iv)
सामाजिक अध्ययनों के लिए हम जिन अध्ययन पद्धतियों (Method) और अध्ययन की प्रविधियों
की विवेचना करते हैं, क्षेत्र में जाकर उनका व्यवहारिक रूप से उपयोग करना है।
(v)
परियोजना कार्य से प्राप्त तथ्यों की सहायता से सामाजिक नियोजन को सफल बनाने में योगदान
मिलता है।
(vi)
प्राप्त निष्कर्षों द्वारा समाज कल्याण में योगदान देना ।
प्रश्न 13. समाज सुधार आंदोलन के विविध रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
सामाजिक आंदोलन के अनेक रूप हैं। इसके तीन रूपों की चर्चा की गई है-पहला, जो किसी समूह
द्वारा अपनी सामाजिक प्रस्थिति में सुधार करने के लिए किया जाता है। जैसे-केरल की निम्न
जाति द्वारा श्री नारायण, धर्म परिपालन आंदोलन तथा उत्तर भारत में 'यादव आंदोलन' ।
सामाजिक
आंदोलन का दूसरा रूप वह है जिसका उद्देश्य किसी विशेष समूह या विचाराधारा का विरोध
करना होता है। दक्षिण भारत में 'द्रविड़ कड़गम आंदोलन' तथा महाराष्ट्र का 'महार आंदोलन'
। तीसरे प्रकार का सामाजिक आंदोलन वर्ग संघर्ष को विचार धारा पर आधारित होता है। भारत
का तेलंगाना आंदोलन तथा दलित पैंथर आंदोलन इसका उदाहरण है।
प्रश्न 14. पंचायतों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-ग्रामीण
पुननिर्माण और ग्रामीण विकास में पंचायतों का काफी महत्त्व है। ग्राम पंचायतें गाँव
के सार्वजनिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण कार्य करती हैं।
ग्राम पंचायतों ने स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, परिवहन, उद्योग-धंधों का विकास, सिंचाई
का प्रबंध, कमजोर वर्गों का कल्याण, मातृत्व तथा बाल कल्याण को विकसित करने अर्थात्
सामाजिक रूपांतरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। इसी के फलस्वरूप आज ग्राम
पंचायतों को ग्रामीण विकास का महत्त्वपूर्ण माध्यम माना जाता है।
प्रश्न 15. कृषक समाज की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-कृषक
समाज की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i)
कृषक समाज का समरूप समाज है।
(ii)
आजीविका का मुख्य स्रोत उनकी भूमि होती है।
(iii)
कृषक समाज में स्तरीकरण का अभाव होता है।
(iv)
कृषक समाज अपनी आवश्यकताओं के लिए कस्यों के कुलीन वर्ग पर निर्भर करता है।
(v)
कृषक समाज को आर्थिक आधार पर गाँव के दूसरे समूह से अलग किया जा सकता है।
(vi)
ग्रामीण जीवन में कृषकों की स्थिति श्रमिकों की तरह होती है।
(vii)
कृषक समाज अपने उपभोग के लिए उत्पादन करता है।
(viii)
कृषक समाज में व्यवसायिक विशेषीकरण नहीं होता है।
प्रश्न 16. मंडल आयोग द्वारा दिए गए सुझावों की विवेचना करें।
उत्तर-मंडल
आयोग ने पिछड़े वर्गों के विकास के लिए अनेक सुझाव दिए हैं। जिनमें प्रमुख हैं-
(i)
सभी सरकारी और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में 27 प्रतिशत स्थान पिछड़े वर्गों और निम्न वर्गों के लिए आरक्षित किए जाएँ।
(ii)
पदोन्नति के लिए भी 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाए।
(iii)
इन वर्गों में अपने परम्परागत व्यवसाय स्थापित करने में तकनीकी और आर्थिक सहयोग दिया
जाएं।
(iv)
पिछड़े वर्गों के भूमिहीन श्रमिकों को भी भूमि वितरण अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित
जनजातियों की तरह किया जाना चाहिए।
(v)
पिछड़े वर्गों में साक्षरता बढ़ाने के लिए एक समयबद्ध योजना लागू की जाए।
प्रश्न 17. स्त्रियों की समानता के लिए किए गए संघर्षों का वर्णन करें।
उत्तर-पुरुषों
और स्त्रियों के बीच लैंगिक असमानता प्रकृति की देन है। इस असमानता का कारण सामाजिक
भी है। अत: लिंग भी जाति और वर्ग की तरह ही सामाजिक विषमता और बाहिष्कार का एक रूप
है। अत: लैंगिक असमानता के विरूद्ध अनेक आंदोलन हुए। कई सुधारकों ने स्त्रियों के अधिकारों
के लिए संघर्ष किया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया, बाम्बे प्रेसिडेंसी
के सुधारक रानाडे ने विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए आंदोलन चलाया, ज्योतिबा फूले ने
जातीय और लैंगिक अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठायी । आर्य समाज संस्थापक दयानंद सरस्वती
ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आंदोलन चलाया। 20 वीं शताब्दी में स्त्रियाँ अपने
अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार हो पाई और अनेक नारी संगठनों का उदय हुआ।
1931
में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कराँची अधिवेशन में भारत के नागरिकों के मूल अधिकारों
के बारे में एक घोषणा जारी की गई जिसके द्वारा काँग्रेस स्त्रियों को समानता का अधिकार
देने के लिए प्रतिबद्ध हुआ। उस घोषणा पत्र में कहा गया-
(i)
सभी नागरिक कानून (विधि) के समक्ष एक समान हैं चाहे उसका धर्म, जाति या लिंग कोई भी
हो।
(ii).
किसी भी नागरिक को उसके धर्म, जाति या लिंग के कारण रोजगार, सम्मान का पद दिए जाने
में अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
(iii)
स्त्रियों को मत डालने, प्रतिनिधित्व करने और सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार होगा।
1970
के दशक में आधुनिक मुद्दों, पुलिस अभिरक्षण में स्त्रियों के साथ बलात्कार, दहेज के
लिए हत्या, असमान विकास के लैंगिक परिणाम आदि पर विशेष रूप से ध्यानाकर्षित किया गया।
उन्हें अधिकार सम्पन्न करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1975 में अंतर्राष्ट्रीय
महिला वर्ष घोषित किया। उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान में अनेक प्रावधान लाए
गए और उनके लिए कानून बनाए गए । फिर भी 21 वीं सदी में लैंगिक अन्याय के नए रूप उभर
कर सामने आ रहे हैं । लैंगिक अनुपात में काफी अंतर आ रहा है अर्थात् स्त्री-पुरुष अनुपात
में अंतर आ रहा है। यह बालिका भ्रूण हत्या के कारण तथा बालिकाओं के विरुद्ध सामाजिक
पक्षपात पूर्ण रवैया के कारण उत्पन्न हो रहा है । अतः पुनः एक बार नये रूप में स्त्री
अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा। तभी उनके अधिकारों की रक्षा हो सकेगी।
प्रश्न 18. पंचायतों के अधिकारों एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-तीनों
स्तरों पर पंचायतों के अधिकार और कार्यों की संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में एक सूची
दी गई है। इसी सूची के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा पंचायतों के अधिकार और कार्य तय
किए जाते हैं । पंचायतों के कार्यों की सूची में 30 कार्यों का उल्लेख है जिनमें महत्वपूर्ण
हैं-
(i)
कृषि विकास, भूमि सुधार और चारागाहों का विकास करना।
(ii)
ग्रामीण क्षेत्रों में लघु सिंचाई योजनाओं, पीने का पानी, तालाबों और पोखरों की व्यवस्था
करना।
(iii)
पशुपालन, मछली पालन, दुग्ध उद्योग आदि का विकास करना।
(iv)
सड़कों और सार्वजनिक भूमि के किनारे वृक्षारोपण करना ।
(v)
कुटीर उद्योगों, कृषि उद्योगों और लघु उद्योगों का विकास करना ।
(vi)
ग्रामीण आवास कार्यक्रमों को लागू करना ।
(vii)
ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों, पुलियों आदि का निर्माण और रख-रखाव की जिम्मेवारी।
(viii)
ग्रामीण विद्युतीकरण करना ।
(ix)
गरीबी उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रमों को लागू करना ।
(x)
प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना ।
(xi)
गाँवों में स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्यक्रम को लागू करना तथा परिवार कल्याण कार्यक्रम
को प्रोत्साहन देना।
(xii)
महिला और बाल विकास के कार्यक्रम को लागू करना ।
(xiii)
क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए योजनाएँ तैयार करना ।
(xiv)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था करना।
(xv)
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्गों के लिए विशेष कार्यक्रम बनाना
और उन्हें लागू करना ।
(xvi)
पंचायत के क्षेत्र में मेलों, बाजारों और हाटों की व्यवस्था करना आदि।
प्रश्न 19. राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन
करें।
उत्तर-मार्च,
2001 में भारत की जनसंख्या 101 करोड़ थी । अतः जनसंख्या वृद्धि की दर को कम करने के
प्रयत्न किये जा रहे हैं।
1975-76
में एक राष्ट्रीय नीति का निर्माण किया गया जिसमें जन्म दर को कम करने के विभिन्न उपायों
पर जोर दिय गया। जनसंख्या नीति 2000 में जनसंख्या को स्थिर रखने के संबंध में नई नीति
की घोषणा की गई जो निम्नलिखित हैं-
(i) जन्म-दर, प्रजनन-दर के साथ-साथ मृत्यु दर को विकास
के धारणीय स्तर तक कम करना।
(ii)
प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य की देखभाल हेतु सुविधाएँ देना ।
(iii)
जनसंख्या शिक्षा के प्रसार पर बल देना तथा 14 वर्ष की आयु तक विद्यालय शिक्षा को अनिवार्य
बनाना।
(iv)
विवाह की आयु को बढ़ाना तथा बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम 1976 को कठोरता से लागू करना
।
(v) प्रजनन को कम करने से संबंधित उपायों की सूचना,
परामर्श और सेवाओं को जन-जन तक पहुचाना।
(vi) एड्स के प्रसार को नियंत्रित करना तथा कोई अन्य संक्रामक रोगों को प्रतिबंधित और नियंत्रित करना।