Class XII (संस्कृत) द्वितीयः पाठः रघुकौत्ससंवाद: रघुकौत्ससंवादः
पाठ्यांशः तमध्वरे विश्वजिति
क्षितीशं निःशेषविश्राणितकोषजातम्।
उपात्तविद्यो
गुरुदक्षिणार्थी कौत्सः प्रपेदे
वरतन्तुशिष्यः ॥1॥ अन्वयः - विश्वजिति
अध्वरे नि:शेषविश्राणितकोशजातं तं क्षितीशं (रघुम्) उपात्तविद्यः वरतन्तुशिष्यः कौत्स:
गुरुदक्षिणार्थी प्रपेदे। प्रसंग: - प्रस्तुत
पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती-द्वितीयो भागः' के 'रघुकौत्ससंवादः' नामक पाठ से लिया
गया है। यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा रचित 'रघुवंशमहाकाव्यम्' के पञ्चम सर्ग से सम्पादित
किया गया है। इस पाठ में ऋषि वरतन्तु के शिष्य कौत्स तथा महाराजा रघु के बीच हुए संवाद
को वर्णित किया गया है। (पूरे पाठ में इसी प्रसंग का प्रयोग किया जा सकता है)। सरलार्थ: -
'विश्वजित्' नामक यज्ञ में अपनी सम्पूर्ण धनराशि दान कर चुके उस राजा रघु के पास वरतन्तु
ऋषि का विद्यासम्पन्न शिष्य कौत्स गुरुदक्षिणा देने की इच्छा से धनयाचना करने के लिए
पहुँचा। भावार्थ: - प्राचीन
काल में राजा लोग 'विश्वजित्' यज्ञ करते थे। राजा रघु ने भी यह यज्ञ किया और अपना सम्पूर्ण
खजाना (राजकोष-धनधान्य) दान कर दिया। तभी वरतन्तु क…