12th आरोह 14. फणीश्वर नाथ रेणु (पहलवान की ढोलक) पाठ के साथ प्रश्न 1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या
तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा
करते हैं? उन्हें शब्द दीजिए। उत्तर
: लुट्टन पहलवान ढोल की आवाज के प्रति अत्यधिक संवेदनशील था। उसे ढोल की आवाज मानो
कुश्ती के दाँव-पेंच सिखाती थी। ढोल के ध्वन्यात्मक शब्द उसे इस तरह आदेशात्मक लगते
थे - चट्
धा, गिड़-धा - आजा, भिड़ जा। चटाक्-चट्-धा
- उठाकर पटक दे। चट्-गिड़-धा
- मत डरना। ढाक्-ढिना;
ढाक्-धिना - वाह पटे, वाह पढ़े। धाक
धिना, तिरकट तिना - दाँव काटो, बाहर हो जा। धिना-धिना,
धिक् धिना - चित करो, चित करो। धा-गिड़-गिड़
- वाह बहादुर ! वस्तुतः
ये ध्वन्यात्मक शब्द हमारे मन में उत्तेजना पैदा करते हैं तथा संघर्ष करने की चेतना
बढ़ाते हैं। प्रश्न 2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन
आये? उत्तर
: कहानी में लुट्टन के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन आये - बचपन
में माता-पिता की मृत्यु हो गई, तब उसका पालन-पोषण विधवा सास ने किया। शादी बचपन में
हो गई थी। श्यामनगर
के दंगल में पंजाब के नामी पहलवान चाँदसिंह को पछाड़क…