12th आरोह 17. हजारी प्रसाद द्विवेदी (शिरीष के फूल)
12th आरोह 17. हजारी प्रसाद द्विवेदी (शिरीष के फूल) पाठ के साथ प्रश्न 1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना
है? उत्तर
: अवधूत ऐसा संन्यासी या तन्त्र-साधक होता है, जो सांसारिक विषय-वासनाओं से ऊपर उठा
हुआ, सुख-दुःख से मुक्त एवं कामनाओं से रहित होता है। वह विपरीत परिस्थितियों में भी
समान रहकर फक्कड़ और मस्त बना रहता है। उसी प्रकार शिरीष वृक्ष भी तपन, लू, शीत आदि
सब सहन करता है और वसन्तागम पर फूलों से लद जाता है। जब गर्मी एवं लू से सारा संसार
सन्तप्त रहता है, तब भी शिरीष लहलहाता रहता है। अतः उसे कालजयी अवधूत के समान बताया
गया है। प्रश्न 2. 'हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी
जरूरी हो जाती है' प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। उत्तर
: हृदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार की कठोरता जरूरी हो जाती है। शिरीष
के फूल अतीव कोमल होते हैं, परन्तु वे अपने वृन्त से इतने मजबूत जुड़े रहते हैं कि
नये फूलों के आ जाने पर भी अपना स्थान नहीं छोड़ते हैं। वे अपने अन्दर की कोमलता को
बचाने के लिए ऐसे कठोर बन जाते हैं। प्रश्न 3. द्विवेदीजी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी
जीवन-स्थिति…