12th आरोह 18. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर (श्रम विभाजन और जाति
12th आरोह 18. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर (श्रम विभाजन और जाति पाठ के साथ प्रश्न 1. जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे
आम्बेडकर का क्या तर्क है? उत्तर
: आम्बेडकर का तर्क है कि जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का एक रूप मानना अनुचित है। क्योंकि
ऐसा विभाजन अस्वाभाविक और मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। इसमें व्यक्ति की क्षमता
का विचार किये बिना उसे वंशगत पेशे से बाँध दिया जाता है, वह उसके लिए अनुपयुक्त एवं
अपर्याप्त भी हो सकता है। फलस्वरूप गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या आ जाती है। प्रश्न 2. जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का एक कारण
कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? उत्तर
: भारतीय समाज में जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती
है, जो उसका जातिगत पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। यदि वह पेशा उसके
लिए अनुपयुक्त हो अथवा अपर्याप्त हो तो उसके सामने भुखमरी की स्थिति खड़ी हो जाती है।
इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का भी एक
प्रमुख कारण बनती रही है। प्रश्न 3. लेखक के मत से 'दासता' की व्यापक परिभाषा क्या है? उत्तर
: लेखक के अनुसार दासता केवल…