12th अंतरा 20. ममता कालिया (दूसरा देवदास)

12th अंतरा 20. ममता कालिया (दूसरा देवदास)
12th अंतरा 20. ममता कालिया (दूसरा देवदास)

ममता कालिया (दूसरा देवदास)

प्रश्न 1. पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर : हर की पौड़ी पर गंगा जी के अनेक मन्दिर है। हर मन्दिर पर लिखा है - गंगा जी का प्राचीन मन्दिर। शाम का. समय है। पंडित-पुजारी गंगा जी की आरती की तैयारी करने में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि (आरती) में हजारों बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी गई हैं। गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वरदी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं और वे सबको शान्त होकर सीढ़ियों पर बैठने के लिए कह रहे हैं।

कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है अर्थात् एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली आरती। अचानक हजारों दीप जल उठते हैं। पंडितगण अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अंगोछा लपेटे पचमंजिली नीलांजलि पकड़ते हैं और आरती शुरू हो जाती है। पहले पुजारियों के भर्राए कंठ से समवेत स्वर उठता है-जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता। फिर भक्तों का समवेत स्वर गूंजता है।

प्रश्न 2. 'गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है'-इस कथन के आधार पर गंगा पुत्रों के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।

अथवा

'व्यापार यहाँ भी था' 'दूसरा देवदास' पाठ के आधार पर इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : गंगापुत्र उन गोताखोरों को कहते हैं जो गंगा से ही अपनी जीविका चलाते हैं। मनौतियों करने वाले स्त्री-पुरुष दोने में फूल, दीपक, नैवेद्य एवं पैसा रखकर गंगा पर तैरा देते हैं। ये गंगापुत्र इन दौनो में रखें पैसे गंगा में खड़े होकर उठा लेते हैं। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। यहीं से वह रोजी-रोटी कमाता है। गंगा स्नान करने के लिए आए भक्तों द्वारा गंगा पूजा के लिए तथा मनौती के लिए जो पैसा चढ़ाया जाता है उसे भी वह गोताखोर गोता लगाकर निकाल लेता है। यही रेजगारी उसकी दिनभर की कमाई है। रेजगारी को भी बेचकर उसके परिवार की औरतें एक रुपए के अस्सी या पचासी पैसे देकर कुछ लाभ कमा लेती हैं। इस प्रकार गंगा मैया ही उसका जीवन और जीविका दोनों हैं।

प्रश्न 3. पुजारी ने लड़की के 'हम' को युगल अर्थ में लेकर.क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?

उत्तर : गंगा स्नान के बाद संभव पुजारी के पास खड़ा चन्दन का टीका लगवा रहा था कि तभी एक युवती गंगा स्नान के बाद गीले वस्त्र पहने उसके पास आकर खड़ी हो गई और पंडित जी से बोली - पण्डित जी आज तो आरती हो चुकी, हमें देर हो गई, हम कल आरती की बेला आएँगे। लड़की लड़के के बहुत पास खड़ी थी। पुजारी ने उसके 'हम' शब्द को युगल अर्थ में लेकर समझा कि ये दोनों पति-पत्नी हैं अतः आशीर्वाद दिया "सुखी रहो, फलो-फूलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।"पुजारी के आशीर्वाद को सुनकर दोनों सकपका गए। लड़की छिटककर दूर जा खड़ी हुई और लड़के ने भी वहाँ से चल पड़ने की शीघ्रता दिखाई। उन दोनों के व्यवहार में यह अटपटापन इसलिए आया क्योंकि पुजारी ने उन्हें. भ्रंम से पति-पत्नी समझ लिया था।

प्रश्न 4. उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

उत्तर : हर की पौड़ी पर उस लड़की से संभव की जो छोटी-सी मुलाकात हुई उसने उसके मन में हलचल मचा दी। खाना खाते समय भी पुजारी के आशीर्वाद का दृश्य उसकी आँखों के सामने आता रहा। कौर हाथ में लिए वह बैठा रहा और सोचता रहा "लड़की का नाम भी तो उसने नहीं पूछा, वह बी. ए. में पढ़ती होगी. या एम. ए. में, रहने वाली कहाँ की है, हरिद्वार की तो लगती नहीं। वह यह भी कह रही थी कि कल शाम को यहाँ फिर आएंगी। उससे दुबारा मुलाकात होगी तो वह उसके बारे में पूछेगा कि कहाँ की रहने वाली है और उसका नाम क्या है।" वास्तव में उसके मन में उस लड़की के प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया था और वह उससे मिलना चाहता था।

प्रश्न 5. मंसा देवी जाने के लिए केबिलकार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।

उत्तर : मंसा देवी जाने के लिए संभव एक गुलाबी रंग की केबिलकार में बैठ गया। कल से उसे गुलाबी रंग के सिवा कोई और रंग सुहा नहीं रहा था क्योंकि लड़की ने कल गुलाबी परिधान पहना हुआ था। उसकी केबिलकार जहाँ से गुजर रही थी वहाँ कतारबद्ध फूल खिले थे लगता था रंग-बिरंगी वादियों से कोई हिंडोला उड़ा जा रहा है। सम्भव को अफसोस हो रहा था कि वह चढ़ावे का सामान खरीदकर नहीं लाया। उसका मन चारों ओर के विहंगम दृश्य में रम रहा था। गंगा मैया के मन्दिरों के बुर्ज, गंगा मैया की धवल धार, सड़कों के खूबसूरत घुमाव, पूरा हरिद्वार रास्ता चलते लोग, दुकानें; पेड़ आदि को वह देख रहा था। शीघ्र उसकी केबिलकार मन्दिर के द्वार पर पहुँच गई।

प्रश्न 6. "पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम हैं उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।" कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर : संभव ने आगे जाते बच्चे के कंधे को थपथपाकर कहा-'कहो दोस्त।' लड़का बोला - 'अरे भैया' फिर अपनी बुआ से कहा-'बुआ, इनसे मिलो ये हैं मेरे दोस्त, और बोला 'अफ्ना नाम खुद बताइए।' फिर अपनी बुआ का आँचल खींचते हुए कहा - 'पारो बुआ, इनका नाम है...'! संभव ने हँसते हुए अधूरा वाक्य पूरा किया - 'संभव देवदास'। संभव ने आज ही तो मंसादेवी के दर्शन करके मनोकामना के पूर्ण होने की आशा में लाल-पीले धागे की गाँठ लगाई थी और उसकी मनोकामना पूरी हो गई लड़की से उसकी भेंट भी हो गई, परिचय भी हो गया। उसे उस गाँठ का मधुर स्मरण हो आया। उसके मन में लड़की के प्रति प्रेम भाव जाग्रत हो चुका था।

प्रश्न 7. 'मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत अनूठी है, इधर.बाँधो उधर लग जाती है।' कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

अथवा

"मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत अनोखी है" कैसे? 'दूसरा देवदास' के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कल गंगा घाट पर लड़की (पारो) की भेंट लड़के (संभव) से हुई थी और पुजारी ने उन्हें पास खड़ा देखकर पूरी 1 भ्रम से पति-पत्नी समझकर फलने-फूलने का आशीष भी दिया था। लड़की छिटककर दूर खड़ी हो गई पर उन दोनों के मन में प्रेम का अंकुरण हो गया था। आज मंसा देवी के दर्शन करने के बाद लड़की ने मनोकामना पूरी होने हेतु कलावे की जो गाँठ बाँधी थी लगता था उस गाँठ का असर हुआ और संभव से उसकी फिर मुलाकात हो गई।

वह सोचने लगी-मनोकामना की यह गाँठ भी कैसी अद्भुत है, अनूठी है। इधर बाँधो तो उधर लग जाती है। अर्थात् इधर गाँठ बाँधो उधर मनोकामन हो जाती है। आज ही उसने गाँठ बाँधी थी और संभव आज उसे फिर दिख गया तथा उससे परिचय भी हुआ। जब मन्नू ने अपनी बुआ का नाम बताया पारो तो संभव ने अपना नाम संभव देवदास बताकर यह संकेत कर दिया कि वह पारो का देवदास है। शरतचन्द्र के उपन्यास 'देवदास' की नायिका पारो है और नायक देवदास है। वे दोनों एक-दूसरे से गहरा प्रेम करते हैं। . पारो के मन में भी संभव के प्रति प्रेम उत्पन्न हो चुका है।

प्रश्न 8. निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।'

(ख) 'उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है। उसके अन्दर स्व से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानन्द है।'

(ग) 'एकदम अन्दर के प्रकोष्ठ में चामुण्डा रूप धारिणी मंसादेवी स्थापित थी। व्यापार यहाँ भी था।'

उत्तर :

(क) संभव हर की पौड़ी पर स्नान करने के काफी देर बाद लौटा तब नानी उसे अपने मन में उठने वाली आशंकाओं के बारे में बताने लगी। वह सोच रही थीं कि कहीं संभव का पैर न फिसल गया हो। उसे तैरना भी तो नहीं आता अगर कोई दुर्घटना हो गई तो वह अपनी बेटी (सविता) को कौन-सा मुख दिखाएगी। नानी के मन में अपने नवासे संभव के प्रति जो स्नेह है उसी की अभिव्यक्ति इन पंक्तियों में हुई है। संस्कृत में कहावत है-'स्नेह पापशंकी' अर्थात् जिससे स्नेह होता है उसकी कुशल क्षेम के सम्बन्ध में हमें निराधार शंकाएँ होती हैं।

(ख) गंगा तट पर बैसाखी के मेले में अपार भीड़ उमड़ी थी। सभी स्नानार्थी अपने कल्याण की कामना से गंगा में डुबकी लगा रहे थे। स्नान से ज्यादा समय ध्यान में लगा रहे थे। एक स्नानार्थी गंगा की धारा के बीच खड़ा सूर्य की ओर उन्मुख होकर हाथ जोड़े खड़ा प्रार्थना कर रहा था। उसके चेहरे पर विभोर कर देने वाला आनन्द तो था ही साथ ही अद्भुत विनीत भाव भी था। लग रहा था उसका अहम् समाप्त हो गया है और वह कुंठा रहित होकर आत्मस्वरूप हो गया है। लगता था कि अब वह चेतनस्वरूप है, आत्माराम है और निर्मल आनन्द का अनुभव कर रहा है।

(ग) इस अवतरण में कहानी लेखिका यह प्रतिपादित कर रही हैं कि हमारे धर्म स्थलों पर भी व्यापारिक प्रवृत्ति हावी हो गई है। हरिद्वार में पहाड़ी पर स्थित मंसादेवी के दर्शन करने लोग केबिलकार से जाते हैं। संभव भी केबिलकार से मंसादेवी मन्दिर के परिसर में पहुँचा। एकदम भीतर के कक्ष में चामुण्डा रूपधारिणी मंसादेवी स्थापित थीं किन्तु यहाँ भी व्यापार की प्रवृत्ति हावी थी। लोग ज्यादा से ज्यादा धन कमाने के लिए प्रसाद, फूलमाला आदि के दाम भीड़ को देखकर बढ़ा देते थे।

प्रश्न 9. 'दूसरा देवदास' कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' एक प्रेमकथा है। कहानी का शीर्षक पात्र, घटना या स्थान के नाम पर रखा जाता है। वह आकर्षक, रोचक, संक्षिप्त एवं कौतूहलवर्द्धक भी होना चाहिए। संभव को जब पता चला कि जो लड़की गंगातट पर उसे पुजारी के पास मिली थी और पुजारी ने उन दोनों को भ्रम से पति-पत्नी समझकर फूलो-फलो का आशीष दिया था, उसका नाम पारो है तो उसने परिचय देते हुए अपना नाम उसे बताया संभव, संभव देवदास। पारो और देवदास शरतचन्द्र के उपन्यास देवदास के पात्र हैं। इस प्रतीकात्मक नाम से संभव ने यह बता दिया कि वह पारो का देवदास है और उससे प्रेम करने लगा है। इसलिए इस कहानी का शीर्षक 'दूसरा देवदास' पूरी तरह उपयुक्त है।

प्रश्न 10. हे ईश्वर ! उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा।' - आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मंसादेवी के दर्शन करके जब संभव केबिलकार से लौट रहा था तभी उसे बगल में जाती दूसरी केबिलकार में . वह छोटा बच्चा अपनी बुआ के साथ बैठा दिखाई दिया जिससे आज गंगा तट पर भेंट हुई थी और. जो उसे दोस्त कहकर सम्बोधित कर रहा था। उस लड़के की बुआ (पारो) वही लड़की थी जो कल गंगातट पर पुजारी के यहाँ उसे मिली थी और पुजारी ने उन्हें भ्रम से पति-पत्नी समझकर आशीष दिया था। संभव उसका पुनः दर्शन पाने के लिए ही तो आज गंगातट पर आया था और मंसादेवी के दर्शन करके मनोकामना की पूर्ति हेतु उसने कलावे की गाँठ बाँधी थी। गाँठ बाँधते समय उसने मौन रूप में अपनी मनोकामना के उद्गार व्यक्त किए थे कि उसे वह लड़की आज दिख जाए। अब जब वह दिख गई तो वह सोचने लगा कि हे ईश्वर मनोकामना का मौन उद्गार भी इतना शीघ्र अपना परिणाम दिखाएगा यह तो उसने सोचा भी न था। वस्तुतः संभव अत्यन्त प्रसन्न था उस लड़की को देखकर, उसकी मनोकामना पूर्ण हो गयी थी और लड़की के प्रति प्रेण - का अंकुरण उसके हृदय में हो गया था।

भाषा-शिल्पा

प्रश्न 1. इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर-लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है - पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।

उत्तर : नैरेटर (लेखक) अपनी ओर से दृश्य का वर्णन करता हुआ कहानी को आगे बढ़ाता है। जैसे गंगा तट की आरती वाला दृश्य

हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बत्ती का समय या कह लो आरती की बेला।

यकायक सहस्रदीप जल उठते हैं पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं।

गंगा को छूकर आती हवा से आँगन काफी शीतल था। ऊपर से नानी ने रोज की तरह शाम को चौक धो डाला था।

प्रश्न 2. पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे सम्बन्धित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर : आरती - दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला।

फूलों के दोने-पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे। इस वक्त दो-दो के हो गए हैं।

नीलांजलि-पीतल की नीलांजलि में सहस्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।

चन्दन और सिन्दूर-कोई न कोई पंडा जजमानों के कपड़ों-लत्तों की सुरक्षा कर रहा है। हर एक के पास चन्दन और सिन्दूर की कटोरी है।

अगरु-चन्दन - पूरे वातावरण में अगरु-चन्दन की दिव्य सुगंध है।

दक्षिणा - आरती के क्षण इतने भव्य और दिव्य रहे हैं कि भक्तजन खुशी-खुशी दक्षिणा देते हैं।

दर्शन-अरे दर्शन तो करते जाओ।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा था' कहानी पढ़िए और उस पर बनी फिल्म देखिए।

उत्तर : 'उसने कहा था' हिन्दी की प्रसिद्ध प्रेम कहानी है जो यह बताती है कि प्रेम में त्याग, बलिदान और विश्वास ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। जमादार लहना सिंह ने अपने बचपन की प्रेमिका के पति और पुत्र की रक्षा अपनी जान देकर भी की और जो उसने कहा था वह कर दिया। छात्र इस कहानी को पढ़ें तथा इस पर निर्माता-निर्देशक विमलराय की फिल्म देखें।

प्रश्न 2. हरिद्वार और उसके आसपास के स्थानों की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी अपने अध्यापक या माता-पिता के साथ हरिद्वार घूमने का कार्यक्रम बनाएँ और जानकारी प्राप्त करें। शांतिकंज, मंसादेवी, लक्ष्मण झला (ऋषिकेश) आदि स्थान दर्शनीय हैं।

प्रश्न 3. गंगा नदी पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर : भारत की पहचान जिनसे बनती है उनमें से एक है गंगा नदी। इसे भारत की जीवन रेखा कह सकते हैं। गंगा के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह भारत की सबसे लम्बी नदी है जो हिमालय के गोमुख से निकलकर अन्त में बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। अनेक छोटी-बड़ी नदियों को गंगा अपने में समाहित करती हुई वर्ष भर प्रवाहित होती रहती है और उत्तर भारत के मैदानी भाग को उर्वरा बनाती हुई हम सबका पालन-पोषण करती है। जहाँ कोई दूसरी नदी गंगा में मिलती है, उस स्थान को प्रयाग (संगम) का नाम दिया गया है। कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, इलाहाबाद (प्रयाग) ऐसे ही स्थान हैं। इलाहाबाद में गंगा में यमुना नदी का संगम हुआ है। गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम को त्रिवेणी कहा जाता है। सरस्वती नदी अब लुप्त हो गई हैं। संगम स्नान का विशेष महत्त्व हिन्दू धर्म में है।

गंगा के तट पर अनेक प्रमुख शहर बसे हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद, कानपुर आदि ऐसे ही नगर हैं। गंगाजल अत्यन्त पवित्र माना जाता है। गंगातट पर हरिद्वार और इलाहबाद में कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्ष बाद किया जाता है। लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करके पुण्य लाभ करते हैं। गंमा भारत.की सर्वाधिक पवित्र नदी मानी जाती है परन्तु वर्तमान समय में औद्योगिक प्रदूषण एवं नगरों से आने वाले नालों ने गंगाजल को प्रदूषित कर दिया है। नदियाँ हमारी माता हैं। उनकी स्वच्छता और पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है अतः हम सबका यह परम कर्त्तव्य है कि हम गंगा. को स्वच्छ रखें।

प्रश्न 4. आपके नगर/गाँव में नदी-तालाब-मन्दिर के आस-पास जो कर्मकांड होते हैं उनका रेखाचित्र के रूप में . . लेखन कीजिए।

उत्तर : यमुना नदी के तट पर स्थित हमारे गाँव में प्रतिवर्ष लोग स्नान के लिए कार्तिक पूर्णिमा को एकत्र होते हैं और यहाँ स्थित 'बटेश्वर महादेव' के दर्शन करते हैं। यही नहीं, गाँव में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तब उसका अंतिम संस्कार एवं उस अवसर पर किए जाने वाले कर्मकाण्ड-बाल बनवाना, शुद्धि हेतु स्नान करना आदि भी यहीं सम्पन्न होते हैं और लोग राख आदि को यमुना में बहा देते हैं। यह ठीक नहीं है, नदियों को इस प्रकार. हमें प्रदूषित नहीं करना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' का नायक कौन है?

उत्तर : ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' का नायक संभव है।

प्रश्न 2. संभव की पारो से पहली मुलाकात कहाँ हुई?

उत्तर : संभव की पारो से पहली मुलाकात हर की पौड़ी पर हुई।

प्रश्न 3. सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफलता के लिए मंसा देवी जाकर किसको प्रार्थना करनी थी?

उत्तर : सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफलता के लिए मंसा देवी जाकर संभव को प्रार्थना करनी थी।

प्रश्न 4. मनोकामना की गाँठ विचित्र है; इधर बाँधी और उधर पूरी हो जाती है। यह किसने सोचा?

उत्तर : मनोकामना की गाँठ विचित्र है, इधर बाँधी और उधर पूरी हो जाती है। यह संभव ने सोचा।

प्रश्न 5. 'दूसरा देवदास' कहानी में किसका वर्णन है?

उत्तर : 'दूसरा देवदास' कहानी में युवा मन की संवेदनाओं का वर्णन है।

प्रश्न 6. मनोकामना हेतु लाल-पीले धागे कितने रुपये में बिक रहे थे?

उत्तर : मनोकामना हेतु लाल-पीले धागे सवा रुपये में बिक रहे थे।

प्रश्न 7. मंसा देवी किस रूप में विराजमान थी?

उत्तर : मंसा देवी चामुंडा रूप धारण किए हुए वहाँ विराजमान थी।

प्रश्न 8. रोपवे किस कम्पनी का था?

उत्तर : रोपवे 'उषा ब्रेको सर्विस' नाम की कम्पनी का था।

प्रश्न 9. लाउडस्पीकर में किसका स्वर गूंजा करता था?

उत्तर : लाउडस्पीकर में लता मंगेशकर का स्वर गूंजा करता था।

प्रश्न 10. लाल रंग का कलावा बाँधने के लिए पंडित जी को संभव ने कितने रुपये का नोट दिया था?

उत्तर : लाल रंग का कलावा बाँधने के लिए पंडित जी को संभव ने दो रुपये का नोट दिया था।

प्रश्न 11. गंगा घाट पर किस-किस देवता की मूर्ति रखी हुई थी?

उत्तर : गंगा घाटा पर गंगा की मूर्ति के साथ-साथ चामुंडा, बालकृष्ण, राधाकृष्ण, हनुमान और सीताराम की मूर्तियाँ रखी हुई थीं।

प्रश्न 12. लोग वहाँ आरती करने क्यों जाते हैं?

उत्तर : किसी मन्नत या मनोकामना के पूरा हो जाने के बाद लोग खुशी का इजहार करने या गंगा माँ का आशीर्वाद ... राप्त करने हेतु वहाँ आरती करने जाते हैं।

प्रश्न 13. संभव क्या करता था? उसकी शिक्षा के बारे में बताइए।

उत्तर : संभव ने इस साल एम.ए. पूरा किया था। अब वह सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता में बैठने वाला था। माता-पिता का ख्याल था कि वह हरिद्वार जाकर गंगाजी के दर्शन कर ले तो जल्दी सिविल सेवा में चुन लिया जाएगा।

प्रश्न 14. संभव को रात में नींद क्यों नहीं आती थी?

उत्तर : संभव को नींद न आने की वजह पारो थी। वह उसके प्रेम में पागल की भाँति रात भर उसके बारे में ही सोचा करता था।

प्रश्न 15. रुद्राक्ष की मालाओं वाली गुमटी पर क्या लिखा हुआ था?

उत्तर : रुद्राक्ष की मालाओं की अनेक गुमटियाँ थीं, जहाँ दस रुपए से लेकर तीन हजार तक की मालाओं पर लिखा था- 'असली रुद्राक्ष, नकली साबित करने वाले को पाँच सौ रुपए इनाम।'

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखिका ने गंगापुत्र किसे कहा है और क्यों?

उत्तर : गंगापुत्र उन गोताखोरों के लिए प्रयुक्त शब्द है जो भक्तों द्वारा गंगा में चढ़ाए गए पैसे गोता लगाकर निकाल लेते । अथवा पूजा के लिए गंगा में किश्ती की तरह तैराए गए दोनो में से पैसे बटोरते हैं। गंगा ही इनकी जीविका का साधन है। । इसी क्षेत्र में पले-बढ़े हैं। गंगा ही इनकी माँ हैं अत: लेखिका ने इन्हें गंगापुत्र कहा है।

प्रश्न 2. स्पेशल आरती से क्या तात्पर्य है?

उत्तर : लेखिका यह बताना चाहती है कि हमारे धर्मस्थलों पर भी अब व्यापार होने लगा है। पण्डे-पुरोहित भी इसका लाभ उठाकर भक्तजनों से पैसा लेकर उन्हें सुविधाएँ दे रहे हैं। एक तो सामान्य आरती जो हर शाम गंगा मंदिर में होती थी और (माम सामान्य भक्त इसमें भाग लेते थे और एक दूसरी आरती थी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपए वाली स्पेशल आरती जो धनवान भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर करवाते थे।

प्रश्न 3. नीलांजलि क्या है?

उत्तर : नीलांजलि पाँच मंजिला पीतल का यंत्र है जो आरती के काम आता है। इसमें हजारों बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी रहती हैं। सायंकाल आरती के समय वे जला दी जाती हैं। इस तरह जलते हुए वे अनेक दीपक भव्य दृश्य उपस्थित करते हैं। आरती करने वाले पंडित जी का हाथ ताप से बचा रहे इस हेतु पंडित जी अपने हाथ में पानी से भीगा अंगोछा लपेटे रहते हैं। स प्रकार नीलांजलि कई स्तरों (मजिली) वाली बड़ी आरती को कहते हैं।

प्रश्न 4. 'नानी उवाच के बीच सपने नौ दो ग्यारह हो गये' वाक्य पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर : संभव को हर की पौड़ी पर स्नान के बाद एक लड़की मिली थीं, जो पुजारी के सामने संभव के बहुत पास खड़ी थी। पुजारी ने दोनों को पति-पत्नी समझकर फलने-फूलने का आशीर्वाद दिया था। इससे दोनों अचकचाकर तुरन्त वहाँ से आले. आये थे। नानी के घर आकर सम्भव उस लड़की के बारे में सोच रहा था। वह उसका नाम भी नहीं पूछ सका। अगले दन जब वह उसे मिलेगी तो वह उसका परिचय पूछेगा। आप दिल्ली से आई हैं ? लड़की उत्तर देगी। वह उसे अपना नाम तायेगा और उसका नाम पछेगा। वह बी. ए. में पढ़ रही होगी या एम. ए. में ? तभी नानी गंगा स्नान करके लौट आई। नानी। कहा - तू अभी सपने ही देख रहा है, वहाँ लाखों लोग गंगा में स्नान भी कर चुके हैं। नानी के इस कथन से सम्भव के सोचने में बाधा पड़ी और उसकी कल्पनाएँ समाप्त हो गईं।

प्रश्न 5. गंगापुत्र कौन होते हैं और उनकी आजीविका कैसे चलती है?

उत्तर : लेखिका ने गंगापुत्र उन लड़कों को कहा है, जो चढ़ावे के पैसों को नदी की धाराओं के बीच से निकाल लाते है। असल में लोग गंगा नदी में तिवश पैसे डालते हैं, जिसे गंगापुत्र अपनी आजीविका चलाने हेतु पैसे को तेज बहते जल की धार से बाहर निकालते हैं। यह कार्य बहुत ही जोखिम भरा है क्योंकि जल का प्रवाह जाने कब इंसान को निगल जाए, इसका क्या भरोसा। इस कार्य में उतनी कमाई भी नहीं होती जितना जोखिम होता है। लेकिन गरीबी और पेट पालन का कोई चारा नहीं होने से उन्हें विवश होकर यह कार्य करना पड़ता है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि उनका जीवन परिवेश बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन दो वक्त की रोटी मिल जाती होगी।

प्रश्न 6. संभव केबिल कार में बैठकर क्या सोच रहा था?

उत्तर : संभव मंसा देवी जाने के लिए केबिल कार में बैठा था। केबिल कार में बैठे सेंभव के मन में अनेक कल्पनाएँ जन्म ले रही थीं। उसके दिमाग में वह घाट वाली लड़की बार-बार घूम रही थी। उसके मस्तिष्क में लड़की की छवि बस गई थी। वह चारों ओर उस लड़की को पाने के लिए बेचैन था और उसे खोज रहा था। वह गुलाबी रंग की केबिल कार में जा बैठा क्योंकि उस लड़की ने भी गुलाबी साड़ी पहनी हुई थी। संभव मंसा देवी भी इसी उम्मीद में ही जा रहा था कि शायद उस लड़की को एक बार देख पाए।

प्रश्न 7. पुजारी के. सुखी रहो, फूलो फलो' आशीष को सुनकर लड़की क्यों अटपटा गयी?

उत्तर : लड़के और लड़की को एक साथ देख पुजारी को अज्ञानवश यह ज्ञात हुआ कि दोनों रिश्ते में पति-पत्नी हैं। अतः पुजारी ने हमेशा साथ रहने, उन्हें सुखी रहने, फलने-फूलने का आशीर्वाद दे दिया। इसका मतलब होता है कि उनकी जोड़ी सदैव सुखी रहे और आगे चलकर वह अपने परिवार और बच्चों के साथ यहाँ वापस आएँ। पंडित का यह आशीर्वाद सन दोनों का असहज होना लाजमी था। क्योंकि दोनों एक दूसरे को जानते नहीं थे। लड़की को और भी ज्यादा अटपटा लगा और शर्म आ गयी क्योंकि उसके कहे 'हम' शब्द का यह कारनामा था। वह तो थोड़ा घबराई थी, दसरी तरफ लड़का भी परेशान हो गया, क्योंकि उसे लगा कि लड़की मुझे गलत न समझ ले।

प्रश्न 8. पारो बुआ का नाम सुन संभव थोड़ा असहज हुआ और विचारों में क्यों खो गया?

उत्तर : संभव ने जब पारो बुआ का नाम सुना, तो वह देवदास भाँति एक रचना में खो गया या यों कहिये उसका विचार पारो नाम पर केन्द्रित हो गया। चूँकि देवदास की प्रेमिका पारो थी, ठीक वैसे ही यहाँ भी संभव की प्रेमिका पारो ही थी। संभव ने पारो को पाने की आशा लिए मंसा देवी में मन्नत की गाँठ बाँधी थी। वह चाहता था कि उसकी अपनी पारो सामने , आ जाये और वह उसको जी भर कर देख पाए।

प्रश्न 9. संभव की कौन-सी मनोकामना परिणाम लेकर आयी थी? जिस परिणाम से वह बहुत खुश हो गया था।

उत्तर : पारो को अपने सम्मुख देख, संभव के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव उत्पन्न हो गया। वह कुछ देर पहले ही इसी लड़की को पाने और देखने की चाहत में मंसा देवी के मंदिर में धागा बाँध कर आया था। वह मन्नत माँगकर मंदिर से बाहर ही निकला था कि वह लड़की देवी के मंदिर के बाहर बैठी हुई मिल गई थी। वह पारो को देख प्रसन्न हो उठा। उसको लग रहा था कि आज उसकी मनोकामनां खूबसूरत परिणाम लेकर सामने आई थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. संभव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अथवा

'दूसरा देवदास' कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : 'दूसरा देवदास' कहानी में लेखिका 'ममता कालिया' ने हर की पौड़ी हरिद्वार की पृष्ठभूमि में युवा मन की भावुकता, संवेदना तथा वैचारिक चेतना को अभिव्यक्त किया है। इस कहानी का नायक संभव दिल्ली का रहने वाला एम. ए. पास युवक है। माता-पिता ने उसे नानी के घर हरिद्वार भेजा है जिससे वह वहाँ जाकर गंगा के दर्शन कर ले और बेखटके परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ले। इसी उद्देश्य से वह हर की पौड़ी पर स्नान करने आता है जहाँ पुजारी से चन्दन लगवाते समय उसकी भेंट पारो नामक लड़की से होती है। पुजारी भ्रम से उन दोनों को पति-पत्नी समझकर आशीर्वाद देता है।

लड़की छिटककर उससे दूर खड़ी हो जाती है। दूसरे दिन वह घाट पर गया जहाँ उसकी भेंट पारो के भतीजे मन्नू से होती है। लौटते समय उसे वह लड़की दूसरी केबिलकार में अपने भतीजे मन्नू के साथ दिखाई देती है। मन्न उनका परिचय कराता है ये हैं मेरी पारो बुआ और ये मेरे दोस्त.....'। 'संभव देवदास' कहकर संभव वाक्य पूरा करता है। वास्तव में वह पारो से प्रेम करने लगा है। यह पता चलने पर कि इस लड़की का नाम पारो है वह अपना नाम बताता है संभव देवदास। कहानी में लेखिका के प्रेम के सच्चे स्वरूप, को रेखांकित किया है।

प्रश्न 2. पुजारी को ये गलतफहमी क्यों हुई कि ये दोनों (लड़का-लड़की) दम्पति हैं? इस भ्रम का परिणाम क्या हुआ?

उत्तर : हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्नान करने के बाद संभव तिलक लगवाने हेतु पुजारी के पास खड़ा था तभी एक युवती स्नान के बाद गीले वस्त्र पहने उसके बगल में आकर खड़ी हो गई और आँख बन्द किए हाथ जोड़कर अर्चना करने लगी। उसने पुजारी से कहा-आज देर हो गई है, कल हम आरती के समय आयेंगे। उसके द्वारा प्रयुक्त शब्द 'हम' को सुनकर तथा उन दोनों को अत्यन्त पास-पास खड़े देखकर पुजारी को भ्रम हुआ कि ये पति-पत्नी हैं और इस भ्रम के कारण उसने उन्हें फूलने-फलने तथा मनोरथ पूरा होने का आशीष दिया।

वे दोनों सकपका गए, लड़की छिटककर दूर खड़ी हो गई और लड़का भी वहाँ से जाने की शीघ्रता करने लगा। किन्तु इस आशीष का सुपरिणाम यह निकला कि दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम का अंकुर फूट गया। दूसरे दिन मंसादेवी के दर्शन के बाद दोनों ने ही मनोकामना की गाँठ बाँधी और उनकी मनोकामना पूरी भी हो गई क्योंकि लौटते समय एक-दूसरे से परिचय हो गया। लड़की का नाम था पारो और लड़के ने अपना नाम बताया संभव देवदास।

प्रश्न 3. 'उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में हलचल उत्पन्न कर दी यह छोटी-सी मुलाकात कहाँ और कैसे हुई?

अथवा

'प्रेम के लिए किसी भी निश्चित व्यक्ति, समय और स्थिति का होना आवश्यक नहीं है।' 'दूसरा देवदास' कहानी के आधार पर उपर्युक्त पंक्ति को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : संभव अपनी नानी के घर हरिद्वार आया था। शाम के समय वह हर की पौड़ी पर गंगा-स्नान करने गया। स्नान करने के बाद उसने घाट पर उपस्थित मंगल पंडा से तिलक लगवाया। एक मन्दिर के पुजारी ने उसे आवाज दी - 'दर्शन तो करते जाओ'। संभव रुका। नानी ने मन्दिर में सवा रुपये चढ़ाने को कहा था। पुजारी ने उसकी कलाई में कलावा बाँधा। तभी एक दुबली-नाजुक सी लड़की उसके बिलकुल पास आकर खड़ी हुई। लड़की ने कहा-'आज तो देर हो गई।

कल हम आरती की बेला में आयेंगे।' पुजारी को लड़की के 'हम' शब्द को सुनकर तथा उसको संभव के बहुत पास खड़ा देखकर भ्रम हुआ। उसने उनको पति-पत्नी समझा और आशीर्वाद दिया सुखी रहो, फूलो-फलो, जब भी आओ साथ ही आना। गंगा मैया मनोरथ पूरा करें। इसके बाद दोनों वहाँ से चले गये परन्तु इस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में हलचल उत्पन्न कर दी।

साहित्यिक परिचय का प्रश्न

प्रश्न : ममता कालिया का साहित्यिक परिचय लिखिए।

उत्तर : साहित्यिक परिचय-भाषा-ममता कालिया का भाषा पर पूरा अधिकार है। साधारण शब्दों का प्रयोग वह करती हैं कि उसका प्रभाव जाद के समान होता है। ममता जी को शब्दों की अच्छी परख है। भाषा में तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और लोक- प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी आपने किया है। आपकी भाषा प्रवाहपूर्ण तथा वर्ण्य-विषय के अनुकूल है। विषय के अनुकूल सहज भावाभिव्यक्ति उनकी विशेषता है।

ममता जी ने वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। उसमें कहीं-कहीं व्यंग्य के छींटे हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण में लेखिका ने मनोविश्लेषण शैली को अपनाया है।

प्रमुख कृतियाँ

1. उपन्यास - बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ, दौड़ इत्यादि।

2. कहानी-संग्रह - सम्पूर्ण कहानियाँ, 'पच्चीस साल की लड़की' तथा 'थियेटर रोड के कौवे'।

पुरस्कार - ममता जी को कहानी-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से 'साहित्य भूषण' सम्मान सन् 2004 में मिल चुका है। इसी संस्था से 'कहानी-सम्मान', उनके सम्पूर्ण साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता का 'रचना पुरस्कार' तथा 'सरस्वती प्रेस' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी आपको मिल चुके हैं।

दूसरा देवदास (सारांश)

लेखक परिचय

जन्म सन् 1940 ई.। स्थान-मथुरा, उ.प्र.। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम. ए.। दौलतराम कॉलेज, दिल्ली तथा एस. एन. डी. टी. महिला विश्वविद्यालय, मुम्बई में अध्यापन किया (1966-1970)। महिला सेवासदन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद में प्रधानाचार्या (1973-2001)। भारतीय भाषा परिषद्, कलकत्ता की निदेशक (2003-06)। वर्तमान में दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन।

ममता कालिया का कथा - साहित्य में उल्लेखनीय योगदान है। आपका भाषा-ज्ञान उच्च कोटि का है।

साहित्यिक परिचय - भाषा - ममता कालिया का भाषा पर पूरा अधिकार है। साधारण शब्दों का प्रयोग वह इस प्रकार करती हैं कि उसका प्रभाव जादू के समान होता है। ममता जी को शब्दों की अच्छी परख है। भाषा में तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और लोक- प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी आपने किया है। इन्तजाम, 'किश्तियाँ, नजर, मुस्तैदी आदि उर्दू शब्द तया स्पेशल, टोकन, सिविल, सर्विसेज आदि अंग्रेजी के शब्द भी आपकी भाषा में मिलते हैं। आपकी भाषा प्रवाहपूर्ण तथा वर्ण्य-विषय के अनुकूल है। विषय के अनुकूल सहज भावाभिव्यक्ति उनकी विशेषता है।

शैली - ममता जी ने वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। उसमें कहीं-कहीं व्यंग्य के छींटे हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण में लेखिका ने मनोविश्लेषण शैली को अपनाया है।

कृतियाँ - ममता जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं (1) उपन्यास - बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ, दौड़ इत्यादि।

कहानी - संग्रह उनके बारह कहानी-संग्रह हैं जो 'सम्पूर्ण कहानियाँ' नाम से दो खण्डों में प्रकाशित हैं। उनके दो कहानी-संग्रह अभी हाल में प्रकाशित हुए हैं, वे हैं . 'पच्चीस साल की लड़की' तथा 'थियेटर रोड के कौवे'।

पुरस्कार : ममता जी को कहानी-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से 'साहित्य भूषण' सम्मान सन् 2004 में मिल चुका है। इसी संस्था से 'कहानी-सम्मान', उनके सम्पूर्ण साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता का 'रचना पुरस्कार' तथा 'सरस्वती प्रेस' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी आपको मिल चुके हैं।

पाठसाराश

'दूसरा देवदास' ममता जी की हर की पौड़ी, हरिद्वार के परिवेश में युवा-मन की संवेदना, भावना और विचारों की उथल-पुथल की कहानी है। हर की पौड़ी पर स्नान करने के बाद सम्भव के माथे पर पंडा ने तिलक लगाया। नानी के कहने के अनुसार वह मन्दिर में बीस आने चढ़ाना चाहता था परन्तु जेब में खुले पैसे न थे। पुजारी को उसने दो रुपये दिये। वह पिचहत्तर पैसे लौटाता, इससे पूर्व एक लड़की वहाँ आई। उसने पाँच रुपये थाली में रखं दिये। उसने पण्डित जी से कहा आज देर हो गई कल हम आरती के समय आयेंगे। 'हम' शब्द से पण्डित जी को दोनों के पति-पत्नी होने का भ्रम हुआ।

उन्होंने सुखी रहने, फलने-फूलने का आशीर्वाद दिया। लड़की और सम्भव दोनों सकपका गये। नानी के घर लौटने पर रात में सम्भव को पुजारी के आशीर्वाद का दृश्य बार-बार सपने में दिखाई दे रहा था। संवेरा होने पर सम्भव फिर शाम होने की प्रतीक्षा कर रहा था जब लड़की आयेगी और वह उससे बातें करेगा। उसे सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफलता के लिए मंसा देवी जाकर प्रार्थना भी करनी थी। शाम को हर की पौड़ी की भीड़ में सम्भव की आँखें उसी को खोज रही थीं। तभी उसे एक छोटा लड़का मिला जो अपनी बुआ के साथ आया था। सम्भव वहाँ से मंसादेवी के दर्शन को गया।

सम्भव ने मनोकामना पूरी होने के लिए श्रद्धा से गाँठ लगाई और प्रसाद चढ़ाया। लौटते समय वह 'रोपवे' की केबिल कार में बैठा था दि. तभी उसे वह छोटा लड़का अपनी बुआ के साथ पीली कार में बैठा दिखा। उसकी बुआ वही कल मिलने वाली लड़की थी संम्भव उसके पास पहुंचा और उसके कंधे पर हाथ रखा। दोनों बातें कर रहे थे तभी लड़की ने उसे घर लौटने के लिए पुकारा। लड़के ने अपनी बुआ का परिचय सम्भव से कराया - 'बुआ, ये हैं मेरे नवे दोस्त'। 'कैसे दोस्त हैं तुम्हारे कि तुम नाम भी नहीं जानते.' लड़की ने कहा। आज वह गुलाबी परिधान नहीं सफेद साड़ी पहने थी। लड़के ने बुआ का आँचल खींचते हुए कहा...'पारो बुआ', इनका नाम है सम्भव ने वाक्य पूरा किया सम्भव देवदास'। सम्भव ने सोचा-मनोकामना की गाँठ विचित्र है; इधर बाँधो उधर पूरी हो जाती है।

कठिन शब्दार्थ

हर की पौड़ी = हरिद्वार में गंगा तट पर स्थित महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल।

दीया = बाती का समय = संध्याबेला।

मनोकामना = मन की इच्छा।

मुस्तैदी = सावधान होकर।

स्पेशल = विशिष्ट।

नीलांजलि = आरती।

सहस्र = हजारों।

चामुण्डा = एक देवी।

श्रृंगार पूर्ण = सजी-धजी।

आराध्य = इष्टदेव।

निर्मल = स्वच्छ।

निष्पाप = पाप रहित।

जजमान = यजमान।

पोता = पौत्र।

गोधूलि बेला = संध्यांकाल जब गाएँ चरकर घर लौटती हैं।

भर्राए गले से = मोटी आवाज वाला गला।

समवेत स्वर = इकट्ठा स्वर (कई लोगों का मिलाजुला स्वर)।

ध्याता = ध्यान करता है।

किश्तियाँ = नावें।

गोताखोर = गोता

लगाकर पैसा खोजने वाले।

गंगापुत्र = मल्लाहों के बालक।

हतप्रभ = परेशान।

जीविका = रोजी-रोटी का साधन।

स्निग्ध = चिकने (रस युक्त)।

पंचमंजिली = पाँच मंजिल वाली।

अगरु = एक सुगन्धित पदार्थ।

कबुलवाना = स्वीकार कराना।

मुरमुरे = लाई।

दिव्य = पवित्र।

भव्य = सुन्दर।

मलाल = दुख, पछतावा।

एक सार = एक जैसे।

फब उठे = सुन्दर लग उठे।

आस्था = विश्वास।

खखोरा = ढूँढा (तलाश करने की क्रिया)।

ताड ली = जान लिया।

कलावा = कलाई में बाँधा जाने वाला रक्षा सूत्रं (डोरी)।

मौली अर्चन = प्रार्थना-पूजा।

गौर किया = ध्यान से देखना।

नीम उजाला = बहुत कम प्रकाश।

सौम्य = सरल, विनीत।

हिया = यहाँ।

का कराना है = क्या कराना है।

युगल = दो का जोड़ा (यहाँ पति-पत्नी)।

अनायास = अचानक, बिना प्रयास के।

आशीष = आशीर्वचन।

मनोरथ = मनोकामना।

अकबका जाना - हक्के-बक्के रह जाना।

छिटककर = अलग हटकर।

टोकन = बिल्ला (रखवाली के लिए रखी वस्तु को वापस लेने के लिए वह टोकन वापस देना पड़ता है जो रखवाली करने वाले ने वस्तु रखते समय दिया था)।

चकाचौंध = प्रकाश की अधिकता से दिखाई न देना।

ओझल होना = दिखाई न पड़ना।

पस्त = थके।

ब्यालू = रात का भोजन।

बैसाखी = एक त्यौहार जो वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन कहीं-कहीं मेला भी लगता है। तिल धरने को जगह नहीं

मिलेगी = बहुत भीड़ होंगी।

खायबे को खाले = खाना खा ले।

सींक सलाई देही = दुर्बल शरीरं।

खटोला = छोटी चारपाई।

काया = शरीर।

चौक = आँगन।

आशीर्वचन = आशीर्वाद देते हुए कहे गए वचन।

कौर = ग्रास।

उद्गार = कथन।

सिविल सर्विसेज = लोक सेवा (आई. ए. एस., पी. सी. एस. आदि)।

टोटके = टोना-टोटका।

सद्यस्नात = अभी-अभी नहाकर आई हुई युवती।

देवालय = मंदिर।

सलोनी = सुन्दर।

अफ़सोस = दुख।

उढ़काकर = किवाड़ भिड़ाकर (कुण्डी न लगाकर बन्द किए गए किवाड़)।

निर्द्वन्द्व = मुक्त (खुला)।

नादानी = बचकानापन, मूर्खता।

नहान = स्नान।

तंद्रा = अर्द्धनिद्रि अवस्था।

उवाच = बोलना।

नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना।

खरीद फरोख्त = क्रय-विक्रय।

सड़क क्रास करती भीड़ = सड़क पार करती भीड़।

एकसूत्रता = लक्ष्य की एकता।

अतिक्रमण = उल्लंघन।

सैलानी = पर्यटक।

उन्मुख = सामने।

विभोर = प्रसन्न।

अहम = अहंकार।

जनित = उत्पन्न।

निर्मलानन्द = निर्मल आनन्द।

भाल = मस्तक (ललाट)।

मंसादेवी = हरिद्वार में पहाड़ी पर स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर।

बरज दिया था = रोक दिया था।

झूलागाड़ी = केबिल (या रस्सी) पर चलने वाली केबिल कार।

महातम = माहात्म्य।

यकीन = विश्वास। :

दिनचर्या = प्रतिदिन के क्रियाकलाप।

आत्मसात् करना = अपने अन्दर भर लेना (जान लेना)।

रोपवे = जिस पर केबिल कार चलती है।

क्यू = लाइन।

आकर्षक = आकर्षित करने वाली।

परिसर = मैदान (क्षेत्र)।

नवविवाहित दंपति = ऐसे पति-पत्नी जिनका विवाह अभी हाल में ही हुआ हो।

वादियाँ = पर्वत के नीचे की हरी-भरी घाटी।

हिंडोला = झूला (यहाँ केबिल कार से अभिप्राय है)।

विहंगम दृश्य = विशाल परिदृश्य।

फौलाद के खंभे = स्टील के बने मजबूत स्तम्भ।

धवल = स्वच्छ (सफेद)।

लिमका = पेय पदार्थ।

प्रांगण = आँगन।

प्रकोष्ठ = कक्ष (कमरा)।

हेतुक = उद्देश्य वाले।

नैवेद्य = प्रसाद।

गुमटियाँ = छोटी दुकानें।

ढलवा = ढालू (नीचे की ओर जाने वाला)।

आकृति = रूपाकार।

चीह्नने की कोशिश = पहचानने का प्रयास।

अचकचाकर = घबराकर।

साश्चर्य = आश्चर्य के साथ।

प्रश्नवाचक नजरों से = प्रश्न पूछने वाली नजर से।

उलाहना = शिकायत।

पुलक = प्रसन्नता।

मौन उद्गार = मौन कथन (अभिव्यक्ति)।

संकल्प = व्रत।

गिठान = गाँठ।

महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ

लड़की अब बिलकुल बराबर में खड़ी, आँख मूंदकर अर्चन कर रही थी। संभव ने यकायक मुड़कर उसकी ओर गौर किया। उसके कपड़े एकदम भीगे हुए थे, यहाँ तक कि उसके गुलाबी आँचल से संभव के कुर्ते का एक कोना भी गीला हो रहा था। लड़की के लम्बे गीले बाल पीठ पर काले चमकीले शॉल की तरह लग रहे थे। दीपकों के नीम उजाले में, आकाश और जल की साँवली संधि-बेला में, लड़की बेहद सौम्य, लगभग काँस्य प्रतिमा लग रही थी।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' से ली गई हैं जिन्हें हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है।

प्रसंग : संभव अपनी नानी के पास हरिद्वार आया था और हर की पौड़ी पर गंगा स्नान करने के बाद जब पुजारी से चन्दन का टीका लगवा रहा था तभी एक युवा लड़की आकर उसके पास खड़ी हो गई और आँख बन्द करके प्रार्थना करने लगी।

 

व्याख्या : संभव गंगा स्नान के बाद पुजारी से टीका लगवाकर गंगा जी की छटा निहार रहा था। पुजारी ने वहाँ आई लड़की की नाजुक कलाई में कलावा बाँध दिया और उसने पण्डित जी की थाली में सवा पाँच रुपए रखे। लड़की संभव के बगल में खड़ी आँख बन्द किए प्रार्थना कर रही थी। संभव ने अब उसकी ओर मुड़कर उसे गौर से देखा। वह अभी-अभी गंगा स्नान करके आई थी। उसके कपड़े एकदम गीले थे यहाँ तक कि उसके गुलाबी दुपट्टे से संभव के कुरते का एक कोना गीला हो गया था।

वह संभव के इतने पास खड़ी थी कि पुजारी को यह भ्रम हो गया कि ये दोनों शायद पति-पत्नी हैं और एक साथ हैं। लड़की की पीठ पर लम्बे बाल फैले हुए थे जो गीले थे और ऐसे लग रहे थे मानो उसने कोई काले रंग का चमकीला शॉल पीठ पर डाला हुआ है। अंधेरा घिर रहा था। बस चारों ओर पूजा के दीपकों का ही प्रकाश था जिसमें आकाश और जल दोनों सांवले से लग रहे थे। इस झुटपुटे में लड़की बेहद सौम्य, शांत लग रही थी जैसे वह काँसे की बनी मूर्ति हो।

विशेष :

यह एक प्रेम कहानी है। संभव के हृदय में पहली बार किसी लड़की के प्रति प्रेम का उदय हुआ है।

वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।

खति-खाते संभव को याद आया,आशीर्वचन की दुर्घटना तो बाद में घटी थी। वह कौर हाथ में लिए बैठा रह गया। उसकी आँखों के बीच आगे कुछ घण्टे पहले का सारा दृश्य घूम गया। पुजारी का वह मंत्रोच्चार जैसा पवित्र उद्गार 'सुखी रहो, फूलो-फलो, सारे मनोरथ पूरे हों। जब भी आओ साथ ही आना। लड़की का चिहुँकना, छिटककर दूर खड़े होना, घबराहट में चप्पल भी ठीक से न पहन पाना और आगे बढ़ जाना।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' से ली गई हैं जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया हैं।

प्रसंग : संभव हर की पौड़ी पर स्नान करने के बाद जब नानी के घर लौटा तो नानी के आग्रह पर खाना खाने बैठ गया। खाते समय उसे घाट पर घटी घटनाएँ एवं पुजारी के द्वारा दिए गए उस आशीर्वचन का स्मरण हो आया जो उसने उसे और उस लड़की को जो उसके पास आकर खड़ी हो गई थी, उसकी पत्नी समझकर दिया था। लड़की पर इसका क्या असर पड़ा था यह भी उसकी आँखों के समक्ष घूम गया।

व्याख्या : खाना खाते समय संभव को आज की वे घटनाएँ याद हो आईं। वह स्नान करने के बाद पुजारी के पास खड़ा चन्दन का टीका लगवा रहा था तभी एक अपरिचित युवती स्नान करने के बाद पुजारी से कलावा बैंधवाने हेतु उसके निकट . आकर खड़ी हो गई। पुजारी ने भ्रम से उन दोनों को पति-पत्नी समझकर आशीर्वाद दिया- "सुखी रहो, फूलो-फलो, सारे मनोरथ पूरे हों।" संभव कौर हाथ में लिए आशीर्वचन की

उस दुर्घटना के बारे में सोचने में इतना तल्लीन हो गया कि खाना खाना भी भूल गया। उसकी आँखों के समक्ष कुछ घण्टे पहले घटी आशीर्वचन की वह दुर्घटना घूम गई।

पुजारी का.भ्रम से उन दोनों को दम्पति समझकर सुखी रहने और फलने-फूलने का आशीर्वाद देना उसे तो पवित्र मंत्रोच्चार जैसा लगा था पर लड़की संभवतः लज्जा के कारण छिटककर उससे दूर खड़ी हो गई। पुजारी को यह भ्रम इसलिए हुआ था कि लड़की संभव . के अत्यन्त निकट खड़ी थी। पुजारी को लगा कि ये दोनों पति-पत्नी हैं। उसके आशीष वचन को सुनकर लड़की अचकचाकर दूर खड़ी हो गई और घबराहट में अपनी चप्पल भी ठीक से न पहन पायी और आगे बढ़ गई।

विशेष :

इस गद्यांश में संभव की मनोदशा का चित्रण है।

पुरानी घटनाओं के स्मरण में संभव का लीन होना इस बात का परिचायक है कि पुजारी का आशीर्वचन कहना और लड़की का छिटककर दूर खड़ा होना सम्भव को बार-बार। याद आ रहा था।

वर्णनात्मक शैली तथा स्मरण शैली का प्रयोग है।

भाषा- विषयानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है। "आशीर्वचन की दुर्घटना तो बाद में घटी थी।" कथन का पैनापन दर्शनीय है।

भीड़ लड़के ने दिल्ली में भी देखी थी, बल्कि रोज देखता था। दफ्तर जाती भीड़, खरीद-फरोख्त करती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क क्रॉस करती भीड़। लेकिन इस भीड़ का अंदाज निराला था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी। न यहाँ जाति का महत्त्व था, न भाषा का, महत्त्व उद्देश्य का था और वह सबका समान था, जीवन के प्रति कल्याण की कामना। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी, अतिक्रमण नहीं था और भी अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नानार्थी किसी सैलानी आनन्द में डुबकी नहीं लगा रहा था बल्कि स्नान से ज्यादा समय ध्यान ले रहा था।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'दूसरा देवदास' नामक कहानी से ली गई हैं। इसकी लेखिका कहानीकार ममता कालिया हैं। पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग - 2' में संकलित है। प्रसंग-संभव दिल्ली का निकासी था और अपनी नानी के घर हरिद्वार आया था। बैसाखी के स्नान हेतु हर की पौड़ी जो भीड़ संभव ने देखी वह अभूतपूर्व थी और दिल्ली में रोज दिखने वाली भीड़ से अलग थी। आध्यात्मिक लक्ष्य लेकर तीर्थ । स्थलों पर एकत्र होने वाली भीड़ के चरित्र का लेखक ने इस अवतरण में चित्रण किया है।

व्याख्या : संभव ने भीड़ तो दिल्ली में भी देखी थी बल्कि रोज ही भीड़-भाड़ से भरी दिल्ली वह देखता था। दफ्तर जाती भीड़, सामान खरीदती-बेचती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क पार करती भीड़ लेकिन उस भीड़ में और हर की पौड़ी हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए बैसाखी के मेले में एकत्र भीड़ में बहुत अन्तर था। इस भीड़ का अंदाज निराला था और इसमें समाए हर व्यक्ति के उद्देश्य में समानता थी। मेले में एकत्र भीड़ विभिन्न वर्गों की थी।

उनमें भाषा, धर्म, जाति का अन्तर था पर वे अन्तर यहाँ गौण हो गए थे, उद्देश्य की एकरूपता स्नान करके पुण्य लाभ कमाना - प्रमुख हो गई थी। सबके हृदय में जीवन की कल्याण कामना प्रमुख थी। दिल्ली की भीड़ दौड़ती-सी लगती, एक-दूसरे को पीछे धकिया कर स्वयं आगे निकलने की चाह वहाँ भीड़ के हर व्यक्ति के मन में रहती थीं पर यहाँ एकत्र भीड़ में यह प्रवृत्ति रंचमात्र भी नहीं थी। सब लोग स्नान-ध्यान में व्यस्त थे। स्नान से भी ज्यादा वक्त ध्यान में लगाकर भीड़ के लोग अपने जीवन में कल्याण की कामना कर रहे थे।

विशेष :

भारतीय संस्कृति की विशेषता है - एकता में अनेकता जिसका उल्लेख इस अवतरण में है।

बैशाखी के मेले में एकत्र भीड़ का उद्देश्य एक समान था, जबकि दिल्ली में रोज दिखने वाली भीड़ में यह एकसूत्रता नहीं होती।

वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

लेखक ने शुद्ध सहज परिष्कृत हिन्दी का प्रयोग किया है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्द भी हैं।

लड़की ने आज गुलाबी परिधान नहीं पहना था पर सफेद साड़ी में लाज से गुलाबी होते हुए उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लेते हुए सोचा, "मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है....." पारो बुआ, पारो बुआ, इनका नाम है....." मन्नू ने बुआ का आँचल खींचते हुए कहा। "संभव देवदास"संभव ने हँसते हुए वाक्य पूरा किया। उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ ममता कालिया की कहानी 'दूसरा देवदास' से ली गई हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है।

प्रसंग : हर की पौड़ी पर गंगा स्नान के बाद सम्भव को वहाँ एक लड़की मिली। दोनों को बहुत पास खड़ा देखकर और लड़की द्वारा प्रयुक्त 'हम' शब्द से पुजारी को दोनों के पति-पत्नी होने का भ्रम हुआ। उसने आशीर्वाद दिया। अगले दिर मंसादेवी मन्दिर से लौटते समय वही लड़की अपने भतीजे के सोथ संभव को मिली।

व्याख्या : कल उस लड़की ने गुलाबी वस्त्र पहने थे आज वह सफेद साड़ी में थी और लज्जा से गुलाबी हो रही थी। लड़की ने मंसा देवी के दर्शन कर मनोकामना पूरी होने की गाँठ बाँधी तो उधर संभव ने भी मनोकामना पूरी होने की गाँट धागे से बाँध दी। संभव को देखकर लड़की ने मन ही मन संकल्प लिया कि देवी पर एक चूनर और चढ़ाऊँगी। वह सोच रही थी कि मनोकामना की यह गाँठ कैसी अद्भुत और अनोखी है। इधर गाँठ बाँधो और उधर लग जाती है।

लड़की के साथ आया छोटा सा लड़का मन्नू उसका भतीजा था जो संभव को पहले ही हर की पौड़ी पर मिल चुका था और उसे अपना दोस्त बना चुका था। उसने अपनी बुआ से संभव का परिचय कराया।"पारो बुआ इनका नाम है..." बुआ का आँचल खींचते हुए उसने कहा। संभव ने हंसते हुए वाक्य पूरा किया-'संभव देवदास'। पारो को देखकर उसे भी लगा कि उसने मनोकामना पूरी होने हेतु जो पीला-लाल धागा बाँधा था उसकी मधुर गाँठ कितनी अच्छी थी कि उसकी मनोकामना इतना जल्द पूरी हो गई और पारो (लड़की) से आज फिर भेंट हो गई।

विशेष :

संभव ने अपना नाम 'संभव देवदास'.बताकर यह जता दिया कि वह पारो से प्रेम करने लगा है। पारो और देवदास की प्रसिद्ध प्रेम कहानी शरत बाबू के बंगला उपन्यास 'देवदास' में है।

मंसादेवी के दर्शन के बाद यात्री वहाँ अपनी मनोकामना पूरी होने हेतु कलावे की गाँठ लगाते हैं। संभव और पारों दोनों ने यह गाँठ लगाई और दोनों की मनोकामना पूरी हो गई।

'दूसरा देवदास' एक प्रेम कहानी है। 'देवदास' उपन्यास के नायक-नायिका के जो नाम हैं, वही इस कहानी के नायक-नायिकाओं के भी हैं।

विवरणात्मक शैली तथा सहज सरल भाषा प्रयुक्त है। 

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