पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर का चयन करें|
(i) करेवा भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(क)
उत्तरी-पूर्वी हिमालय
(ख)
पूर्वी हिमालय
(ग)
हिमाचल-उत्तरांचल हिमालय
(घ) कश्मीर हिमालय
(ii) निम्नलिखित में से किस राज्य में ‘लोकताक’ झील स्थित है?
(क)
केरल
(ख) मणिपुर
(ग)
उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)
(घ)
राजस्थान
(iii) अण्डमान और निकोबार को कौन-सा जल क्षेत्र अलग करता है?
(क)
11° चैनल ।
(ख) 10° चैनल
(ग)
मन्नार की खाड़ी।
(घ)
अण्डमान सागर
(iv) डोडाबेटा चोटी निम्नलिखित में से कौन-सी पहाडी श्रृंखला में स्थित
है?
(क) नीलगिरि
(ख)
काडमम
(ग)
अनामलाई
(घ)
नल्लामाला
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों में दीजिए
(i) यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो वह कौन-से तटीय मैदान से
होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर-यदि
किसी व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो उसे पश्चिमी तटीय मैदान होकर जाना होगा,
क्योंकि यही उसके लिए निकटतम दूरी वाला मार्ग होगा। यह द्वीप केरल तट से 280
किलोमीटर दूर है।
(ii) भारत में ठण्डा मरुस्थल कहाँ स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों
के नाम बताएँ।
उत्तर-भारत
में उत्तरी-पश्चिमी यो कश्मीर हिमालय क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। यहाँ
वर्षभर तापमान निम्न रहने के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है, इसलिए यह
निर्जन क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। वास्तव में यह क्षेत्र वृहत् हिमालय और
कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में कराकोरम, जास्कर और लद्दाख
श्रेणियाँ हैं। |
(iii) पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर-पश्चिमी
तट पर बहने वाली प्रमुख नदियाँ नर्मदा तथा ताप्ती हैं। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक
छोटी-छोटी नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा
नहीं बनातीं। इसके निम्नलिखित कारण हैं
ये
नदियाँ सँकरे मैदान में बहकर आती हैं। इनका वेग अधिक होने के कारण ये नदियाँ तेज
गति से बहती हैं।
इन
नदियों के मार्ग की ढाल प्रवणता अधिक होने के कारण ये तीव्र वेग से बहती हैं,
जिससे इनके | मुहाने पर तलछट का निक्षेप न होने के कारण डेल्टा का निर्माण नहीं
होता है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए
(i) अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक
विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर- अरब
सागर एवं बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह ।
क्र०स० |
अरब सागर के द्वीप समूह |
बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह |
1. |
अरब
सागर के द्वीपों में
लक्षद्वीप और मिनिकॉय द्वीप
सम्मिलित हैं। |
रीची
द्वीप समूह और लबरीन्थद्वीप यहाँ
के दो प्रमुख द्वीप
समूह हैं। |
2. |
यह
पूरा द्वीप समूह 11° चैनल द्वारा दो भागों में
बाँटा गया है— उत्तर में अमीनी द्वीप और दक्षिण में
कनानोर द्वीप। |
इन
द्वीपों को दो श्रेणियों
में बाँटा जाता हैं— (i) उत्तर में अण्डमान और (ii) दक्षिण में निकोबार। |
3. |
अरब
सागर में कुल 36 द्वीप हैं और इनमें से
11 पर मानव आवास है। ये द्वीप 80° उत्तर
से 12° उत्तर और 71° पूर्व से 74° पूर्व के बीच बिखरे
हुए हैं। |
बंगाल
की खाड़ी द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं। ये द्वीप 6° उत्तर
से 14° उत्तर और 90° पूर्व से 94° पूर्व के मध्य स्थित
हैं। |
4. |
इस
द्वीप समूह पर तूफान निर्मित
पुलिन है। जिस पर अबद्ध गुटिकाएँ,
शिगिल, गोलाश्मिकाएँ तथा गोलाश्म पाए जाते हैं। |
ये
द्वीप असंगठित कंकड़, पत्थरों और गोलाश्मों से
बने हैं। यहाँ निकोबार द्वीप समूह में भारत का बैरन आइलैण्ड
नामक एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी पाया जाता है। |
(ii) नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ कौन-सी
हैं? इनका विवरण
उत्तर-नदी
घाटी मैदानों का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसाद से हुआ है। ये मैदान दो प्रकार
के होते हैं–खादर एवं बांगर। खादर मैदान नवीन जलोढ़ मृदा से तथा बांगर पुराने जलोढ़
से बने हैं। नदी घाटी मैदानों की उत्तरी सीमा पर्वतीय है, जिन्हें गिरिपाद मैदान कहते
हैं, जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बने हैं। इन्हें भाबर कहते हैं। इनके दक्षिण
में तराई के मैदान हैं। यहाँ नदियों का विस्तार अधिक हो जाता है तथा कहीं-कहीं दलदले
बन जाते हैं। नदी घाटी मैदानों में बाढ़कृत मैदान पेनीप्लेन, ऊँचे टीले, गर्त, विसर्प,
गोखुर झील, बालू रोधिका आदि प्रमुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो नदी की प्रौढ़ावस्था
में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकृतियाँ हैं।
(iii) यदि आप बद्रीनाथ सुन्दरवन डेल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते
हैं तो आपके रास्ते में कौन-सी मुख्य स्थलाकृतियाँ आएँगी?’
उत्तर-बद्रीनाथ
उत्तराखण्ड राज्य के मध्य हिमालय में चमोली जिले की फूलों की घाटी के समीप स्थित है।
यदि हम बद्रीनाथ से गंगा के साथ-साथ सुन्दरवन डेल्टा के लिए चलें तो हमें कई प्रकार
की भू-आकृतियों से होकर जाना होगा। पर्वतीय क्षेत्र में ऊँची-ऊँची चोटियाँ, गहरी घाटियों
व तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों को पार करना पड़ेगा। इस मार्ग में गॉर्ज, V-आकार की घाटी
और तीव्र ढाल मुख्य स्थलाकृतियाँ हमें मिलेंगी। हरिद्वार के पास हमारा पर्वतीय मार्ग
समाप्त हो जाएगा और मैदानी मार्ग आरम्भ हो जाएगा। यहाँ पर तराई अथवा भाबर क्षेत्र से
गुजरना पड़ेगा। इसके पश्चात् समतल मैदान पार करना होगा। इस मैदान में धरातल प्राय:
समतल मिलेगा, कोई भी ऊँची श्रेणी नहीं मिलेगी। गंगा के टेढ़े विसर्पो और झीलों के साथ
हम सुन्दरवन डेल्टा पर पहुंचेंगे। यह डेल्टा गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यहाँ गंगा
विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर इस डेल्टा का निर्माण करती है। यह डेल्टा 150 मीटर
ऊँचा है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. हिमालय पर्वत की सर्वोच्च चोटी है
(क) एवरेस्ट
(ख)
कंचनजंगा
(ग)
K-2
(घ)
नन्दादेवी
प्रश्न 2. गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है
(क)
चम्बल
(ख) यमुना
(ग)
बेतवा
(घ)
नर्मदा
प्रश्न 3. नन्दा देवी शिखर किस पर्वत से सम्बन्धित है?
(क)
नीलगिरि
(ख)
सतपुड़ा
(ग) हिमालय
(घ)
मैकाले
प्रश्न 4. भारत का सर्वोच्च शिखर कौन-सा है?
(क)
गॉडविन ऑस्टिन
(ख) कंचनजंगा
(ग)
नन्दा देवी
(घ)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 5. नाथूला दर्रा किस राज्य में स्थित है?
(क)
अरुणाचल प्रदेश में ।
(ख)
असोम में
(ग) सिक्किम में
(घ)
मणिपुर में
प्रश्न 6. शिवालिक पर्वत स्थित है
(क) उत्तरी भारत में
(ख)
दक्षिणी भारत में
(ग)
पूर्वी भारत में
(घ)
पश्चिमी भारत में
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सर्वोच्च हिमालय किसे कहते हैं?
उत्तर-हिमालय
पर्वत की सबसे उत्तरी पर्वत श्रृंखला सर्वोच्च हिमालय के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2. भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम बताइए।
उत्तर–भारत
की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम निम्नलिखित हैं— (1) खैबर, (2) गोमल,
(3) बोलन, (4) टोची, (5) कुर्रम।
प्रश्न 3. बोमडिला दर्रा भारत के किस पूर्वांचल राज्य में है?
उत्तर-बोमडिला
दर्रा भारत के अरुणाचल प्रदेश नामक राज्य में स्थित है।
प्रश्न 4. हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-हिमालय
के दो प्रमुख दरों के नाम निम्नलिखित हैं (1) थांगला एवं (2) लिपुलेख।।
प्रश्न 5. हिमालय पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-श्रृंखलाओं के नाम
लिखिए।
उत्तर-हिमालय
पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-शृंखलाओं के नाम निम्नलिखित हैं–
1.
महान् या बृहद् हिमालय अथवा हिमाद्रि हिमालय,
2.
लघु हिमालय,
3.
बाह्य हिमालय या शिवालिक हिमालय।
प्रश्न 6. हिमालय को भारत का प्रहरी क्यों कहा जाता है?
उत्तर-हिमालय
पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक अभेद्य दीवार के रूप में सन्तरी की भाँति अडिग खड़ा
है, जिस कारण हिमालय को भारत का प्रहरी कहा जाता है।
प्रश्न 7. मध्यवर्ती उच्च भूमि को किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर-मध्यवर्ती
उच्च भूमि के उत्तर-पश्चिमी भाग को ‘मालवा कां पठार’, दक्षिणी उत्तर प्रदेश के भू-भाग
को ‘बुन्देलखण्ड’ व ‘बघेलखण्ड’ तथा दक्षिणी बिहार में सम्मिलित भू-भाग को ‘छोटा नागपुर’
पठार के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 8. शिवालिक किसे कहते हैं? ।
उत्तर-हिमालय
की दक्षिणतम श्रेणी को शिवालिक कहते हैं।
प्रश्न 9. पूर्वांचल किसे कहते हैं?
उत्तर-भारत
के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित पर्वत-श्रेणियाँ पूर्वांचल के नाम से प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 10. लघु हिमालय किसे कहते हैं? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-महान्
हिमालय के दक्षिण में स्थित पर्वतश्रेणी लघु या मध्य हिमालय कहलाती है। इसे ‘हिमाचल
हिमालय’ कहा जाता है।
प्रश्न 11. हिमालय की तीन प्रमुख श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-(1)
महान् या हिमाद्रि हिमालय, (2) लघु या मध्य हिमालय, (3) बाह्य या शिवालिक हिमालय।
प्रश्न 12. हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहने के तीन कारण बताइए।
उत्तर-हिमालय
को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है, इसके तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. इस
पर्वत का निर्माण अवसादी पदार्थ में वलन प्रक्रिया के द्वारा हुआ है।
2. यह
भूभाग वैज्ञानिक युग की नवीनतम उच्च पर्वत-शृंखला है।
3. हिमालय
पर्वत की युवा श्रेणियों में वर्तमान में भी उत्थान हो रहा है।
प्रश्न 13. कश्मीर हिमालय की प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर-कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग जो बृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है,
एक ठण्डा मरुस्थल है। हिमालय के इसी भाग में बृहत् हिमालये और पीरपंजाल के बीच विश्वप्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील स्थित हैं।
प्रश्न 14. करेवा क्या हैं?
उत्तर-करेवा झील के अवसाद हैं। इनका निर्माण कश्मीर हिमालय में चिकनी मिट्टी और दूसरे हिमोढ़ पर्वतों से हुआ है।
प्रश्न 15. पर्यटन की दृष्टि से कश्मीर हिमालय का क्या महत्त्व है?
उत्तर-कश्मीर और उत्तर-पश्चिमी हिमालय विलक्षण सौन्दर्य एवं खूबसूरत दृश्य स्थलों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ कई प्रसिद्ध तीर्थस्थल;
जैसे-वैष्णोदेवी, अमरनाथ गुफा और चरार-ए-शरीफ भी पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 16. जलोढ़ मैदान का विस्तार बताइए।
उत्तर-जलोढ़ मैदान उत्तरी भारत में सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इसकी पूर्व से पश्चिमी लम्बाई, 3,200 किलोमीटर है तथा अधिकतम चौड़ाई 150 से 300 किमी है। इस मैदान में जलोढ़ का निक्षेप अधिकतम 1,000 से 2,000 मीटर गहरा है।
प्रश्न 17, पामीर ग्रन्थि कहाँ स्थिति है?
इससे निकली उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी पर्वत श्रेणियों केनाम बताइए।
उत्तर-पामीर ग्रन्थि भारत के उत्तर में मध्य एशिया में स्थित है। इससे निकलने वाली उत्तरी-पूर्वी पर्वत श्रेणी तियानशान तथा दक्षिण-पूर्वी श्रेणी कराकोरम है।
प्रश्न 18. कराकोरम के दक्षिण में स्थित दो समानान्तर पर्वत श्रेणियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर-लद्दाख तथा जास्कर श्रेणियाँ कराकोरम के दक्षिण में स्थित समानान्तर श्रेणियाँ हैं।
प्रश्न 19. हिमालय की किन्हीं चार ऊँची चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-माउण्ट एवरेस्ट
(सबसे ऊँची चोटी),
कंचनजंगा, नन्दादेवी तथा धौलगिरि
(उत्तराखण्ङ)।
प्रश्न 20. भारत का कौन-सा भौतिक भाग सबसे अधिक उपजाऊ है और क्यों?
उत्तर-भारत के उत्तरी विशाल मैदान सबसे अधिक उपजाऊ हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ की जलोढ़ मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है और सिंचाई की अच्छी सुविधाएँ एवं आदर्श जलवायु उपलब्ध है।
प्रश्न 21. उत्तरी मैदानों को कौन-कौन से नदी-तन्त्रों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-(1)
पश्चिम में सिन्धु नदी तन्त्र।
(2) पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र।
प्रश्न 22. तराई प्रदेश कहाँ स्थित है?
इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-तराई प्रदेश भाबर के दक्षिण में स्थित है।
विशेषताएँ–(1)
यह प्रदेश दलदली है।
(2) यह घने वनों से ढका था किन्तु वर्तमान में यहाँ कृषि भूमि का विकास हो रहा है।
प्रश्न 23. पश्चिमी तटीय मैदानों को कौन-कौन से भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर-कोंकण (उत्तरी भाग),
कन्नड़ (मध्य भाग)
तथा मालाबार (दक्षिण भाग)। प्रश्न 24. पूर्वी तटीय मैदानों के उत्तरी तथा दक्षिणी भागों को किस-किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-क्रमशः उत्तरी सरकार तथा कोरोमण्डल तट।
प्रश्न 25. भारत के पाँच भौतिक विभाग कौन-से हैं?
उत्तर-भारत के पाँच भौतिक विभाग हैं-(1)
उत्तर के विशाल पर्वत,
(2) उत्तर भारत के मैदान,
(3) प्रायद्वीपीय पठार, (4) तटीय मैदान,
(5) द्वीप समूह।
प्रश्न 26. पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियाँ हैं-गारो, खासी, जयन्तिया,
नागा तथा मिजो।
प्रश्न 27. भारत का कौन-सा भू-भाग प्राचीनतम है?
उत्तर-भारत का प्राचीनतम भू-भाग दक्षिण का पठार है। यह कठोर आग्नेय तथा रूपान्तरित शैलों से बना है। यह भाग प्राचीनतम गोण्डवानालैण्ड का भाग है।
प्रश्न 28. भारत के नवीन और प्राचीनतम पर्वतों का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-नवीन या युवापर्वत–हिमालय।। प्राचीनतम पर्वत-अरावली।
प्रश्न 29. हिमालय के चार प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-हिमालय में अनेक महत्त्वपूर्ण दरें हैं। कश्मीर में कराकोरम,
हिमालय में शिपकीला,
सिक्किम में नाथुला तथा अरुणाचल प्रदेश में बोमडिला दर्रा स्थित है।
प्रश्न 30. दून क्या है?
उत्तर-पर्वतीय क्षेत्र में अनुदैर्घ्य विस्तार में पाई जाने वाली समतल संरचनात्मक घाटियाँ दून कहलाती हैं। जैसे-देहरादून की घाटी।
प्रश्न 31. पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम बताइए।
उत्तर-पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम हैं-(1)
भोरघाट तथा (2) थालघाट।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ
? ।
उत्तर-भारत का उत्तरी मैदान हिमालय तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के मध्य स्थित है। यह मैदान हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर उत्तर की ओर बहने वाली नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बना है। इन महीन मिट्टियों को जलोढ़क’ कहते हैं। उत्तरी मैदान जलोढ़कों द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ भू-भाग है। प्राचीनकाल में इस मैदान के स्थान पर एक विशाल गर्त था। हिमालय पर्वतों के निर्माण के बाद हिमालय से निकलकर बहने वाली नदियों ने उस गर्त में गाद भरने शुरू किये। अनाच्छादन के कारकों ने हिमालय का अपरदन किया तथा भारी मात्रा में अवसाद उस गर्त में एकत्रित होते गये। क्रमशः वह गर्त अवसादों से पट गया तथा उत्तरी मैदान की रचना हुई।
प्रश्न 2. पश्चिमी तटीय मैदान की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार तथा उसकी
तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
Ø भारत के पश्चिमी तटीय भाग के दोनों नामों को स्थिति
सहित लिखिए।
उत्तर-पश्चिमी
तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात
की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी
है, जबकि नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मुहाने के निकट ये 80 किमी तक चौड़े हैं। इस
मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार कहते हैं। यहाँ सघन जनसंख्या
पायी जाती है। इनकी स्थिति का विवरण निम्नलिखित है|
1.
कोंकण का मैदान इस मैदान का विस्तार दमन से लेकर गोआ तक
500 किमी की लम्बाई में | है। इस मैदान की चौड़ाई 50 से 60 किमी के बीच है तथा मुम्बई
के निकट सबसे अधिक है।
2.
मालाबार का तटीय मैदान–इस मैदान का विस्तार मंगलोर से लेकर कन्याकुमारी
तक 500 किमी की लम्बाई में है। इस पर लैगून नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं।
पश्चिमी तटीय मैदानों की प्रमुख तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
·
ये मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत
हैं। गुजरात में ये अधिकतम चौड़े हैं तथा दक्षिण की ओर सँकरे हैं।
·
इस तट पर अनेक ज्वारनदमुख स्थित हैं जिनमें नर्मदा
और ताप्ती के ज्वारनदमुख (एस्चुरी) मुख्य हैं।
·
दक्षिण में केरल में अनेक लैगून या पश्चजल स्थित
हैं। उनके मुख पर बालूमिति या रोधिकाएँ स्थित हैं।
प्रश्न 3. पूर्वी तटीय मैदान की स्थिति, विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय
पठार के पूर्वी किनारे पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल
से लेकैर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। तमिलनाडु में
यह मैदान 100 से 120 किमी चौड़ा है। गोदावरी के डेल्टा के उत्तर में यह सँकरा है। कहीं-कहीं
इसकी चौड़ाई 32 किमी तक है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
·
यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान से अधिक चौड़ा है।
नदियों के डेल्टाओं के निकट विशेष रूप से यह अधिक चौड़ा है।
·
नदी डेल्टाओं के मैंदान अत्यधिक उर्वर तथा सघन
आबाद हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी यहाँ बहने वाली नदियाँ हैं।
·
डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी
हैं, जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यहाँ अनेक लैगून झीलें भी मिलती हैं, जिनमें
ओडिशा की चिल्का, आन्ध्र प्रदेश की कोलेरू तथा तमिलनाडु की पुलीकट झीलें उल्लेखनीय
हैं।
प्रश्न 4. उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में क्या अन्तर
है?
उत्तर-उत्तरी
पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में निम्नलिखित अन्तर हैं
क्र०स० |
उत्तरी पर्वत प्राचीर |
प्रायद्वीपीय पठार |
1. |
हिमालय
नवीन वलित पर्वत है। यह अधिकांशतः तलछटी
शैलों से निर्मित है। |
प्रायद्वीपीय
पठार की उच्च भूमियाँ
प्राचीन भूखण्ड हैं, जो कठोर आग्नेय
शैलों से निर्मित हैं। |
2. |
हिमालय
की श्रेणियाँ समानान्तर तथा ऊँची हैं। यहाँ विश्व की सर्वोच्च शिखरें
स्थित है। |
मध्यवर्ती
उच्च भूमियों की ऊँचाई बहुत
कम है। दक्षिण की पहाड़ियाँ भी
3,000 मीटर से कम ऊँची
हैं। |
3. |
सिन्धु,
सतलुज, गंगा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ हिमाच्छादित क्षेत्रों से निकलती हैं;
अतः सदावाहिनी हैं। |
प्रायद्वीपीय
नदियों के उद्गम निम्न
पहाड़ियों में होने के कारण वे
अधिकांशतः वर्षाकालीन हैं। |
4. |
यहाँ
अनेक सुन्दर पर्वतीय नगर; जैसे— श्रीनगर, शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि विकसित हो गये हैं।
इसके अतिरिक्त हिमालय में अनेक सुन्दर घाटियाँ; जैसे—कश्मीर, कुल्लू, काँगड़ा, दून, पुनाखा आदि स्थित हैं। |
दक्षिणी
पठार पर केवल उद्गम
मण्डलम (ऊटी) प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल है। हिमालय के पर्वतीय प्रदेश
जैसी घाटियाँ यहाँ नहीं मिलतीं। |
प्रश्न 5. हिमालय की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए। |
Ø हिमालय का निर्माण किस प्रकार
हुआ ?
उत्तर-उच्चावच
से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी
वे मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं।
उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों
और संचलनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक
अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप
विषुवत रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड
नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों
के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में
अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों
के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों
के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों
में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गये। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना
हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।
हिमालय
की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया।
हिमालय से उतरने वाली नदियों ने स्थल को अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमश: भरना
शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक
इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।।
प्रश्न 6. भारत के समुद्रतटीय मैदानों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय
पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली सँकरी पट्टी के रूप में
जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। ये क्रमश: पश्चिमी तथा पूर्वी
समुद्रतटीय मैदान कहलाते हैं। इनका आर्थिक महत्त्व अग्रवत् है
1.
पश्चिमी तटीय मैदान–प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से
लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। नर्मदा तथा ताप्ती यहाँ की प्रमुख
नदियाँ हैं। नदियों के मुहानों पर बालू जम जाने से यहाँ लैगून निर्मित होते हैं। इनमें
मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। उपयुक्त जलवायु तथा उत्तम मिट्टी के कारण यहाँ चावल, आम, केला,
सुपारी, काजू, इलायची, गरम मसाले, नारियल आदि की फसलें उगायी जाती हैं। सागर तट पर
नमक बनाने तथा मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय भी पर्याप्त रूप में विकसित हुआ है। भारत
के प्रमुख पत्तन इन्हीं मैदानों में स्थित हैं। काण्दला, मुम्बई (न्हावाशेवा) व कोचीन
इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।
2.
पूर्वी तटीय मैदान–प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल
की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी
तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी
नदियों के डेल्टा विकसित हुए हैं। डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं,
जो सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यह तटीय मैदान उपजाऊ है तथा कहीं-कहीं पर काँप
मिट्टी से ढका है। यह मैदान कृषि की दृष्टि से बड़ा अनुकूल है। चावल, गन्ना, तम्बाकू
व जूट इस मैदान की मुख्य उपज हैं।
प्रश्न 7. भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में दो मुख्य अन्तर
लिखिए।
Ø भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटीय
मैदानों की तुलना कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय
पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान
फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों को दो क्षेत्रों में बाँटा
जा सकता है-पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान। इन दोनों मैदानों में दो मुख्य
अन्तर निम्नलिखित हैं
·
आकार-पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप
में विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 64 किमी है तथा नर्मदा एवं ताप्ती के मुहाने के निकट
ये 80 किमी चौड़े हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान | अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं। इनकी औसत
चौड़ाई 161 से 483 किमी है।।
·
विस्तार–पश्चिमी तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिम
में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैले हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान प्रायद्वीपीय
पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य पश्चिमी
बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत हैं।
प्रश्न 8. हिमालय को नवीन वलित पर्वत क्यों कहते हैं?
उत्तर-हिमालय
पर्वत भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। यह एक नवीन वलित
पर्वतश्रेणी है, जो अब भी क्रमशः ऊँची उठ रही है।
हिमालय
पर्वत की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भू-वैज्ञानिकों का मत है कि आज जहाँ हिमालय है, वहाँ
पहले कभी टेथिस नामक महासागर लहराता था। टेनिस महासागर भारत और म्यांमार (बर्मा) की
वर्तमान सीमा से लेकर पश्चिमी एशिया के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था (वर्तमान में
भूमध्यसागर इसी का अवशॆष है)। इस महासागर के उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में
गोंडवानालैण्ड कठोर स्थलखण्ड स्थित थे। इन स्थलखण्डों से नदियाँ प्रतिवर्ष भारी अवसाद
बहाकर टेथिस सागर में जमा करती चली गईं। कालान्तर में भूगर्भ की आन्तरिक परिवर्तनकारी
शक्तियों के फलस्वरूप ये दोनों कठोर स्थलखण्ड एक-दूसरे की ओर खिसके, जिससे टेथिस की
अवसाद में वलन पने आरम्भ हो गए। कालान्तर में इस अवसाद ने वलित पर्वत का रूप धारण कर
लिया, जो आज हिमालय के नाम से जाना जाता है। हिमालय की उत्पत्ति आज से लगभग 7 करोड़
वर्ष पूर्व मैसोजोइक (मध्य-जीव) महाकल्प से आरम्भ होकर अब से 20 लाख वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन
युग तक चलती रही। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में आज भी आन्तरिक परिवर्तनकारी शक्तियाँ
क्रियाशील हैं, इसी कारण हिमालय आज भी ऊँचा उठ रहा है। इसीलिए हिमालय को नवीन वलित
पर्वत कहा जाता है।
प्रश्न 9. पश्चिमी हिमालय और पूर्वी हिमालय का सचित्र तुलनात्मक वर्णन
कीजिए।
उत्तर- पश्चिमी
और पूर्वी हिमालय की तुलना
क्र०स० |
पश्चिमी हिमालय |
पूर्वी हिमालय |
1. |
भारत
की उत्तर-पश्चिमी सीमा अर्थात् जम्मू-कश्मीर तथा हिमालय प्रदेश में फैले हिमालय को पश्चिमी हिमालय
कहते हैं। |
भारत
की पूर्वी सीमा अर्थात् पश्चिम बंगाल,सिक्किम, भूटान तथा अरुणाचल प्रदेश में फैले हिमालय को पूर्वी हिमालय
कहते हैं। |
2. |
पश्चिमी
हिमालय में स्थित लद्दाख जास्कर तथा नंगा पर्वत आदि ऊँचे शिखर हैं। |
पूर्वी
हिमालय में स्थित पटकाई बम, लुशाई गारो, खासी, जयन्तिया आदि अपेक्षाकृत कम ऊँचे पर्वत
हैं। |
3. |
ये
पर्वत अधिक ऊँचे होने के कारण परिवहन
एवं अन्य आर्थिक विकास कार्यों की दृष्टि से
कम उपयोगी हैं। |
ये
पर्वत घने वनों से ढके हैं;
अतः आर्थिक विकास एवं परिवहन के लिए अपेक्षाकृत
अधिक उपयोगी हैं। |
प्रश्न 10. भारत के दो प्राकृतिक विभागों के नाम लिखिए तथा संक्षेप
में उनकी स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-भारत
के दो प्राकृतिक भाग तथा उनकी स्थिति इस प्रकार है–
1.
उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश–भारत
के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा 150 से 400 किमी की चौड़ाई में हिमालय
पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह विशाल पर्वतों की प्राचीर पूर्व से पश्चिम दिशा में
चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल
में विस्तृत है।
2.
उत्तरी मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान–हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा
दकन पठार के उत्तर में गंगा, सतलज, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की काँप मिट्टी
द्वारा निर्मित उपजाऊ एवं समतल मैदान को उत्तर को विशाल मैदान कहते हैं। इसका क्षेत्रफल
लगभग 7 लाख वर्ग किमी है। इसे जलोढ़ मैदान’ के नाम से भी पुकारते हैं। इस मैदान की
लम्बाई पूर्व से पश्चिमी लगभग 2,414 किमी तथा चौड़ाई पूर्व में 145 किमी तथा पश्चिम
में 480 किमी है।
प्रश्न 11. कश्मीर भारत का स्विट्जरलैण्ड कहलाता है, क्यों?
उत्तर-कश्मीर
स्विट्जरलैण्ड की भाँति अद्वितीय प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य रखने वाला प्रदेश
है। स्विट्जरलैण्ड को ‘यूरोप का स्वर्ग’ कहकर पुकारा जाता है; अत: कश्मीर ‘भारत का
स्विट्जरलैण्ड’ तथा ‘भारत का स्वर्ग’ भी कहलाता है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य
प्रस्तुत किए जा सकते हैं
·
स्विट्जरलैण्ड अपनी सुन्दर दृश्यावलियों एवं
पर्वतीय ढालों के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य
की विशिष्टता रखने वाला प्रदेश है।
·
स्विट्जरलैण्ड के पर्वतीय ढाल हिम से ढके रहते
हैं, ठीक उसी प्रकार कश्मीर के पर्वतीय ढाल भी वर्षभर हिम से आच्छादित रहते हैं।
·
स्विट्जरलैण्ड बर्फ के खेलों के लिए यूरोप में
ही नहीं, अपितु विश्वभर में प्रसिद्ध है, ठीक उसी | प्रकार कश्मीर में भी बर्फ के खेलों
(स्कीइंग) का आनन्द उठाया जा सकता है।
·
स्विट्जरलैण्ड की घाटी हरे-भरे वृक्षों, उत्तम
जलवायु तथा अनूठे सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर घाटी अँगूठी
में जड़े नगीने के समान सौन्दर्य की खान है। यही कारण है कि इसकी तुलना स्विट्जरलैण्ड
के साथ की जाती है।
प्रश्न 12. पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-पश्चिमी
घाट और पूर्वी घाट में अन्तर
क्र०स० |
पश्चिमी घाट |
पूर्वी घाट |
1. |
पश्चिमी
घाट उत्तर में ताप्ती नदी की घाटी से
लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक 1,600 किमी की लम्बाई में
विस्तृत हैं। |
पूर्वी
घाट उत्तर से महानदी से
लेकर दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों तक
1,300 किमी की लम्बाई में
विस्तृत हैं। |
2. |
इस
पर्वतीय भाग की औसत ऊँचाई
1,600 मीटर तथा औसत चौड़ाई 50 किमी है। |
इस
पर्वतीय भाग की औसत ऊँचाई
615 मीटर तथा औसत चौड़ाई उत्तर में 190 किमी, जबकि दक्षिण में 75 किमी है। |
3. |
पश्चिमी
घाट का सर्वोच्च शिखर
2,695 मीटर ऊँचा है। अतः इस पर्वतश्रेणी की
औसत ऊँचाई अधिक है। |
पूर्वी
घाट का सर्वोच्च शिखर
1,680 मीटर ऊँचा है। अतः इस पर्वतश्रेणी की
ऊँचाई कम है। |
4. |
पश्चिमी
घाट उत्तर में कम चौड़े हैं,
जबकि दक्षिण में इनकी चौड़ाई बढ़ गई है तथा
समुद्र तट की ओर
इनका ढाल बड़ा ही तीव्र है। |
पूर्वी
घाट उत्तर में अधिक चौड़े हैं, जबकि दक्षिण में कम चौड़े हैं
तथा नदियों ने इस पर्वतश्रेणी
को अनेक स्थानों पर काट-छाँट
दिया है। |
प्रश्न 13. पूर्वांचल में कौन-कौन सी श्रृंखलाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर-भारत
की पूर्वी सीमा पर विस्तृत पर्वतों को पूर्वांचल कहा जाता है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ
हिमालय की भाँति विशाल नहीं हैं तथा न ही अधिक ऊँची हैं। ये मध्यम ऊँचाई की पर्वतश्रेणियाँ
हैं। इन पर्वतश्रेणियों में उत्तर की ओर पटकोई, बुम एवं नाग पहाड़ियाँ तथा दक्षिण की
ओर मिजो पहाड़ियाँ (लुशाई पहाड़ियाँ) सम्मिलित हैं। मध्य में ये पहाड़ियाँ पश्चिम की
ओर मुड़ जाती हैं तथा मेघालय राज्य में भारत-बांग्लादेश की सीमा के साथ विस्तृत हैं।
यहाँ इन पहाड़ियों को पश्चिम से पूर्व की ओर गारो, खासी और जयन्तिया के नाम से सम्बोधित
किया जाता है।
प्रश्न 14. भारत की त्रिस्तरीय भू-आकृति में क्या-क्या समानताएँ पाई
जाती हैं?
उत्तर-–भारत
की त्रिस्तरीय भू-आकृति में निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं
·
भारत के प्रायद्वीपीय पठार पर युवा स्थलाकृतियाँ
पाई जाती हैं जो हिमालय पर्वत क्षेत्र की विशेषता है। दूसरी ओर हिमालय पर भी घर्षित
धरातल मिलते हैं जो प्रायद्वीपीय पठार की विशेषता है।
·
प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वतमाला के निर्माण
की प्रक्रिया में समानता दिखाई देती है। हिमालय पर्वत के उत्थान के समय प्रायद्वीपीय
पठार का एक भाग तथा अरावली पहाड़ियाँ भी। प्रभावित हुई हैं।
·
उत्तरी मैदान के निर्माण में हिमालय की तलछट
तथा प्रायद्वीपीय पठार की तलछट दोनों का योगदान रहा है।
प्रश्न 15. दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से पाँच उदाहरणं
दीजिए।
उत्तर-दो
नदियों का मध्य भाग दोआब कहलाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में निम्नलिखित दोआब स्थित हैं
1. गंगा-यमुना
दोआबे,
2. व्यास
एवं सतलज के बीच का विस्ट-जालंधर दोआब,
3. व्यास
एवं रावी के मध्य का बारी दोआब,
4. रावी
एवं चेनाब के मध्य का रेचना दोआब,
5. चेनाब
एवं झेलम के मध्य का छाज दोआब।
प्रश्न 16. विशाल मैदान के विशिष्ट भौतिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-हिमालय
के दक्षिण से विशाल मैदान का विस्तार आरम्भ हो जाता है। इस मैदान की उत्पत्ति नूतन
काल में हुई है। यह मैदान रोचक भू-लक्षणों से युक्त है। इसकी उत्तरी सीमा पर गिरिपाद
मैदान स्थित है जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बना है, जिन्हें भाबर कहते हैं। इस
मैदान के दक्षिण में तराई का मैदान मिलता है। इस मैदान के प्राचीन जलोढ़कों को बांगर
तथा नवीन जलोढ़कों को खादर कहते हैं। विशाल मैदान में कहीं-कहीं गर्त भी पाए जाते हैं।
पटना के निकट के गर्त को जिल्ला तथा मोकाम के निकट के गर्त को ‘ढाल’ कहते हैं। इस मैदान
में जलोढ़ झीलें हैं जिनका स्थानीय नाम ‘बिल’ हैं।
प्रश्न 17 दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-सिक्किम
और दार्जिलिंग हिमालय अपने रमणीय सौन्दर्य वनस्पतिजात और प्राणिजात के लिए प्रसिद्ध
हैं। यहाँ तेज बहाव वाली तिस्ता नदी बहती है और कंचनजंगा जैसी ऊँची चोटियाँ एवं गहरी
घाटियाँ स्थित हैं। इन पर्वतों के उच्च शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी में मिश्रित
जनसंख्या है, जिसमें नेपाली, बंगाली तथा मध्य भारत की जनजातियाँ निवास करती हैं। हिमालय
का यह भाग चाय उत्पादन के लिए आदर्श दशाएँ रखता है। इसलिए यहाँ चाय बागानों का पर्याप्त
विकास हुआ है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत को प्रमुख भू-आकृतिक विभागों में बाँटिए और भारतीय प्रायद्वीपीय
पठार का वर्णन कीजिए।
Ø भारत को भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किन्हीं एक का
वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए (क) स्थिति का विस्तार, (ख) प्राकृतिक स्वरूप।
Ø भारत को उच्चावच के आधार पर भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें
से किसी एक की स्थिति, विस्तार एवं भौतिक स्वरूप का वर्णन कीजिए।
Ø या भारत को विभिन्न भौतिक विभागों में बाँटिए और पूर्वी तथा पश्चिमी
मैदानों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत
का प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)
भारत
एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ
दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़; 27.7% भाग
पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का
विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ
हैं, तो दूसरी ओर विस्तृत तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा समतल उपजाऊ मैदान हैं तो
कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटा पठारी भाग है। इस प्रकार जम्मू
से कन्याकुमारी तक भारत को उच्चावच अथवा भू-आकृतिक संरचना के अनुसार निम्नलिखित पाँच
भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. उत्तरीय
पर्वतीय प्रदेश,
2. उत्तरी
भारत का विशाल मैदान,
3. दक्षिण
का पठार,
4. समुद्रतटीय
मैदान एवं द्वीप समूह,
5. थार
का मरुस्थल।
इनका
संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1.
उत्तरी पर्वतीय प्रदेश-भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई
तथा पूर्व में 150 किमी तथा पश्चिम में 400 किमी की चौड़ाई में उत्तरी अथवा हिमालय
पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह पर्वत-श्रृंखला पूर्व से पश्चिम तक चाप के आकार में
फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। यह मोड़दार पर्वतमाला
तीन समानान्तर श्रेणियों-(i) महान् हिमालय (हिमाद्रि हिमालय), (ii) लघु हिमालय,
(iii) बाह्य हिमालय (शिवालिक हिमालय) में विस्तृत है। महान् हिमालय की औसत ऊँचाई
6,000 मीटर से अधिक होने के कारण ये श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। विश्व की
सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी माउण्ट एवरेस्ट इसी हिमालय पर्वतमाला में स्थित है। समुद्र तल
से इसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। हिमालय पर्वत उत्तरी भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम
स्थल तथा हरे-भरे वनों का भण्डार है। यहाँ बहने वाली नदियाँ तीव्रगामी तथा अपनी युवावस्था
में हैं। ये उत्तरी मैदानों में बहती हुई अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में गिर जाती
हैं। इनसे भारतीय उपमहाद्वीप की तीन प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय
के उस पार से निकलती हैं।
हिमालय अपनी सुन्दर और रमणीक घाटियों के लिए विश्वविख्यात है, जिनमें कश्मीर घाटी, दून घाटी, कुल्लू और काँगड़ा घाटी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
2.
उत्तरी भारत का विशाल मैदान-उत्तरी भारत अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र का
मैदान हिमालय पर्वत के दक्षिण में और दक्षिणी पठार के उत्तर में भारत का ही नहीं वरन्
विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख
वर्ग किमी से अधिक है। इस मैदान की पश्चिम से पूरब की लम्बाई 2,414 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण
की चौड़ाई 150 से 500 किलोमीटर है। इस मैदान का ढाल लगभग 25 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर
है। अरावली पर्वत-श्रेणी को छोड़कर इसका कोई भी भाग समुद्र तल से 150 मीटर से ऊँचा
नहीं है।
यह
मैदान सिन्धु, सतलुज, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी अनेक सहायक नदियों द्वारा लाई
गयी मिट्टी से बना है; अत: यह बहुत ही उपजाऊ है। इस मैदान के बीच में अरावली पर्वत
आ जाने के कारण सिन्धु और उसकी नदियाँ पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ तथा
ब्रह्मपुत्र पूर्व में बहती हैं। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है और
पूर्वी मैदान का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस मैदान में गहराई नहीं
पायी जाती। सम्पूर्ण गंगा का मैदान बाँगर तथा खादर से निर्मित है। यहाँ देश की 45%
जनसंख्या निवास करती है। प्रति वर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टी अपने साथ
लाकर बिछाती रहती हैं।
3.
दक्षिण का पठार (प्रायद्वीपीय पठार)–भारत के दक्षिण में प्राचीन
ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से बना दकन का पठार है, जिसे दक्षिण का पठार भी
कहते हैं। यह राजस्थान से लेकर कुमारी अन्तरीप तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व
की ओर पश्चिम बंगाल तक विस्तृत है। इसको आकार त्रिभुजाकार है एवं आधार उत्तर की ओर
तथा शीर्ष दक्षिण की ओर है। पठार के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ
हैं, पश्चिम में ऊँचे पश्चिमी घाट और पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि
पर्वत हैं।
इसके
पश्चिमी भाग पर ज्वालामुखी द्वारा निर्मित लावा के निक्षेप हैं, जो काली मिट्टी के
उपजाऊ क्षेत्र हैं। इस पठारी क्षेत्र पर अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं।
इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 750 मीटर है। इसका धरातल बहुत ही विषम है। इस पठारी भाग
का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है। दकन का पठारी क्षेत्र खनिज पदार्थों का विशाल
भण्डार है। इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन सम्पदा पायी जाती है। सागौन एवं चन्दन की
बहुमूल्य लकड़ी इसी पठारी भाग में मिलती है। यह कृषि-उपजों का भण्डार तथा उद्योग-धन्धों
का महत्त्वपूर्ण केन्द्र भी हैं।
इस
पठार पर बहने वाली अधिकांश नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती
हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी ऐसी ही नदियाँ हैं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ
भ्रंश घाटी में होकर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं। अरब सागर में गिरने वाली
अन्य नदियाँ बहुत छोटी तथा तीव्रगामी हैं।
4.
समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह–दकन के पठार के दोनों ओर पूर्वी
तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय
मैदान कहते हैं। इन मैदानों का निर्माण सागर की लहरों तथा नदियों ने अपनी निक्षेप क्रियाओं
द्वारा लाये गये अवसाद से किया है। इस मैदानी क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा
जा सकता है
(i)
पश्चिमी तटीय मैदान–यह मैदान पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर
कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है। इसमें बहने वाली नदियाँ
अत्यन्त तीव्रगामी हैं। इसके दक्षिणी मार्ग में नावों के लिए अनेक अनूप (Lagoons) पाये
जाते हैं। नया मंगलोर, कोचीन इन्हीं अनू” पर स्थित हैं। यहाँ चावल, केला, गन्ना व रबड़
खूब पैदा होता है। कांदला, मुम्बई व कोचीन इस तट पर स्थित अन्य प्रमुख बन्दरगाह हैं।
(ii)
पूर्वी तटीय मैदान–पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा यह मैदान अधिक
चौड़ा है। इसकी औसत चौड़ाई 161 से 483 किलोमीटर है। यह उत्तर में गंगा के मुहाने से
दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) व विशाखापत्तनम्
इसे तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।
द्वीप
समूह–भारत
के मुख्य स्थल भाग के पश्चात् सागरों के बीच में जो आकृतियाँ स्थित हैं वे द्वीपसमूह
के रूप में जानी जाती हैं। ये भारत का अभिन्न अंग हैं। छोटे-बड़े मिलाकर कुल 247 द्वीप
हैं, जो स्थिति अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बँटे हुए हैं
(i)
अरब सागरीय द्वीप-ये द्वीप अरब सागर के मुख्य स्थल (केरल तट)
के पश्चिम में स्थित हैं। इन द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल या अँगूठी के समान है।
इनका निर्माण अल्पजीवी सूक्ष्म प्रवाल जीवों के अवशेषों के जमाव से हुआ है। इसलिए इन्हें
प्रवालद्वीप वलय (एटॉल) कहते हैं। इनमें लक्षद्वीप, मिनीकोय एवं अमीनदीवी प्रमुख हैं।
इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष बहुत अधिक उगाये जाते हैं। इन द्वीपों की संख्या.43
है तथा लक्षद्वीप का क्षेत्रफल मात्र 32 वर्ग किलोमीटर है। कवरत्ति यहाँ की राजधानी
है।
(ii)
बंगाल की खाड़ी के द्वीप-बंगाल की खाड़ी में भी भारत के अनेक द्वीप
हैं। इन्हें अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह के नाम से पुकारते हैं। ये द्वीप बड़े
भी हैं और संख्या में भी अधिक हैं। ये जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित
हैं। इन द्वीपों में से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार से हुई है। भारत का एकमात्र
सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों में एक बैरन द्वीप पर स्थित है। इनका विस्तार
590 किमी की लम्बाई तथा अधिकतम 50 किमी की चौड़ाई में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में बना
हुआ है। ये द्वीप यहाँ एक समूह के रूप में पाये जाते हैं, जो एक-दूसरे से संकीर्ण खाड़ी
द्वारा पृथक् होते हैं। इनकी कुल संख्या 204 है तथा पोर्ट ब्लेयर यहाँ की राजधानी है।।
5.
थार का मरुस्थल-राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी भाग रेगिस्तानी है
जिसे ‘थार का मरुस्थल कहा जाता है। इस मरुस्थल का कुछ भाग पाकिस्तान में भी है। इस
भाग में प्रतिदिन धूल व रेतभरी तेज हवाएँ चलती हैं, जो जगह-जगह रेत के टीले बना देती
हैं। यहाँ 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है, इसलिए यह भाग वर्ष भर शुष्क बना रहता है
और पूरे भाग में पानी की कमी रहती है। अत: यहाँ ज्वार-बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलें
अधिक उगाई जाती हैं। यह मरुस्थलीय भाग 644 किमी लम्बा व लगभग 161 किमी चौड़ा है। इसका
कुल क्षेत्रफल लगभग 1,04,000 वर्ग किमी है तथा इसका विस्तार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान
तथा उत्तरी गुजरात राज्यों में है। इस प्रदेश में अत्यन्त विरल जनसंख्या निवास करती
है। लूनी इस मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य मौसमी नदी है। यहाँ पर साँभर, डिंडवाना, लूनकरनसर,
कुचामन तथा डेगाना खारे पानी की प्रमुख झीलें हैं, जिनसे नमक बनाया जाता है। कुछ भागों
में ग्रेनाइट, नीस तथा शिस्ट चट्टानों की नंगी सतह दिखलायी पड़ती हैं। खनिज पदार्थों
में ताँबा, जिप्सम पत्थर तथा मुल्तानी मिट्टी यहाँ मुख्यतः मिलती हैं। राजस्थान में
झुंझुनू जिले के खेतड़ी नगर के पास ताँबे की अनेक खाने हैं। यहाँ ऊँट यातायात का प्रमुख
साधन है, जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। मरुस्थलीय संरचना एवं जलवायु की विषमताओं
के कारण यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पूर्व की ओर इन्दिरा गांधी नहर
के बन जाने से धीरे-धीरे सम्बद्ध क्षेत्रों में विकास हो रहा है।
प्रश्न 2. भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की बनावट कैसी है?
इस प्रदेश का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
Ø हिमालय पर्वत से भारत को क्या
लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
Ø हिमालय के कोई दो महत्त्व लिखिए।
Ø हिमालय पर्वतों की तीन समान्तर
शृंखलाओं के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक-एक विशेषता लिखिए।
Ø भारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) धरातलीय संरचना, (ग) जल-प्रवाह।
उत्तर-हिमालय
पर्वत की संरचना
भारत
के उत्तर में हिमालय पर्वत चाप के आकार में तथा पश्चिम में सिन्धु नदी के मोड़ से पूर्व
में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी की लम्बाई में चन्द्राकार रूप में फैले
हैं। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 400 किमी के बीच है। हिमालय; भारत और तिब्बत (चीन) के
मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। मुख्य हिमालय में विश्व की सर्वोच्च पर्वत-चोटियाँ
पायी जाती हैं, जिनकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक है। एशिया महाद्वीप में 97 ऐसी
ज्ञात चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई 7,500 मीटर से अधिक है। इनमें से 95 चोटियाँ भारत के
इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित हैं। हिमालय की ये पर्वत-श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी
रहती हैं, इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिमालय रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख
वर्ग किमी है। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वतीय प्रदेश को अग्रलिखित उपविभागों में
बाँटा जा सकता है
1.
महान् या बृहद् हिमालय–हिमालय की यह पर्वत-श्रेणी सबसे ऊँची है, जिन्हें
हिमाद्रि या वृहत्तर हिमालय भी कहा जाता है। इस पर्वत-श्रेणी की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर
से अधिक होने के कारण यह वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। इस पर्वत-श्रेणी की लम्बाई
सिन्धु नदी के मोड़ से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी तथा
औसत चौड़ाई 25 किमी है। इस क्षेत्र में गंगोत्री, जेमू तथा मिलाम जैसे विशाल हिमनद
(Glaciers) पाये जाते हैं, जिनकी लम्बाई 20 किमी से भी अधिक है। माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंगा,
मकालू, धौलागिरि, नंगा पर्वत, गॉडविन-ऑस्टिन, त्रिशूल, बदरीनाथ, नीलकण्ठ, केदारनाथ
आदि इस क्षेत्र के प्रमुख पर्वत-शिखर हैं। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण ग्रेनाइट,
नीस, शिस्ट आदि कठोर और प्राचीन शैलों से हुआ है। माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल देश में स्थित)
विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महान् हिमालय में अनेक
दरें पाये जाते हैं जिनमें शिपकीला, थांगला, नीति, लिपुलेख, बुर्जिल, माना, नाथुला
तथा जैलेपला आदि मुख्य हैं। इन्हीं दरों के मार्ग द्वारा भारत की सीमा के पार जाया
जा सकता है। महान् हिमालय की पूर्वी सीमा पर ब्रह्मपुत्र तथा पश्चिमी सीमा पर सिन्धु
नदियाँ गहरी एवं सँकरी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। बृहद् हिमालय और श्रेणियों
के मध्य दो प्रमुख घाटियाँ हैं—काठमाण्डू की घाटी (नेपाल) और कश्मीर की घाटी (भारत)।
2.
लघु या मध्य हिमालय—यह पर्वत-श्रेणी महान् हिमालय के दक्षिण में
उसके समानान्तर फैली हुई है, जो 80 से 100 किमी तक चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई
2,000 से 3,500 मीटर तक है तथा अधिकतम ऊँचाई 4,500 मीटर तक पायी जाती है। इस भाग में
नदियाँ ‘वी’ (V) आकार की घाटियाँ तथा गहरी कन्दराएँ बनाकर बहती हैं, जिनकी गहराई
1,000 मीटर तक है। महान् और लघु हिमालय के मध्य कश्मीर, काठमाण्डू, काँगड़ा एवं कुल्लू
की घाटियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शीत-ऋतु में तीन-चार महीने यहाँ हिमपात होता
है। ग्रीष्म-ऋतु में ये पर्वतीय क्षेत्र उत्तम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु तथा मनमोहक
प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटन के केन्द्र बन जाते हैं। कश्मीर की जास्कर और पीर पंजाल
इसकी महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो अनेक भुजाओं वाली हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई
4,000 मीटर है। चकरौता, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक
पर्वतीय नगर लघु हिमालय में ही स्थित हैं, जहाँ प्रति वर्ष लाखों पर्यटक सैर के लिए
जाते हैं। इस श्रेणी के उत्तरी ढाल मन्द हैं, जब कि दक्षिणी ढाल तीव्र। इस पर्वतीय
क्षेत्र में उपयोगी कोणधारी वृक्ष तथा ढालों पर घास उगती है। घास के इन मैदानों को
कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, खिलनमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार
(गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालय) के नाम से पुकारते हैं। इस भाग की संरचना में अवसादी शैलों
की प्रधानता है, जिनमें अधिकांश चूने की चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं।
3.
उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणियाँ अथवा बाह्य हिमालय–हिमालय
की सबसे निचली तथा दक्षिणी पर्वत-श्रेणियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें बाह्य हिमालय
या शिवालिक श्रेणियों के नाम से भी पुकारते हैं। यह हिमालय का नवनिर्मित भाग है, जो
पंजाब में पोतवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी अर्थात् 87° देशान्तर
तक विस्तृत है। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण-काल बीस लाख वर्ष से दो करोड़ वर्ष के
मध्य माना जाता है। शिवालिक श्रेणियों का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी अवसाद में
मोड़ पड़ने से हुआ है, इसलिए इन पर अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव पड़ा है। तिस्ता
और रायडॉक के निकट 50 किमी की चौड़ाई में इन पहाड़ियों का लोप हो जाता है। इनकी औसत
चौड़ाई पश्चिम में 50 किमी और पूरब में 15 किमी है। ये पर्वत औसत रूप से 600 से
1,500 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में अनेक उपजाऊ तथा समतल विस्तृत घाटियाँ हैं,
जिन्हें दून और द्वार कहते हैं, जैसे-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, : पाटलीदून,
हरिद्वार, कोटद्वार आदि।
भौगोलिक
महत्त्व/लाभ
हिमालय
पर्वत ने हमारे देश के भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वरूप का निर्माण किया
है। इनके भौगोलिक महत्त्व/लाभ का वर्णन निम्नलिखित है
1. ये
पर्वत साइबेरिया और मध्यवर्ती एशिया की ओर से आने वाली बर्फीली, तूफानी और शुष्क हवाओं
से भारत की रक्षा करते हैं।
2. हिमालय
की ऊँची-ऊँची हिमाच्छादित चोटियाँ उत्तरी भारत के तापमान एवं आर्द्रता (वर्षा) को प्रभावित
करती हैं। इसी के फलस्वरूप हिमालय में हिम नदियाँ, सदावाहिनी नदियाँ प्रारम्भ होती
हैं, जो उत्तरी मैदान को उपजाऊ बनाती हैं।
3. हिमालय
के हिमाच्छादित शिखरों और नैसर्गिक दृश्यों के कारण इन पर्वतों का पर्यटकों के लिए
महत्त्व बढ़ गया है।
4. हिमालय
की घाटी में जैसे ही वृक्षों की सीमा समाप्त होती है, वहाँ छोटे-छोटे चरागाह पाये जाते
हैं. जिन्हें मर्ग कहते हैं; जैसे—गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि। यहाँ कश्मीरी गड़रिये भेड़-बकरियाँ
चराते हैं।
5. हिमालय
पर्वत से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ अपने प्रवाह-मार्ग में प्राकृतिक जल-प्रपातों
की रचना करती हैं। ये जल-प्रपात जल-विद्युत शक्ति के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए हैं।
6. शीत
ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से ठण्डी एवं बर्फीली पवनें दक्षिण की ओर चला करती हैं।
हिमालय पर्वतमाला इन पर्वतों के मार्ग में बाधा बनकर भारत को ठण्ड से बचाती है।
7. हिमालय
पर्वत पर पर्याप्त मात्रा में कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ प्राप्त होने की
| सम्भावना व्यक्त की गयी है, जिससे इसका आर्थिक महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
8. हिमालय
पर्वतमाला भारत के उत्तर में पहरेदार की भाँति एक अभेद्य दीवार के रूप में खड़ी है,
जो । आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करती है।
9. हिमालय
की कश्मीर घाटी को फलों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ सेब, अखरोट, आड़, खुबानी, अंगूर
व नाशपाती आदि फल उगाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर चाय, सीढ़ीदार खेतों में चावल व
आलू की खेती भी की जाती है।
10. हिमालय
पर्वत के दोनों ढालों पर उपयोगी वनों का बाहुल्य है। इन वनों से विभिन्न उद्योगों के
लिए कच्चे माल, उपयोगी इमारती लकड़ियाँ आदि प्राप्त होती हैं।
11. हिमालय
पर्वतमाला से अनेक जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं, जो अनेक रोगों की चिकित्सा में काम
आती हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय के वनों से शहद, आँवला, बेंत, गोंद, लाख, कत्था, बिरोजा
आदि प्राप्त होते हैं, जो मानव की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। हिमालय के
अनेक पर्वतीय नगर ग्रीष्म-ऋतु में पर्यटकों के भ्रमण के लिए आकर्षण के केन्द्र बन जाते
हैं।
प्रश्न 3. दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना तथा आर्थिक
महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
> भारत के दक्षिणी पठारी
भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति,
(ख) विस्तार,
(ग) खनिज सम्पदा।
> भारत के दक्षिणी पठारी भाग के किन्हीं तीन खनिज संसाधनों का वर्णन
कीजिए।
> भारत के दक्षिणी पठारी भाग की छ: विशेषताएँ बताइए।
> भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(अ) धरातल,
(ब) जल-प्रवाह प्रणाली,
(स) भौगोलिक महत्त्व।
> दकन के पठार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-दक्षिणी
प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना (धरातल)
भारत
के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से निर्मित द्रकन (दक्षिण)
का पठार है। यह विशाल प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का ही एक अंग है, जो
भारतीय उपमहाद्वीप का, सबसे प्राचीन भूभाग है। यह पठारी प्रदेश 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल
में विस्तृत है। इसकी आकृति । त्रिभुजाकार है। इसके उत्तर में गंगा-सतलुज-ब्रह्मपुत्र
का मैदान, पूर्व में पूर्वी तटीय मैदान एवं बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर
तथा पश्चिम में पश्चिमी तटीय मैदान एवं अरब सागर स्थित है। इस पठार पर अनेक पर्वत विस्तृत
हैं, जो मौसमी क्रियाओं; अर्थात् अपक्षय; द्वारा प्रभावित हैं। इस भौतिक प्रदेश में
सबसे अधिक धरातलीय विषमताएँ मिलती हैं। समुद्र-तल से इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से
700 मीटर है।
इस
पठारी प्रदेश का विस्तार उत्तर में राजस्थान से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक
1,700 किमी की लम्बाई तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक
1,400 किमी की चौड़ाई में है। प्राकृतिक दृष्टिकोण से इसकी उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर
तथा राजमहल की पहाड़ियों द्वारा निर्धारित होती है। यहाँ मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों
को अपक्षरण होता रहता है। नर्मदा नदी की घाटी सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र
को दो असमान भागों में विभाजित कर देती है। उत्तर की ओर के भाग को मालवा का पठार तथा
दक्षिणी भाग को दकन ट्रैप या प्रायद्वीपीय पठार के नाम से पुकारते हैं। इस प्रदेश में
निम्नलिखित स्थलाकृतिक विशिष्टताएँ पायी जाती हैं
1.
मालवा का पठार-मालवा का पठार ज्वालामुखी से प्राप्त लावे द्वारा
निर्मित हुआ है, जिससे यह समतल हो गया है। इस पठार पर बेतवा, माही, पार्वती, काली-सिन्धु
एवं चम्बल नदियाँ प्रवाहित होती हैं। चम्बल एवं उसकी सहायक नदियों ने इस पठार के उत्तरी
भाग को बीहड़ तथा ऊबड़-खाबड़ गहरे खड्डों में परिवर्तित कर दिया है, जिससे अधिकांश
भूमि खेती के अयोग्य हो। गयी है। शेष भूमि समतल और उपजाऊ है। इस पठार का ढाल पूर्व
तथा उत्तर-पूर्व की ओर है। विन्ध्याचले की पर्वत-श्रृंखलाएँ यहीं पर स्थित हैं।
2.
विन्ध्याचल श्रेणी–प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग पर
विन्ध्याचल श्रेणी का विस्तार है। इस श्रेणी के उत्तर-पश्चिम (राजस्थान) में अरावली
श्रेणी स्थित है। यह श्रेणी अत्यधिक अपरदन के कारण निचली पहाड़ियों के रूप में दृष्टिगोचर
होती है। विन्ध्याचल श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा की घाटी स्थित है। नर्मदा घाटी के
दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणी का विस्तार है, जो महानदी और गोदावरी के बीच स्थित है।
3.
बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड का पठार—यह पठार मालवा पठार के उत्तर-पूर्व
में स्थित है। यमुना एवं चम्बल नदियों ने इस पठार को काट-छाँटकर बीहड़ खड्डों का निर्माण
किया है, जिससे यह असमतल तथा अनुपजाऊ हो गया है। इस पठार पर नीस, ग्रेनाइट, बालुका-पत्थर
की चट्टानें तथा पहाड़ियाँ मिलती हैं।
4.
छोटा नागपुर का पठार—यह पठार एक सुस्पष्ट पठारी इकाई है। इसके उत्तर
व पूर्व में गंगा का मैदान है। इसका पश्चिमी मध्यवर्ती भाग 100 मीटर ऊँचा है, जिसे
‘पाट क्षेत्र’ कहते हैं। झारखण्ड राज्य के गया, हजारीबाग तथा राँची जिलों में यह पठार
विस्तृत है। महानदी, सोन, स्वर्ण-रेखा एवं दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ
ग्रेनाइट एवं नीस की-शैलें पायी जाती हैं। यह पठार खनिज पदार्थों में बहुत धनी है।
इसकी औसत ऊँचाई 400 मीटर है।
5.
मेघालय का पठार-उत्तर-पूर्व में इस पठार को मिकिर की पहाड़ियों
के नाम से पुकारते हैं। | इसका उत्तरी ढाल खड़ा है, जिसमें ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक
नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इसी पठार में गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियाँ विस्तृत
हैं।
6.
दकन का पठार—यह महाराष्ट्र पठार के नाम से भी जाना जाता
है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किमी है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात,
कर्नाटक, पश्चिमी तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। यह पठार बेसाल्ट शैलों
से निर्मित है तथा खनिज पदार्थों में धनी है। यह पठार दो भागों में विभाजित है-तेलंगाना
एवं दकन का पठार।।
7.
प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख पर्वत-श्रेणियाँ-यह पठारी प्रदेश
अनाच्छादन की क्रियाओं से प्रभावित है। यहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा एवं अरावली की पहाड़ियाँ
प्रमुख हैं। इनकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है। .
8.
पश्चिमी घाट–इन्हें सह्याद्रि की पहाड़ियों के नाम से भी
पुकारा जाता है। ये पश्चिमी.तंट के समीप उसके समानान्तर विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई
50 किमी है। इनका विस्तार मुम्बई के उत्तर से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक लगभग
1,600 किमी है। थाकेघाट, भोरघाट व पालघाट यहाँ के प्रमुख दरें हैं। इस श्रेणी के उत्तर-पूर्व
में पालनी तथा दक्षिण में इलायची की पहाड़ियाँ हैं। अनाईमुडी इसका सर्वोच्च शिखर
(2,695 मीटर) है।
9.
पूर्वी घाट–इस श्रेणी का विस्तार महानदी के दक्षिण में उत्तर-पूर्व
दिशा से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 1,300 किमी की लम्बाई में
है। इनकी औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा औसत चौड़ाई उत्तर में 190 किमी तथा दक्षिण में 75
किमी है। इन घाटों को काटकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ पश्चिमी भागों
से पूर्व की ओर बहती हुई उपजाऊ मैदान में डेल्टा बनाती हैं।
जल-प्रवाह
प्रणाली
दक्षिण
पठारी भाग की जल प्रवाह प्रणाली में नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी, पेन्नार
आदि नदियों का योगदान है। इनमें नर्मदा व ताप्ती पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती
हैं। नर्मदा अमरकण्टक की पहाड़ियों से निकलती है तथा ताप्ती मध्य प्रदेश के बैतूल जिले
से निकलती है। यह दोनों नदियाँ सतपुड़ा के दक्षिण में सँकरी तथा गैहरी भ्रंश घाटियों
से होकर बहती हैं।
महानदी,
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा पेन्नार नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। साबरमती
व माही नदियाँ कच्छ की खाड़ी में गिरती हैं।
भौगोलिक
महत्त्व
प्रायद्वीपीय
पठार के भौगोलिक-आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है
1.
प्राचीन आग्नेय कायान्तरित शैलों से निर्मित होने के कारण यह भू-भाग खनिज सम्पन्न है।
मध्य प्रदेश में मैंगनीज, संगमरमर, चूना-पत्थर, बिहार व उड़ीसा (ओडिशा) में लोहा व
कोयला, | कर्नाटक में सोना, आन्ध्र प्रदेश में कोयला, हीरा आदि आर्थिक महत्त्व के खनिज
उपलब्ध होते हैं।
2.
लावा की मिट्टी कपास व गन्ने की खेती के लिए अत्युत्तम है। पहाड़ी क्षेत्रों में लैटेराइट
मिट्टियाँ चाय, कहवा तथा रबड़ के लिए उपयुक्त हैं। गर्म मसाले, काजू, केला अन्य महत्त्वपूर्ण
उपजें हैं।
3.
वनों में चन्दन, साल, सागौन, शीशम आदि बहुमूल्य लकड़ी तथा लाख, बीड़ी बनाने के लिए
तेन्दू व टिमरु वृक्ष के पत्ते, हरड़, बहेड़ा, आँवला, चिरौंजी, अग्नि व रोशा घास आदि
आर्थिक महत्त्व की गौण वन-उपजे प्राप्त होती हैं।
4.
पठारी धरातल पर प्रवाहित होने वाली नदियों के प्रपाती मार्ग में अनेक स्थानों पर जल-विद्युत
शक्ति के विकास की सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं। कठोर चट्टानी धरातल होने के कारण वर्षा के
जल को एकत्रित करने के लिए जलाशय में बाँध की सुविधाएँ प्राप्त हैं।
5.
सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु उष्ण है, किन्तु उटकमण्ड, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर
आदि * सुरम्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक स्थल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं।
6. विषम धरातल होने के कारण यहाँ आवागमन के साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका है। उत्तरी मैदान की तुलना में यहाँ कृषि भी अधिक विकसित नहीं है। चम्बल व अन्य नदियों के बीहड़ लम्बी अवधि तक डाकुओं व असामाजिक तत्वों के शरणस्थल रहे हैं। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत प्राचीन काल से ही उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य प्राकृतिक व सांस्कृतिक अवरोध रहे हैं; अतएव दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई है।