Class 11th 6. वायव फोटो का परिचय (Introduction to Aerial Photographs)

Class 11th 6. वायव फोटो का परिचय (Introduction to Aerial Photographs)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के चार विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें

(i) निम्नलिखित में से किन वायव फोटो में क्षितिज तल प्रतीत होता है ?

(क) ऊध्र्वाधर

(ख) लगभग ऊध्र्वाधर

(ग) अल्प तिर्यक

(घ) अति तिर्यक

 

(ii) निम्नलिखित में से किस वायव फोटो में अधोबिन्दु एवं प्रधान बिन्दु एक-दूसरे से मिल जाते

(क) ऊर्ध्वाधर

(ख) लगभग ऊर्ध्वाधर

(ग) अल्प तिर्यक

(घ) अति तिर्यक

 

(iii) वायव फोटो निम्नलिखित प्रक्षेपों में से किसका एक प्रकार है ?

(क) समान्तर

(ख) लम्बकोणीय ।

(ग) केन्द्रक

(घ) इनमें से कोई नहीं

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वायव फोटो किस प्रकार खींचे जाते हैं ?

उत्तर-वायव फोटो वायुयान या हैलीकॉप्टर में लगे परिशुद्ध कैमरे के द्वारा लिए जाते हैं। इस तरह से प्राप्त किए गए फोटोग्राफ स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने तथा लक्ष्यों की व्याख्या करने के लिए उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 2. भारत में वायव फोटो का संक्षिप्त में वर्णन करें।

उत्तर-भारत में वायव फोटो का इतिहास पुराना नहीं है। यहाँ सर्वप्रथम 1920 में बड़े पैमाने पर आगरा शहर का वायव फोटो लिया गया था। उसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण द्वारा इरावदी डेल्टा के वनों का वायु सर्वेक्षण किया गया जो 1923.24 में पूरा हुआ था। इसके बाद इस प्रकार के अनेक सर्वेक्षण किए गए। इनका उपयोग उन्नत मानचित्र बनाने में किया गया। वर्तमान में पूरे देश का वाथव फोटो सर्वेक्षण ‘वायव फोटो वायु सर्वेक्षण निदेशालय, नई दिल्ली की देख-रेख में किया जाता है। भारत में तीन उड्डयन एजेन्सियाँ वायु फोटोग्राफ लेने के लिए अधिकृत हैं

1.    भारतीय वायुसेना,

2.    वायु सर्वेक्षण कम्पनी (कोलकाता) तथा

3.    राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था (हैदराबाद)।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें

(क) वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौन से हैं?

उत्तर-वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग

वायव फोटो भौगोलिक अध्ययनों के लिए बहू-उपयोगी हैं। इनका उपयोग स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने एवं उनमें अद्यतन सूचनाएँ अंकित करने में किया जाता है। वायव फोटो के दो विभिन्न उपयोग स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने और उनका निर्वचन करने के कारण ही फोटोग्राममिति तथा । फोटो/प्रतिबिम्ब निर्वचन के रूप में दो स्वतन्त्र किन्तु एक-दूसरे से सम्बन्धित विज्ञानों का विकास हुआ है। वायव फोटो के कुछ महत्त्वपूर्ण उपयोग एवं लाभ निम्नलिखित हैं

1.    वायव फोटों से पृथ्वी के विहंगम दृश्य प्राप्त होते हैं जो सतह की आकृतियों को स्थानिक सन्दर्भ में समझने के लिए उपयोगी हैं।

2.    वायव फोटो ऐतिहासिक अभिलेखन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं।

3.    वायव फोटो धरातलीय दृश्यों का त्रिविम स्वरूप प्रदान करते हैं जो भौगोलिक अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

4.    किसी क्षेत्र के भूमि उपयोग सर्वेक्षण को समझने और उस क्षेत्र के नियोजन की रूपरेखा तैयार करने में यह एक विश्वसनीय विधा है।

5.    इसके द्वारा किसी क्षेत्र का समकालिक भौगोलिक अध्ययन करना अत्यन्त सरल है।

(ख) मापनी को निर्धारित करने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं?

उत्तर- मापनी को निर्धारित करने की विभिन्न विधियाँ वायव फोटो की व्याख्या के लिए क्षेत्रों एवं उनकी लम्बाइयों के विषय में जानकारी आवश्यक होती है, जिसके लिए फोटो की मापनी की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। वायव फोटो की मापनी की संकल्पना मानचित्रों की मापनी के समान ही है। वायंव फोटों पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी एवं उनकी वास्तविक धरातल पर दूरी के मध्य अनुपात को मापक कहते हैं। इसे इकाई समतुल्यता के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है; जैसे 1 =1,000 फुट या 12,000 इंच या निरूपक भिन्न 1/12,000. वायव फोटो की मापनी को निर्धारित करने की निम्नलिखित तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं

(1) प्रथम विधि : फोटो एवं धरातलीय दूरी के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना

यह विधि तब उपयोगी होती है जब वायव फोटो में कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध है; जैसे—धरातल पर दो पहचानने योग्य बिन्दुओं की दूरी, तो एक ऊर्ध्वाधर फोटो की मापनी सरलता से प्राप्त हो जाती है। यदि वायव फोटो पर मापी गई दूरी (Dp) के साथ धरातल (Dg) की संगत से दूरी ज्ञात हो तो वायव फोटो की मापनी को इन दोनों के अनुपात अर्थात् Dp/Dg में मापा जाएगा।

(2) द्वितीय विधि : फोटो दूरी एवं मानचित्र दूरी में सम्बन्ध स्थापित करना

विधि का उपयोग तब किया जाता है जब जिस क्षेत्र के फोटो में मापनी की गणना करनी है उस क्षेत्र को मानचित्र उपलब्ध हो। दूसरे शब्दों में, मानचित्र एवं वायव फोटो पर पहचाने जाने वाले दो बिन्दुओं के बीच की दूरी हमें वायव फोटो (Sp) की मापनी की गणना करने में सहायता प्रदान करती है। इन दोनों दूरियों के बीच के सम्बन्ध को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

(फोटो मापनी : मानचित्र मापनी) (फोटो दूरी : मानचित्र दूरी)

अतएव

फोटो मापनी (Sp) = फोटो दूरी (Dp) : मानचित्र दूरी (Dm) x मानचित्र मापनी कारक (mst)

(3) तृतीय विधि : फोकस दूरी (f) एवं वायुयान की उड़ान ऊँचाई (H) के बीच सम्बन्ध स्थापित करना

चित्र 6.1 के अनुसार ऊर्ध्वाधर फोटो में कैमरे की फोकस दूरी (f) तथा वायुयान की उड़ान (H) को सीमान्त जानकारी के रूप में लिया जाता है।

फोटो मापनी सूत्र को ज्ञात करने के लिए चित्र 6.1 का उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है

फोकस दूरी (f) : उड़ान ऊँचाई (H) = फोटो दूरी (Dp) : धरातलीय दूरी (Dg)

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. एक वायव फोटो में दो बिन्दुओं के बीच की दूरी को 2 सेमी मापा जाता है। उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच धरातल पर वास्तविक दूरी 1 किमी है तो वायव फोटो (Sp) की मापनी की गणना करें। . (पा०पु०पृ०सं० 92)

हल-Sp = Dp : Dg

(Sp = वायवे फोटो, Dp = फोटो में दो बिन्दुओं के बीच की दूरी, Dg = उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच धरातल पर वास्तविक दूरी)

Sp = Dp : Dg

= 2 सेमी : 1 किमी ।

= 2 सेमी : 1 x 1,00,000 सेमी (क्योंकि 1 किमी = 1,00,000 सेमी):

= 1: 1,00,000/2

= 50,000 सेमी

= 1 इकाई 50,000 इकाई को प्रदर्शित करती है।

इसलिए Sp = 1: 50,000

प्रश्न 2. एक मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच की दूरी का माप 2 सेमी है। वायव फोटो पर संगत दूरी 10 सेमी है। फोटोग्राफ की मापनी की गणना कीजिए, जबकि मानचित्र की मापनी | 1:50,000 है। (पा०पु०पृ०सं० 93)

हल-Sp = Dp : Dm x msf

(Sp = वायव फोटो, Dp = वायव फोटो की संगत दूरी, Dm = मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच दूरी, msf = मानचित्र की मापनी) |

Sp = Dp : Dm x msf

= 10 सेमी : 2 सेमी x 50,000

= 10 सेमी : 1,00,000 सेमी

अथवा 1 : 1,00,000/10 = 10,000 सेमी या 1 इकाई = 10,000 इकाई को व्यक्त करती है।

इसलिए Sp = 1 : 10,000

प्रश्न 3. एक वायव फोटो की मापनी की गणना कीजिए, जबकि वायुयान की उड्डयन ‘तुंगता 7,500 मीटर है तथा कैमरे की फोकस दूरी 15 सेमी है। (पा०पू०पृ०सं० 94)

हल-Sp = f : H ।

Sp = 15 सेमी : 7,500 x 100 सेमी

(क्योंकि 1 मीटर = 100 सेमी) |

`=\frac{1:75,00,000}{15}`

= 1 : 50,000

इसलिए Sp = 1 : 50,000

प्रश्न 4. फोटोग्राममिति (Photogrammetry) एवं प्रतिबिम्ब निर्वचन (Image Interpretation) से आप क्या समझते हैं? इनकी उपयोगिता बताइए।

उत्तर-फोटोग्राममिति

यह वायव फोटो द्वारा विश्वसनीय मापन का विज्ञान एवं तकनीक है। फोटोग्राममिति के सिद्धान्त ही वायव फोटो की परिशुद्ध लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई की माप प्रदान करते हैं। यह तकनीक स्थलाकृतिक मानचित्रों को तैयार करने और उनको अद्यतन बनाने में उपयोगी होती है।

प्रतिबिम्ब निर्वचन

प्रतिबिम्ब निर्वचन का अर्थ है फोटोग्राममिति द्वारा प्राप्त चित्र का अध्ययन एवं व्याख्या करना। अत: यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से सम्बन्धित निर्णय लेने की प्रक्रिया हैं। इसका उपयोग किसी क्षेत्र के वायव फोटो या सुदूर संवेदन चित्र के द्वारा भौगोलिक जानकारी और उनकी व्याख्या करने के लिए किया जाता है। किसी क्षेत्र की स्थलाकृतियों, वनस्पति, भूमि उपयोग, मिट्टी का प्रकार तथा अन्य भौतिक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों का सटीक अध्ययन द्वारा संसाधन, प्रबन्धन एवं नियोजन के लिए प्रतिबिम्ब निर्वचन अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 5. वायव फोटो के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-वायव फोटो के प्रकार वायव फोटो का वर्गीकरण कैमरा अक्ष, मापनी, व्याप्त क्षेत्र के कोणीय विस्तार एवं इनके उपयोग और प्रयोग फट तल में लाई गई फिल्म के आधार पर किया जाता है। कैमरे के प्रकाशिक अक्ष तथा मापक के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

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1. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो के प्रकार ।

कैमॅरी अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

(i) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ – जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के समान्तर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष (धरातलीय जल तथा फोटोतल) एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस आवर्त क्षेत्र प्रकार प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं (चित्र 6.2)।

(ii) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 15 से 30° के अभिकल्पित विचलन | के साथ लिए गए वायव फोटो को अल्प तिर्यक फोटोग्राफ कहते हैं (चित्र 6.3)। इस प्रकार के फोटोग्राफ प्रारम्भिक सर्वेक्षण में उपयोगी होते हैं।

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(iii) अति तिर्यक फोटोग्राफ-ऊर्ध्वाधर अक्षं से कैमरे की धुरी को लगभग 60° झुकाने पर एक | तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है। इस प्रकार के फोटोग्राफ भी प्रारम्भिक सर्वेक्षण में प्रयोग किए जाते हैं (चित्र 6.4)।

2. मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार

मापक के आधार पर वायव फोटो निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

(i) वृहत मापनी फोटोग्राफ-वृहत् मापनी वायव फोटोग्राफ की मापनी 1 : 15,000 तथा इससे अधिक होती है।

(ii) मध्यम मापनी फोटोग्राफ-मध्यम मापक वायव फोटोग्राफ 1 : 15,000 से 1 : 30,000 के मध्य होते हैं।

(iii) लघु मापनी फोटोग्राफ-लघुमापक वायव फोटोग्राफ 1 : 30,000 पर बने होते हैं।

प्रश्न 6. वायव फोटो की ज्यामिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर-धरातल के सापेक्ष किसी वायव फोटोग्राफ की अनुस्थापना को जानने के लिए वायव फोटो की ज्यामिति की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्येक वायव छायाचित्र केन्द्रीय प्रक्षेप पर होता है, क्योंकि विभिन्न धरातलीय लक्ष्यों से नि:सृत किरणें उड़ान रेखा पर स्थित सन्दर्श केन्द्र से होकर गुजरती हैं। केन्द्रीय प्रक्षेप की इन्हीं विशेषताओं के आधार पर धरतलीय भू-भाग के छाया चित्रण को चित्र 6.5 एवं 6.6 में केन्द्रीय प्रक्षेप के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। चित्र 6.5 में प्रक्षेपित किरणें Aa, Bb एवं Cc एक ही बिन्दु () से गुजरती है जिसे सन्दर्श केन्द्र कहते हैं। एक लेंस के ति को केन्द्रीय प्रक्षेप माना जाता है। ऊध्र्वाधर फोटोग्राफ की ज्यामिति को ।

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स्पष्ट किया गया है। चित्र में ‘S’ कैमरा लेंस का केन्द्र है। धरातलीय सतह से आती हुई किरण पुंज इस बिन्दु पर। अभिसृत हो जाती है तथा वस्तुओं के चित्र बनाने के लिए नेगेटिव (फोटो) की सतह की ओर अपसरित हो जाती है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि केन्द्रीय प्रक्षेप में संगत बिन्दुओं को मिलाने वाली सभी सीधी . रेखाएँ, जो वस्तु एवं आकृति के संगत बिन्दुओं को जोड़ती हैं, एक ही बिन्दु से होकर गुजरती हैं।

यदि कैमरा अक्ष से होते हुए नेगेटिव की सतह पर एक लम्ब खींचा जाए तो जिस बिन्दु पर लम्ब मिलता है, उसे प्रधान बिन्दु कहते हैं। जब इस रेखा को बढ़ाकर धरातल पर लाते हैं तो चित्र के अनुसार PG बिन्दु पर मिलेगी, किन्तु नेगेटिव पर मिलने पर यही बिन्दु अधोबिन्दु कहलाता है (देखिए चित्र 6.6)।

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प्रश्न 7.विभिन्न विशेषताओं के आधार पर वायव फोटोग्राफ के प्रकारों की संक्षेप में तुलना कीजिए।

उत्तर-वायव फोटोग्राफ के प्रकारों की तुलना

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प्रश्न 8. मानचित्र एवं वायव फोटो में अन्न्नर बताइए।

उत्तर-मानचित्र एवं वायव फोटो में अन्तर

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मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. वायव फोटोग्राफ क्या है?

उत्तर-वायुयान में लगे कैमरे द्वारा लिए गए फोटोग्राफ वायव फोटोग्राफ कहलाते हैं।

प्रश्न 2. प्रथम वायव फोटोग्राफ के विषय में बताइए।

उत्तर-प्रथम वायव फोटो 1858 में फ्रांस में एक गुब्बारे द्वारा लिया गया था। वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान का प्रयोग पहली बार 1909 में इटली के एक नगर का फोटो खींचने में किया गया था।

प्रश्न 3. भारत में शैक्षणिक उद्देश्य के लिए वायव फोटोग्राफ की क्या व्यवस्था है?

उत्तर-भारत में शैक्षणिक उद्देश्य के लिए वायव फोटो को APFS पार्टी नं० 73 को भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण निदेशालय के साथ जोड़कर सुलभता प्रदान की गई है।

प्रश्न 4. नत फोटोग्राफ क्या है?

उत्तर-ऊध्र्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3°से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को नत फोटोग्राफ कहा जाता है।

प्रश्न 5. क्या वायव फोटो से मानचित्र को अनुरेखित किया जा सकता है?

उत्तर-नहीं, क्योंकि प्रक्षेप तथा एक मानचित्र के सन्दर्भ एवं एक वायव फोटो के मध्य मूलभूत अन्तर होता है।

प्रश्न 6. ऑर्थोफोटो क्या है?

उत्तर-वायव फोटो से मानचित्र बनाने के पूर्व सन्दर्श दृश्य से समतलमिति दृश्य में परिवर्तन आवश्यक होता है। इस तरह के रूपान्तरित चित्रों को ऑर्थोफोटो कहा जाता है।

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