Class-XI Hindi Antra 11. सूरदास- खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहि भावति

Class-XI Hindi Antra 11. सूरदास- खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहि भावति
Class-XI Hindi Antra 11. सूरदास- खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहि भावति

पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'खेलन में को काको गुसैयाँ' पद में कृष्ण और सुदामा (श्रीदामा) के बीच किस बात पर तकरार हुई?

उत्तर :  बाल स्वभाव है कि बालक को खेल में जीतने पर जितनी प्रसन्नता होती है उससे कहीं अधिक दुःख हारने पर होता है। खेल में श्रीदामा जीत गए और कृष्ण हार गए। हारने के कारण उन्हें कैंप का अनुभव हुआ और खीझ आ गई। इसलिए उन्होंने दाँव देने से मना कर दिया। दाँव देने को लेकर दोनों में तकरार हो गई। श्रीदामा ने उनसे चुभने वाले शब्द कहे और साफ कह दिया कि यदि हमारे साथ खेलना है तो दाँव देना पड़ेगा। तब दोनों में सुलह हुई और कृष्ण ने दाँव दिया।

प्रश्न 2. खेल में रूठने वाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते ?

उत्तर : पद में प्रयुक्त 'रूठहि' शब्द का अर्थ 'रूठना' न लेकर सैहिठाई' या 'रूहठि' अर्थात् 'बेईमानी' करना लगाया जाय तो अधिक उपयुक्त है। वास्तव में दूसरा अर्थ ही उपयुक्त है। खेल में सभी बराबर होते है। इसलिए सभी को बराबर दाँव देना पड़ता है। खेल में जो हार जाय और बेईमानी करके दाँव न दे उसके साथ कोई खेलना पसन्द नहीं करता। खेल में हार-जीत स्वाभाविक है। दो दलों में से एक हारेगा ही। अगर हारने वाला दाँव न दे तो खेल होगा ही नहीं। कृष्ण ने भी बेईमानी करी। खेल तो लिए जब दाँव देने की बारी आई तो मना कर दिया। सखाओं ने उन्हें कटु शब्द कहे। खेल में खेल-भावना होनी चाहिए। जो दाँव नहीं देता उसे कोई अपने साथ नहीं खिलाता। इसलिए सभी उससे अलग हो जाते हैं।

प्रश्न 3. खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए क्या-क्या तर्क दिए ?

उत्तर : कृष्ण हारने पर रूठ गए और बेईमानी पर उतर आए। तब उनके सखाओं ने कटु शब्द कहे। उनसे कहा खेल में कोई बड़ा नहीं होता। सब बराबर होते हैं। जाति में भी तुम हम से बड़े नहीं हो। हम सभी एक ही जाति के हैं। तुम्हारी धौंस में नहीं रहते। अत: अकड़ो मत। तुम्हारे पास कुछ गाय अधिक हैं तो उसका रौब मत दिखाओ। तुम खेल में बेईमानी करते हो। इसलिए तुम्हारे साथ कोई नहीं खेलेगा। तुम हारे हो, इसलिए श्रीदामा को दाँव दो अन्यथा हम तुम्हारे साथ नहीं खेलेंगे।

प्रश्न 4. कृष्ण ने नंदबाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया ?

उत्तर : बच्चा खेल में हारने पर बेईमानी पर उतर आता है। किन्तु सखाओं के बहिष्कार करने पर उसे अपनी गलती का आभास होता है और वह दाँव दे देता है। कृष्ण भी हारने पर बेईमानी करने लगे और दाँव न देने की जिद पर अड़ गए। लेकिन सखाओं ने उनका बहिष्कार कर दिया और इधर-उधर जाकर बैठ गए तब उन्हें अपनी गलती का अनुभव हुआ। उन्होंने यह विश्वास दिलाने के लिए कि भविष्य में बेईमानी नहीं करेंगे और ईमानदारी से दाँव देंगे। इसलिए उन्होंने नंदबाबा की दुहाई दी।

 

प्रश्न 5. इस पद से बाल-मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है ?

उत्तर : सूरदास बाल-मनोविज्ञान के निपुण चितेरे थे। 'खेलन में को काको गुसैयाँ' पद में उन्होंने बाल स्वभाव का सजीव और सामाजिक चित्रण किया है। इस पद से बाल-मनोविज्ञान पर जो प्रकाश पड़ता है उसे कवि ने कृष्ण के बाल स्वभाव का वर्णन करके दर्शाने का प्रयास किया है। बच्चों की खेलने में बड़ी रुचि होती है। साथियों के साथ खेलने में उन्हें आनन्द आता है किन्तु हारना उन्हें बुरा लगता है। हारने पर वे क्रोधित हो जाते हैं और दाँव देने के समय वे बेईमानी करते हैं।

कुछ समय के लिए वे रूठकर अलग हो जाते हैं। पर शीघ्र ही फिर मिल जाते हैं और फिर मिलकर खेलने लगते हैं। बालकों के खेल में ऊँच-नीच, जाति-पाँति, अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं होता। सभी समान होते हैं। समानता के कारण कोई किसी पर अधिकार नहीं जमा सकता। जो खेल में रूठ जाता है, बेईमानी करता है या भेद-भाव फैलाता है, उसकी सभी उपेक्षा करते हैं और कोई उसके साथ खेलना पसन्द नहीं करता। इस प्रकार यह पद बाल मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है।

प्रश्न 6. 'गिरिधर नार नवावति' से सखी का क्या आशय है ? .

उत्तर : 'गिरिधर' शब्द श्लेषात्मक है। गिरि + धर अर्थात् पर्वत को धारण करने वाला शक्तिशाली और 'गिरिधर' अर्थात् श्रीकृष्ण। श्लेषार्थ के आधार पर कृष्ण पर व्यंग्य करती हैं। जो कृष्ण पर्वत को उठाने में नहीं झुके, वे ही कृष्ण इस मुरली के वशीभूत होकर उसके सामने गर्दन झुका देते हैं। अब इनकी चतुराई और बल कहाँ चला गया? वास्तविकता यह है कि मुरली बजाते समय गर्दन झुक ही जाती है। पर गोपियों का मुरली के प्रति सौतिया ढाह है। इस कारण वे कृष्ण के मुरली बजाते समय सहज रूप से गर्दन झुकाने को देखकर मुरली और कृष्ण दोनों को कोसती हैं।

प्रश्न 7. कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है?

उत्तर : गोपियाँ मुरली को अपनी सौत समझती हैं। इस कारण उनके हृदय में मुरली के प्रति द्वेष-भाव है। द्वेष में सत्य भी असत्य और सही भी गलत दिखाई देने लगता है। यही स्थिति यहाँ है। कृष्ण होंठ पर धरकर मुरली बजाते हैं। गोपियों ने मुरली को सौत और अधर को सेज मान लिया है। सेज कोमल होती है। कृष्ण के अधर भी कोमल हैं। सेज पर निश्चिन्त होकर लेटा जाता है। मुरली कृष्ण के होंठ पर स्थिर रूप में टिकी है। इसलिए गोपियाँ सोचती हैं कि हमारी सौत (मुरली) कृष्ण के होंठ रूपी सेज पर लेटी है। `

प्रश्न 8. पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर : संकलन में सूरदास के दो पद हैं। पहला पद वात्सल्य भाव का है और दूसरा पद शृंगार का है। इनकी विशेषताएँ निम्न हैं

(क) दोनों पद संगीत की राग-रागनियों पर आधारित गेय पद हैं।

(ख) ब्रजभाषा का प्रयोग है। माधुर्य गुण की प्रधानता है। 'करत रिसैयाँ', 'ग्वैयाँ', 'जनावति' आदि ठेठ ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

(ग) नाना भाँति नचावत, नगर नवावत, कोप करावति जैसे ब्रजभाषा के मुहावरों का प्रयोग किया है।

(घ) पहले पद में वात्सल्य रस है। बाल-स्वभाव का सुन्दर वर्णन है।

(च) दूसरे पद में संयोग भंगार का अनूठा ही वर्णन हआ है। नारी स्वभाव का अच्छा दिग्दर्शन है।

(छ) पहले पद में तर्क शैली है तो दूसरे पद में आरोपों की भरमार है। ईर्ष्या का भाव है।

(ज) अनुप्रास और रूपक अलंकारों का सहज प्रयोग है।

प्रश्न 9. निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -

(क) जाति-पाँति.............तुम्हारै गैयाँ।

(ख) सुनि री..............नवावति।

उत्तर : व्याख्या-खण्ड में व्याख्या देखें।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. खेल में हार कर भी हार न मानने वाले साथी के साथ आप क्या करेंगे? अपने अनुभव कक्षा में सुनाइये।

उत्तर : खेल में हार कर भी हार न मानने वाले विद्यार्थी को हम खेल से बाहर करेंगे तथा खेल में तभी शामिल करेंगे जब तक कि वह अपनी गलती स्वीकार न कर ले। विद्यार्थी स्वयं इस विषय में अपने मत का निर्णय लें।

प्रश्न 2. पुस्तक में संकलित 'मुरली तऊ गुपालहि भावति' पद में गोपियों का मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव व्यक्त हुआ है। गोपियाँ और किस-किसके प्रति ईर्ष्या-भाव रखती हैं, कुछ नाम गिनाइये।

उत्तर : गोपियाँ कुबड़ी दासी कुब्जा के प्रति भी ईर्ष्या-भाव रखती थीं। श्रीकृष्ण ने कुब्जा को अपने महल में स्थान दिया था और उसका कुबड़ापन ठीक कर दिया था।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. सूरदास का सबसे प्रमुख ग्रन्थ है -

(क) पद्मावत

(ख) सुजान-रसखान

(ग) सूरसागर

(घ) गीता।

प्रश्न 2. 'नार नवावति' में कौनसा अलंकार है?

(क) उपमा

(ख) रूपक

(ग) श्लेष

(घ) अनुप्रास

प्रश्न 3. 'अधर-सज्जा' में कौनसा अलंकार है?

(क) उपमा

(ब) रूपक

(स) उत्प्रेक्षा

(घ) अनुप्रास।

प्रश्न 4. खेल में अपनी हार कौन नहीं मानता?

(क) श्रीकृष्ण

(ब) श्रीदामा

(स) सखा

(घ) ग्वाला।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'खेलन में को काको गुसैयाँ' से कवि का क्या आशय है?

उत्तर : कवि का आशय है कि खेल में सभी खिलाड़ी बराबर होते हैं। उनमें छोटे-बड़े या स्वामी-सेवक जैसा कोई भेदभाव नहीं चलता है।

प्रश्न 2. सखाओं के खेल में कौन जीता और कौन हारा?

उत्तर :  खेल में श्रीकृष्ण हार गए और श्रीदामा जीत गए।

प्रश्न 3. श्रीकृष्ण के क्रोध करने को 'बरबस ही' क्यों कहा गया है?

उत्तर : खेल में कोई धनी हो या निर्धन, जाति में बड़ा हो या छोटा, सभी बराबर हुआ करते हैं। अतः हार जाने पर कृष्ण का क्रोध दिखाना एक प्रकार की जबरदस्ती है।

प्रश्न 4. श्रीकृष्ण के दाँव न देने पर सखाओं ने उनको क्या याद दिलाया?

उत्तर :  सखाओं ने कहा कि वे कृष्ण से न तो जाति-पाँति में हीन हैं, न वे कृष्ण के कृपा के सहारे रह रहे हैं।

प्रश्न 5. सखाओं के अनुसार श्रीकृष्ण खेल में किस बात को लेकर अकड़ दिखा रहे थे?

उत्तर :  सखाओं के अनुसार श्रीकृष्ण की अकड़ का कारण था कि उनके घर में श्रीदामा से अधिक गाएँ थीं।

प्रश्न 6. श्रीकृष्ण द्वारा दाँव न दिए जाने पर खेल का क्या हुआ?

उत्तर :  खेल रुक गया और सभी ग्वाल बाल जहाँ-तहाँ जाकर बैठ गए।

प्रश्न 7.खेल बंद होता देख श्रीकृष्ण ने क्या किया?

उत्तर :  खेल बंद होता देख श्रीकृष्ण को झुकना पड़ा। उनके मन में तो खेलने की लगन लगी थी। अतः उन्होंने नंद बाबा की शपथ लेकर श्रीदामा को दाँव देना स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 8. श्रीकृष्ण को मुरली बहुत प्रिय लगने को लेकर गोपियाँ कृष्ण पर क्या व्यंग्य करती हैं?

उत्तर : गोपियों कहती हैं कि यह मुरली कृष्ण को अनेक प्रकार से तंग करती रहती है, फिर भी यह उन्हें बड़ी अच्छी लगती है।

प्रश्न 9. मुरली कृष्ण पर अपना अधिकार किस रूप में जताती है?

उत्तर :  मुरली कृष्ण को एक पैर पर खड़ा रख कर उन पर अपना अधिकार जताया करती है।

प्रश्न 10. एक पैर पर खड़ा रखने का आशय क्या है?

उत्तर :  वंशी बजाते समय कृष्ण का एक पैर धरती पर तनिक सा टिका रहता है। इसी को गोपियाँ एक पैर पर खड़ा रखना बताती हैं।

प्रश्न 11. गोपियों के अनुसार कृष्ण की कमर टेढ़ी होने का कारण क्या है?

उत्तर :  गोपियों का मानना है कि वंशी कोमल अंगों वाले कृष्ण को एक पैर पर खड़ा रखकर कठोर आज्ञा का पालन कराती है। इसीलिए उनकी कमर टेढ़ी हो जाती है।

प्रश्न 12. गोपियों के अनुसार वंशी बजाते समय कृष्ण सिर क्यों झुका लेते हैं?

उत्तर : गोपियों के अनुसार वंशी ने कृष्ण पर कोई भारी उपकार किया है। इसलिये वह वंशी के प्रति कृतज्ञता दिखाने को गरदन झुका लेते हैं।

प्रश्न 13. गोपियों ने वंशी की शैया किसे माना है?

उत्तर : गोपियों ने कृष्ण के होठों को वंशी की शैया माना है जिन पर वह बजाते समय आराम से सोती रहती है।

प्रश्न 14. गोपियाँ वंशी द्वारा अपने पैर दबवाना किसे मानती हैं?

उत्तर : वंशी बजाते समय कृष्ण उसके छिद्रों पर अँगुलियाँ चलाते रहते हैं। इसे ही गोपियाँ कृष्ण द्वारा वंशी के पैर दबाना मानती हैं।

प्रश्न 15. वंशी कृष्ण को गोपियों पर क्रोध कैसे कराती है?

उत्तर :  वंशी बजाते समय कृष्ण की भौंहें तन जाती हैं, नेत्र स्थिर हो जाते हैं और नथुने फूल जाते हैं। ये सभी क्रियाएँ क्रोध की सूचक हैं। गोपियाँ इसे वंशी द्वारा उन पर क्रोध कराना मानती हैं।

प्रश्न 16. वंशी बजाते समय कृष्ण का सिर झूमता रहता है। गोपियों के अनुसार इसका अर्थ क्या निकाला गया है?

उत्तर :  कृष्ण के सिर हिलाने का गोपियाँ यह अर्थ निकालती हैं कि जब कृष्ण तनिक-सी भी देर को उन पर प्रसन्न होते हैं तो वंशी सिर हिलवाकर मना करा देती है कि वह प्रसन्न नहीं हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

कथ्य पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.'खेलन में को काको गुसैयाँ' पद में सूर ने बाल स्वभाव का वर्णन किया है। उसे स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : सूर बाल स्वभाव के पारखी हैं। प्रस्तुत पद में भी खेलते समय बराबर वाले साथियों में विवाद हो जाया करता है, इसका बहुत आकर्षक वर्णन किया है। कृष्ण हारने पर दाँव नहीं देते तब सखाओं का उन्हें लताड़ना देखते ही बनता है। वे कहते हैं कि तुम जाति-पाँति में हमसे बड़े नहीं हो। तुम्हारे पास गायें अधिक हैं तो तुम बड़े नहीं हो गए हो। खेल में सभी बराबर हैं। अगर हमारे साथ खेलना चाहते हो तो श्रीदामा का दाँव दो। तुम किस कारण हम पर अधिकार जमाते हो। खिलाड़ी मित्र आपस में मिलकर हारने वाले को कैसे लज्जित करते हैं। इसका बहुत अच्छा वर्णन इस पद में है।

प्रश्न 2. 'मुरली तऊ गुपालहिं भावति' के 'तऊ' शब्द में गोपियों के मन की कसक को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : 'तऊ' कहकर गोपियाँ अपनी आन्तरिक पीड़ा व्यक्त करती हैं। कृष्ण मुरली को बजाते हुए इतने तल्लीन हो जाते हैं कि उन क्षणों में उन्हें किसी का ध्यान नहीं रहता। कभी वे एक पैर पर खड़े हो जाते हैं, कभी गर्दन को हिलाते हैं। मुरली में फूंक मारते समय उनके नथुने फूल जाते हैं, भौहें भी बंकिम हो जाती हैं। उसके छिद्रों पर अंगुलियाँ कभी धरते हैं कभी उठाते हैं। गोपियों को कृष्ण का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता। मुरली ने कृष्ण को अपने वश में कर रखा है। गोपियाँ कृष्ण की इन मुद्राओं द्वारा यही सिद्ध करना चाहती हैं। उन्हें कृष्ण की इन चेष्टाओं में अपनी उपेक्षा दिखाई देती है। उनकी यही पीड़ा उनके आरोपों में झलक रही है।

प्रश्न 3. 'मुरली तऊ गुपाल हिं भावति' पद में सौतिया भाव व्यक्त हुआ है। कैसे ?

उत्तर : मुरली सदैव कृष्ण के पास रहती है। इस कारण गोपियाँ उससे सौत का व्यवहार करती हैं। यह मुरली बड़ी डीठ है। यह हमारे कन्हैया पर अधिकार जमाती है। उनके मन में हमारे प्रति क्रोध पैदा करती है। मुरली के सामने उनकी चतुराई नहीं चलती। अब उनकी चतुराई कहाँ चली गई। यह बड़ी निर्लज्ज है, उनकी अधर शैया पर लेटकर उनसे पैर दबवाती है, सेवा कराती है। हमें तो उन्होंने भुला दिया है। वंशी पर गोपियों के ये सारे आरोप उनके मन में वंशी के प्रति सौतिया भाव को ही व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 4. सखाओं ने कृष्ण को क्या धमकी दी और क्यों दी ?

उत्तर : कृष्ण सखाओं के साथ खेल रहे थे। खेल-खेल में वे हार गए। बाल स्वभाव के अनुसार वे अकड़ गए और बेईमानी करने लगे। दाँव देने को तैयार नहीं हुए। तब सखाओं ने उनसे स्पष्ट कह दिया कि यदि हमारे साथ खेलना ही चाहते हो तो तुम खेल के नियमों का पालन करोगे। हार जाने पर तुम्हें दाँव देना पड़ेगा। जो खेल में दाँव देने पर रूठ जाए और बेईमानी करे उसके साथ हम में से कोई नहीं खेलेगा। कृष्ण को विवश होकर दाँव देने को तैयार होना पड़ा।

प्रश्न 5. मुरली बजाते समय कृष्ण की जो शारीरिक स्थिति होती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : कृष्ण जब मुरली बजाते हैं तो उनकी मुद्रा त्रिभंगी हो जाती है। वे एक पैर को उठा लेते हैं और एक ही पैर पर खड़े हो जाते हैं। मुरली को अधर पर रखकर दोनों हाथों से पकड़ लेते हैं और एक हाथ की अंगुलियों को मुरली के छिद्रों पर चलाते हैं। वे मुरली में जब फेंक देते हैं तो उनके नथुने फूल जाते हैं और भौंहें टेढ़ी हो जाती हैं। उनकी गर्दन एक ओर झुक

जाती है और सिर मस्ती में, आनन्द में झूमने लगता है। उनकी कमर टेढ़ी हो जाती है। वे मुरली बजाते हुए थिरकने लगते हैं। इस प्रकार मुरली वादन के समय उनकी शारीरिक स्थिति सामान्य नहीं रहती। निबंधात्मक प्रश्नोत्तर :

काव्य-सौन्दर्य पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1. काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से पठित पदों की समीक्षा कीजिए।

उत्तर : काव्य-सौन्दर्य की समीक्षा के लिए दो पक्षों पर विचार करना आवश्यक है—एक भाव पक्ष, दूसरा कला पक्ष। दोनों पक्षों को पृथक से देखना आवश्यक है।

भावपक्ष - सूरदास बाल-मनोविज्ञान के चितेरे हैं। उन्होंने पहले पद में कृष्ण एवं सखाओं की मनःस्थिति का मनोहारी जीवन्त चित्रण किया है। सखाओं के साथ खेलते समय हार जाने पर कृष्ण किस प्रकार रूठते हैं और बालक उन्हें किस प्रकार ताने देते हैं, इसका बहुत आकर्षक वर्णन किया है। सखा किस प्रकार तर्क देकर कृष्ण को दाँव देने के लिए विवश करते हैं, इसका वर्णन अद्वितीय है। सूर जैसा कवि ही इस प्रकार का वर्णन कर सकता है।

दूसरा पद मुरली माधुरी का है। शृंगार का पद है। कृष्ण मुरली से प्रेम करते हैं। मुरली-वादन करते समय वे आनन्दित होते हैं और उन क्षणों में सब कुछ भूल जाते हैं। गोपियों को यह नहीं सुहाता और वे मुरली तथा कृष्ण दोनों के प्रति अपनी खीझ प्रकट करती हैं। नारी स्वभाव का बड़ी गहराई से सूर ने वर्णन किया है। नारी में सौत की भावना कितनी भयंकर होती है, इसे सूर ने बड़ी कुशलता से व्यक्त किया है। भाव पक्ष की दृष्टि से दोनों पद बेजोड़ हैं।

कलापक्ष - सूर का भाव पक्ष जितना सबल है उतना ही कलापक्ष भी कौशल युक्त है। दोनों पद राग-रागिनी पर ... आधारित गेय पद हैं। दोनों में ब्रजभाषा का प्रयोग है। पहले पद में अभिधा शब्द शक्ति है तो दूसरे में व्यंजना शब्द शक्ति है। भाषा माधुर्य गुण से युक्त है तथा भावानुकूल है। दोनों पदों में संवाद शैली का प्रयोग किया है। भावति, नचावति, नवावति जैसे ब्रजभाषा के बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है। अनुप्रास, उपमा, रूपक अलंकारों का प्रयोग किया है। अधर-सज्जा, कर-पल्लव में रूपक अलंकार है। अति अधिकार, नार-नवावति में अनुप्रास अलंकार है। दोनों पदों को पढ़कर दो चित्र आँखों के सामने उभरकर आते हैं।

प्रश्न 2. गोपियों ने मुरली के प्रति ईर्ष्या का भाव किस प्रकार किया है ?

उत्तर : कृष्ण सहज रूप में मुरली बजाते हैं। उनकी शारीरिक मुद्रा बदल जाती है। गोपियाँ इस परिवर्तन का दोष मुरली को देती हैं। इसलिए कि ईर्ष्या के कारण मुरली पर दोषारोपण करती हैं। एक गोपी कहती है कि यह मुरली बड़ी दुष्ट है। कृष्ण के कोमल शरीर का ध्यान न रखकर भी यह उन्हें कठोर आज्ञा देकर उन्हें अपना कृतज्ञ बना लेती है। कृष्ण हम से प्रेम करते हैं, यह उसे बुरा लगता है। इस कारण वह उन्हें सिखाकर हमारे प्रति. कोप कराती है और गर्दन हिलवाकर यह कहला देती है कि वे हमसे प्रेम नहीं करते। इस मुरली ने हमसे हमारा प्यारा कृष्ण छीन लिया जिन्हें हम प्राणों से भी प्यारा समझती हैं। इस प्रकार गोपियों ने अपनी ईर्ष्या व्यक्त की।

प्रश्न 3. पठित पदों के आधार पर सूर की भाषा पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर : जिस भाषा में सभी प्रकार के भावों को सहजता से अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है, वह भाषा जीवन्त भाषा कहलाती है। सूर की भाषा जीवन्त भाषा है। उनकी भाषा में भावों को चित्र रूप में प्रस्तुत करने की क्षमता है। दोनों पदों में दो चित्र उभरकर सामने आते हैं। सूरदास की भाषा ब्रजभाषा है। उन्होंने गुसैयाँ, छैयाँ, ग्वैयाँ, दुहैयाँ, भावति, पलुटावति जैसे दैनिक बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करके भाषा को जीवन्तता प्रदान की है। उनके अन्य पदों में जन प्रचलित ब्रजभाषा का परिष्कृत रूप भी देखने को मिलता है। मुहावरों और अलंकारों का अप्रयास प्रयोग हुआ है। अभिधा शब्द शक्ति के साथ लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग अधिक हुआ है। भाषा माधुर्य गुण प्रधान है।

प्रश्न 4. "सूर अपने पदों में बाल-लीला एवं गोपी प्रेम की अभिव्यक्ति द्वारा अपनी कृष्ण-भक्ति को प्रमाणित करते हैं।" क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : सूरदास भक्तिकाल की कृष्णभक्ति शाखा के सगुणोपासक कवि हैं। उनका सम्पूर्ण काव्य कृष्ण भक्ति पर केन्द्रित है। बाल लीला के पदों में उन्होंने श्रीकृष्ण की विविध छवियों को उभारकर अपनी कृष्ण भक्ति का परिचय दिया है मापात तो गोपी प्रेम प्रसंग उनका दूसरा पक्ष है, जिसमें सूर ने गोपियों के प्रेम में इतनी विह्वलता दिखाई है कि श्रीकृष्ण के मुरली वादन को भी ईर्ष्या का कारण बना देती हैं। दोनों ही स्थितियों में उनका काव्य कृष्णभक्ति की घोषणा करता सा प्रतीत होता है। श्रीनाथ जी के समक्ष कीर्तन करते समय सूरदास को, श्रीकृष्ण की जिस छवि का ध्यान हो जाता था उसी तरह का पद गाकर सुना दिया जाता था। अतः उनका काव्य कविता की दृष्टि से नहीं बल्कि भक्ति की दृष्टि से ही देखना चाहिए। उनका लक्ष्य काव्य रचना न होकर प्रभु श्रीकृष्ण को रिझाना था। साथ ही अपने गुरु बल्लभाचार्य जी की पुष्टिमार्ग की धारणा को बल प्रदान करना था।

प्रश्न 5. सूर प्रमुख रूप से वात्सल्य और श्रृंगार के कवि हैं। पदों के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर : सूर के पदों का अवलोकन करने पर हमें ज्ञात होता है कि सूर ने भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप पर केन्द्रित अनेक पद लिखे हैं। इसके कारण उन्हें वात्सल्य रस का प्रवर्तक भी माना जाने लगा। लेकिन सूर के दूसरे पक्ष को भुला देना हमारी भूल होगी। वास्तव में उन्होंने कृष्ण, राधा एवं गोपियों से प्रेम सम्बन्धी अनेक पद संयोग एवं वियोग श्रृंगार के भी लिखे हैं। हमारे संकलन अन्तरा में दो पद संकलित हैं। इनमें एक पद बाल लीला का तथा दूसरा पद मुरली माधुरी का है। गोपियाँ कृष्ण के मुरली प्रेम से सौतिया डाह करती हैं। उनकी ईर्ष्यापूर्ण उक्तियों का ही सूर ने इस पद में स्थान दिया है। एक ओर बालक गेंद खेलने में श्रीकृष्ण का बड़े घर का होने पर तीखा प्रहार करते हैं, लेकिन जब वे खेल का बहिष्कार कर देते हैं तो श्रीकृष्ण को झुकना पड़ता है। दूसरे पद में मुरली द्वारा कृष्ण से मनचाहे कार्य कराने से ईर्ष्या करती है। इस प्रकार काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से दोनों पद श्रेष्ठ काव्य के उदाहरण हैं।

प्रश्न 6. सर का अलंकार विधान उनकी कृष्ण भक्ति को ही पुष्ट करता है, संकलित पदों के आधार पर बताइए।

उत्तर : सूरदास मूलरूप से कृष्णभक्त कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जो अलंकार योजना की है वह भी कृष्ण भक्ति से प्रेरित ही है। काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से देखने पर हमें विदित होता है कि सूर का काव्य शिल्प, उनका अलंकार विधान . एवं ब्रजभाषा सभी कृष्ण भक्ति की प्रेरक बन जाती है। प्रथम पद में अनुप्रास शब्दालंकार को इसी दृष्टि से देखना होगा जैसे - को काको, हरि हारे, कत करत, अति अधिकार दाउँ दियो आदि अनुप्रास अलंकार के उदाहरण हैं। दूसरे पद में "आपुन पांढि अधर सज्जा पर, कर पल्लव पलुटावति" में सांगरूपक अलंकार है। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि सूर का अलंकार प्रयोग भी उनकी कृष्ण भक्ति को ही प्रकट करता है।

रीतिकाल में रीति काव्यधारा के प्रमुख कवि देव का जन्म इटावा (उत्तर प्रदेश) में सन् 1673 ई. में हुआ था। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। महाकवि देव किसी एक आश्रयदाता राजा के पास अधिक समय तक नहीं टिके। केवल राजा भोगीलाल के दरबार में अधिक समय तक टिके। इनका निधन सन् 1767 ई. में हुआ।

रीतिकालीन कवियों में देव का विशिष्ट स्थान था। ये रसवादी कवि थे। राजदरबार में आश्रयदाताओं के पास रहने के कारण इनके काव्य में जीवन के विविध दृश्यों का अभाव है। किन्तु प्रेम और सौन्दर्य का मार्मिक वर्णन आपने किया है। अलंकारों में अनुप्रास और यमक के प्रति देव को विशेष आकर्षण था। उनके काव्य में सुन्दर ध्वनि-चित्र मिलते हैं। श्रृंगार वर्णन बहुत आकर्षक है। देव ने कवित्त-सवैया में काव्य रचना की। आपने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया।

भाषा में लाक्षणिकता और व्यंजना शब्द शक्ति का सहजता से प्रयोग हुआ है। भाव, भाषा और शिल्प की दृष्टि से देव ) श्रेष्ठ कवि हैं।

देव कृत रचनाओं की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। इनके प्रमुख ग्रन्थ रसविलास, भावविलास, भवानी विलास, अष्टयाम, प्रेम दीपिका आदि हैं।

खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहि भावति (सारांश)

कवि परिचय :

भक्ति काल की सगुण काव्य धारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास का जन्म आगरा (उत्तर प्रदेश) के पास स्थित रुनकता ग्राम में सन् 1478 ई. में माना जाता है। कुछ विद्वान दिल्ली के पास सीही ग्राम को उनका जन्म-स्थान मानते हैं। जनश्रति है कि वे जन्मान्ध थे। 'पारसोली' गोवर्धन में सन् 1583 ई. में देहत्याग करके गोलोकवासी हो गए।

सूरदास मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे। वे महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के शिष्य थे। उनके पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर आप अष्टछाप के कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि हो गए। आपने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर उनके मथुरा गमन, गोपी उद्धव संवाद एवं कृष्ण के ब्रज प्रेम को लेकर आकर्षक पद रचना की। वे बाल मनोविज्ञान का चित्रण करने वाले सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। आपने कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन सहजता, स्वाभाविकता और मनोवैज्ञानिकता के आधार किया है जो अद्वितीय है।

उन्होंने वात्सल्य, शृंगार और भक्ति तीनों रसों में काव्य-रचना की है। किन्तु वात्सल्य वर्णन में उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली है। सूर की भाषा सरल ब्रजभाषा है। आपने ब्रजभाषा के प्रचलित शब्दों और मुहावरों का सहजता से प्रयोग किया है। आपने पद शैली को अपनाया। सूरदास का अलंकार विधान उत्कृष्ट है। उसमें शब्द-चित्र क्षमता है। आपने अपने काव्य में अनेक अलंकारों के साथ उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक का कुशल प्रयोग किया है। वात्सल्य रस के साथ अंगार के दोनों पक्षों का वर्णन किया है।

रचनाएँ - आपकी प्रमुख रचना 'सूरसागर' है। इसके अतिरिक्त सूरसारावली और साहित्यलहरी भी उनकी दो महान् कृतियाँ हैं।

पाठ-सार :

प्रथम पद का सार - बाल मनोविज्ञान के प्रमुख अंग 'खेलभावना' का सुन्दर चित्रण किया है। श्रीकृष्ण खेल में हार जाने पर भी अपनी हार स्वीकार नहीं करते हैं। श्रीदामा ने जो स्वाभाविक कथन किया है, उसका सहज वर्णन है। खेल में नहीं होता। हारने पर दाव देना ही पड़ेगा, इसका बहत आकर्षक वर्णन है। श्रीकृष्ण अन्त में दाव देने को तैयार हो जाते हैं।

द्वितीय पद का सार - 'मुरली माधुरी' का पद है। सौतिया ढाह (ईर्ष्या) का भाव है। गोपियाँ मुरली वादन के समय कृष्ण की शारीरिक स्थिति और भाव-भंगिमा को देखकर यह समझती हैं कि मुरली ने कृष्ण पर अधिकार जमा लिया है। इसलिए वे उससे ईर्ष्या करती हैं। उन्हें मुरली का अधरों पर धरना, कृष्ण का एक पैर से खड़ा होना, त्रिभंगीरूप बनाना अच्छा नहीं लगता। इसलिए गोपियाँ मुरली और कृष्ण दोनों को दोष देती हैं।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ -

पद 1

खेलन में को काको गुसैयौं।

हरि-हारे जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयौं।

जाति-पाँति हमरौं बड़ नाही, नाही बसत तुम्हारी छैयाँ।

अति अधिकार जनावत यातै, जातें अधिक तुम्हारै गैयाँ।

रूठहि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ ग्वैयाँ।

सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाऊँ दियौ करि नंद-दुहैयाँ।

शब्दार्थ :

को = कोई।

काको = किसका।

गुसैयाँ = गोस्वामी, स्वामी, मालिक, बड़ा।

बरबस = बलपूर्वक, बेमतलब।

कत = क्यों।

रिसैया = गुस्साना, कोप प्रकट करना।

बड़ = बड़ा, ऊँचा।

छैया = शरण, छाया।

अधिकार जनावत = प्रभाव दिखाना, रौब गाँठना।

रूठहि करै = बेईमानी करना।

ग्वैया = जा जा कर।

दाऊँ = दाँव, बारी या पारी।

दुहैया = दुहाई, कसम या सौगन्ध।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त कवि सूरदास की प्रसिद्ध कृति 'सूरसागर' से उद्धृत और अंतरा भाग-1 के काव्य खंड में संकलित है।

प्रसंग - श्रीकृष्ण सखाओं के साथ खेलते समय हार जाते हैं और दाँव देने से मना कर देते हैं। श्रीदामा ने उनसे समानता का व्यवहार करने का उलाहना दिया और दाँव देने के लिए कहा। कृष्ण अपनी हार मानने को तैयार नहीं हैं। बाल स्वभाव का सुन्दर चित्रण इस पद में हुआ है।

व्याख्या - कृष्ण सखाओं के साथ खेलते समय हार गये हैं और दाँव देने से मना करते हैं तब श्रीदामा उनसे कहते हैं कि कृष्ण खेल में कोई बड़ा-छोटा या स्वामी-सेवक नहीं होता। खेल में सभी बराबर होते हैं। खेल में श्रीदामा जीत गए और कृष्ण हार गए तो वह क्रोध में आ गए। इस पर ग्वालों ने उनसे कहा कि उनका क्रोध करना अनुचित है। व्यर्थ की हठ है। स्पष्टवादी श्रीदामा ने कहा कि तुम अपने आप को नन्द बाबा का पुत्र समझकर अपने को बड़ा समझ रहे हो। तुम्हारी जाति और गोत्र हमसे बड़ा नहीं है। हम तुम्हारी शरण में नहीं रहते, तुम्हारे दास नहीं हैं। जाति में तुम अहीर हो हम भी अहीर हैं। हम तुम बराबर हैं।

ग्वाल - बालों ने भी कहा कि हम तुम बराबर हैं। यदि तुम अधिक धनवान होने का घमंड करते हो और तुम्हारे पास हमसे अधिक गायें हैं तो इससे तुम बड़े नहीं हो जाते। सभी ग्वालों ने एक साथ कहा कि खेल में जो बेईमानी करे और हार कर भी दाँव न दे उसके साथ कोई नहीं खेल सकता। खेलों में जो ऊँच-नीच का व्यवहार करे उसके साथ कौन खेलना पसन्द करेगा, ऐसा कहकर और कृष्ण को चेतावनी देकर सभी सखा (ग्वाले) इधर-उधर जाकर बैठ गए। सखाओं का विद्रोही तेवर देखकर कृष्ण का घमण्ड चूर हो गया। अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप करते हुए और नन्द बाबा की सौगन्ध खाकर उन्होंने यह विश्वास दिलाया कि अब भविष्य में ऐसा नहीं होगा। वे दाँव देने को तैयार हो गए। सूरदास कहते हैं कि सखाओं ने भी कृष्ण से कहा कि यदि हमारे साथ खेलना चाहते हो तो तुम्हें नन्दबाबा की दुहाई है, दाँव दिया करो। इस प्रकार सभी खेलने लगे।

विशेष :

1. बाल स्वभाव का सूक्ष्म वर्णन है।

2. सख्यभाव की भक्ति का उदाहरण है।

3. ब्रज भाषा का सहज और स्वाभाविक प्रयोग है।

4. को काको, हरि हारे, कत करत में अनुप्रास की छटा है।

5. वत्सल रस है, प्रसाद गुण है।

पद 2

मुरली तऊ गुपालहिं भावति।

सुनि री सखी जदपि नंदलालहिं, नाना भाँति नचावति।

राखति एक पाई ठाढ़ी करि, अति अधिकार जनावति।

कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ी है आवति।

अति आधीन सुजान कनौड़े, गिरिधर नार नवावति।

आपुन पौढ़ि अधर सज्जा पर, कर पल्लव पलुटावति।

भुकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप-करावति।

सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धर तैं सीस डुलावति।।

शब्दार्थ :

तऊ = फिर भी, विवश होकर।

भावति = अच्छी लगती है।

जदपि = यद्यपि, फिर भी।

नचावति = नाच नचाना, इशारे से काम कराना।

पाँई = पैर।

जनावति = प्रकट करती।

कटि = कमर।

आधीन = वश में।

सुजान = चतुर।

कनौड़े = दास, कृतज्ञ, कृपापात्र।

गिरिधर = कृष्ण, गिरि (पर्वत) को धारण करने वाले।

नार = गर्दन।

नवावति = झुकाना।

आपुन = स्वयं।

पौढ़ि = विश्राम करना, लेटना।

अधर = ओष्ठ।

पलुटावति = दबवाना।

भुकुटी = भौंह।

कुटिल = टेढ़ी, तिरछी।

पुट = छिद्र।

कोप = क्रोध।

छिन = क्षण।

धर = धड़।

डुलावति = हिलवाती।

संदर्भ - प्रस्तुत पद बाल स्वभाव का मनोवैज्ञानिक, चित्रण करने वाले सूरदास की प्रसिद्ध कृति 'सूरसागर' से उद्धृत है और यह अंतरा भाग-1 के काव्य खंड में संकलित सूरदास नामक पाठ में दिया हआ है। 'प्रसंग-मुरली बजाते समय कृष्ण की आंगिक क्रियाओं और हाव-भाव को देखकर गोपियाँ कृष्ण को वंशी के वश में समझ बैठती हैं। इससे उनके हृदय में मुरली के प्रति सौतिया ढाह और कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव जाग्रत होता है। इस पद में गोपियों की सोच का वर्णन हुआ है।

व्याख्या - कृष्ण मुरली बजाते समय जिस प्रकार अंग संचालन करते हैं, उसे देखकर गोपियाँ यह समझती हैं कि कृष्ण मुरली के आदेश का पालन कर रहे हैं। इसे देखकर गोपियाँ आपस में बात करती हैं। एक गोपी दूसरी से कहती है कि मुरली कृष्ण के साथ कितनी कठोरता का बर्ताव करती है, उनसे मनमाना काम कराती है फिर भी ये उस मुरली से प्रेम करते हैं। हम इन्हें सताती नहीं; तंग नहीं करतीं फिर भी ये हमसे दूर-दूर रहते हैं। मुरली में कृष्ण ने क्या गुण देखे हैं, जो उससे प्रेम करते हैं और साथ रखते हैं। कृष्ण मुरली बजाते समय अपने हाथ-पाँव नचाते हैं, अनेक प्रकार की मुद्रा बनाते है, गोपियों समझती है मुरली उन्हें तंग कर रही है।

मुरली उन्हें एक पैर पर खड़ा रखती है और इस प्रकार उन पर अपना अधिकार जताती है। मानो कृष्ण को एक पैर पर खड़ा रहने का दंड दे रही हो। यथार्थ यह है कि कृष्ण मुरली बजाते समय एक पैर पर खड़े होते हैं और दूसरा पैर पहले पैर के साथ मिला देते हैं जिसे देखकर गोपियाँ समझती हैं कि कृष्ण मुरली की आज्ञा मानकर एक पैर पर खड़े रहते हैं। वह उनके कोमल शरीर का ध्यान नहीं रखती और कठोर आज्ञा देकर उन्हें तंग करती है।

वास्तविकता यह है कि कृष्ण जब मुरली बजाते हैं तो उनका शरीर त्रिभंगी रूप में हो जाता है, उनकी कमर झुक जाती है। गोपियाँ समझती हैं मुरली की कठोर आज्ञा से उनकी कमर झुक गई है। अपने को बड़े चतुर और योग्य समझने वाले कृष्ण भी उसके अधीन हो गए हैं। लगता है मुरली के किसी उपकार से दबे हुए हैं। तभी तो वह वंशी के सामने अपना सिर झुका लेते हैं। पर्वत को एक अंगुली पर उठाने वाले कृष्ण भी उसकी दासता स्वीकार कर लेते हैं। सच तो यह है कि मुरली बजाते समय गर्दन झुक जाती है। गोपियाँ समझती हैं कि कृष्ण ने मुरली का आधिपत्य स्वीकार कर लिया है। कृष्ण होठों पर मुरली को रखकर और उसके छिद्रों पर अंगुली रखकर बजाते हैं।

गोपियाँ समझती हैं कि मुरली निर्लज्ज है। वह कृष्ण के होठोंरूपी शैया पर लेटकर उनसे अपने पैर दबवाती है। मुरली कृष्ण को सिखाकर हम पर कोप कराती है। क्रोध के कारण उनकी भौंहें टेढ़ी हो जाती हैं और नथुने फूल जाते हैं। पर ऐसा नहीं है। मुरली बजाते समय सहज ही भौंह टेढ़ी हो जाती हैं और नथुने फूल जाते हैं। मुरली बजाते समय कृष्ण गर्दन भी हिलाते हैं। गोपियों कहती हैं जब कृष्ण एक क्षण के लिए भी प्रसन्न होते हैं तो वह गर्दन हिलवाकर मना करा देती है कि वे हम गोपियों से प्रसन्न नहीं हैं। आशय यह है जब कृष्ण मुरली बजाते समय प्रसन्न होते हैं तो आनन्द से अपना सिर हिलाने लगते हैं।

विशेष :

1. गोपियों का मुरली के प्रति सौतिया ढाह दिखाया है।

2. मुरली बजाते समय कृष्ण को विभिन्न मुद्राओं का वर्णन है।

3. ब्रज भाषा का प्रयोग है और व्यंजना शब्द शक्ति है।

4. नार नवावत, अति आधीन, कोप करावति में अनुप्रास अलंकार है। अधर-सज्जा, कर-पल्लव में रूपक अलंकार है। 

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