Class-XI Hindi Antra 16. नरेंद्र शर्मा - नींद उचट जाती है

Class-XI Hindi Antra 16. नरेंद्र शर्मा - नींद उचट जाती है
Class-XI Hindi Antra 16. नरेंद्र शर्मा - नींद उचट जाती है

पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कविता के आधार पर बताइये कि कवि की दृष्टि में बाहर का अँधेरा भीतरी दुःस्वप्नों से अधिक भयावह क्यों है?

उत्तर : कविता 'नींद उचट जाती है' में कवि नरेन्द्र शर्मा ने नींद उचट जाने का कारण वे दुःस्वप्न बताए हैं जो मनुष्य को भयभीत करके सोने नहीं देते। लेकिन विचारशील व्यक्ति समाज में व्याप्त अव्यवस्था, शोषण-उत्पीड़न और अज्ञानता को बुरे सपनों से भी अधिक भयानक मानता है। यह वह बाहरी अँधेरा है जो व्यक्ति के मन को बुरे भय से व्याप्त कर देता है। वह इन कारणों को दूर करने का प्रयत्न करने में अपने आपको असमर्थ पाता है लेकिन मनुष्य के भीतरी दुःख और कष्टों से ज्यादा बाहर व्याप्त दुःख है। कवि की दृष्टि से बाहर का अँधेरा भीतरी दुःस्वप्नों से ज्यादा भयानक इसीलिए है।

प्रश्न 2. अन्दर का भय कवि के नयनों को सुनहली भोर का अनुभव क्यों नहीं होने दे रहा है?

उत्तर : कवि समाज में व्याप्त पिछड़ेपन, जागरूकता के अभाव के कारण निराश और चिंताग्रस्त है। कवि की यह मन:स्थिति उसे चैन से सोने भी नहीं देती। दःस्वप्न देखकर उसकी नींद उचट जाती है। वह स करवटें बदलता रहता है। उसके हृदय में निराशारूपी अंधकार ने अधिकार कर रखा है। इस भीतर के अँधेरे से भी अधिक डराने वाला बाहर का अंधकार है। रात बीतने में ही नहीं आती। निरंतर अंधकार के कारण उसकी आँखें प्रभात की प्रतीक्षा में व्याकुल हो उठी हैं। मन के चिंताग्रस्त होने, बुरे सपने आने और नींद न आने से कवि को लगता है कि यह रात बहुत लंबी हो गई है। उसे लगता है कि सबेरा होने वाला है परंतु सबेरे की सुनहरी भोर के दर्शन उसे नहीं हो पा रहे हैं।

प्रश्न 3. कवि को किस प्रकार की आस रात भर भटकाती है और क्यों ?

उत्तर : संसार में व्याप्त शोषण-उत्पीड़न और अज्ञानता का घोर अन्धकार कवि और चिन्तनशील विचारकों को शोषणरहित, ज्ञानवान समाज की आशारूपी प्रभात की कल्पना से प्रसन्न तो कर देता है लेकिन वह आशारूपी सुनहला प्रभात आ नहीं पाता है। अज्ञान का अँधेरा इतना भयावह है कि उसके मन में यह विश्वास ही उत्पन्न नहीं होता कि उसकी आशा कभी पूरी हो सकेगी। अत: यह शोषणरहित, अज्ञान-शून्य समाज की आशा उसे रात के अंधेरे में भटकाती है। उसकी कामना पूरी नहीं हो पाती है।

प्रश्न 4. कवि चेतन से फिर जड़ होने की बात क्यों कहता है ?

उत्तर : कवि देखता है कि अज्ञान, पिछड़ेपन और चिंताओं का अँधेरा बढ़ता ही जा रहा है, इससे उसके मन का भय और अधिक बढ़ जाता है। आशा की सुनहली किरण उससे दूर चली जाती है। कवि यहाँ तक निराश हो जाता है कि वह सोचने लग जाता है कि जब तक इस धरती से निराशा का अँधेरा दूर नहीं हो जाता तब तक वह सोता ही रहे, उसकी चेतना समाप्त हो जाए और वह जड़ हो जाए। जड़ बना रहेगा तो वह संसार के दुःखों के प्रति संवेदनशील नहीं रहेगा। अतः सुख से सो सकेगा।

प्रश्न 5. अंधकार भरी धरती पर ज्योति चकफेरी क्यों देती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि देखता है कि विचारशील लोग इस धरती के अज्ञान, भय, आशंका, शोषण-उत्पीड़न आदि सभी कष्टों को दर कर देना चाहते हैं लेकिन मानव स्वयं अपनी निराशा के कारण नयी चेतना को ग्रहण नहीं कर इतना आक्रान्त है कि आशा की किरण को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा है। आशा की ज्योति निरन्तर उसके चारों ओर चक्कर लगा रही है, पर अज्ञान का अन्धकार इस ज्योति को धरती पर फैलने ही नहीं दे रहा है, यह और भी निराशाजनक स्थिति है जिससे कवि और अधिक दुःखी हो जाता है।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए -

(क) आती नहीं उषा, बस केवल

आने की आहट आती है!

उत्तर :

(क) भाव-निराशापूर्ण वातावरण से कवि दुश्चिन्ताओं और भय से घिर गया है। वह समाज में व्याप्त निराशा, अज्ञान और शोषण-उत्पीड़न को समाप्त करके समाज को सखी और विकास से युक्त देखना चाहता है। परन्त समाज में वह सुख-समृद्धि नहीं आ पाती है, केवल उसका आभास मात्र अनुभव होता है। इससे समाज को वास्तविक सुख प्राप्त नहीं हो पाता। कवि का असन्तोष भी सदैव बना रहेगा।

(ख) करवट नहीं बदलता है तम,

मन उतावलेपन में अक्षम!

उत्तर :

(ख) भाव-समाज में व्याप्त अज्ञानता का अँधेरा दूर नहीं हो रहा है। कवि शीघ्रातिशीघ्र इस कष्ट और भय के वातावरण को दूर कर देना चाहता है परन्तु उसका व्याकुल मन अपने आपको असमर्थ पाता है। वह इस घोर अन्धकार को दूर नहीं कर पायेगा, ऐसी अक्षमता उसके मन में घर कर गई है। अत: वह भीतर ही भीतर दुःखी हो गया है।

प्रश्न 7. जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,

नहीं गई भव-निशा अँधेरी। उक्त पंक्तियों में जागृति', 'अनिद्रा' और 'भव-निशा अँधेरी' से कवि का सामाजिक सन्दर्भो में क्या अभिप्राय

उत्तर : 'जागृति' चेतना को कहते हैं। समाज में अज्ञान, शोषण-उत्पीड़न आदि का अँधेरा है, उसे दूर करने की चेतना ही जागृति है।

'अनिद्रा' नींद न आने की बीमारी को कहते हैं। समाज में व्याप्त अज्ञान, शोषण और उत्पीड़न सचेत प्राणी को सोने नहीं देते। यही अनिद्रा है। 'भव-निशा अँधेरी' से तात्पर्य है कि सारा संसार निराशा के घोर अंधकार में डूबा है। यही संसारव्यापी घोर अँधेरी रात है।

प्रश्न 8. "अन्तर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है।" पंक्ति में 'अंतर्नयन' और 'तम की शिला' से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर : 'अन्तर्नयनों' से कवि का आशय हृदय के नेत्र अर्थात् चिन्तन, विचार और सिद्धान्तों से है। विचारशील व्यक्ति समाज में व्याप्त अज्ञान, शोषण और उत्पीड़न से भीतर-ही-भीतर दु:खी हो जाता है। इसे ही अन्तर्नयन कहा गया है।

'तम की शिला' अज्ञान का अँधेरा इतना गहरा है कि वह एक भारी शिला की तरह कवि या विचारशील व्यक्ति के मन पर बैठ जाता है, जो हटाने पर भी नहीं हटता। घोर निराशा को ही वह शिला कहा गया है।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. क्या आपको लगता है कि बाहर का अँधेरा भीतर के अँधेरे से ज्यादा घना है ? चर्चा करें।

उत्तर : व्यक्ति समाज का ही एक अंग होता है, जब समाज में अज्ञान है, शंका है, भय है और निराशा है तो व्यक्ति इनसे कैसे बच पायेगा। अतः समाज में व्याप्त गहन अँधेरा व्यक्ति के मन के अँधेरे से ज्यादा घना होता है। व्यक्ति अपने मन की अज्ञानता के अँधेरे को दूर कर सकता है परन्तु समाज में व्याप्त घोर अँधेरे को कैसे दूर कर पायेगा। अतः निराश हो जाता है। इसलिए कवि ने बाहर के अँधेरे को भीतर मन के अंधकार से अधिक धना बताया है।

प्रश्न 2. संगीत शिक्षक की सहायता से इस गीत को लयबद्ध कीजिए।

उत्तर : छात्र स्वयं करें।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि की नींद उचट जाने पर -

(क) बुरे सपने नहीं आते

(ख) रात नहीं कट पाती

(ग) उसे डर लगने लगता है

(घ) वह प्रातः की प्रतीक्षा करने लगता है।

प्रश्न 2. बुरे स्वप्नों को देखकर -

(क) कवि चौंक कर जाग जाता है।

(ख) कमरे में टहलने लगता है।

(ग) भगवान का ध्यान करने लगता है।

(घ) बत्ती जलाकर बैठ जाता है।

प्रश्न 3. कवि को सपनों से भी भयानक लगता है -

(क) जागते रहना

(ख) बाहर छाया हुआ अँधेरा

(ग) रात का लंबा लगना

(घ) रात का सन्नाटा

प्रश्न 4. नींद उचट जाने पर कवि का मन करता है कि -

(क) वह बाहर चला जाए

(ख) दोबारा सो जाए

(ग) कविताएँ लिखे

(घ) चुपचाप लेटा रहे

प्रश्न 5. 'प्राण सूखना' मुहावरे का अर्थ है -

(क) बहुत प्यास लगना

(ख) घबराना

(ग) बहुत डर लगना

(घ) बुरी आशंकाएँ होना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नींद उचट जाने का क्या परिणाम होता है?

उत्तर : एक बार नींद उचट जाने पर दोबारा सो पाना कठिन हो जाता है। सारी रात भोर की प्रतीक्षा में बीत जाती है।

प्रश्न 2. कवि नींद में बार-बार चौंक कर क्यों उठ जाता है?

उत्तर : डरावने सपनों के कारण कवि बार-बार चौंक कर जाग जाता है।

प्रश्न 3. कवि ने बुरे सपनों से भी भयंकर किसे बताया है?

उत्तर : कवि ने बाहर (समाज में) छाए पिछड़ेपन और निराशा के अंधकार को बुरे सपनों से भी अधिक डरावना बताया है।

प्रश्न 4. 'आती नहीं उषा' पंक्ति में 'उषा' से कवि का क्या आशय है?

उत्तर : यहाँ उषा से कवि का आशय समाज में व्याप्त निराशा का दूर होना है।

प्रश्न 5. रात में कुत्तों और सियारों के स्वरों का क्या प्रभाव होता है?

उत्तर : सियारों और कुत्तों के स्वर रात के सन्नाटे को और गहरा और डरावना बना देते हैं।

प्रश्न 6. सुनहली भोर नयनों के निकट क्यों नहीं आ पा रही है?

उत्तर : कवि और समाज के मन में व्याप्त निराशा और भय के कारण प्रसन्नतामयी भोर के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं।

प्रश्न 7. कवि का मन क्या चाहता है? 'नींद उचट जाती है' कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर : कवि का मन चाहता है कि वह फिर से सो जाये। उसे इतनी गहरी नींद आए कि बाहर की कुछ भी सुध बुध न रहे।

प्रश्न 8. कवि 'चेतन से जड़ हो जाना क्यों चाहता है?

उत्तर : जड़ हो जाने पर उसे समाज के सुख-दुख की संवेदना न होगी। उसकी सारी चिंताएँ समाप्त हो जाएँगी।

प्रश्न 9. कवि के मन को कौन-सी आशा रातभर भटकाती रहती है?

उत्तर : निराशा, चिंता और बुरे सपनों वाली यह रात बीतेगी और सुख-शांतिमय सबेरा होगा, यही आशा कवि को रातभर चिंताओं में भटकाती रहती है।

प्रश्न 10. कवि के अनुसार समाज विकास, चेतना और नव जागरण की सुनहली भोर से वंचित क्यों है?

उत्तर : अज्ञान, निराशा और पिछड़ेपन के कारण समाज सुनहली भोर से वंचित है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. अधिक भयावह है तम बाहर' पंक्ति में 'तम बाहर' प्रतीक है। उसे स्पष्ट करते हुए कवि का भाव बताइए।

उत्तर : 'तम बाहर' एक प्रतीक है, इसका प्रतीकार्थ देश की चिन्ताजनक दुर्दशा से है। व्यक्ति का अन्त:करण तो निराशा से भरा है ही, उसमें दुःस्वप्न भी आते हैं जो उसे अधिक निराश कर देते हैं। पर इस प्रतीक का सम्बन्ध तो समाज में व्याप्त दुःख-प्रताड़ना और निराशा से है। बाहर का अन्धकार तो समाज और समस्त राष्ट्र में व्याप्त बुराइयों से सम्बन्ध रखता है। कवि की मान्यता है कि समाज और राष्ट्र के स्तर का भय अधिक चिंताजनक है।

प्रश्न 2. मन होता है फिर सो जाऊँ,

गहरी निद्रा में खो जाऊँ

कवि की पीड़ा क्या है और वह ग़हरी निद्रा में क्यों खोना चाहता है ?

उत्तर : कवि को समाज के दुःख-उत्पीड़न के कारण दुश्चिंता हो गई है। यह उससे सहन नहीं हो रहा है। इस दुश्चिंता ने उसे नींद से जगा दिया है लेकिन वह जागकर पुनः सोने की इच्छा व्यक्त करता है। जब तक धरती पर शोषण-उत्पीड़न और निराशा है, वह उससे बेखबर रहना चाहता है। जब वह गहरी नींद में सो जाएगा तो उसे न तो अपनी निराशा सतायेगी और न समाज की भयावह स्थिति ही उसकी चेतना को झकझोरेगी। इसलिए वह गहरी निद्रा में खोना चाहता है।

प्रश्न 3. 'जब-तक नींद उचट जाती है' नींद उचटने का क्या दुष्प्रभाव होता है ?

उत्तर : नींद उचट जाने पर सारी रात काली हो जाती है। रात काटना कठिन हो जाता है। जागने के कारण रात लम्बी . लगती है और ऐसा लगता है जैसे रात बीतेगी ही नहीं। जागने के कारण आँखों में दर्द होने लगता है, पुतलियों का झपकना बन्द हो जाता है। नींद का प्रयास करने और आँखों को बन्द करने पर दुःस्वप्न आने लगते हैं जो अत्यधिक पीड़ा पहुँचाते हैं। . मन रात भर भोर होने की प्रतीक्षा करता रहता है।

प्रश्न 4. 'नींद उचट जाती है' कविता में नरेन्द्र शर्मा ने प्रकृति का भावनाओं को गहरा करने के लिए उपयोग किया है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : 'नींद उचट जाती है' के रचयिता नरेन्द्र शर्मा मूलतः गीतकार हैं। उनके गीतों में यथार्थवादी दृष्टिकोण उभरकर सामने आया है। उन्होंने प्रकृति का मानवीय रूप में वर्णन किया है। प्रस्तुत ‘आती नहीं उषा, बस केवल आने की आहट जाती है' एक प्रभावकारी चित्र है। 'भोर सुनहली''आस रात भर भटकाती है' 'देती रही ज्योति चकफेरी' 'शिला तम की हट पाती है'। सटीक प्रतीक और बिम्बों को भी अपनाया है। जैसे

(i) सन्नाटा गहरा हो जाता।

(ii) चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ।

(iii) अन्तर्नयनों के आगे से

शिला न तम की हट पाती है।

प्रश्न 5. भीत भावना, भोर सुनहली,

नयनों के न निकट लाती है !

उपर्युक्त पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य प्रकट कीजिए।

उत्तर : भावपक्ष कविता में 'सुनहली भोर' आशा का प्रतीक है। लेकिन दुश्चिंता ने और भय की भावना ने इस आशा की किरण को कवि से दूर कर दिया है। कवि ने समाज में दुःख-दैन्य और गरीबी देखी है, इस कारण वह दुखी और चिंतित है। आशारूपी प्रसन्नता की उषा वेला उससे दूर भाग गई है। नींद जो निश्चिंतता की प्रतीक है, उसके पास नहीं आती। यही भाव इन पंक्तियों में निहित है।

कलापक्ष - प्रतीकात्मक शैली है। 'भीत भावना भोर' में अनुप्रास अलंकार है। ‘भोर सुनहली' आशा का प्रतीक है। 'नयनों के न निकट' में भी अनुप्रास के साथ-साथ ध्वनि चमत्कार भी है। भाषा सरल है। शब्द चित्र है।

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'नींद उचट जाती है' कविता का प्रतिपाद्य क्या है ?

उत्तर : नरेन्द्र शर्मा ने अपनी कविता में एक लम्बी अँधेरी रात का वर्णन किया है, जिसमें घनघोर अंधकार व्याप्त है। कवि ने दो स्तरों पर अंधकार को प्रकट किया है। एक व्यक्ति के स्तर पर दुःस्वप्न और निराशा का अंधकार। दूसरा समाज के स्तर पर व्याप्त अंधकार। समाज में विकास, चेतना और जागृति के अभाव का अंधकार है। व्यक्ति निराश है, उसे आशा की किरण भी दिखाई नहीं देती। वह दुःस्वप्न देखता है और जाग जाता है।

सारी रात बेचैनी में व्यतीत हो जाती है। समाज का अन्धकार व्यक्ति को और अधिक निराश कर देता है। कुत्तों का भौंकना और शृगालों का हऔं-हओँ करना उसके अन्दर के अंधकार को और भी गहरा कर देता है। वह अन्दर और बाहर दोनों तरफ से अन्धकार से पीड़ित है। आशारूपी प्रकाश आता है, किन्तु आँखों में तम की शिला अड़ गई है जो आशा की प्रकाश किरण को नहीं देखने देती। यही इस कविता का प्रतिपाद्य है।

प्रश्न 2. "उनके गीतों में यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया गया है" नरेन्द्र शर्मा की कविताओं का गीतों के आधार पर मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर : कवि नरेन्द्र शर्मा यथार्थवादी दृष्टिकोण के कवि रहे हैं। प्रगतिवादी चेतना से प्रभावित कवि समाज के प्रति अपने समझता है। इसलिए उनके गीतों में यथार्थ का चित्रण हआ है। गीत शैली अपनाने वाले कवियों से संगीतात्मकता की, मधुरता की, कोमलकान्त पदावली युक्त भाषा और प्रकृति के मनमोहक दृश्यों को उकेरने की अपेक्षा की जाती है। कवि नरेन्द्र शर्मा से भी इसी तरह की कविता अर्थात् कोमल और मोहक गीतों की आशा की गई, लेकिन नरेन्द्र शर्मा के गीतों में यथार्थ का चित्रण मिलता है।

समाजवाद का समर्थक कोई भी प्रगतिवादी सदैव सामाजिक सरोकारों की कविता लिखेगा। उसके गीतों में जीवन और समाज का यही यथार्थ होगा। अतः नरेन्द्र शर्मा ने अपने गीतों में समाज के ठोस यथार्थ से सम्बन्धित शब्दावली एवं बिंब और प्रतीकों का प्रयोग किया है। अतः 'नींद उचट जाती है' कविता गीत शैली में होते हुए ठोस यथार्थ की कविता है।

प्रश्न 3. 'नींद उचट जाती है' कविता का काव्य-सौन्दर्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : काव्य-सौन्दर्य को दो पक्षों में विभाजित करके देखेंगे भावपक्ष भावपक्ष की दृष्टि से कविता सबल है। कविता में कवि ने 'नींद' को प्रतीक रूप में लिया है। नींद का अभिधार्थ सोना है लेकिन कविता में अर्थ उस अंधकार से है जो व्यक्ति के स्तर पर निराशा और बुरे सपनों का अँधेरा है। राष्ट्र के स्तर पर यही अँधेरा विकास न होने और चेतना की जागृति के अभाव का प्रतीक है। कवि समाज में व्याप्त अज्ञान के अँधेरे को देखकर दुखी है। वह निराश है, उसे आशा की किरण भी दिखाई नहीं देती। इसी निराशा के भाव को कविता में व्यक्त किया है।

कलापक्ष - यह गीत शैली की कविता है। सम्पूर्ण कविता में प्रतीकों का प्रयोग किया है। भाषा सरल है, प्रसादगुण युक्त है। चौक-चौंक उठना, करवट बदलना, साँस अटकना जैसे मुहावरों का सहज और स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। बिम्ब योजना सबल है। 'भीत-भावना भोर' में अनुप्रास अलंकार है। लाक्षणिक शब्द शक्ति है। कहीं-कहीं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का भी प्रयोग किया है।

प्रश्न 4. 'नींद उचट जाती है' कविता एक प्रतीकात्मक कविता है। कविता से उदाहरण देकर इस कथन को पुष्ट कीजिए।

उत्तर : कविता को अधिक प्रभावोत्पादक बनाने के लिए आज के कवि और गीतकार प्रतीकों का प्रयोग करने लगे हैं। कभी-कभी ये प्रतीक जटिल हो जाते हैं और साधारण पाठक उनकी गहराई तक नहीं पहुँचता। फिर भी भावों को व्यक्त करने के लिए रचनाकार प्रतीकों का प्रयोग करता है। 'नींद उचट जाती है' गीत में भी नरेन्द्र शर्मा ने प्रतीकों का प्रयोग किया है। 'द:स्वप्न भयंकर' घोर निराशा का प्रतीक है जो व्यक्ति की नींद को उड़ा देती है।

'भयावह है तम बाहर' में तम बाहर समाज में व्याप्त शोषण-उत्पीड़न का प्रतीक है। 'आती नहीं उषा' और 'आने की आहट आती है' भी प्रतीक हैं। 'उषा' आशा का प्रतीक है निराशा ने आशा को दबा दिया है। आशा के आने का अनुभव होता है पर आशा आती नहीं है। 'भोर सुनहली' नयनों से दूर भाग जाती है अर्थात् आशा की कल्पना ही नहीं होती। आशा की सम्भावना ही नहीं रहती। 'करवट नहीं बदलता है तम' निराशा के नहीं हटने का प्रतीक है। 'जगते अपलक नयन' बेचैनी का प्रतीक है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पूरी कविता प्रतीकों से भरी पड़ी है। प्रतीकों से उसका भाव-सौन्दर्य बढ़ गया है।

प्रश्न 5. कवि नरेन्द्र शर्मा की काव्य कला को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भाव-भाषा और शिल्प मिलकर किसी कवि की काव्य कला का निर्माण करते हैं। इस दृष्टि से कवि नरेन्द्र शर्मा का काव्य समाज सापेक्ष काव्य ठहरता है। उसकी नींद उचटने का कारण समाज में व्याप्त दुःख-दैन्य, गरीबी और शोषण है। इसी का अँधेरा कवि की नींद उड़ाने का कार्य करता है। कवि अपने दुख से दुखी न होकर समाज के दुख से दुखी है। अभी धरती पर जड़ता का, निराशा का अँधेरा है, नये ज्ञान का प्रकाश चक्कर लगा रहा है लेकिन यह अँधेरा हट नहीं रहा है तो कवि को निश्चिंतता की नींद कैसे आ सकती है। वह अँधेरे की शिला को हटाना चाहता है पर हट नहीं रही है। कवि ने अपने व्यक्तित्व का विस्तार कर लिया है। वह विश्व के समस्त अंधकार अर्थात् जड़ता को हटाना चाहता है।

इतने व्यापक भाव फलक के अनुरूप ही कवि ने अपनी भाषा को भी व्यंजना शक्ति से युक्त किया है। अलंकारों का सहज प्रयोग ध्वनि के विस्फोट से कविता अधिक सम्पेषणीय हुई है। प्रसाद गुण के साथ दृश्य बिंब और श्रव्य बिंब जैसे भीत-भावना, तम की शिला, श्वान शृगाल भौंकते आदि शब्दों के प्रयोग ने काव्य-सौन्दर्य में वृद्धि की है।

नींद उचट जाती है (सारांश)

कवि परिचय :

गीतकार एवं कवि नरेन्द्र शर्मा का जन्म 22 फरवरी सन् 1923 में उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के जहाँगीरपुर ग्राम में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. किया। वे प्रारम्भ से ही राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। 1943 में वे मुम्बई चले गए और फिल्मों के लिए गीत और संवाद लिखते रहे। सन् 1989 में आपका निधन हो गया।

नरेन्द्र शर्मा मूल रूप से गीतकार हैं। आपके अधिकांशतः गीत यथार्थवादी दृष्टिकोण पर आधारित हैं। आपने प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया है। नरेन्द्र शर्मा प्रगतिवादी चेतना से प्रभावित गीतकार हैं। प्रगतिवाद से प्रभावित होकर आपने अपने गीतों में जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। उत्तरार्द्ध में आपका दृष्टिकोण दार्शनिक हो गया था। अत: उस काल यात्मिक और दार्शनिक पष्ठभमि पर आधारित हैं। एक ओर प्रेम की व्याकल करने वाली स्थिति और दूसरी ओर जीवन के यथार्थ को प्रकट करना आपकी बहुत बड़ी विशेषता रही है। आपकी भाषा सरल और प्रवाहमयी है। फिल्मों के लिए लिखे गीतों में भी साहित्यिकता है। संगीतात्मकता और स्पष्टता इनके गीतों की विशेषता है। प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, हंसमाला, रक्त चंदन आपके प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ हैं।

पाठ-परिचय

पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड में आपकी एक ही रचना 'नींद उचट जाती है' शीर्षक से संकलित है। इस रचना में एक ऐसी रात का वर्णन किया गया है जिसमें सोने वाले की नींद उचट जाती है। वह बेचैनी से रात समाप्त होने के करता है लेकिन प्रभात की किरण कहीं भी नहीं दिखाई देती है। कविता में व्यक्ति दःस्वप्न देखकर डरकर उठना चाहता है लेकिन बाहर और भी भयंकर अँधेरा है। श्वान और सियारों के भौंकने के स्वर और अधिक भयभीत करते हैं। वह फिर सो जाना चाहता है, यहाँ तक कि चेतन से जड़ हो जाना चाहता है, करवटें बदलता है, लेकिन संसार का घोर अंधकार समाप्त नहीं होता। उसके चारों ओर प्रकाश का घेरा बढ़ रहा है फिर भी आन्तरिक अँधेरा उसे घेर लेता है। घोर निराशा में डूबा यह व्यक्ति आशा की किरण पाने के लिए भटक रहा है।

शोषण और उत्पीड़न की निराशारूपी घोर रात व्यक्ति को न तो चैन से सोने ही देती है और न ही जागने देती है। जैसे दुःस्वप्न देखकर डरा हुआ व्यक्ति बाहर के घोर अन्धकार और सन्नाटे से और भी अधिक डर जाता है। वह आशारूपी साँसों को रोके हुए है। अंधकार से युक्त इस धरती पर प्रकाश की किरण दिखाई देती है लेकिन घोर निराशा का अँधेरा उस आशा के प्रकाश को रोक देता है। व्यक्ति दुःस्वप्न के कारण निराश है और समाज अज्ञानता के अंधकार से ग्रसित है। कवि चाहता है कि जागरण द्वारा इन दोनों से मुक्ति मिल जाए और चारों ओर प्रकाश छा जाए।

काव्यांशों की सप्रसंग व्यारव्याएँ

1. जब-तब नींद उचट जाती है

पर क्या नींद उचट जाने से

रात किसी की कट जाती है ?

देख-देख दुःस्वप्न भयंकर

चौक-चौंक उठता हूँ डरकर;

पर भीतर के दुःस्वप्नों से

अधिक भयावह है तम बाहर !

आती नहीं उषा, बस केवल

आने की आहट आती है!

शब्दार्थ :

जब-तब = कभी-कभी।

नींद उचट जाती है = नींद का न आना या सोते-सोते अचानक नींद खुल जाना।

रात काटना = रात बीतना।

दुःस्वप्न = बुरे सपने।

भयावह = भय पैदा करने वाले, डरावने।

भीतर = अन्तर्मन या हृदय।

तम = अँधेरा।

बाहर = संसार या समाज।

उषा = प्रातःकाल की लालिमा, सबेरा।

आहट = आभास, आने का संकेत।

सन्दर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड में संकलित कविता 'नींद उचट जाती है' से लिया गया है। इसके रचयिता कवि एवं प्रसिद्ध गीतकार नरेन्द्र शर्मा हैं।

प्रसंग - कवि ने नींद उचट जाने को समाज की अव्यवस्था एवं भयकारक निराशा से जोड़कर अपने अंतर्द्वन्द्व को व्यक्त किया है।

व्याख्या - कभी-कभी व्यक्ति के जीवन में ऐसा दिन भी आ जाता है जब सोते-सोते अचानक कोई भयानक सपना दिखाई दे जाता है और नींद उचट जाती है। नींद तो उचट जाती है लेकिन उसे पूरी रात जागकर ही बिस्तर पर पड़े-पड़े बितानी पड़ती है। बुरा सपना देखकर अचानक व्यक्ति जाग.तो जाता है पर देखता है कि बाहर और भी भयानक वातावरण है। उस घोर निराशा में आशा की किरण प्रात:काल की लालिमा नहीं आती, केवल उसके आने का संकेत भर ही आता है। इसी प्रकार पूरी रात बितानी होती है।

कवि ने रात का अँधेरा निराशापूर्ण समाज व्यवस्था को माना है जो व्यक्ति को दुश्चिन्ताओं से घेरे हुए है। सुधार आने की एक हल्की-सी किरण का संकेत भर मिलता है। ऐसी मनःस्थिति में व्यक्ति निश्चित होकर जीवन नहीं बिता पाता है। लेकिन वह पलायन भी नहीं कर सकता। समाज में व्याप्त घोर अज्ञानता ने व्यक्ति का जीना दूभर कर दिया है। निराशापूर्ण वातावरण ने व्यक्ति को चिन्ताग्रस्त कर दिया है। चिन्ताग्रस्त व्यक्ति की भयभीत होकर नींद उचट जाती है और फिर नींद नहीं आती। वह बाहर देखता है तो स्थिति और भी भयानक प्रतीत होती है। आशा की किरण की प्रतीक्षा करते ही रात बितानी होती है।

विशेष :

1. समाज में व्याप्त अज्ञानता, गरीबी और शोषण-उत्पीड़न समझदार व्यक्ति के मन में दुश्चिन्ता उत्पन्न कर देते हैं। समाज की स्थिति के प्रति संवेदनशील व्यक्ति चैन की नींद नहीं सो पाते।

2. भाषा–तत्सम प्रधान प्रवाहपूर्ण भाषा भावाभिव्यक्ति के सर्वथा अनुकूल है।

3. अलंकार- 'देख-देख दुःस्वप्न' अनुप्रास, देख-देख और चौंक-चौंक में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।

4. शब्दशक्ति–लक्षणा शब्द शक्ति से भाषा में रोचकता आ गई है।

5. प्रतीकात्मकता से काव्य का आकर्षण बढ़ गया है।

6. अंधकार निराशा का प्रतीक है जो व्यक्ति के मन में और बाहर समाज दोनों जगह व्याप्त है।

2. देख अँधेरा नयन दूखते,

दुश्चिन्ता में प्राण सूखते!

सन्नाटा गहरा हो जाता,

जब-जब श्वान, शृगाल भुंकते!

भीत भावना, भोर-सुनहली

नयनों के न निकट लाती है!

मन होता है फिर सो जाऊँ,

गहरी निद्रा में खो जाऊँ

जब तक रात रहे धरती पर,

चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!

उस करवट अकुलाहट थी, पर

नींद न इस करवट आती है!

शब्दार्थ :

नयन = नेत्र, आँखें।

दुश्चिन्ता = बुरी चिन्ता।

प्राण सूखते = भय से घबरा जाना।

सन्नाटा = खामोशी, चुप्पी।

गहरा = गम्भीर।

श्वान = कुत्ता।

शृगाल = सियार।

भीत भावना = भयकारक अनुभव।

भोर = प्रभात।

सुनहली = सोने जैसे रंगवाली।

निकट = पास।

चेतन = सजीव।

जड़ = निर्जीव।

अकुलाहट = बेचैनी।

सन्दर्भ - प्रस्तत काव्यांश हमारी पाठयपस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड में संकलित प्रसिद्ध गीतकार नरेन्द्र शर्मा की कविता 'नींद उचट जाती है' से अवतरित है।

प्रसंग - समाज में व्याप्त अव्यवस्थाओं, भय, आशंका और निराशाओं के कारण कवि या चिन्तक रातभर चैन की नींद नहीं सो पाते हैं।

व्याख्या- बाहर समाज में व्याप्त अज्ञानता एवं शोषण-उत्पीड़न के अंधकार के कारण कवि की आँखें दर्द से पीड़ित हो जाती हैं। बुरी चिन्ताओं में पड़ा-पड़ा वह अत्यधिक दुःख का अनुभव करता है, उसे घबराहट होने लगती है। चारों ओर गहन खामोशी है जो भयकारक है। कभी-कभी कुत्तों और सियारों की भौंकने और हुऔं-हुआँ करने की आवाजें और भी भयानक वातावरण बना देती हैं। चिन्तक कवि इतना भयभीत हो गया है कि इस भय के कारण आने वाली सुनहली प्रभात की कामना दूर चली जाती है, उसे संतोष प्रदान करने वाली प्रभात की,किरणें उससे दूर ही रहती हैं।

इन भयभीत करने वाली स्थितियों ने उसके मन को इतना डरा दिया है कि वह फिर से सो जाने का विचार बना लेता है। वह चाहता है कि इतनी गहरी नींद आ जाए कि उसे दीन-दुनिया का होश भी नहीं रह जाए। कवि इतना भयभीत हो गया है कि जब तक इस धरती पर यह शोषण-उत्पीड़न और निराशा का गहरा अँधेरा रहे तब तक वह सजीव प्राणी से जड़ बन जाना चाहता है क्योंकि जड़ता के कारण वह चिन्तामुक्त हो जाएगा। वह रातभर करवटें बदलता रहता है, उसे न इस करवट नींद आती है और न दूसरी करवट से ही आती है। उसकी बेचैनी बढ़ती जाती है। वह भयावह सामाजिक स्थितियों से घबरा गया है।

विशेष :

1. कवि सामाजिक विषमताओं, शोषण-उत्पीड़न, गरीबी और अज्ञानता के अंधकार में डूबे समाज में संतोष का अनुभव नहीं करता। अतः वह चैन की नींद सो नहीं पाता। इसी का प्रतीकात्मक शैली में वर्णन किया गया है।

2. भाषा तत्सम प्रधान सरल खड़ी बोली है।

3. शैली-प्रतीकात्मक शैली।

4. उदाहरण-'प्राण-सूखना' मुहावरा है जो लक्षणा शब्द शक्ति का सुन्दर उदाहरण है।

5. अलंकार-जब-जब में पुनरुक्तिप्रकाश, भीत-भावना भोर में अनुप्रास अलंकार है।

6. जब तक रात रहे धरती पर' में रात का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है। रात का अर्थ अज्ञान, दुःख, शोषण आदि से 'लिया गया है।

7. सम्पूर्ण छंद में निराशा और पलायन का भाव व्याप्त है।

3. करवट नहीं बदलता है तम,

मन उतावलेपन में अक्षम !

जगते अपलक, नयन बावले,

थिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम !

साँस आस में अटकी, मन को

आस रात भर भटकाती है!

जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,

नहीं गई भव-निशा अँधेरी!

अंधकार केन्द्रित धरती पर,

देती रही ज्योति चकफेरी!

अंतर्नयनों के आगे से

शिला न तम की हट पाती है!

शब्दार्थ :

तम = अँधेरा।

उतावलेपन = जल्दबाजी में या व्याकुलता में।

अक्षम = असमर्थ।

अपलक = बिना पलक झपकाए।

बावले = पागल, भावुक।

थिर = स्थिर, अचंचल।

निमिष = पलक, क्षण।

थम = रुकना।

भटकाती = अधीर करती।

जागति = जागना।

अनिद्रा = नींद न आने की बीमारी।

भव-निशा = संसाररूपी घोर अँधेरा, निराशा।

चकफेरी = भटकना, चारों ओर चक्कर लगाना।

ज्योति = प्रकाश।

अन्तर्नयनों = भीतरी दृष्टि, सिद्धान्त, विचारधारा।

शिला = पत्थर का बड़ा-सा टुकड़ा या प्रस्तर खण्ड।

सन्दर्भ - उपर्युक्त काव्यांश गीतकार नरेन्द्र शर्मा रचित गीत 'नींद उचट जाती है' से लिया गया है जो कि हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड में संकलित है।

प्रसंग - कवि ने प्रतीक रूप में रात्रि को घोर निराशा मानकर दुश्चिन्ता में जागकर पड़े रहने की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि

व्याख्या - घोर निराशारूपी अन्धकार समाज में दृढ़ता के साथ व्याप्त हो गया है जो क्षणभर के लिए भी इधर-इधर नहीं हटता। लेकिन विचारक, चिन्तक कवि समाज में व्याप्त इस घोर निराशापूर्ण वातावरण में इतना व्याकुल हो जाता है कि अपने आपको हर प्रकार से असमर्थ मानकर घबरा जाता है। एक ओर इस निराशा ने कवि के नेत्रों को भयभीत करके स्थिर-सा कर दिया है। उसके नेत्र लगातार जागते रहने के कारण स्थिर होकर ठहर से गये हैं। चिंताओं में डूबे होने से आँखों की पलकें स्थिर सी हो गई हैं। समय आगे बढ़ने का नाम नहीं लेता। विचारक की साँसें भी इसी आशा में ठहरी हुई हैं कि कभी तो प्रभात आयेगी और मन भी इसी आशा के चक्कर में रातभर भटकता रहता है परन्तु प्रभात होने की आशा पूर्ण नहीं होती।

समाज में व्याप्त निराशापूर्ण अंधकार भी हटने का नाम नहीं लेता और कवि की जाग्रति (चेतना). भी समाप्त होकर अनिन्द्रा में समा गई है अर्थात् उसे इस दुश्चिन्ता में रातभर नींद ही नहीं आती। घोर निराशा का अन्धकार पृथ्वी पर इ रूप धारण करके छा गया है कि आशारूपी प्रकाश चारों ओर भटककर रह जाता है। धरती को प्रकाशित यानी ज्ञान के प्रकाश से जागरूक नहीं बना पाता। इस घोर निराशा ने कवि के हृदय को निराशा के इतने गहरे अन्धकार में डुबा दिया है कि वह पत्थर की शिला की तरह नेत्रों को स्थिर करके बैठ गया है। सामाजिक स्थिति के कारण कवि का मन निराशा और दुश्चिंताओं से घिर गया है। वह सोचने और निर्णय लेने में असमर्थ-सा हो गया है।

विशेष :

1. कवि ने समाज में व्याप्त गहरी निराशा की रात्रि को अनेक प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है। आशा का प्रकाश भी इस अन्धकार को दूर करने में असमर्थ पाता है अर्थात् आशा की कोई किरण दिखाई नहीं देती।

2. भाषा-तत्सम प्रधान सरल प्रवाहपूर्ण भाषा है।

3. शैली-चित्रात्मकता बिम्ब विधान है। प्रतीकात्मक शैली है।

4. शब्दशक्ति-'करवट बदलना' मुहावरा लक्षणा शब्द शक्ति है।

5. चकफेरी' शब्द सामान्य देशज भाषा से चुना गया है।

6. पृथ्वी व्यापी निराशा का यथार्थ चित्रण किया है।

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