पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन को 'नानबाइयों का मसीहा' क्यों कहा गया
है ?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई थे तथा इस कला में पूरी तरह पारंगत थे। कई
पीढ़ियों से उनके यहाँ नानबाई का कार्य होता रहा था। वे सब प्रकार की रोटियाँ
बनाने में कुशल थे और शहर के सबसे बड़े नानबाई के रूप में जाने जाते थे। प्रसिद्ध
नानबाई होने के कारण ही उन्हें 'नानबाइयों का मसीहा' कहा गया है।
प्रश्न 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं?
उत्तर
: लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास कुछ सवाल पूछने गई थीं। वह जानना चाहती थीं कि
'नानबाई' की कला उन्होंने कहाँ से सीखी है ? रोटियाँ कितने प्रकार की बनती हैं तथा
उन्हें नानबाई के रूप में इतनी प्रसिद्धि क्यों और कैसे मिली? वस्तुत: वह प्रसिद्ध
नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्त्व एवं हुनर के बारे में जानने के लिए उनके
पास गई थीं।
प्रश्न 3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में
मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका को यह बताया कि उनके बजर्ग बादशाह के 'नानबाई' रहे
हैं। जब लेखिका ने उस बादशाह का नाम जानना चाहा तो मियाँ नसीरुद्दीन कोई ठीक-ठाक
उत्तर न दे सके, क्योंकि उन्हें स्वयं इस सम्बन्ध में कुछ पता न था इसलिए बादशाह
के नाम का प्रसंग आने पर लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी खत्म
होने लगी।
प्रश्न 4. मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अन्धड़ के
आसार देख यह मजमून न छेड़ने का फैसला किया. इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का
उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: लेखिका ने जब बब्बन मियाँ के बारे में पूछा कि ये कौन हैं ? तो मियाँ नसीरुद्दीन
ने रुखाई से कहा-'अपने कारीगर, और कौन होंगे?' लेखिका के मन में आया कि पूछ
लें-आपके बेटे-बेटियाँ हैं? पर मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अन्धड़
के आसार देखकर यह मजमून न छेड़ने का फैसला किया अर्थात् लेखिका समझ गयीं कि मियाँ
नसीरुद्दीन बेऔलाद हैं। अत: इस तकलीफदेह विषय पर बातचीत करने का इरादा छोड़ दिया।
नसीरुद्दीन
ने बताया कि मियाँ शागिर्द ही नहीं हैं, उन्हें पूरी मजदूरी दी जाती है। यदि बब्बन
मियाँ नसीरुद्दीन के बेटे होते तो उन्हें मजदूरी क्यों दी जाती ? अत: लेखिका उनके
कथन से ही सब कुछ समझ गयी। प्रसंग बदलते हुए उसने प्रश्न पूछा कि आपके यहाँ
कौन-कौन सी रोटियाँ बनती हैं ? प्रसंग बदल जाने से नसीरुद्दीन सहज हो गए।
प्रश्न 5. पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्द-चित्र लेखिका ने कैसा
खींचा है ?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन 70 वर्ष के एक वृद्ध व्यक्ति थे जो मशहूर नानबाई थे। उनकी
दुकान मटियामहल के गदैया मोहल्ले में थी। छप्पन तरह की रोटियाँ उनकी दुकान पर बनती
थीं। जब लेखिका ने उनकी दुकान में झाँका तो पाया कि मियाँ नसीरुद्दीन चारपाई पर
बैठे बीड़ी का मजा ले रहे थे। मौसमों की मार से पका चेहरा आँखों में काइयाँ भोलापन
और पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर, मुँह में कुछ ही दाँत शेष बचे थे। यही
शब्द-चित्र 'मियाँ नसीरुद्दीन' का लेखिका ने खींचा है।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन की ये बातें हमें अच्छी लगी -
1.
उन्हें अपने काम से प्यार है। वे अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं।
2.
नानबाई का हुनर उन्हें अच्छी तरह आता है। इस कला की सभी बारीकियों से वे वाकिफ
हैं। उन्होंने यह कला अपने मरहूम पिता से सीखी है।
3.
नानबाई की इस कला को सीखने के लिए उन्होंने बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी
सुलगाना और आटा गूंथना भी अच्छी तरह सीखा है, क्योंकि बिना ये सब सीखे कोई अच्छा
नानबाई नहीं बन सकता।
4.
मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने खानदानी व्यवसाय को ही पेशे के रूप में अपनाया है।
उन्हें अपने काम पर गर्व है।
प्रश्न 2. तालीम की तालीम ही बड़ी चीज होती है - यहाँ लेखक ने
तालीम शब्द का दो बार प्रयोगक्यों किया है ? क्या आप दूसरी बार तालीम शब्द की जगह
कोई अन्य शब्द रख सकते हैं ? लिखिए।
उत्तर
: तालीम की तालीम का अर्थ है-शिक्षा की शिक्षा लेना अर्थात् नानबाई बनने की शिक्षा
लेना। एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही व्यक्ति ऊपर पहुँचता है, सीढ़ियाँ फलांग कर नहीं।
दूसरी बार प्रयुक्त तालीम के स्थान पर 'जानकारी' या 'शिक्षा' शब्द का प्रयोग किया
जा सकता है।
प्रश्न 3. मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं, जिसने अपने
खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारम्परिक व्यवसाय को
नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका को बताया कि उनके दादा साहब थे आला नानबाई मियाँ
कल्लन और उनके वालिद थे मियाँ बरकत शाही नानबाई गदैया वाले। नानबाई का पेशा उनका
परम्परागत व्यवसाय था। मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिन्होंने 'नानबाई का
यह खानदानी व्यवसाय अपनाया हुआ है। वर्तमान समय में लोग अपने खानदानी व्यवसाय को न
अपनाकर नये-नये व्यवसाय अपना रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि पुराने व्यवसाय
में अब कमाई ज्यादा नहीं हो पाती। अधिक कमाई के लिए वे नये-नये व्यवसाय अपना रहे
हैं। साथ ही खानदानी व्यवसाय से उन्हें अरुचि भी हो गई है।
प्रश्न 4. मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो। यह तो खोजियों की
खुराफात है। अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तर
: अखबारनवीस (पत्रकार) नई-नई खबरों की खोज में रहते हैं। आजकल के पत्रकार चटपटी
खबरों की खोज में रहते हैं, जिससे उसे छापकर अपनी पाठक संख्या में वृद्धि कर लें।
बहुत सारे लोग पत्रकारों से इसलिए दूर रहते हैं कि कहीं उनकी किसी बात का बतंगड़
बनाकर अखबारों में न छाप दिया जाए। संभवत: इसी कारण मियाँ नसीरुद्दीन भी अखबार
वालों से बचना चाहते थे। आज भी बहुत सारे लोग पत्रकारों से अनौपचारिक बात करमा तो
पसन्द करते हैं, किन्तु औपचारिक रूप से पत्रकारों के कैमरे के सामने नहीं आना
चाहते।
पकवानों को जानें
प्रश्न : पाठ में आए रोटियों के अलग-अलग नामों की सूची बनाएँ और
उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर
: -पाठ में अनेक प्रकार की रोटियाँ के नाम आए हैं यथा-
1.
रूमाली
2.
बाकरखानी
3.
शीरमाल
4.
ताफतान
5.
बेसनी
6.
खमीरी
7.
गाव
8.
दीदा
9.
गाजेबान
10.
तुनकी
11.
तन्दूरी आदि।
भाषा की बात
प्रश्न 1. तीन-चार वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए
वाक्यों का इस्तेमाल करें।
(क) पंचहजारी अन्दाज से सिर हिलाया।
(ख) आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
(ग) आ बैठे उन्हीं के ठीये पर।
उत्तर
:
(क)
सब बच्चे परेशान थे, इस पहेली का हल कैसे किया जाए? वे सब अपनी समस्या लेकर दादा जी
के पास पहुँचे। दादा जी ने पहेली सुनकर पंचहजारी अन्दाज से सिर हिलाया मानो वे इस पहेली
का उत्तर पहले से जानते हैं।
(ख)
मास्टर जी ने कक्षा में एक कठिन सवाल पूछा, जब कोई बच्चा उसका उत्तर न दे सका तो प्रश्न
का उत्तर जानने के लिए अपनी आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
(ग)
जब मोहन को कोई ढंग की नौकरी न मिली तो आ बैठे पिताजी के ठीये पर। पिताजी की अच्छी-खासी
कपड़े की दुक जो थी।
प्रश्न 2. बिटर-बिटर देखना-यहाँ देखने के एक खास तरीके को प्रकट
किया गया है ? देखने सम्बन्धी इस प्रकार के चार क्रिया-विशेषणों का प्रयोग कर
वाक्य बनाइए।
उत्तर
:
1.
वह मेरी ओर घूरकर देखने लगा।
2.
उसने लड़की को तिरछी नजर से देखा।
3.
वह उसे कनखियों से देख रहा था।
4.
वह मेरी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखने लगा।
प्रश्न 3. नीचे दिए गए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के लिए
शब्द-क्रम परिवर्तित किया गया है। सामान्यतः इन वाक्यों को किस क्रम में लिखा जाता
है ? लिखें।
(क) मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए।
(ख) निकाल लेंगे वक्त थोड़ा।
(ग) दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
(घ) रोटी जनाब पकती है आँच से।
उत्तर
:
(क)
मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
(ख)
थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
(ग)
बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
(घ)
जनाब! रोटी आँच से पकती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. नानबाई किसे कहा जाता है ?
उत्तर
: तरह-तरह की रोटियाँ पका के बेचने वाले.व्यक्ति को नानबाई कहते हैं।
प्रश्न 2. तुनकी रोटी कैसी होती है ?
उत्तर
: तुनकी रोटी पापड़ से भी ज्यादा महीन होती है।
प्रश्न 3. मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगरों को किस दर (रेट) से
मजूरी देते थे?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगरों को दो रुपये मन आटे की मजूरी और चार रुपये मन
मैदे की मजूरी देते थे। मन उस समय चलने वाली तौल की इकाई थी जो लगभग 37 किलो के
बराबर होती है।
प्रश्न 4. मियाँ नसीरुद्दीन की नानबाई की दुकान किस मोहल्ले में
थी?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन की नानबाई की दुकान जामा मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के
गढ्या मोहल्ले में थी।
प्रश्न 5. खानदानी नानबाई से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर
: खानदानी नानबाई का तात्पर्य है कि उनकी कई पीढ़ियाँ नानबाई का कार्य करती आई
हैं।
प्रश्न 6. मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का यह हुनर कहाँ से सीखा?
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का यह हुनर अपने मरहूम वालिद मियाँ बरकत शाही से
सीखा था।
प्रश्न 7. एक अच्छे नानबाई को क्या-क्या सीखना पड़ता है ?
उत्तर
: अच्छा नानबाई बनने के लिए छोटे-मोटे काम भी सीखने पड़ते हैं यथा-बर्तन धोना,
भट्ठी बनाना, भट्ठी में आँच सुलगाना, आटा गूंथना आदि।
प्रश्न 8. रूमाली रोटी से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
: रूमाली रोटी रूमाल की तरह बड़ी और पतली होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न : "किस्म-किस्म की रोटी पकाने
का इल्म आपने कहाँ से सीखा?" इस प्रश्न का उत्तर मियाँ नसीरुद्दीन ने किस तेबर
से और क्या दिया?
उत्तर
: लेखिका ने मियाँ से जब यह पूछा कि नानबाई का इल्म उन्होंने कहाँ से सीखा तो
उन्होंने कुछ आक्रामक अन्दाज में उत्तर दिया कि एक नानबाई इस इल्म को सीखने कहाँ
जाएगा? क्या वह किसी नगीना जड़ने वाले के पास जाएगा? या फिर आइना बनाने वाले, मीना
का काम करने वाले, कपड़े रफू करने वाले, कपड़े रँगने वाले, तेल निकालने वाले या
पान बेचने वाले के पास जाएगा? मियाँ ने बताया कि वह उनका खानदानी पेशा था और इसकी
शिक्षा उन्होंने अपने पिता से प्राप्त की थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न : 'मियाँ नसीरुद्दीन' नामक पाठ के
आधार पर नसीरुद्दीन के चरित्र की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
: मियाँ नसीरुद्दीन 'शब्द-चित्र' कृष्णा सोबती के संग्रह 'हम हशमत' से लिया गया
है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्त्व और स्वभाव का
शब्द-चित्र अंकित किया गया है। उनके चरित्र की सामान्य विशेषताओं का निरूपण निम्न
शीर्षकों में किया जा सकता है -
1.
परिचयात्मक विवरण-मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नानबाई हैं। उनकी
दुकान मटियामहल के गदैया मोहल्ले में थी, जहाँ वे अपनी चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे
थे। उनकी उम्र लगभग 70 साल थी। उनके दादा आला नानबाई कल्लन मियाँ थे और वालिद (पिता)
थे मियाँ बरकत शाही नानबाई गदैया वाले। मियाँ नसीरुद्दीन की कोई औलाद नहीं है।
2.
पेशे को कला समझने वाले-मियाँ नसीरुद्दीन अपने इस नानबाई के पेशे
को कला समझते हैं और इसे 'हुनर' कहते हैं। उन्होंने इस हुनर की शिक्षा अपने वालिद साहब
से प्राप्त की और इसके लिए उन्होंने एक-एक करके सब सीखा-बर्तन धोना, भट्ठी सुलगाना,
आटा गूंथना। रोटी पकाने की कला की सभी बारीकियाँ उन्हें आती हैं।
3.
छप्पन किस्म की रोटियों के जानकार-मियाँ नसीरुद्दीन मशहूर हैं
छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए। इनमें से कुछ.किस्म की रोटियों के नाम हैं-रूमाली,
बाकरखानी, शीरमाल, ताफतान, बेसनी, खमीरी, गाव, दीदा, गाजेबान, तुनकी, तन्दूरी आदि।
4.
शाही नानबाई-उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनके बुजुर्ग बादशाह
सलामत के बावर्ची खाने के शाही नानबाई रहे हैं। किन्तु जब बादशाह का नाम जानने का आग्रह
किया गया तो वे असहज होकर टाल गए, क्योंकि उन्हें खुद नहीं पता कि किस बादशाह के बावर्चीखाने
में उनके बुजुर्गों ने काम किया था? वे तो बस सुनी-सुनाई बात कह रहे थे।
5.
कद्रदानों की कमी से हताश-मियाँ को लगता है कि अब उनके हुनर की कद्रदानी
करने वाले लोग नहीं रहे। कहने लगे-उतर गए वे जमाने और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने
की कद्र करना जानते थे। मियाँ अब क्या रखा है-निकाली तन्दूर से निगली और हजमा उक्त
विवेचन से स्पष्ट है कि लेखिका ने इस शब्द-चित्र में मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व
एवं चरित्र के सभी पहलुओं को उजागर करने में सफलता प्राप्त की हैं।
मियाँ नसीरुद्दीन (सारांश)
लेखिका
परिचय :
हिन्दी
की.प्रमुख लेखिका कृष्णा सोबती का जन्म सन् 1925 ई. में हुआ था। उनका जन्म स्थान
पश्चिमी पंजाब है जो अब.. पाकिस्तान में है। कृष्णा सोबती का हिन्दी कथा साहित्य
में विशिष्ट योगदान है। उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, संस्मरण लिखकर पाठकों का एक
बड़ा वर्ग तैयार किया है, जो उनकी रचनाओं को पसन्द करता है। भारत-पाकिस्तान विभाजन
की त्रासदी पर जिन लेखकों ने महत्त्वपूर्ण रचनाएँ लिखी हैं, उनमें कृष्णा सोबती का
विशिष्ट स्थान है। उनका उपन्यास 'ज़िन्दगीनामा' इसी त्रासदी को प्रस्तुत करने वाले
उपन्यासों-झूठा सच (यशपाल), आधा गाँव (राही मासूम रजा), तमस (भीष्म साहनी) की
श्रृंखला में आता है। इनकी मृत्यु 25 जनवरी 2019 को हुई थी।
प्रमुख
कृतियाँ -
उपन्यास
- ज़िन्दगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम।
कहानी
संग्रह - डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, बादलों
के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के।
संस्मरण
- हम-हशमत, शब्दों के आलोक में।
साहित्यिक
उपलब्धियाँ - कृष्णा जी को उनकी रचनाओं पर विविध
पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। साहित्य अकादमी सम्मान, हिन्दी अकादमी का शलाका सम्मान,
साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से उन्हें नवाजा
गया है।
उन्होंने
हिन्दी - साहित्य को कई.यादगार चरित्र दिए हैं,
यथा-मित्रो, शाहनी, हशमत आदि। संस्मरण के क्षेत्र में उनकी कृति। 'हम हशमत' का
विशिष्ट स्थान है। उन्होंने एक अद्भुत प्रयोग संस्मरण के क्षेत्र में किया है।
स्वयं को 'हशमत' नाम से एक पात्र के रूप में प्रस्तुत किया है।
भाषा-शैली
- कथाओं के माध्यम से कृष्णाजी ने भाषा में नए-नए प्रयोग किए हैं। उनके भाषिक
प्रयोगों में विलक्षणता है। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ उर्दू एवं अंग्रेजी
के शब्द भी उनकी रचनाओं में मिलते हैं। ठेठ पंजाबी शब्द भी उनकी भाषा में दिखाई
पड़ जाते हैं।
विषय
के अनुरूप वे अपनी शैली का स्वरूप बदलती रहती हैं। वर्णनात्मक, विवेचनात्मक,
भावात्मक, विवरणात्मक शैली का प्रयोग वे प्रमुखता से करती हैं।
पाठ
सारांश :
मियाँ
नसीरुद्दीन' कृष्णा सोबती द्वारा रचित एक शब्दचित्र है, जो उनके संस्मरण 'हम हशमत'
से लिया गया है। इसमें . खानदानी नानबाई (रोटी पकाने वाले) मियाँ नसीरुद्दीन के
व्यक्तित्त्व, स्वभाव, रुचियों को प्रस्तुत किया गया है। रोटी पकाने की कला,
विभिन्न प्रकार की रोटियाँ पकाने में अपनी खानदानी महारत को वे अपने परिवार की
विशिष्टता बताते हैं। साथ ही एक ऐसे इंसान का . प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अपने
पेशे को 'कला' का दर्जा देता है और इस कला में पारंगत होने के लिए स्वयं उस हुनर
को सीखने पर बल देता है। पाठ का सारांश निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता
है :
नानबाइयों
के मसीहा - उस दिन लेखिका ने 'मटियामहल' की तरफ से
गुजरते हुए 'नानबाइयों के मसीहा' मियाँ नसीरुद्दीन को और उनके अन्दाज को जाना।
मटियामहल के गदैया मोहल्ले में एक निहायत मामूली अंधेरी सी दुकान पर आटे का ढेर
साना जा रहा था। यह मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान थी जो छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने
के लिए मशहूर थे। वे इस शहर में नानबाइयों के मसीहा समझे जाते हैं।
मियाँ
नसीरुद्दीन का व्यक्तित्त्व - मियाँ नसीरुद्दीन
चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। चेहरा मौसमों की मार से पका हुआ, आँखों में
काइयाँ भोलापन और पेशानी (ललाट) पर मँजे हुए कारीगर के तेवर साफ झलक रहे थे।
लेखिका को ग्राहक समझकर बोले-'फरमाइए। झिझक के साथ लेखिका ने कहा-'निकालेंगे वक्त'
? पर यह तो कहिए कि आपको पूछना क्या है? फिर घूरकर देखा और कहा-अखबारनवीस.तो नहीं
हो, यह तो खोजियों की ख़ुराफात है। खैर जब आपने यहाँ तक आने की तकलीफ उठाई है तो
पूछिए क्या पूछना है ?
नानबाई-हमारा
खानदानी पेशा - मियाँ से पूछा गया कि किस्म-किस्म
की रोटी पकाने का इल्म उन्होंने कहाँ से सीखा?. आँखें तरेरकर बोले-नानबाई इल्म
लेने कहीं और जाएगा ? रँगरेज, तम्बोली या नगीनासाज के पास ? साहब ! यह तो हमारा
खानदानी पेशा है। इल्म की बात पूछिए तो जो कुछ भी सीखा अपने वालिद (पिता) उस्ताद
से सीखा। जो बाप-दादा का हुनर था वही उनसे पाया और पिता की मृत्यु के बाद बैठ गए
उनके ठीए (स्थान) पर।
फिर
उन्होंने बताया कि उनके पिता मियाँ बरकतशाही नानबाई गढ़ेयावाले के नाम से मशहूर थे
और हमारे दादा साहब थे आला नानबाई मियाँ कल्लन।
नानबाई
का हुनर - जब उनसे पूछा गया कि आपके वालिद या दादा
साहब ने नानबाई के पेशे से सम्बन्धित क्या नसीहतें आपको दी? तब उन्होंने बताया कि
पढ़ाई धीरे-धीरे की जाती है। एक कक्षा को फलांग कर अगली कक्षा में कूद जाने से
बच्चे की नींव कमजोर हो जाती है। वैसे भी इस काम से जुड़े सभी पहलुओं को दुकान पर
रहकर धीरे-धीरे सीखकर इस हुनर को प्राप्त किया है। बर्तन धोना, भट्टी बनाना, भट्टी
को आँच देना जैसे प्रारम्भिक काम सीखकर ही हम नानबाई के हुनर में पारंगत हुए। हमने
यदि खोमचा न लगाया होता तो आज यहाँ न बैठे होते। जब उनसे यह प्रश्न पूछा गया कि
क्या यहाँ और भी 'नानबाई' हैं ? तो उन्होंने घूरते हुए कहा-'बहुतेरे हैं, पर
खानदानी नहीं हैं।'
शाही
नानबाई-मियाँ नसीरुद्दीन ने यह भी बताया कि उनके बुजुर्ग बादशाह के शाही नानबाई
रहे हैं। जब यह पूछा गया कि किस बादशाह के ? तो उत्तर दिया-कह दिया न कि बादशाह के
यहाँ काम करते थे, सो क्या काफी नहीं है ? जब नाम जानने का इसरार (आग्रह) किया तो
बोले-उनका नाम कौन नहीं जानता जहाँपनाह बादशाह सलामत ही ना कहने लगे-एक दिन बादशाह
सलामत ने कहा-मियाँ नानबाई कोई नई चीज खिला सकते हो? कोई ऐसी चीज बनाओ जो न आग से
पके, न पानी से बने। जब उनसे पूछा गया-क्या ऐसी चीज बनी? तो उत्तर दिया, क्यों न
बनती साहब, बनी और.बादशाह सलामत ने खुद खाई। जब उस पकवान का नाम पूछा गया तो फिर
टाल गए और बोले-सो हम न बतावेंगे बस इतना समझ लीजै कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी
रोटी पका सकता है।
मियाँ
ने एक बीड़ी और सुलगा ली थी अत: बोले-सत्तर के हो चुके हम, वालिद मरहूम तो अस्सी
के होकर गए पर क्या मालूम हमें इतनी मोहलत न मिले। तरह-तरह की रोटियाँ तभी मियाँ
नसीरुद्दीन ने अपने कारीगर बब्बन से कहा-'अरे ओ बब्बन मियाँ ! भट्टी सुलगा दो तो
काम से निबटें। पूछने पर बताया ये बब्बन उनके कारीगर, शागिर्द हैं तथा गिन के
मजूरी देता हूँ-दो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदे की मजूरी। जब उनसे यह पूछा
कि भट्टी पर ज्यादातर कौन सी रोटियाँ पका करती हैं? तो हमसे छुटकारा पाने को
बोले-बाकरखानी, शीरमाल ताफतान, बेसनी, खमीरी, रूमाली, गाव, दीदा, गाजेवान, तुनकी।
फिर घूरकर हमारी और देखा और बोले-तुनकी पापड़ से भी ज्यादा महीन होती है, किसी दिन
खिलाएंगे आपको।'
फिर
कहने लगे, चले गए वे जमाने और वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। अब
क्या रखा है-निकली तन्दूर से-निगली और हजमा।
कठिन शब्दार्थ :
o
नानबाई
= तरह-तरह की रोटी बनाने, बेचने का काम करने वाला व्यक्ति,
o
मसीहा
= अग्रगण्य व्यक्ति
o
लुत्फ
= आनन्द
o
निहायत
= अत्यधिक
o
ठिठके
= रुके
o
किस्म
= प्रकार
o
काइयाँ
= धूर्त, चालाक
o
पेशानी
= मस्तक (ललाट)
o
फरमाइए
= कहिए
o
झिझक
= संकोच
o
अखबारनवीस
= पत्रकार
o
खुराफात
= शरारत।
o
निठल्ला
= बेकार
o
तकलीफ
= परेशानी
o
इल्म
= कला, विद्या
o
हासिल
= प्राप्त
o
नगीनासाज
= नगीना जड़ने वाला
o
मीनासाज
= मीनाकारी करने वाला
o
रफूगर
= फटे कपड़े को दुरुस्त करके सीने वाला (रफू करने वाला)
o
रंगरेज
= कपड़ों की रँगाई का काम करने वाला कारीगर
o
तम्बोली
= पान बेचने वाला
o
वालिद
= पिता, उस्ताद गुरु, अख्तियार करना अपनाना
o
पेशा
= व्यवसाय।
o
हुनर
= कला
o
मरहूम
= जिसकी मृत्यु हो चुकी हो (स्वर्गवासी, मृत)
o
ठीया
= स्थान, लमहापल
o
गुम
= खो जाना
o
नसीहत
= शिक्षा
o
बजा
फरमाया = ठीक कहा
o
शागिर्द
= शिष्य
o
परवान
करना = उन्नति की तरफ बढ़ना।
o
बाबत
= सम्बन्ध में
o
सुकरात
= यूनानी दार्शनिक
o
मदरसे
= पाठशाला
o
जमातों
= कक्षाओं
o
निचोड़
= निष्कर्ष
o
तालीम
की तालीम = शिक्षा की शिक्षा।
o
जिक्र
= उल्लेख
o
बुजुर्गों
= बड़े-बूढ़ों
o
बेसब्री
= अधीरता
o
इत्ता
= इतना
o
करतब
= कला
o
तरेरा
= आँख टेढ़ी करना (गुस्से से देखना) (मुहावरा)
o
फरमाना
= कहना।
o
रूमाली
= एक तरह की रोटी जो रूमाल की तरह बड़ी और पतली होती है
o
जहमत
उठाना = कष्ट उठाना
o
फुर्ती
= शीघ्रता
o
मोहलत
मिलना = समय मिलना
o
मजमून
= विषय (मामला)
o
बाबर्ची
खाना = रसोईघर
o
बेरुखी
= अप्रसन्नता
o
बाल
की खाल निकालना = सूक्ष्म ढंग से छानबीन करना (मुहावरा)
o
खिल्ली
उड़ाना = उपहास करना (मुहावरा)
o
खीजकर
= आक्रोशित होकर।
o
बिटर-बिटर
देखना = घूरते हुए देखना
o
निबटें
= समाप्त हों
o
अन्धड़
= तूफान
o
शागिर्दी
= शिष्यत्व
o
मजूरी
= पारिश्रमिक (काम के बदले प्राप्त धन)
o
गुमशुदा
= जो खो गया हो
o
कद्रदान
= कद्र करने वाला
o
तन्दूर
= वह भट्टी जिसमें रोटियाँ सेंकी (पकाई) जाती हैं।
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
1. साहबों, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ से न गुजर जाते
तो राजनीति, साहित्य और कला के हजारों-हजार मसीहों के धूम-धड़क्के में नानबाइयों के
मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्फ उनके मसीही अन्दाज
का हुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के गया मुहल्ले की ओर
निकल गए।
एक
निहायत मामूली अन्धेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देख ठिठके। सोचा,
सेवइयों की तैयारी होगी, पर पूछने पर मालूम हुआ कि खानदानी नानबाई मियाँ
नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़े हैं। मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने
के लिए। हमने जो अन्दर झाँका तो पाया, मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मजा ले रहे
हैं। मौसमों की मार से : पका चेहरा, आँखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी. पर मैंजे
हुए कारीगर के तेवर।।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक
'आरोह में संकलित कृष्णा सोबती के संस्मरण 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इस
अंश में लेखिका ने शहर के प्रसिद्ध नानबाई (रोंटी बेचने वाले) मियाँ नसीरुद्दीन की
दुकान का परिचय कराया है।
व्याख्या
- एक दिन लेखिका मटियामहल की ओर निकल गई और अनायास ही मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई की
दुकान के सामने से निकलीं। लेखिका कहती है कि अगर उसका उधर जाना न होता तो
राजनीति, साहित्य और कला के क्षेत्रों में प्रसिद्ध हजारों महापुरुषों की भीड़ में
मियाँ नसीरुद्दीन को पहचानना मुश्किल था। मटियामहल के गढैया मोहल्ले में एक मामूली
और अँधेरी-सी दुकान पर ढेर सारा आटा माड़ा जा रहा था। यह देखकर लेखिका अचानक रुक
गई। लेखिका ने सोचा कि शायद सिवइयाँ बनाने की तैयारी हो रही थी।
जब
लेखिका ने पता किया तो ज्ञात हुआ कि वह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान
थी। मियाँ नसीरुद्दीन पूरे क्षेत्र में छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए
प्रसिद्ध थे। जब लेखिका ने दुकान के अंदर झाँका तो देखा कि मियाँ चारपाई पर आराम
फरमाते हुए बीड़ी पीने का मजा ले रहे थे। उनके मुँह पर बढ़ती उम्र के निशान झाँक
रहे थे। उनकी आँखों पर भोलेपन के साथ-साथ चंटपन का भाव झलक रहा था। उनके माथे पर
पड़ी रेखाएँ बता रही थीं कि वह एक कुशल और अनुभवी कारीगर थे।
विशेष
- लेखिका ने संस्मरण को जीवन्त और प्रभावशाली बनाने के लिए शब्द-चित्रात्मक शैली
का प्रयोग किया है।
प्रश्न :
1. मियाँ नसीरुद्दीन कौन थे ? लेखिका का उनसे परिचय किस प्रकार हुआ?
2. मियाँ नसीरुद्दीन किस बात के लिए प्रसिद्ध थे? उन्हें नानबाइयों का मसीहा
क्यों कहा जाता था ?
3. मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान का दृश्य क्या था ?
4 मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र इस अवतरण के आधार पर प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
:
1.
मियाँ नसीरुद्दीन एक मशहूर नानबाई थे। उनकी दुकान मटियामहल के गदैया मोहल्ले में थी।
लेखिका एक दिन घूमती हुई मटियामहल की ओर जा निकली, वहीं एक नानबाई की दुकान पर इनका
परिचय मियाँ नसीरुद्दीन से हुआ।
2.
मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वे खानदानी नानबाई
थे और नानबाइयों में अपने हुनर के कारण सर्वश्रेष्ठ समझे जाते थे। इसीलिए लेखिका ने
उन्हें नानबाइयों का मसीहा कहा है।
3.
मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान एक मामूली अंधेरी-सी दुकान थी। दुकान में फुर्ती से आटे
का ढेर साना जा रहा था। लेखिका को लगा कि सेवइयाँ बनाने की तैयारी हो रही थीं। पता
चला कि वह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान थी।
4.
मियाँ नसीरुद्दीन एक खानदानी नानबाई (रोटी बनाने वाले) थे। वे सत्तर वर्ष के बूढ़े
व्यक्ति थे। चेहरा पका हुआ था। आँखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी पर मँजे हुए कारीगर
के तेवर थे।
2. पूछना यह था कि किस्म-किस्म की रोटी पकाने का इल्म आपने
कहाँ से हासिल किया?' मियाँ नसीरुद्दीन ने आँखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर
बोले-'क्या मतलब ? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज़ के पास
? क्या आईनासाज़ के पास? क्या मीनासाज़ के पास? या रफूगर, रंगरेज या तेली-तम्बोली से
सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा। हाँ, इल्म की बात
पूछिए तो जो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही। मतलब यह कि हम घर से न निकले कि
कोई पेशा अख्तियार करेंगे। जो बाप-दादा का हुनर था वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के
उठ जाने पर बैठे उन्हीं के ठीये पर !'
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक
'आरोह' में संकलित कृष्णा सोबती के संस्मरण 'मियाँ नसीरुद्दीन से लिया गया है। इस
अंश में नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन बता रहे हैं कि उन्होंने यह पेशा अपने वालिद
(पिता) साहब से सीखा है।
व्याख्या
- लेखिका यह पता करना चाहती थी कि मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का काम किससे सीखा
था। लेखिका द्वारा पूछे जाने पर मियाँ ने लेखिका को गौर से देखा और फिर आँखें
तरेरते हुए कहा कि यह एक व्यर्थ का प्रश्न था। वह कहने लगे कि जो नानबाई बनना
चाहेगा वह किसी न किसी कुशल नानबाई के ही पास तो जाएगा, न वह नग जड़ने वाले के पास
जाएगा, न दर्पण बनाने वाले पास।
मीनाकारी
करने वाले, कपड़े रफू करने वाले, कपड़े रँगने वाले, तेल निकालने वाले या पान बेचने
वाले के पास तो जाएगा नहीं। मियाँ ने लेखिका से व्यंग्य भरे लहजे में कहा कि
नानबाई का काम तो उन्होंने अपने पिता से सीखा था। वह किसी पेशे या रोजगार की खोज
में कभी घर से नहीं निकले। उनके पिता और पूर्वजों के पास जो कला थी, उसे उन्होंने
उन्हीं से सीखा था। जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया तब उनकी गद्दी पर बैठकर काम
को आगे बढ़ाया।
विशेष
: मियाँ नसीरुद्दीन उन हुनरमंद लोगों में से थे जिनको अपने खानदानी पेशे को अपनाने
में गर्व का अनुभव होता है। उनके संवाद बड़े रोचक हैं।
प्रश्न :
1. लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से क्या प्रश्न किया ?
2. मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका के प्रश्न का क्या उत्तर दिया ?
3. नगीनासाज़, रफूगर, रंगरेज, तम्बोली कौन होते हैं ? स्पष्ट करें।
4. मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का हुनर सीखने के बारे में और क्या बताया
?
उत्तर
:
1.
लेखिका ने नानबाई नसीरुद्दीन से पूछा कि रोटियाँ बनाने का इल्म (कला) आपने कहाँ से
हासिल किया?
2.
नसीरुद्दीन ने लेखिका को बताया कि यह तो उनका खानदानी पेशा था। यह हुनर उन्होंने अपने
वालिद (पिता) से सीखा है। वे ही इस विद्या को सिखाने वाले उस्ताद (गुरु) थे।
3.
नगीनों को जड़ने वाला नगीनासाज़ कहलाता है। फटे कपड़ों को ठीक करने वाला रफूगर, कपड़ों
को रँगने वाला रंगरेज और पान बेचने वाला तम्बोली कहा जाता है।
4.
मियाँ नसीरुद्दीन ने बताया कि वह उनका खानदानी पेशा था। अत: उन्हें इसे सीखने के लिए
कहीं बाहर जाने की क्या जरूरत थी। उन्होंने जो सीखा अपने पिता से सीखा, उन्होंने कोई
और पेशा अपनाने के बारे में सोचा तक नहीं।
3. अपना खयाल था कि मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई अपनी बात
का निचोड़ भी निकालेंगे। पर वह हमीं पर दागते . रहे-"आप ही बताइए-उन दो-तीन जमादों
का हुआ क्या ?"
"यह
बात मेरी समझ के तो बाहर है।"
इस
बार शाही नानबाई मियाँ कल्लन के पोते अपने बचे-खुचे दाँतों से खिलखिला के हँस दिए।
मतलब मेरा क्या साफ न था ! लो साहिबो, अभी साफ हुआ जाता है। जरा-सी देर को मान
लीजिए-हम बर्तन धोना न सीखते, हम भट्ठी बनाना न सीखते, भट्ठी को आँच देना न सीखते,
तो क्या हम सीधे-सीधे नानबाई का हुनर सीख जाते। मियाँ नसीरुद्दीन ने हमारी ओर कुछ
ऐसे देखा किए कि उन्हें हम से जवाब पाना हो।
फिर
बड़े ही मँजे अन्दाज में कहा-'कहने का मतलब साहिब यह कि तालीम की तालीम भी बड़ी
चीज होती है। सिर हिलाया-"है ! साहिब, माना!" मियाँ नसीरुद्दीन जोश में
आ गए-'हमने न लगाया होता खोमचा तो आज क्या यहाँ बैठे होते !' मियाँ को खोमचे वाले
दिनों में भटकते देख हमने बात का रुख मोड़ा-'आपने खानदानी नानबाई होने का जिक्र
किया, क्या यहाँ और भी नानबाई हैं ? मियाँ ने घूरा-'बहुतेरे, पर खानदानी नहीं।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक
'आरोह' में संकलित कृष्णा सोबती के संस्मरण 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इस
अंश में मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का काम सीखने की अपनी राम कहानी सुना रहे हैं।
व्याख्या
- लेखिका को आशा थी कि मियाँ नसीरुद्दीन
थोड़े से शब्दों में अपनी बात का सार बताकर लेखिका को संतुष्ट कर देंगे। लेकिन
चतुर मियाँ जी उत्तर देने के बजाय लेखिका पर ही अपने प्रश्न दागते रहे। उन्होंने
लेखिका से पूछा कि अगर कोई बालक सीधा तीसरी कक्षा में प्रवेश ले ले तो बाकी की दो
जमातों (कक्षाओं) का क्या होगा। लेखिका ने कहा कि वह इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे
सकती। यह सुनकर मियाँ कल्लन के पोते मियाँ नसीरुद्दीन खिलखिला कर हँस दिए। उनके
मुँह में जो दाँत बचे थे, वे लेखिका को दिखाई दे गए।
मियाँ
जी ने अपना आशय स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर वह बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को
जलाना, आदि न सीखते तो सीधे नानबाई कैसे बन सकते थे? इसके बाद मियाँ नसीरुद्दीन ने
बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा (सीखना) की शिक्षा का भी बहुत महत्व होता
है। इसके बाद कुछ जोश में आकर बोले कि अगर उन्होंने खोमचा लगाकर सामान न बेचा होता
तो वह पुरखों की उस गद्दी पर कैसे बैठ सकते थे? मियाँ जी को मूल बात से भटकते देख
लेखिका ने उनसे सीधा सवाल किया कि वह तो खानदानी नानबाई हैं लेकिन क्या शहर में और
भी ऐसे नानंबाई हैं ? मियाँ कुछ नाराज हुए और बोले कि नानबाई तो और भी हैं लेकिन
कोई उनकी तरह खानदानी नानबाई नहीं है।
विशेष
- अपने संस्मरण को रोचक बनाने के लिए लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से अपने मतलब के
सवालात किए हैं। खानदानी नानबाई होने का गर्व नसीरुद्दीन को बार-बार भटका देता है।
प्रश्न :
1. नसीरुद्दीन की कौन-सी बात लेखिका की समझ से बाहर थी? उसका आशय क्या
था ?
2. मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने वालिद से क्या-क्या सीखा ? . 3. तालीम
की तालीम से क्या तात्पर्य है ?
4. खानदानी दुकान की गद्दी सम्हालने की योग्यता नसीरुद्दीन ने कैसे
प्राप्त की ?
उत्तर
:
1.
मियाँ नसीरुद्दीन ने पूछा कि अगर कोई बच्चा सीधा तीसरी कक्षा में दाखिला ले तो उसकी
आगे की पढ़ाई पर क्या असर होगा? उनका आशय था कि हर शिक्षा या हुनर को क्रमबद्ध तरीके
से सीखना चाहिए वरना नींव कमजोर होने से व्यक्ति आगे कुशल कारीगर नहीं बन पाएगा। मियाँ
नसीरुद्दीन उन मियाँ कल्लन के पोते थे जो अपने समय में शाही नानबाई रहे थे।
2.
मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने पिता से 'नानबाई कला' की सारी बारीकियाँ तो सीखी ही थीं,
साथ में वे छोटे-छोटे काम भी सीखे जो अच्छे नानबाई के लिए जरूरी होते हैं। जैसे-बर्तन
धोना, भट्ठी बनाना और भट्ठी को आँच देना। इन्हें सीखे बिना वे नानबाई का हुनर कैसे
सीख सकते थे?
3.
तालीम की तालीम का शाब्दिक अर्थ है-शिक्षा की शिक्षा। यहाँ तालीम का तात्पर्य है-'नानबाई
का हुनर सीखना' और इस हुनर को सीखने से पहले इससे जुड़ी तमाम
बातें-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी में आँच देना आदि सीखने पड़ते हैं। इसी को
तालीम की तालीम कहा गया है।
4.
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार अगर वह खोमचा न लगाते तो उन्हें खानदानी नानबाइयों की गद्दी
सम्हालने की तमीज नहीं आती।
4. मियाँ ने एक और बीड़ी सुलगा ली थी। सो कुछ फुर्ती पा
गए थे-'पूछिए, अरे बात ही तो पूछिएगा-जान तो न ले लेवेंगे। उसमें भी अब क्या देर! सत्तर
के हो चुके' फिर जैसे अपने से ही कहते हों-'वालिद मरहूम तो कूच किए अस्सी पर क्या मालूम
हमें इतनी मोहलत मिले, न मिले'। इस मजमून पर हमसे कुछ कहते न बन आया तो कहा-"अभी
यही जानना था कि आपके बुजुर्गों ने शाही बावर्चीखाने में तो काम किया ही होगा?"
मियाँ ने बेरुखी से टोका-'यह बात तो पहले हो चुकी न!" हो तो चुकी साहिब, पर जानना
यह था कि दिल्ली के किस बादशाह के यहाँ आपके बुजुर्ग काम किया करते थे?''अजी साहिब,
क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं !
कह
दिया कि बादशाह के यहाँ काम करते थे, सो क्या काफी नहीं ? हम खिसियानी हँसी
हँसे-"है तो काफी, पर जरा नाम लेते तो उसे वक्त से मिला लेते।"
"वक्त से मिला लेते-खूब! पर किसे मिलाते जनाब आप वक्त से?" मियाँ हँसे
जैसे हमारी खिल्ली उड़ाते हों। "वक्त से वक्त को किसी ने मिलाया है आज तक!
खैर-पूछिए-किसका नाम जानना चाहते हैं ? दिल्ली के बादशाह का ही ना! उनका नाम कौन
नहीं जानता-जहाँपनाह बादशाह सलामत ही न!" "कौन-से, बहादुरशाह ज़फ़र कि
.....!" मियाँ ने खीजकर कहा-फिर अलट-पलट के वही बात। लिख लीजिए बस यही
नाम-आपको कौन बादशाह के नाम चिट्ठी-रुक्का भेजना है कि डाकखानेवालों के लिए सही
नाम-पता ही जरूरी है।"
संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कृष्णा सोबती के संस्मरण 'मियाँ नसीरुद्दीन' से.
लिया गया है। इस अंश में लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन से उस बादशाह का नाम जानने की
कोशिश कर रही है जिनके यहाँ नसीरुद्दीन के। पूर्वजों ने बावर्ची का काम किया था।
व्याख्या - लेखिका के साथ बातें
करते हुए मियाँ नसीरुद्दीन ने एक बीड़ी और सुलगा ली थी। इससे उनमें कुछ फुर्ती आई
दिखाई दे रही थी। मियाँ ने लेखिका से कहा कि वह अपना प्रश्न पूछे। वह जवाब ही
चाहती है। उनकी जान तो नहीं लेगी। वैसे भी वह अब काफी वृद्ध हो चुके थे। दुनिया से
विदाई का वक्त भी ज्यादा दूर नहीं था। वह सत्तर साल के हो चुके थे। उन्होंने बताया
कि उनके पिता अस्सी वर्ष की आयु में संसार से चल दिए थे। उन्हें पता न था कि उनकी
उम्र अस्सी तक पहुँच पाएगी या नहीं? लेखिका इस प्रसंग पर कुछ नहीं कह सकी और बोली
कि वह उस समय तो इतना ही जानना चाहती थी कि मियाँ जी के पुरखों ने शाही
बावर्चीखाने में तो काम किया ही होगा? इस पर मियाँ बोले कि इस बारे में तो पहले
बात हो चुकी थी।
लेखिका
ने कहा कि बात तो हो चुकी थी लेकिन वह जानना चाहती थी कि दिल्ली के किस बादशाह के
यहाँ मियाँ जी के बुजुर्गों ने काम किया था ? मियाँ जरा बिगड़ते हुए। बोले कि वह
(लेखिका) तो हर छोटी-से-छोटी बात जानने पर तुली हुई थी। उनका इतना कहना ही काफी था
कि उनके बड़े-बूढ़े बादशाह के यहाँ ही काम करते थे। मियाँ के इस रूखे जवाब पर
लेखिका झेंप गई और खिसिआई-सी नकली हँसी हँसने लगी। उसने। कहा कि उनके मियाँ जी का
कहना ही काफी था मगर वह चाहती थी कि नाम पता चल जाता तो समय से समय का मिलान करके
पाठकों को सही सूचना दे सकती थी। मियाँजी ने लेखिका के इस कथन की खिल्ली-सी उड़ाते
हुए कहा कि वह वक्त से किसे मिला लेती ?
क्या
कभी कोई वक्त को वक्त से मिला पाया था ? मियाँ ने आगे कहा कि वह (लेखिका) किसका
नाम जानना चाहती थी? वह तो वही जहाँपनाह बादशाह सलामत थे। लेखिका ने हार नहीं मानी
और फिर पूछा कि आखिर वह कौन से बादशाह सलामत थे? क्या बहादुर शाह जफ़र? मियाँ
नसीरुद्दीन इस सवाल पर चिढ़ से गए और बोले कि वह बार-बार यही प्रश्न करती जा रही
हैं। अरे ! बहादुर शाह जफ़र का ही नाम लिख लें। उनको उस बादशाह के नाम से कोई खत
तो भेजना न था जो सही नाम लिखा जाना जरूरी है। इस तरह मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका
से अपना पीछा छुड़ाया।
विशेष
-
वार्तालाप
रोचक है। दोनों पात्र अपने-अपने ढंग से सवाल-जवाब करते और चतुराई बरतते दिखाए गए
हैं।
बातचीत
की भाषा पात्रों के अनुरूप है। शैली में बेबाकी है। उसे सजाया-सँवारा नहीं गया है।
प्रश्न :
1. लेखिका ने नसीरुद्दीन से क्या जानना चाहा ? मियाँ ने इसका क्या उत्तर
दिया ?
2. मियाँ ने किस बात को लेकर लेखिका की खिल्ली उड़ाई और कैसे ?
3. बादशाह का नाम पूछे जाने पर नसीरुद्दीन का जवाब क्या था?
4. शाही नानबाई होने के पीछे क्या सच्चाई प्रतीत होती है ?
उत्तर
:
1.
लेखिका से नसीरुद्दीन ने कहा था कि उनके दादा शाही बावर्ची थे। लेखिका ने उनसे जानना
चाहा कि वह किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। मियाँ ने सीधा जवाब न देकर कहा कि वह बेकार
बाल की खाल निकाल रही थीं।
2.
लेखिका द्वारा बादशाह का नाम जानने पर जोर दिया तो मियाँ नसीरुद्दीन ने उसका कारण पूछा।
लेखिका ने कहा वह उसे वक्त से मिलाना चाहती थी। इस पर मियाँ ने लेखिका की खिल्ली उड़ाते
हुए कहा कि वक्त को वक्त से आज तक कोई नहीं मिला पाया।
3.
बादशाह का नाम पूछे जाने पर मियाँ ने गोल-मोल जवाब दिया। उन्होंने कहा कि भला उनका
नाम कौन नहीं जानता ? लेखिका ने पूछा कि क्या वह बहादुरशाह जफ़र थे? इस पर मियाँ उखड़
गए और बोले कि उनको क्या बादशाह के नाम चिट्ठी या रुक्का भेजना है कि डाकखाने वालों
को सही नाम और पता बताया जाए ?
4. शाही नानबाई होने के पीछे यही सच्चाई प्रतीत होती है कि ऐसा कुछ नहीं था। केवल दुकान का नाम ऊँचा करने को यह बात गढ़ी गई थी। यदि इसमें सच्चाई होती तो मियाँ गोल-मोल जवाब न देकर तुरन्त बादशाह का नाम बता देते।