पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1. इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?
उत्तर
: स्पीति का भूगोल दुर्गम है, यहाँ पहुँचना बहुत कठिन है तथा सन्देश भेजने के भी साधन
यहाँ नहीं हैं। इसलिए इतिहास . में इसका वर्णन नहीं मिलता।
प्रश्न 2. स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते
हैं ?
उत्तर
: 'स्पीति' घाटी में बसा हुआ है तथा यहाँ के निवासियों को जीवन-यापन के लिए अनेक कठिनाइयों
का सामना करना पड़ता है। वर्षभर यहाँ बर्फ जमी रहती है। केवल दो ऋतुएँ होती हैं-वसन्त
और शीत। वर्षा यहाँ कभी-कभार ही होती है, धरती सूखी और बाँझ है, झरनों के पानी से सिंचाई
होती है। साल में एक फसल होती है, फल वाले वृक्ष यहाँ ठण्ड के कारण नहीं होते। चारों
ओर ऊँचे पहाड़ हैं जो नंगे हैं, हरियाली, फूल भी यहाँ नहीं हैं। सर्दी, ठिठुरन का साम्राज्य
है। इस प्रकार यहाँ जीवन-यापन बहुत कठिन है। लेखक को तो इस बात पर आश्चर्य होता है
कि लोग यहाँ कैसे रह लेते हैं ? अत्यधिक ठण्ड के कारण लोगों को अनेक कठिनाइयों का सामना
करना पड़ता है।
प्रश्न 3. लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मन्त्र के नाम पर
करने के पक्ष में क्यों है ?
उत्तर
: स्पीति के दक्षिण में जो पर्वत श्रेणी है उसका नाम माने पर्वत श्रेणी है। लेखक का
अनुमान है कि उसका यह नाम कहीं बौद्धों के माने मन्त्र के नाम परं तो नहीं रखा गया
है ? जिसका बीज मन्त्र है-'ओं मणि पो हुँ'। इन पहाड़ियों में माने मन्त्र का: इतना
जाप बौद्ध मतावलम्बियों ने किया है कि यही नाम इन पर्वत श्रेणियों को दे देना चाहिए,
ऐसा लेखक का मत है।
प्रश्न 4. 'ये माने की चोटियों बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं'-इस
पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है ?
उत्तर
: माने पर्वत श्रेणियों में बौद्ध धर्म के अनुयायी बूढ़े लामाओं ने माने मन्त्र का
इतना जाप किया है कि ये चोटियाँ उदास हो गई हैं, इसलिए लेखक युवा जोड़ों से आग्रह करता
है कि वे यहाँ आकर अपना अहंकार गलाएँ और साहस एवं सामर्थ्य का परिचय देकर यहाँ किलोल
करें, और साहसिक पर्वतारोहण करें तो सम्भवतः युवा अट्टहास की गरमी से स्पीति का आर्तनाद
कुछ तो पिघले।
प्रश्न 5. वर्षा यहाँ एक घटना है, एक सुखद संयोग है-लेखक ने ऐसा क्यों
कहा है ?
उत्तर
: स्पीति की जलवायु इस प्रकार की है कि यहाँ केवल दो ही ऋतुएँ होती हैं-वसन्त और शीत।
मानसून यहाँ नहीं आ .. पाता अत: वर्षा प्राय: नहीं होती। कभी-कभार ही यहाँ बारिश होती
है अत: वर्षा यहाँ एक घटना या सुखद संयोग है।
प्रश्न 6. स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर
: भारत के अन्य पर्वतीय स्थलों-कुल्लू मनाली, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर आदि से 'स्पीति'
इसलिए भिन्न है क्योंकि यह दुर्गम स्थल है तथा यहाँ का मौसम जीवन-यापन के लिए कठिन
है। साथ ही जहाँ अन्य पर्वतीय स्थलों पर लोग पर्यटक के रूप में भ्रमण करने, छुट्टियाँ
मनाने एवं आनन्द प्राप्त करने आते हैं वहाँ स्पीति में अत्यधिक शीत के कारण यह सम्भव
नहीं है।
अन्य
पर्वतीय स्थलों पर स्केटिंग, सौन्दर्य प्रतियोगिता तथा अन्य मनोरंजक गतिविधियों एवं
खेलों के आयोजन होते हैं तथा वहाँ खान-पान की सुविधा से भरे होटल-रेस्टोरेण्ट हैं,
आइसक्रीम है, छोले-भटूरे हैं किन्तु स्पीति में यह सब उपलब्ध नहीं हैं। इसीलिए लेखक
ने स्पीति को अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न माना है।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1. स्पीति में बारिश का वर्णन अलग तरीके से किया गया है। आप
अपने यहाँ होने वाली बारिश का वर्णन कीजिए।
उत्तर
: स्पीति में कभी-कभार ही बारिश होती है अत: वहाँ वर्षा होना एक घटना है जिसका वर्णन
करते हुए लेखक कहता है . कि वह बारिश को देख नहीं, सुन रहा था। तेज हवा ‘दंगछेन' की
तरह पेड़ों को बजा रही थी, वर्षा की बूंदे नगाड़े पर थाप की तरह पड़ रही थीं, लगता
था जैसे पूरी घाटी में महाशंख बज रहा हो। मैदानी भागों में होने वाली वर्षा का नजारा
अलग होता है। पहले काली-काली घटाएँ घिर आती हैं, आकाश में बिजली चमकने लगती है, हवा
शान्त हो जाती है और फिर रिमझिम फुहारें पड़ती हैं जो बाद में तेज मूसलाधार वर्षा में
बदल जाती है।
प्रश्न 2. स्पीति के लोगों और मैदानी भागों में रहने वाले लोगों के
जीवन की तुलना कीजिए। किनका जीवन आपको ज्यादा अच्छा लगता है और क्यों ?
उत्तर
: स्पीति के निवासियों का जीवन अत्यन्त कठिन है। वस्ततः वहाँ जीवन-यापन की सविधाओं
का अभाव है। वहाँ केवल दो ऋतुएँ वसन्त और शीत होती हैं। धरती सूखी है, वर्षा होती नहीं,
फल उत्पन्न नहीं होते, हरियाली का नामोनिशान नहीं। तापमान 15°C से 8°C के बीच रहता
है। शीत के कारण शरीर ठिठुरता रहता है, लकड़ी की सुविधा भी नहीं है जो आग जलाकर घर
गर्म करने का अवसर मिले। इन सब कारणों से स्पीति के निवासियों का जीवन अत्यधिक कष्टकर
है, जबकि मैदानी इलाकों में सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसलिए मुझे तो मैदानी इलाकों
का जीवन पसन्द है।
प्रश्न 3. 'स्पीति में बारिश'एक यात्रा-वृत्तांत है। इसमें यात्रा के
दौरान किए गए अनुभवों,यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न जानकारियों का बारीकी से वर्णन
किया गया है। आप भी अपनी किसी यात्रा का वर्णन 200 शब्दों में कीजिए।
उत्तर
: इस बार गर्मी की छुट्टियों में हमारे परिवार ने आगरा के ऐतिहासिक स्थल की यात्रा
का निर्णय लिया। हमारे परिवार के चार सदस्य एवं ड्राइवर को मिलाकर हम पाँच लोग थे।
रास्ते में एक स्थान पर लंच के लिए हम रुके और एक स्थान पर चाय पीने के लिए। अन्ततः
शाम को 8 बजे हम अपने गन्तव्य तक पहुंच गए और स्थानीय.होटल में रुके। होटल के कमरे
आरामदेह थे तथा वहाँ की रूम-सर्विस बहुत अच्छी थी। दूसरे दिन प्रात: दस बजे हम लोग
ताजमहल देखने गए जो होटल से 500 मीटर की दूरी पर था।
होटल
की खिड़की से भी ताज का गुम्बद देखा जा सकता था, किन्तु ताज की खूबसूरती बेजोड़ थी।
यह विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। सफेद संगमरमर का बना यह मकबरा भारत का प्रमुख
पर्यटन-स्थल है। देश-विदेश के अनेक सैलानी प्रतिदिन इसे देखने आते हैं। दूसरे दिन हम
लोगों ने लाल किला, एत्मादउद्दौला का मकबरा देखा एवं सिकन्दरा का भ्रमण किया। लाल किला
अकबर के द्वारा बनवाई गई इमारत है। एत्मादउद्दौला का निर्माण नूरजहाँ ने अपने पिता
के स्मारक के रूप में कराया है। यह यमुना के उस पार है, जबकि सिकन्दरा में अकबर का
मकबरा है, जो आगरा-मथुरा रोड पर है। आगरा से कुछ दूर स्थित फतेहपुर सीकरी का अवलोकन
करने भी हम लोग अगले दिन गए।
प्रश्न 4. लेखक ने स्पीति की यात्रा लगभग 30 वर्ष पहले की थी। इन तीस
वर्षों में क्या स्पीति में कुछ परिवर्तन आया है? जानें, सोचें और लिखें।
उत्तर
: विगत तीस वर्षों में स्पीति की जनसंख्या बढ़ गई है। सन् 1971 में यहाँ की जनसंख्या
7,196 थी जो 2001 में 34,000 हो गई है। अब संचार-सुविधाएँ भी बढ़ गई हैं। मोबाइल नेटवर्क
सारे क्षेत्र में काम करता है। पहाड़ी रास्तों का निर्माण भी हुआ है तथा जीवन-यापन
के साधन भी सुलभ कराए गए हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1. पाठ में से दिए गए अनुच्छेद में क्योंकि, और, बल्कि, जैसे
ही, वैसे ही, मानो, ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हुए उसे दोबारा लिखिए। लैम्प की लौ तेज
की। खिड़की का एक पल्ला खोला तो तेज हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने
पल्ला भिड़ा दिया। उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं
रहा था, सुन रहा था। अंधेरा, ठंड और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बरफ का अंश लिए तुषार
जैसी बूंदें पड़ रही थीं।
उत्तर
: लैम्प की लौ तेज की और जैसे ही खिड़की का पल्ला खोला वैसे ही तेज हवा का झोंका मुँह
और हाथ को जैसे पल्ला भिड़ा दिया और उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी।
मैं उसे देख नहीं रहा था बल्कि सुन रहा था। अँधेरा, ठण्ड, और बारिश का झोंका ऐसे आ
रहा था मानो बर्फ का अंश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'स्पीति किस राज्य में है?
उत्तर
: स्पीति हिमाचल प्रदेश में है।
प्रश्न 2. स्पीति किस प्रदेश के किस जिले में है ?
उत्तर
: स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति नामक जिले की तहसील है।
प्रश्न 3. स्पीति की भौगोलिक स्थिति क्या है ?
उत्तर
: स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर तथा 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित
है।
प्रश्न 4. स्पीति के चारों ओर जो पहाड़ हैं, उनकी ऊँचाई क्या है ?
उत्तर
: स्पीति के पहाड़ों की औसत ऊँचाई 18,000 फीट है।
प्रश्न 5. कनिंघम ने स्पीति की ऊँचाई समुद्र तल से कितनी बताई है?
उत्तर
: कनिंघम के अनुसार स्पीति की समुद्र तल से ऊँचाई 12,986 फीट है।
प्रश्न 6. स्पीति में बारिश न होने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर
: यहाँ मानसून नहीं पहुँच पाता इसलिए स्पीति में मानसूनी वर्षा प्राय: नहीं होती।
प्रश्न 7. लाहुल-स्पीति का प्रशासन अंग्रेजों को किससे और कब मिला?
उत्तर
: लाहुल-स्पीति का प्रशासन अंग्रेजों को कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से 1846 ई. में
मिला।
प्रश्न 8. जब स्पीति लहाख मण्डल में था तब यहाँ का शासन कौन चलाता था
?
उत्तर
: लद्दाख मण्डल के दिनों में स्पीति का शासन एक नोनो' चलाता था।
प्रश्न 9. नोनो को क्या अधिकार प्राप्त थे?
उत्तर
: 'नोनो' का अधिकार-क्षेत्र केवल द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट के बराबर था।
प्रश्न 10. 'माने पर्वत श्रेणी का यह नाम क्यों रखा गया ?
उत्तर
: 'माने पर्वत श्रेणी का यह नाम लेखक के अनुसार बौद्धों के 'माने' मंत्र से जुड़ा है,
जिसका जाप यहाँ बहुत प्रसिद्ध
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायरलेस सेट का उपयोग स्पीति में क्यों होता है ?
उत्तर
: स्पीति में सूचना के कोई और साधन नहीं हैं, बिजली, टेलीफोन, मोबाइल आदि की सुविधाओं
के अभाव में संचार के लिए वायरलेस सेट का प्रयोग होता है।
प्रश्न 2. केलंग और काजा के बीच की दूरी कितनी है ? और इसे पार करने
में कितना समय लगता है ?
उत्तर
: केलंग और काजा के बीच की दूरी केवल 170 मील है, किन्तु दुर्गम रास्ता होने से इसे
पार करने में महीनों लग जाते हैं और वह भी वसंत ऋतु में। सर्दी की ऋतु में तो इसे पार
करना असंभव ही है।
प्रश्न 3. स्पीति में बारिश एक घटना क्यों है ?
उत्तर
: स्पीति में मानसून नहीं आता। अत: यहाँ प्रतिवर्ष वर्षा नहीं होती। यदा-कदा ही यहाँ
बारिश होती है, इसलिए स्पीति में बारिश होना एक घटना बन जाती है।
प्रश्न 4. स्पीति में होने वाली फसलों के नाम बताइए।
उत्तर
: स्पीति में केवल एक फसल होती है जिसमें गेहूँ, बाजरा, मटर, सरसों की खेती की जाती
है। यहाँ की भूमि उर्वरा, नहीं है, जल स्त्रोत नहीं हैं, वर्षा नहीं होती। अत: यह खेती
करने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है।
प्रश्न 5. स्पीति में नई पीढ़ी के युवक-युवतियों को लेखक क्यों आमंत्रित
करता है ?
उत्तर
: लेखक चाहता है कि नई पीढ़ी के साहसी एवं सामर्थ्यवान् युवक-युवतियाँ यहाँ आएँ तथा
पर्यटन के साथ-साथ यहाँ साहसिक अभियान में भाग लेते हुए पर्वतारोहण करें। इससे यहाँ
की एकरसता भंग होगी और स्थानीय निवासियों को भी आनंद प्राप्त होगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्पीति के मौसम का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
: स्पीति में केवल दो ऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु और अक्टूबर
से मई तक शीत ऋतु। वसंत ऋतु में औसत तापमान 15°C तथा शीत ऋतु में औसत तापमान 8°C रहता
है। वसंत में दिन गरम रहता है किन्तु रात ठंडी होती है। वसंत में यहाँ न तो फूल खिलते
हैं, न हरियाली होती है और न ही मैदानी इलाकों जैसी सुगंध होती है।
दिसंबर
से ही स्पीति घाटी में बरफ पड़ने लगती है जो अप्रैल-मई तक रहती है। यहाँ ठण्ड बहुत
पड़ती है, नदी-नाले सब जम जाते हैं, तेज हवाएँ चलती हैं जो खुले अंगों में शूल की तरह
चुभती हैं। वर्षा यहाँ बहुत कम होती है, क्योंकि यह स्थान मानसून की पहुँच के बाहर
है।
प्रश्न 2. स्पीति की भौगोलिक-स्थिति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर
: स्पीति हिमाचल प्रदेश की एक तहसील है और इसका जिला है-स्पीति लाहुला स्पीति को बारालाचा
पर्वत श्रेणियाँ चारों ओर से घेरे हुए हैं। इनकी औसत ऊँचाई 18,000 फीट है। भौगोलिक
दृष्टि से स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के
बीच स्थित है। कनिंघम के अनुसार समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 12,986 फीट है। यहाँ स्पीति
नदी की घाटी है।
स्पीति
नदी हिमाचल से निकलकर स्पीति से बहती हुई किन्नौर जिले में बहती हुई सतलज नदी में मिल
जाती है। यह अत्यंत बीहड़, वीरान इलाका है। वर्षा न होने से यहाँ की जमीन अनुर्वर है
जिसमें न कोई फसल होती है न फल। यहाँ बहुत कम लोग रहते हैं, क्योकि जीवन-यापन की सुविधाएँ
अत्यल्प हैं। आठ-नौ महीने तो यहाँ के लोग ठंड के कारण शेष दुनिया से कटे रहते हैं।
स्पीति में बारिश (सारांश)
लेखक परिचय :
समाजवादी
विचारक कृष्णनाथ का जन्म वाराणसी (उ. प्र.) में सन् 1934 ई. में हुआ। अर्थशास्त्र में
एम. ए. की उपाधि लेने के बाद आप काशी विद्यापीठ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए।
अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाले प्रो. कृष्णनाथ हिन्दी की
साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना' के संपादन मंडल में कई वर्ष तक रहे और इसी प्रकार अंग्रेजी
की पत्रिका 'मैनकाइंड' का संपादन भी उन्होंने कुछ वर्षों तक किया।
राजनीति,
पत्रकारिता और अध्यापन से गुजरते हुए बौद्ध-दर्शन की ओर उन्मुख हुए और भारतीय एवं तिब्बती
बौद्ध आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन एवं वज्रयानी प का अध्ययन
प्रारंभ किया। भारतीय चिंतक जे. कृष्णमूर्ति ने जिन बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन-मनन
किया उनमें कृष्णनाथ भी स त हैं। कृष्णनाथ जी ने बौद्ध दर्शन पर बहुत कुछ लिखा है।
2016 में कृष्णनाथ जी का देहावसान हो गया।
प्रमुख
कृतियाँ
o
लद्दाख में राग-विराग
o
किन्नर धर्मलोक
o
स्पीति में बारिश
o
पृथ्वी परिक्रमा
o
हिमालयं यात्रा
o
अरुणाचल यात्रा
o
बौद्ध निबंधावली।
इसके
अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन भी किया है। उनके.
कृतित्त्व के लिए उन्हें 'लोहिया सम्मान' प्रदान किया गया है। हिन्दी साहित्य में स्थान
हिन्दी में बौद्ध चिंतक के रूप में विख्यात कृष्णनाथ एक यात्रावृत्त लेखक के रूप में
भी जाने जाते हैं। उनके यात्रा वृत्तान्तों में स्थान विशेष की जानकारी के साथ-साथ
इतिहास, पुराण आदि की जानकारी भी मिलती है। उनके यात्रा वृत्तान्तों को पढ़कर ऐसा लगता
है मानों हम उनके साथ उन स्थलों की यात्रा कर रहे हैं।
पाठ सारांश :
'स्पीति
में बारिश' एक यात्रा वृत्तान्त है। स्पीति हिमाचल प्रदेश का एक स्थान है जो अपनी भौगोलिक
एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने इस पाठ
में स्पीति की जनसंख्या, यहाँ की ऋतुएँ, फसलें, जलवायु । तथा भूगोल का वर्णन किया है
तथा इस दुर्गम क्षेत्र में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन को भी प्रस्तुत किया
है। पाठ का सारांश निम्न शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता है।
स्पीति
का परिचयात्मक विवरण - हिमाचल प्रदेश का एक जिला है-लाहुल-स्पीति
और इस जिले की एक तहसील का नाम है-स्पीति। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण स्पीति
का इतिहास में बहुत कम उल्लेख है।
स्पीति
की जनसंख्या - यद्यपि वर्तमान में लाहुल-स्पीति की जनसंख्या
34,000 और क्षेत्रफल 12,210 वर्ग किलोमीटर है, किन्तु 1901 में यहाँ की जनसंख्या मात्र
3,231 थी जो 1971 में बढ़कर 7,196 हो गई, 1971 में लाहुल को मिलाकर इसका क्षेत्रफल
12,015 वर्ग किलोमीटर बताया गया है।
लाहुल-स्पीति
का प्रशासन - लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस का
तस मिला है। अंग्रेजों ने इसे . 1846 में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से प्राप्त किया।
वे चाहते थे कि लाहुल-स्पीति के जरिए वे तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश करें।
तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित थे। 1847 में इसे काँगड़ा जिले में शामिल
कर लिया गया। जब यह लद्दाख मण्डल के अधीन था तब इसका शासन एक 'नोनो' द्वारा चलाया जाता
था। जिसे द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट के समकक्ष अधिकार प्राप्त थे, लेकिन स्पीति
के लोग उसे अपना राजा ही मानते थे।
स्पीति
का भूगोल - स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर तथा 77.26 और
78.42 पूर्व देशान्तर के बीच स्थित है। यह चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरा है जिनकी
औसत ऊँचाई 18,000 फीट है। स्पीति नदी की घाटी में स्पीति बसा हुआ है। यह नदी हिमालय
में 16,000 फीट की ऊँचाई से निकलकर तिब्बत से होती हुई स्पीति में आती है। यहाँ केवल
स्पीति की घाटी ही आबाद है। प्रति वर्ग मील चार से भी कम आबादी यहाँ है।
स्पीति
का जीवन - इतनी कठिनाई में यहाँ लोग कैसे बसे हुए हैं ? अत्यधिक
ठण्ड के कारण वे आठ-नौ महीने तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं। लकड़ी भी नहीं कि घर गरम
कर लें। पता नहीं किस मजबूरी में वे लोग यहाँ रहते हैं। स्पीति के पहाड़ लाहुल से ज्यादा
ऊँचे और नंगे हैं। चारों ओर गलन, ठिठुरन, व्यथा का साम्राज्य है।
बारालाचा
और माने पर्वत श्रेणियाँ - स्पीति को घेरे हुए जो पर्वत श्रेणियाँ
हैं उन्हें बारालाचा पर्वत श्रेणियों का विस्तार कहा जाता है। इस पर्वत श्रेणी में
दो चोटियों की ऊँचाई तो 21,000 फीट से अधिक है। इसके दक्षिण में माने पर्वत श्रेणी
है, कहीं यह बौद्धों के माने मन्त्र के नाम पर तो नहीं है।
स्पीति
कीऋतुएँ - लाहुल की तरह स्पीति में भी दो ऋतुएँ होती हैं। जून से
सितम्बर तक वसन्त ऋतु और शेष महीनों में शीत ऋतु। जुलाई में औसत तापमान 15°C और जनवरी
(शीत ऋतु) में औसत तापमान 8°C होता है। वसन्त में दिन गरम, रात ठण्डी होती हैं।
स्पीति
में मानसून नहीं पहुँचता इसलिए यहाँ वर्षा भी नहीं होती। यही कारण है कि यहाँ की धरती
सूखी,ठण्डी और बन्ध्या (बाँझ) रहती है। स्फीति में जौ, गेहूँ, मटर और सरसों की एक फसल
होती है। पहाड़ों से बहने वाले झरनों से खेतों की सिंचाई की जाती है। स्पीति नदी का
जल किसी काम नहीं आता। अत्यधिक ठंड के कारण यहाँ फल भी नहीं होते पर खेती के लिए उपयुक्त
भूमि यहाँ बनाई जा सकती है।
सुखद
बारिश की स्मृति - स्पीति में वर्षा होना एक सुखद घटना है। लेखक
काजा के डाक बंगले में सोया हुआ था। आधी रात को लगा कि कोई खिड़की खटखटा रहा है। उठकर
खिड़की खोली तो तेज हवा का झोंका हाथ-मुँह छीलने लगा। दरवाजा बन्द करके पता किया तो
पता चला कि बारिश हो रही है। बर्फीली बारिश, जैसे नगाड़े पर थाप पड़ रही हो। सुबह लोगों
ने कहा कि आपकी यात्रा शुभ है, क्योंकि स्पीति में बहुत दिनों बाद बारिश हुई है।
कठिन शब्दार्थ :
o
स्पीति = हिमाचल प्रदेश
की एक तहसील
o
अलंध्य = जिसे लाँघा
न जा सके (जिसे पार न किया जा सके)
o
कारक = करने वाले
(Factor)।
o
योग = जुड़ाव
o
वायरलेस सेट = बेतार
यंत्र
o
अवज्ञा = आज्ञा का उल्लंघन
करना
o
बगावत = विद्रोह
o
तहत = अन्तर्गत
o
स्वायत्त = स्वाधीन
(Autonomous) सिरज़ी सृजन किया है (बनाई है)
o
संहार = विनाश
o
हरकारा = संदेशवाहक
o
अल्प = थोड़ा
o
डाइनामाइट = पहाड़ों
के तोड़ने के लिए प्रयुक्त विस्फोटका
o
लाहुली = लाहुल का निवासी
o
हदस = सहमकर
o
चाँग्या = एक पहाड़ी
पेड़
o
अप्रतिकार = विरोध न
करना (बदला न लेना), प्रशासन शासन का तरीका
o
जस का तस = ज्यों का
त्यों, जरिए द्वारा, साम्राज्य शासन
o
दूरगामी हित = आगे,
होने वाले लाभ, शरीक शामिल, नोनो स्थानीय शासका
o
रेगुलेशन = अधिनियम
o
मालगुजारी = टैक्स
o
फौजदारी = लड़ाई-झगड़ा
(मारपीट)
o
कमिश्नर = आयुक्त
o
वृत्तान्त = हाल
o
स्वराज्य = स्वतंत्रता
o
दुर्गम क्षेत्र = वह
स्थान जहाँ पहुँचना कठिन हो
o
प्रीति = प्रेम
o
बीहड़ = दुर्गम
o
वीरान = निर्जन
o
आबाद = बसी हुई,
o
विपत्ति = कठिनाई।
o
वृत्ति = आजीविका (जीविकोपार्जन
का साधन)
o
ममत्व = प्रेम
o
निर्वाण = मोक्ष,
o
अतळ = जिस पर तर्क न
किया जा सके
o
आर्तनाद = पीड़ा के
स्वर, सहायता की पुकार।
o
अट्टहास = हँसने का
स्वर
o
बख्शना = छोड़ देना
o
स्केटिंग = बर्फ पर
खेले जाने वाला एक खेल,
o
पीरपंचाल = एक पर्वत
श्रेणी
o
कनिंघम = एक अंग्रेज
o
श्रेणियाँ = पर्वत श्रृंखलाएँ
(चोटियाँ)।
o
माने = एक पर्वत श्रेणी
जिसका नाम बौद्ध धर्म के माने मंत्र (ओं मणि पदमे हुं) के नाम पर रखा गया है।
o
महात्म्य = महत्ता
o
गजेटियर = राजपत्र
(गजट)
o
बाह्य = बाहरी
o
होड़ = स्पर्धा
o
कूवत = कुब्बत (सामर्थ्य)
o
लामा = तिब्बत में बौद्ध
साधु को लामा कहते हैं।
o
किलोल = प्रेम-क्रीड़ाएँ
o
हर्षित = प्रसन्न।
o
षऋतुएँ = छ: ऋतुएँ
o
बखान = वर्णन
o
अल्पकालिक = थोड़े समय
के लिए
o
शूल = काँटा, संहार
विनाश
o
ऋतुसंहार = कालिदास
का एक काव्य ग्रंथ।
o
कामीजनों = विलासी लोग
o
पावस = वर्षा ऋतु
o
विन्ध्याचल = एक पर्वत,
जो मध्यभारत में है, लालित्य: सुंदरता
o
संवेदन = भावनाएँ
o
सुहानी = अच्छी
o
साधे = इच्छाएँ
o
बंध्या = बाँझ (जिसमें
कुछ भी पैदा न होता हो)
o
लायक = योग्य
o
स्रोत = जल स्त्रोत
(धारा)।
o
सुखद = सुख देने वाला
o
काजा= एक स्थान का नाम
o
पहर = समय
o
पल्ला = किवाड़
o
भिड़ा दिया = बंद कर
दिया,
o
आड़ = ओट
o
दुंगछेन = एक तरह का
वाद्य यन्त्र, महाशंख जिसे फूंक मार कर बजाया जाता है।
सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर -
1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील
है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों
और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंध्य भूगोल यहाँ इतिहास का एक
बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रायः
'वायरलेस सेट' के जरिए है जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है।
फिर
भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं
कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है ? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर सन्देश भेजने
के वह कर भी क्या सकता है? वसन्त में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्रायः
असम्भव है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ द्वारा लिखित यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में
लेखक ने स्पीति का सामान्य परिचय दिया है।
व्याख्या
- हिमाचल प्रदेश में लाहुल-स्पीति एक जिला है। इस जिले की एक तहसील का नाम स्पीति है।
लाहुल और स्पीति का एक साथ होना प्रयास के कारण नहीं है। इन दोनों में साधारण ही संबंध
है। वहाँ दरें काफी ऊँचे हैं और मार्ग भी कठिनाइयों से पूर्ण हैं। इस कारण इतिहास में
इसका बहुत कम उल्लेख मिलता है। यहाँ के पर्वतों को पार करना बहुत कठिन है। इसी के अनुसार
यहाँ का इतिहास भी है। यहाँ की संचार व्यवस्था कुछ सुधर गई है। फिर भी लाहुल-स्पीति
का जुड़ाव वायरलैस सेट द्वारा ही संभव है। इस यंत्र का प्रयोग केलंग और काजा स्थानों
के बीच होता है।
केलंग
के शासक को सदा यह डर बना रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी उपेक्षा तो नहीं कर
रहा। वह उसके विरुद्ध विद्रोह का षड्यंत्र तो नहीं रच रहा है। केलंग का शासक सिवाय
वायरलेस सेट पर आदेश देने के अलावा और कुछ कर पाने में समर्थ नहीं है क्योंकि रास्ते
बड़े दुर्गम हैं। दोनों स्थानों के बीच 170 मील का फासला है। वसंत ऋतु में भी इसे पार
करना कठिन होता है। शीत ऋतु में पहुँच पाना तो असंभव ही हो जाता है।
विशेष
- स्पीति जैसे दुर्गम स्थान का विवरण देकर लेखक ने घुमक्कड़ी में रुचि रखने वालों को
प्रेरणा प्रदान की है कि वे वहाँ जायें।
प्रश्न :
1. स्पीति कहाँ पर स्थित है ? लाहुल से इसका सम्बन्ध किस प्रकार का
है ?
2. "अलंध्य भूगोल यहाँ के इतिहास का एक बड़ा कारक है" इसका
आशय स्पष्ट कीजिए।
3. केलंग के बादशाह को क्या भय रहता है और क्यों ?
4. केलंग और काजा के बीच की दूरी कितनी है ? तथा वहाँ कब आना-जाना संभव
हो पाता है ?
उत्तर
:
1.
स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल और स्पीति के बीच वर्तमान
सम्बन्ध स्वाभाविक न होकर परिस्थितिजन्य है। ऊँचे दरों और कठिन मार्गों के कारण प्राचीन
समय में भी इनमें सम्बन्ध कम ही रहा है। आज भी दोनों के बीच वायरलेस सेट से ही सम्बन्ध
बना हुआ है।
2.
स्पीति एक दुर्गम स्थान पर स्पीति नदी के किनारे बसा है, ऊँचे दरों और कठिन रास्तों
के कारण यहाँ पहुँच पाना कठिन है। संचार साधनों का अभाव है तथा यहाँ निरंतर बर्फ जमी
रहती है। इन्हीं सब कारणों से लेखक ने कहा है कि अलंघ्य भूगोल यहाँ के इतिहास का बड़ा
कारक है अर्थात् दुर्गम रास्तों के कारण यहाँ का इतिहास परिवर्तित नहीं हुआ।
3.
दर्गम दरों और रास्तों के कारण केलंग और काजा के बीच वायरलेस सेट से ही सम्बन्ध हो
पाता है। इस सम्बन्ध के होते हुए भी केलंग के शासक को इस बात का भय बना रहता है कि
काजा स्थित अधिकारी उसके आदेशों का पालन करता है या नहीं ? कहीं वह उसके विरुद्ध विद्रोह
तो करने नहीं जा रहा है ?
4.
केलंग और काजा के बीच की दूरी 170 मील है, जिसे वसंत ऋतु में तो जैसे-तैसे तय किया
जा सकता है पर शीत ऋतु में इसे तय कर पाना बहुत कठिन है। शीत ऋतु में बर्फ के कारण
दुर्गम मार्गों से जाना असम्भव हो जाता है।
2. लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस
का तस मिला। अंग्रेजों को यह 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के जरिए मिला।
अंग्रेज इनके जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। तिब्बत
में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। जो भी हो, 1846 में कुल्लू, लाहुल, स्पीति
ब्रिटिश अधीनता में आए। पहले सुपरिटेंडेंट के अधीन थे। फिर 1847 में वे काँगड़ा जिले
में शरीक कर दिए गए।
लद्दाख
मण्डल के दिनों में भी स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत
में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार-क्षेत्र
केवल द्वितीय दरजे के मजिस्ट्रेट के बराबर था। लेकिन स्पीति के लोग इसे अपना राजा ही
मानते थे। राजा नहीं है तो दमयन्ती जी को रानी मानते हैं।
1873
में स्पीति रेगुलेशन पास हुआ जिसके तहत लाहुल और स्पीति को विशेष दरज़ा दिया गया। ब्रिटिश
भारत के अन्य कानून यहाँ नहीं लागू होते थे। रेगुलेशन के अधीन प्रशासन के अधिकार नोनो
को दिए गए जिसमें मालगुजारी इकट्ठा करना और छोटे-छोटे फौजदारी के मुकद्दमों का फैसला
करना भी शामिल था। उसके ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रा वृत्तान्त 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में लेखक
लाहुल-स्पीति की प्रशासन व्यवस्था का परिचय करा रहा है।
व्याख्या
- भारत से ब्रिटिश शासन समाप्त होने के बाद लाहुल-स्पीति की प्रशासन की प्रणाली बिना
किसी परिवर्तन के भारत सरकार को प्राप्त हुई थी। अंग्रेजों को लाहुल-स्पीति का शासन
कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से प्राप्त हुआ था। अंग्रेज लाहुल स्पीति के रास्ते से तिब्बत
के पश्चिमी क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे ताकि वे वहाँ के ऊन वाले स्थानों से व्यापार
कर सकें। इसके अतिरिक्त तिब्बत से संबंध स्थापित करने में अंग्रेजों को भविष्य में
होने वाले लाभ भी दिखाई दे रहे थे।
सन्
1846 में लाहुल, स्पीति और कुल्लू अंग्रेजी सरकार की अधीनता में आ गए। सन् 1847 में
इन्हें काँगड़ा जिलों में मिला दिया गया। जब लद्दाख एक मण्डल था, तब भी स्पीति का शासक
एक 'नोनो' होता था। अंग्रेजी राज के समय भी नोनो कुल्लू के सहायक आयुक्त की सहायता
से कार्य किया करता था। नोनो का अधिकार क्षेत्र एक द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट के
बराबर होता था। लेकिन स्पीति के लोग उसे अपना राजा ही माना करते थे।
राजा
के अभाव में दमयंती देवी को अपनी रानी मानते थे। 1873 में स्पीति अधिनियम पारित हुआ।
इसके अंतर्गत लाहुल और स्पीति को विशेष दर्जा प्राप्त हो गया। ब्रिटिश भारत के अन्य
कानून यहाँ प्रभावी नहीं थे। अधिनियम के द्वारा नोनो को प्रशासन के अधिकार प्रदान किए
गए थे। इनके अंतर्गत वह मालगुजारी वसूल करता था और छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का
फैसला कर सकता था। बड़े मुकदमों को वह कमिश्नर के पास भेज देता था
प्रश्न :
1. अंग्रेजों ने लाहुल-स्पीति को किस राजा से प्राप्त किया ? वे इस
पर अधिकार क्यों करना चाहते थे ?
2. लाहुल और स्पीति ब्रिटिश अधीनता में कब आए और वहाँ का शासन किस प्रकार
चलता था ?
3. नोनो कौन था उसका शासन में क्या स्थान था ?
4. 1873 के स्पीति रेगुलेशन से नोनो को क्या अधिकार प्राप्त हुए ?
उत्तर
:
1.
अंग्रेजों ने लाहुल-स्पीति को कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से प्राप्त किया। अंग्रेज
इसके माध्यम से पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। इसके अतिरिक्त
तिब्बत से सम्बन्ध बनाना अंग्रेजी साम्राज्य के हित में था।
2.
लाहल और स्पीति पर अंग्रेजों का अधिकार 1846 ई. में तब हुआ जब उन्हें ये कश्मीर के
राजा गुलाब सिंह से प्राप्त हुए। ये पहले सुपरिटेण्डेण्ट के अधीन रहे। 1847 में इन्हें
काँगड़ा जिले में सम्मिलित कर दिया गया। इसके बाद से ये क्षेत्र लद्दाख मण्डल में रहे।
तब यहाँ असिस्टेंट कमिश्नर के अधीन 'नोनो' नाम का शासक कार्य करता था।
3.
'नोनो' स्पीति का परम्परागत प्रशासनिक अधिकारी था। इसे केवल द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट
के बराबर अधिकार प्राप्त थे। स्पीति के लोग नोनो को अपना राजा ही मानते थे। नोनो कुल्लू
के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से कार्य करता था।
4.
सन् 1873 में अंग्रेज सरकार ने स्पीति रेगुलेशन पास किया। इस रेगुलेशन के अन्तर्गत
प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए। नोनो का कार्य मालगुजारी एकत्र करना तथा छोटे-छोटे
फौजदारी मुकदमों का निर्णय करना भी शामिल था। उसके ऊपर के मामले वह कमिश्नर को भेज
देता था।
3. अचरज यह नहीं कि इतने कम लोग क्यों हैं ? अचरज यह है
कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं ? मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों
ने यही पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं ? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए
हैं। ठण्ड में ठिठुर रहे हैं। सिर्फ एक फसल उगाते हैं। लकड़ी भी नहीं है कि घर गरम
रख सकें। वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं ? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते
हैं ? अपनी जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं ?
या
इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते ? कहाँ जाएँ ? या फिर और बातों के
साथ-साथ यह सब कारण हैं ? मैं नहीं जानता। मैं तो इतना ही देखता हूँ कि यहाँ रह रहे
हैं, इसलिए रह रहे हैं। और कोई तर्क नहीं है। तर्क से हम किसी चीज को भले सिद्ध कर
सकें, स्पीति में रहने को नहीं सिद्ध कर सकते। लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों ? ज्यादा
करके संसार और निर्वाण अतयं है। तर्क के परे है।
स्पीति
नदी के साथ-साथ मेरा थोड़ा परिचय स्पीति के पहाड़ों का भी है। स्पीति के पहाड़ लाहुल
से ज्यादा ऊँचे, नंगे और भव्य हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद
जमा हुआ है। शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। ठिठुरन है। गलन है। व्यथा है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश से लिया गया है। लेखक ने इस अंश में स्पीति
के अत्यन्त कष्टमय वातावरण में भी लोगों के बसने पर आश्चर्य व्यक्त किया है।
व्याख्या
- स्पीति की अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों में भी लोग वहाँ रहते आ रहे हैं। इन लोगों
की संख्या बहुत कम है। लेखक को इस बात पर आश्चर्य था कि इतने कम लोग भी वहाँ किस कारण
बसे हुए थे। लेखक ने जब भी स्पीति के अत्यन्त असुविधापूर्ण और कष्टमय जीवन के बारे
में किसी को बताया तो उसने यही प्रश्न किया कि ऐसी विपरीत स्थितियाँ होते हुए भी लोग
वहाँ रहते क्यों आ रहे थे ? शीत ऋतु में स्पीति आठ से नौ महीने तक दुनिया से कटा हुआ
रहता है। वहाँ के निवासी ठंड से ठिठुरते रहते हैं।
वहाँ
केवल एक ही फसल होती है। घरों को गर्म करने के लिए वहाँ लकड़ी भी नहीं मिलती क्योंकि
वहाँ वृक्ष ही नहीं हैं। आजीविका का कोई निश्चित साधन भी नहीं है। इतने पर भी लोग वहाँ
सैकड़ों वर्षों से रहते चले आ रहे हैं। लेखक इस बारे में कई संभावनाएँ प्रस्तुत करता
है। वे अपने धर्म की रक्षा के कारण वहाँ रह रहे हैं या वे और कहीं जाकर नहीं बस सकते।
लेखक इस बारे में कोई निश्चित तर्क नहीं दे सकता।
उसके
अनुसार तो वे लोग रहते आ रहे हैं, इसी कारण वहाँ रह रहे हैं। इस स्थिति को किसी तर्क
द्वारा सिद्ध करना संभव नहीं है। लेखक के अनुसार तर्क करने पर इतना जोर क्यों दिया
जाय। संसार में अनेक बातें ऐसी है जो तर्क से सिद्ध नहीं की जा सकती हैं। इनमें संसार
की स्थिति और मोक्ष सबसे आगे हैं। स्पीति नदी और वहाँ के पर्वतों के बारे में लेखक
का मानना है कि स्पीति के पर्वत लाहुल से अधिक ऊँचे और उन पर जमी बर्फ को वह स्पीति
के लोगों का करुण रुदन मानता है। कवियों ने पर्वतों पर जमी इस हिम को शिव का अट्टहास
भी बताया है। परंतु लेखक इसे आर्तनाद मानता है। स्पीतिवासियों के जीवन में ठिठुरन,
गलन और पीड़ा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
विशेष
- लेखक ने मानव स्वभाव की इस विविधता का परिचय कराया है कि वह अत्यन्त कष्टमय स्थितियों
में भी अपनी जन्मभूमि से ममत्व नहीं छोड़ता है।
प्रश्न :
1. लेखक को स्पीति में किस बात पर आश्चर्य हो रहा है ?
2. स्पीति के लोग यहाँ विपरीत परिस्थितियों में भी क्यों रह रहे हैं
? क्या इसके पीछे कोई तर्क है ?
3. लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों ? इस कथन से लेखक का आशय क्या है
?
4. स्पीति के पहाड़ों की क्या विशेषता है ?
उत्तर
:
1.
लेखक को इस बात पर आश्चर्य नहीं था कि स्पोति में इतने कम लोग क्यों रहते हैं ? अपितु
इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि इतने लोग भी वहाँ कैसे बसे हुए हैं जबकि जीवन-यापन
की परिस्थितियाँ अत्यंत कठिन हैं। कोई सुख-सुविधा नहीं है।
2.स्पीति
के लोग विपरीत परिस्थितियों में भी वहाँ क्यों रहते हैं ? इसके पीछे धर्म रक्षा, जन्मभूमि
के प्रति ममत्व या कहीं और न जा सकने की मजबूरी जैसा कोई कारण है या नहीं, इस विषय
में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। स्पीति में उनके रहने के पीछे कोई तर्क है
या नहीं ? इसे बता पाना बहुत मुश्किल है।
3.
लेखक के अनुसार स्पीति में लोगों के बसे रहने के कारण को किसी तर्क से सिद्ध नहीं किया
जा सकता। लेखक का मत है कि इस विषय में तर्क खोजने के लिए तत्परता दिखाना व्यर्थ है,
क्योंकि अनेक ऐसे विषय हैं जहाँ तर्क काम नहीं करता जैसे संसार की वास्तविक स्थिति
और मोक्ष की अवधारणा को तर्क से सिद्ध या असिद्ध नहीं किया जा सकता।
4.
स्पीति के पहाड़ लाहुल के पहाड़ों से ज्यादा ऊँचे हैं। ये नंगे और भव्य हैं, इन पर
पेड़-पौधे नहीं हैं, पर बर्फ जमी हुई है। यहाँ ठिठुरन और व्यथा का साम्राज्य है। कैलाश
आदि हिमाच्छादित शिखरों की भाँति इन्हें शिव का अट्टहास कहना उपयुक्त नहीं होगा। इस
हिम में तो स्पीतिवासियों के कष्टमय जीवन का करुण रुदन है।
4. इस व्यथा की कथा इन पहाड़ों की ऊँचाई के आँकड़ों में
नहीं कही जा सकती। फिर भी जो सुंदरता को इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़
को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें कि स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। जिसे व हिमालय
जानते हैं-स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और छोले-भटूरे का कुल्लू-मनाली,
शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है। शिवालिक
या पीरपंचाल या ऐसा ही कुछ उसका नाम है यह तलहटी है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय
है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की घाटियाँ हैं। इन घाटियों की औसत ऊँचाई नापी गई है। श्री
कनिंघम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊँचाई 10,535 फीट है। स्पीति की
12,986 फीट है। यानी लगभग 13,000 फीट तो औसत ऊँचाई है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने स्पीति
की भौगोलिक स्थिति और ऊँचाई आदि का परिचय कराया है।
व्याख्या
- लेखक कहता है कि स्पीति के निवासियों के कष्टमय जीवन को वहाँ के पहाड़ों की ऊँचाई
बताकर व्यक्त नहीं किया जा सकता। कुछ लोग वस्तु की सुंदरता को उसके आधार के अनुसार
नापते-तोलते हैं। ऐसे लोग पहाड़ों की सुंदरता को भी उन की ऊँचाई से ही नापते हैं। लेखक
ऐसे लोगों के ज्ञानवर्धन के लिए स्पीति का भौगोलिक परिचय दे रहा है। स्पीति मध्य हिमालय
की घाटी है।
प्राय:
लोग 'हिमालय' को एक पर्यटन स्थल और मौज-मजे वाले स्थल के रूप में ही देखने के आदी हैं।
वे समझते हैं कि हिमालय में स्केटिंग (बर्फ पर फिसलने का खेल) के भव्य स्थान हैं, वहाँ
सौंदर्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। वहाँ कुल्लू और मनाली हैं जहाँ लोग आइसक्रीम
और छोले-भटूरे का आनंद लेते हैं। शिमला, मसूरी, नैनीताल और श्रीनगर आदि प्रसिद्ध पर्यटन
स्थल ही ऐसे लोगों के लिए हिमालय है।
लेखक
कहता कि ये स्थान हिमालय नहीं बल्कि हिमालय की तलहटी हैं। शिवालिक और पीरपंचाल आदि
पर्वत श्रेणियाँ भी तलहटी में आती हैं। हिमालय का मध्यभाग तो रोहतांग जोत के उस पार
से आरंभ होता है। लाहुल और स्पीति इसी मध्यभाग की घाटियाँ हैं। श्री कनिंघम के अनुसार
लाहुल की ऊँचाई समुद्रतल से 10,535 फीट है। स्पीति की ऊँचाई 12,986 फीट है। इस प्रकार
इन स्थानो की औसत ऊँचाई लगभग 13,000 फीट है।
विशेष
- लेखक ने रोचक भाषा-शैली में व्यंग्य का पुट देकर पाठकों को हिमालय के भूगोल की वास्तविकता
समझाई है।
प्रश्न :
1. 'सुंदरता को इंच में मापने के अभ्यासी' कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
2. लेखक के अनुसार हिमालय क्या नहीं है ?
3. मध्य हिमालय कहाँ से प्रारम्भ होता है ?
4. लाहुल और स्पीति की समुद्रतल से ऊँचाई कितनी बताई गई है ?
उत्तर
:
1.
लेखक ने इस कथन द्वारा उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो पर्वतों की सुन्दरता का मानदंड
उनकी ऊँचाई को ही मानते हैं।
2.
लेखक के अनुसार कुछ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और नगर ही हिमालय का सम्पूर्ण परिचय नहीं
हैं। शिमला, मसूरी, नैनीताल और श्रीनगर ही हिमालय नहीं है।
3.
मध्य हिमालय रोहतांग जोत के पार से आरम्भ होता है।
4.
लाहुल और स्पीति की समुद्रतल से ऊंचाई कमश: 10,535 फीट और 12,986 फीट है।
5. मध्य हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हुए हैं
उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझें। बारालाचा दर्रे
की ऊँचाई का अनुमान 16,221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है। इस पर्वत-श्रेणी
में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी
कहलाती है। इसका क्या अर्थ है ? कहीं यह बौद्धों के माने मन्त्र के नाम पर तो नहीं
है ?"ओं मणि पो हुँ" इनका बीज मन्त्र है, इसका बड़ा महात्म्य है। इसे संक्षेप
में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है ? अगर नहीं
है तो करने जैसा है। यहाँ इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों
को दे डालना ही सहज है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रा वृत्तांत 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने
बारालाचा और माने पर्वत श्रेणियों का परिचय कराया है।
व्याख्या
- मध्य हिमालय की जिन पर्वत श्रेणियों ने स्पीति को घेर रखा है उनमें से उत्तर की ओर
स्थित श्रेणी का नाम बारालाचा है। नामे के दर्रे की ऊँचाई का अनुमान 16,221 से लेकर
16,500 फीट तक है। इस पर्वत श्रेणी में दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी अधिक ऊँची हैं।
दक्षिण की ओर वाली श्रेणी का नाम 'माने' है। 'माने' शब्द का अर्थ क्या हो सकता है,
इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।
हो
सकता है, यह बौद्ध भिक्षुओं द्वारा जपे जाने वाले मंत्र “ओं मणि पद्मे हुँ' से लिया
गया हो। यह एक बीजमंत्र (तांत्रिक मंत्र) है। इसका बौद्ध धर्म में बहुत महात्म्य है।
इसी मंत्र को संक्षेप में 'माने' कहा जाता है। यदि ऐसा नहीं है तो ऐसा किया जाना चाहिए
क्योंकि स्पीति की इन पहाड़ियों में साधना करने वाले बौद्ध भिक्षुओं द्वारा इस 'माने
मंत्र' का बहुत जप किया गया है।
विशेष
- लाहुल-स्पीति के अधिकांश निवासी बौद्ध हैं।
प्रश्न :
1. बारालाचा श्रेणी कहाँ है तथा बारालाचा दर्रे की ऊँचाई कितनी है
?
2. माने श्रेणी का सम्बन्ध लेखक ने किससे अनुमानित किया है ?
3. बौद्धों द्वारा जपा जाने वाला बीज मंत्र ‘माने' क्या है ? लिखिए।
4. लेखक पर्वत श्रेणियों को 'माने' नाम देना क्यों उचित मानता है ?
उत्तर
:
1.
बारालाचा पर्वत श्रेणी स्पीति को घेरे हुए है तथा यह स्पीति के उत्तर की ओर है। बारालाचा
दरें की ऊँचाई 16,221 से 16,500 फीट तक है। इस पर्वत श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई
21,000 फीट से अधिक है।
2.
माने पर्वत-श्रेणी का सम्बन्ध बौद्धों के 'माने मंत्र' (ओं मणि पद्म हुं) से लेखक ने
अनुमानित किया है। इन पहाड़ियों में बौद्ध साधकों ने माने मंत्र का इतना जाप किया है
कि यह नाम इन पर्वत श्रेणियों को दे देना स्वाभाविक ही है।
3.
माने मंत्र एक बीज मंत्र है। यह मंत्र है, “ओं मणि पद्मे हुं"।
4.
लेखक के अनुसार माने की पहाड़ियों में माने मंत्र का जाप बौद्ध साधक निरंतर करते आ
रहे हैं। अत: इन पर्वत श्रेणियों को 'माने' नाम देना उचित है।
6. मैं ऊँचाई के माप के चक्कर में नहीं हूँ। न इनसे होड़
लगाने के पक्ष में हूँ। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊँचाइयों से होड़
लगाना मृत्यु है। हाँ, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता
हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आएँ और पहले तो स्वयं
अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें।
उस
आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही
मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ
किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस
युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश से लिया गया है। इस अंश में लेखक चाहता
है, संसार के युवा पर्वतारोही स्पीति में आएँ और यहाँ की गगनचुम्बी चोटियों पर चढ़ाई
करके इनका मान-मर्दन करें।
व्याख्या
- लेखक स्पीति के पर्वत-शिखरों की ऊँचाइयों का ब्यौरा तो देता है लेकिन वह इनकी चोटियों
पर आरोहण करने की बात भी नहीं सोचना चाहता। एक बार लोसर में वह ऐसी भूल कर चुका था।
उसे अच्छी तरह ज्ञात हो चुका था कि उन ऊँची चोटियों पर विजय पाने की होड़ मृत्यु को
निमंत्रण देने के समान है। कभी-कभी सहज रूप में उन पर विजय पाकर उनके ऊँचाई के अहंकार
को चूर करने में कोई बुराई नहीं है। लेखक चाहता है कि भारत और संसार के अन्य देशों
के मैदानी और पहाड़ी प्रदेशों के निवासी युवा भारत आयें। वे अपनी सफलता का अहंकार त्याग
कर स्पीति की चोटियों पर आरोहण करें और उन पर विजय प्राप्त करें।
इससे
उनके मन को उस आनंद का अनुभव होगा जो साहसपूर्ण कार्य करने और अपनी सामर्थ्य का सही
उपयोग करने से केवल जवानी में प्राप्त हुआ करता है। माने की चोटियों की अविजित ऊँचाई
पर विजय पाना ही मुख्य कार्य नहीं है। इसके अतिरिक्त साहसी युवा इन चोटियों में छाए
हुए उदासी के वातावरण को उल्लास से भर सकते हैं। लेखक के अनुसार वृद्ध लामाओं ने यहाँ
निरंतर माने मंत्र का जाप किया है जो संसार से मुक्ति पाने का उपाय माना गया है।
उससे
उत्पन्न नीरसता इन चोटियों पर बर्फ बनकर जम गई है। जब युवा लोग इन पर पहुँचेंगे तो
यहाँ छाई हुई उदासी दूर हो जाएगी। उनके किलोलों से यह पर्वत श्रेणियाँ हँसी और हर्ष
से जीवंत हो जायेंगी। लेखक की हार्दिक इच्छा है कि बर्फ के रूप में जमा स्पीति का आर्तनाद
युवाओं के अट्टहास से विगलित हो जाय। स्पीति की ये चोटियाँ वर्षों से युवा रक्त को
आमंत्रण देती आ रही हैं- 'आओ और हम पर विजय प्राप्त करो।'
विशेष
-
इस अंश में लेखक ने सारे विश्व के युवा वर्ग को संदेश दिया है कि वे स्पीति जैसे स्थलों
में भी पहुँचे और अछते हिम शिखरों पर अपने साहस और सामर्थ्य का झंडा लहराएँ।
प्रश्न :
1. 'ऊँचाई के माप के चक्कर' से लेखक का आशय क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
2. लेखक ने मर्दो और औरतों की शान किसे बताया है ?
3. लेखक ने युवक-युवतियों को किस आनंद का अनुभव करने को प्रेरित किया
है ?
4. स्पीति के 'माने' की चोटियाँ युवाओं को किस बात का आमंत्रण दे रही
हैं ?
उत्तर
:
1.
लेखक का आशय है कि उसको माने तथा अन्य चोटियों की ऊँचाई के विवरण में रुचि नहीं है
क्योंकि वह उन पर आरोहण का तनिक भी विचार नहीं रखता।
2.
लेखक के अनुसार युवकों और युवतियों को ऐसी दुर्गम चोटियों पर यदा-कदा आरोहण करके सफलता
अवश्य अर्जित करनी चाहिए। इसी में उनके साहस और सामर्थ्य की शान प्रमाणित होती है।
3.
लेखक ने कहा है कि विश्व के युवक-युवतियों को उस आनंद के अनुभव का मौका नहीं खोना चाहिए
जो साहस और सामर्थ्य के बल पर केवल जवानी में प्राप्त किया जा सकता है।
4.
स्पीति के 'माने' की चोटियाँ युवाओं को आमंत्रण दे रही हैं कि वहाँ आयें और उन पर विजय
पाकर अपने हर्ष और उल्लास से और अपने अट्टहास से माने की चोटियों में छाई उदासी को
समाप्त कर दें।
7. लाहुल की तरह ही स्पीति में भी दो ही ऋतुएँ होती हैं।
कहीं मैंने षड्ऋतुओं का बखान किया है। वह अभ्यास दोष के कारण है। यहाँ जून से सितम्बर
तक की एक अल्पकालिक वसंत ऋतु है, शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। वसंत में, जुलाई में औसत
तापमान 15° सेण्टीग्रेड और शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8° रिकार्ड किया गया है।
औसत से कुछ अन्दाज नहीं लगता। वसंत में दिन गरम होता रात ठंडी होती है। शीत में क्या
होता है ? इसकी कल्पना ही की जा सकती है। कभी रहकर देखा जा सकता है।
स्पीति
में वसन्त लाहल से भी कम दिनों का होता है। वसन्त में भी यहाँ फूल नहीं खिलते, न हरियाली
आती है, न वह गन्ध होती है। दिसम्बर से घाटी में फिर बरफ पड़ने लगती है। अप्रैल-मई
तक रहती है। यहाँ ठंडक भी लाहुल से ज्यादा पड़ती है। नदी-नाले सब जम जाते हैं और हवाएँ
तेज चलती हैं। मुँह, हाथ और जो खुले अंग हैं उनमें जैसे शूल की तरह चुभती हैं।
स्पीति
में लाहुल से भी कम वर्षा होती है। मध्य हिमालय मानसून की पहुँच के परे है। यहाँ बरखा
बहार नहीं है। कालिदास को अपने 'ऋतु संहार' में यहाँ वर्षा का तो संहार ही करना पड़ेगा।
कालिदास में वर्षा का क्या ठाठ है ?
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रा वृत्तांत 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने
स्पीति में आने वाली केवल दो ऋतुओं वसंत और शीत का वर्णन किया है।
व्याख्या
-
लाहुल की ही भाँति स्पीति में भी दो ही ऋतुएँ होती हैं। लेखक ने कहीं पर छह ऋतुओं के
बारे में भी कुछ उल्लेख किया है लेकिन वह चूक इस कारण हुई है कि प्राय: भारत के विषय
में छ: ऋतुओं का उल्लेख किया जाता रहा है। स्पीति में जून से सितंबर तक छोटी-सी वसंत
ऋतु आती है। शेष सारे वर्ष शीत ऋतु ही बनी रहती है। वसंत ऋतु जुलाई में स्पीति का औसत
तापमान 15° डिग्री सेंटीग्रेड और शीत ऋतु जनवरी में 8° रिकॉर्ड किया गया है।
वसंत
में दिन गरम होते हैं और रातें ठंडी होती हैं। शीत ऋतु में कितना तापमान रहता होगा
इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। उसका पता तो यहाँ कुछ समय रहने पर ही हो सकता है।
स्पीति की वसंत ऋतु तो लाहुल से भी कम समय की होती है। स्पीति का वसंत केवल नाम का
वसंत होता है। वसंत में यहाँ मैदानी प्रदेशों की भाँति न फूल खिलते हैं, न हरियाली
छाती है और न सुगंधमय पवन ही चलती है।
दिसम्बर
से घाटी में फिर हिमपात आरम्भ हो जाता है। यह क्रम अप्रैल, मई तक चलता है। स्पीति में
ठंड भी लाहुल से अधिक रहती है। ठंड के कारण यहाँ सभी नदी-नाले जम जाते हैं और ठिठुरा
देने वाली हवाएँ चलती हैं। ये हवाएँ शरीर के खुले अंगों में कांटों की तरह चुभा करती
हैं।
स्पीति
में लाहुल से भी कम वर्षा होती है। मध्य हिमालय के इस भाग तक मानसून नहीं पहुँच पाता
है। यहाँ अन्य पर्वतीय प्रदेशों की भाँति वर्षा ऋतु की बहार के दर्शन नहीं होते हैं।
यदि संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालिदास ने यहाँ रहते हुए अपने काव्य ग्रन्थ 'ऋतु संहार'
की रचना की होती तो उन्हें वर्षा ऋतु का वर्णन करने से वंचित होना पड़ता। कालिदास ने
'ऋतु संहार' काव्य में वर्षा का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है।
विशेष
- स्पीति का ऋतु चक्र शेष भारत से सर्वथा भिन्न है। लेखक द्वारा इससे परिचित कराना
देश के युवा वर्ग में स्पीति जाने की प्रेरणा उत्पन्न कर सकता है।
प्रश्न :
1. स्पीति में कितनी ऋतुएँ होती हैं ? उनकी अवधि कब से कब तक होती है
?
2. स्पीति की वसंत ऋतु का दृश्य कैसा होता है ?
3. शीतकाल में स्पीति का दृश्य कैसा होता है ?
4. कालिदास को लेकर लेखक ने इस अंश में क्या टिप्पणी की है ?
उत्तर
:
1.
स्पीति मे केवल दो ऋतुएँ ही होती हैं। जून से सितम्बर तक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष में
शीत ऋतु ही रहती है।
2.
स्पीति की वसंत ऋतु का दृश्य अन्य पर्वतीय प्रदेशों से सर्वथा भिन्न होता है। न वहाँ
फूल खिलते हैं न हरियाली दिखाई पड़ती है और न वहाँ सुगंधित पवन ही चलती है।
3.
शीत ऋतु में स्पीति के सारे नदी-नाले जम जाते हैं और अत्यंत ठंडी और तेज हवाएं चलती
हैं।
4.
लेखक ने कवि कालिदास के काव्य ग्रंथ 'ऋतु संहार' में किये गये वर्षा वर्णन को लेकर
परिहास किया है। यदि कालिदास ने स्पीति में रहकर 'ऋतु संहार' काव्य रचा होता तो उसमें
वर्षा ऋतु का वर्णन नहीं होता।
8. यह पावस यहाँ नहीं पहुँचता है। कालिदास की वर्षा की
शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं जानता
कि इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएँगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन
का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि 'बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते,
मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी स्त्रियाँ
रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप-मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।' अगर कालिदास
यहाँ आकर कहें कि 'अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी
खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी
हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें' तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेगे
कि यह देव.. ौन है ? कहाँ रहता है ? यहाँ क्यों नहीं आता?
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इस अंश में लेखक कालिदास
के वर्षा वर्णन का संदर्भ लेते हुए स्पीति की वर्षा से तुलना कर रहा है।
व्याख्या
- लेखक कहता है कि कालिदास ने वर्षा ऋतु का विशद और सर्वांगपूर्ण वर्णन किया है। उनके
जैसे वर्षा वर्णन से स्पीतिवासी अपरिचित रहे हैं। स्पीति में कालिदास की पावस ऋतु के
दर्शन नहीं होते। कालिदास द्वारा वर्णित वर्षा ऋतु की शोभा विंध्याचल के पर्वतीय स्थलों
में देखी जा सकती है। यह शोभा हिमाचल की मध्य की घाटियों 'स्पीति' आदि में दुर्लभ है।
कालिदास के वर्षा वर्णन में जो सौन्दर्य है उसे स्पीतिवासी नहीं समझ पायेंगे।
क्योंकि
यहाँ ऐसी वर्षा ऋतु आज तक नहीं आई। स्पीति की इस सूखी-सूखी ठंडी माने पहाड़ियों में
निवास करने वाले स्पीतिवासी उस भावुकता से वंचित हैं जो वर्षा के ऐसे दृश्यों को देखकर
जागती है। ये लोग जानते ही नहीं कि वर्षा ऋतु में नदियाँ बहा करती हैं, बादल वर्षा
करते हैं, मस्त हाथियों की चिंघाड़ें सुनाई दिया करती हैं, जंगल हरियाली से भर जाते
हैं।
ये
लोग यह भी नहीं जानते कि वर्षा ऋतु में अपने प्रियजनों से बिछुड़ी हुई नारियाँ, उनकी
याद में आँसू बहाया करती हैं। वर्षा ऋतु में होने वाले मोरों के नृत्यों को ये अपनी
कल्पना में भी नहीं देख सकते। इनको यह भी पता नहीं कि वर्षा ऋतु में भीग जाने के डर
से चंचल बंदर उछल-कूद भूलकर गुफाओं में जा छिपते हैं। ये सारे दृश्य तो विंध्याचल जैसे
पर्वतीय स्थलों में दिखाई दिया करते हैं। कालिदास के वर्षा-वर्णन में वर्षा का ऐसा
ही मनभावन वर्णन मिलता है।
लेखक
का कहना है कि कालिदास यदि यहाँ आकर स्पीतिवासियों को अपने वर्षा वर्णन में कहे गये
एक वाक्य को सुनाएँ तो स्पीतिवासी चकित होकर रह जायेंगे। उस वाक्य में कालिदास ने कहा
है कि जो वर्षा ऋतु अपने सुंदर गुणों के कारण मन को सुहाती है, जो स्त्रियों के मन
को प्रसन्न करने वाली है, जो अपने जल के स्पर्श से वृक्षों की डालों की और बेलों की
सच्ची सहेली जैसी लगती है और जो पृथ्वी के सभी प्राणियों को प्राण देने वाली है, वह
वर्षा ऋतु उनकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करे।
लेखक
कहता है कि स्पीतिवासी इस सुनकर कालिदास से यही पूछेगे कि यह 'वर्षा-ऋतु' किस देवता
का नाम है ? यह कहाँ निवास करता है ? यह हमारे प्रदेश में कभी क्यों नहीं आता है? भाव
यही है कि स्पीति के रहने वालों ने अन्य पर्वतीय प्रदेशों में आने वाली वर्षा ऋतु के
परंपरागत सौंदर्य के कभी दर्शन ही नहीं किये हैं। पावस ऋतु क्या होती है, यह वे जानते
ही नहीं।
विशेष
- स्पीति के वर्षाविहीन क्षेत्र के निवासी, भारत की एक ऋतु-वर्षा के मनमोहक सौन्दर्य
के अनुभव से वंचित चले आ रहे हैं।
प्रश्न :
1. कौन-सा पावस कहाँ नहीं पहुँचता है ? इस गद्यांश के आधार पर बताइए।
2. कालिदास ने अपने काव्य 'ऋतु संहार' में वर्षा का जैसा वर्णन किया
है, वर्षा ऋतु की वैसी शोभा कहाँ देखने को मिलती है ?
3. स्पीति निवासी वर्षा के किन गुणों के बारे में नहीं जानते हैं ?
4. वर्षा के गुणों को सुनकर स्पीति के लोग उसके बारे में क्या पूछेगे
?
उत्तर
:
1.
कालिदास द्वारा वर्णित वर्षा ऋतु कभी स्पीति तक नहीं पहुँच पाती क्योंकि मध्य हिमालय
तक मानसून की पहुँच
नहीं
होती।
2.
'ऋतु संहार' में वर्णित वर्षा ऋतु की शोभा मध्य प्रदेश के पर्वतीय स्थल विंध्याचल में
देखने को मिलती है।
3.
स्पीति निवासी वर्षा ऋतु के उन गुणों से परिचित नहीं है जिनका वर्णन कालिदास ने ऋतु
संहार में किया है। वे गुण हैं कि वर्षा ऋतु नारियों को प्रसन्न करने वाली है। वह वृक्षों
और बेलों की सच्ची सखी है। सभी जीवों को अपने जल से जीवित रखती है।
4.
कालिदास से वर्षा वर्णन सुनकर स्पीति के लोग वर्षा ऋतु को कोई देवता समझ बैठेगे और
वे पूछेगे कि यह देवता कौन है ? यह कहाँ पर रहता है और यह स्पीति में क्यों नहीं आता
?
9. वर्षा यहाँ एक घटना है। एक सुखद संयोग है। हम काजा के
डाक बंगले में सो रहे थे तो लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। आधी रात का भी पिछला पहर
है। इस समय कौन है ? लैंप की लौ तेज की, खिड़की का एक पल्ला खोला तो तेज हवा का झोंका
मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा, मैंने पल्ला भिड़ा दिया। उसकी आड़ से देखने लगा, देखा
कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था। सुन रहा था।
अँधेरा,
ठण्ड और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बरफ का अंश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं।
जैसे नगाड़े पर थाप पड़ रही थी। दंगछेन को हवा बजा रही थी। महाशंख की ध्वनि घाटी में
तैर रही थी। स्पीति की घाटी में वर्षा हो रही थी। कमरे में ठण्ड बढ़ रही थी। मैं बिस्तर
में पड़ा-पड़ा मालूम नहीं कब सो गया। सुबह उठा। चाय पीते-पीते सुना कि स्पीति के लोग
कह रहे हैं कि हमारी यात्रा शुभ है। स्पीति में बहुत दिनों बाद बारिश हुई है।
संदर्भ
एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित
कृष्णनाथ के यात्रावृत्त 'स्पीति में बारिश से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने स्पीति
में एक रात वर्षा होने के अनुभव का वर्णन किया है।
व्याख्या
- स्पीति में वर्षा ऋतु नहीं होती। यदि कभी हो जाए तो इसे बड़ा शुभ माना जाता है। लेखक
अपनी यात्रा के दौरान काजा के डाके बँगले में ठहरा हुआ था। रात का समय था, सभी लोग
सोये हुए थे। अचानक लेखक को लगा कि कोई उसके कमरे की खिड़की को खड़का रहा था। वह आधी
रात के बाद का समय था। लेखक सोचने लगा कि इतनी रात गये कौन हो सकता है ? उसने लैंप
की रोशनी बढ़ाई और खिड़की के एक पल्ले को खोला।
खोलते
ही तेज और ठंडी हवा का झोंका उसके मुँह और हाथ से टकराया। उसे लगा जैसे उसका मुँह और
हाथ झोंके की तेजी से छिल गए हों। उसने तुरंत पल्ले को भिड़ा दिया और उसकी संधि से
बाहर देखा तो पता चला कि बारिश हो रही थी। अँधेरे के कारण केवल वर्षा होने की ध्वनि
ही सुनाई पड़ रही थी, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। पल्ले की संधि से दिख रहे अँधेरे में
ठंडी हवा का झोंका घुसा आ रहा था।
उसके
साथ बरफ जैसी ठंडी बहुत बारीक बूंदें भी महसूस हो रही थीं। वर्षा होने से ऐसा लग रहा
था मानो कहीं नगाड़ा बजाया जा रहा हो। कभी लगता था मानो बारिश की तेज हवा दुंगछेन बजा
रही हो। उस महाशंख की गम्भीर ध्वनि उस घाटी में गूंजती प्रतीत हो रही थी। स्पीति की
घाटी को उस रात वर्षा का सुखद उपहार-सा मिल रहा था। कमरे में ठंड बढ़ती जा रही थी।
लेखक
को अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। जब लेखक सुबह चाय पी रहा
था तो स्पीति के लोग कह रहे थे कि लेखक की यात्रा स्पीति के लिए और स्वयं लेखक के लिए
भी बड़ी शुभ थी। लेखक के आने पर स्पीति में बहुत दिनों के बाद वर्षा का संयोग बना था।
विशेष
- स्पीति में वर्षा होना एक सुखद आश्चर्य ही माना जाता है। लेखक ने स्पीति में बारिश
के अनुभव को अपने पाठकों से साझा किया है।
प्रश्न :
1. लेखक ने स्पीति में बारिश होने को क्या बताया है ?
2. काजा के डाक बँगले में सोते हुए लेखक को क्या शंका हुई और उसने क्या
किया?
3. लेखक को वर्षा से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ कैसी लग रही थीं?
4. स्पीति के लोगों ने लेखक के स्पीति आगमन के बारे में क्या कहा?
उत्तर
:
1.
स्पीति में वर्षा होने को एक घटना बताया है। उसने इसे महज एक संयोग माना है क्योंकि
स्पीति में वर्षा यदा-कदा ही होती है। वहाँ वर्षा ऋतु नहीं आती।
2.
काजा डाक बंगले में सोते हुए लेखक को रात में ऐसा लगा मानो कोई उसके कमरे की खिड़की
को खड़का रहा था। उसने कमरे के लैंप की रोशनी तेज करके खिड़की से बाहर झाँका। पता चला
कि बाहर बारिश हो रही थी।
3.
वर्षा होने से ऐसी ध्वनियाँ उत्पन्न हो रही थीं मानो कहीं महाशंख बजाया जा रहा हो और
उसकी गुरु-गंभीर ध्वनि दूर-दूर तक गूंज रही थी।
4.
लेखक ने स्पीति के लोगों ने लेखक के स्पीति आगमन के बारे में कहा कि उसका स्पीति आगमन
बहुत शुभ था क्योंकि स्पीति में बहुत समय के बाद वर्षा हो रही थी।