खोरठा लोककथा

खोरठा लोककथा
खोरठा लोककथा
लोककथा खँड़ सात भाइ एक बहिन सात भायेक एगो दुलरइति बहिन हली सुगा । माञ-बाप मोइर गेल हल्थिन । सातो भाइ दुलारें बहिनके पोसल हला। सातो भा येक बिहा भइ गेल हलइन । बहिन बाट बेसी टान देइख सातो भोजीक बड़ी पसपसी। ऊ स भे क सॉच हलइ जे बहिनेक पियारेक चलतें मरदइन जनीक बाट बेसी धेयान नाँइ दे हथ । से लेल बाहर सें तो सब 'नुनी नुनी' कहतला मेनेक भि तर-भितर कि तरि सुगा से छुटकारा पइता तकर उपाय सोचइत रहतला। एक बेर सातो भाइ बनीजें (बेपार करे) बाहर जाइ लागला । जाइक सॅं वइ सातो भाई जनियइन के कहल्थि- "सुगा हामनिक साधेक बहिन लागी । हामनिएँ ओकर माँय-बाप। ओकर जइसें कोन्हों दुख नाँइ हवेक चाही।" तकर बाद सातो भाइ घोड़ा चढ़ला आर बनिजें चइल गेला । बिन मरदेक घारें जनिए भेला मालिक। सातो गोतनिक हाँथें घार-कारना अइलइ । तो जइसन मन्त्र तइसन खाइ-पींधे लागला । मेंतुक मंझली तनी परसिनाही हलिक, काहे जे ओकर नइहराइ तनी बेसे चास-बारी आर चमक-दमक हलई । ऊ सभे गोतनिक उसकुवइते रहतलइन जे सुगिया के एते दुलार देले ऊ मुड़ें चढ़तो। आर लुइर नॉइ सिखलें ओकर ससुर घारेक लोकें सातो गोतनिक देंस लगाइकें गाइर देबथिन । एहे बुझा मता करल बादें सा…