खोरठा लोक साहित्य का वर्गीकरण खोरठा
लोक साहित्य का वर्गीकरण लोक
साहित्य वस्तुतः लोक मानस की ही अभिव्यक्ति है अतः इसे जन-जीवन का दर्पण भी कहा
जाता है, क्योंकि यह जनमानस को प्रतिबिंबित करता है। गाँव-देहात के आम जन अपने
जीवन के उतार-चढ़ाव में जो अनुभूतियाँ प्राप्त करते हैं, अनायास उनके कण्ठ से जो
स्वर लहरी फूट पड़ती है चाहे वह गीत के रूप में हो या कहानी-पहेली के रूप में, उसे
हम लोक साहित्य के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं। समस्त खोरठाँचल में प्राप्त लोक
साहित्य को हम निम्नलिखित वर्गों में रख सकते हैं - (1)
लोकगीत (2)
लोक कथा (3)
प्रकीर्ण साहित्य (4)
लोकगाथा (5)
लोक नाट्य । खोरठा
लोक गीत आदिम
मानव जब अपने सुख-दुख से आन्दोलित हुआ होगा तभी उनके कंठ से लोकगीतों की धारा
प्रस्फुटित हुई होगी। लोक गीतों के उद्गम से संबंधित डॉ. देवेन्द्र सत्यार्थी के
विचार मननीय है- “कहाँ से आते हैं इतने गीत ? स्मरण-विस्मरण की आँख-मिचौनी से! कुछ
अट्टहास से। कुछ उदास हृदय से कहाँ से आते हैं इतने गीत? वास्तव में मानव स्वयं
आश्चर्यचकित हैं। ये असंख्य गीत असंख्य कंठों से असंख्य धाराओ में प्रवाहित हो रहे
हैं।" इसकी व्यापक परिधि की चर्चा करते हुए डॉ. श्याम …