Q. हेयक
का मौद्रिक अति निवेश सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
☞ हेयक का अति विनियोग सिद्धांत को स्पष्ट
करें?
उत्तर - मौद्रिक अति निवेश
सिद्धांत के आधार पर अनेक अर्थशास्त्रीयो ने व्यापार चक्र का विश्लेषण किया है।
अति निवेश सिद्धांत का यह मानना है, कि निवेश की दर में उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप
व्यापार चक्र की अवस्थाएं उत्पन्न होती है। इस सिद्धांत के प्रमुख समर्थक व प्रतिपादक
ऑस्ट्रिया के अर्थशास्त्री प्रोफेसर. एस.ए. हेयक हैं। यह सिद्धांत भी एक
मौद्रिक सिद्धांत
है क्योंकि यह भी व्यापार चक्र को साख व्यवस्था की लोच के साथ संबंधित करता है। इसके अनुसार अति निवेश
सिद्धांत साख की पूर्ति में परिवर्तन के फलस्वरुप उत्पादन के ढाचों में तथा निवेश के
आकार में होने वाले परिवर्तनों की ओर ध्यान देता है। हेयक के सिद्धात के अनुसार व्यापार
चक्रों का मूल कारण मौद्रिक अति निवेश से उत्पन्न होता है, और निवेश मूल्य ब्याज दरों
से प्रभावित होता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि समृद्धि अत्यधिक निवेश
के कारण उत्पन्न होती है समृद्धि काल में असंतुलन असंतुलन उत्पन्न हो जाते हैं।
समृद्धि काल में निवेश बहुत अधिक बढ़ जाती है जिसके परिणाम स्वरुप व्यापार चक्र
की तेजी की अवस्था उत्पन्न होती है तथा पूंजी-पदार्थ उद्योग, उपभोक्ता-पदार्थ उद्योग
की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ते हैं इसके विपरीत मंदी के समय पूंजी-पदार्थ उद्योग
को उपभोक्ता पदार्थ के उद्योग के अपेक्षा अधिक हानि होती है।
हेयक, मैंकलप, रॉबिंसन जैसे
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है, कि समृद्धि काल में पूंजी-पदार्थ उद्योग का
विस्तार उपभोग पदार्थ उद्योग की अपेक्षा ज्यादा होती है। उनके अनुसार, ब्याज की
दर में कमी होने से निवेश के अवसर बढ़ जाते हैं। किंतु एक समय ऐसा आता है, जबकि
बैंक यह समझते हैं कि वह बहुत ऋण दे चुके हैं। फलस्वरूप ब्याज दर बढ़ा दी जाती है।
इससे आर्थिक क्रिया में कमी होने लगता है। परिणामस्वरूप इस अवस्था में निवेश कम हो
जाता है और मंदी आरंभ हो जाती है। इस सिद्धांत के अनुसार निवेश के परिणामस्वरूप
पूंजी-वस्तु उद्योगों का इतना विस्तार हो जाता है, कि अर्थव्यवस्था के उत्पादन
क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है
परंतु उपभोग वस्तु की मांग इतनी नहीं बढ़ती जितनी की उत्पादन क्षमता बढ़ गई होती
है परिणामस्वरूप उत्पादन क्षमता अप्रयुक्त रहने लगती है। इससे निवेश हतोत्साहित
होता है।
निवेश के घटने से उत्पादन रोजगार आदि घटने लगती है और मंदी
की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह सिद्धांत इस बात की व्याख्या करता है कि अति
निवेश के फलस्वरूप व्यापार चक्र के उतार-चढ़ाव उत्पन्न होते हैं।
मौद्रिक अति निवेश सिद्धांत साख की पूर्ति में परिवर्तन के
परिणामस्वरूप उत्पादन के ढांचे तथा निवेश के आकार में होने वाले परिवर्तन की
व्याख्या है। इस सिद्धांत के अनुसार, बैंक साख का विस्तार होने से निवेश की मात्रा
समाज की कुल ऐछिच्क बचत से अधिक हो जाती है। निवेश का विस्तार होने से पूंजीगत
पदार्थों की मांग उपभोग पदार्थों की मांग की अपेक्षा अधिक हो जाती है और पूंजीगत
पदार्थों के उत्पादन के क्षेत्र में कीमतें तथा लाभ भी अपेक्षाकृत अधिक बढ़ जाते
हैं इन परिस्थितियों में उपभोग पदार्थों के उत्पादन में कमी होती है और उत्पादन का
ढांचा असंतुलित हो जाता है। लोग उपभोग व्यय में कमी करने पर विवश हो जाते हैं और
अनैच्छिक बचते बढ़ जाती हैं। परंतु उपभोक्ता अपने उपभोग स्तर में कमी नहीं चाहते
हैं। पूंजीगत पदार्थों के उत्पादन में निरंतर वृद्धि के कारण मजदूरियां बढ़ जाती
हैं। अपनी अतिरिक्त क्रय-शक्ति के आधार पर उपभोक्ता अपनी आवश्यकता की वस्तुओं के
लिए ऊंची कीमतें देने को तैयार रहते हैं। अतः उपभोग पदार्थों के उत्पादन में भी वृद्धि
होने लगती है परिणाम स्वरूप उत्पादन के साधनों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए
उपभोग वस्तुओं के उद्द्योग तथा पूंजीगत वस्तुओं के उद्योग में प्रतिस्पर्धा होने
लगती है। उत्पादन के साधनों की कीमतों में वृद्धि के कारण लागते बढ़ती है तथा
कीमतें और अधिक बढ़ जाती हैं जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी की अवस्था उत्पन्न होती
है।
तेजी की स्थिति स्थाई नहीं होती है। समृद्धि काल के अंतिम
चरण में जब उपभोग वस्तुओं का उत्पादन बढ़ने लगता है और पूंजीगत वस्तुओं के
उत्पादन में कमी होने लगती है, तो उत्पादन का ढांचा अपनी स्थिति की ओर वापस आने
लगती हैं। पूंजी वस्तुओं के उद्योगों में उत्पादन के साधन जिस तेजी से हटते हैं,
उसी तेजी से उपभोग वस्तुओं के उद्योगों में नहीं खाप पाते हैं परिणामस्वरूप
बेरोजगारी बढ़ती है। समृद्धि काल में बैंकों के द्वारा अधिक ऋण दिए जाने के कारण
उनके नगद को कम पड़ने लगते हैं तथा बैंकों की साख की मात्रा में कमी करने के
उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि कर दी जाती हैं। फलताः निवेश निरुत्साहित होते
हैं तथा पूंजी की कमी हो जाती है। निवेश तथा पूंजी में कमी के कारण उत्पादन,
रोजगार, आय, मांग तथा कीमतों में गिरावट होने लगती है परिणाम स्वरूप सुस्ती की
अवस्था प्रारंभ होती है जो अंततः मंदी में बदल जाती है।
स्पष्ट है कि हेयक के सिद्धांत के अनुसार तेजी का मुख्य
कारण पूंजीगत वस्तुओं के उद्योगों में उपलब्ध बचतों की तुलना में अधिक निवेश करना
होता है, जो बैंक साख के विस्तार के कारण संभव हो पाता है। इस प्रकार बैंकों
द्वारा मुद्रा पूर्ति को तटस्थ ना रखने से ही व्यापार चक्र उत्पन्न होता है।
हेयक के सिद्धांत की आलोचनायें निम्नलिखित हैंः
1) पुणे रोजगार की मान्यताएं- यह सिद्धांत पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है जिसके
अनुसार पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन उपभोक्ता वस्तुओं में कमी करके किया जाता है।
वास्तव में साधनों का पूर्ण रोजगार नहीं पाया जाता है। यदि साधना अप्रयुक्त हों तो
पूंजीगत वस्तु क्षेत्र तथा वह वस्तु क्षेत्र दोनों का प्रसार साथ- साथ हो सकता है।
ऐसी स्थिति में, साधनों के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरण की
आवश्यकता नहीं होती है।
2) असंतुलन के आवास्तविक मान्यता- इस सिद्धांत की मान्यता है कि प्रारंभ में अर्थव्यवस्था
में बचत और निवेश संतुलन में होते हैं और बैंकिंग प्रणाली इस संतुलन को भंग कर
देती है, वास्तविक नहीं है। कारण यह कि संतुलन आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के
कारणों से प्रभावित हो सकते हैं।
3) केवल ब्याज दर निर्धारित नहीं- हेयक के अनुसार ब्याज दर में उतार-चढ़ाव होने से
अर्थव्यवस्था में परिवर्तन उत्पन्न होती है। यह सही नहीं है क्योंकि ब्याज दर में
परिवर्तन के अतिरिक्त लाभ की प्रत्याशा, नवप्रवर्तन, अविष्कार आदि भी व्यापार चक्र
को प्रभावित करते हैं।
4) उपभोक्ता वस्तुओं के वृद्धि से निवेश कम नहीं होती- हेयक का यह मानना है कि उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन और
उनके लाभ में वृद्धि से पूंजीगत वस्तुओं में निवेश कम होती हैं। यह सही मानना नहीं
है, क्योंकि केंस के अनुसार उपभोक्ता वस्तुओं के लाभ बढ़ने से पूंजी की सीमांत
उत्पादकता बढ़ती है जिससे पूंजीगत वस्तुओं में निवेश भी बढ़ता हैं।
5) अनैच्छिक बचतों को अनावश्यक महत्व- हेयक द्वारा अनैच्छिक बचतों को अधिक महत्व देने पर
प्रोफेसर स्ट्रग्लर ने आलोचना की है। उनके अनुसार, स्थिर आय वाले लोग कीमतें बढ़ने
से अपने उपभोग कम करते हैं, और ऊंची आय वाले भी अपने उपभोग को उतनी ही कम करते हैं तो बचते अनैच्छिक ना होकर
ऐच्छिक होती है।
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद हेयक के सिद्धांत की उपयोगिता यह है कि पूंजी निवेश को आर्थिक परिवर्तन का कारण बताया गया है जो पूर्णता सही दृष्टिकोण है यह सिद्धांत इस बात पर भी जोर देता है की स्थिर एवं स्थाई विकास के लिए अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना आवश्यक हैं।
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