वणिकवाद (MERCANTILIEM)

वणिकवाद (MERCANTILIEM)

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वणिकवाद (MERCANTILIEM)

प्रश्न: वणिक‌वाद के प्रमुख आर्थिक विचारों का परीक्षण करे ?

उत्तर:- वणिकवाद 16वी. 17वी तथा 18वी शताब्दी तक व्याप्त थी और यूरोप के अधिकांश देशों की आर्थिक नीति इस पर आधारित थी। ट्रेवर्स टि्वस के अनुसार वणिकवादी युग का प्रारम्भा 1516 से मानना चाहिए।

न्यूमैन ने अपनी पुस्तक 'Development of Economic Thought' में वणिकवाद का युग मध्यकाल के न्त से लेकर अमरीकन क्रान्ति तक माना चाहिए

इस युग के प्रधान अर्थशास्त्रियो को हम तीभागों में बांट सकते है-

(1) दार्शनिक अर्थशास्त्री

(2) सिद्धान्तवादी अर्थशास्त्री

(3)शुद्ध व्यावहारिक वणिकवादी

सामान्यतः इन विशेषज्ञों में अन्तर नहीं किया जाता परन्तु करना इसलिए आवश्यक है कि इनके आर्थिक विचारों में बहुत अधिक असमानता है।

(1) जॉन लॉक :- इनके आर्थिक विचार 'On Civil Government' नामक निबन्ध संग्रह में पाये जाते है जोकि सन् 1890 में प्रकाशित हुई, 1892 में इनकी दूसरी पुस्तक 'Some considerations of consequences of Lowering of Interest and Raising the value of money' प्रकाशित हुई।

वे व्यक्तिगत सम्पत्ति में विश्वास करते थे। मनुष्य का उतनी ही सम्पत्ति पर अधिकार होना चाहिए जितनी वह श्रम से अर्जित करता है। मूल्य के विषय में उन्होंने मांग और पूर्ति का संकेत दिया है, परन्तु विचार स्पष्ट नहीं है। वे अनुकूल व्यापारिक सन्तुलन के पक्ष में थे तथा उन्होंने विनिमय की दर के निर्धारण का भी कुछ विचार किया।

(2) डेविड ह्यू :- इनके आर्थिक विचार 1752 ई. में प्रकाशित न‌के निबन्ध संग्रह "Political Discourses' में पाये जाते हैं, जिससे मुद्रा, ब्याज, व्यापारिक संतुलन इत्यादि के निबन्ध महत्त्वपूर्ण है।

उन्होंने लिखा है, " यह स्पष्ट है कि मुद्रा श्रम और वस्तु‌ओं के प्रतिनिधि के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसका प्रधान कार्य इनका मूल्यांकन करना है। मुद्रा की मात्रा बढ़ने से वस्तुओं और श्रम की कीमत बढ़ जाती है। यह स्वयं सिद्ध सिद्धांत है कि प्रत्येक वस्तु का मूल्य वस्तु और मुद्रा के अनुपात पर निर्भर करता है।"

(3) सर विलियम पैंटी :- यह एक गरीब दर्जी की सन्तान थे, परन्तु अपने अध्यवसाय से असाधारण उन्नति की थी। पैंटी ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में सर्वप्रथम गणित का प्रयोग किया। अतः उनको गणितवादी अर्थशास्त्र का जन्मदाता माना जा सकता है। उन्होंने 'Political Arithmetic' नामक ग्रंथ लिखा।

इनकी दूसरी पुस्तक 'Treatise of Taxes and Contributions (1662) थी जिसमे उन्होंने लोक वित्त तथा करारोपण के विषय में लिखा है। इनकी एक अन्य पुस्तक 'A Tract concerning money' (1682) है जिसमें मुद्रा के वेग का वर्णन है।

वे सोने चांदी को महत्वपूर्ण बताते थे व्यापारिक सन्तुलन के पक्ष में थे तथा निर्यात करो के विरोधी थे। वे कहते थे कि "धन का पिता श्रम है और भूमि माता।"

(4) रिचार्ड कैण्टीलोन (1680-1734):- इनकी प्रधान पुस्तक 'Essay upon Nature of commerce in General थी जो 1734 में अंग्रेजी में लिखी गयी जिसके विषय में जेवन्स ने लिखा है कि "यह पुस्तक उस पालने के समान है जिस पर अर्थशास्त्र का शिशु पैदा हुआ।" इस निबन्ध के प्रथम खण्ड में उत्पादन, मूल्य, मजदूरी, जनसंख्या और मुद्रा का वर्णन है, दूसरी खण्ड में ब्याज तथा विनिमय तथा तीसरे में विदेशी व्यापार तथा विदेशी विनिमय की व्याख्या है।

उनका मत था कि प्रकृति के द्वारा उत्पादन में एक आधिक्य मिलता है। यही विचार प्रकृतिवादियों ने शुद्ध उपज के नाम से बताया है। लन्दन में 1734 में उनकी हत्या हो गयी।

(5) सर डडले नॉर्थ (1641-1691):- वणिकवाद से इनमें यह भिन्नता थी कि यह मुक्त व्यापार के समर्थक थे। इनका प्रधान ग्रन्थ 'Discourse of Trade' था।

उनका कहना था कि ब्याज और भूमि के लगान में अन्तर नहीं है। ब्याज की दर गिरती है यदि उधार देने वालों की संख्या उधार लेने वालों से अधिक हो। वे सोने-चांदी को अन्य वस्तुओं के समान ही समझते थे तथा ब्याज की नीची दर के विरोधी थे।

(6) सर जेम्स स्टुअर्ट (1712-1780)- इनकी पुस्तक 'Principles of Political Economy' 1767 में प्रकाशित हुई थी। इनका वणिकवादी नीतियो से कहीं कहीं मतभेद था। लाभ पर इनका चिन्तन है। इसके अतिरिक्त मूल्य सिद्धांत, भुगतान सन्तुलन आदि के विचार भी है। श्रम का भी विश्लेषण मिलता है।

(7) एण्टोनियो सेरा (1580-1650):- यह इटली के निवासी थे। 1613 में इन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम था 'A Brief Treatise on the causes which make Gold and silver abound in kingdoms where there are no mines हैने का कथन है कि सेरा प्रथम वणिकवादी लेखक थे।

(8) सर जोशिया चाइल्ड (1630-1699):- सन 1660 में इनकी पुस्तक 'Discourse of Trade' प्रकाशित हुई। यही पुस्तक, कुछ समय बाद A New Discourse of Trade" के नाम से लिखी गयी। वे व्याज की नीची दर के पक्ष मे थे। जिससे कि व्यापार के लिए पूंजी प्राप्त हो सके और व्यापार का विकास हो सके। उनको स्वयं ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापार का अनुभव था।

(9) सर टॉमस मन (1571-1641) :- वणिकवादी साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने 1630 में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था- "England's Treasure by Foreign Trader, यह किताब 1664 में इनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई।

इस किताब का मूल सिद्धांत इस वाक्य में निहित है कि "अपनी समृद्धि बढ़ाने के लिए हमें विदेशियों को अधिक माल बेचना चाहिए और उनसे कम माल खरीदना चाहिए।"

(10) ज्यां बेपटिस्ट कोलबर्ट (1619-1683):- यह चौदहवें लुई के वित्त मंत्री थे और 1661 से मृत्यु पर्यन्त इस पद पर रहे। यह प्रमुख वणिकवादी माने जा सकते है। स्वयं फ्रांस की अर्थव्यवस्था के सुधार में इनका बहुत योगदान था। इन्होंने सड़कें आदि बनवाई तथा विदेशी की व्यापार का नियन्त्रण किया, देश के अन्दर के व्यापार को मुक्त रखा। उद्योगों के विकास के लिए इन्होने बहुत प्रयत्न किये। राज्य को अर्थव्यवस्था पर शासन के नियन्त्रण को आवश्यक समझते थे।

वणिकवाद के उदय के कारण

एलैक्जैण्डर ग्रे ने एक सामान्य सत्य की बात कही है, जो यह कि "प्रत्येक स्थान पर आर्थिक सिद्धांत जिस युग में उसका उदय होता है, उस युग का प्रतिबिम्ब होता है"। इस विचारधारा के लोगों ने सोने चाँदी को बहुत अधिक महत्व दिया।

वणिकवाद के उदय के निम्नलिखित कारण है-

(1) राज्यों का उदय :- एलैक्जेण्डर ग्रे ने कहा है, "वणिकवाद राज्य के आर्थिक पक्ष का निर्माण है।" पन्द्रहवी शताब्दी के अन्त में राजतन्त्र के विचार का उदय हुआ। इसका सूत्रपात इटली के कूटनीतिज्ञ विचारक मैकियावेली (1469 -1517) की पुस्तक 'The Prince' से हुआ।

इंग्लैंड के ट्‌यूडर वंश ने मैकियावेली के सपने को साकार कर दिया । सप्तम हेनरी ने निरंकुश शासन की नींव डाली और अष्टम हेनरी ने उसको चरम रूप में बदला।

राज्यों और राजतन्त्रों की स्थापना के साथ ही यूरोप में राजनीतिक प्रतियोगिता एवं युद्धो का सूत्रपात भी हुआ। प्रत्येक राज्य को शक्तिशाली बनाने की समस्या सामने आयी इस समस्या ने वणि‌कवादी विचारों की उत्पत्ति की।

राज्य के लिए सेना तथा हथियारों आदि की आवश्यकता थी। इसके लिए करो की व्यवस्था की गयी और वणिकवादियो ने उस पर भी विचार किया, परन्तु मुख्य समस्या देश को धनी बनाने की थी। इसका हल विदेशी व्यापार में ढूंढा गया। राज्य के उद्योग-धन्धों पर नियन्त्रण करके निर्यात बढ़ाने और सोना चांदी कमाने का प्रबन्ध करना वणिकवादियो ने सिखाया।

(2) धार्मिक क्रांति :- धार्मिक क्रान्ति का प्रभाव आर्थिक विचारों पर पड़ा। सन्त एक्विनास का उपदेश था, मूल्य लागत से अधिक नहीं होना चाहिए, ब्याज नहीं लेनी चाहिए। राजनीति के समान अर्थनीति भी धर्म के प्रभाव से मुक्त हो गयी। लोग सोना चांदी, व्यापार मुनाफा, ब्याज आदि को ठीक समझने लगे । काल्विन (1509 - 1564) तो वाणिज्य को धर्म के अनु‌‌कूल मानते थे। इन्होंने भी सुधार का नवीन सम्प्रदाय स्थापित किया।

(3) यातायात की उन्नति :- समुद्री मार्गों का पता लगना इसका तीसरा कारण था। इसी युग में भारत के  समुद्री मार्ग का पता वास्कोडिगामा ने लगाया (1498)। कुक में आस्ट्रेलिया और कोलम्बस ने अमरीका का पता लगाया। इससे विदेशी व्यापार के नवीन युग का सूत्रपात हुआ। इस व्यापार के द्वारा धन अर्जन की पद्धतियों पर वणिकवादियों ने प्रकाश डाला।

(4) जनसंख्या की वृद्धि :- 1600 ई. में यूरोप की जनसंख्या 6-7 करोड़ नहीं थी, परन्तु क्रमशः उसमें वृद्धि हुई तो अर्थशास्त्रियों के सामने भोजन तथा रोजगार आदि की समस्याएँ पैदा हुई। वणिकवाद में इन पर भी विचार किया गया।

(5) पुनर्जागरण :- 15-16 वी शताब्दी में यूरोप की चेतना में एक क्रान्ति आयी । ग्रीस और रोम के युग की सांस्कृतिक चेतना का फिर से जागरण हुआ जोकि संसार के इतिहास में रिनैसां के नाम से विख्यात है। इस युग में ल्यूनार्डो दाविंसी, गैलीलियो, कोपरनिकस, मिशैल एन्जिलो न्यूटन, केपलर तथा शेक्सपीयर जैसी प्रतिभाएं उत्पन्न हुई। अर्थशास्त्र का क्षेत्र भी उपेक्षित नहीं रहा। आर्थिक क्षेत्र में पुनर्जागरण वणिकवाद के रूप में सामने आया। पुनर्जागरण चहुमुखी चेतना का विकास था, इसका एक अंश वणिकवाद भी था।

(6) मुद्रा प्रणाली का प्रारम्भ :- इस युग मे वस्तु विनिमय समाप्त हो रहा था और मुद्रा का प्रयोग बढ़ रहा था। इसके लिए बड़ी मात्रा में सोना-चांदी की जरूरत थी। इस समस्या पर वणिकवादियो ने विचार किया।

प्रत्येक आर्थिक विचार कुछ खास समस्याओं के समाधान होते है। उस युग की प्रधान समस्या राज्यों के निर्माण और उनको शक्तिशाली बनाने की थी। धार्मिक क्रांति ने उसके लिए वातावरण बना दिया और पुनर्जागरण विज्ञान ने आविष्कारों तथा समुद्री रास्तों की खोज आदि ने आवश्यक साधन जुटा दिये थे। वणिकवादियों ने अपने चिन्तन द्वारा अपने युग की समस्याओं को ही सुलझाने का प्रयास किया था।

वणिकवाद के सिद्धांत

वणिवाद के प्रधान सिद्धांत निम्न है।

(1) सोना और चांदी को महत्त्व :- विलियम पैटी ने लिखा है, "व्यापार का अन्तिम और महान परिणाम धन नहीं बल्कि सोना-चांदी और जवाहरात की प्रमुखता है जो नष्ट नहीं होते। इन‌को प्रत्येक समय और स्थान में प्रयुना किया जा सकता है। परन्तु उल्लेखनीय बात यह है कि इन्होंने सोना चांदी के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भी अन्य उप‌भोग की वस्तुओं को भी जरूरी बताया।

वणिकवादियों ने सोना-चांदी के महत्व को उस युग की परिस्थितियों के कारण समझा था। इसके कई कारण थे -

(1) बैंक और बीमा जैसी सुविधाएं उस जमाने में नहीं थी अतः धन संचय करने का एकमात्र उपाय सोना और चांदी को जमा करना था।

(2) वस्तु परिवर्तन प्रथा समाप्त हो रही थी और धातु मुद्रा का प्रचार बढ़ रहा था। इसके लिए भी मूल्यवान धातु‌ओं की आवश्यकता पड़ती थी।

(3) राज्यों के विकास के साथ-साथ कर प्रणाली भी विकसित हुई अतः करो को चुकाने के लिए भी सोने चांदी की जरूरत थी।

सोना और चांदी का महत्त्व आज के युग में भी कम नहीं है परन्तु आज का विचार अधिक सन्तुलित है। वणिकवाद की संकु‌चित परिभाषा अब बदल गयी है। व्यक्ति के लिए सोना-चाँदी मूल्यवान हो सकते हैं परन्तु समाज की वास्तविक धन (उपभोग एवं उत्पादक वस्तुओं) की अधिक आवश्यकता होती है।

(2) विदेशी व्यापार एवं अनुकूल व्यापार सन्तुलन का महत्व :- वणिकवादी विदेशी व्यापार को बहुत अधिक महत्त्व देते थे। उनकी धारणा थी कि देश की सम्पन्नता विदेशी व्यापार पर निर्भर होती है। अनुकूल व्यापारिक सन्तुलन समाज को सम्पन्न बनाता है। यदि निर्यात अधिक होगें तो बाहर से सोना-चांदी अधिक मात्रा में आयेगा, देश की आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

सभी वणिकवादियों का मुख्य विचार यही था, यद्यपि इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने विभिन्न साधन बताये और विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किये। स्मरणीय है कि उस समय तक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का कोई सिद्धांत स्थापित नहीं हो पाया था, जिस कारण इन विचारों में कल्पनाओं और अपूर्ण अनुभव का ही बाहुल्य था।

(3) उद्योगो और व्यापार का नियन्त्रण :- उस समय बड़े उद्योग नहीं थे परन्तु लघु उद्योगों को बढ़ाने के विषय में सभी महत्त्वपूर्ण लेखको ने लिखा है। उद्योगों के विकास के लिए उन्होंने निम्नलिखित व्यावहारिक सुझाव दिये -

(a) बुद्धिमत्तापूर्ण नीति :- ऑस्ट्रियन लेखक वॉन जस्टी ले 1655 में, करारोपण के सिद्धांत बताये थे। जस्टी ने लिखा है कि कर उत्पादक होना चाहिए अर्थात वह उद्योग को हानि न पहुंचाने, उसका बोझा एक ही वर्ग पर अधिक न पड़े कर संग्रह का व्यय कम हो और उसके संग्रह में सुविधा हो।

(b) जल यातायात का विस्तार :- वणिकवादी विदेशी व्यापार के तथा उद्योगों के विकास के लिए जहाजी बेडे का विस्तार आवश्यक समझते थे। वे चाहते थे कि माल का आयात तथा निर्यात उन्ही के देश के जहाजों में हो। ऐसा न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभदायक था बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी उपयोगी था।

(c) जनसंख्या का विस्तार :- उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक था कि काफी मात्रा में काम करने वाले मजदूर हो। इसका कारण स्पष्ट है उस समय सभी उद्योग मानवीय शक्ति या पशु शक्ति से संचालित होते थे अर्थात् श्रम सघन थे।। जहाजों को चलाने, मछली पकड़ने, कपडा बनाने के लिए बड़ी जनसंख्या की आवश्यकता थी। सैनिक दृष्टि से भी विशाल जनसंख्या लाभप्रद थी। इस कारण लगभग सभी वणिकवादी अधिक जनसंख्या के पक्ष में थे।

(4) कृषि सम्बन्धी विचार :- वणिकवादी चाहते थे कि देश में प्रत्येक भूखंड पर गल्ला तथा कच्चा माल उत्पन्न किया जाय जिससे कि यह वस्तुएँ सस्ती तैयार हो सकें और निर्मित माल की लागत कम रहे। कृषि के अतिरिक्त टॉमस मन ने मछली उद्योग के विकास का भी सुझाव दिया है।

(5) अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक विवेचन :- वणिकवादियों द्वारा बताये गये सिद्धांत इस प्रकार थे

(a) मूल्य का सिद्धांत :- पैंटी को सांख्यिकी का संस्थापक माना जाता है। उन्होने सर्वप्रथम यह घोषित किया कि वस्तु का मूल्य उसकी लागत के द्वारा निर्धारित होता है और लागत का मुख्य आधार श्रम है। कैण्टीलोन ने दो प्रकार के मूल्य बतायें- बाजार मूल्य और दूसरा आन्तरिक मूल्य । उन्होंने मांग और पूर्ति का मूल्य पर प्रभाव का सही वर्णन किया है। यद्यपि वणिकवाद के पास मूल्य का कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं था।

(b) मजदूरी का सिद्धांत :- कैण्टीलोन ने लिखा था कि श्रम का मूल्य उस सामग्री के बराबर होता है जो मजदूर के जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक है। यही विचार आगे चलकर श्रम का जीवन- निर्वाह सिद्धान्त के रूप में एडम स्मिथ और रिकार्डों ने विकसित किया।

(c) ब्याज का सिद्धांत :- हैंने ने डेवनांट का एक वाक्य लिखा है, "ऊँची ब्याज वसूल करने वाले समाज की नर मधुमक्खियां है जो दूसरों के द्वारा निर्मित शहद का बिना मेहनत उपयोग करती है अतः उन पर कर लगाना चाहिए"। टॉमस मैनले के अनुसार, "मुद्रा की कमी और उधार लेने वालों की अधिकता से ब्याज की दर ऊंची होती है, पूँजी अधिकता एवं उधार लेने वालों की कमी से ब्याज की दर नीची होती है" । कहना न होगा कि यह ब्याज के मांग और पूर्ति के सिद्धांत की प्रारम्भिक और सही रुपरेखा है।

(d) लगान :- लगान आजकल एक बचत माना जाता है जो प्रकृति के सहयोग के कारण उत्पन्न होता है। इस विचार के संकेत हमे वणिकवादियों के साहित्य में मिलते है।

(e) मुद्रा का सिद्धांत :- लॉक, कैण्टीलोन तथा ह्मू ने लिखा है कि मूल्य स्तर चलन में मुद्रा की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है। मुद्रा की मात्रा बढ़ने से क्रय शक्ति कम होती है अर्थात् कीमतें बढ़ती है। यह मुद्रा मात्रा सिद्धांत का प्रारम्भिक रूप है।

(f) विनिमय की दर का सिद्धांत :- मैलाइन्स तथा हेल्स ने इस युग में विनिमय की टकसाली समता दर के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था, यद्यपि वह प्रारम्भिक रूप में ही था।

(g) व्यक्तिगत हित का सिद्धांत :- वणिकवादी यह मानते थे कि मनुष्य अपने हित से ही परिचालित होता है। आगे चलकर एडम स्मिथ ने अपने चिन्तन को इसी सिद्धांत पर आधारित किया, परन्तु यह सिद्धांत वस्तुत: वणिकवादियो की ही देन है।

(h) लाभ का विवेचन :- अर्थशास्त्र के साहित्य मे सम्भवतः लाभ का प्रथम विवेचन सर जेम्स स्टुअर्ट ने अपने ग्रन्थ 'Principles of political Economy' में किया है। उन्होने लाभ के दो भेद बताये, पहला Positive Profit जिससे देश की समृद्धि बढ़ती है और यह मेहनत तथा योग्यता से अर्जित होता है और दूसरा Relative Profit जो दो दलो मे लेन-देन पर निर्भर होता है। एक के लाभ से दूसरे को हानि होती है।

आलोचना

एडम स्मिथ ने अपने ग्रन्थ 'Wealth of Nations' मे वणिकवाद के बिखरे विचारों को संकलित एवं संगठित करके अर्थशास्त्र को एक व्यवस्थित रूप दिया। फिर भी वणिकवाद के निम्नलिखित दोष है

(1) सोना और चांदी को उन लोगों ने अनावश्यक महत्व दिया। इन धातु‌ओं को ही धन माना। यह एक बड़ी सैद्धान्तिक त्रुटि है। आज के विचार में धन किसी भी उपयोगी वस्तु को कहते है जिसका मूल्य है।

(2) दूसरी त्रुटि यह है कि वणिकवादियों ने यापार को उद्योग और कृषि से अधिक महत्त्व दिया। बाद में प्रकृतिवादियों ने कृषि को सबसे अधिक उपयोगी बताया। आज के विचार में भी व्यापार सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्यवसाय नहीं है। भारत की परम्परा में खेती को सबसे उत्तम बताया गया है।

(3) वणिकवादी एक देश के हित को सर्वोपरि मानते थे। आज का चिन्तन अन्तर्राष्ट्रीय और अधिक उदार तथा मानवतावादी होता जा रहा है। यद्यपि राष्ट्र अभी भी एक महत्वपूर्ण इकाई है परन्तु जैसा कि बर्ट्रेंड रसैल ने लिखा है, "प्रत्येक युग की अपनी मुर्खता होती है। हमारी मुर्खता राष्ट्रवाद है।"

(4) वणिकवाद में उपभोक्ता के हित को महत्त्व नही दिया गया केवल उत्पादक के हित को ही प्रधानता दी गयी। वणिकवादी विचारधारा के परिणामस्वरूप साम्राज्यों का विस्तार हुआ। ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल आदि देशों ने दूर दूर तक साम्राज्य स्थापित किये। वणिकवाद ने समाज के दृष्टिकोण को बहुत अधिक अर्थ-लोलुप बना दिया।

उपर्युक्त आलोचनाओं के परिणामस्वरूप वणिकवाद विचारों का प्रभाव समाप्त होने लगा। प्रकृतिवाद के प्रभाव से संरक्षण एवं नियन्त्रित अर्थव्यवस्था का वणिकवादी सिद्धांत क्रमशः तिरस्कृत हो गया और उसका स्थान मुक्त व्यापार और मुक्त व्यवस्था के विचार ने ले लिया।

वणिकवाद के धातु‌ओं के महत्त्व का विचार भी संसार ले त्याग दिया।

निष्कर्ष

परन्तु जैसा कि हम कह चुके है, वणिकवाद का सर्वथा नाश नहीं हुआ। उसके मूल विचार प्रकारान्तर से अभी जीवित है। केवल उनकी उग्रता एवं दुराग्रह समाप्त हो गये है।

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