आर्थिक
विकास की विशेषता एवं महत्त्व
(Characteristics
and Importance of Economic Development)
प्रश्न :- आर्थिक विकास की प्रमुख
विशेषताएँ बताइए तथा इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए ?
उत्तर
:- आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मानवीय प्रयत्नो द्वारा कोई देश
अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि कर अपनी
वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करते हुए देश में गरीबी और आर्थिक विषमता को
समाप्त कर जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास करता है।
श्री
रोस्टोव ने अपनी पुस्तक 'Problems
of Economic Growth' में लिखा है "आर्थिक विकास एक तरफ पूँजी व कार्यशील
शक्ति में वृद्धि की दरों के मध्य
और दूसरी
तरफ जनसंख्या वृद्धि की दर के मध्य एक ऐसा सम्बंध है जिससे कि प्रति व्यक्ति
उत्पादन में वृद्धि होती है"।
आर्थिक विकास की विशेषताएँ
आर्थिक
विकास की निम्नलिखित विशेषताएँ है
(1)
आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है:- आर्थिक विकास एक
सतत् एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में क्रमशः
वृद्धि होती रहती है। विकास की इस प्रक्रिया में वस्तुओं की मांग एवं संसाधनो एवं पूर्ति
में निरन्तरता बनी रहती है। विकास की प्रक्रिया में जनता की आय में परिवर्तन, वस्तु
के वितरण की विधियों में परिवर्तन, जनसंख्या की संरचना में परिवर्तन तथा उपभोक्ताओं
की रुचियों में परिवर्तन होता रहता है जिससे वस्तुओं की माँग में परिवर्तन की निरन्तरता बनी रहती है। इसी प्रकार
उत्पादन के साधनों की पूर्ति यथा जनसंख्या उत्पादन के साधनों, पूँजी, उत्पादन की तकनीक
तथा अन्य संस्थागत परिवर्तनों में भी निरन्तरता बनी रहती है। इस तरह जैसे-जैसे किसी
देश के आर्थिक विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे पूत्ति के साधनों एवं मांगों में परिवर्तन
होता जाता है।
(2) वास्तविक राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
होती है:- आर्थिक विकास के
फलस्वरूप वास्तविक राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि से अभिप्राय किसी राष्ट्र द्वारा एक वर्ष में
उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के विशुद्ध मूल्य में होने वाली वृद्धि से
लगाया जाता है, न कि मौद्रिक आय में वृद्धि से। चूंकि आर्थिक विकास मापने का आधार
राष्ट्रीय आय की ही माना जाता है, अतः किसी देश का आर्थिक विकास तभी माना जाएगा जब
उस देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती रहे। कुल
राष्ट्रीय उत्पादन में से मूल्य ह्मस को घटाने के उपरान्त जो बचता है, उसे विशुद्ध
राष्ट्रीय आय उत्पादन कहा जाता है। जब राष्ट्रीय आय मे कुल जनसंख्या से भाग दिया
जाता है तब भागफल प्रति व्यक्ति औसत आय कहलाता है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में
वास्तविक राष्ट्रीय आय के साथ साथ प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती रहती है।
(3) दीर्घकालीन प्रक्रिया :- आर्थिक विकास की यह प्रक्रिया निरन्तरता लिए दीर्घकाल
तक चलनी चाहिए। यदि किन्ही विशिष्ट कारणों से कुछ समय के लिए राष्ट्रीय आय में
वृद्धि हो जाती है जो उसे आर्थिक विकास नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए, यदि किसी
वर्ष समय से और अच्छी वर्षा हो जाती है तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है जिससे राष्ट्रीय
आय भी बढ़ जाती है, परन्तु उसे आर्थिक विकास नही समझना चाहिए, क्योंकि विकास
आकस्मिक न होकर एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है।
(4) संसाधनों का समुचित विदोहन :- आर्थिक विकास की प्रक्रिया में देश में उपलब्ध संसाधनों
का कुशलतापूर्वक विदोहन किया जाता है।
(5) जीवन स्तर एवं सामान्य कल्याण में
सुधार :-आर्थिक विकास के फलस्वरूप जन साधारण के जीवन स्तर में सुधार आता है। अर्थिक
विषमता में कमी आती है तथा सरकार द्वारा शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आदि जन कल्याण कार्यक्रमों में
वृद्धि की जाती है जिससे लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठता है।
आवश्यकता
विश्व का प्रत्येक अल्प विकसित देश
तथा उसका निवासी नियोजित आर्थिक विकास के माध्यम से अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थिति व
रहन-सहन के स्तर में सुधार हेतु प्रयत्नशील है। आर्थिक विकास किसी शब्द के निवासियो
के आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण का सशक्त माध्यम है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में किसी
देश के शुद्ध राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है जिससे वहाँ कुल माँग में वृद्धि होती
है। इस बढ़ी माँग की पूर्ति हेतु विनियोग के माध्यम से उत्पादन बढ़ाया जाता है जिससे
रोजगार और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तथा पूँजी निर्माण को बढ़ावा मिलता
है। इस तरह आर्थिक विकास का प्रभाव अविराम गति से बहने लगता है। पिछड़े एवं अल्पविकसित
देशों के आर्थिक विकास में आर्थिक नियोजन एक महान औषधि का कार्य करता है। आर्थिक नियोजन
के माध्यम से अल्प विकसित देशों के सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग, आर्थिक दृश्चक्रों
की समाप्ति, बेरोजगारी की समस्या का समाधान, पूँजी निर्माण में वृद्धि, सम्पत्ति व
साधनों का समान वितरण, जनसंख्या की समस्या का समाधान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा
एवं जनकल्याण कार्यक्रमों में वृद्धि, विभिन्न क्षेत्रों के विकास में समन्वय तथा आर्थिक
संरचना का पर्याप्त एवं वांछित विकास कर आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त किया
जा सकता है तथा साथ ही निर्धनता, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता आदि से छुटकारा
प्राप्त किया जा सकता है।
महत्त्व
किसी देश के लिए आर्थिक विकास का
महत्त्व निम्न बातो में निहित है -
(1) व्यक्ति के चुनाव क्षेत्र का
विस्तार :- आर्थिक विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप लोगों को अपनी रुचि के अनुसार
कार्य करने की सुविधा उपलब्ध हो जाती है। विकास की प्रक्रिया में नए उद्योगों की
स्थापना, नव निर्माण कार्यों व नए-नए क्षेत्रों का विकास होता है, जिससे लोगों को
अपनी सुविधा, योग्यता एव क्षमता के अनुसार कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है।
रुचि के अनुसार कार्य करने पर कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है।
(2) राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि :- आर्थिक विकास के फलस्वरूप देश के कुल उत्पादन में वृद्धि
होती है जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि के
साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ जाती है। ए. के. दास गुप्ता के अनुसार, "यदि
हम किसी तरह प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर सकें तो
कालान्तर में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि के अधिकाधिक अनुपात से पूँजी निर्माण की
प्रक्रिया में वृद्धि सम्भव की जा सकेगी।"
(3) आर्थिक विषमता में कमी :- सामाजिक न्याय की दृष्टि से
आर्थिक विषमता की उपस्थिति अनुचित मानी जाती है। नियोजित आर्थिक विकास का प्रमुख
लक्ष्य होता है आर्थिक विषमता को समाप्त करना। इस तरह आर्थिक विकास से धन का
वितरण समान व न्यायपूर्ण ढंग से सम्भव हो पाता है।
(4) पूँजी निर्माण एवं निवेश की दर
में वृद्धि:- आर्थिक विकास के फलस्वरूप देश में औद्योगीकरण बढ़ता है। लोगों को रोजगार
प्राप्त होता है जिससे उनकी आय बढ़ती है। आय बढ़ने से बचत तथा पूँजी निर्माण को
बढ़ावा मिलता है। पूँजी की गतिशीलता आती है जिससे भविष्य में पूँजी निर्माण और भी
अधिक होने लगता है।
प्रो लेविस के अनुसार,
"आर्थिक विकास के सिद्धांत की मुख्य समस्या उस प्रक्रिया को समझने में है
जिसमें एक समुदाय, जो पहले अपनी आय का 4 या 5% अथवा उससे कम की बचत व विनियोग करता था, उसमे 12 से 15% तक की
वृद्धि कर लेता है। यही केन्द्रीय समस्या है, क्योंकि आर्थिक विकास का लक्ष्य
पूँजी संचय में वृद्धि करना होता है।"
(5) नागरिको की आर्थिक सुरक्षा :- अनियोजित आर्थिक व्यवस्था में
व्यापारी एवं उद्योगपति अधिक लाभ की लालसा में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर
देते है जिससे उनके द्वारा निर्मित वस्तुएं ऊँची कीमत पर बेची जा सके । नियोजित
आर्थिक व्यवस्था में इस प्रकार के अभावो की सम्भावना बहुत कम होती है, क्योंकि
वस्तुओं के उत्पादन व वितरण पर नियोजन अधिकारियों का पूर्ण नियन्त्रण होता है
जिसके फलस्वरूप समाज के सभी वर्गों की आर्थिक सुरक्षा बनी रहती है।
(6) प्राकृतिक आपदाओं पर नियन्त्रण :- प्राचीन काल में मनुष्य को प्राकृतिक आपदाओ, जैसे- बाढ, सूखा, भुखमरी, महामारी, भूकम्प आदि कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था और मनुष्य को अपने
जीवनयापन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता था। लेकिन अब आर्थिक विकास के परिणामस्वरुप मानव
ने अनेक प्राकृतिक प्रकोपों पर विजय प्राप्त कर ली और वह अल्प परिश्रम से ही अपने जीवन निर्वाह
सम्बन्धी वस्तुओं का उत्पादन कर सका है।
(7) आर्थिक उपलब्धियां :- आर्थिक विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था को
अनेक आर्थिक लाभ प्राप्त होते है-जैसे राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि, पूँजी
निर्माण, व्यापार चक्रों से मुक्ति अर्थात् आर्थिक स्थायित्व,
उत्पत्ति के साधनों का न्यायपूर्ण एवं सर्वोपयुक्त वितरण, राष्ट्रीय आय का
उचित वितरण और प्राकृतिक साधनों का पूर्ण विदोहन आदि।
(8) रोजगार के अवसर में वृद्धि :- आर्थिक विकास की प्रक्रिया में देश में संरचनात्मक उद्योगों
का व्यापक विस्तार एवं विकास होता है जिससे जनता को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त होने
लगते है व बेरोजगारी की समस्या का समाधान होने लगता है।
प्रो.जे.के. मेहता के अनुसार, "अन्य बाते समान रहने पर,
जब उत्पत्ति के समस्त उपलब्ध साधनों का उपयोग किया जाता है तो राष्ट्रीय आय भी अधिकतम
होती है (Economics of Growth)।
(9) जीवन स्तर में सुधार एवं गरीबी उन्मूलन में सहायता :- आर्थिक विकास की प्रक्रिया में राष्ट्रीय आय में वृद्धि
के साथ-साथ लोगों की मौद्रिक आय में भी वृद्धि हो जाती है जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ती
है और रहन सहन के स्तर में सुधार होता है, लोग अधिक आरामदायक जीवन बिताने लगते है ।
आज के जीवन में आय ही वह प्रेरणा स्त्रोत है जो लोगों में खुशहाली तथा सम्पन्नता लाती
है और गरीबी से छुटकारा दिलाती है।
(10) मानवतावाद को बढावा :- प्रो लुईस का मत है कि आर्थिक समृद्धि मनुष्य के आर्थिक
व सामाजिक कल्याण के लिए अत्यन्त आवश्यक है। जब समाज के सभी लोगों की आर्थिक स्थिति
में पर्याप्त सुधार आ जाता है तो शोषण, उत्पीड़न, वैमनस्य, लूट खसोट, चोरी व डकैती,
आदि अनैतिक तत्व स्वतः ही समाप्त होने लगते हैं और उनके स्थान पर स्नेह, सहयोग, सद्भावना
तथा आत्मीयता जन्म लेती है। विधाता ने किसी को चोर के रूप में नहीं पैदा किया बल्कि
अर्थिक कठिनाइयों उन्हे प्रेरित करती है।
निष्कर्ष
उपयुक्त विवेचनाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि किसी देश का पूर्ण विकास तभी हो सकता है जब वह अपनी योजनाओं में आर्थिक विकास के महत्व को ध्यान में रखकर योजना बनाए ।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)