प्रश्न :- आर्थिक वृद्धि के काल्डोर मॉडल की संक्षिप्त
विवेचना कीजिए।
☞ अल्प-विकसित देशों के विशेष सन्दर्भ में काल्डोर
वृद्धि मॉडल की विवेचना कीजिए।
☞ काल्डोर वृद्धि मॉडल की समीक्षात्मक विवेचना
कीजिए।
उत्तर :- प्रो. निकोलस काल्डोर का आर्थिक वृद्धि मॉडल का सतत् वृद्धि पथ
(Steady-growth path) के पश्चिमी प्रावैगिक विश्लेषण से सम्बन्ध है। यह मॉडल अन्य
वृद्धि मॉडलों से विभिन्न दृष्टियों से अनोखे रूप में अलग है। काल्डोर ने
हैरड-डोमर के आर्थिक वृद्धि मॉडल को तकनीकी विकास फलन (Technical progress
function) तथा पूँजी निवेश के मध्य सम्बन्ध को दृष्टिगत रखते हुए संशोधित किया है।
इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य गैर-आर्थिक चरों की प्रकृति को दर्शाना है जो एक
अर्थव्यवस्था के सामान्य उत्पादन स्तर को सुनिश्चित करते हैं। काल्डोर हैरड के उस
ढंग पर विचार करते हैं जिसमें अतिरेक बचतों (Surplus savings) की समस्या का समाधान
आय की ज्यामितिक वृद्धि द्वारा किया जाता है। काल्डोर के अनुसार, प्राविधिक दृढ़ता
के कारण श्रम के बदले में पूँजी के प्रतिस्थापन की सम्भावना सीमित होती है। निवेश
की नई मात्रा प्रौद्योगिकी में परिवर्तन ला सकती है। प्रौद्योगिक परिवर्तन केवल
समय पर ही निर्भर नहीं करता। किसी में अर्थव्यवस्था का विकास एवं उन्नति आर्थिक
एवं गैर-आर्थिक शक्तियों के शामिल प्रयास का प्रतिफल होता है। यद्यपि जनसंख्या
वृद्धि आय वृद्धि से अधिक हो जाती है तब तकनीकी प्रगति फलन (Technical progress
function) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आय एवं जनसंख्या
वृद्धि के मध्य एक उचित सम्बन्ध बनाए रखा जाए। काल्डोर न सिर्फ साधनों के
अन्तर्सम्बन्ध पर जोर देते हैं, अपितु उनकी आपसी निर्भरता पर भी ध्यान देते हैं।
इस प्रकार, काल्डोर का मॉडल अधिक व्यापक और वास्तविक है, क्योंकि इसमें तीन मुख्य
धारणाओं बचत, निवेश व तकनीकी फलन (Technical function) को स्वीकार किया गया है।
मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Model)
काल्डोर का वृद्धि मॉडल निम्नांकित पूर्व धारणाओं पर आधारित है-
(i) एक विकासशील अर्थव्यवस्था में उत्पादन के एक स्तर को पाने के लिए संसाधनों
की मात्रा सीमित होती है।
(ii) उत्पादन के दो साधन हैं-पूँजी एवं श्रम। इस दृष्टि से आय को भी दो भागों
में विभाजित किया जा सकता है-लाभ तथा मजदूरी। लाभ की सकल मात्रा बचा ली जाती है और
मजदूरी की सकल मात्रा खपत कर ली जाती है।
(iii) तकनीकी विकास पूँजी संचय की दर पर निर्भर करता है।
(iv) मॉडल में प्रयोग की गई सभी समष्टि आर्थिक अवधारणाएँ- आय, मजदूरियाँ व
लाभ, पूँजी, बचत तथा निवेश स्थिर मूल्यों में प्रकट की गई हैं।
(v) इस मॉडल में मौद्रिक नीति एक अहम् भूमिका निभार्ती और मौद्रिक मजदूरी
स्थाई रहती है।
(vi) निवेश की दर अथवा निवेश का कुल आय से अनुपात को एक स्वतन्त्र चर राशि
माना गया है अर्थात् बचत करने की प्रवृत्ति (sp या sw) में बदलाव होने पर निवेश
में बदलाव नहीं होते।
(vii) सकल बचतें मजदूरियों में से की गई बचतों तथा लाभों में से की गई बचतों
का योग होती हैं।
(viii) यह कीन्स की पूर्ण रोजगार परिकल्पना पर आधारित है जिसमें कम समय में
वस्तुओं व सेवाओं की सम्पूर्ण पूर्ति बेलोच होती है।
(ix) यह मजदूरी वस्तु (Wage goods) के रूप में स्थायी मजदूरी पर असीमित श्रम
पूर्ति की मान्यता पर आधारित है।
(x) आय मजदूरियों एवं लाभों का योग है। मजदूरियों में शारीरिक
श्रम का प्रतिफल और वेतन शामिल है तथा लाभों में साहसियों व सम्पत्ति के स्वामियों
की आय शामिल है।
(xi) यह मान लिया गया है कि पूँजी संचय तथा पूँजीगत वस्तु बनाने
वाले उद्योगों, में तकनीकी विकास के कारण प्राविधिक चयन (Choice of technique) में
बदलाव होता है।
(xii) श्रमिकों की सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पूँजीपतियों की सीमान्त
उपभोग प्रवृत्ति की तुलना में ज्यादा होती है। अर्थात्, sp < sw ।
(xiii) उत्पादन फलन कालपर्यन्त अपरिवर्तित रहता है और उत्पादन
में स्केलगत स्थिर प्रतिफल का नियम पारित होता है। पूँजी तथा श्रम परस्पर पूरक होते
हैं।
मॉडल की कार्यशीलता (WORKING OF THE MODEL)
काल्डोर ने उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर अपने वृद्धि मॉडल को
प्रस्तुत किया है। काल्डोर के मॉडल में वृद्धि प्रतिमान (Growth pattern) के तीन प्रमुख
निर्धारक हैं-बचत आय अनुपात, प्राविधिक प्रगति और जनसंख्या वृद्धि। ये सारे आर्थिक
प्रणाली के बहिर्जात साधन माने गए हैं।
इस मॉडल का मुख्य लक्ष्य सम्पूर्ण चरों के मध्य व्यापक सम्बन्धों
के रूप में पूँजीवादी विकास का वर्णन करना है। यह मॉडल दो अवस्थाओं में कार्य करता
है-
l. स्थिर कार्यशील जनसंख्या (Constant working population)
II. बढ़ती हुई जनसंख्या (Expanding population)
स्थिर कार्यशील जनसंख्या की स्थिति में कुल वास्तविक आय की आनुपातिक
वृद्धि दर प्रति व्यक्ति उत्पादन की आनुपातिक वृद्धि दर के समान होगी। जनसंख्या विस्तार
की स्थिति में, कुल वास्तविक आय में आनुपातिक परिवर्तन, प्रति व्यक्ति उत्पादन में
आनुपातिक परिवर्तन व कुल कार्यशील जनसंख्या में आनुपातिक परिवर्तन का योग है।
I. स्थिर कार्यशील जनसंख्या (Constant Working Population)
प्रो. काल्डोर ने मॉडल के कार्यकरण को समझाने की दृष्टि से निम्नवत्
तीन फलनों का वर्णन किया है-
(1) बचत फलन (Saving function) काल्डोर ने बचत फलन की व्याख्या के लिए निम्नांकित प्रतीकों
का उपयोग किया है-
Q = उत्पादन (Output)
r = ब्याज दर (Rate of interest)
K = पूँजी (Capital)
K' = निवेश (Investment)
sr, sw = लाभों में से औसत बचत, मजदूरियों में से औसत बचत
S = बचत
बचत और निवेश को निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है-
K' = S
या, K' = sr. (r K) + sw
(Q - r K)
[जहाँ rK = सकल लाभ, (Q-r K) = सकल मजदूरियाँ)
या, K' = sr.r K+
sw.Q-sw.r K
या, K'-sw.Q = rK (sr-sw)
या, (K′Q-sw)=rKQ(sr-sw)
or,1(sr-sw).(K′Q-sw)=rKQ---(1)
उपर्युक्त समीकरण यह व्यक्त करता है कि लाभ उत्पादन अनुपात rKQ गुणक 1(sr-sw) तथा निवेश के स्तर पर निर्भर करता है। मान लीजिए sw = 0 अथवा नगण्य है, तब समीकरण (1) निम्न स्वरूप ग्रहण करता है :
1sr.K′Q=rKQ
उपर्युक्त समीकरण के दोनों तरफ से Q को विलुप्त करने पर,
1sr.K′=rK
or,1sr.K′K=r
मान लीजिए, K′K=n
तब, 1sr.n=r
or,nsr=r
इस तरह, लाभ की दर प्राकृतिक वृद्धि दर तथा लाभों में से बचत के अनुपात द्वारा निर्धारित होती है।
2. निवेश फलन (Investment Function) - निवेश फलन इस अवधारणा पर आधारित है कि किसी भी समय निवेश सम्बन्धी निर्णय पूंजी स्टॉक को धारण करने की इच्छा तथा पूंजी पर लाभ की दर में परिवर्तन पर निर्भर करता है। काल्डोर ने किसी समय (t) पर पूंजी स्टॉक (Kt) को निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया है :
Kt=α′Yt-1+β′(Pt-1Kt-1)Yt-1
α′>0,β′>0
Yt = किसी समय t पर वास्तविक आय
Kt = किसी समय t पर पूंजी की मात्रा
Pt = किसी समय t पर लाभ
St = किसी समय t पर बचतें
उपर्युक्त समीकरण यह बताता है कि किसी भी समय (t) पर पूंजी स्टॉक α’ तथा समय (t-1) पर उत्पादन (Yt-1) का गुणांक एवं β’ तथा विगत अवधि की पूंजी पर लाभ की दर (Pt-1Kt-1) तथा विगत वर्ष के उत्पादन (Yt-1 ) के गुणनफल का योग होता है।
इसी तरह Kt-1=α′Yt+β′(PtKt)Yt
(जहां α’ > 0, β’> 0)
काल्डोर की धारणा है कि अवधि t में निवेश वास्तविक तथा वांछित पूंजी के बीच अन्तर के बराबर होती है।अर्थात्
It=α′Yt+β′(PtKt)Yt-α′Yt-1+β′(Pt-1Kt-1)Yt-1
It=α′(Yt-Yt-1)+β′[(PtKt)Yt-(Pt-1Kt-1)Yt-1]
समीकरण के दाहिने में β′(PtKt)Yt को जोड़ने तथा घटाने पर हमें प्राप्त होगा :
It=α′(Yt-Yt-1)+β′[(PtKt)Yt-(Pt-1Kt-1)Yt-1]+β′(Pt-1Kt-1)Yt-β′(Pt-1Kt-1)Yt
It=(Yt-Yt-1)(α′+β′Pt-1Kt-1)+β′(PtKt-Pt-1Kt-1)Yt---(2)
इस प्रकार, अवधि t में निवेश समान होता
है गतवर्ष की अपेक्षा उत्पादन में वृद्धि (Yt
– Yt-1) × (गुणा) वांछित पूँजी तथा गतवर्ष में उत्पादन के मध्य सम्बन्ध (योग) β’ x उसी अवधि में पूँजी पर लाभ की दर
में परिवर्तन x वर्तमान अवधि का उत्पादन।
स्पष्ट रूप से निवेश फलन यह बताता है
कि पूँजी पर लाभ की दर दिए रहने पर निवेश, आय में प्रत्याशित वृद्धि की दर
(Expected rate of growth of turnover) पर निर्भर करता है।
(3) तकनीकी विकास फलन (Technical
Progress Function) - काल्डोर ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि की
दर पूंजी की वृद्धि एवं प्राविधिक उन्नति पर निर्भर करती है। तकनीकी विकास के फलन
को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है -
Yt-1-YtYt=α′′+β′′ItKt
जहां α’’
> 0, β’’> 0
उपरोक्त समीकरण यह प्रस्तुत करता है प्रति व्यक्ति उत्पाद की वृद्धि दर प्रति व्यक्ति
पूंजी की वृद्धि दर का वर्धमान फलन है।
हम जानते हैं कि, Kt=α′Yt-1+β′(PtKt)Yt-1
Kt=[α′+β′(PtKt)]Yt-1
अगर t = 1 (वर्तमान पूंजी पर विचार करने पर)
K1=[α′+β′(P0K0)]
तब समीकरण (2) से,
I1=(Y1-Y0)(α′+β′P0K0)+β′(PtKt-P0K0)Yt--(3)
or,I1Y1=Y1-Y0Y1(α′+β′P0K0)+β′(P1K1-P0K0)
लेकिन, α′+β′P0K0=K1
or,I1Y1=Y1-Y0Y1.K1+β′(P1K1-P0K0)
उपरोक्त समीकरण यह दर्शाता है कि अवधि (1) में निवेश की दर = विगत अवधि की अपेक्षा आय में वृद्धि की दर Y1-Y0Y1 × (गुणा) चालू अवधि की पूँजी की मात्रा + विगत अवधि की तुलना में लाभ की दर में परिवर्तन पर निर्भर पद।
उपरोक्त समीकरण को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-
I1Y1=[Y1-Y0Y1.K1-β′P0K0]+β′Y1K1-P1K1--(4)
इसी प्रकार, बचत फलन को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है -
SY1=α.P1Y1+βY1-P1Y1
या, SY1=α.P1Y1+βY1Y1-βP1Y1
या, SY1=β+(α-β)P1Y1--(5)
समीकरण (4) व (5) लाभों तथा मजदूरियों के मध्य आय के वितरण तथा समय t=1 पर आय के बचत अंश और निवेश अंश का निर्धारण करते हैं। इसे चित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है-
चित्र में OX-अक्ष पर P/Y को और OY-अक्ष पर I/Y तथा S/Y को दर्शाया गया है। वक्र QQ' बचत समीकरण तथा वक्र PP' निवेश समीकरण को इंगित करता
है। इन वक्रों के ढाल (slope) क्रमशः
(α-β) तथा β′Y1K1है।
इन वक्रों का प्रतिच्छेदन बिन्दु आय में लाभों के अंश व आय में निवेश के अंश
के मध्य अल्पकालीन अनुपात कम है तो निवेश में कमी व बचतों में वृद्धि सन्तुलन को
बताता है। अगर आय से लाभ का होगी। सन्तुलन को प्राप्त के लिए यह जरूरी है कि वक्र
QQ' का ढाल वक्र PP' के ढाल से ज्यादा हो
या, α-β > β’ Y1K1
यह मॉडल दो अन्य प्रतिबन्धों के अधीन कार्य करता है जो निम्न प्रकार हैं-
Pt≤Yt-Wmin---(6)
Y1K1≥m--(7)
ये असमिकाएँ (Inequalities) सन्तुलन पथ के स्थायित्व में बाधक के रूप में काम
करती हैं।
समीकरण (6) यह बताता है कि लाभ, मजदूरियों को घटाने के पश्चात् बची आय से अधिक
नहीं होना चाहिए एवं लाभ की दर लाभ के न्यूनतम सीमान्त स्तर (m) से अधिक होनी
चाहिए।
आर्थिक वृद्धि का सतत् मार्ग तकनीकी विकास फलन पर निर्भर करता है। इसे चित्र 2 द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है।
चित्र में OX-अक्ष पर पूँजी की आनुपातिक वृद्धि दर को व OY-अक्ष पर आय की
आनुपातिक वृद्धि दर को दर्शाया गया है।
मान लीजिए t = 1 है जहाँ ItKt=I1K1,ItKtके बाईं ओर है। बिन्दुओं G1, G2, G3 --- इत्यादि से सम्बन्धित आय की वृद्धि दरें क्रमशः g1, g2, g3 व g4 --- इत्यादि हैं। समय की क्रमशः बाद की इकाइयों में उत्पादन में होने वाली वृद्धि पूँजी वृद्धि की तुलना में अधिक होगी। इसी प्रकार, निवेश क्रमशः I1K1,I2K2,.... है। निवेश व आय वृद्धि की यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक कि बिन्दु G नहीं आ जाता जिस पर आय एवं पूँजी की वृद्धि दरें समान होती हैं।
दीर्घकालीन सन्तुलन में आय तथा पूँजी की वृद्धि दर बचत व निवेश के गुणांक के
मूल्य से स्वतन्त्र होती है और केवल तकनीकी विकास फलन के गुणांक पर निर्भर करता है
जिसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
G=α′′1-β′′
निवेश से आय का सन्तुलन अनुपात, आय में लाभ का सन्तुलन अंश व पूँजी की सन्तुलन
दर का निर्धारण बचत फलन एवं तकनीकी विकास फलन की मदद से किया जा सकता है।
IK=Y′′KY(α′′1-β′′=Y′′)
SY=αPY+β(1-PY)
or,SY=(α-β)PY+β
Y′KY=(α-β)PY+β
or,PY=Y′′.PY-βα-β
समीकरण के दोनों ओर YK से गुणा करने पर प्राप्त होगा-
PY=Y′′β.YKα-β
यह समीकरण उत्पादकता (G) की सन्तुलन वृद्धि दर का निर्धारण तकनीकी विकास फलन
के रूप में करता है और बचत एवं निवेश से मुक्त है।
II. बढ़ती हुई जनसंख्या या जनसंख्या विस्तार (Expanding Population)
काल्डोर अपने मॉडल के दूसरे भाग में अपनी स्थिर कार्यशील जनसंख्या की मान्यता
को परित्याग देते हैं। वह मॉल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए मान
लेते हैं कि-
1. किसी समुदाय में एक दी हुई प्रजनन दर पर जनसंख्या वृद्धि की दर का प्रतिशत
एक निश्चित अधिकाधिक सीमा से ज्यादा नहीं हो सकता, फिर भी वास्तविक आय में
बढ़ोत्तरी होती रहती है।
2. अधिकतम स्थिति आने से पहले तक आय में वृद्धि दर के फलन के रूप में जनसंख्या
वृद्धि की दर परिमित रूप से बढ़ेगी।
जनसंख्या वृद्धि की आय वृद्धि पर निर्भरता को चित्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
चित्र में OX-अक्ष पर आय की आनुपातिक वृद्धि को व OY-अक्ष पर जनसंख्या की
आनुपातिक वृद्धि को दर्शाया गया है। रेखा PLA जनसंख्या वृद्धि (Population growth
income) को प्रदर्शित करती है। जब आय वृद्धि की दर एक निश्चित क्रान्तिक मूल्य (Critical
value) से अधिक हो तब जनसंख्या वृद्धि रेखा क्षैतिज हो जाती है। आय वृद्धि के साथ
जनसंख्या वृद्धि के सम्बन्ध को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-
It = gt (gt≥λ)
It = λ (gt≥λ)
जहाँ It, gt क्रमशः जनसंख्या वृद्धि व आय वृद्धि की प्रतिशत दरें हैं और λ = जनसंख्या वृद्धि की अधिकतम दर।
आय की वृद्धि दर व जनसंख्या की वृद्धि दर तब तक बढ़ती जाएगी जब तक कि जनसंख्या
वृद्धि की दर λ नहीं हो जाती। दीर्घकालीन सन्तुलन की अवस्था में आय व पूँजी दोनों
की वृद्धि दरें होंगी-
G =γ′′+ λ
दीर्घकाल में जनसंख्या अपनी अधिकाधिक दर से बढ़ती है। यहाँ यह मान लिया गया है
कि तकनीकी विकास फलन के स्वरूप व स्थिति (जैसा कि गुणांकों α'’
तथा β’’ द्वारा दिया गया है) पर जनसंख्या में परिवर्तन का कोई
प्रभाव नहीं होता है। अतएव पैमाने का स्थिर प्रतिफल नियम क्रियाशील रहता है। यह
शर्त आधुनिक व कम जनसंख्या वाले देशों में उचित ठहरती है।
यह धारणा अल्प-विकसित देशों के विषय में पारित नहीं होती, क्योंकि यहाँ भूमि
की दुर्लभता के कारण क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम कार्यपरक होता है। यहाँ जनसंख्या
वृद्धि दर बढ़ने के कारण तकनीकी विकास फलन कम हो जाता है। इस स्थिति में तकनीकी
विकास फलन पूँजी अक्ष को बिन्दु A पर काटेगा। तकनीकी विकास फलन का आकार पूर्व की
तरह न होकर वह स्वरूप प्राप्त कर लेगा जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। इसका
तात्पर्य यह है कि प्रति व्यक्ति उत्पादन को एक
निश्चित प्रतिशत की वृद्धि अनिवार्य है। इस प्रकार I'I' वक्र 45° की रेखा को दो बिन्दुओं P' व P पर काटता है। बिन्दु P' अस्थिर सन्तुलन को एवं
बिन्दु P दीर्घकालीन स्थिर सन्तुलन को प्रदर्शित करता है। अगर अर्थव्यवस्था P' के
बाईं तरफ रहती है तब आय और पूँजी वृद्धि की दर सतत् रूप से कम होती जाती है तथा आय
एवं पूँजी वृद्धि की दर पूर्णतः शिथिल और अस्त-व्यस्त हो जाती है। अगर ऐसी स्थिति
पैदा होती है तब तकनीकी विकास फलन I'I' से विस्थापित होकर II पर चला जाता है जिसके
परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था ह्वास और मन्दी की स्थिति की तरफ बढ़ती है।
संक्षेप में, जनसंख्या सन्तुलित दर से बढ़ती रहेगी और दीर्घ अवधि में
निम्नलिखित दो शर्तों के अनुरूप कार्य करेगी-
(i) जनसंख्या वृद्धि की अधिकाधिक दर ४ है।
(ii) तकनीकी विकास की दर उत्पादकता में एक निश्चित प्रतिशत वृद्धि का कारण तभी
बनती है जब जनसंख्या व प्रति व्यक्ति पूँजी दोनों ही यथास्थिर रहते हैं।
काल्डोर मॉडल की हैरड-डोमर मॉडल से तुलना
काल्डोर की धारणा के अनुसार निवेश को पूँजी स्टॉक में परिवर्तन रूप में
परिभाषित किया जा सकता है, जो कि निवेश का राष्ट्रीय आय से अनुपात है।
IY=s=ΔKY
उपरोक्त समीकरण में ΔY
से गुणा व ΔY से भाग देने पर,
IY=s=ΔKY.ΔYY
समीकरण में ΔYY हैरड की अभीष्ट वृद्धि दर (Gw) को इंगित करता है जिसे काल्डोर G के रूप में उल्लिखित करता है और ΔKΔY को पूँजी-उत्पाद अनुपात के रूप में उल्लिखित करता है।
इस प्रकार , IY=s.G.vहैरड के अभीष्ट वृद्धि दर के समीकरण को दर्शाने के लिए जैसा कि हम जानते हैं,
काल्डोर का समीकरण है-
PY=1(sp-sw).IY-sw(sp-sw)
अथवा PY=1sp.IY[∵sw=0]
IY=Gv=GwCr
PY=1sp.GwCr
अपने मॉडल में काल्डोर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि "अभीष्ट और प्राकृतिक वृद्धि दरें परस्पर P स्वतन्त्र नहीं हैं; अगर लाभ की सीमाएँ लोचदार हों तो PY में परिणामी परिवर्तन द्वारा पहली, दूसरी के साथ स्वयं को समायोजित करेगी।"
काल्डोर वृद्धि मॉडल की आलोचना (Criticism of Kaldor Growth Model)
काल्डोर वृद्धि मॉडल की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसमें विकास की अवधारणा तकनीकी विकास फलन पर आधारित है, जो विकास के मुख्य इंजन के रूप में कार्य करता है। अपने मॉडल के द्वारा काल्डोर आय, बचत और निवेश जैसे चरों के साथ तकनीकी विकास के अन्तर्सम्बन्ध को दशनि में सफल रहे। काल्डोर की धारणा थी कि आर्थिक वृद्धि तथा इसकी प्रक्रिया बचत, निवेश और उत्पादकता जैसे मौलिक चरों की अन्तर्निर्भरता पर आधारित है। इस मॉडल में आर्थिक विकास की प्रक्रिया को विस्तृत बनाकर आर्थिक वृद्धि मॉडल बनाने का एक सफल प्रयत्न किया गया है। यह मॉडल अधिक वास्तविक है एवं अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में व्याप्त वास्तविक अवस्थाओं के अधिक समीप है। इस प्रकार, यह मॉडल विकसित व विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं में व्यवहार्य है।
काल्डोर का यह मॉडल वस्तु
रूप से केन्सीय ढाँचे पर आधारित है और इसमें हैरड द्वारा विकसित प्रावैगिक
दृष्टिकोण को स्वीकृत किया गया है।
इस मॉडल की प्रमुख आलोचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1)
आय वितरण की समुचित व्याख्या नहीं (No proper Explanation of Distribution of
Income)- काल्डोर का वृद्धि मॉडल फलनात्मक दृष्टि से आय के वितरण की समुचित व्याख्या
करने में असफल रहा है। यह स्पष्ट नहीं करता कि आय का वितरण किस प्रकार प्रभावित
होगा जब पूर्ण रोजगार से निम्न स्तर पर वास्तविक आयु में परिवर्तन होता है। यह
मॉडल क्षमता वृद्धि व पूर्ण रोजगार पाने के उपाय नहीं बताता है।
(2)
आत्म विरोधी (Self Contradictory) - काल्डोर के मॉडल की आलोचना वितरण प्रक्रिया के
आधार पर भी होती है। काल्डोर का यह कथन उचित नहीं है कि मूल्यों में निरन्तर
वृद्धि से लाभों का भाग भी हमेशा बढ़ता रहता है। मूल्य में निरन्तर वृद्धि के अन्य
परिणाम भी हो सकते हैं, यथा-मजदूरी मुद्रा स्फीति व मजदूरी मूल्य वृद्धि आय।
काल्डोर के मॉडल में यह माना गया है कि सभी लाभ पूँजीपतियों को मिलते हैं और बचतें
भी इन्हीं के द्वारा की जाती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि श्रमिकों के माध्यम से की
गई बचतें भी पूँजीपतियों को भेंट कर दी जाती हैं। यह एक विरोधाभास है, क्योंकि
समाज में व्यक्तिगत बचतें
अस्तित्व में रहती हैं।
(3)
दृढ़ मान्यताएँ (Rigid Assumptions) - काल्डोर मॉडल की मान्यताएँ अत्यन्त दृढ़ हैं और
ये आधुनिक सामाजिक व आर्थिक ढाँचे की जटिल स्थिति से मेल नहीं खातीं हैं। यह समाज
के दो वर्गों (लाभ प्राप्तकर्ता पूँजीपति तथा मजदूरी प्राप्तकर्ता श्रमिक वर्ग) तक
ही अपना अध्ययन सीमित रखता है। इसके अलावा यह मान्यता भी अधिक दृढ़ है कि बचत की
गई आय का अंश अपरिवर्तनीय रहता है जबकि इसमें परिवर्तन होते रहते हैं।
(4)
पुनर्वितरण के प्रभाव की उपेक्षा करता है (It Ignores the Effect of
Redistribution) यह मॉडल मानव पूँजी पर आय
के पुनर्वितरण के प्रभाव पर विचार करने में विफल रहा है। यह भौतिक पूँजी पर ही
अनावश्यक बल देता है।
(5)
अनुत्पादक व्यय के अध्ययन की उपेक्षा (Neglects the Study of Non-productive
Expenditure)- यह एक निरपेक्ष मॉडल है, क्योंकि यह अनुत्पादक खर्च की अवहेलना करता है जो
आधुनिक पूँजीवादी सरकारों के सकल व्यय (विशेषकर प्रतिरक्षा व्यय) का एक प्रमुख भाग
होता है।
(6)
तकनीक के चयन की समस्या (Problem of Choice of Technique)- काल्डोर की आलोचना का एक
मुख्य बिन्दु इसमें उपयुक्त तकनीकी विकास फलन है। प्रो. सोलो (Solow) तथा ब्लैक
(Black) जैसे अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि अगर यह फलन नव-क्लासिकल उत्पादन फलन
के साथ सह अस्तित्व में होता है तो या तो वह उत्पादन फलन कॉब डगलस स्वरूप का होगा
या फिर तकनीकी विकास फलन सदा के लिए विवर्तित हो जाएगा। इस दृष्टि से तकनीकी विकास
फलन की मदद से काल्डोर द्वारा किया गया वृद्धि का अध्ययन न तो उचित है तथा न ही
व्यवस्थित ।
(7)
समष्टिगत वितरण व वृद्धि के मध्य कृत्रिम अन्तर (Artificial Distinction between Macro-distribution and Growth)- काल्डोर का मॉडल आधुनिक
स्वरूप में अपनाए जाने योग्य नहीं है, क्योंकि इसमें समष्टिगत वितरण व वृद्धि के
मध्य कृत्रिम अन्तर किया गया है। मॉडल में यह माना गया है कि निरन्तर वृद्धि एक
विशिष्ट लाभ की दर पर निर्भर करती है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं करता है कि यह विशिष्ट
दर किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है। यह इस मॉडल की एक मुख्य कमजोरी है। वास्तव
में, इसे आय वितरण सिद्धान्त के अनुपूरक के रूप में व्यक्त करना उचित होगा।
(8)
नियन्त्रित मूल्य व्यवस्था में अव्यवहार्य (Not Applicable under Controlled Price
Mechanism)- यह मॉडल नियन्त्रित मूल्य व्यवस्था में अनुपयोगी है। काल्डोर ने वृद्धि की
व्याख्या एक ऐसे मूल्य व्यवस्था के लिए की है जहाँ प्रेरित विनियोग समुचित व अहम्
भूमिका निर्वाह करता है।
(9) निष्कर्ष
(Conclusion)- निष्कर्ष
रूप में यह कह सकते हैं कि यह मॉडल अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास में तकनीकी विकास
के महत्व की समुचित व्याख्या व्यक्त करता है। इस मॉडल में आर्थिक वृद्धि के दो विकल्पों
पर मुख्यतः ध्यान दिया गया है- (क) तकनीकी विकास के गुणांकों के मूल्य में वृद्धि करना
या (ख) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण करना। आर्थिक विकास के अन्तिम चरण में तकनीकी
विकास गुणांक के मूल्य में वृद्धि करना सम्भव है, किन्तु प्रारम्भिक चरण में बचत व
निवेश की नीची प्रवृत्ति के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता। हालाँकि काल्डोर मॉडल की महत्ता
को कई बातें सीमित करती हैं इसके बाद भी यह मॉडल अल्प विकसित देशों की आर्थिक विकास
की समस्याओं पर महत्वपूर्ण तरीके से विचार करता है। इस प्रकार, यह मॉडल विकसित व विकासशील
दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपयोगी तथा आवश्यक है।
काल्डोर मॉडल एवं अल्प-विकसित देश (KALDOR MODEL AND UDCS)
काल्डोर के वृद्धि मॉडल
पर दृष्टिपात करने से यह ज्ञात होता है कि यह विकसित देशों के साथ-ही-साथ विकासशील
देशों के लिए भी बहुत अधिक उपयोगी एवं आवश्यक है। यह मॉडल आर्थिक वृद्धि की केवल
प्रावैगिक यान्त्रिकी पर ही ध्यान नहीं देता अपितु यह विकास प्रक्रिया की
विशिष्टताओं का भी वर्णन करता है। यह मॉडल स्थिर जनसंख्या व वृद्धिशील जनसंख्या के
मध्य भेद करता है। पुनः यह मॉडल सामान्य उत्पादन फलन के स्थान पर तकनीकी विकास फलन
का उपयोग करता है। यह मॉडल यह भी स्पष्ट करता है कि जब जनसंख्या वृद्धि की दर
आर्थिक वृद्धि दर के समान या उससे अधिक होती है तब तकनीकी विकास फलन विपरीत तरीके
से प्रभावित होता है व अर्थव्यवस्था पूर्व-परिपक्व हास (Premature stagnation) की
तरफ मुड़ जाती है। उल्लेखनीय है कि अल्प विकसित देश जनसंख्या की ऊँची वृद्धि दर की
समस्या से ग्रस्त रहते हैं। काल्डोर का मॉडल इस समस्या के समाधान के लिए उपाय
सुझाने में अग्रणी भूमिका अदा करता है। इस समस्या का समाधान तकनीकी विकास फलन में
निहित है जो उत्पादकता वृद्धि एवं पूँजी संचय से सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में
काल्डोर ने प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि और निवेश वृद्धि दर में एक दृढ़
सम्बन्ध की विवेचना की है। दूसरे शब्दों में, काल्डोर ने तकनीकी विकास फलन के
पर्याप्त ऊँचे मूल्य पर बल दिया है। अगर यह देश तकनीकी विकास के स्तर को ऊँचा
उठाते हैं तब वृद्धिशील जनंसख्या के साथ भी सन्तुलित विकास प्राप्त कर सकते हैं
अन्यथा जनसंख्या नियन्त्रण का एक अन्य विकल्प खुला रहेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)