प्रश्न :- गुणक सिद्धांत की व्याख्या करें ? गुणक
का मूल्य किस प्रकार MPC पर निर्भर करता है? गुणक की क्रियाशीलता किन- किन बातो पर
निर्भर करता है? क्या गुणक सिद्धांत अल्पविकसित देशो मे लागू होता है?
Ans:- 19 वी शताब्दी के आरम्भ में स्वीडेन के प्रमुख अर्थशास्त्री नट विकसेल ने अपनी 'Interest and price' नामक पुस्तक में मुद्रा सफीति में गुणक सिद्धांत का प्रयोग अप्रत्यक्षा के रूप से किया था। 1903 में जर्मन अर्थशास्त्री एन जोहानसेन ने गुणक प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन किया । 1931 से अग्रेज अर्थशास्त्री आर. एफ. काहन ने अपने लेख 'The Relation of home Investment to unemployment' जो 'Economic Journal' में प्रकाशित हुआ, मे गुणक सिद्धांत का विकास किया। 1936 में केन्स ने 'The General theory of Employment Interest and money' में गुणक सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या की। केन्स का कहना है कि गुणक विनियोग में हुए परिवर्तन के फलस्वरूप आय में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को बताता है।
जे. एम. केन्स की धारणा है कि जब किसी क्षेत्र में नयी राशि का विनियोग किया जाता है तब वहाँ उस विनियोग से एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया का जन्म होता है जो विनियोग की राशि की तुलना में कही अधिक आय प्रदान कर देती है। उदाहरण स्वरुप प्रारम्भिक विनियोग आय को बढायेगा, उत्पादन के बढ़ने से आय बढ़ेगी, आय वृद्धि का प्रभाव व्यय को बढ़ायेगा। समाज और व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला यह व्यय एक दूसरे व्यक्ति की आय बन जायेगी । इसी आय को पुनः व्यय किया जाता है जो उत्पादन, रोजगार, आय और व्यय को फिर से बढ़ा देती है। इसी प्रकार मांग, उत्पादन, रोजगार, आय वृद्धि का यह क्रम लगातार चलता ही रहता है और अंत में आय स्तर विनियोग के स्तर से कई गुणा अधिक बढ़ जाता है। इस प्रकार आय के प्रारम्भिक निवेश से जितनी गुणी अधिक आय बढ़ती है, गुणक कहलाता है।
`\therefore` ΔY = KΔI
`or,K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}`
जहाँ K= गुणक, ∆Y = आय में परिवर्तन ∆I = विनियोग में परिवर्तन
आय उपभोग और निवेश के बराबर होता है
Y = C + I ----(1)
साथ ही आय उपभोग और बचत का भी योग होता है। अतः
Y = C + S ----(2)
Y का मान समीकरण (2) में बैठाने पर
C + I = C + S
I = S
उपभोग आय पर निर्भर करता है, लेकिन इसका एक अंश Autonomous होता है, जो आय पर निर्भर नहीं करता
इसलिए C = Co+ C(Y) - -(3)
where Co = Autonomous consumption
C(Y) = Consumption depends upon income
इस प्रकार समीकरण (1) को हम निम्न रूप में व्यक्त कर सकते है
Y = Co + C(Y) + I ----(4)
केन्स ने अपने गुणक सिद्धांत में सम्पूर्ण विनियोग को Autonomous माना है। अतः समीकरण (4) होगा
Y= Co +
C(Y)+ Ao
जहां Ao is Autonomous investment तथा Co is Autonomous consumption expenditure प्राप्त होगा। अत: Autonomous expenditure
Y = C(Y) + A---(5)
यदि Autonomous investment में थोडा परिवर्तन आ जाए तो हम समीकरण (5) को A के respect में differentiale करके गुणक समीकरण प्राप्त कर सकते है। अतः Differentiating equation (5) with respect to A
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dA}.\frac{dY}{dY}+\frac{dA}{dA}`
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dA}.\frac{dY}{dY}+1`
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dY}.\frac{dY}{dA}+1`
`\frac{dY}{dA}-\frac{dC}{dY}.\frac{dY}{dA}=1`
`\frac{dY}{dA}\left(1-\frac{dC}{dY}\right)=1`
`\frac{dY}{dA}\left(1-C\right)=1\left[\because\frac{dC}{dY}=MPC=C\right]`
`\frac{dY}{dA}=\frac1{1-C}`
`dY=\frac1{1-C}dA`
Since, C + S = 1
S = 1 – C
`dY=\frac{1}SdA`
This `\frac1{1-C}=\frac1S=K` is the Multiplier
R.G.D. Allen ने अपनी पुस्तक ' Mathematical Economist' में लिखा है-
"If autonomous investment changes by an amount ∆A, then equilibrium income changes by an amount which is a multiple of ∆A, the multiple being greater than unity
`i,e\Delta Y=\frac1{1-C}\Delta A`
गुणक की प्रक्रिया को निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
Fig-1 में 45° रेखा आय अथवा बचत एवं उपभोग के योग को व्यक्त करता है तथा इसके प्रत्येक बिन्दु पर Y= C + I है। C उपभोग रेखा है । प्रत्येक विनियोग में वृद्धि के साथ, नये बनी उपभोग रेखा की ढाल प्रारम्भिक उपभोग रेखा (C) के ढाल के समान होगी।
वास्तविक आय स्तर Yo है, जो 45° रेखा तथा C(Y)+A वक्र के कटान बिन्दु से प्राप्त होता है।
Autonomous investment में ∆A की वृद्धि होने से एक नया उपभोग वक्र C(Y)+A+∆A प्राप्त होता है जो पूर्व के उपभोग वक्र से ऊँचा है। इस नये वक्र C(Y)+A+∆A को 45° रेखा बिन्दु E1 पर काटती है जिससे की नयी आय स्तर Y1 प्राप्त होता है जो पहले की अपेक्षा अधिक है। इसलिए आय में हुई वृद्धि (Y1-Yo) = ∆Y है। चित्र -1 से स्पष्ट है कि ∆Y में वृद्धि ∆A के अपेक्षा अधिक है। अर्थात् ∆Y>∆A
गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) के मान पर निर्भर करता है। MPC जितना ही बड़ा होगा गुणक उतना ही अधिक बड़ा होगा। सामान्यतः सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0 से 1 के बीच अर्थात् `0\leq C\leq1` रहता है। इस प्रकार यदि MPC = 0 हो तो
`K=\frac1{1-C}` [Where C = MPC]
`K=\frac1{1-0}=1`
अतः गुणक का मान एक (1) है।
गुणक का मान न तो शून्य हो सकती है और न एक हो सकती है। शून्य का अर्थ होगा - उपभोक्ता आय के बढ़ने पर कुछ भी व्यय में वृद्धि नहीं करता है अर्थात् आय की बढ़ी हुई सम्पूर्ण मात्रा को बचत करता है। यह संभव नहीं है। गुणक 1 के बराबर नहीं होता है। इसका अर्थ है उपभोक्ता आय बढ़ने पर उसमें से कुछ भी नहीं बचाता है, बल्कि सम्पूर्ण आय को उपभोग पर खर्च कर देता है।
गुणक का मान एक होने का तात्पर्य यह होगा कि समस्त विनियोग जिसके कारण आय में वृद्धि होती है, प्रारम्भ में किये गये विनियोग के बराबर ही रह जायेगी और सभी अतिरिक्त आय बचत कर लिये जायेंगे। इस प्रकार आय प्रवाह में रूकावट आ जायेगा। इसे हम निम्न चित्त द्वारा दिखा सकते है
उपयुक्त रेखाचित्र में उपभोग वक्र की ढाल X अक्ष के समानान्तर है, इसलिए C+I वक्र भी इसके समानान्तर होगा I C+I वक्र 45° रेखा को बिन्दु L पर काटती है जहाँ आय Y0 है। अब विनियोग में ∆A की वृद्धि हो जाने से एक नया ऊँचा उपभोग वक्र C+I+∆A प्राप्त होता है जो C+I रेखा के समानान्तर है। यह नयी उपभोग रेखा 45° रेखा को बिन्दु M पर काटती है जहाँ आय Y1 है।
जब आय Y0 है उपभोग QY0 था परन्तु जब आय बढ़कर Y1 हो जाता है तो उपभोग PY1 है। चूंकि QY0 तथा PY1 बराबर है, अतः उपभोग में कोई वृद्धि नहीं होगी। अतः
`\because OY_0=\angle\Y_0` [ Two sides of an iso scles right angled Δ]
`\therefore OY_0=C+I`
`\angle\Y_0=C+I`
Know MY1 = OY1
MY1 = C + I + ΔA
Similarl OY1 = C + I + ΔA
OY1 + Y0Y1 = C + I + ΔA
Y0Y1 = C + I + ΔA – OY0
From equation (1) OY0
ΔY = C + I + ΔA – C – I
ΔY = ΔA
अर्थात् आय में वृद्धि = विनियोग में वृद्धि
Case - II
जब MPC = 1 अर्थात् MPS = 0 हो तो
C = 1
`\therefore K=\frac1{1-C}`
`=\frac1{1-1}=\frac{1}0=\infty`
अतः ऐसी अवस्था में आय परिणाम explosive होगा, क्योंकि विनियोग आय में उत्तोत्तर वृद्धि करता चला जायेगा, परिणामस्वरूप आय में अन्नत वृद्धि होगी। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में अति स्फीति आ जायेगा, क्योंकि आय प्राप्तकर्ता जैसे ही धन प्राप्त करेंगे उसे वह खर्च करते चले जायेगे और उपभोग में वृद्धि आय वृद्धि के अपेक्षा अधिक होता चला जायेगा।
गुणक की क्रियाशीलता
गुणक की क्रियाशीलता दो दिशाओं में कार्य करती
है
(1) आगे की ओर गुणक की क्रियाशीलता :- गुणक जब आगे की ओर कार्य करता है तो आय का
प्रसारण होता है। आय प्रसारण की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। गुणक का मान MPC पर निर्भर करता है। मान लिया
MPC = 1/2
है
तो वैसी स्थिती में गुणक 2 के बराबर होगा
`K=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-\frac{1}2}`
जैसे `K=\frac1{\frac{2-1}2}=\frac{2}1=2`
MPC के `\frac{1}2` होने का अर्थ यह है कि आय में जितनी वृद्धि होगी उसका आधा उपभोग पर खर्च किया जाऐगा और आधा बचत होगी । K = 2 का अर्थ है प्रथम विनियोग जितना होगा अर्थव्यवस्था मे उससे दुगुनी आय का प्रजनन होगा। मान लिया 100 करोड़ रु. आय का प्रथम विनियोग होता है तो इससे उत्पादन तथा आय में तुरन्त 100 करोड़ रुपया कि वृद्धि होगी। इस नयी आय का आधा उपभोग वस्तुओं पर खर्च होगा, दूसरे चक्र में 50 करोड़ रुपये की आय बढ़ेगी। इस तरह का क्रम चलता रहेगा जब तक की कुल आय बढ़कर 200 करोड़ नहीं हो जाती - इसे हम निम्न सारणी से स्पष्ट कर सकते है।
आय का प्रसारण करोड़ रु.
मे
चक्र |
निवेश में वृद्धि |
आय में वृद्धि |
उपभोग में वृद्धि |
बचत में वृद्धि |
|
∆I |
∆Y |
∆C |
∆S |
1 |
100 |
100 |
50 |
50 |
2 |
- |
50 |
25 |
25 |
3 |
- |
25 |
12.50 |
12.50 |
4 |
- |
12.50 |
6.25 |
6.25 |
5 |
- |
6.25 |
3.12 |
3.12 |
6 |
- |
3.12 |
1.56 |
1.56 |
7 |
- |
1.56 |
0.78 |
0.78 |
8 |
- |
- |
- |
- |
9 |
- |
0 |
0 |
0 |
अन्ततः |
100 |
200 |
100 |
100 |
तालिका से स्पष्ट
है
कि चक्र आगे की ओर तब तक बढ़ता रहता है जब तक की 100 करोड़ रुपये के
निवेश से कुल आय 200 करोड़ रूपये नही हो जाती है।
(2) विपरीत दिशा में गुणक
की क्रियाशीलता :- गुणक विपरीत दिशा में भी कार्य करता है। यदि MPC = 1/2 तो K= 2 होगा। मान लिया 100 करोड़
रूपया का निवेश घट जाता है तो उपभोग व्यय तब
तक घटता जाऐगा जब तक कि समस्त आय में 200 करोड़ रु. की कमी नहीं
हो जाती है।
यदि ∆Y
= ∆I (1 + C + C2 + C3 +
---- + Cn)
∆Y आय में वृद्धि
∆I
विनियोग में प्रारम्भिक वृद्धि तथा C सीमांत उपभोग प्रवृत्ति को व्यक्त करते है। चूँकि
C का मूल्य एक से कम होता है;
इस प्रकार
`\Delta Y=\Delta I\frac1{1-C}`
चिन्हों के स्थान पर यदि
अंको का प्रयोग किया जाये तो
`\Delta Y=100+100\left(\frac{1}2\right)+100\left(\frac{1}2\right)^2+100\left(\frac{1}2\right)^3+---+100\left(\frac{1}2\right)^n`
`\Delta Y=100\left(\frac1{1-\frac{1}2}\right)`
`\Delta Y=100\times2=200`
इस प्रकार 100 रुपये का प्रारम्भिक
विनियोग MPC = 1/2 होने पर कुल 200
रूपये
की आय कमी करता है। इस उदाहरण में
K अथवा `\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{200}{100}=2`
मान्यताऐ
गुणक सिद्धांत निम्नलिखित
मान्यताओं के अन्तर्गत कार्यशील होता है
(1) विनियोग का नया ऊँचा
स्तर इतने लम्बे समय तक बना रहता है कि समायोजन की प्रक्रिया को पुरा किया जा सके।
(2) स्वायत्त विनियोग में
परिवर्तन होना चाहिए तथा प्रेरित विनियोग में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए
(3) समायोजन प्रक्रिया के
अवधि में MPC में कोई परिवर्तन नहीं हो।
(4) उपभोग पदार्थों का उत्पादन
उनकी प्रभावपूर्ण माँग के अनुसार
(5) गुणक प्रक्रिया में समय
अन्तराल नहीं है।
(6) कीमतों में परिवर्तन
नहीं होना चाहिए।
(7) गुणक एक बन्द अर्थव्यवस्था
में कार्यशील होता है जहाँ विदेशी व्यापार का कोई प्रभाव न हो।
व्यावहारिक जीवन में ये पूरी
नहीं हो पाती। यदि समायोजन प्रक्रिया पूर्ण होने के पूर्व विनियोग के दर में कमी हो
जाती है तो आय में कमी होगी नये विनियोग की धारा निरन्तर बने रहने पर ही
गुणक कार्य कर सकता है।
1. अनैच्छिक बेरोजगारी का
होना गुणक की क्रियाशीलता के लिए एक आवश्यक दशा है। अनैच्छिक बेरोजगारी न होने पर पूर्ण
रोजगार के स्तर पर विनियोग में वृद्धि आय अथवा रोजगार में वृद्धि के बजाय कीमतों में
वृद्धि उत्पन्न करेगी।
2. औद्योगिक अर्थव्यवस्था
का होना भी आवश्यक है। कृषि अर्थव्यवस्था में गुणक अधिक प्रभावपूर्ण नहीं होता है।
3. उद्योगों में उपभोग पदार्थों
की अप्रयुक्त क्षमता यह सम्भव बनाती है कि अतिरिक्त विनियोग
के प्रभाव में उपभोग पदार्थों की माँग में वृद्धि होने पर उनके उत्पादन में वृद्धि
होगी।
4. पूँजी तथा अन्य साधनों
की लोचपूर्ण पूर्ति होने पर ही उत्पादन में वृद्धि सम्भव होती है और गुणक कार्य करता
है।
5. विदेशी व्यापार के अभाव
में गुणक अपना पूरा कार्य करता है। निर्यातो से गुणक का मूल्य बढ़ता है
और आयातो में वृद्धि आय प्रभाव में एक छिद्र बनकर गुणक के मूल्य
में कमी करता है।
आय प्रभाण में छिद्र निम्नलिखित कारणों
से उत्पन्न होते है।
(1) ऋणो की अदायगी :- यदि नयी आय का कुछ भाग
पुराने ऋणों के अदायगी के लिए प्रयोग किया जाता है तो उसका प्रयोग उपभोग में वृद्धि
के लिए नहीं हो पाता और इस प्रकार वह छिद्र बन जाता है।
(2) नकद कोषों का संचय :- यदि आय का कुछ भाग निष्क्रिय
नकदी के रूप में संचय कर लिया जाता है तो वह छिद्र का रूप ले लेता
है और नयी आय के निर्माण में सहायक नहीं होता। इससे गुणक मे कमी होती है।
(3) पुराने स्टॉक तथा प्रतिभूतियों
का क्रय :- यदि नयी आय का उपभोग पहले से ही स्थापित
उद्योगों के अंश तथा प्रतिभूतियों को खरीदने के
लिए
किया जाता है तो उपभोग प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप आय प्रभाव
में कमी हो जाती है।
(4) आयात :- यदि आय बढ़ने पर आयातो
में वृद्धि होती है तो आय विदेशों की ओर प्रभावित होने लगती है। किन्तु ऐसा भी सम्भव
है की यह आयात आगे चलकर निर्यात बढ़ाने
में
सहायक हो। ऐसी स्थिति में आगे चलकर गुणक वृद्धि होगी।
(5) कीमत स्फीर्ति :- प्रो. जे. एम क्लार्क
ने कीमत स्फीर्ति को आय प्रभाव में छिद्र माना
है। कीमतो में वृद्धि के कारण अतिरिक्त क्रय शक्ति अथवा मौद्रिक
आय में वृद्धि का प्रभाव समाप्त हो जाता है और वास्तविक आय के रूप में उपभोग की मात्रा
नहीं बढ़ पाती है।
(6) कर :- करो में वृद्धि करने पर लोगों
की क्रय शक्ति कम हो जाती है। इससे आय की धारा में छिद्र उत्पन्न होता है।
आलोचनाएँ
गुणक सिद्धांत की आर्थिक
समस्याओं के सन्दर्भ में पर्याप्त व्यावहारिक उपयोगिता है, फिर भी इस सिद्धांत की कटु आलोचना की गई है। प्रो. हार्ट
ने गुणक सिद्धांत को 'पाॅचवाॅं बेकार पहिया' माना।
प्रो. स्टिगलर ने इसे 'केन्स के सिद्धांत का अस्पष्टतम भाग' कहा और प्रो हेजलिट ने इसे एक
'निरर्थक उपकरण बताया'।
गुणक के सिद्धांत की आलोचना
जिन बिन्दुओं के अन्तर्गत की जाती है वे इस प्रकार है।
(1) स्वयं सिद्ध को सिद्ध
करना :- प्रो हैंबरलर ने गुणक के सिद्धांत को स्वतः सिद्ध को सिद्ध करना माना है।
गुणक स्वतः सिद्ध सत्य को सत्य प्रमाणित करता है।
प्रो. हैनसन ने इसे गणितीय गुणक माना है न कि व्यवहार पर आधारित गुणक ।
(2)
स्थैतिक संतुलन विश्लेषण :- गुणक सिद्धांत की
व्याख्या में 'समय' तत्त्व को महत्वपूर्ण नहीं माना गया है। इस सिद्धांत के अनुसार
आय पर निवेश का प्रभाव तत्कालिन होता है। यह मानना गलत होगा की आय के बढ़ते ही
उपभोग वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा दिया जाता है, और उपभोग पर व्यय भी तुरन्त कर दिया
जाता है। इन क्रियाओं के बीच समय अंतर नहीं रहता है।
(3)
विचित्र अवधारणा :- प्रो हैजलिट यह कहते है कि
विनियोग तथा आय के बीच इस प्रकार का यांत्रिक संबंध हो ही नहीं सकता जो पहले से
निर्धारित हो। यह एक कल्पना है अतः गुणक का सिद्धांत काल्पनिक बन जाता है।
(4)
एक पक्षीय :- गुणक का सिद्धांत एक पक्षीय है क्योंकि इसमे आय
में वृद्धि के फलस्वरूप उपभोग में वृद्धि के प्रभाव पर तो विचार किया गया है,
लेकिन उपभोग में वृद्धि के फलस्वरूप विनियोग पर पड़ने वाले प्रभावो पर ध्यान नहीं
दिया गया है अतः यह सिद्धांत एकपक्षीय हो जाता है।
(5)
प्रेरित विनियोग प्रभाव की उपेक्षा :-आय के बढ़ने पर उपभोग
में तो वृद्धि होती है विनियोग में भी वृद्धि होती है। आय के परिवर्तन का प्रभाव
विनियोग पर भी पड़ता है अतः गुणक के विश्लेषण मे इस परिवर्तन को सम्मिलित कर लेना
चाहिए था लेकिन केन्स का गुणक सिद्धांत प्रेरित निवेश के प्रभाव की उपेक्षा करता
है।
(6)
अवास्तविक सिद्धांत :- गुणक सिद्धांत की सबसे बड़ी
दुर्बलता यह है कि यह मात्र उपभोग पर बल देता है। यह उपभोग को आय पर आश्रित मानता
है और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति को स्थिर मान लेता है। वास्तविकता तो यह है कि न तो
उपभोग केवल आय पर निर्भर करता है और न MPC
स्थिर रहती है। अत: यह सिद्धांत अवास्तविक हो जाता है।
(7)
आय एवं उपभोग के बीच अरैखीय सम्बंध :- MPC
एक से कम तथा शून्य से अधिक होती है। इस पूर्व मान्यता के आधार पर केन्स का गुणक
सिद्धांत उपभोग तथा आय के बीच रैखीय संबंध स्थापित करता है। लेकिन व्यावहारिक
आंकड़ों के अध्ययन से यह पता चलता है कि आय तथा उपभोग के बीच का सम्बंध जटिल तथा
अरैखीय है।
(8)
गलत पूर्व मान्यताऐ :- गुणक का सिद्धांत कुछ गलत
पूर्व मान्यताओं पर आधारित है जैसे बन्द अर्थव्यवस्था, विनियोग में निरन्तरता और
अनैच्छिक बेरोजगारी ।
गुणक तथा अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएँ
अर्द्धविकसित देशों में
जहाँ बहुत से अर्ध भूखे तथा अर्धनग्न व्यक्ति रहते है वहीं दूसरी ओर उनकी MPC
उतनी ही अधिक होती है। इसलिए सैद्धान्तिक दृष्टि से केन्स का गुणक सिद्धांत
अल्पविकसित देशों में (भारत) तीव्र गति से क्रियाशील होगा, परन्तु वास्तविक स्थिती
यह है कि अर्धविकसित अर्थव्यवस्था में केन्स का गुणक सिद्धांत उसी प्रकार समान रूप
से क्रियाशील नहीं हो पाता जैसा कि वह विकसीत देशों में होता है।
केन्स द्वारा प्रतिपादित
गुणक सिद्धांत निम्न कारणों से अर्द्धविकसित देशों में लागू नहीं हो पाता -
(1) अर्द्धविकसित
अर्थव्यवस्था में रोजगार के विस्तार के लिए अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं होती
(2) अर्द्धविकसित देशो मे
उपभोग वस्तु उद्योगों में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता नहीं होती फलतः उत्पादन की
पूर्ति बेलोचदार होती है।
(3)
उत्पादन वृद्धि के लिए कार्यशील पूंजी की लोचदार पूर्ति का अल्पविकसित देशों में
अभाव रहता है।
निष्कर्ष
गुणक सिद्धांत की कई महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं के सन्दर्भ में आलोचनाएं हुई है जिसके आधार पर इसे 'पाँचवा बेकार पहिया' कहा गया है लेकिन ऐसी बात नहीं है। इस उपकरण का प्रयोग आय एवं रोजगार के निर्धारण में किया जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)