4.पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व (Importance of Environmental Studies)

4.पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व (Importance of Environmental Studies)

4.पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व (Importance of Environmental Studies)

4.पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व (Importance of Environmental Studies)

प्रश्न : पर्यावरणीय अध्ययन के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।

पर्यावरण का अध्ययन क्यों आवश्यक है? इस संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिये।

☞ पर्यावरणीय अध्ययन की आवश्यकता का विवेचन करते हुए उसके महत्त्व को निरूपित कीजिये।

पर्यावरणीय अध्ययन के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।

उत्तर : पर्यावरण अध्ययन की ओर लोगों का ध्यान सर्वप्रथम बीसवीं शताब्दी में गया। तब से लेकर आज तक कोई भी वर्ष और कोई भी दिन ऐसा नहीं वीता, जब पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी विज्ञान की चर्चा नहीं हुई है। 1972 ई. में स्टाकहोम में पर्यावरण पर एक सम्मेलन का आयोजन हुआ। संयुक्त राष्ट्र की एक अपील 'Only One Earth' (केवल एक ही धरती) आज समूची दुनिया की आवाज बन गयी है। संयुक्त राज्य इससे पूर्व 22 अप्रैल, 1970 ई. को 'विश्व दिवस' का सम्मेलन आयोजित कर चुका था और उसने पहली बार पर्यावरणीय समस्याओं के प्राकृतिक संसाधनों के क्षय तथा प्रदूषण के खतरे की ओर विश्व-मानवों का ध्यान आकर्षित किया था।

पर्यावरण में एकाएक ऐसी दिलचस्पी क्यों ली जाने लगी है? यह एक समीचीन प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमें थोड़ा-सा मानव के अतीत में लौटना होगा। जंगल में शिकार करने और खाद्य-वस्तुओं को बटोरने की स्थिति से मनुष्य का विकास अन्तरिक्ष खोजी के तौर पर हो चुका है। अब वह अपने लिए नये ग्रहों की तलाश में लगा हुआ है। विचार करने पर ऐसा लगता है कि अतीत में वे दिन कभी आये ही नहीं थे जिन दिनों मनुष्य जंगलों को काटता था, खेती शुरू करता था, घुमन्तू जीवन बिताता था और कुछ समय बाद अपने लिए छोटी-छोटी बम्तियाँ बनाता, बसाता था। अब इन जंगलों का सफाया हो चुका है, जहाँ कभी मनुष्यता का उद्भव और विकास हुआ था, जहाँ मनुष्य ने अपना धर्म विकसित किया था, जहाँ उसे ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ था। वे जंगल आज भी मनुष्य को जरूरत की कई चीजें प्रदान करते हैं, जिस भूमि ने मनुष्य को भोजन दिया और बहुमूल्य खजानों का उपहार दिया, जिस हवा में साँस लेकर मनुष्य जिन्दा रहता है, जिस पानी में पहला जीव पैदा हुआ और जो मानव-जीवन का आधार है- इस भूमि और इन जलाशयों-जलमार्गों को मनुष्य की टेक्नालॉजी की प्रगति ने महज कूड़ेदानों और गंदी नालियों में बदल दिया है।

इस तरह धरती और प्रकृति के दरिद्रीकरण की प्रक्रिया उद्योगीकरण के साथ-साथ चल रही है। इन सभी स्थितियों का बिलकुल सटीक आकलन प्रोफेसर ई. एफ. शुमाखर ने किया है। वे कहते हैं "पूँजी का बहुत बड़ा अंश तो प्रकृति का दिया हुआ है, मनुष्य-निर्मित नहीं है। आश्चर्य का विषय है कि हम इस बात के महत्त्व को नहीं समझते। यह प्रकृतिदत्त पूँजी इतनी तेजी के साथ समाप्त हो रही है कि यह चिन्ता का विषय बन गयी है।" फलस्वरूप 'मानव-जीवन के लिए खतरा पैदा हो गया है।' गाँधीजी ने जब यह कहा था कि मनुष्य की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति में पर्याप्त संसाधन विद्यमान हैं लेकिन उसमें मनुष्य के असीम लालच को पूरा करने की शक्ति नहीं है तो उस समय भी लोगों ने उनकी चेतावनी को नहीं समझा था और आज भी वह गंभीरतापूर्वक अपने लालच पर लगाम लगाने की बात नहीं सोचता। मनुष्य ने लालच के फेर में पड़कर प्रकृति का अतिशय दोहन किया है जिसके कारण उसके अस्तित्व पर ही संकट का सघन बादल छा गया है। इसी समस्या और संकट में पर्यावरणीय अध्ययन की आवश्यकता और महत्त्व छिपे हुए हैं।

पारिस्थितिकी विज्ञान के अध्ययन के आलोक में यह तथ्य उजागर हुआ है कि मनुष्य एवं पर्यावरण के बीच गहरा एवं घनिष्ठ संबंध है। उपर्युक्त विवेचन ने पर्यावरण के प्रदूषण, असंतुलन और संकट को स्पष्ट कर दिया है। आज अनेक वैश्विक एवं राष्ट्रीय, सरकारी एवं स्वैच्छिक संस्थाएँ पर्यावरण के बारे में लोगों को जानकारी दे रही हैं और पर्यावरण के परिष्कार के प्रति लोगों को जागरूक बना रही है। इसमें प्रिंट मीडिया (समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं) से लेकर अनेक प्रकार के संचार माध्यम, यथा, रेडियो और टेलीविजन आदि की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पर्यावरण को जानने के बाद लोगों के बीच यह धारणा पुष्ट हुई है कि 'पृथ्वी एक जीवित जगत' है। सौर-परिवार (solar system) में एकमात्र पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवों (पादपों सहित) का विकास हुआ और जिस पर जीवों के विकसित होने और रहने लायक पर्याप्त अनुकूल वातावरण (पर्यावरण) विद्यमान है। मनुष्य ने अब तक अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों के विषय में जो जानकारी एकत्र की है, उसके अनुसार किसी अन्य ग्रह पर जीवों के लिए पृथ्वी जैसा पर्यावरण नहीं है। अतः हम कह सकते हैं कि पृथ्वी पर विद्यमान पर्यावरण प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ वरदान है।

सम्पूर्ण जैव-मंडल पर्यावरण की उपज है। मनुष्य पृथ्वी और प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है। अन्य जीव अज्ञान की जड़ता से बँधे हुए हैं जबकि प्रकृति के रहस्यों को जानने में मनुष्य को निपुणता प्राप्त है। मनुष्य की प्रत्येक गतिविधि का प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध पर्यावरण से है। मनुष्य की सामाजिक और आधारभूत आवश्यकताओं का संबंध भी पर्यावरण से है। यही कारण है कि पर्यावरण को भौतिक तत्त्वों, शक्तियों और श्रृंखलाओं का समुच्चय कहा गया है। इसी समुच्चय पर सृष्टि का अस्तित्व निर्भर है।

निम्नलिखित दृष्टियों से पर्यावरण के अध्ययन का महत्त्व सिद्ध होता है

1. पर्यावरणीय विविधता की दृष्टि से : समस्त भूमण्डल का पर्यावरण या पारिस्थितिकी समरूप नहीं है। पर्यावरण अनेक तत्त्वों भौतिक, जैविक और सांस्कृतिक तत्त्वों का सम्मिश्रण है। विभिन्न क्षेत्रों की पर्यावरणीय विविधता विषमतापूर्ण होती है। अतः यह विषमता भी जिज्ञासु पर्यावरणविदों को अध्ययन के लिए आमंत्रित करती है।

2. प्राकृतिक तत्त्वों के क्रमबद्ध अध्ययन की आवश्यकता की दृष्टि से : पृथ्वी की भौतिक रचना, स्थलाकृति, वायुमण्डल, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु आदि का क्रमबद्ध अध्ययन पर्यावरणीय अध्ययन का ही विषय क्षेत्र है। इस क्रमबद्ध अध्ययन की आवश्यकता निर्विवाद है। अतः पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व भी निर्विवाद है।

3. पर्यावरण और मानव-सम्बन्धों की दृष्टि से : यद्यपि पर्यावरण के घटक के अनेक तत्त्व हैं लेकिन उसका एक महत्त्वपूर्ण घटक जीव-मंडल (biosphere) है। इस जीव-मंडल में भी मनुष्य का स्थान सर्वोपरि है। अनादि काल से ही मनुष्य और पर्यावरण का संबंध बना हुआ है बल्कि यदि हम कहें कि दोनों में सायुज्ज संबंध है, दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस तरह पर्यावरण मनुष्य को गहरे रूप से प्रभावित करता है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपने क्रियाकलापों से पर्यावरण को प्रभावित करता है। इस दृष्टि से पर्यावरण एवं मनुष्य के परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन भी आवश्यक हो जाता है।

4. जैवमण्डल के अध्ययन की दृष्टि से : पर्यावरण के अध्ययन का एक प्रमुख क्षेत्र जैव-मण्डल (biosphere) है। जैवमण्डल के प्रत्येक जीव पर पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि जैवमण्डलों के सभी जैविक एवं अजैविक घटकों की विशेषताओं और उनके पारस्परिक संबंधों का अध्ययन पर्यावरणीय अध्ययन की एक परम विशिष्टता है। अतः जैव मण्डल का अध्ययन भी पर्यावरणीय अध्ययन का एक अभिन्न अंग है।

5. पर्यावरण के घटक तत्त्वों की दृष्टि से : पर्यावरण के घटकों स्थलमण्डल, वायुमण्डल और जलमण्डल के बारे में बताया जा चुका है। इन प्रमुख घटकों के अध्ययन की दृष्टि से पर्यावरणीय अध्ययन का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

आधुनिक युग में पर्यावरणीय अध्ययन की प्रासंगिकता पर कोई विवाद नहीं किया जा सकता। अतीत और वर्तमान में पर्यावरण और पारिस्थितिकी के साथ मनुष्य ने जिस प्रकार की छेड़छाड़ की और कर रहा है, उसके चलते उसने अपने अस्तित्व को ही संकटमय बना लिया है। मनुष्य के तकनीकी ज्ञान की बढ़ोत्तरी और उद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण पर्यावरण ह्रास की ओर अग्रसर है। पर्यावरण में नित्य प्रति हजारों टन जहर घुलते चले जा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या अत्यंत बीहड़ और विकट बन गयी है। इन कारणों से पर्यावरण और पारिस्थितिकी में भयानक असंतुलन आ गया है। इन समस्याओं ने मनुष्य को उलझन में डाल दिया है और वह पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत और जागरूक हो उठा है। इन्हीं परिस्थितियों ने पर्यावरण अध्ययन को एक नया आयाम प्रदान किया है। आज के पर्यावरणविद् पर्यावरण प्रबंधन पर विशेष बल दे रहे हैं। पर्यावरण प्रबंधन के अन्तर्गत पर्यावरण के अपक्षय और ह्रास को रोकने के उपायों और प्रयासों पर विचार किया जा रहा है। मनुष्य के इन सभी प्रयासों का एकमात्र लक्ष्य यह है कि पर्यावरण को वर्तमान और भावी पीढ़ी के जीवन और विकास के लिए पुनः पर्याप्त रूप से अनुकूल बनाया जा सके।

إرسال تعليق

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare