1.पर्यावरण की परिभाषा एवं सामान्य संकल्पना (Definition of Environment and its Concept)

पर्यावरण की परिभाषा एवं सामान्य संकल्पना (Definition of Environment and its Concept)

नोट - निर्गमन के सिद्धांत (Principles of Note Issue)

पर्यावरण की परिभाषा एवं सामान्य संकल्पना

(Definition of Environment and its Concept)

प्रश्न : पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।

'पर्यावरण' से आप क्या समझते हैं? पर्यावरण की वैज्ञानिक अवधारणा पर प्रकाश डालिये।

☞ पर्यावरण सम्बन्धी प्रमुख विद्वानों एवं वैज्ञानिकों की परिभाषाओं के आधार पर पर्यावरण की संकल्पना को स्पष्ट कीजिये।

"पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन का स्त्रोत है। वह मनुष्य और उसकी गतिविधियों, अस्तित्व, वृद्धि और विकास को न केवल संचालित करता है अपितु उसकी दिशा भी निर्धारित करता है।"- इस कथन के आलोक में पर्यावरण सम्बन्धी संकल्पना पर प्रकाश डालिये।

'पर्यावरण' के सामान्य और विशिष्ट अभिप्राय को स्पष्ट कीजिये तथा तत्सम्बन्धी प्रमुख परिभाषाओं के संदर्भ में उसके स्वरूप की व्याख्या कीजिये।

उत्तर : मनुष्य सदा से दो संसार का निवासी रहा है। विश्व का एकरूप वह है जिसमें मनुष्य रहता है। इस विश्व को 'प्राकृतिक विश्व' (natural world) कहा जाता है। वृक्ष, पशु, वायु, जल, मृदा (मिट्टी या पृथ्वी) तथा मनुष्य इस संसार के अभिन्न अंग हैं। दूसरा संसार स्वयं मनुष्य द्वारा निर्मित है। इस संसार को 'निर्मित संसार' (built world) कहा जाता है। इस संसार के अन्तर्गत अनेक प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ और शिल्प तथ्य (artifacts) आते हैं। मनुष्य ने ही स्वयं इसकी रचना विज्ञान, तकनीक एवं राजनीतिक संगठनों को प्रयोग में ला कर किया है। मनुष्य एक साथ ही इन दोनों संसारों में निवास करता है। इसलिए ये दोनों विश्व मिलकर पर्यावरण को संघटित करते हैं और स्वयं उसके अभिन्न अंग भी बन जाते हैं।

: सरल शब्दों में का अर्थ मनुष्य के चतुर्दिक का यह परिवेश था प्रतिवेश है जिसमें प्राणियों के चारों ओर की सभी चीजें शामिल हैं, अर्थात् इसमें अप्राणी जगत (abiotic or non-living thing) एवं (living or brotic) के पर्यावरण सम्मिलित है। आधनिक या अधिक पर्यावरण मिट्टी, जल एवं आयु से मिलकर बना हुआ है जबकि प्राणिक या जैविक पर्यावरण के अन्तर्गत सभी प्रकार के प्रायी और जीव-जंतु आते हैं जो निरंतर एक-दूसरे के संसर्ग में रहते हैं। लेकिन एक पर्यावरणविद् की दृष्टि में पर्यावरण एक और एक स्थानीयकृत क्षेत्र (localised area) होता है जिसको अपनी विशिष्क्ष प्रकार को समस्या होती है तो दूसरी ओर जसको दृद्धि में पर्यावरण का एक वैश्विक आयाम' भी होता है। वैश्विक पर्यावरण के तीन प्रमुख तत्त्व है वायुमण्डल, जलमण्डल और स्थलमण्डल।

सरल शब्दों में प्रकृति (nature) को ही मानव का पर्यावरण कहना समुचित प्रतीत होता है जो उसके संसाधनों का भी भंडार है। 'पर्यावरण' शब्द दो शब्दों के मेल से बना हुआ है- 'परि आवरण' अर्थात् हमारे चारों तरफ का आवरण। हमारे चारों तरफ के आवरण में क्या है? सामान्यत: हम कह सकते हैं कि हमारे चारों ओर का वायुमण्डल, जिसमें हम रहते हैं और अन्य जीवधारी सब मिलकर पर्यावरण (environment) का निर्माण करते हैं किन्तु पर्यावरण इतना भर हो नहीं है। इस संकुचित अर्थ से भिन्न भी उसका व्यापक संदर्भ है। पर्यावरण का तात्पर्य उस समूची भौतिक एवं जैविक व्यवस्था से है जिसमें जीवधारी रहते, बढ़ते-पनपते और अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं। अंगरेजी का 'Environment' शब्द फ्रेंच भाषा के Envirner से बना हुआ है। Envimer शब्द का अर्थ पारिस्थितिकी या प्रकृति है। फ्रेंच मूल की व्युत्त्पत्ति के अनुसार पर्यावरण या Environment के अन्तर्गत के सभी परिस्थितियों, दशाएँ तथा प्रभाव आ जाते हैं जो जैविकीय समूह पर प्रभाव डालते हैं। भारतीय मनीषियों ने प्राकृतिक अनुराग और प्रकृति संरक्षणा की चिन्तन धारा को हो भारतीय संस्कृति कहा। प्रकृति हमारी पुरातन संस्कृति में इस प्रकार रची-बसी हुई है कि उससे पृथक् हम अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते। उनके अनुसार हम प्रकृति के अविभाज्य अंग हैं। प्रकृति क्या, सभी प्राकृतिक शक्तियों को भारतीय मनीषियों ने देवतास्वरूप माना। ऊर्जा के अपरिमित स्रोत 'सूर्य' को देवता माना। वायु में दैवीय शक्ति का आभास पाया। जल को भी देवता कहा और उसे सर्वथा निर्मल एवं पवित्र रखने पर बल दिया। धरती को माता कहा और स्वयं को धरती का पुत्र माना। सम्पूर्ण जड़ एवं चेतन जगत से श्रद्धायुक्त आत्मीय नाता जोड़ा। इस प्रकार भारतीय मनीषियों ने पर्यावरण और उसके संरक्षण, पावित्र्य और विशुद्धता की शाश्वत अवधारणा हमारे सामने रखी। पर्यावरण को इस व्यापक अवधारणा के अन्तर्गत पर्यावरण संबंधी समस्त आधुनिक विचारों को समेट लिया जा सकता है। इस दृष्टि से पर्यावरण सम्बन्धी आज जितनी भी परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं या जो भी विचार प्रकट किये जा रहे हैं, उसका कोई भी पहलू भारतीय वाङ्‌मय के लिए अपरिचित नहीं है। फिर भी पर्यावरण सम्बन्धी विभिन्न विचारकों, विद्वानों, और पर्यावरणविदों की परिभाषाओं पर विचार कर लेना उचित प्रतीत होता है।

एक विद्वान् टी. एन. खोशू (T. N. Khoshoo) कहते हैं, "उन सभी दशाओं का योग पर्यावरण कहलाता है जो जीवधारियों के जीवन और विकास को प्रभावित करता है।" पर्यावरण ही पृथ्वी पर जीवन का मूलभूत स्रोत है। इस स्त्रोत की अनुपस्थिति का अर्थ पृथ्वी पर से जीवन का खात्मा है। पर्यावरण बड़ी गहराई और सूक्ष्मता के साथ जीवन को प्रभावित और संचालित करता है। जीवधारियों के अस्तित्व पर्यावरण पर ही निर्भर हैं। पर्यावरण ही उन्हें पनपने एवं विकसित होने का अनुकूल अवसर प्रदान करता है। मनुष्य के सम्पूर्ण क्रियाकलापों और प्राणियों के जीवन का आधार पर्यावरण ही है।

इसी तथ्य को एच. एम. सक्सेना ने पर्यावरण संबंधी अपनी परिभाषा में समाहित किया है-"Environment is the source of life on the earth and it not only directs but also determines the existence, growth and development of mankind and its activities."

टी. एन. खोशू की अवधारणा से मेल खाती पर्यावरण सम्बन्धी परिभाषा द यूनिवर्सल इनसाइक्लोपीडिया में दी गयी है "The sum total of all conditions, agencies and influences which affect the development, growth, life and death of an organism." अर्थात् पर्यावरण उन सभी दशाओं, स्त्रोतों या कारकों एवं प्रभावों की समष्टि है जो जीव एवं उनकी अन्य प्रजातियों के विकास, जीवन एवं मृत्यु को प्रभावित करती है।

पर्यावरण टी. आर. डेट्वीलेक्स (T. R. Detivylex) की दृष्टि में उन वाह्य दशाओं का योग है जो मनुष्य को व्यक्तिगत रूप से लेकर समस्त जीवधारियों, विशेषकर मानव-जीवन को प्रभावित करता है। पर्यावरण अंततः जीवन के वैशिष्ट्यों एवं उसकी उत्तरजीविता को निर्धारित करता है।

ए. जी. टेनस्ले (A. G. Tansley) की पर्यावरण संबंधी परिभाषा भी प्रभावकारी दशाओं की समष्टि की ओर संकेत करती है जिसमें जीव रहते हैं।

अन्य सभी परिभाषाएँ उपर्युक्त परिभाषाओं से ही मिलती-जुलती हैं।

सी. सी. पार्क के अनुसार पर्यावरण उन दशाओं का योग है जिससे किसी निश्चित समय में मानव जाति घिरी रहती है।

ए. गाउडी (A. Goudie) की परिभाषा में प्रकृति में विद्यमान सभी तत्त्वों और घटकों को स्थान मिला है "पृथ्वी के भौतिक घटकों, स्थान, स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मिट्टी तथा शैल ही पर्यावरण के मूलभूत तत्त्व या अंग हैं।" गाउडी की दृष्टि में पर्यावरण को प्रभावित करने में मनुष्य की प्रमुख भूमिका है।

इसी प्रकार की परिभाषा एच. फी. हिंग्स (H. Fi. Hings) ने दी है। वे कहते हैं-जीवों के पारिस्थितिकी कारकों का योग (The totality of milieu [वातावरण] factors of an organism) पर्यावरण कहलाता है अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर वातावरण कहलाते हैं।

आर. एम. मैकबर. (R. M. Macwver) ने अपनी परिभाषा में प्रकृति में निहित दृष्ट एवं अदृष्ट सभी पदार्थों और जीवों को सम्मिलित किया है। उनके अनुसार, घरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशाएँ, प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।

पर्यावरण की प्रस्तुत की गर्मी उपर्युक्त परिभाषाएँ इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि पर्यावरण के सभी घटक एक-दूसरे से लगातार प्रभावित होते रहते हैं और दूसरों को प्रभावित भी करते हैं। जहाँ तक जीव जगत या जीव-मण्डल (biosphere) का प्रश्न है कोई भी प्राणी पृथ्वी पर अकेले या पृथक होकर जीवन नहीं बिता सकता। किसी भी विशेष जगह पर रहनेवाले जीवों का अन्य अनेक जीवों के साथ साथ-साथ रहना एक अनिवार्य प्रक्रिया है। इससे सिद्ध होता है कि पर्यावरण और जीवधारी परस्पर अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। पर्यावरण के बगैर जीव की धरती पर कल्पना करना असम्भव है। इस बात से हम भली-भाँति परिचित हैं कि पृथ्वी पर का हर प्राणी अन्ततः भोजन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पादपों (वृक्षों) पर निर्भर है। भारतीय वाङ्मय का यह सिद्धांत 'जीवो जीवस्य भोजनम् ' पर्यावरण और जीवधारियों के प्रगाढ़ और अभिन्न सम्बन्ध को स्पष्ट कर देता है। इस पृथ्वी पर कोई भी जीव अपने आस-पास के प्रतिवेशी (of surroundings) जीव अन्य सहवासी जीवों की उपेक्षा कर जीवित नहीं रह सकता। यह दुष्ट कल्पना कितनी भयानक और विनाशकारी है कि पृथ्वी पर केवल मनुष्य को रहना चाहिए। वन, वन्य जीव, कीट-पतंग, मनुष्य, पर्वत, शैल, नदी, समुद्र, मिट्टी सभी तो एक-दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर हैं। अतः हम थोड़े से शब्दों में समस्त भौतिक तथा जैविक परिस्थितियों के योग को पर्यावरण कह सकते हैं जो जीवों की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। अर्थात् पर्यावरण जीवमण्डल, वायुमण्डल, स्थलमण्डल के जीवित अंशों का योग है। इसी कारण पर्यावरण को एक जीवित कोशिका कहा गया है जिसकी रक्षा चारों तरफ का वातावरण करता है।

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