12th Sanskrit 1. विद्ययामृतमश्नुते JCERT/JAC Reference Book
12th Sanskrit 1. विद्ययामृतमश्नुते JCERT/JAC Reference Book 1.
विद्ययामृतमश्नुते अधिगम-प्रतिफलानि • संस्कृतश्लोकान् उचितबलाघातपूर्वकं छन्दोंऽनुगुणम्
उच्चारयति । (संस्कृत श्लोकों का छन्दानुसार उचित लय के साथ उच्चारण करते
हैं।) • श्लोकान्वयं कर्तुं समर्थः अस्ति । (श्लोकों का अन्वय करने में समर्थ होते हैं।) • तेषां भावार्थं प्रकटयति । (उनके भावार्थ प्रकट करते हैं।) पाठपरिचयः - प्रस्तुत पाठ ईशावास्योपनिषद् से संकलित है।
'ईशावास्यम्' पद से आरम्भ होने के कारण इसे ईशावास्योपनिषद् की संज्ञा दी गयी है।
यह उपनिषद यजुर्वेद की माध्यन्दिन एवं काण्व संहिता का 40वाँ अध्याय है, जिसमें 18
मन्त्र हैं। इस संकलन के आद्य दो मन्त्रों में ईश्वर की सर्वत्र विद्यमानता को
दर्शाते हुए, कर्तव्य भावना से कर्म करने एवं त्यागपूर्वक संसार के पदार्थों का
उपयोग एवं संरक्षण करने का निर्देश
है। आत्मस्वरूप ईश्वर की व्यापकता को जो लोग स्वीकार नहीं करते हैं, उनके अज्ञान
को तृतीय मन्त्र में दर्शाया गया है। चतुर्थ मन्त्र में चैतन्य स्वरूप, स्वयं
प्रकाश एवं विभु सर्वव्यापक आत्म तत्त्व का निरूपण है। पञ्चम एवं षष्ठ मन्त्रों
में अविद्या अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान एवं विद्या अर्थात् आध्यात्म…