12th Sanskrit 4. कर्मगौरवम् JCERT/JAC Reference Book

12th Sanskrit 4. कर्मगौरवम् JCERT/JAC Reference Book
12th Sanskrit 4. कर्मगौरवम् JCERT/JAC Reference Book
4. कर्मगौरवम् अधिगम-प्रतिफलानि 1. संस्कृत श्लोकान् उचितबलाघात पूर्वकम् छन्दोऽनुगुणम् उच्चारयति। (श्लोकों का छन्दानुसार उचित लय के साथ सस्वर वाचन करते हैं) 2. श्लोके प्रयुक्तानां सन्धियुक्तपदानां विच्छेदं करोति। (श्लोक में प्रयुक्त सन्धियुक्तपदों का विच्छेद करते हैं।) 3. श्लोकान्वयं कर्तुं समर्थः अस्ति। (श्लोकों का अन्वय करने में समर्थ होते हैं।) पाठपरिचय- प्रस्तुत पाठ, श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय एवम् तृतीया अध्यायों से संग्रहीत है। श्रीमद्भगवद्गीता वह विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थरत्न है, जिसमें श्रीकृष्ण ने विषादग्रस्त अर्जुन को कर्तव्य का उपदेश देकर धर्मरक्षार्थ युद्ध के लिए प्रेरित किया था। कर्म में कुशलता को ही योग बताया गया है। अतः सभी को निःसंगभाव से सदा सर्वहित के कार्यों में संलग्न रहना चाहिए। यही उपनिषदों का भी सन्देश है- कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः । पद्यांश:- बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ।। 1 ।। नियतं कुरू कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ||2 || न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यम् पुरुषोऽश्नुते । न च…