10. आहार-श्रृंखला और आहार तंत्र (Food Chain and Food Web)

10. आहार-श्रृंखला और आहार तंत्र (Food Chain and Food Web)

10. आहार-श्रृंखला और आहार तंत्र (Food Chain and Food Web)

आहार-श्रृंखला और आहार तंत्र

प्रश्न : आहार-श्रृंखला को परिभाषित कीजिए। उपयुक्त उदाहरण देकर विभिन्न प्रकार की आहार श्रृंखलाओं का नामोल्लेख करते हुए उनकी व्याख्या कीजिए।

अथवा

आहार-श्रृंखला से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार की आहार-श्रृंखलाओं के नाम बताइए तथा उनकी सम्यक् व्याख्या करें।

अथवा

आहार-श्रृंखला को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डालिये।

उत्तर: पारिस्थिकीय तंत्र के विश्लेषण की आधारभूत संकल्पना का अर्थ आहार-श्रृंखला के विचारों का पलवन है। आहार श्रृंखला ऊर्जा के अंतरण (एक-दूसरे में अदला-बदली) पर आधारित है। यह ऊर्जा सूर्य के माध्यम से जैविक प्रणाली के द्वारा प्राप्त होती है। आहार-ऊर्जा का स्रोत पादप (पौधे) या उत्पादक है। आहार-ऊर्जा का यह स्रोत विभिन्न प्रकार के जीवों में एक-दूसरे में विभिन्न स्तरों पर अंतरित होता रहता है। ऊर्जा के अंतरण (transfer) में विभिन्न प्रकार के जीव यथा शाकाहारी, माँसाहारी और सर्वभक्षी भाग लेते हैं। वे एक दूसरे को खाते हैं या उनके द्वारा खा लिया जाते हैं। इस श्रृंखला का चक्र निरंतर चलता रहता है। ऐसी श्रृंखला को 'आहार-श्रृंखला' कहा जाता है। आहार-श्रृंखला में ऊर्जा (खाद्य के रूप में) प्राथमिक उत्पादकों से प्राथमिक उपभोक्ताओं में, प्राथमिक उपभोक्ताओं से द्वितीय उपभोक्ताओं में, द्वितीय उपभोक्ताओं से तृतीय और तृतीय अर्थात् सर्वभक्षी उपभोक्ताओं में अंतरित होती रहती है। यह श्रृंखला अनवरत रूप से चलती रहती है। जीवों के जो जीवों द्वारा जीवों को खा लिए जाने की इस श्रृंखला को खाद्य या आहार-श्रृंखला कहते हैं। इस आहार-श्रृंखला को इस रूप में समझा जा सकता है-

(i) घास हिरण बाघ

(ii) बीज चूहा उल्लू

(iii) शैवाल कीट मछली मनुष्य

(iv) Sap (रस) Aphid (माहुँ) गुबरैला मकड़ा छिपकली साँप बाज भेड़िया Tick (कीट) बैक्टीरिया

प्रकृति में दो प्रकार की आहार-श्रृंखलाएँ हैं-

(क) चरगाहा आहार श्रृंखला।

(ख) अपरद (मलबा) [delritus] आहार श्रृंखला।

(क) चरगाहा आहार-श्रृंखला : इस आहार-श्रृंखला का प्रारंभ हरे पादपों (उत्पादक) की बढ़ी या शाखाओं से होता है और शाकाहारियों में वे पशु जो घास-पात, पत्ता-शाख आदि खाते हैं, तक जाता है। शाकाहारियों से उन पशुओं या जीवों में जाता है जो शाकाहारी पशुओं को खाकर अपने जीवन का निर्वाह करते हैं।

उदाहरण के लिए-

  • फाइटोप्लैंक्टन जूपलैंक्टन मछली मनुष्य
  • घास टिड्डा मेंढक सर्प बाज
  • घास खरगोश लोमड़ी बाघ

प्रकृति में अधिकांश पारिस्थितिकी तंत्र, यथा- चरगाहा, वन, तालाब आदि चरगाहा आहार-श्रृंखला उपलब्ध करते हैं। इस प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र की आहार-श्रृंखलाएँ वस्तुतः सौर-ऊर्जा के अन्तर्वाह (influx) पर निर्भर होती हैं। इस प्रकार की आहार-श्रृंखलाएँ स्वपोषियों के ऊर्जा-ग्रहण और संक्रमण (या अंतरण) पर निर्भर होती हैं। स्वपोषियों से गृहीत ऊर्जा शाकाहारियों में और शाकाहारियों से माँसाहारियों में जाती है।

(ख) अपरद (मलबा) आहार-श्रृंखला : यह आहार-श्रृंखला मृत जीवों से प्रारंभ होकर अपरद या मलबा भोंजी जीवों (Detrivores) तक पहुँचती है। पुनः उनसे यह परभक्षियों (Predators) तक पहुँचती है। यह ऊर्जा सूर्य के माध्यम से जैविक प्रणालियों के उपभोक्ता से प्राप्त होती है। अपरद भोंजी के उदाहरण बैक्टीरिया, फफूँदी में रहने वाले कीड़े, केंचुआ और सड़ी लकड़ी पर जमने वाले कीट आदि हैं। अपरदभोजियों की आहार-श्रृंखला के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-

(i) मृत जीव पदार्थ अपरदभोज परभक्षी

(ii) गिरे हुए पत्ते एवं मृत पादप गुल्हा कीट मछली

(iii) मृत जीव पदार्थ बैक्टीरिया प्रोटोजोआ रोटिफर (Rotifer)

जिस पारिस्थितिकी तंत्र में इस तरह की आहार-श्रृंखलाएँ होती हैं वे मुख्यतः दूसरी प्रणालियों में उत्पादित जीव-पदार्थों के अन्तर्वाह पर निर्भर करती हैं। ऐसी पारिस्थितिकी प्रणाली (जैसे अपरद या नदीमुख) आदि प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा पर कम निर्भर होती हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अपरद आहार-श्रृंखला चरगाहा आहार-श्रृंखला की तरह ही समाप्त होती है किन्तु दोनों आहार श्रृंखलाओं के प्रारम्भ होने की दशाएँ बिल्कुल भिन्न हैं।

मलबा आहार श्रृंखला में पोषण के स्तर पर मलबा उपभोक्ता चरगाहा उपभोक्ताओं से बिल्कुल भिन्न और विपरीत होते हैं। क्योंकि ये निश्चित समूहाले होते हैं। अपरदभोजों में शाकाहारी, सर्वभक्षी, एवं प्राथमिक मांसाहारी भी शामिल हैं। समूहे रूप में अपरदभोज अपनी ऊर्जा का कुछ अंश सीधे पादप पदार्थों से भी ग्रहण करते हैं। इन्हें कुछ द्वितीय उपभोक्ताओं से (जैसे बैक्टीरिया द्वारा खाये जाने से) भी प्राप्त होती है। इन्हें कुछ ऊर्जा मांसाहारियों से भी मिलती है (उदाहरण के लिए प्रोटोजोआ, जिन्हें बैक्टीरिया खाता है और जिनमें पादपों का पचा अंश भी होता है)।

यह उल्लेखनीय है कि अपरद सामान्यतः अन्य पारिस्थितिकी से उत्पन्न है। प्राकृतिक दशाओं में प्रत्येक तंत्र स्वयं में परिपूर्ण होता है। इसलिए ऊपरवर्णित दोनों आहार श्रृंखलाएँ जो भिन्न पारिस्थितिकी तंत्र से सम्बन्धित है, परस्पर सम्बद्ध हैं।

खाद्य (आहार) श्रृंखला की सम्यक परिभाषा, सैमुअल एन. लूनिया ने दी है- "The biomass of any producer or consumer is potentially a source of energy for another organism, obviously, not all consumers consume only producers while some organism eat plants (herbivorous), other (carnivorous) eat the herbivorous and still others (decomposers) eat the waste products of all groups. Such feeding relationship or transfers of biomass between organisms are depicted as food chains."

अर्थात् किसी भी उत्पादक या उपभोक्ता का बायोमास दूसरे जीवों के लिए ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्रकृतः सभी उपभोक्ता केवल उत्पादकों का भक्षण नहीं करते। कुछ जीव पादपों को खाते हैं (जैसे शाकाहारी), अन्य (जैसे माँसाहारी) शाकाहारियों को खाते हैं, इसके बाद भी कुछ जीव (जैसे अपघटक) प्रत्येक वर्ग के अपशिष्ट उत्पादों को खाते हैं। इस प्रकार भक्ष्य-भक्षक का यह संबंध अथवा जैवभार के एक जीव से दूसरे जीव में अंतरण ही आहार-श्रृंखला कहलाता है।

उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट है कि आहार-श्रृंखला के प्रथम स्तर पर स्वपोषित पादप आता है। इस वर्ग में पादप या वनस्पतियाँ आती हैं। पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल के साथ प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं, अपने अंगों तक भोजन पादप इसी प्रक्रिया द्वारा पहुँचाते हैं। इसी कारण इन्हें स्वपोषित-जीव भी कहा जाता है। दूसरे प्रकार के जीव अर्थात् उपभोक्ता वर्ग के जीव पादपों को खाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। दूसरे वर्ग के जीव अपना भोजन आप तैयार नहीं करके दूसरे जीवों को अपना आहार बनाते हैं। इस प्रकार वे आहार-श्रृंखला के दूसरे स्तर का निर्माण करते हैं। इन्हें प्राथमिक उपभोक्ता भी कहा जाता है। शाकाहारी पशु जैसे गाय, बैल, बकरी, हरिण, कीट-पतंग और मेढ़क आदि इसी वर्ग के जीव हैं। तीसरे वर्ग में माँसाहारी जीव आते हैं। माँसाहारी पशु जैसे- बाघ, चीता, भेड़िया, बिल्ली, सियार आदि भोजन के रूप में शाकाहारी पशु को मार कर खाते हैं या उनके माँस को अपने आहार बनाते हैं।

ये जीव दूसरे स्तर के उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ताओं के चतुर्थ वर्ग में मनुष्य आता है जो तीनों स्तरों से भोजन प्राप्त करता है। वह शाकाहारी और माँसाहारी तो करता ही है शाकाहारी पशुओं, जैसे गाय, भैंस, बकरी, ऊँटनी आदि का दूध भी पीता है। इसलिए मनुष्य सर्वभक्षी कहलाता है।

इस प्रकार जीवों की ऊर्जा-प्राप्ति का माध्यम उपर्युक्त प्रकार की आहार-श्रृंखला है। इसी श्रृंखला को ही आहार-श्रृंखला कहा जाता है।


पर्यावरणीय अध्ययन(Environmental Studies)









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