नई शिक्षा नीति - 2020 (New Education Policy)

नई शिक्षा नीति - 2020 (New Education Policy)

   

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 नई शिक्षा नीति - 2020

‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक सर्कुलर नहीं है, भारत के वर्तमान व भविष्य को बनाने के हम सबके लिए एक महायज्ञ है, 21वीं सदी में हमे मिला हुआ एक अवसर है।’’

 - प्र.म.नरेन्द्र मोदी, रा.शि.नी. 7 अगस्त 2020



महत्त्वपूर्ण तथ्य

1. अंतिम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी जिसमें वर्ष 1992 में संशोधन किया गया था।

2. वर्तमान नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

3. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Eurolment Ratio-GER) को 100% लाने का लक्ष्य रखा गया है।

4. नई शिक्षा नीति के अंतर्गत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर जीडीपी के 6% हिस्से के सार्वजनिक व्यय का लक्ष्य रखा गया है।

5. नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन प्रबंधन मंत्रालय का नाम परिवर्तित कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

सारांश : स्वाधीन भारत में नीति नियंताओं द्वारा महात्मा गांधी के शैक्षिक दर्शन ‘‘नई तालिम’’ को स्वीकारते हुए बच्चों में बचपन से ही आत्म निर्भरता व आत्म सम्मान के भाव को विकसित करने पर जोर दिया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु

स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान

1.नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।

2.पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) - 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2

3.तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)

तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8 और

4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण - ग्रेड 9, 10, 11, 12

NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।

भाषायी विविधता का संरक्षण

NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।

शारीरिक शिक्षा

विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।

पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार

इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।

कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।

‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी।

छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।

छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।

छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।

शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार

शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।

वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।

उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान

NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।

NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।

विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।

नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग

नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision of India-HECI) की परिकल्पना की गई है जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा।

HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय-

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatroy Council-NHERC) : यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।

सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council - GEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।

राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council - NAC) : यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।

उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council - HGFC) : यह निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।

नोट: गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।

देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach Universities - MERU) की स्थापना की जाएगी।

विकलांग बच्चों हेतु प्रावधान

इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा।

डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान

एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’’ (National Educational Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।

डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी।

पारंपरिक ज्ञान-संबंधी प्रावधान

भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा।

विशेष बिंदु

आकांक्षी जिले (Aspirational districts) जैसे क्षेत्र जहाँ बड़ी संख्या में आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करने वाले छात्र पाए जाते हैं, उन्हें ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र’ (Special Educational Zones) के रूप में नामित किया जाएगा।

देश में क्षमता निर्माण हेतु केंद्र सभी लड़कियों और ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता प्रदान करने की दिशा में एक ‘जेंडर इंक्लूजन फंड’ (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगा।

गौरतलब है कि 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ‍्यचर्या और शैक्षणिक ढाँचे का निर्माण एनसीआरटीई द्वारा किया जाएगा।

वित्तीय सहायता

एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।

इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च किया।

इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।

ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।

पूर्ववर्ती शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?

बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।

शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।

भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।

नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ

राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।

महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महँगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

शिक्षा का संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।

फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।

वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।

मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।

भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में कहा गया है कि 4-14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। तब राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करते हुए कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में पारित हुआ।

1985 में ‘‘शिक्षा की चुनौती’’ नामक दस्तावेज तैयार किया गया एवं 1986 में सारे देश के लिए एक समान शैक्षिक ढ़ांचे को स्वीकार किया गया और 10$2$3 की संरचना को अपनाते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति राजीव गांधी के शासन काल में जारी किया गया।

नई शिक्षा नीति निर्माण के लिए जून 2017 में इसरों प्रमुख डॉ. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया, मई 2019 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा प्रस्तुत किया गया था अन्ततः 34 वर्षों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन काल में यह नई भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली नए बदलाव के साथ 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया।

भूमिका

किसी देश का विकास उस देश की शिक्षा प्रणाली पर निर्भर करती है और भारत प्राचीन काल से अपनी विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध रहा है, हमारे वेदो ने दुनिया को ज्ञान तकीनकी विज्ञान और अनुसंधान सिखाया है वहीं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भी रहा है, इसी कारण इसे विश्व गुरू का दर्जा मिला हुआ है।

हमारा भारतीय समाज बहुसांस्कृतिक लोकतांत्रिक समाज है जिसमें शिक्षा के विभिन्न स्वरूप दिखाई देते है, वर्तमान वैज्ञानिक तकनीकी डिजिटल युग के शिक्षा प्रणाली में छात्रों में सृजनात्मकता, स्वप्रत्यय, चितंन, तर्क अभिवृत्ति, अभिरूचि क्षमता महत्वपूर्ण है।

शिक्षा नीति में स्कूलों व महाविद्यालयों में होने वाली शिक्षा की नीति तैयार की जाती है भारत सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में काफी सारे बदलाव किए है, इसके माध्यम से भारत को ‘‘वैश्विक ज्ञान महाशक्ति’’ बनाना है।

नई शिक्षा नीति 2020

सर्वाभौमिक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सामाजिक न्याय, समानता, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण, सांस्कृतिक संरक्षण, सतत् प्रगति एवं आर्थिक विकास का शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराना भारत के भविष्य को निर्धारित करता है, इन सभी महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर 2020 की शिक्षा नीति के विषय को चार भागों में विभाजित किया गया है।

1. प्रथम भाग - इसमें ‘‘स्कूल शिक्षा’’ से संबंधित 8 विषय रखे गये है।

1. प्रारंभिक बाल्यवस्था देखभाल और शिक्षा सीखने की नींव।

2. बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान: सीखने के लिए एकड तात्कालिक आवश्यकता और पूर्वशर्त।

3. ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या कम करना और सभी स्तरो पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।

4. स्कूलों में पाठ्यक्रम और शिक्षण शास्त्र: अधिगम समग्र, एकीकृत, आनंददायी व रूचिकर।

5. शिक्षक।

6. समतामूलक और समावेशी शिक्षा: सभी के लिए अधिगम।

7. स्कूल कॉम्पलेक्स/क्लसटर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस।

8. स्कूली शिक्षा के लिए मानक निर्धारण और प्रत्यायन।

2. द्वितीय भाग - इसमें ‘‘उच्चतर शिक्षा’’ से संबंधित 11 विषय रखे गये है।

1. गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय: भारतीय उच्चतर शिक्षा व्यवस्था हेतु एक नया और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण।

2. संस्थागत पुनर्गठन और समेकन।

3. समग्र और बहुविषयक शिक्षा की ओर।

4. सीखने के लिए अनुकूलतम वातावरण व छात्रों को सहयोग।

5. प्रेरित, सक्रिय और सक्षम संकाय।

6. उच्चतर शिक्षा में समता और समावेश।

7. शिक्षक शिक्षण प्रशिक्षण

8. व्यावसायिक शिक्षा का नवीन आकल्पन।

9. नवीन राष्ट्रीय अनुसंधान फाउण्डेशन ;छत्थ्द्ध के माध्यम से सभी क्षेत्रों में गुणवत्तायुक्त अकादमिक अनुसंधान को उत्प्रेरित करना।

10. उच्चतर शिक्षा की नियामक प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन।

11. उच्चतर शिक्षा संस्थानों के लिए प्रभावी शासन और नेतृत्व 

3. तृतीय भाग - इस भाग में ‘‘अन्य केन्द्रीय विचारणीय मुद्दे’’ से संबंधित 5 विषय रखे गये है।

1. व्यावसायिक शिक्षा 

2. प्रौढ़ शिक्षा और जीवन पर्यन्त सीखना

3. भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन

4. प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं एकीकरण

5. आनलॉइन और डिजिटल शिक्षा: प्रौद्योगिकी का न्यायसम्मत उपयोग सुनिश्चित करना।

4. चतुर्थ भाग - इस भाग में ‘‘ क्रियान्वयन की रणनीति’’ से संबंधित 3 विषय रखे गये है।

1. केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड का सशक्तीकरण।

2. वित्त पोषण: सभी के लिए वहनीय एवं गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा।

3. कार्यान्वयन

इस प्रकार इस नई शिक्षा नीति में कुल 27 विषयों पर फोकस किया गया है जो मानव क्षमता व राष्ट्रीय विकास की मूलभूत आवश्यकता को पूर्ण करती है। भारत सरकार के वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार 2030 तक ‘‘सभी के लिए समावेशी और सामान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने’’ का लक्ष्य है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्य

वैश्विक पारिस्थितिकी एवं ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा हैं, ऐसी स्थिति में बच्चे विविध विषयों के बीच अंतर्संबंधों को समझे, जीवन के सभी पक्षों का एवं क्षमताओं का संतुलित विकास कर सके, इसके लिए भारत की परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर दिया गया है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय दर्शन में सदैव सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना गया है, प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परम्परा को ध्यान में रखकर यह नीति तैयार की गई है। शिक्षा नीति के उद्देश्य इस प्रकार है। 

1. स्कूली शिक्षा व उच्च शिक्षा के साथ एग्रीकल्चर, चिकित्सा व तकनीकी शिक्षा को जोड़ा जाना है, जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ जीवन कौशल से सीधा जोड़ना है।

2. वर्तमान में सकल घरेलु उत्पाद का शिक्षा पर खर्च 4.43 प्रतिशत है इसे अब 6 प्रतिषत तक शिक्षा में खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

3. भारत सरकार नया राष्ट्रीय पाठ्यचर्या फ्रेमवर्क तैयार करेगी, जिसमें ईसीसीई स्कूल टीचर और एडल्ट एजुकेशन को जोड़ा जाना है। 

4. बोर्ड परीक्षा को अलग-अलग खंडो में बांटा जाएगा, बोर्ड परीक्षा दो या तीन बार होगी, छात्र जो भी कौशल सीखता है उसके अंक फायनल रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा। आगे से रिपोर्ट कार्ड का प्रावधान होगा।

5. राष्ट्रीय परीक्षा ऐजेंसी द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए ‘‘कामन ऐंट्रेंस एग्जाम’’ का आफर होगा।

6. देश भर के स्कूलों में सभी स्तरों के छात्रों की सार्वभौमिक शिक्षा को सुनिश्चित करना है।

7. छात्रों को ग्लोबल सिटीजन बनाने के साथ ही सभ्यता से जोड़े रखना है।

8. छात्र अपनी इंटरेंस्ट एबिलिटी और डिमांड की मैपिंग कर सकेंगे।

9. क्रिटीकल थिंकिंग को डेवलप करने के लिए ‘‘क्या सोचना है’’ के स्थान पर ‘‘कैसे सोचना है’’ पर फोकस करेगी।

10. ई-लर्निंग पर जोर देकर पाठ्यपुस्तकों पर निर्भरता को कम किया जाना है।

11. सरकारी व प्राइवेट शिक्षा एक समान होगे। 

12. पढ़ाई को आसान बनाने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस साफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाएगा।

13. छात्रों को तीन भाषा सिखाई जायेगी जिसे राज्य सरकार अपने स्तर पर निर्धारित करेगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की विशेषताएँ:-

यह शिक्षा नीति प्रगतिशील, समृद्ध सृजनशील एवं नैतिक मूल्यों से पूर्ण ऐसी भारत की कल्पना कर रही है जो अपने गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का स्वप्न दिखाती है।

नई शिक्षा नीति का स्वरूप जड़ से जग तक, मनुज से मानवता तक, अतीत से आधुनिक तक सभी बिन्दुओं को समावेश करते हुए तय किया गया है। इस नीति की विशेषता इस प्रकार है।

1. वर्तमान शिक्षा नीति में 10$2 को बदलकर 5$3$3$4 का पैटर्न को अपनाते हुए स्कूली शिक्षा को 15 साल कर दिया गया है।

2. बचपन की देखभाल और शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम व शैक्षणिक ढॅंाचा छब्त्ज् द्वारा 8 वर्ष तक के बच्चों के लिए विकसित किया जायेगा साथ ही 2020-21 के लिए एक नया विस्तृत राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढॉंचा भी विकसित करेगा।

3. मूल्यांकन मानदण्ड को योगात्मक मूल्यांकन से बदलकर औपचारिक व नियमित मूल्यांकन में बदला जायेगा। मूल्यांकन के उद्देश्य के लिए एक नया राष्ट्रीय मूल्यांकन केन्द्र च्।त्।ज्ञभ् (समग्र विकास के लिए प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और विशलेषण के लिए ज्ञान) निर्धारित किया जायेगा।

4. विद्यालयांे में सकल नामांकन अनुपात बढ़ाने के लिए ओपन एण्ड डिस्टेंस लर्निंग का विस्तार किया जायेगा।

5. समान व समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए देश में जेंडर इंक्लूजन फंड और विशेष शिक्षा क्षेत्र स्थापित किये जायेंगे।

6. छात्रों के इमेजिनेशन, क्रिएटिव थिंकिंग, पैशन, फिलॉसफी ऑफ एजुकेशन को नई शिक्षा नीति में शामिल किया गया है।

7. इस शिक्षा नीति में पूर्व के सहायक पाठ्यक्रम - कला, संगीत, खेलकूद, योग आदि सभी विषय मुख्य सिलेबस का हिस्सा होंगे।

8. छात्र अपनी इच्छानुसार कोई भी विषय चुन सकता है, अब साइंस, कामर्स, आर्ट स्ट्रीम की बाध्यता नहीं रहेगी।

9. सभी स्कूल डिजिटल इक्विड होंगे, सभी प्रकार के ई-कॉन्टेंट को क्षेत्रीय भाषा में ट्रॉसलेट किया जायेगा साथ ही वर्चुअल लैब का विकास किए जायेंगे।

10. छठवी कक्षा से व्यावसायिक प्रशिक्षण इन्टर्नशिप आरंभ कर दी जायेगी 

11. स्नातक कोर्स 3 या 4 साल की हो सकती है, एक साल में सर्टिफिकेट, दो साल में एडवांस डिप्लोमा, तीन साल मंे डिग्री और चार साल में रिसर्च के साथ बैचलर डिग्री दी जायेगी।

12. उच्च शिक्षा में एन्ट्री व एग्जिट के प्रावधान होंगे, छात्र अपनी इच्छानुसार किसी भी वर्ष एवं विषय में एन्ट्री व एग्जिट हो सकते है।

13. टीचर्स टेªनिंग पर खास ध्यान दिया गया है चार वर्षीय एकीकृत बी. एड. कार्यक्रम में मेरिट आधारित छात्रवृत्ति का प्रावधान है। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को और विस्तृत किया जायेगा एवं नवाचारों को सिखने के लिए सतत् अवसर दिए जाएंगे। शिक्षक शिक्षा को 2030 तक बहुविषयक कालेजो और विश्वविद्यालयों में शामिल किया जाएगा।

14. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को समाप्त करके उसकी जगह उच्च शिक्षा वित्तीय अधिकरण (हायर एजुकेशन फायनेशिंग ऐजेंसी भ्म्थ्।) हेफा का गठन किया गया है।

15. अभी तक भारत में डीम्ड, राज्य और सेन्ट्रल विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग नियम थे अब सभी के लिए एक समान नियम लागू होंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विश्लेषण 

1. बहुआयामी शिक्षा - मल्टी डिसीप्लिन व रिसर्च को बढ़ावा मिलने से एवं व्यावसायिक शिक्षा के वैकल्पिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में सीखने का अवसर मिलेगा, प्रेक्टीकल एजुकेशन को बढ़ावा देना एक आवश्यक कदम है।

2. स्वायत्तता - डिग्री, डिप्लोमा, सर्टीफिकेट को परिभाषित करने व स्वतंत्र अनुसंधान को बढ़ावा देना उच्च शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।

3. अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट - उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने मे ंयह एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है कि स्नातक पाठ्यक्रम 4 साल के होंगे तथा स्नातकोत्तर व पीएचडी की बाधाओं को कम किया गया है।

4. शोध कार्यो को प्रोत्साहन - नेशनल रिसर्च फाउण्डेशन की स्थापना से रिसर्च व नवाचार को प्रोत्साहित करने का इस दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है।

5. गुणवत्ता में सुधार - नई शिक्षा नीति में शीर्ष 100 विदेशी विश्वविद्यालय को भारत में अपने परिसर स्थापित करने से प्रतियोगिता व गुणवत्ता में वृद्धि हो जाएगी।

6. बौद्धिक विकास - इस शिक्षा नीति में छात्रों के रचनात्मक सोच तार्किक निर्णय व नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है जो आज की आवश्यकता के अनुरूप है।

7. भाषाई विविधता व संरक्षण - छात्रों को भाषा चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी तथा भारतीय भाषाओं के विकास व संरक्षण के लिए भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान ;प्प्ज्प्द्ध एवं फारसी पाली व प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने के साथ ही स्थानीय भाषा को बढ़ावा देने की बात भी सराहनीय है।

8. पाठ्यक्रम व मूल्याँकन - छात्रों की प्रगति के मूल्याँकन के मानक निर्धारण निकाय के रूप में ‘‘परख’’ नामक राष्ट्रीय ऑकलन केन्द्र की स्थापना करना 21वीं सदी के कौशल विकास अनुभव आधारित शिक्षण व तार्किक चिंतन को प्रोत्साहित करने एवं सैद्धान्तिक स्पष्टता के ऑलकलन की प्राथमिकता पर ध्यान दिया गया है।

9. अनुदान मद में परीवर्तन - सरकार अब विश्वविद्यालय व उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान नहीं देगी बल्कि हेफा ;भ्म्थ्।द्ध के माध्यम से कर्ज देगी जिसे किश्तों में लौटाना होगा, इससे जाहिर है कि संस्थान छात्रों से भारी फीस वसूलेंगे, यह पिछले दरवाजे से विश्वविद्यालय का निजीकरण का रास्ता तय करता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की चुनौती

नई शिक्षा नीति 2020 को तैयार करने में लाखों लोगों के सुझाव लिये गये है जो बच्चों के भविष्य के लिए कारगर साबित होगा फिर भी कुछ समस्याये चुनौती के रूप में आएगी।

1. भारत में शोध व नवोन्वेषण में 2008 में जीडीपी का कुल 0.84 प्रतिशत भाग था जो 2018 में घटकर 0.6 प्रतिशत रह गया है, आज भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या में कुल 15 शोधार्थी है जबकि चीन में 111 है, अतः रिसर्च के लिए वास्तविक लक्ष्य निर्धारण की आवश्यकता है।

2. इस नीति में सबको शिक्षा, सस्ती शिक्षा, कौशल विकास वाली शिक्षा का समावेश है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती क्रियान्वयन को लेकर है सरकार ने पूरी नीति को समग्र रूप से लागू किए जाने की अवधि 2040 तक रखी है।

जिसमें पाठ्यक्रम कैसे बदलेंगे, आधार क्या होगा, ज्यादा नामांकन लक्ष्य को केसे पूरा किया जा सकेगा, स्पष्टता की कमी है।

3. यह नीति शिक्षा की गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता को व्यक्त करती है पर इसे जमीन पर कैसे उतारा जाएगा, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों की भूमिका बहुत अहम् होती है इन पर अभी बहुत सी बातें अस्पष्ट है।

4. इस नीति में स्कूलों में क्षेत्रीय भाषाओं में सीखने की अनुमति दी गई है, जो अंग्रेजी और गैर अंग्रेजी सीखने वाले एवं रोजगार अवसर में अंतर को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है, इसके लिये ठोस कदम उठाने की महत्ती जरूरत है।

5. 1964 में शिक्षा पर जीडीपी का कुल खर्च 6 प्रतिशत किया गया था, जिसे आज तक प्राप्त नहीं किया जा सका है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यापक योजना की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:-

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बच्चों में बहुआयामी प्रतिभा जागृत करने, आत्मनिर्भर बनाने, विश्लेषणात्मक तार्किक शिक्षा को विकसित करती है। उच्च शिक्षा में मल्टी एंट्री एवं एग्जिट व्यवस्था छात्रों के अध्ययन वर्ष को नुकसान नहीं होने से उनके भविष्य के लिए फायदेमंद है इस शिक्षा प्रणाली ने यह एक ग्लोबल विजन दिया है।

ज्ञान के इस युग में शिक्षा, शोध और नवाचार महत्वपूर्ण है जिसे ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’’ की भावना का सम्मान करते हुए नई शिक्षा नीति में संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की व्यवस्था को शामिल किया गया है।

34 वर्षों बाद जारी भारतीय शिक्षा संरचना को अधिक गतिशील लचीला व प्रासंगि बनाना है, यदि समय रहते इसकी मूल भावना के साथ सफलतापूर्वक लागू होता है तो भारत में यह नई शिक्षा नीति एक सामान शिक्षा, निष्पक्षता गुणवत्ता समावेशी और जवाबदेही के स्तम्भों पर आधारित यह नए भारत निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा। 

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