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☼ आय/संप्राप्ति (Revenue): संप्राप्ति से अभिप्राय
किसी उत्पादक को अपने उत्पादन की बिक्री से प्राप्त मुद्रा से है।
☼ कुल संप्राप्ति (Total Revenue): कुल संप्राप्ति
से अभिप्राय है एक उत्पादक को अपना कुल उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक प्राप्तियाँ।
TR = AR x Q
☼ औसत संप्राप्ति (Average Revenue): औसत संप्राप्ति
से अभिप्राय है उत्पादक को प्रति इकाई उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक प्राप्ति।
`AR=\frac{TR}Q`
☼ सीमांत संप्राप्ति (Marginal Revenue): सीमांत
संप्राप्ति से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक इकाई अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति में
होने वाला परिवर्तन।
MR = TRn - TRn-1 or `MR=\frac{\triangle TR}{\triangle Q}`
☼ कुल संप्राप्ति (TR) तथा सीमांत संप्राप्ति
(MR) के बीच संबंध (Relationship between TR and MR): MR अतिरिक्त संप्राप्ति है जो
उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई को बेचने से प्राप्त होता है। उत्पादन की सभी इकाइयों
के MR के जोड़ से TR प्राप्त हो जाता है। अतएव
TR = Σ MR
यह संबंध आगे बतलाता है कि MR वह दर है जिस पर TR में वृद्धि होती है।
इसलिए
यदि MR बढ़ रहा है तब TR में बढ़ती दर पर वृद्धि होती है।
- यदि MR घट रहा है तब TR में घटती दर पर वृद्धि होती है।
यदि MR स्थिर/समान है तब TR में समान दर पर वृद्धि होती है।
☼ औसत संप्राप्ति (AR) तथा सीमांत संप्राप्ति
(MR) के बीच संबंध (Relationship between AR and MR):
- यदि AR समान/स्थिर है तब AR = MR
यदि AR घट रहा है तब AR>MR
- MR ऋणात्मक हो सकता है परंतु AR नहीं। औसत आय या संप्राप्ति (AR) वस्तु
की प्रति इकाई कीमत को व्यक्त करती है जो कभी भी ऋणात्मक नहीं हो सकती।
☼ औसत संप्राप्ति वक्र फर्म की माँग वक्र है
(Average Revenue Curve is a Firm's Demand Curve): AR वक्र फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित
करता है, क्योंकि AR को Y-अक्ष पर और उत्पादन/बिक्री को x-अक्ष पर दिखाया जाता है।
हम जानते हैं कि AR = कीमत, अतएव AR वक्र वस्तु की कीमत (Y-अक्ष पर) और वस्तु की बिक्री
या माँग (X-अक्ष पर) के बीच संबंध को प्रकट करता है।
☼ पूर्ण प्रतियोगिता में AR वक्र क्षैतिज सीधी
रेखा होती है (AR Curve is a Horizontal Straight Line under Perfect
Competition): यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत स्वीकारक
(Price Taker) होती है, जिसका अर्थ है कि फर्म के उत्पादन के समस्त स्तरों के लिए
AR समान होती है। पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में दी हुई कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी
भी मात्रा चाहे बेच सकती है।
☼ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता की अवस्था
में AR वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है (AR Curve Slopes downwards under
conditions of Monopoly and Monopolistic Competition): यह इसलिए क्योंकि एकाधिकार
या एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तु की अधिक मात्रा केवल कीमत को कम करके ही बेची जा
सकती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि वस्तु की कीमत तथा फर्म के उत्पादन के लिए माँग के
बीच विपरीत संबंध है। इसीलिए फर्म के माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है।
☼ ऋणात्मक MR (Negative MR); यह तब होता है जब
वस्तु की कीमत इतनी गिर जाती है कि TR गिरता जाता है जबकि माँग पहले से अधिक है।
उत्पादक का संतुलन स्मरण रखे
☼ फर्म के संतुलन की दो आवश्यक शर्ते (Two
Necessary Conditions of Firm's Equilibrium) हैं: (i) सीमांत संप्राप्ति (MR) = सीमांत
लागत (MC), और (ii) सीमांत लागत (MC) बढ़ रही है।
☼ लाभ का अधिकतम होना (Profit Maximisation):
लाभ अधिकतम तब होता है जब MR = MC न कि जब MR > MC अथवा जब MR< MC I पूर्ण प्रतियोगिता
में, कीमत (= AR) = MR I तदनुसार, लाभ अधिकतम तब होगा जब कीमत =MC न कि जब कीमत
<MC अथवा जब कीमत >MC I
☼ फर्म का संतुलन तथा समय अवधि (Firm's
Equilibrium and Time Period): यह सदैव उचित है कि फर्म के संतुलन का अध्ययन समय अवधि
के संदर्भ में किया जाए। मोटे तौर पर हम अल्पकाल तथा दीर्घकाल का अध्ययन करते हैं।
अल्पकाल (Short Period) में एक फर्म को हानि की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
अत: यह संतुलन को तब प्राप्त करती है जब हानि न्यूनतम होती है। ऐसी स्थिति इस कारण
उत्पन्न होती है क्योंकि अल्पकाल में कुछ लागतें बंधी लागतें होती हैं (जिन पर उत्पादक
का नियंत्रण नहीं होता) किंतु कुछ अन्य लागतें परिवर्तनशील होती हैं (जिन पर उत्पादक
का नियंत्रण होता है)। हानि की स्थिति में उत्पादक तभी संतुष्ट होगा जब प्रचलित कीमत
द्वारा कम से कम उसकी परिवर्तनशील लागतें पूरी हो जाएँ।
☼ दीर्घकाल (Long Period): सभी लागतें परिवर्तनशील
लागतें बन जाती हैं। इसलिए ये सभी लागतें उत्पादक के नियंत्रण में होती हैं। इसलिए
सामान्य लाभ सहित उसे सभी लागतें प्रचलित कीमत द्वारा प्राप्त होनी चाहिए। प्रतियोगी
स्थितियों में दीर्घकाल में अंदर (Entry) व बाहर जाने (Exit) की पूरी स्वतंत्रता होती
है। इसके अनुसार, दीर्घकाल में फर्म तब संतुलन अवस्था में होती है जब उसे केवल सामान्य
लाभ (अर्थात जब TR = TC या AR = AC हों) प्राप्त होते हैं। बेशक, संतुलन की शर्ते ऊपर
वाली ही हैं अर्थात (i) MC = MR और (ii) MC बढ़ रही है।
☼ लाभ-अलाभ (Break-even) बिंदु फर्म के लिए तब आता है जब फर्म उत्पादन की सभी लागतें निकालने में सक्षम होती है। इसके अनुसार लाभ-अलाभ वह स्थिति है जिसमें
TR = TC अथवा या AR = AC
☼ उत्पादन बंद करने वाला बिंदु (Shut-down
Point) तब आता है जब फर्म केवल परिवर्ती लागत ही निकाल पाती है और केवल उत्पादन की
बंधी लागतों की हानि उठाती हैं। इसके अनुसार उत्पादन बंद करने वाला बिंदु तब आता है
जब TR = TVC अथवा
`\frac{TR}Q=\frac{TVC}Q` या AR = AVC