Concepts-of-Excess-Deficient-Demand(अधिमाँग एवं न्यून माँग अवधारणा )

Concepts-of-Excess-Deficient-Demand(अधिमाँग एवं न्यून माँग अवधारणा )

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. AD < AS क्या प्रदर्शित करता है?
(अ) न्यून माँग
(ब) आधिक्य माँग
(स) शून्य माँग
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2. मन्दी में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि किस नीति के तहत् उपाय है?
(अ) मौद्रिक नीति
(ब) राजकोषीय नीति
(स) राजस्व नीति
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 3. राजकोषीय नीति में शामिल है।
(अ) सार्वजनिक व्यय
(ब) कर
(स) घाटे की वित्त व्यवस्था
(द) ये सभी

प्रश्न 4. निम्न में से कौन-सा कर अप्रत्यक्ष है?
(अ) उत्पादक शुल्क
(ब) सीमा शुल्क।
(स) बिक्री कर
(द) ये सभी

प्रश्न 5. निम्न में से राजकोषीय नीति में किसे शामिल किया गया है?
(अ) सार्वजनिक ऋण
(ब) करारोपण
(स) सार्वजनिक व्यय
(द) इनमें से सभी

प्रश्न 6. न्यून माँग किस स्थिति को बताती है?
(अ) मन्दी
(ब) समृद्धि
(स) साम्य
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 7. आधिक्य माँग किस स्थिति को बताती है?
(अ) समृद्धि
(ब) साम्य
(स) मन्दी
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8. मुद्रा स्फीति को रोकने हेतु बैंक दर में वृद्धि किस नीति के तहत् उठाया गया कदम है?
(अ) मौद्रिक नीति
(ब) राजकोषीय नीति
(स) राजस्व नीति
(द) ये सभी

प्रश्न 9. विस्तारक मौद्रिक और राजकोषीय नीति कब कारगर होती है?
(अ) समृद्धि में
(ब) मन्दी में
(स) साम्य में
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 10. निम्न में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर है –
(अ) आयकर
(ब) सम्पदा कर
(स) बिक्री कर
(द) अ और ब

प्रश्न 11. न्यून माँग होती है जब
(अ) AD < AS
(ब) AD > AS
(स) AD = AS
(द) AD AS

प्रश्न 12. समग्र माँग होती है –
(अ) उपभोग और विनियोग व्यय
(ब) सरकारी व्यय
(स) शुद्ध निर्यात
(द) उपरोक्त सभी

प्रश्न 13. मन्दी में राजकोषीय नीति के तहत् उपाय है।
(अ) करों में वृद्धि
(ब) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(स) सार्वजनिक व्यय में कमी
(द) कीमतों में वृद्धि

प्रश्न 14. मुद्रास्फीति को रोकने हेतु मौद्रिक नीति के तहत उठाया जाने वाला कदम है –
(अ) बैंक दर में वृद्धि
(ब) करों में कमी
(स) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(द) बैंक दरों में कमी

प्रश्न 15. चित्र में समग्र पूर्ति वक्र किसके अनुसार होता है?

(अ) केन्जीय
(ब) प्रतिष्ठित
(स) मौद्रिकवाद
(द) रेटेक्स

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार आय का उत्पादन निर्धारण किन घटकों से प्रभावित होता है?
उत्तर: पूँजी, स्टॉक, श्रम की पूर्ति द्वारा आय का उत्पादन निर्धारण किया जाता है।

प्रश्न 2. कीन्स के विचारों का प्रार्दुभाव किस समय हुआ?
उत्तर: 1930 के दशक में आर्थिक मन्दी के समय।

प्रश्न 3. कीन्स के अनुसार आय का निर्धारण किस बिन्दु पर होता है?
उत्तर: कीन्स के अनुसार आय का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ समग्र माँग, समग्र पूर्ति के बराबर होती है।

प्रश्न 4. समग्र माँग (AD) में कौन-से घटक शामिल होते हैं?
उत्तर: समग्र माँग में उपभोग व्यय, निजी विनियोग व्यय, सरकार द्वारा वस्तु और सेवाओं का क्रय और शुद्ध निर्यात शामिल होते हैं।

प्रश्न 5. समग्र माँग वक्र क्या दर्शाता है?
उत्तर: यह वक्र समग्र वस्तु और सेवाओं की माँग और सामान्य कीमत स्तर से सम्बन्ध दर्शाता है।

प्रश्न 6. सामान्य कीमत स्तर और समस्त उत्पादन के मध्य कैसा सम्बन्ध होता है?
उत्तर: विपरीत सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 7. यदि कीमतों में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: कीमतें बढ़ने पर उपभोग व्यय घट जाता है।

प्रश्न 8. कीमते बढ़ने पर आयात तथा निर्यात पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: कीमतें बढ़ने पर आयात अधिक व निर्यात कम होते हैं।

प्रश्न 9. पूर्ण रोजगार की स्थिति में समग्र पूर्ति वक्र कैसा होता है?
उत्तर: एक लम्बवत् रेखा जैसा होता है।

प्रश्न 10. कीन्स के अनुसार समग्र पूर्ति वक्र मन्दी के समय कैसा होता है?
उत्तर: प्रारम्भ में क्षैतिज होता है फिर पूर्ण रोजगार बिन्दु पर लम्बवत् होता है।

प्रश्न 11. क्षैतिज रेंज को क्या कह सकते हैं?
उत्तर: केन्जीयन रेंज।

प्रश्न 12. लम्बवत् रेंज पूर्ति वक्र कैसा होता है?
उत्तर: बेलोचदार होता है।

प्रश्न 13. आधिक्य माँग का क्या अर्थ है?
उत्तर: जब समग्र माँग, समग्र पूर्ति से अधिक होती है।

प्रश्न 14. न्यून माँग क्या है?
उत्तर: जब समग्र पूर्ति, समग्र माँग से अधिक होती है।

प्रश्न 15. दीर्घकाल में साम्य कब होता है?
उत्तर: जब समग्र माँग, दीर्घकालीन समग्र पूर्ति के बराबर होती है।

प्रश्न 16. राजकोषीय नीति के प्रमुख अंगों के नाम बताइए।
उत्तर:

1.    कर

2.    सार्वजनिक व्यय

3.    सार्वजनिक ऋण।

प्रश्न 17. सरकार माँग में वृद्धि कैसे करती है?
उत्तर: सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके।

प्रश्न 18. सार्वजनिक व्यय के उदाहरण दीजिए।
उत्तर: सड़क बनवाना, बाँध निर्माण, स्कूलों व अस्पतालों के निर्माण आदि।

प्रश्न 19. न्यून माँग में सरकार कौन-सी नीति अपनाती है?
उत्तर: न्यून माँग में सरकार विस्तारक मौद्रिक और राजकोषीय नीति अपनाती है।

प्रश्न 20. मन्दी के समय मौद्रिक और राजकोषीय नीति में से कौन-सी नीति सफल होती है?
उत्तर: राजकोषीय नीति अधिक सफल रहती है।

प्रश्न 21. प्रत्यक्ष कर का उदाहरण दीजिए।
उत्तर: आय कर, सम्पदा कर।

प्रश्न 22. अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण दीजिए।
उत्तर: बिक्री कर, सीमा शुल्क।

प्रश्न 23. मुद्रा स्फीति के समय सरकार द्वारा कैसी मौद्रिक और राजकोषीय नीति अपनाई जाती है?
उत्तर: संकुचित मौद्रिक और राजकोषीय नीति।

प्रश्न 24. विमुद्रीकरण कब किया जाता है?
उत्तर: मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए विमुद्रीकरण किया जाता है।

प्रश्न 25. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार सामान्य कीमत कैसे निर्धारित होती थी?
उत्तर: प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार सामान्य कीमत मुद्रा की पूर्ति द्वारा निर्धारित होती थी।

प्रश्न 26. कीन्स के अनुसार आय और उत्पादन का सिद्धान्त क्या मानता है?
उत्तर: कीन्स के अनुसार आये और उत्पादन के निर्धारण का सिद्धान्त कीमत स्तर को स्थिर मानकर चलता है।

प्रश्न 27. कीन्स ने मन्दी में फैली व्यापक बेरोजगारी और अतिरिक्त उत्पादन क्षमता का प्रमुख कारण किसे माना?
उत्तर: कीन्स ने मन्दी में फैली व्यापक बेरोजगारी और अतिरिक्त उत्पादन क्षमता का प्रमुख कारण प्रभावपूर्ण माँग की कमी को बताया था।

प्रश्न 28. समग्र माँग को अवयव समीकरण में व्यक्त कीजिए।
उत्तर: Y = C + I + G + Xn जहाँ, C = उपभोग व्यय
I = विनियोग व्यय
G = सरकारी व्यय
xn = X – M

प्रश्न 29. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्त किस मान्यता पर आधारित हैं?
उत्तर: प्रतिष्ठितं अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित हैं।

प्रश्न 30. समग्र पूर्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: अन्य बातें स्थिर रहने पर विभिन्न सम्भव कीमतों पर फर्मे जो वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना चाहती हैं, समग्र पूर्ति कहलाती है।

प्रश्न 31. दीर्घकाल में साम्य कब होता है?
उत्तर: दीर्घकाल में साम्य तब होता है, जब समग्र माँग, दीर्घकालीन समग्र पूर्ति वक्र के बराबर होती है।

प्रश्न 32. मौद्रिक नीति से क्या आशय है?
उत्तर: केन्द्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की पूर्ति को नियन्त्रित करने और आर्थिक नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 33. करों की दर में वृद्धि होने पर निवेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: करों की दर में वृद्धि बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा निवेश और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 34. सरकार द्वारा अनिवार्य बचत स्कीम कब चलाई जानी चाहिए?
उत्तर: सरकार द्वारा मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण करने हेतु अनिवार्य बचत स्कीम चलाई जानी चाहिए।

प्रश्न 35. समग्र माँग का अर्थ बताइए।
उत्तर: वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल माँग को समग्र माँग कहते हैं। यह उपभोग व्यय व निवेश व्यय का योगफल है।

प्रश्न 36. समग्र माँग के चार अवयव लिखिए।
उत्तर: समग्र माँग के चार अवयव निम्न हैं-

1.    उपभोग व्यय (C)

2.    विनियोग व्यय (I)

3.    सरकारी व्यय (G)

4.    शुद्ध निर्यात (X)।

प्रश्न 37. समग्र पूर्ति का अर्थ बताइए।
उत्तर: वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल उत्पादन को समग्र पूर्ति कहते हैं। यह राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय उत्पाद के बराबर होती है।

प्रश्न 38. समष्टि आर्थिक साम्य का क्या अर्थ है?
उत्तर: समष्टि आर्थिक साम्य से अभिप्राय है कि अल्पकालीन सन्तुलन अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति बताने से है। इस स्थिति में न्यून माँग और आधिम्य माँग की स्थिति उपस्थिति होती है।

प्रश्न 39. मन्दी का अर्थ बताइए।
उत्तर: जब आर्थिक क्रियाएँ जैसे-वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, रोजगार, आय, माँग तथा कीमतों में पर्याप्त कमी होती है, मेन्दी कहलाती है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. कीन्स के आय और उत्पादन के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर: कीन्स के अनुसार आये और उत्पादन के निर्धारण का सिद्धान्त कीमत स्तर को स्थिर मानकर चलता है। इनके अनुसार आय का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ समग्र मात्रा समग्र पूर्ति के बराबर होती है। कीन्स ने मन्दी में फैली व्यापक बेरोजगारी और अतिरिक्त उत्पादन क्षमता का प्रमुख कारण प्रभावपूर्ण माँग की कमी को बताया।

प्रश्न 2. समग्र माँग को समझाइये।
उत्तर: समग्र माँग में उपभोग व्यय, निजी विनियोग व्यय, सरकार द्वारा वस्तु और सेवाओं का क्रय और शुद्ध निर्यात शामिल होते हैं। अन्य बातें समान रहने पर विभिन्न कीमत स्तर पर जो उपभोक्ताओं, विनियोगकर्ताओं, सरकार और विदेशियों द्वारा वस्तु और सेवाएँ खरीदी जाती हैं उसे समग्र माँग कहते हैं।
Y = C + I + G + Xn

प्रश्न 3. कीमत (Price) के बढ़ने के प्रभावों को बताइए।
उत्तर: कीमत के बढ़ने के निम्न प्रभाव पड़ते हैं –

1.    कीमत बढ़ने पर उपभोग व्यय बढ़ता है।

2.    कीमत बढ़ने पर लोगों को लेन-देन के उद्देश्य से अधिक मुद्रा की आवश्यकता होती है जिससे ब्याज दर बढ़ती है, परिणामस्वरूप विनियोग की माँग घट जाती है।

3.    कीमत बढ़ने पर आयात अधिक निर्यात कम होते हैं।

प्रश्न 4. चित्र द्वारा व्युत्पन्न समग्र माँग को विभिन्न कीमत स्तरों पर दर्शाइये।
उत्तर:

प्रश्न 5. मन्दी से क्या आशय है?
उत्तर: जब आर्थिक क्रियाएँ जैसे-वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, रोजगार, आय, माँग तथा कीमतों में पर्याप्त कमी होती है। तो मन्दी कहलाती है।

प्रश्न 6. समृद्धि से क्या आशय है?
उत्तर: जब उत्पादन, रोजगार और आय ऊँचे स्तर पर होते है, वस्तु और सेवाओं की माँग अधिक होती है तथा कीमतों में स्फीतिकारी वृद्धि होती है तो यह समृद्धि कहलाती है।

प्रश्न 7. मौद्रिक नीति में मन्दी के समय कौन-से कदम उठाये जाते हैं?
उत्तर: मौद्रिक नीति में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाती है जिसके परिणामस्वरूप ब्याज की दर में कमी होती है। निजी विनियोग में वृद्धि होती है, जिससे समग्र माँग में वृद्धि होती है। इस उद्देश्य हेतु बैंक दर में कमी, खुले बाजार में केन्द्रीय बैंकों द्वारा प्रतिभूतियों का क्रय, तरल नकद कोषानुपातों में कमी की जाती है।

प्रश्न 8. राजकोषीय नीति द्वारा मन्दी को नियन्त्रित कैसे करेगें?
उत्तर: मन्दी में न्यून माँग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में सरकार उचित राजकोषीय नीति अपनाती है। सरकार सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके माँग में वृद्धि के प्रयास करती है। सार्वजनिक व्यय; जैसे – सड़क बनवाना, बाँध निर्माण, स्कूलो तथा अस्पतालो; जैसे – भवनों का निर्माण आदि जिससे रोजगार, आय और माँग का सृजन होता है इसी के साथ करों में कमी उपभोक्ता के व्यय योग्य आय में वृद्धि करती है।

प्रश्न 9. न्यून माँग मौद्रिक नीति अधिक सफल नहीं है? क्यों?
उत्तर: न्यून माँग (मन्दी) के समय व्यवसायियों के पास पहले से ही बहुत स्टॉक इकट्ठा होता है जिसे वह बेच नहीं पाते। इसलिए ब्याज दर कम होने पर भी विनियोग हेतु प्रेरित नहीं होते उपभोक्ता वर्ग भी बेरोजगारी और निम्न आय के कारण टिकाऊ वस्तु हेतु ऋण लेना नहीं चाहते हैं। इसलिए मौद्रिक नीति अधिक सफल नहीं होती है।

प्रश्न 10. न्यून माँग को समझाइये।
उत्तर: जब समग्र पूर्ति, समग्र माँग से अपेक्षाकृत अधिक होती है तो इसे न्यून माँग कहते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादक उत्पादन में कमी करता है। माँग कम होने पर वह उत्पादित माल को बेच नहीं पाता है। अत: उसके पास तैयार माल स्टॉक के रूप में जमा होता जाता है तथा कीमत कम होने लगती है।

प्रश्न 11. आधिक्य माँग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: यदि समग्र माँग, समग्र पूर्ति से अपेक्षाकृत अधिक होती है तो इसे आधिक्य माँग कहते हैं। अधिक माँग उत्पादक को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करती है। उत्पादक द्वारा उत्पादन साधनों की माँग बढ़ने पर साधन लागत में वृद्धि होती है।

प्रश्न 12. मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: केन्द्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की पूर्ति को नियन्त्रित करने और आर्थिक नीतियों के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मौद्रिक नीति अपनाई जाती है। मौद्रिक नीति में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाती है जिसके परिणामस्वरूप ब्याज दर में कमी होती है।

प्रश्न 13. राजकोषीय नीति के क्या उपकरण हैं?
उत्तर: राजकोषीय नीति के दो उपकरण हैं –

1.    आय उपकरण (Revenue Tools) – आय उपकरण में सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कर एकत्रित किये जाते हैं। कर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भी हो सकता है।

2.    व्यय उपकरण (Spending Tools) – व्यय उपकरण अर्थव्यवस्था के अनुसार घटाया तथा बढ़ाया जा सकता है। सरकारी व्यय भुगतान हस्तान्तरण, चालू खर्च और पूँजीगत खर्च हो सकता है।

प्रश्न 14. मुद्रास्फीति में मौद्रिक नीति के क्या उपाय अपनाये जाते हैं?
उत्तर: मुद्रास्फीति की दशा में मौद्रिक नीति के निम्न उपाय अपनाये जाते हैं –

1.    आधिक्य माँग के कारण कीमतों में वृद्धि रोकने हेतु केन्द्रीय बैंक, बैंक दर में वृद्धि, खुले बाजार में प्रतिभूतियों का विक्रय और रिजर्व अनुपात में वृद्धि करता है।

2.    चयनात्मक सखि सीमा को बढ़ाता है।

3.    उपभोक्ता साख को भी नियन्त्रित किया जाता हैं।

4.    करेन्सी का विमुद्रीकरण भी किया जा सकता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. AD और AS मॉडल की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
उत्तर: अल्पकालीन सन्तुलन अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को बताता है। वास्तविक GDP सामर्थ्य (Potential GDP) के इर्द-गिर्द रहती है। मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति किस प्रकार सिद्ध होती है यह AD-AS मॉडल द्वारा बताया गया है।

समग्र माँग (AD) अल्पकालीन पूर्ति वक्र (SAS) के बराबर होने पर साम्य E पर होता है। जहाँ आय OY0 और कीमत स्तर P0 निर्धारित होता है। यदि कीमत P2 होती है तो समग्र पूर्ति, समग्र माँग से अपेक्षाकृत अधिक होती है (CD) जिसे न्यून माँग कहते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादक उत्पादन में कमी करता है। माँग कम होने पर वह उत्पादित माल को बेच नहीं पाता है, अत: उसके पास तैयार माल स्टॉक के रूप में जमा होता जाता है, कीमत क्रमशः कम होने लगती है और पुनः P0 साम्य कीमत को प्राप्त करती है।

इसके विपरीत कीमतें OP1 होती है तो समग्र माँग, समग्र पूर्ति की अपेक्षाकृत अधिक होती है (AB) जिसे आधिक्य माँग कहा जाता है। अधिक माँग उत्पादक को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करती है। उत्पादक द्वारा उत्पादन के साधनों की माँग बढ़ने पर साधन लागत में वृद्धि होती है और पुन: साम्य p0 कीमतों पर स्थापित होती है।

अल्पकाल में मौद्रिक मजदूरी दर स्थिर रहती है, वास्तविक GDP पर सामर्थ्य GDP से कम या अधिक होने पर हो सकता है। दीर्घकाल में साम्य तब होता है, जब समग्र माँग दीर्घकालीन समग्र पूर्ति वक्र के बराबर होती है।

प्रश्न 2. प्रतिष्ठित और कीन्स के पूर्ति वक्र में चित्र की सहायता से भेद कीजिए।
उत्तर: अन्य बातें स्थिर रहने पर विभिन्न सम्भव कीमतों पर फर्मे जो वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना चाहती हैं, समग्र पूर्ति कहलाती हैं।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है। अतः पूर्ण रोजगार की स्थिति में समग्र पूर्ति वक्र एक लम्बवतु रेखा होती है जो निम्न चित्र द्वारा दर्शायी जाती है –

यहाँ AS पूर्णतया बोलोचदार है।

कीन्स के अनुसार समग्र पूर्ति वक्र मन्दी के समय प्रारम्भ में क्षैतिज होता है फिर पूर्ण रोजगार बिन्दु पर लम्बवत् होता है, चित्र 2 में दर्शाया गया है। क्षैतिज क्षेत्र में समग्र माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि होती है एवं कीमतें अपरिवर्तित रहती हैं जबकि लम्बवत् समग्र समग्र पूर्ति वक्र अर्थात् पूर्ण रोजगार पर समग्र माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि नहीं होती, अपितु कीमतों में वृद्धि होती है।

चित्र 3 चित्र 3 में क्षैतिज रेंज (PA) केन्जीयन रेंज कहलाती है, अप्रयुक्त साधनों के प्रयोग से प्रति इकाई उत्पादन लागत में वृद्धि नहीं होने पर कीमतों में भी वृद्धि नहीं होती है। इस रेंज में केवल उत्पादन में वृद्धि होती है। उत्पादन में मन्दी की स्थिति को वक्र के PA भाग में व्यक्त किया जाता है।

मध्यवर्ती रेंज में (Y और Yf) के मध्य समग्र माँग में वृद्धि कीमतों में भी वृद्धि करती है। पूर्ण रोजगार पूर्व उत्पादन बढ़ाने पर प्रति इकाई लागत भी बढ़ती है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है। लम्बवत् रेंज (BC) पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है जो कि उत्पादन के पूर्ण रोजगार स्तर को दर्शाता है। इसे प्रतिष्ठित रेंज भी कहते हैं। यहाँ कीमतों में परिवर्तन होता है एवं उत्पादन मात्रा अपरिवर्तित रहती है क्योंकि साधनों का पूर्ण क्षमता तक प्रयोग हो चुका है।

प्रश्न 3. मन्दी में राजकोषीय नीति को कैसे प्रभावी रूप से उपयोग में लिया जा सकता है?
उत्तर: जब मन्दी में न्यून माँग की समस्या उत्पन्न हो जाती है अर्थात् समग्र माँग समग्र पूर्ति से कम होती है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार उचित राजकोषीय नीति अपनाती है। सरकार सार्वजनिक व्यय; जैसे – सड़क बनवाना, बाँध निर्माण, स्कूलों व अस्पतालों जैसे भवनों का निर्माण आदि जिससे रोजगार, आय और माँग का सृजन होता है। इसी के साथ करों में कमी उपभोक्ताओं के व्यय योग्य आय में वृद्धि करती है। यह प्रयास तभी कारगार होता है जब सरकार करों में कोई वृद्धि नहीं करती है। मन्दी में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति में से राजकोषीय नीति अधिक सफल होती है। न्यून माँग के समय व्यवसायियों के पास पहले ही बहुत स्टॉक इकट्ठा होता है जिसे वह बेच नहीं पाते हैं। इसलिए ब्याज दर कम होने पर भी विनियोग हेतु प्रेरित नहीं होते हैं। अत: इस नीति द्वारा सरकार द्वारा कर और व्यय में परिवर्तन द्वारा पूर्ण रोजगार और कीमत स्तर में स्थिरता लाने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 4. मुद्रास्फीति को रोकने के लिए सरकार द्वारा उपाय किये जा सकने वाले चार उपाय लिखिए।
उत्तर: मुद्रास्फीति के समय सरकार द्वारा संकुचित मौद्रिक और राजकोषीय नीति अपनाई जानी चाहिए। राजकोषीय नीति के तहत् सरकार को करों में वृद्धि, अनावश्यक व्यय में कटौती करके समग्र माँग में कमी करनी चाहिए। करों की दरों में बहुत अधिक वृद्धि नहीं होनी चाहिए अन्यथा निवेश और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सरकार द्वारा अनिवार्य बचत स्कीम भी चलायी जा सकती है। सरकार को अतिरिक्त बजट बनाने का प्रयास करना चाहिए एवं सार्वजनिक ऋणों के पुन: भुगतान को रोक देना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में कठोर मौद्रिक नीति अपनाई जानी चाहिए। आधिक्य माँग के कारण कीमतों में वृद्धि रोकने हेतु केन्द्रीय बैंक, दर में वृद्धि, खुले बाजार में प्रतिभूतियों का विक्रय और रिजर्व अनुपात में वृद्धि करता है। साथ ही चयनात्मक साख नियन्त्रण जैसे-साख सीमा आवश्यकता को बढ़ाता है। साथ ही उपभोक्ता साख को भी नियन्त्रित करता है। इन सभी उपायों के अतिरिक्त करेन्सी का विमुद्रीकरण भी किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रास्फीति की स्थिति में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के उचित उपायों को सामंजस्य से उभारा जा सकता है।

प्रश्न 5. समग्र माँग वक्र की व्यत्तपत्ति को रेखाचित्र से स्पष्ट करें।
उत्तर: समग्र माँग की कीन्स के आय निर्धारण चित्र-1 द्वारा व्युत्पत्ति कर सकते हैं।

चित्र-1 में कीन्स द्वारा समग्र व्यय (विनियोजित व्यय) को विभिन्न राष्ट्रीय स्तर (GNP) पर बताया गया है। जबकि चित्र-2 में व्युत्तपन्ना समग्र माँग विभिन्न कीमतों पर दर्शाई गई है।

प्रारम्भिक साम्य में समग्र माँग, समग्र पूर्ति (45° रेखा) की E0 पर काटती है जहाँ आय Y0 निर्धारित होती है। खण्ड B में Y0 आय के स्तर पर समग्र माँग C0 और सामान्य कीमत स्तर P0 है। इसी प्रकार यदि सामान्य कीमत स्तर पर है P2 हो जाती है तो लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने पर उपभोग व्यय AD से AD2 ऊपर की ओर खिसक जाता है, साम्य AD2 = AS (45° रेखा) E2 पर आय Y2 होती है। समग्र माँग OC2 होती है। इस प्रकार कम कीमत पर समग्र उत्पादन माँग अधिक होती है। इसके विपरीत बढ़ी हुई कीमत पर साम्य E1 बिन्दु पर प्राप्त होगा जहाँ AS = AD1 आय Y1 होती है और समग्र माँग OC1 घट जाती है। इस प्रकार सामान्य कीमत स्तर पर और समग्र उत्पादन की माँग में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है जो चित्र 2 में AD वक्र से स्पष्ट होता है।

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