संतुलित वृद्धि का सिद्धान्त (The Doctrine of Balanced Growth)

संतुलित वृद्धि का सिद्धान्त (The Doctrine of Balanced Growth)
संतुलित वृद्धि का सिद्धान्त (The Doctrine of Balanced Growth)
संतुलित वृद्धि के सिद्धान्त के अनेक निर्माता हैं, जो अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या करते हैं। कुछ मानते हैं कि किसी पिछड़े हुए क्षेत्र अथवा उद्योग में निवेश करना संतुलित वृद्धि है ताकि वह अन्य क्षेत्रों या उद्योगों के साथ आ जाए। दूसरे इसका अर्थ यह समझते हैं कि सब क्षेत्रों में एकदम साथ-साथ निवेश होता है। कुछ अन्य इसे निर्माणकारी उद्योगों तथा कृषि का संतुलित विकास समझते हैं। इसलिए संतुलित वृद्धि यह अपेक्षा रखती है कि विभिन्न उपभोक्ता-वस्तु उद्योगों के बीच और उपभोक्ता-वस्तु तथा पूँजी-वस्तु उद्योगों के बीच संतुलन हो। इसका यह भी अभिप्राय है कि उद्योग तथा कृषि में और घरेलू तथा निर्यात क्षेत्र में संतुलन रहे। फिर, इसके लिए सामाजिक व आर्थिक उपरि-सुविधाओं तथा प्रत्यक्षतः उत्पादक निवेशों के बीच और अनुलम्ब तथा क्षैतिज बाह्य मितव्ययिताओं के बीच संतुलन आवश्यक है। संक्षेप में, संतुलित वृद्धि का सिद्धान्त यह व्यक्त करता है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का एक-साथ सामंजस्यपूर्ण विकास होना चाहिए ताकि सब क्षेत्र साथ-साथ बढ़ें इसके लिए पूर्ति एवं माँग पक्षों के संतुलन की आवश्यकता है। पूर्ति पक्ष अर…