वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. विभिन्न मुद्राओं के बीच विनिमय दर में परिवर्तन नहीं
आता, उसे कहते हैं –
(अ) घटती
विनिमय दर
(ब) बढ़ती विनिमय दर
(स)
स्थिर विनिमय दर
(द)
परिवर्तनशील विनिमय दर
प्रश्न 2. जिस प्रणाली द्वारा विभिन्न देश अपने व्यापारिक
दायित्वों का निपटारा करते हैं –
(अ)
स्वदेशी विनिमय प्रणाली
(ब) घरेलू विनिमय प्रणाली
(स)
विदेशी विनिमय प्रणाली
(द)
मुद्रा कोष प्रणाली
प्रश्न 3. जब किसी देश की कुल प्राप्तियाँ तथा कुल देनदारियाँ
बराबर होती है तो भुगतान सन्तुलन होता है –
(अ)
सन्तुलित
(ब)
असन्तुलित
(स) बराबर नहीं
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 4. अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा की दशा में विनिमय निर्धारण का
कौन-सा सिद्धान्त अपनाया जाता है?
(अ)
भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त
(ब) टंक समता सिद्धान्त
(स)
क्रयशक्ति समता सिद्धान्त
(द)
इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 5. यदि सरकार हस्तक्षेप न करे तो विनिमय दर का निर्धारण
होता है –
(अ)
आयातकों द्वारा
(ब) निर्यातकों द्वारा
(स) व्यापारियों द्वारा
(द) माँग
और पूर्ति शक्तियों द्वारा
प्रश्न 6. किसी देश की सरकार द्वारा अपनी मुद्रा की विदेशी मुद्रा के
सापेक्ष में मूल्य ह्रास की प्रक्रिया कहलाती है –
(अ)
अधिमूल्यन
(ब)
अवमूल्यन
(स)
विमुद्रीकरण
(द) मौद्रिकरण
प्रश्न 7. विदेशी विनिमय बाजार को परिभाषित किया जा सकता है जहाँ –
(अ)
वस्तु का लेन-देन होता है।
(ब)
विनिमय मुद्रा का लेन-देन होता है।
(स) साधनों
का लेन-देन होता है।
(द) सेवाओं का लेन-देन होता है।
प्रश्न 8. निम्न में से कौन-सी स्थिति व्यापार घाटे को दर्शाती है?
(अ) आयात
> निर्यात
(ब)
निर्यात = आयात
(स) आयात < निर्यात
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 9. एक देश द्वारा अपनी मुद्रा के बाह्य मूल्य को कम करने को
कहते हैं –
(अ)
मूल्य ह्रास
(ब)
अवमूल्यन
(स)
अधिमूल्यन
(द) मुद्रास्फीति
प्रश्न 10. व्यापार सन्तुलन में शामिल होते हैं –
(अ)
सेवाओं का आयात
(ब) सेवाओं का निर्यात
(स) परिसम्पत्ति का आयात
(द)
वस्तुओं के आयात व निर्यात
प्रश्न 11. यदि 1 डॉलर का मूल्य ₹ 65 से बदलकर ₹ 60 कर दिया जाए,
तो यह कहलाएगा –
(अ)
अधिमूल्यन
(ब)
अवमूल्यन
(स) मूल्यह्रास
(द) मूल्य वृद्धि
अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. बन्द अर्थव्यवस्था क्या है?
> बन्द अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: वह
अर्थव्यवस्था जिसका अन्य किसी राष्ट्र से कोई व्यापार या परिसम्पत्तियों का
लेन-देन नहीं होता।
प्रश्न 2. अदायगी सन्तुलन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: किसी
राष्ट्र का अन्य राष्ट्र के साथ व्यापारिक लेन-देन का लेखा अथवा विवरण।
प्रश्न 3. एक अमेरिकी डॉलर की कीमत भारतीय रुपये में 50 से गिरकर
48 होती है, तो इसे भारतीय रुपये का …… कहा जाएगा।( अवमूल्यन/पुनर्मूल्यन)
उत्तर: पुनर्मूल्यन।
प्रश्न 4. व्यापार आधिक्य क्या है?
उत्तर: जब
विदेशी व्यापार में निर्यात आयात की अपेक्षा अधिक हो।
प्रश्न 5. विदेशी विनिमय बाजार से क्या आशय है?
उत्तर: वह
बाजार जिसमें विदेशी भुगतानों को निपटाने के लिए मुद्रा का लेन-देन होता है।
प्रश्न 6. अमेरिकी डॉलर के सन्दर्भ में रुपये के मूल्य में वृद्धि
हो जाने का विदेशी बाजार में माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: विदेशी
बाजारों में हमारी वस्तुओं की माँग में कमी आ जाएगी।
प्रश्न 7. स्थिर विनिमय दर से क्या आशय है?
उत्तर: स्थिर
विनिमय दर से आशय मुद्रा कोष योजना के अन्तर्गत समायोजित समता दर से है।
प्रश्न 8. विदेशी मुद्रा की पूर्ति कैसे की जाती है?
उत्तर: निर्यातों
से प्राप्त मुद्रा तथा विदेशी निवेश के कारण प्राप्त मुद्रा से।
प्रश्न 9. व्यापार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: व्यापार
सन्तुलन दो देशों के मध्य आयात-निर्यात का एक वर्ष का लेखा होता है।
प्रश्न 10. भुगतान शेष असन्तुलन के दो कारण बताइये।
> भुगतान सन्तुलन में असमानता के तीन कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर:
1. विकास
कार्यों पर भारी व्यय
2. आयातित
वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि
3. लागतों
का ऊँचा होना।
प्रश्न 11. अवमूल्यन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: अवमूल्यन
से आशय देश की मुद्रा के बाह्य मूल्य को कम करने से है।
प्रश्न 12. अवमूल्यन के कोई दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
1. निर्यातों
में वृद्धि करना
2. आयातों
में कमी करना।
प्रश्न 13. व्यापार शेष में किन-किन मदों का लेखा होता है?
उत्तर: व्यापार
शेष में दृश्य मदों, अदृश्य मदों तथा एक पक्षीय अन्तरण का लेखा होता है।
प्रश्न 14. विनिमय मूल्य ह्रास से क्या आशय है?
उत्तर: विनिमय
मूल्य ह्रास से आशय मुद्रा के सापेक्ष मूल्य के घट जाने से है।
प्रश्न 15. मुद्रा मूल्य वृद्धि का क्या अर्थ है?
उत्तर: मुद्रा
मूल्य वृद्धि का अर्थ मुद्रा के सापेक्षिक मूल्य में वृद्धि से लगाया जाता है।
प्रश्न 16. विदेशी मुद्रा की माँग और विनिमय दर में क्या सम्बन्ध
है?
उत्तर: विदेशी
मुद्रा की माँग और विनिमय दर में विपरीत सम्बन्ध होता है।
प्रश्न 17. चालू खाते में घाटे का वित्तीयन कैसे किया जाता है?
उत्तर: चालू
खाते में घाटे का वित्तीयन शुद्ध पूँजी प्रवाह से किया जाता है।
प्रश्न 18. विदेशी मुद्रा बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर: वह
स्थान जहाँ विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय किया जाता है।
प्रश्न 19. विदेशी मुद्रा बाजार का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: विदेशी
मुद्रा बाजार का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजार एवं निवेश में वृद्धि करना है।
प्रश्न 20. वास्तविक विनिमय दर से क्या आशय है?
उत्तर: इससे
आशय एक ही मुद्रा में माँगी गई विदेशी तथा घरेलू कीमतों में अनुपात से है।
प्रश्न 21. विनिमय मूल्य ह्रास से क्या आशय है?
उत्तर: विनिमय
मूल्य ह्रास से आशय अन्य देशों की मुद्रा के सापेक्ष मूल्य में वृद्धि से है।
प्रश्न 22. किस स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं होगा?
उत्तर: लागतों
में समान अन्तर पाये जाने पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नहीं होगा।
प्रश्न 23. व्यापार की शर्ते से क्या आशय है?
उत्तर: वह
दर जिस दर पर देश की वस्तुओं का विनिमय दूसरे देश की वस्तुओं से होता है।
प्रश्न 24. प्रशुल्क किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी
देश की सीमा पार करते समय माल व वस्तुओं पर लगाया जाने वाला शुल्क।
प्रश्न 25. आयात कर माँग को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर: आयात
कर लगाने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है, जिससे माँग घट जाती है।
प्रश्न 26. आयात अभ्यंश से उपभोग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: आयात
अभ्यंश ज्यादातर उपभोग को घटा देते हैं।
प्रश्न 27. स्थिर विनिमय दर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: मुद्रा
कोष के अन्तर्गत समायोजित समता दर।
प्रश्न 28. विदेशी मुद्रा की पूर्ति किस प्रकार की जाती है?
उत्तर: निर्यातों
के माध्यम से।
प्रश्न 29. अवमूल्यन की सफलता के लिए आवश्यक शर्त बताइए।
उत्तर: निर्यात
की जाने वाली वस्तुओं की विदेशी माँग अत्यधिक लोचदार होती है।
प्रश्न 30. निर्यात बढ़ाने के दो उपाय बताइये।
उत्तर:
1. उत्पादन
लागत कम की जाये
2. उत्पादन
की किस्म।
प्रश्न 31. विदेशी विनिमय की माँग वक्र की प्रकृति बताइए।
उत्तर: विदेशी
विनिमय का माँग वक्र नीचे की ओर ढालू होता है।
प्रश्न 32. विदेशी विनिमय की पूर्ति वक्र की प्रकृति बताइए।
उत्तर: ऊपर
की ओर ढालू होता है।
प्रश्न 33. माना ₹ 40 में एक डॉलर आता है। डॉलर और रुपये की विनिमय
दर बताइये।
उत्तर: विनिमय
दर $1 = ₹ 40
प्रश्न 34. विदेशी विनिमय आपूर्ति के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:
1. विदेशों
से अनुदान प्राप्त करना
2. विदेशों
से ऋण प्राप्त करना।
प्रश्न 35. व्यापार शेष से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वस्तुओं
के आयात तथा निर्यात के मूल्य के बीच का अन्तर।
प्रश्न 36. व्यापार शेष का घाटी क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर: व्यापार
शेष का घाटा निर्यातों पर आयातों का आधिक्य प्रकट करता है।
प्रश्न 37. चालू खाते के किन्हीं दो मदों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. वस्तुओं
तथा सेवाओं का आयात तथा निर्यात
2. अन्तरण
अदायगी।
प्रश्न 38. किन्हीं दो विदेशी व्यापार के अवरोधकों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. टैरिफ
(व्यापारिक दर)
2. कोटा।
प्रश्न 39. विनिमय दर से क्या आशय है?
उत्तर: वह
देर जिसके आधार पर एक राष्ट्र की मुद्रा को दूसरे राष्ट्र की मुद्रा में बदलते
हैं।
प्रश्न 40. विदेशी व्यापार बाजार के तीव्र विकास के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
1. अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार का बढ़ना
2. विदेशी
पूँजी निवेश में वृद्धि।
प्रश्न 41. दृश्य व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर: दो
देशों के मध्य वस्तुओं का आयात-निर्यात।
प्रश्न 42. खुली अर्थव्यवस्था से किस प्रकार के कथनों का विकास
होता है?
उत्तर:
1. वस्तुओं
का चयन
2. परिसम्पत्तियों
का चयन
3. उत्पादन
तथा रोजगार का चयन।
प्रश्न 43. यदि विदेशी विनिमय बाजार में 1 डॉलर हेतु ₹ 50 भुगतान
करना पड़े तो विनिमय दर बताइए।
उत्तर: 1$
= ₹ 50
प्रश्न 44. यदि एक देश को आयात ₹ 280 करोड़ तथा निर्यात ₹ 320
करोड़ है तो आधिक्य कितना होगा?
उत्तर: व्यापार
शेष का आधिक्य = निर्यात – आयात । = 320 – 280 = ₹ 40 करोड़
प्रश्न 45. पूँजी खाते की किन्हीं दो मदों के नाम लिखो।
उत्तर:
1. विदेशी
निवेश
2. विदेशी
ऋण।
प्रश्न 46. विदेशी व्यापार आधिक्य एवं व्यापार घाटे में अन्तर
बताइए।
उत्तर: जब
देश के निर्यात-आयातों से अधिक हों, तब यह व्यापार आधिक्य कहलाता है जबकि निर्यात,
आयातों से कम होने पर यह व्यापार घाटा कहलाता है।
प्रश्न 47. विदेशी विनिमय बाजार को क्या अर्थ है? इस बाजार के कोई
दो प्रतिभागियों का उल्लेख करो।
उत्तर: वह
बाजार जहाँ राष्ट्रीय करेन्सियों का एक-दूसरे के लिए व्यापार होता है। इसके प्रमुख
प्रतिभागी हैं – व्यावसायिक बैंक तथा मुद्रा प्राधिकारी।
प्रश्न 48. लोचपूर्ण विनिमय दरों से क्या आशय है?
उत्तर: वह
दरें जो स्वतन्त्र रूप से विनिमय बाजार की माँग व पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के
द्वारा निर्धारित होती है तथा जिनमें मुद्राधिकारी का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
प्रश्न 49. भुगतान शेष क्या रिकॉर्ड करता है?
उत्तर: भुगतान
शेष के अन्तर्गत देश के निवासियों तथा शेष विश्व के बीच एक वर्ष में होने वाले सभी
आर्थिक लेन-देनों का लेखा-जोखा रखा जा सकता है।
प्रश्न 50. व्यापार शेष कब घाटे को दर्शाता है?
उत्तर: जब
आयात की गई वस्तुओं का मूल्य, निर्यात की गई वस्तुओं के मूल्य से अधिक होता है तब
व्यापार शेष घाटा दर्शाता है।
प्रश्न 51. व्यापार शेष कब आधिक्य को दर्शाता है?
उत्तर: जब
निर्यात की गई वस्तुओं का मूल्य आयात की गई वस्तुओं से अधिक होता है तब व्यापार
शेष आधिक्य को दर्शाता है।
प्रश्न 52. विनिमय दर के निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त क्या है?
उत्तर: विनिमय
दर के निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त यह है कि इसका निर्धारण उस बिन्दु पर होता है
जहाँ एक देश की मुद्रा की माँग व पूर्ति का सन्तुलन होता है।
प्रश्न 53. विदेशी मुद्रा की माँग किन व्यक्तियों द्वारा की जाती
है?
उत्तर: विदेशी
मुद्रा की माँग उन व्यक्तियों द्वारा की जाती है जो आयात करना चाहते हैं या जो
विदेशी सेवाओं का भुगतान करना चाहते हैं या विदेशों में निवेश करना चाहते हैं।
प्रश्न 54. प्रतिकूल व्यापार सन्तुलन से क्या आशय है?
उत्तर: जब
किसी देश में एक निश्चित अवधि में आयात का मूल्य, निर्यात के मूल्य से अधिक होता
है तो उस देश का व्यापार सन्तुलन प्रतिकूल होता है।
प्रश्न 55. भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: यह
निश्चित समय में एक देश के निवासियों और शेष विश्व के बीच किये गए समस्त लेन-देनों
का लिखित विवरण होता है।
प्रश्न 56. पूँजी खाता किसका लेखा करता है?
उत्तर: पूँजी
खाता वित्तीय लेन-देनों का लेखा करता है। इसमें परिसम्पत्तियों के सभी
अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देनों का लेखा किया जाता है।
प्रश्न 57. चालू खाते में घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: चालू
खाते में घाटे का अभिप्राय शेष विश्व में विक्रय की प्राप्तियों का शेष विश्व से
क्रय के भुगतान से कम होने से है।
प्रश्न 58. गन्दी तरलशीलता किसे कहते हैं?
उत्तर: यदि
प्रबन्धित तरलशीलता को कोई नियम बनाये बिना लागू किया जाता है तो उसे गन्दी
तरलशीलता कहा जाता है।
प्रश्न 59. आयात-निर्यात का अर्थ बताइए।
उत्तर: किसी
देश द्वारा अन्य देशों से वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदना आयात एवं अन्य देशों को
वस्तुएँ तथा सेवाएँ बेचना निर्यात कहलाता है।
प्रश्न 60. आन्तरिक व्यापार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: किसी
देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों तथा क्षेत्रों के मध्य वस्तुओं तथा सेवाओं का
क्रय-विक्रय आन्तरिक व्यापार कहलाता है।
प्रश्न 61. संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: विदेशी
व्यापार की स्वतन्त्रता को समाप्त करके वस्तुओं के आयात-निर्यात पर प्रतिबन्ध
लगाना संरक्षण कहलाता है।
प्रश्न 62. बैंक दर में परिवर्तन होने पर विनिमय दर पर क्या प्रभाव
पड़ता है?
उत्तर: बैंक
दर ऊंची होने पर विनिमय दर पक्ष में हो जाती है जबकि बैंक दर नीची होने पर विनिमय
दर विपक्ष में हो जाती है।
प्रश्न 63. विनिमय नियन्त्रण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: मौद्रिक
अधिकारी के वे सभी हस्तक्षेप जो विनिमय दरों या उनसे सम्बन्धित बाजारों को
प्रभावित करते हैं, वह विनिमय नियन्त्रण कहलाते हैं।
प्रश्न 64. राशिपातन से क्या आशय है?
उत्तर: यह
विभेदीकरण का वह रूप है जिसके द्वारा एकाधिकारी अपने उत्पाद को घरेलू बाजार की
अपेक्षा विदेशी बाजार में सस्ते मूल्य पर बेचता है।
प्रश्न 65. भुगतान शेष का तीसरा घटक ‘भूल-चूक’ क्या दिखाता है?
उत्तर: भुगतान
शेष का तीसरा घटक ‘भूल-चूक’ समस्त व्यवहारों का ठीक प्रकार से लेखा करने में हमारी
असमर्थता को प्रकट करता है।
प्रश्न 66. विदेशी मुद्रा की माँग और विनिमय दर में सम्बन्ध
बताइये।
उत्तर: विदेशी
मुद्रा की माँग और विनिमय दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। अत: विदेशी मुद्रा
की माँग बढ़ने पर विनिमय दर हमारे विपक्ष में हो जाती है।
प्रश्न 67. विदेशी विनिमय के माँग वक्र का नीचे की ओर ढालू होना
क्या दिखाता है?
उत्तर: इसका
आशय है कि विनिमय दर ऊंची होने पर विदेशी विनिमय की माँग कम हो जाएगी तथा विदेशी
विनिमय दर के नीचे होने पर विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है।
प्रश्न 68. व्यापार खाते का शेष अनुकूल किस स्थिति में होगा?
उत्तर: जब
किसी देश के निर्यात का मूल्य, आयातों के मूल्यों से अधिक होगा तब उस देश के
व्यापार खाते का शेष अनुकूल होगा।
प्रश्न 69. व्यापार सन्तुलन तथा भुगतान सन्तुलन में अन्तर बताइए।
उत्तर: व्यापार
सन्तुलन में केवल आयातों तथा निर्यातों को सम्मिलित करता है, जबकि भुगतान सन्तुलन के
अन्तर्गत सभी आर्थिक लेन-देन शामिल किये जाते हैं।
प्रश्न 70. स्थिर विनिमय दर प्रणाली के दो महत्त्व लिखो।
उत्तर:
1. स्थिर
विनिमय दर प्रणाली के अन्तर्गत विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टे की प्रवृत्ति नहीं होती
है।
2. इसमें
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ता है।
प्रश्न 71. खुली अर्थव्यवस्था का एक लाभ बताइए।
उत्तर: खुली
अर्थव्यवस्था से निवेशकों को घरेलू तथा विदेशी परिसम्पत्तियों के मध्य चयन का अवसर
प्राप्त होता है, जिससे बाजार में सहलग्नता निर्मित होते हैं।
प्रश्न 72. भुगतान सन्तुलन की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1. इसके
अन्तर्गत दृश्य-अदृश्य तथा पूँजी अन्तरण की मदें शामिल की जाती है।
2. इसमें
दोहरा लेखा पद्धति के आधार पर भुगतान व प्राप्तियों को लेखाबद्ध करते हैं।
प्रश्न 73. स्थिर विनिमय दरों के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
1. इन दरों
से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती है।
2. शेष विश्व
को आहार अनुदान तथा निवेश के लिए।
3. इन दरों
से अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि होती है।
प्रश्न 74. परिवर्तनशील पूँजी विनिमय दरों के पक्ष में दो तर्क
लिखिए।
उत्तर:
1. इन दरों
से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विनिमय दरों को साम्य बनाना आसान होता है।
2. इन दरों
से सटें की प्रवृत्ति पर रोक लगती है।
प्रश्न 75. विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
1. अन्य
देशों से किये गए आयातों के भुगतान के लिए।
2. अन्तर्राष्ट्रीय
भुगतान करने के लिए।
प्रश्न 76. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या अर्थ है?
उत्तर: अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के बीच लेन-देन को कहते
हैं।
प्रश्न 77. विदेशी विनिमय बाजार का अर्थ बताइए।
उत्तर: जहाँ
दो या अधिक देशों के मध्य उनकी मुद्राओं का विनिमय होता है, विदेशी विनिमय बाजार
कहलाता है।
प्रश्न 78. व्यापार का क्या अर्थ है?
उत्तर: व्यापार
का अर्थ वस्तु और सेवाओं के क्रय-विक्रय से होता है। व्यापार आन्तरिक और
अन्तर्राष्ट्रीय होता है।
प्रश्न 79. व्यापार घाटा कब होता है?
उत्तर: जब
व्यापार में निर्यात से अधिक आयात हो जाते हैं तो व्यापार घाटा कहलाता है।
प्रश्न 80. विदेशी व्यापार का कोई एक महत्त्व बताइए।
उत्तर: विदेशी
व्यापार उपभोक्ता, उत्पादक और विनियोगकर्ता को अधिक वस्तुओं के चयन का अवसर प्रदान
करता है।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. खुली अर्थव्यवस्था से आपका क्या अभिप्राय है? ऐसे कोई दो
प्रकार बताइए जिनमें खुली अर्थव्यवस्था आपके चयन का विस्तार करती है।
उत्तर: एक ऐसी अर्थव्यवस्था, जिसमें अन्य राष्ट्रों के साथ वस्तुओं, सेवाओं तथा
वित्तीय परिसम्पत्तियों का व्यापार किया जाता है, वह खुली अर्थव्यवस्था कहलाती है।
एक खुली अर्थव्यवस्था द्वारा
1. घरेलू
तथा विदेशी वस्तुओं के मध्य चयन का अवसर मिलता है।
2. निवेशकों
को घरेलू व विदेशी परिसम्पत्तियों के मध्य चयन का अवसर मिलता है।
प्रश्न 2. नम्य (लोचपूर्ण ) विनिमय दरों से क्या आशय है?
उत्तर: नम्य विनिमय दरों से आशय उन दरों से है जो कि स्वतन्त्र रूप से विनिमय
बाजार में माँग वे पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होती हैं और
जिनमें केन्द्रीय बैंक या अन्य प्राधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
प्रश्न 3. विदेशी विनिमय बाजार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: विदेशी
विनिमय बाजार वह बाजार होता है जिसमें विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय होता है।
अतः यह विदेशी मुद्रा के खरीदने व बेचने का एक संस्थागत प्रबन्ध होता है। निर्यात
करने वाले विदेशी मुद्राओं की बिक्री करते हैं जबकि आयात करने वाले विदेशी मुद्रा
की खरीददारी करते हैं।
प्रश्न 4. विदेशी विनिमय बाजार के मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. क्रय-शक्ति
अन्तरण करना – विदेशी विनिमय बाजार का मुख्य कार्य विभिन्न देशों के मध्य क्रय शक्ति
के अन्तरण का है। इस प्रकार अन्तरण टेलीग्राफिक अन्तरण के द्वारा किया जाता है।
2. साख की
व्यवस्था करना – विदेशी विनिमय बाजार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए साख की व्यवस्था
करने का कार्य करता है।
3. जोखिम
पूर्वोपाय करना – विदेशी विनिमय बाजार जोखिम से बचाने के लिए चालू या वायदा क्रय-विक्रय
की सुविधा प्रदान करते हैं।
प्रश्न 5. विदेशी विनिमय दर का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: वह
दर जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के साथ विनिमय किया जाता है,
उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं। अन्य शब्दों में, विदेशी विनिमय दर दूसरी मुद्रा
के रूप में एक देश की मुद्रा की कीमत होती है। अत: एक मुद्रा की विनिमय दर उसके
बाह्य मूल्य अथवा विदेशी मुद्रा की क्रय शक्ति बताती है।
प्रश्न 6. व्यापार शेष और भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. भुगतान
शेष (सन्तुलन) एक व्यापक धारणा है जबकि व्यापार शेष (सन्तुलन) एक संकुचित धारणा है।
2. भुगतान
सन्तुलन में व्यापार शेष भी शामिल होता है।
3. भुगतान
शेष में दृश्य तथा अदृश्य सभी मदों को शामिल किया जाता है। जबकि व्यापार शेष में केवल
दृश्य मदों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को ही शामिल किया जाता है।
प्रश्न 7. खुली अर्थव्यवस्था से क्या आशय है? इससे हमारे चयन का
विस्तार कैसे होता है? दो प्रकार बताइए।
उत्तर: खुली अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें एक देश द्वारा अन्य देशों
के साथ वस्तुओं, सेवाओं तथा वित्तीय परिसम्पत्तियों का व्यापार किया जाता है। इससे
हमारे चयन का विस्तार निम्नलिखित दो प्रकार से होता है-
1. उपभोक्ताओं
और फार्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है।
2. निवेशकों
को घरेलू और विदेशी परिसम्पत्तियों के मध्य चयन का अवसर प्राप्त होता है।
प्रश्न 8. किसी देश के भुगतान सन्तुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: भुगतान
सन्तुलन एक निश्चित अवधि के अन्दर किसी देश के अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवहारों
का व्यवस्थित विवरण होता है। इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है-चालू खाता तथा
पूँजी खाता।
प्रश्न 9. खुली अर्थव्यवस्था तथा बन्द अर्थव्यवस्था में क्या अन्तर
है?
उत्तर: खुली
अर्थव्यवस्था तथा बन्द अर्थव्यवस्था में अन्तर
खुली अर्थव्यवस्था
1. खुली
अर्थव्यवस्था का शेष विश्व के साथ आर्थिक सम्बन्ध होता है।
2. खुली
अर्थव्यवस्था में विकास की सम्भावनाएँ अपेक्षाकृत अधिक हैं।
3. इसमें
घरेलू आय तथा राष्ट्रीय आय में अन्तर हो सकता है।
बन्द अर्थव्यवस्था
1. खबन्द
अर्थव्यवस्था का शेष विश्व के साथ सम्बन्ध नहीं होता है।
2. बन्द
अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ कम हैं।
3. इसमें
घरेलू आय तथा राष्ट्रीय आय समान होती हैं।
प्रश्न 10. चालू खाते से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: चालू
खाता भुगतान सन्तुलन का वह भाग है जिसमें एक निश्चित समयावधि में स्थानान्तरित की
गई वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए भुगतान शामिल होते हैं, इसकी सबसे बड़ी मद
आयात-निर्यात की होती है। अन्य मदों में सेवाओं और उपहारों के लेन-देन भी शामिल
होते हैं।
प्रश्न 11. पूँजी खाते से क्या आशय है?
उत्तर: पूँजी
खाते में उन सभी प्राप्तियों तथा भुगतानों को सम्मिलित किया जाता है जो किसी नई
पूँजी का निर्माण करते हैं या वर्तमान दायित्वों को समाप्त करते हैं। पूँजी खाते
को दीर्घकालीन पूँजी खाता तथा अल्पकालीन पूँजी खाता के रूप में विभाजित किया जाता
है।
प्रश्न 12. स्थिर विनिमय दर प्रणाली को समझाइए। इसके दो लाभ बताइए।
उत्तर: जब
किसी देश का केन्द्रीय बैंक विनिमय दर को किसी एक निश्चित मूल्य पर स्थिर
(अधिकीलित) कर देता है तो उसे स्थिर या अधिकीलित विनिमय दर प्रणाली कहा जाता है।
स्थिर विनिमय दर प्रणाली के निम्न लाभ हैं –
1. विनिमय
दर स्थिर होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है।
2. इस प्रणाली
के कारण अन्तर्राष्ट्रीय निवेश में भी वृद्धि होती है।
प्रश्न 13. नम्य (लोचशील) विनिमय दर प्रणाली क्या है?
उत्तर: जब
मुद्रा के मूल्य को विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होने के लिए
खुला छोड़ दिया जाता हो तो उसे नम्य या लोचशील या तिरती विनिमय प्रणाली कहा जाता
है इस प्रणाली में, विनिमय दरों के निर्धारण में केन्द्रीय बैंक हस्तक्षेप नहीं
करता है।
प्रश्न 14. नम्य विनिमय दर के लाभ बताइए।
उत्तर: नम्य
विनिमय दर प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं –
1. नम्य
विनिमय दर प्रणाली में केन्द्रीय बैंक को विदेशी विनिमय रिजर्व रखने पर अनावश्यक व्यय
नहीं करना पड़ता है।
2. नम्य
विनिमय दरों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और पूँजी आवागमन के मार्ग में आने वाली
बाधाएँ समाप्त हो जाती है।
3. यह मुद्रा
के अधिमूल्यन तथा अवमूल्यन की समस्या से छुटकारा दिलाती है।
प्रश्न 15. प्रबन्धित तिरती प्रणाली को समझाइए।
उत्तर: प्रबन्धित
तिरती प्रणाली में विनिमय दर में परिवर्तन पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं होता है। इस
प्रणाली को मौद्रिक प्राधिकारी द्वारा देश के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखकर
प्रबन्धित किया जाता है। कठिनाइयों से बचने के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा
हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 16. विदेशी विनिमय की माँग के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. विदेशी
परिसम्पत्तियों का क्रय – यदि भारतीय लोग विदेशों में भूमि, भवन, शेयर, बॉण्ड, फैक्ट्री
आदि सम्पत्तियों को खरीदना चाहते हैं तो वे विदेशी विनिमय की माँग करते हैं।
2. विदेशों
से आयात – यदि भारत के लोग विदेशी वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करते हैं तो वे विदेशी
विनिमय की माँग करते हैं।
प्रश्न 17. विदेशी विनिमय की पूर्ति के मुख्य स्रोतों का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर:
1. विदेशों
को वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात से प्राप्त विदेशी विनिमय।
2. विदेशियों
द्वारा घरेलू अर्थव्यवस्था में किये गए निवेश से प्राप्त विदेशी मुद्रा।
3. विदेशियों
द्वारा भारत में अन्य परिसम्पत्तियों की खरीद से प्राप्त आय।
4. शेष विश्व
से भेंट तथा उपहारों से प्राप्त विदेशी विनिमय।
प्रश्न 18. भुगतान शेष का अर्थ समझाइए।
उत्तर: अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार में एक देश का शेष विश्व के साथ मौद्रिक लेन-देन चलता रहता है। भुगतान शेष
के खातों में इस प्रकार के लेन-देनों का ही रिकॉर्ड रखा जाता है। अत: भुगतान शेष
से तात्पर्य किसी देश के निवासियों तथा शेष विश्व के बीच एक वर्ष में होने वाले
समस्त आर्थिक लेन-देनों के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है।
प्रश्न 19. चालू खाते के मुख्य घटक बताइए।
उत्तर: चालू
खाते के घटकों को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जाता है-
(i) दृश्य व्यापार–इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के भौतिक वस्तुओं के आयात-निर्यात को
शामिल किया जाता है।
(ii) अदृश्य व्यापार-इसमें केवल सेवाओं के व्यापार को शामिल किया
जाता है। इन्हें सामान्यतया दो भागों में विभाजित किया जाता है –
1. साधन
आय तथा
2. गैर-साधन
आय।
(iii) अन्तरण भुगतान – इसमें विदेशी उपहार, दान, सैनिक सहायता,
तकनीकी सहायता आदि एक तरफा अन्तरणों को शामिल किया जाता है। इसीलिए इसे एकपक्षीय
अन्तरण भी कहा जाता है।
प्रश्न 20. पूँजी खाता के घटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: भारत
में भुगतान शेष के पूँजी खाते के घटक निम्न हैं –
(i) विदेशी निवेश – इसमें विदेशियों द्वारा घरेलू फर्म का
अधिग्रहण, विदेशों से घरेलू अर्थव्यवस्था में सहायक इकाइयों का अन्तरण आदि को
शामिल किया जाता है। विदेशी निवेश दो प्रकार का होता है
(a) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
(b) पोर्टफोलियो निवेश
(ii) ऋण – इसके अन्तर्गत उधार लेन-देन को सम्मिलित किया जाता है।
इसके दो रूप है – विदेशी सहायता तथा व्यावसायिक ऋण।
(iii) ‘बैंकिंग पूँजी – इसमें प्रमुख रूप से विदेशी विनिमय का
अधिकृत काम करने वाले वाणिज्य एवं सहकारी बैंकों, बाह्य वित्तीय सम्पत्तियों वे
दायित्वों के लेन-देन को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 21. व्यापार शेष से क्या आशय है?
उत्तर: व्यापार
शेष से आशय एक वर्ष के अन्तर्गत होने वाले एक देश के दृश्य आयातों एवं निर्यातों
के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है। अन्य शब्दों में, वस्तुओं के निर्यातों में से
वस्तुओं के आयातों को घटाकर व्यापार शेष की गणना की जा सकती है। व्यापार शेष में
अदृश्य मदों (सेवाओं) को शामिल नहीं किया जाता है।
प्रश्न 22. चालू खाता शेष क्या है?
उत्तर: चालू
खाता शेष में चालू अवधि के दौरान वस्तुओं व सेवाओं के लेन-देन तथा शुद्ध अन्तरण
सम्मिलित होते हैं। अन्य शब्दों में व्यापार-शेष में सेवाओं में व्यापार और शुद्ध
अन्तरणों को जोड़कर चालू खाता शेष प्राप्त किया जाता है।
चालू खाता शेष = (दृश्य निर्यात + अदृश्य निर्यात) – (दृश्य आयात + अदृश्य आयात)
अथवा चालू खाता शेष = व्यापार शेष + निवल अदृश्य मदें।
प्रश्न 23. पूँजी खाता शेष को समझाइए।
उत्तर: पूँजी
खाते में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गये परिसम्पत्तियों के क्रय-विक्रय को दर्ज
किया जाता है। जब हम घरेलू परिसम्पत्तियों के विक्रय से प्राप्त आय में से विदेशी
परिसम्पत्तियों के क्रय पर किये गये व्यय को घटा देते हैं तो हमें पूँजी खाता शेष
प्राप्त होता है।
प्रश्न 24. स्वायत्त संव्यवहारों से क्या आशय है?
उत्तर: स्वायन्त
संव्यवहारों से आशय उन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों से है जिन्हें लाभ के
उद्देश्य से किंया जाता है। अन्य शब्दों में, ये लेन-देन देश के भुगतान शेष खाते
में सन्तुलन बनाये रखने के उद्देश्य से नहीं किये जाते हैं। इसलिए इन्हें स्वायत्त
मदें कहा जाता है।
प्रश्न 25. समायोजित संव्यवहार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: वे
संव्यवहार जो सरकार द्वारा भुगतान शेष को सन्तुलित बनाये रखने के लिए किये जाते
हैं उन्हें समायोजित संव्यवहार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, भुगतान शेष असन्तुलन
को ठीक करने के लिए किये गये सभी मौद्रिक अन्तरणों को समायोजित संव्यवहार कहा जाता
है।
प्रश्न 26. भुगतान सन्तुलन का विदेशी विनियम पर क्या प्रभाव पड़ता
है?
उत्तर: यदि
भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल हो तो विदेशी विनिमय के कम होने की सम्भावना होती है और
यदि इसके विपरीत किसी देश में विदेशी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति से कम हो अर्थात्
भुगतान सन्तुलन अनुकूल हो तो देश की विदेशी विनिमय दर में वृद्धि होने की सम्भावना
होती है।
प्रश्न 27. विदेशी मुद्रा की दर में वृद्धि होने से इसकी पूर्ति
में वृद्धि क्यों होती है?
उत्तर: विदेशी
विनिमय दर में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप घरेलू वस्तुएँ विदेशियों के लिए सस्ती
हो जाती है। इससे निर्यात में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा
अधिक मात्रा में प्राप्त होती है।
प्रश्न 28. जब विदेशी मुद्रा की कीमत में कमी होती है, तब इसकी
माँग में वृद्धि होती है। कारण बताइए।
उत्तर: माना
अब कम रुपयों के बदले में ही एक यूरो को प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुएँ सस्ती
होने के कारण अब भारतीय लोग यूरो से वस्तुओं का आयात अधिक करेंगे। इसके
परिणामस्वरूप यूरोपीय मुद्रा यूरो की माँग बढ़ जाएगी। लोग रुपये के बदले यूरो
प्राप्त करके यूरोप से वस्तुओं का अधिक मात्रा में आयात करना प्रारम्भ कर देंगे।
प्रश्न 29. अवमूल्यन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: अवमूल्यन
किसी देश की सरकार द्वारा अपनी मुद्रा को विदेशी मुद्रा के सापेक्ष में मूल्य
ह्रास करने की एक प्रक्रिया है। अवमूल्यन का अर्थ है जब कोई देश अपनी मुद्रा का
बाह्य मूल्य कम करता है।
प्रश्न 30. अदृश्य मदें क्या होती है?
उत्तर: ऐसी
मदें जिन्हें देखा नहीं जा सकता और न ही मापा जा सकता है अर्थात् भौतिक अस्तित्व
में नहीं होती है, अदृश्य मदें कहलाती हैं।
जैसे – बैंकिंग, बीमा, तकनीकी ज्ञान आदि।
प्रश्न 31. विनिमय दर का अर्थ बताइए।
उत्तर: विनिमय
दर एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा में व्यक्त की गई कीमत है अर्थात् विनिमय दर वह दर
है जिस पर एक करेन्सी दूसरी करेन्सी में परिवर्तित की जाती है, विनिमय विदेशी दर
विनिमय बाजार में तय होती है।
प्रश्न 32. दृश्य वस्तुओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: दृश्य
वस्तुओं से तात्पर्य भौतिक वस्तुओं से है, जिन्हें देखा और मापा जा सकता है। इन
वस्तुओं के आयात और निर्यात व्यापार सन्तुलन में शामिल किये जाते हैं। व्यापार
सन्तुलन में दृश्य वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है।
प्रश्न 33. बन्द अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर: एक
ऐसी अर्थव्यवस्था जो दूसरे देश से कोई आर्थिक लेन-देन या व्यापार नहीं करती है।
इसके अन्तर्गत केवल देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का ही उपयोग किया जाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. विदेशी विनिमय दर के निर्धारण की प्रक्रिया को विस्तार
से समझाइये।
उत्तर: विनिमय
दर एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा के रूप में व्यक्त की गई कीमत है। अर्थात् विनिमय दर
वह दर है जिस पर एक करेन्सी दूसरी करेन्सी में परिवर्तित की जाती है। विदेशी
विनिमय दर विनिमय बाजार में तय होती है। जहाँ दो या अधिक देशों के मध्य उनकी
मुद्राओं का विनिमय होता है। विनिमय दर कई प्रकार की होती है। जैसे – अग्रिम,
तत्काल, अनुकूल, प्रतिकूल, स्थिर और अस्थिर विनिमय दर।
विनिमय दर का निर्धारण – अर्थशास्त्रियों द्वारा विनिमय दर के
निर्धारण के लिए माँग पूर्ति सिद्धान्त, क्रय शक्ति समता सिद्धान्त, भुगतान शेष
सिद्धान्त और टकसाल दर समता सिद्धान्त आदि प्रतिपादित किये गए है।
माँग पूर्ति सिद्धान्त – जिस प्रकार बाजारों में कीमतों का निर्धारण ये उनकी माँग और पूर्ति के द्वारा होता है, उसी प्रकार विदेशी विनिमय बाजार में भी विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होता है।
चित्र में सन्तुलन E बिन्दु पर है जहाँ DD विदेशी विनिमय की माँग
SS विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर है। विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति OQ होती
है। विनिमय दर OR है। यदि. विनिमय की दर OR1 होती है तो विदेशी
विनिमय की पूर्ति माँग से अधिक होगी। परिणामस्वरूप विनिमय दर विदेशी विनिमय मात्रा
घटेगी और E पर साम्य होंगे। इसके विपरीत OR1 पर विदेशी विनिमय की
माँग विदेशी विनिमय की पूर्ति से अधिक है जिससे विनिमय दर बढ़कर पुनः सन्तुलन E पर
स्थापित होगा। भुगतान सन्तुलन इन लोचदार विनिमय दरों के कारण सन्तुलन की स्थिति
में रहता है। इस प्रकार विनिमय दरों में परिवर्तन से विदेशी विनिमय की माँग पूर्ति
में भी परिवर्तन आता है। इसके अन्य कई आर्थिक कारण भी उत्तरदायी हो सकते हैं। जैसे
– आयात और निर्यात की मात्रा, देश की पूँजी का प्रवाह, बैंक दर, अन्तर्राष्ट्रीय
मुद्रा बाजार में अनिश्चितता और देश का राजनैतिक वातावरण।
प्रश्न 2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ बताइए। इसकी क्यों
आवश्यकता होती है?
उत्तर: अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार-जब व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं को विनिमय
होता है। किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के बाहर होने वाला व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार कहलाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की आवश्यकता – अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की
आवश्यकता को हम निम्न बिन्दुओं से समझ सकते हैं –
1. सभी देश
सभी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन समान रूप से करने में सक्षम नहीं होते हैं, इसलिए
आवश्यकता की वस्तुओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।
2. विश्व
में साधनों; जैसे उर्वरा भूमि, खनिज सम्पदा, वन सम्पदा इत्यादि का असमान वितरण होता
है। जलवायु भी असमान रहती है। उत्पादनों के साधनों के बीच स्थानापन्न पूर्ण नहीं होता
है। अत: प्रत्येक देश उस वस्तु के उत्पादन में विशिष्टीकरण करता है, जो साधन वहाँ प्रचुर
मात्रा में पाये जाते हैं। इससे उनकी उत्पादन लागत कम होती है। लाभ अर्जित करने के
लिए वस्तुओं का निर्यात करता है। इसके विपरीत अल्प संसाधनों और उनकी ऊँची कीमतों के
कारण ऐसी वस्तुओं का दूसरे देशों से आयात करर्ता है।”
3. अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार से आधुनिक टैक्नोलोजी प्राप्त होती है जिससे विकासशील और पिछड़े देशों का विकास
सम्भव होता है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार से घरेलू उद्योगों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
से अधिक लाभ कमाने के लिए वे अपने उत्पाद की गुणवत्ता और विक्रय मात्रा दोनों में वृद्धि
करते हैं।
5. वर्तमान
में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राप्त आगम, सकल राष्ट्रीय उत्पाद का बड़ा अंश होता
है।
प्रश्न 3. अवमूल्यन व अधिमूल्यन में अन्तर बताइए।
उत्तर: अवमूल्यन
और अधिमूल्यन किसी देश के भुगतान सन्तुलन को समायोजित करने के आवश्यक उपकरण होते
हैं।
अवमूल्यन – अवमूल्यन किसी देश की सरकार द्वारा अपनी मुद्रा के
विदेशी मुद्रा के सापेक्ष में मूल्य ह्रास करने की एक प्रक्रिया है। अवमूल्यन का
अर्थ होता है जब कोई देश अपनी मुद्रा का बाह्य मूल्य कम करता है। सरकार ऐसा
व्यापार घाटे को कम करने के लिए करती है जिससे देश के आयात महँगे और निर्यात सस्ते
हो जाते हैं। इस प्रकार सरकार अवमूल्यन के द्वारा भुगतान असन्तुलन को दूर करने का
प्रयास करती है।
अधिमूल्यन – अधिमूल्यन भी सरकार द्वारा भुगतान सन्तुलन को समायोजित
करने के लिए अपनाया जाने वाला नीतिगत उपकरण है जिससे देश की मुद्रा का मूल्य
विदेशी मुद्रा के सापेक्ष में बढ़ा दिया जाता है। ऐसा करने से देश के निर्यात
महँगे हो जाते हैं। और आयात सस्ते हो जाते हैं। विदेशी मुद्रा की तुलना में रुपया
महँगा हो जाता है और इसके द्वारा विदेशी व्यापार में आधिक्य को समाप्त किया जा
सकता है।
प्रश्न 4. भुगतान सन्तुलन, व्यापार सन्तुलन से अधिक व्यापक अवधारणा
है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: भुगतान
सन्तुलन एक व्यापक अवधारणा है। इसमें दृश्य और अदृश्य दोनों ही प्रकार की मदें
शामिल होती हैं। अदृश्य मदों में सेवाएँ; जैसे – बैंकिंग, बीमा, तकनीकी ज्ञान आदि
होती हैं। दृश्य वस्तुएँ भौतिक वस्तुएँ हैं जिन्हें देखा तथा मापा जा सकता है।
अदृश्य वस्तुओं व दृश्य वस्तुओं का भुगतान देशों के मध्य होता है किन्तु
बन्दरगाहों पर इनका कोई लेखा नहीं होता है। इसके अतिरिक्त इसमें पूँजी खाते को भी
शामिल किया जाता है।
जबकि व्यापार सन्तुलन भुगतान सन्तुलन का भाग होता है। व्यापार
सन्तुलन में केवल दृश्य मदों को ही शामिल किया जाता है। यदि किसी देश के आयातों की
तुलना में निर्यात अधिक होते हैं तो व्यापार सन्तुलन अनुकूल होता है। इसके विपरीत
यदि निर्यातों की तुलना में आयात अधिक होते हैं तो व्यापार सन्तुलन प्रतिकूल होता
है।
अतः स्पष्ट है कि भुगतान सन्तुलन, व्यापार सन्तुलन से अधिक व्यापक
है क्योंकि भुगतान सन्तुलन में दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकार की वस्तुएँ और सेवाएँ
सम्मिलित की जाती हैं।
प्रश्न 5. एक काल्पनिक उदाहरण द्वारा भुगतान सन्तुलन की विभिन्न
मदों को समझाइए।
उत्तर:
प्रश्न 6. विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर: विदेशी
विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है –
(i) आयात-निर्यात – यदि घरेलू आयात, निर्यात से अधिक होता है तब
विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है, जिससे विनिमय दर विदेशी मुद्रा के पक्ष में हो
जाती है तथा विदेशी मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है। इसके विपरीत स्थिति में इसका
मूल्य उल्टा होता है।
(ii) पूँजी निवेश – जब भारतीय लोग विदेशों में पूँजी लगाते हैं तो
इससे विदेशी मुद्रा की माँग में वृद्धि होती है तथा विनिमय मूल्य भी बढ़ जाता है
इसके विपरीत यदि विदेशी लोग घरेलू अर्थव्यवस्था में पूँजी निवेश करते हैं तो वे
अपनी मुद्रा के बदले उस मुद्रा की माँग करते हैं, जहाँ वे सक्रिय होते हैं, इससे
घरेलू मुद्रा का विनिमये मूल्य बढ़ जाता है।
(iii) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय – जब किसी देश के निवासी विदेशी
प्रतिभूतियों का क्रय करते हैं तब विदेशी मुद्रा की मॉग में वृद्धि होती है इससे
घरेलू मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है। इसके विपरीत यदि किसी देश के निवासी विदेशी
प्रतिभूतियों का विक्रय करते हैं तो विदेशी मुद्रा की तुलना में घरेलू मुद्रा के
मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
(iv) बैंक दर – बैंक दर में वृद्धि होने के कारण अधिक ब्याज
प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेशी पूँजी घरेलू देश में आती है। इससे विदेशी
मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है, परिणामस्वरूप उसका मूल्य कम हो जाता है
तथा घरेलू मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है और इसके विपरीत स्थिति में इसका उल्टा होता
है।
(v) सट्टेबाजी – यदि सट्टेबाज यह आशा करता है कि भविष्य में किसी
देश की मुद्रा का मूल्य बढ़ सकता है तो वह उस मुद्रा को क्रय करना प्रारम्भ कर
देता है तथा यदि वह यह आशा करता है कि भविष्य में किसी विशेष देश की मुद्रा को
मूल्य कम हो सकता है तो वह उस मुद्रा को विनिमय बाजार में बेचना प्रारम्भ कर देता
है इससे विदेशी विनिमय दर प्रभावित होती है।
(vi) मुद्रास्फीति तथा अपस्फीति – मुद्रास्फीति की स्थिति में
घरेलू मुद्रा का आन्तरिक मूल्य कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में विदेशी मुद्रा का
बहिर्रवाह होता है। इससे विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा घरेलू मुद्रा के
सापेक्ष उसके मूल्य में वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत अपस्फीति के दौरान घरेलू
मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाती है और वित्तीय लाभ कमाने के उद्देश्य से विदेशी
मुद्रा का अन्त:प्रवाह होता है।
प्रश्न 7. भुगतान सन्तुलन से क्या आशय है? भुगतान सन्तुलन की प्रमुख
मदों को समझाइए।
> भुगतान सन्तुलन की परिभाषा दीजिए। इसकी प्रमुख मदें समझाइए।
उत्तर: भुगतान
सन्तुलन का अर्थ – भुगतान सन्तुलन किसी देश का अन्य देशों से सम्पूर्ण लेन-देन का
विस्तृत विवरण होता है।
भुगतान सन्तुलन की प्रमुख मदें – किसी देश का भुगतान सन्तुलन उसके
सम्पूर्ण विदेशी लेन-देन का एक विवरण होता है। इस विवरण में बायीं ओर सभी
लेनदारियाँ तथा दायीं ओर सभी देनदारियाँ दर्शायी जाती हैं। इन दोनों राशियों के
अन्तर से यह ज्ञात हो जाता है कि भुगतान शेष घाटे में है या बचत में है। भुगतान
सन्तुलन खाता दो भागों में बँटा होता है-चालू खाता तथा पूँजीखाता में।
भुगतान सन्तुलन खाते में मुख्य रूप से निम्नलिखित मदों का समावेश
करते हैं –
(i) वस्तुओं का आयात-निर्यात – आयात तथा निर्यात की जाने वाली
वस्तुएँ भुगतान सन्तुलन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग होती हैं। इन वस्तुओं में
सोना-चाँदी को भी शामिल किया जाता है।
(ii) सेवाओं का आयात-निर्यात – वस्तुओं के आयात-निर्यात की तरह ही
सेवाओं का आयात-निर्यात भी भुगतान सन्तुलन को प्रभावित करता है। जो देश सेवा
प्राप्त करता है वह आयातक तथा जो देश सेवा प्रदान करता है वह निर्यातक देश कहा जाता
है। ये सेवाएँ प्रमुख रूप से तीन प्रकार की होती है –
(a) व्यापारिक कम्पनियों द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ – इन सेवाओं
के अन्तर्गत बैंक, बीमा, जहाजरानी आदि को सम्मिलित किया जाता है।
(b) विशेषज्ञ सेवाएँ–इनमें प्रोफेसरों, डॉक्टरों, इन्जीनियरों तथा अन्य वित्तीय
एवं तकनीकी विशेषज्ञों की सेवाओं को शामिल किया जाता है।
(c) पर्यटन सेवाएँ – यात्रियों के एक देश से दूसरे देश को आने-जाने से सम्बन्धित
सेवायें इसमें शामिल होती है।
(iii) ऋण, ब्याज एवं लाभ आदि का संव्यवहार – कुछ देशों द्वारा अन्य
देशों को दिए गए ऋण ब्याज देते हैं। ये इसके अलावा अन्य देशों में किये गए पूँजी
निवेश के कारण उत्पन्न लाभ भी भुगतान सन्तुलन को प्रभावित करता है।
(iv) जनसंख्या का स्थानान्तरण – जब लोग एक देश को छोड़कर दूसरे देश
में बसते हैं तो अपने साथ कुछ जमा धनराशि भी एक देश से दूसरे देश को ले जाते हैं
तो यह भुगतान सन्तुलन को प्रभावित करता है।
(v) सरकारों द्वारा किया गया व्यय – विभिन्न देशों की सरकारों
द्वारा अपने दूतावासों आदि की स्थापना हेतु विदेशी मुद्रा में किया गया व्यय तथा
कभी-कभी दण्ड, युद्ध व्यय, अनुदान आदि के रूप में भी अन्य देशों को किया गया
भुगतान सन्तुलन को प्रभावित करता है।
(vi) स्वर्ण का अन्तरण – यदि ऊपर की मदों के द्वारा आपस में
भुगतानों का सन्तुलन नहीं होता है तो सोने के अन्तरण द्वारा सन्तुलन स्थापित किया
जाता है।
प्रश्न 8. विनिमय दर से क्या आशय है? अनुकूल और प्रतिकूल विनिमय
दरों को समझाइए।
उत्तर: विनिमय
दर – वह दर जिस पर किसी देश की मुद्रा की एक इकाई दूसरे देश की मुद्रा में बदली
जाती है, वह विनिमय दर कहलाती है।
प्रो.चैफलर के अनुसार, “दो मौद्रिक इकाइयों के मध्य विनिमय दर से
अभिप्राय एक देश की मुद्रा इकाइयों की उस संख्या से है जो दूसरी मुद्रा की एक इकाई
को खरीदने के लिए आवश्यक होती है।”
अनुकूल तथा प्रतिकूल विनिमय दर – कोई भी विनिमय दर हमारे लिए
अनुकूल है या प्रतिकूल, यह पता करने से पहले हमें यह ज्ञात करना होगा कि विनिमय दर
को हमारी स्वदेशी मुद्रा में प्रकट किया जा रहा है या विदेशी मुद्रा में। कोई
विनिमय दर जो किसी देश के लिए अनुकूल होगी, तो वह अवश्य ही दूसरे के लिए प्रतिकूल
होगी। इस प्रकार दो दशाएँ हो सकती हैं
(i) जब मुद्रा की विनिमय दर अपनी मुद्रा में प्रकट की जाये – इस
स्थिति में गिरती हुई विनिमय दर देश के पक्ष में तथा बढ़ती हुई विनिमय दर देश के
विपक्ष में होती है। उदाहरण के लिए, यदि परिवर्तन से पूर्व 1 पौण्ड = ₹ 20 है और
यह अब घटकर 1 = पौण्ड = ₹ 15 रह जाये तो यह दर हमारे अनुकूल कहलायेगी क्योंकि अब
हमें एक पौण्ड मूल्य की वस्तुएँ खरीदने के लिए ₹ 20 के स्थान पर ₹ 15 ही अदा करने
पड़ेंगे। इसके विपरीत, यदि विनिमय दर बढ़कर 1 पौण्ड = ₹ 25 हो जाये तो यह दर हमारे
प्रतिकूल होगी क्योंकि अब 1 पौण्ड मूल्य की वस्तु ₹ 20 के स्थान पर है ₹ 25 में
प्राप्त होगी।
(ii) जब मुद्रा की विनिमय दर विदेशी मुद्रा में प्रकट की जाये – इस
स्थिति में बढ़ती हुई विनिमय दर हमारे अनुकूल तथा घटती हुई विनिमय दर हमारे
प्रतिकूल होगी। उदाहरणार्थ, यदि आज ₹ 1 = 1 शिलिंग हो, तो इसकी परिवर्तित वर्तमान
। दर ₹ 1 = 2 शिलिंग देश के लोगों के लिए अनुकूल तथा ₹ 1 = 0.85 शिलिंग देश के लिए
प्रतिकूल मानी जाएगी।
प्रश्न 9. विदेशी विनिमय दर स्वतन्त्र बाजार में कैसे निर्धारित की
जाती है?
> विदेशी विनिमय दर का क्या अर्थ है? स्वतन्त्र बाजार में इसे कैसे निर्धारित
किया जाता है?
उत्तर: विनिमय
दर – वह दर जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के साथ विनिमय किया
जाता है, उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं। अन्य शब्दों में, विदेशी विनिमय दर दूसरी
मुद्रा के रूप में एक देश की मुद्रा की कीमत होती है। है अतः एक मुद्रा की विनिमय
दर उसके बाह्य मूल्य अथवा विदेशी मुद्रा के उसकी क्रयशक्ति को बताती है।
विदेशी मुद्रा की माँग – विदेशी मुद्रा की माँग निम्न व्यक्ति करते
हैं –
1. जो विदेशों
से माल मँगाना चाहते हैं।
2. जो विदेशी
सेवाओं का भुगतान करना चाहते हैं।
3. जो विदेशों
में अपनी पूँजी का निवेश करना चाहते हैं।
इस रेखाचित्र में माँग वक्र DD है, जिसका बल ऋणात्मक है। इससे यह
स्पष्ट है कि जैसे-जैसे विनिमय दर कम होकर OR1 होती है, विदेशी
विनिमय ही माँग में वृद्धि (OM1) हो जाती है।
विदेशी मुद्रा की पूर्ति – विदेशी मुद्रा की पूर्ति के पीछे हमारे निर्यात होते हैं, जिनका भुगतान करने के लिए विदेशी लोग अपनी मुद्रा देकर हमारी मुद्रा को खरीदना चाहते हैं जिससे हमारे पास विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है।
·
चित्रानुसार, यदि देश के निर्यातों की विदेशी माँग की लोच एक से अधिक
है तो विदेशी विनिमय का पूर्ति वक्र S से S1 तक बाईं से दाईं ओर धनात्मक
होगा।
·
यदि देश के निर्यातों की विदेशी माँग की लोच एक है तो विदेशी विनिमय
का पूर्ति वक्र S1 से S2 तक लम्बवत् होगा।
·
यदि देश के निर्यातों की विदेशी माँग की लोच एक से कम है तो विदेशी
विनिमय पूर्ति वक्र S2 से S3 तक ऋणात्मक होगा।
सन्तुलित विदेशी विनिमय दर
उस बिन्दु पर सन्तुलित विदेशी विनिमय दर का निर्धारण होता है जहाँ
विदेशी विनिमय के माँग व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस रेखाचित्र में
विदेशी मुद्रा की माँग DD तथा विदेशी मुद्रा की पूर्ति S3 रेखा के
माध्यम से दिखाई गई है। ये दोनों वक्र बिन्दु P पर एक-दूसरे को काटते हैं, जहाँ OM
मुद्रा की माँग व पूर्ति है तथा OR विनिमय दर है। इस बिन्दु पर निर्धारित दर को ही
सन्तुलन या समता दर कहते है।
यदि विदेशी मुद्रा की माँग अपरिवर्तित रहती है तथा पूर्ति बढ़कर OM1 हो
जाती है तो विनिमय दर गिरकर OR1 हो जाएगी। जबकि इसके विपरीत,
पूर्ति के अपरिवर्तित रहने पर तथा माँग के M2 तक बढ़ जाने पर
विनिमय दर बढ़कर OR2 हो जाएगी।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित सूचना के आधार पर सिद्ध कीजिए कि खुली
अर्थव्यवस्था गुणक, बन्द अर्थव्यवस्था गुणक से कम होता है।
उपभोग (C) = 0.75
सीमान्त आयात प्रवृत्ति (M) = 0.25
उत्तर:
उपरोक्त में बन्द अर्थव्यवस्था गुणके 4 तथा खुली अर्थव्यवस्था गुणक
2 है। अत: स्वयं सिद्ध है कि खुली अर्थव्यवस्था गुणक, बन्द अर्थव्यवस्था गुणक से
कम होता है।
प्रश्न 2. एक देश के निर्यात के 7,500 करोड़ तथा आयात ₹ 6,000
करोड़ है। व्यापार शेष क्या होगा?
उत्तर: व्यापार
शेष = निर्यात – आयात
= 7,500 – 6,000 = ₹ 1,500 करोड़
अत: व्यापार शेष यहाँ ₹ 1,500 करोड़ की बचत दर्शा रहा है।
प्रश्न 3. एक देश के निर्यात के 7,000 करोड़ तथा आयात ₹ 9,000
करोड़ है। इसके व्यवहार शेष की गणना कीजिए तथा प्रकृति भी बताइए।
उत्तर: व्यापार शेष = निर्यात – आयात
= 7,000 – 9,000 = – 2,000 करोड़
यहाँ व्यापार शेष ₹ – 2,000 है जिसकी प्रवृत्ति घाटे की है।
प्रश्न 4. एक देश के व्यापार शेष का घाटा ₹ 5,000 करोड़ है। यदि
आयातों का मूल्य ₹ 9,000 करोड़ है तो निर्यातों का मूल्य क्या है?
उत्तर: व्यापार शेष = निर्यात – आयात
– 5,000 = निर्यात – 9,000
आयात ₹ 9,000 – 5,000 = ₹ 4,000 करोड़
प्रश्न 5. एक देश के व्यापार शेष का घाटा ₹ 4,000 करोड़ है। यदि
निर्यातों का मूल्य के 13,000 करोड़ है तो आयातों का मूल्य क्या है?
उत्तर: व्यापार शेष = निर्यात – आयात
– 4,000 = 13,000 – आयात
आयात = 13,000 + 4,000
= ₹ 17,000 करोड़
प्रश्न 6. एक देश के व्यापार शेष की बचत ₹ 3,000 करोड़ हैं। यदि
निर्यातों का मूल्य ₹ 8,000 करोड़ है, तो आयातों का मूल्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर: व्यापार-शेष = निर्यात – आयात
3,000 = 8,000 –
आयात आयात = 8,000 – 3,000
= ₹ 5,000 करोड़
प्रश्न 7. एक देश के व्यापार शेष की बचत है 800 करोड़ है। यदि
आयातों का मूल्य ₹ 9,000 करोड़ है तो निर्यातों का मूल्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर: व्यापार शेष = निर्यात – आयात
800 = निर्यात – 9,000
निर्यात = 800 + 9,000 = ₹ 9,800 करोड़
प्रश्न 8. यदि व्यापार शेष सन्तुलन की अवस्था में पाया जाता है,
‘अदृश्य’मदों के कारण घाटा ज्ञात करें। यदि पूँजी खाते का भुगतान शेष विश्व से
उधार लेने के कारण ₹ 10,000 का आधिक्य प्रदर्शित करता है।
उत्तर: अदृश्य मदों के कारण घाटा = ₹ 10,000
प्रश्न 9. निम्नलिखित से चालू खाता शेष ज्ञात कीजिए –
उत्तर: चालू खाता शेष = दृश्य व्यापार का शेष + सेवाओं का निर्यात
+ एक देश से दूसरे देश को हस्तान्तर = 40 + 25 + 5
चालू खाता शेष = ₹ 70 करोड़
प्रश्न 10. भुगतान शेष के खाते का शेष ज्ञात करें। क्या कुल भुगतान शेष सन्तुलित है?
उत्तर: भुगतान शेष के खाते का शेष = निर्यातों का मूल्य – आयातों
का मूल्य + एकपक्षीय अन्तरण + पूँजी खाता शेष
= 450 – 150 + 100 + (-400)
= 450 + 100 – 150 – 400 = 0
हाँ, कुल भुगतान शेष सन्तुलित है। क्योंकि भुगतान शेष के खाते का शेष शून्य है।