कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (KEYNESIAN THEORY OF EMPLOYMENT)

कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (KEYNESIAN THEORY OF EMPLOYMENT)
कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (KEYNESIAN THEORY OF EMPLOYMENT)
बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लॉर्ड जे.एम. कीन्स ने अपनी पुस्तक 'The General Theory of Employment Interest and Money' (रोजगार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धान, 1936) में रोजगार के आधुनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। लॉर्ड कीन्स के अनुसार, एक पूँजीवादी विकसित अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति सामान्य स्थिति नहीं है। वास्तव में, हर अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी पायी जा सकती है। कीन्स के सिद्धान्त का जन्म 1931-1935 की विश्वव्यापी मन्दी' के कारण हुआ, जबकि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की आशा के विरुद्ध लाखों की संख्या में श्रमिक रोजगार प्राप्त करने के लिए भटक रहे थे लेकिन उनको 'रिक्त स्थान नहीं है' (No Vacancy) के बोर्ड देखने को मिलते थे। ब्याज की दर निम्नतम स्तर पर पहुँच गई थी लेकिन विनियोग की मात्रा नहीं बढ़ पा रही थी। ऐसे समय में कीन्स ने अपनी पुस्तक 'सामान्य सिद्धान्त' (General Theory) का प्रतिपादन कर उन घटकों का विश्लेषण किया जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में रोजगार व उत्पादन स्तर को प्रभावित करते हैं। कीन्स का विश्लेषण एक अल्पकालीन विश्लेषण है। कीन…