सूचकांक या निर्देशांक ( Index Numbers)

सूचकांक या निर्देशांक ( Index Numbers)

सूचकांक या निर्देशांक ( Index Numbers)

सूचकांक : अर्थ एवं परिभाषाएँ

समाज में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन होने के कारण मुद्रा का मूल्य भी परिवर्तित होता रहता है, जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है, फलस्वरूप कीमत-स्तर, उपभोग, जनसंख्या, बचत, निवेश, राष्ट्रीय आय, आयात-निर्यात, मजदूरी, ब्याज, किराया व लगान आदि चरों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। अत: मुद्रा-मूल्य में हुए परिवर्तनों का माप करना व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है। इन परिवर्तनों को निरपेक्ष रूप से मापने का कोई साधन नहीं है; अतः इनको सापेक्ष माप लिया जाता है। सूचकांक विशिष्ट प्रकार के सापेक्ष माप होते हैं, जिनके आधार पर समंकों की उचित एवं स्पष्ट तुलना की जा सकती है।

सूचकांकों की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

चैण्डलर के अनुसार-“कीमत का सूचकांक आधार-वर्ष की तुलना में किसी अन्य समय में कीमतों की औसत ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या है।”

डॉ० बाउले के शब्दों में- “सूचकांक की श्रेणी एक ऐसी श्रेणी होती है, जो अपने झुकाव तथा उच्चावचनों द्वारा जिस परिमाण से संबंधित है, में होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।”

किनले के शब्दों में- “सूचकांक वह अंक है, जो किसी पूर्व निश्चित तिथि को चुनी वस्तुओं या वस्तु-समूह के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे प्रामाणिक मानते हुए किसी बाद की तिथि को उन्हीं वस्तुओं के मूल्य से तुलना करते हैं।”

क्रॉक्सटन व काउडेन के अनुसार- “सूचकांक, संबंधित चर-मूल्यों के आकार में होने वाले अंतरों की माप करने के साधन हैं।”

सूचकांकों की विशेषताएँ

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सूचकांकों की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं

1. सूचकांक मुद्रा के मूल्य का निरपेक्ष माप न होकर सापेक्ष माप है।

2. सूचकांकों को प्रतिशतों में व्यक्त किया जाता है।

3. इनका प्रयोग ऐसे तथ्यों के परिवर्तनों को मापने के लिए किया जाता है, जिन्हें प्रत्यक्ष माप से नहीं मापा जा सकता।

4. यह एक विशेष प्रकार का माध्य ही है।

5. सूचकांक आर्थिक पहलू के उच्चावचनों को संख्यात्मक रूप में ही माप सकता है।

सूचकांक की आवश्यकता

सूचकांक सम्बन्धित चरों के समूह के परिमाण में परिवर्तनों को मापने का एक सांख्यिकीय साधन है। ये अर्थव्यवस्था के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। निम्नलिखित कारणों से हमें सूचकांक की आवश्यकता होती है

1. मजदूरी तय करने, लगान, कर, आय नीति का निर्धारण, कीमत-निर्धारण एवं आर्थिक नीति बनाने के लिए सूचकांक का प्रयोग किया जाता है।

2. उपभोक्ता कीमत सूचकांक (CPI) फुटकर (retail) कीमतों में औसत परिवर्तन मापने के लिए आवश्यक होता है।

3. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IPI) अनेक उद्योगों के औद्योगिक उत्पादन के स्तर में परिवर्तन को मापने में सहायक होता है।

4. थोक कीमत सूचकांक (WPI) सामान्य कीमत स्तर में परिवर्तन का संकेत देता है।

5. कृषि क्षेत्र की प्रगति का जायजा लेने के लिए कृषि उत्पादन सूचकांक (API) आवश्यक होता है।

सूचकांक की उपयोगिता अथवा लाभ

सूचकांकों की सार्वभौमिक उपयोगिता है। ये व्यापारी, अर्थशास्त्री व राजनीतिज्ञों का पथ-प्रदर्शन करते हैं। और उन्हें भावी प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने में सहायता करते हैं। कीमत, जीवन-निर्वाह, औद्योगिक उत्पादन, खाद्यान्न उत्पादन, निर्यात, आयात, लाभ, मुद्रा-पूर्ति, जनसंख्या, राष्ट्रीय आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य आदि से संबंधित सूचकांक विभिन्न घटनाओं का सापेक्षिक माप प्रस्तुत करते हैं, इसीलिए सूचकांक ‘आर्थिक वायुमापक यंत्र’ (Economic Barometers) कहलाते हैं। प्रो. चैण्डलर के अनुसार," मूल्यों का निर्देशांक आधार वर्ष के औसत मूल्यों की ऊंचाई की तुलना में किसी अन्य समय पर उनकी ऊंचाई को व्यक्त करने वाली संख्या है।"

व्यावहारिक रूप में सूचकांकों से निम्नलिखित लाभ या उपयोगिता प्राप्त होते हैं

1. मुद्रा के मूल्य की माप :- सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन से मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।

2. आर्थिक स्थिति की तुलना :- रहन-सहन संबंधी सूचकांकों की तुलना करके समाज के किसी वर्ग के रहन-सहने में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।

3. मजदूरी निर्धारण में उपयोगिता :-  सूचकांक वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन का सूचक होता है। अतः मजदूरी व वेतन के निर्धारण में इनसे बहुत अधिक सहायता मिलती है।

4. ऋणों के न्यायपूर्ण भुगतान का आधार :-  सूचकांकों की सहायता से मूल्य-स्तर में परिवर्तन का अनुमान लगाया जा सकता है और इसी आधार पर ऋणों की मात्रा में परिवर्तन करके उनका न्यायपूर्ण भुगतान किया जा सकता है। इससे किसी भी पक्ष को असंगत लाभ या हानि नहीं होती।

5. अंतर्राष्ट्रीय तुलना करने में सहायक :- सूचकांकों की सहायता से विभिन्न प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ करना संभव है। विभिन्न देशों की मुद्राओं की क्रय-शक्ति में क्या परिवर्तन जहुए हैं, इसकी जानकारी व तुलना सूचकांकों की सहायता से की जा सकती है।

6. देश के आर्थिक विकास का अनुमान :- उत्पादन सुचकांक देश में उत्पादन संबंधी जानकारी देते हैं, जिनके आधार पर सरकार अपनी औद्योगिक नीति का निर्माण करती हैं । सूचकांकों की सहायता से ही विदेशी व्यापार की स्थिति व देश में पूँजी व विनियोग की मात्रा को ज्ञान होता है।

7. भावी प्रवृत्तियों का अनुमान :- सूचकॉक न केवल वर्तमान परिवर्तनों को बताते हैं बल्कि इनकी सहायता से भविष्य के संबंध में भी महत्त्वपूर्ण अनुमान लगाए जा सकते हैं।

8. जटिल तथ्यों को सरल बनाना :- सूचकांकों की सहायता से ऐसे जटिल तथ्यों में होने वाले परिवर्तनों की माप भी की जा सकती है, जिनकी माप किसी अन्य साधन से संभव नहीं है।

9. नियंत्रण एवं नीतियाँ :- सूचकांकों के आधार पर ही सरकार आर्थिक नियोजन व नियंत्रण संबंधी नीतियाँ बनाती है।

सूचकांकों की सीमाएँ

सबसे अधिक उपयोगी सांख्यिकीय विधि होते हुए भी सूचकांक परिवर्तनों की एक अपूर्ण माप है। इसकी प्रमुख सीमाएँ निम्मलिखित हैं

1. सापेक्ष परिवर्तनों की अनुमानित माप :- सूचकांक निरपेक्ष परिवर्तनों की मापों की अपेक्षा सापेक्ष परिवर्तनों की ही माप करता है और वह भी मात्र अनुमान के रूप में। वास्तव में, सूचकांक केवल सामान्य प्रवृत्तियों की ओर ही संकेत करते हैं।

2. शुद्धता की कमी :- सूचकांक बनाते समय समूह की प्रत्येक इकाई को शामिल नहीं किया जाता है। वरन् इसके लिए कुछ प्रतिनिधि इकाइयों का ही चयन किया जाता है। इससे प्रतिदर्श अपर्याप्त और अप्रतिनिधि परिणामों की सत्यता कम हो जाती है।

3. उद्देश्य में अंतर :- विभिन्न सूचकांक अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करते हैं। एक सूचकांक, जो एक उद्देश्य के लिए उपयुक्त हो सकता है, अन्य उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त हो सकता है।कोई भी सूचकांक सार्व-उद्देशीय नहीं होता।

4. अंतर्राष्ट्रीय तुलना कठिन :- सूचकांकों की सहायता से दो देशों के संबंध में किसी प्रकार की तुलना करना काफी कठिन होता है क्योंकि सूचकांकों की निर्माण-विधि, उनका आधार-वर्ष तथाप्रतिनिधि वस्तुओं की सूची विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होती है।

5. विभिन्न समय में तुलना करना कठिन :- लोगों के द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं में | परिवर्तन होता रहता है। अतः सूचकांकों की सहायता से विभिन्न समयों में तुलना करना संभव नहींहोता है।

6. भार निर्धारण अवैज्ञानिक :- भारित सूचकांकों में भार निर्धारण मनमाना तथा अवैज्ञानिक होता है। भिन्न-भिन्न वर्षों में एक ही वस्तु के भार बदल जाते हैं, जिसके कारण परिणामों में अंतर आ जाता है।

सूचकांक का निर्माण या रचना संबंधी समस्याएँ

सूचकांक रचना संबंधी प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. सूचकांक का उद्देश्य,

2. पदों या वस्तुओं का चुनाव,

3. मूल्य उद्धरण,

4. आधार-वर्ष का चुनाव और सूचकांकों का परिगणन,

5. माध्य का चुनाव,

6. भारांकन विधि।।

1. सूचकांक का उद्देश्य :- सूचकांक रचना से पूर्व उसके उद्देश्य को निश्चित कर लेना चाहिए क्योंकि वस्तुओं के चुनाव, उनके मूल्य उद्धरण तथा भारांकन आदि का निर्धारण सूचकांक के उद्देश्य पर ही निर्भर करता है। उदाहरण के लिए एक सूक्ष्मग्राही मूल्य सूचकांक में केवल उन वस्तुओं का समावेश किया जाना चाहिए, जिनके मूल्यों में तेजी से परिवर्तन होते रहते हैं। इसके विपरीत, सामान्य उद्देश्य वाले मूल्य सूचकांक में अधिकाधिक वस्तुओं का समावेश किया जाना चाहिए ताकि वह समाज में सभी वर्गों का सही-सही प्रतिनिधित्व कर सके।

2. पदों या वस्तुओं का चुनाव :- चूंकि किसी भी एक सूचकांक में समस्त पदों या वस्तुओं का चुना जाना संभव नहीं है; अत: कुछ प्रतिनिधि वस्तुओं का चुनाव कर लिया जाना चाहिए। इस संबंध में उठने वाले स्वाभाविक प्रश्न इस प्रकार हैं

(अ) कौन-सी वस्तुएँ चुनी जाएँ- चुनी जाने वाली वस्तुओं में निम्नलिखित गुण होने चाहिए|

1. वस्तुएँ ऐसी होनी चाहिए, जो अपने वर्ग का सच्चे अर्थों में प्रतिनिधित्व कर सकें।

2. वस्तुएँ ऐसी होनी चाहिए, जो सरलता से पहचानी जा सकें तथा जिनका स्पष्ट रूप से वर्णन किया | जा सके।

3. चुनी हुई वस्तुएँ प्रमापित व एकरूप होनी चाहिए।

4. वस्तुएँ लोकप्रिय होनी चाहिए।

(ब) वस्तुओं की संख्या कितनी हो-सामान्यत :- सूचकांक में जितनी अधिक वस्तुएँ सम्मिलित की जाएँगी, वह उतना ही अधिक शुद्ध व विश्वसनीय माना जाएगा, परंतु बहुत अधिक वस्तुओं को सूचकांक में सम्मिलित करना भी संभव नहीं है। वास्तव में, संख्या का निर्धारण सूचकांक के उद्देश्य, उपलब्ध समय, धन तथा वांछित शुद्धता पर अधिक निर्भर करता है। सामान्य परम्परा यह है कि सूचकांक में 25 से 50 वस्तुओं तक का चयन किया जाता है।

(स) वस्तुएँ किस किस्म की हों :- सूचकांकों में ऐसी किस्म की वस्तुएँ शामिल की जानी चाहिए, जो सबसे अधिक प्रचलित हों; प्रमापित हों तथा गुणों में स्थिर हों।

(द) वस्तुओं का किस प्रकार वर्गीकरण किया जाए :- चुनी हुई वस्तुओं को सजातीयता के आधार पर कुछ निश्चित वर्गों और उपवर्गों में विभाजित कर देना चाहिए, जिससे सम्पूर्ण मूल्य सूचकांक के साथ-साथ वर्ग सूचकांक भी ज्ञात हो जाए।

3. मूल्य उद्धरण :- मूल्य उद्धरण लेते समय निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

(अ) थोक या फुटकर मूल्य सामान्यत :- मूल्य सूचकांकों की रचना में वस्तुओं के थोक मूल्य ही लिए जाते हैं क्योंकि वे फुटकर मूल्यों की अपेक्षा कम परिवर्तनशील होते हैं, स्थान-स्थान के आधार पर उनमें कम अंतर होते हैं और उन्हें ज्ञात करना भी सरल होता है।

(ब) द्रव्य-मूल्य अथवा वस्तु-मूल्य :- सूचकांकों के लिए मूल्य उद्धरण द्रव्य के रूप में ही व्यक्त किए। जाने चाहिए, वस्तुओं के परिमाण के रूप में नहीं। यदि मूल्य उद्धरण वस्तु-मूल्य के रूप में हों तो उन्हें पहले द्रव्य-मूल्यों के रूप में बदल लेना चाहिए।

(स) मूल्य उद्धरणों की संख्या व आवृत्ति :- सूचकांक निर्माण से पूर्व यह भी तय कर लेना चाहिए,कि मूल्य कितनी बार और किस अंतराल में लिए जाने हैं। मूल्य उद्धरणों की आवृत्ति सूचकांक के उद्देश्य, अवधि, उपलब्ध साधन व शुद्धता के स्तर पर निर्भर होती है।

(द) मूल्य उद्धरण प्राप्ति के स्थान व साधन :- मूल्य उन मण्डियों से प्राप्त किए जाने चाहिए, जहाँ पर वस्तुओं का बड़ी मात्रा में क्रय-विक्रय होता हो लेकिन जीवन-निर्वाह व्यय सूचकांक बनाने के लिए उसी स्थान के मूल्यों को प्राप्त करना चाहिए। मूल्य उद्धरण के स्रोत निष्पक्ष, विश्वसनीय तथा उपयुक्त होने चाहिए।

4. आधार-वर्ष का चुनाव और सूचकांकों का परिगणन :- आधार-वर्ष से हमारा आशय उस वर्ष विशेष से होता है, जिसको आधार मानकर हम आर्थिक क्रियाकलापों की तुलना करते हैं। अतः आधार-वर्ष का चुनाव अत्यंत सतर्कतापूर्वक करना चाहिए। यथासंभव आधार-वर्ष

1.सामान्य होना चाहिए,

2.वास्तविक होना चाहिए,

3.उस काल की समस्त सूचनाएँ उपलब्ध होनी चाहिए तथा

4.वह वर्ष अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।

आधार वर्ष निश्चित करने की निम्नलिखित दो रीतियाँ हैं

(अ) स्थिर आधार रीति,.    (ब) श्रृंखला आधार रीति।

(अ) स्थिर आधार रीति :- इस रीति के अनुसार सर्वप्रथम एक सामान्य वर्ष चुन लिया जाता है और फिर अन्य वर्षों के मूल्य-स्तर की तुलना उस स्थिर वर्ष के आधार पर की जाती है। स्थिर आधार-वर्षे दो प्रकार का हो सकता है

1. एकवर्षीय आधार :- एकवर्षीय आधार में जो वर्ष आधार-वर्ष के रूप में चुना जाता है, अन्ये वर्षों के मूल्यों की तुलना उस स्थिर वर्ष के आधार पर की जाती है।

2. बहुवर्षीय मध्य आधार :- कभी-कभी कोई अंक वर्ष ऐसा नहीं होता, जो सामान्य हो और जिसे स्थिर आधार माना जा सके। ऐसी दशा में अनेक ऐसे वर्ष छाँट लिए जाते हैं, जिनमें कम उतार-चढ़ाव हुए हों और फिर उन वर्षों के मूल्य-स्तर का समान्तर माध्य निकालकर उन माध्य मूल्यों को आधार माना जाता है।

आधार- वर्ष को निश्चित कर लेने के उपरांत चालू वर्ष के सूचकांक तैयार करने के लिए मूल्यानुपात निकाले जाते हैं। इसके लिए आधार-वर्ष के मूल्य को 100 मानकर, चालू वर्ष के मूल्यों का निकाला गया प्रतिशत मूल्यानुपात’ कहलाता है। सूत्रानुसार,

5. माध्य का चुनाव :- सूचकांक विभिन्न वस्तुओं के मूल्यानुपातों का माध्य है। अतः यह निर्धारित करना आवश्यक है कि सूचकांक रचना में किस माध्ये का प्रयोग किया जाए। व्यवहार में माध्यिका समान्तर माध्य अथवा गुणोत्तर माध्य में से किसी एक का प्रयोग करना उपयुक्त रहता है।

6. भारांकन विधि :- व्यवहार में भिन्न-भिन्न वस्तुओं का भिन्न-भिन्न सापेक्षिक महत्त्व होता है। उदाहरण के लिए उपभोग के क्षेत्र में लोहे की तुलना में नमक का महत्त्व अधिक है। इसी प्रकार उत्पादन के क्षेत्र में टी०वी० की तुलना में कपड़े का महत्त्व अधिक है। अत: विभिन्न वस्तुओं अथवा पदों के तुलनात्मक महत्त्व को प्रकट करने के लिए किसी सुनिश्चित आधार पर भारों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे सूचकांक ‘भारित सूचकांक कहलाते हैं।

निर्देशांक निर्माण करने की विभिन्न विधियां( Various Methods of Constructing Index Number)

निर्देशांक निर्माण करने की दो विधियां हैं :- अभारित और भारित

अभारित या साधारण निर्देशांक (Unweighted of Simple Index Number)

साधारण निर्देशांक बनाने की निम्नलिखित दो विधियां हैं

(1) सरल समूह विधि (Simple Aggregative Method) :- यह निर्देशांक के निर्माण की सरलतम रीति है। इसके अनुसार वर्तमान वर्ष के विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों के जोड़ को आधार वर्ष के मूल्यों के जोड़ से भाग लेकर 100 से गुणा कर दिया जाता है

`P_{01}=\frac{\Sigma P_1}{\Sigma P_0}\times100`

   P01 = वर्तमान या चालू वर्ष का मूल्य निर्देशांक

   ΣP1 = वर्तमान वर्ष के विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों का योग

   ΣP0 = आधार वर्ष की विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों का योग   

प्रश्न :- निम्न आंकड़ों का सरल समूह रीति से 2010 को आधार वर्ष मानकर 2016 के लिए निर्देशांक ज्ञात कीजिए ? 

वस्तुएं

A

B

C

D

E

2010 में मूल्य

100

90

150

210

50

2016 में मूल्य

130

150

170

230

50

उत्तर :-

वस्तुएं

2010 के मूल्य (P0 )

2016 के मूल्य(P1 )

A

100

130

B

90

150

C

150

170

D

210

230

E

50

50

योग

ΣP0 = 600

ΣP1 =730

`P_{01}=\frac{\Sigma P_1}{\Sigma P_0}\times100`

`=\frac{730}{600}\times100=121.7\%`

अतः 2016 का मूल्य निर्देशांक 121.7% है अर्थात 2016 में 2010 की तुलना में 21.7% मूल्य वृद्धि हुई है

सरल समूह विधि की सीमाएं

यद्यपि सरल समूही रीति द्वारा निर्देशांक की रचना अत्यंत सरल है किन्तु इस विधि की कुछ सीमाएं भी है।इस विधि से निर्देशांक की रचना करते समय इन्हें ध्यान में रखा जानि चाहिए।

1. वस्तुओं को उनकी महत्ता के आधार पर भार नहीं दिया जाता

2. निर्देशांक उस वस्तु से अधिक प्रभावित होता है जिसकी कीमत अधिक होती है।

3. इस रीति द्वारा निर्देशांक की रचना करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी वस्तुओं का मूल्य एक ही इकाई के रूप में व्यक्त किया जाये। यदि विभिन्न वस्तुओं के मूल्य को विभिन्न इकाइयों में व्यक्त किया जाता है तो कीमत निर्देशांक भ्रामक होगा

(2) सरल मूल्यानुपात माध्य विधि (Simple Average of Price Relative Method) :- यह विधि सरल समूह विधि पर एक सुधार है इस विधि के अनुसार प्रचलित वर्ष का निर्देशांक निर्माण करने के लिए सर्वप्रथम प्रत्येक वस्तु का मूल्यानुपात (Price Relative) ज्ञात किया जाता है स्थिर आधार के मूल्य को 100 मानकर निकाला गया प्रचलित वर्ष का प्रतिशत ही मूल्यानुपात कहलाता हैं सूत्र से,

`P_{01}=\frac{\Sigma[\frac{P_1}{P_0}\times100]}N=\frac{\Sigma R}N`

P01 = वर्तमान मूल्य निर्देशांक आधार वर्ष के मूल्यों पर

`\Sigma R=\Sigma\frac{P_1}{P_0}\times100`= मूल्यानुपातों का योग

 N = मदों की संख्या

प्रश्न :- निम्नलिखित आंकड़ों से मूल्य अनुपात विधि द्वारा 2010 को आधार वर्ष मानकर 2014 का सूचकांक ज्ञात करें

वस्तुएं

गेहूं (प्रति क्वि.)

घी (प्रति किग्रा.)

दूध (प्रति लि.)

चावल (प्रति क्वि.)

चीनी(प्रति किग्रा.)

2010 की कीमतें

100

8

2

200

1

2016 की कीमतें

200

40

16

800

6


उत्तर :-

भारित निर्देशांक रचना की विधियां (Methods of Constructing Weighted Index Number)

भारित सूचकांक रचना की दो विधियां हैं :

1. भारित माध्य मूल्य अनुपात विधि (Weighted Average of Price Relatives Method)

1. इस विधि में सबसे पहले मूल्य अनुपात`[\R=\frac{P_1}{P_0}\times100]` ज्ञात किये जाते हैं।

2. प्रत्येक मद का भार मूल्य [ W= P0q0]  तैयार किया जाता है।

3. प्रत्येक मूल्य अनुपात (R) को सम्बन्धित भार W से गुणा करके और फिर सभी मदों के लिए R.W का योग ΣRW प्राप्त किया जाता है

4. गुणनफलों के योग (ΣRW) भारों के योग (ΣW) से भाग दे दिया जाता है सूत्र से 

`P_{01}=\frac{\Sigma RW}{\Sigma W}`

R = मूल्यानुपात `=\frac{P_1}{P_0}\times100`    ;   W= P0q0 = भार मूल्य

प्रश्न :- निम्न आंकड़ों से मूल्यानुपातों का भारित माध्य लेकर समान्तर माध्य के द्वारा निर्देशांक ज्ञात कीजिए

वस्तुएं

P0

q0

P1

गेहूं

4.5

40

4.5

दूध

6.0

30

7.5

चावल

7.5

80

9.0

चीनी

12.0

20

15.0


2. भारित समूही विधि (Weighted Aggregative Method) :- इस विधि में विभिन्न वस्तुओं की मात्रा के अनुसार भार दिया जाता है इस विधि से प्राप्त निर्देशांक को भारित समूही निर्देशांक कहा जाता है अनेक विद्वा

नों ने सूचकांकों का निर्माण करने के लिए भार देने की अलग-अलग विधियों का वर्णन किया है। कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. लैस्पियरे की विधि (Laspeyre’s Method) :- प्रो. लैस्पियरे ने आधार-वर्ष की मात्रा (q0) को दोनों वर्षों के लिये भार (Weight) माना हैं। सूत्रानुसार,

`P_{01}=\frac{\Sigma P_1q_0}{\Sigma P_0q_0}\times100`

P1 = चालू वर्ष का मूल्य  ; P0 = आधार वर्ष  का मूल्य ;  q0  = आधार वर्ष की मात्रा

2. पाश्चे या पाने विधि (Paasche's Method) :- इस विधि के अन्तर्गत चालू वर्ष तथा आधार वर्ष दोनों के लिये चालू वर्ष की मात्रा को भार  माना जाता है

`P_{01}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times100`

 P1 = चालू वर्ष का मूल्य  ; q1 = चालू वर्ष की मात्रा ; P0 = आधार वर्ष का मूल्य

3. फिशर विधि (Fisher's Method) :- इस विधि के अन्तर्गत लैस्पियरे तथा पाशे के सूत्रों का गुणोत्तर माध्य लिया जाता है

P01 =`\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}\times100`

प्रश्न :- फिशर का निर्देशांक आदर्श निर्देशांक क्यों कहलाता है ?

> फिशर का आदर्श सूचकांक ‘समय उत्क्राम्यता परीक्षण पर कैसे खरा उतरता है?

> फिशर का आदर्श सूचकांक ‘तत्त्व उत्क्राम्यता परीक्षण पर कैसे खरा उतरता है?

उत्तर :- निर्देशांक के सूत्र भिन्न भिन्न अर्थशास्त्रियों के अनुसार प्रतिपादित किया गया है। फिशर ने इन सूत्रों पर विस्तृत शोध के बाद यह निष्कर्ष दिया की एक आदर्श निर्देशांक के सूत्र को निम्नलिखित दो परिक्षणों पर खरा उतरना चाहिए। (1) समय उत्क्राम्यता परीक्षण (2) तत्त्व उत्क्राम्यता परीक्षण

फिशर के निर्देशांक इन दोनों परीक्षणों को संतुष्ट करता है। इसलिए इसे आदर्श निर्देशांक कहा जाता है

(1) समय उत्क्राम्यता परीक्षण (Time Reversal Test) :- निर्देशांक का यह पहला परीक्षण है। इसके अन्तर्गत निर्देशांक का सूत्र ऐसा होना चाहिए जो सापेक्षिक विचलन के दोनों समय बिन्दुओं के बीच एक नियत अनुपात व्यक्त करें अर्थात निर्देशांक के सूत्र को समय की दोनों दिशाओं में कार्यशील होना चाहिए।

   P01 . P10 = 1

जहां P01 = आधार वर्ष की अपेक्षा जांच वर्ष में मूल्य अनुपात

       P10 = जांच वर्ष की अपेक्षा आधार वर्ष में मूल्य अनुपात

फिशर के सूत्र में

P01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}`

P10  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_0q_0}{\SigmaP_1q_0}\times\frac{\SigmaP_0q_1}{\Sigma P_1q_1}}` 

`P_{01}.P_{10}=\sqrt{\frac{\Sigma P_1q_0}{\Sigma P_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times\frac{\Sigma P_0q_0}{\Sigma P_1q_0}\times\frac{\Sigma P_0q_1}{\Sigma P_1q_1}}`

`P_{01}.P_{10}=\sqrt1`   

P01 . P10   = 1

अतः फिशर का सूत्र समय उत्क्राम्यता परीक्षण (Time Reversal Test) को संतुष्ट करता है

(2) तत्त्व उत्क्राम्यता परीक्षण (Factor Reversal Test) :- यह दूसरा सूत्र है।इसके अनुसार आधार मूल्य निर्देशांक को परिमाण निर्देशांक से गुणा किया जाए तो सम्बंधित कुल मूल्य निर्देशांक ज्ञात होना चाहिए।

`P_{01}.Q_{01}=V_{01}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0}`     

P01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}` 

Q01  = `\sqrt{\frac{\SigmaP_0q_1}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_1q_0}}`

`P_{01}.Q_{01}=\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times\frac{\Sigma P_0q_1}{\Sigma P_0q_0}\times\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_1q_0}}`

`P_{01}.Q_{01}=V_{01}=\sqrt{(\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0})^2}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_0}`

प्रश्न :- निम्नलिखित आंकड़ों से 2016 का मूल्य निर्देशांक ज्ञात कीजिए

1. लैस्पियरे विधि द्वारा.  2. पाश्चे विधि द्वारा     3. फिशर विधि द्वारा

वस्तुएं

2010(आधार वर्ष)

2016(वर्तमान वर्ष)

कीमत

मात्रा

कीमत

मात्रा

A

5

60

6

100

B

4

30

5

50

C

3

40

3

60

D

2

20

3

40


वस्तुएं

आधार वर्ष 2010

चालू वर्ष 2016

P0q0

P0q1

P1q0

P1q1

P0

q0

P1

q1

A

5

60

6

100

300

500

360

600

B

4

30

5

50

120

200

150

250

C

3

40

3

60

120

180

120

180

D

2

20

3

40

40

80

60

120

 

 

 

 

 

580

960

690

1150


1. लैस्पियरे की विधि`P_{01}=\frac{\Sigma P_1q_0}{\Sigma P_0q_0}\times100` 

`=\frac{690}{580}\times100=118.96`%

2. पाश्चे या पाने विधि - `P_{01}=\frac{\Sigma P_1q_1}{\Sigma P_0q_1}\times100`

`=\frac{1150}{960}\times100=119.79`%

3. फिशर विधि - P01 =`\sqrt{\frac{\SigmaP_1q_0}{\SigmaP_0q_0}\times\frac{\SigmaP_1q_1}{\Sigma P_0q_1}}\times100`

`=\sqrt{\frac{690}{580}\times\frac{1150}{960}}\times100``=\sqrt{1.1896\times1.1979}\times100=119.37`%

निर्देशांक के प्रकार

1. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index Number) :- जो निर्देशांक किसी स्थान के वर्ग विशेष के व्यक्तियों पर पड़ने वाले मूल्य परिवर्तनों के प्रभाव का मा करने के लिए बनाये जाते हैं, उन्हें निर्वाह -व्यय निर्देशांक ते हैं इन्हें उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक भी कहते हैं

  उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक का निर्माण

उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक के निर्माण के निम्नलिखित चरण है

1. उपभोक्ता वर्ग का चयन :- य निर्देशांक बनाते समय सबसे पहले य निश्चित करना पड़ता है कि यह निर्देशांक किस उपभोक्ता वर्ग के लिए बनाया जाना है अध्ययन की आवश्यकतानुसार निर्देशांक बनाने में उपभोक्ता वर्ग का चयन किया जाना आवश्यक है

2. आधार वर्ष का चयन :- आधार वर्ष स्थिरता का वर्ष होना चाहिए तथा आधार वर्ष चालू वर्ष में अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए

3. परिवार बजट की जानकारी :- उपभोक्ता वर्ग के चयन के बाद उस वर्ग के उपभोक्ताओं में से प्रतिनिधि उपभोक्ताओं का प्रतिदर्श (Sample) लेकर उन्हें पारिवारिक बजट संबंधी निम्नांकित सूचनाएं एकत्र की जाती है

(क) वस्तुएं जो चयनित उपभोक्ता वर्ग द्वारा उपभोग की जाती है

(ख) उनके द्वारा उपभोग की जा रही वस्तुओं की मात्राएं

(ग) संबंधित वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें

(घ) वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग पर किया गया व्यय।

4. कीमतों की जानकारी :- चुनी गई वस्तुओं की फुटकर कीमतें उन स्थानों से एकत्रित की जानी चाहिए जहां से चुने हुए वर्ग के अधिकतर लोग सामान खरीदते हैं।

5. भारांकन :- उपभोग की विभिन्न वस्तुओं का उपभोक्ता वर्गों के लिए अलग अलग महत्व होता है इसलिए चुनी हुई वस्तुओं को उनके सापेक्षिक महत्व के अनुसार भार दिये जाने चाहिए।भार दो प्रकार के दिये जा सकते हैं:

(क) मात्र भार :- आधार वर्ष में उपभोग की गई वस्तु की मात्रा के अनुपात में।

(ख) व्यय भार :- आधार वर्ष में प्रत्येक वस्तु पर किये गये कुल व्यय के अनुपात में

    उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक की मान्यताएं

1. जिस वर्ग विशेष के लिए उपभोक्ता मूल्य निर्देशां का निर्माण किया जा रहा है, उस वर्ग के सभी व्यक्तियों की आवश्यकताएं  लगभग समान है

2. आधार वर्ष तथा चालू वर्ष में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है

3. विभिन्न स्थानों पर मूल्य समान है

4. सम्मिलित की जाने वाली वस्तुएं प्रतिनिधि है

   उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक के निर्माण की विधियां

विभिन्न वर्गों के लोगों में विभिन्न वस्तुओं का सापेक्ष महत्व अलग अलग होता है। अतः जीवन निर्देशांक सदैव भारित होना चाहिए। निम्नलिखित विधियों से निर्देशांक का निर्माण कर सकते हैं।

1. सामूहिक व्यय विधि (Aggregative Expenditure Method)

2. पारिवारिक बजट विधि या भारित मूल्यानुपात रीति (Family Budget or Weighted Average of Relatives Method)

   सामूहिक व्यय विधि तथा पारिवारिक बजट विधि द्वारा जीवन-निर्वाह निर्देशांक

सामूहिक व्यय विधि
 
`=\frac{\Sigma P_1q_0}{\Sigma P_0q_0}\times100=\frac{507}{400}\times100=126.8`

पारिवारिक बजट विधि 

`=\frac{\Sigma RW}{\Sigma W}=\frac{50705}{400}=126.8`

उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक का महत्व    

1. कीमत नीति का निर्धारण :- देश की सरकार उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक के आधार पर कीमत नीति का निर्माण करती है इसी आधार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार लाती है सरकार अनिवार्य वस्तुओं का आयात भी कर सकती है

2. मजदूरी नीति का निर्धारण :- उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक के आधार पर ही सरकार अपनी मजदूरी नीति निर्धारित करती है महंगाई भत्तों की दर का निर्णय भी उपभोक्ता मूल्य निर्देशां के आधार पर लिया जाता है

3. मांग का पूर्वानुमान :- उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक में निरंतर वृद्धि अथवा कमी के कारणों का विश्लेषण करके उत्पादक विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं की भावी मांग का पूर्वानुमान लगा सकते हैं

4. वास्तविक मूल्यों का मा :- इस निर्देशां का उपयोग करेन्सी  के वास्तविक मूल्य या मुद्रा की क्रय शक्ति तथा वास्तविक आय आदि की मा के लिए भी किया जाता है

 उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक की रचना में कठिनाईयां

1. जीवन स्तर में अन्तर :- भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों की आवश्यकताएं समान नहीं होती, इसलिए भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग निर्देशांक बनाना पड़ता है

2. कीमतों में अन्तर :- कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जिनकी कीमतों में स्थान-स्थान पर बड़ा अन्तर होता है ; जैसे - मकान का किराया भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न होता है इसलिए एक स्थान का उपभोक्ता मूल्य निर्देशांक दूसरे स्थान पर लागू नहीं किया जा सकता

3. व्यय में अन्तर :- भिन्न-भिन्न वर्गों के लोग वस्तुओं पर एक ही अनुपात में व्यय नहीं करते, अतः यह निर्देशां किसी एक वर्ग के बारे में ही सूचना नहीं दे पाता यही नहीं, एक ही वर्ग के लोग एक ही समय में विभिन्न वस्तुओं पर एक ही अनुपात में व्यय नहीं करते प्रत्येक मनुष्य का व्यय बहुत कुछ उसकी आदत, समय, रुचि और परिस्थितियों

पर निर्भर करता है इसलिए यह सोचना भी ठीक नहीं है कि एक निर्देशांक पूरे वर्ग के लिए ठीक होगा

2 थोक मूल्य निर्देशांक (Wholesale Price Index, WPI) :- थोक मूल्य निर्देशांक वह निर्देशांक है जो थोक बाजार में बेची जाने वाली वस्तुओं की थोक कीमतों में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तनों को मापते हैं

   थोक मूल्य निर्देशांक का उपयोग या महत्व

1. पूर्वानुमान में सहायक :- थोक कीमत निर्देशांक का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मांग तथा पूर्ति सम्बन्धी अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है पिछले वर्षों के कीमत निर्देशांक के आधार पर भविष्य में अत्यधिक मांग या अत्यधिक पूर्ति का अनुमान लगाया जा सकता है

2. मौद्रिक तथा वास्तविक मूल्यों का निर्धारण :- थोक मूल्य निर्देशां का प्रयोग समूहों में वास्तविक परिवर्तन को निर्धारित करने के लिए कर सकते हैं, जैसे- राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय व्यय, पूंजी निर्माण आदि राष्ट्रीय आय का अर्थ किसी वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य से है यदि हम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों की गणना उस वर्ष के प्रभावी मूल्यों के अनुसार करें तो हम वर्तमान मूल्यों पर राष्ट्रीय आय का निर्धारण कर सकते हैं निम्नलिखित सूत्र की सहायता से मौद्रिक समुच्चय और वास्तविक समुच्चय (अथवा राष्ट्रीय आय वास्तविक परिवर्तन) की गणना की जा सकती है:

3. मुद्रास्फीति की दर  का सूचक :- थोक कीमत निर्देशांक का प्रयोग किसी देश में मुद्रा स्फीति की दर का अनुमान लगाने के लिए भी किया जाता है। यह उस दर को बताती है जिसमें किसी अवधि में कीमतों में बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है

मुद्रास्फीति की दर क्या है

 थोक मूल्य निर्देशांक प्रत्येक सप्ताह के लिए तैयार किया जाता है। यदि प्रथम सप्ताह में  थोक मूल्य निर्देशांक P1 है तथा द्वितीय सप्ताह में थोक कीमत निर्देशांक P2 है तो प्रथम तथा द्वितीय सप्ताह के बीच मुद्रास्फीति की दर का निम्न सूत्र से अनुमान लगाया जा सकता है

`=\frac{P_2-P_1}{P_1}\times100`

या`=[\frac{P_2}{P_1}-1]\times100`

या`=[(\frac{P_2}{P_1}\times100)-100]`

प्रश्न :- वर्ष 2011-12 में थोक मूल्य निर्देशां (2004-05=100) 235 था जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 258 स्तर पर पहुंच गया। मुद्रास्फीति की दर की गणना कीजिए

उत्तर :- थोक मूल्य निर्देशांक के आधार पर मुद्रास्फीति की दर की गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है :

मुद्रास्फीति की दर 

`=\frac{258-235}{235}\times100=\frac{23}{235}\times100=9.787%`

या, मुद्रास्फीति की दर

`=[(\frac{258}{235}\times100)-100]`

=109.787-100=9.787%

स्पष्ट है कि थोक मूल्य निर्देशांक अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति को प्रकट करते हैं।

3. औद्योगिक उत्पादन का निर्देशांक (Index of Industrial Production) :- औद्योगिक उत्पादन  निर्देशांक वे निर्देशांक है जो एक निश्चित समयावधि के दौरान औद्योगिक उत्पादन में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाते है।भारत में औद्योगिक उत्पादन के अनेक निर्देशांकों का संकलन सरकारी व गैर सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है इसमें सबसे अधिक प्रचलित निर्देशांक औद्योगिक उत्पादन के सामान्य निर्देशांक है भारत में औद्योगिक उत्पादन के निर्देशांक केंद्रीय सांख्यिकी संगठन तथा औद्योगिक सांख्यिकीय शाखा द्वारा प्रकाशित किया जाता है औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक की पुरानी श्रेणी का आधार वर्ष 1993-94 था किन्तु अब नई श्रेणी प्रकाशित हुई है जिसका आधार वर्ष 2004-05 है।

  औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक का निर्माण

 औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक के निर्माण में निम्नलिखित कदम उठाये जाते हैं :

1. उद्योगों का वर्गीकरण :- भारत में औद्योगिक निर्देशांक का निर्माण करने के लिए उद्योगों को निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

   (अ) खनन (ब) विनिर्माण () बिजली

2. उद्योगों के उत्पादन सम्न्धी आंकड़े :- उपर्युक्त उद्योगों के उत्पादन  सम्बन्धी आंकड़े मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक आधार पर एकत्रित किये जाते हैं

3. भारांकन :- विभिन्न उद्योगों का भारांकन किया जाता है विभिन्न उद्योगों को दिये ये भार उनके शुद्ध उत्पादन के मूल्य पर आधारित होते हैं और उनका राष्ट्रीय आय में योगदान होता है

 विभिन्न वस्तुओं को उनके सापेक्षिक महत्व के आधार पर भार प्रदान किये जाते हैं भारत में ये भार निम्न प्रकार के हैं :

वर्ग

भार

1. खनन

10.47

2. विनिर्माण

79.36

3. बिजली

10.17

कुल योग

100

4. औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक की गणना के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है :-

औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक`=\frac{\Sigma RW}{\Sigma W}`

`=\frac{\Sigma(\frac{q_1}{q_0}\times100)W}{\Sigma W}`

क्योंकि `R=\frac{q_1}{q_0}\times100`

यहां ,  q1 = चालू वर्ष में उत्पादन , q0 = आधार वर्ष में उत्पादन , W = भार

प्रश्न :- निम्न निर्देशांक के आधार पर औद्योगिक उत्पाद निर्देशांक का निर्माण कीजिए

औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक

`=\frac{\Sigma RW}{\Sigma W}=\frac{18700}{100}=187`% 

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