राष्ट्रीय आय : राष्ट्रीय आय की मौलिक संकल्पनाएँ और इसकी गणना की विधियाँ, उदाहरण के लिए जी.डी.पी.,जी.एन.पी.,एन.डी.पी.,जी.एस.डी.पी.,एन.एस.डी.पी., डी.पी.पी., नियत और चालू मूल्य, लागत मूल्य आदि पर ।
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अर्थ एवं परिभाषाएं
राष्ट्रीय
आय किसी देश की प्रगति का सूचक है। राष्ट्रीय आय से आशय किसी देश में एक वर्ष की
अवधि में उत्पादित होने वाली समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के जोड़
से है जिसे ह्रास को घटाकर एवं विदेशी लाभ को जोड़कर निकाला जाता है। वास्तव में,
राष्ट्रीय आय एक दिए हुए समय में किसी अर्थव्यवस्था की उत्पादन शक्ति को मापती है।
राष्ट्रीय
आय के सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों के मत भिन्न-भिन्न हैं। राष्ट्रीय आय की
परिभाषाएं विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से दी है जो निम्नलिखित हैं:
प्रो.
अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार, "देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूँजी
द्वारा कार्य करने पर प्रतिवर्ष विभिन्न भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं और सेवाओं का जो
उत्पादन होता है उन सभी के शुद्ध योग को देश की वास्तविक वार्षिक आय, आगम या
राष्ट्रीय लाभांश कहते हैं।'
प्रो.
ए.सी. पीगू के अनुसार, "राष्ट्रीय आय किसी समाज की वह वास्तविक आय है जिसमें
विदेशों से प्राप्त आय भी शामिल है तथा जिसे मुद्रा में मापा जा सके।"
भारतीय
राष्ट्रीय आय समिति (1949) के अनुसार, “राष्ट्रीय आय के प्राक्कलन के लिए किसी
अवधि विशेष में उत्पन्न वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा को दो बार गिने बिना मापा
जाता है।"
उपरोक्त
परिभाषाओं के आधार पर राष्ट्रीय आय की विशेषताओं को निम्नलिखित रूप से बताया जा
सकता है:
• राष्ट्रीय आय वस्तुओं एवं
सेवाओं के मौद्रिक मूल्य का योग है,
• राष्ट्रीय आय किसी एक देश
की एक वर्ष की आय है,
• राष्ट्रीय आय में पूँजी की
घिसावट को घटाया एवं विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को जोड़ा जाता
है।
• राष्ट्रीय आय में एक साधन
को एक बार ही गिना जाता है।
• राष्ट्रीय आय एक माप है जो
धन में नापी जाती है।
इस
प्रकार, राष्ट्रीय आय के अन्तर्गत कुल उपभोग व्यय (C), कुल विनियोग (I), कुल
सार्वजनिक व्यय (G), तथा विदेशों से प्राप्त विशुद्ध आय (जो निर्यातों के मूल्य
(E), से आयातों के मूल्य (M), को घटाने से प्राप्त होती है) शामिल है। इस प्राप्त
राशि में से पूँजी ह्रास को घटा दिया जाता है।
संक्षेप
में, राष्ट्रीय आय = C+I+G- D+ E-M
राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं
राष्ट्रीय
आय की माप के लिए विभिन्न अवधारणाओं का प्रयोग किया जाता है। इन अलग अलग अवधारणाओं
का उपयोग इस बात पर निर्भर करता है कि राष्ट्रीय आय के आंकड़ों का प्रयोग किस
उद्देश्य हेतु किया जाएगा। यह अवधारणाएं निम्नलिखित हैं:
1. सकल राष्ट्रीय
उत्पाद (Gross National Product-GNP): किसी देश
में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित होने वाली समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार
मूल्य पर जोड़ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसमें विदेशों से प्राप्त
शुद्ध आय भी शामिल होती है।
गणितीय
रूप में,
सकल
राष्ट्रीय उत्पाद (GNP)= C + I+G+E-M
2. सकल घरेलू
उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) : जब सकल
राष्ट्रीय उत्पाद में से विदेशों से प्राप्त आय को घटा दिया जाता है तो इस प्राप्त
योग मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
गणितीय
रूप में,
सकल
घरेलू उत्पाद (GDP) = GNP - Income from Abroad
3. शुद्ध घरेलू
उत्पाद (Net Domestic Product-NDP) : शुद्ध घरेलू उत्पाद को सकल घरेलू उत्पाद से मूल्य ह्यस को घटा कर
(अथवा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
में से विदेशी आय को घटा कर) प्राप्त किया जाता है। गणितीय रूप
में.
शुद्ध
घरेलू उत्पाद (NDP)- GDP - Depreciation
4. बाजार मूल्य
पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product at Market Price-NNPMP): बाजार
मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करने के लिए सकल
राष्ट्रीय उत्पाद में से मूल्य ह्रास को घटा दिया जाता है। शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
में उत्पादित वस्तुओं के बाजार मूल्य को लिया जाता है जिसमें अप्रत्यक्ष कर एवं
सब्सिडी के प्रभाव सम्मिलित हैं अतः इसे बाजार मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
कहा जाता है।
गणितीय
रूप में,
बाजार
मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)=GNP- Depreciation
5. साधन लागत
पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय (Net National Product at Factor
Cost-NNPFC or National Income) : जब शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
की गणना साधन लागत पर की जाती है तो इसे ही राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसकी गणना बाजार
मूल्य पर आंकलित शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अप्रत्यक्ष करों को घटाकर एवं सब्सिडी
को जोड़कर की जाती है। इस प्रकार से ज्ञात मूल्य ही साधन-लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
अथवा राष्ट्रीय आय कहलाता है।
गणितीय रूप में,
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय
उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय (NNPFC) or National Income) = NNPMP -
Indirect Taxes + Subsidies
6. वैयक्तिक
आय (Disposable Income - DI) : राष्ट्रीय आय की यह अवधारणा देश में क्रय-शक्ति
की माप करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। वैयक्तिक आय वह आय हैं जो वास्तव में देश
की जनता द्वारा एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त की जाती हैं।
वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय
- निगमों की अवितरित लाभांश - निगम कर - सामाजिक सुरक्षा योजना के लिए किए गए भगुतान + सरकारी हस्तान्तरण भुगतान + व्यापारिक हस्तान्तरण भुगतान
7. व्यय योग्य
वैयक्तिक आय (Disposable Personal Income - DI) : व्यय-योग्य वैयक्तिक
आय से तात्पर्य जनता के पास शुद्ध आय से है जिसे जनता व्यय कर सकती है। वैयक्तिक आय
में से वैयक्तिक प्रत्यक्ष करों को घटाकर व्यय-योग्य वैयक्तिक आय को ज्ञात किया जाता
है।
व्यय – योग्य वैयक्तिक आय
= वैयक्तिक आय - वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
8. सकल राज्य
घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product/GSDP) : जीएसडीपी
एक आर्थिक संकेतक है जो राज्य के कुल उत्पादन को मापता है। राज्य के प्रत्येक व्यक्ति
और उद्योग द्वारा किया गया उत्पादन भी इसमें शामिल होता है।
9. शुद्ध राज्य
घरेलू उत्पाद (Net State Domestic Product/NSDP): शुद्ध राज्य घरेलू
उत्पाद किसी राज्य की अर्थव्यवस्था की वह जीडीपी है जिससे राज्य के प्रत्येक व्यक्ति
और उद्योग द्वारा किया गया उत्पादन में से मूल्य कटौती को घटाकर प्राप्त किया जाता
है।
10. वितरित शुल्क
भुगतान (Delivered Duty Paid/DDP) : वितरित शुल्क भुगतान एक तरह
का लेन-देन है। जहां विक्रेता की पूरी जिम्मेदारी होती है, जब तक माल का उत्पाद खरीददार
तक नहीं पहुँचता। विक्रेता किसी उत्पाद के परिवहन के साथ जुड़े कुल लागतों का भी भुगतान
करता है, इसमें शिपिंग लागत, निर्यात और आयात शुल्क, बीमा और उत्पाद के शिपिंग के दौरान
हुए किसी भी अन्य खर्चे के लिए भुगतान करना शामिल है।
जीडीपी
की वास्तविक वृद्धि (प्रतिशत)
2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | ||
---|---|---|---|---|
Q1 | Q2 | |||
सकल घरेलू उत्पाद | 7.2 | 6.8 | 5.0 | 4.5 |
कुल उपयोग | 8.6 | 8.3 | 4.1 | 6.9 |
सरकारी उपयोग | 15.0 | 9.2 | 8.8 | 15.6 |
निजी उपयोग | 7.4 | 8.1 | 3.1 | 5.1 |
अचल निवेश | 9.3 | 10.0 | 4.0 | 1.0 |
माल और सेवाओं का निर्यात | 4.7 | 12.5 | 5.7 | -0.4 |
माल और सेवाओं का आयात | 17.6 | 15.4 | 4.2 | -6.9 |
राष्ट्रीय आय
की माप
राष्ट्रीय आय को मापने की चार विधियां हैं : (1) उत्पादन गणना विधि (Census of Production Method), (2) आय गणना विधि (Census of Income Method), (3) व्यय गणना विधि (Census of Expenditure Method) तथा (4) सामाजिक लेखांकन विधि (Social Accounting Method)।
उत्पादन गणना
विधि
इस विधि में राष्ट्रीय आय की
माप उत्पादन के आधार पर की जाती है। इसके अन्तर्गत अर्थव्यवस्था को विभिन्न भागों अथवा
क्षेत्रों में बाँट लिया जाता है, जैसे प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, पशुपालन, मात्स्यिकी,
वानिकी आदि), द्वितीयक क्षेत्र (उद्योग, निर्माण, गैस तथा विद्युत उत्पादन आदि) तथा
तृतीयक क्षेत्र (बैंक, बीमा, परिवहन, संचार, व्यापार, होटल, लोकप्रशासन, सामाजिक एवं
वैयक्तिक सेवाएं आदि)। इसके बाद अर्थव्यवस्था के इन भागों एवं क्षेत्रों में एक वर्ष
में उत्पादित होने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं का बाजार मूल्य पर योग कर लिया जाता है।
इसी योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
उत्पादन गणना विधि से राष्ट्रीय आय की माप करने में इस बात को ध्यान में रखना होता है कि एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं की गणना बार-बार न की जाये। इस दुहरी गणना से बचने के लिए मध्यवर्ती पदार्थों के मूल्य को सम्मिलित न करके केवल अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों को ही शामिल किया जाता है। शुद्ध राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने के लिए उत्पादन के मूल्य ह्मस को घटा दिया जाता है परन्तु विदेशी आय को जोड़ दिया जाता है।
आय गणना विधि
आय गणना विधि में राष्ट्रीय
आय की गणना विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत उत्पादन के साधनों को एक वर्ष में उनकी सेवाओं
के बदले में प्राप्त होने प्रतिफल का योग करके की जाती है। इसके लिए आय के विभिन्न
वर्ग किये जाते हैं, जैसे-मजदूरी एवं वेतन, व्यक्तियों की किराए की आय, कम्पनियों के
लाभ, ब्याज की आय, गैर-कम्पनी व्यवसायों की आय आदि। इन सभी वर्गों को एक वर्ष में प्राप्त
होने वाली आय-राशियों को जोड़कर राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है। यह आय विधि के प्रयोग
का विशेष लाभ है कि इससे देश में विभिन्न वर्गों में आय के वितरण की जानकारी प्राप्त
की जा सकती है।
इस विधि को अपनाने में विभिन्न
बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे- गैर-उत्पादन कार्यों से सम्बन्धित भुगतान (उदाहरण-वृद्धावस्था
पेन्शन,निर्धनों को सहायता भुगतान आदि) को इसमें न जोड़ा जाए, दोहरा मूल्यांकन न किया
जाए, मुद्रा में भुगतान न की जाने वाली सेवाओं (उदाहरण- गृहणी की सेवाएं) को सम्मिलित
न किया जाए, गैर-कानूनी रूप से प्राप्त आय को शामिल न किया जाए।
व्यय गणना विधि
व्यय गणना विधि को उपभोग बचत
विधि भी कहा जाता है। इस विधि में राष्ट्रीय आय की माप करने के लिए देश द्वारा किए
जाने वाले व्यय का योग करके उसमें बचत या निवेश की राशियों को जोड़ दिया जाता है। इन
सबके योग से जो राशि प्राप्त होती है उसे राष्ट्रीय आय माना जाता है। यह विधि इस तथ्य
पर आधारित है कि एक व्यक्ति अपनी कुल आय का कुछ भाग उपभोग पर व्यय करता है तथा शेष
बचत (निवेश) करता है। अतः राष्ट्रीय आय कुल उपभोग और कुल बचतों का योग होती है। इस
विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए उपभोक्ताओं की आय तथा उनकी बचत से सम्बन्धित
सही आंकड़े उपलब्ध होना आवश्यक है।सामान्यतः सही आंकड़ें आसानी से प्राप्त न होने
के कारण इस विधि का अधिक उपयोग नहीं किया जाता है।
सामाजिक लेखांकन
विधि
राष्ट्रीय आय की माप की सामाजिक
लेखांकन विधि का प्रतिपादन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड स्टोन ने किया
था। इस विधि से राष्ट्रीय आय की माप के साथ ही देश की सम्पूर्ण आर्थिक संरचना, क्षेत्रीय
अन्तर्सम्बन्ध एवं आर्थिक क्रियाओं का विस्तृत ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इस विधि में
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को पांच भागों में विभाजित किया गया है-अन्तिम उपभोक्ता, उत्पादन
संस्थान, वित्तीय संस्थान, बीमा एवं सामाजिक सुरक्षा संस्थान तथा अन्य। इन प्रत्येक
भाग के लिए चार प्रकार के खाते रखने होते हैं-संचालन खाता, पूँजी खाता, संचित खाता
एंव चालू खाता। इन सभी वर्गों के विभिन्न खातों का योग करने पर राष्ट्रीय आय प्राप्त
हो जाती है। सामाजिक लेखांकन विधि का प्रयोग तभी सम्भव है जब सभी संस्थान, व्यक्ति
एवं सरकार आने लेन-देन का सही हिसाब रखें। ऐसा न करने पर इस विधि का प्रयोग सीमित हो
जाता है।
भारत जैसे विकासशील देश में
राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए उत्पादन गणना विधि एवं आय गणना विधि का सम्मिलित
रूप से प्रयोग किया जाता है।
राष्ट्रीय आय
को मापने में कठिनाईयां
राष्ट्रीय आय का प्रत्येक देश
के लिए अत्यधिक महत्व है परन्तु इसको मापने में विभिन्न प्रकार की व्यावहारिक कठिनाईयां
आती हैं, यह कठिनाईयां निम्नलिखित हैं-
मुद्रा में भुगतान
न किया जाना : राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा में की जाती है, परन्तु उत्पादित
की जाने वाली अनेक वस्तुएं एवं सेवाएं इस प्रकार की होती हैं जिनका मूल्य मुद्रा में
व्यक्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक गृहिणी द्वारा अपने परिवार के लिए
दी गई सेवाएं, कार के मालिक द्वारा स्वयं कार चलाना आदि। भारत में यह सेवाएं राष्ट्रीय
आय में शामिल नहीं की जाती, जिससे राष्ट्रीय आय के आंकड़े सही प्रतीत नहीं होते।
अमौद्रिक विनिमय
:
देश में राष्ट्रीय आय का सही अनुमान लगाने के लिए उस देश में अर्थव्यवस्था का संगठित
होना एवं वस्तुओं एवं सेवाओं का मुद्रा में विनिमय आवश्यक है। परन्तु भारत में स्थिति
भिन्न है। भारत एक ऐसा देश है जहां की अधिकांश जनसंख्या गांवों में निवासित है और गांव
में क्रय-विक्रय में मुद्रा का प्रयोग सीमित मात्रा में होता है। अतः यह ज्ञात करना
कठिन है कि कितने उत्पादन का इस प्रकार विनिमय हुआ है। ऐसे में राष्ट्रीय आय का सही अनुमान
लगाना कठिन है।
विदेशी कम्पनियों
द्वारा देश में उत्पादन करना : एक देश में विदेशी कम्पनियों द्वारा कार्य
करने पर यह समस्या आती है कि इन कम्पनियों की आय को किस देश की राष्ट्रीय आय में शामिल
किया जाए। सामान्यतः तो विदेशी कम्पनियों की आय उस देश की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित की
जाती है जिस देश में यह उत्पादन करती हैं, परन्तु व्यावहारिक रूप में यह विदेशी कम्पनियां
उपार्जित लाभ को अपने देश में भेजने के लिए प्रयासरत रहती हैं।
स्वयं के उपभोग
हेतु रखी गई वस्तुएं : स्वयं के उपभोग हेतु रखी गई वस्तुएं भी राष्ट्रीय
आय की गणना में कठिनाई उत्पन्न करती हैं। उत्पादितकी जाने वाली वस्तुओं का एक भाग
ऐसा होता है जो विक्रय हेतु बाजार में नहीं जाता है बल्कि इसे उत्पादक अपने उपभोग के
लिए रख लेता है। इससे इन वस्तुओं का बाजार मूल्य ज्ञात करने में कठिनाई होती है। कृषि
उपज के सम्बन्ध में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है।
सही एवं पर्याप्त
आंकड़ों का अभाव : राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए अनेक प्रकार
के आंकड़ों की आवश्यकता होती है, जैसे-उत्पादन लागत, बचत, उपभोग व्यय, कार्यशील जनसंख्या,
मजदूरी, लाभ आदि। परन्तु, भारत जैसे विशाल एवं विकासशील देश में आंकड़ों का संग्रह अधिक
प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा न किए जाने के कारण सही एवं पर्याप्त आंकड़े प्राप्त
नहीं हो पाते हैं।
जनसहयोग की कमी
:
जनसहयोग की कमी भी राष्ट्रीय आय की गणना में कठिनाई उत्पन्न करती है। राष्ट्रीय आय
से सम्बन्धित आंकड़ों के संग्रह के समय देश के लोगों द्वारा आयकर लगने के भय अथवा सही
हिसाब न रखने के कारण सही सूचनाएं नहीं दी जाती हैं जिससे राष्ट्रीय आय के सही आंकड़े
प्राप्त नहीं हो पाते हैं।
मध्यवर्ती एवं
अन्तिम पदार्थों का निर्धारण करना कठिन : राष्ट्रीय आय में मध्यवर्ती
को शामिल न करके केवल अन्तिम वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है। परन्तु, कभी कभी मध्यवर्ती
वस्तु अथवा अन्तिम वस्तु निर्धारण करना कठिन हो जाता है। अनेक पदार्थ ऐसे होते हैं
जो एक रूप में तो मध्यवर्ती है परन्तु दूसरे रूप में अन्तिम वस्तु हैं, जैसे गेहूं
का आटा आदि।
राष्ट्रीय आय
की प्रवृत्तियां
भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय
आय का अनुमान लगाने का श्रेय दादाभाई नौरोजी को जाता है। उन्होंने 1868 ई. में अपनी
पुस्तक "Poverty and Un-British Rule in India" में प्रति व्यक्ति आय 20
रुपये बताई थी। बाद में, फिण्डले शिराज ने 1911 में प्रति व्यक्ति आय 49 रुपये, वाडिया
एवं जोशी ने 1913-14 में 44.30 रुपये, डॉ. वी.के.आर.वी. राव ने 1925-1929 की अवधि में
76 रूपये प्रति व्यक्ति वार्षिक आय बताई।
स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार
ने देश में राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के उद्देश्य से 1949 ई. में प्रो. पी.सी.
महालनोबिस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया जिसमें प्रो. डी.आर,
गाडगिल और डॉ. वी.के.आर.वी. राव। इस समिति ने अपनी प्रथम रिपोर्ट (1951) में
1948-49 के लिए देश की कुल राष्ट्रीय आय 8,650 करोड़ रुपये तथा प्रति व्यक्ति आय
246.9 रुपये आंकलित की। बाद में, राष्ट्रीय आय के आंकड़ों का संकलन करने के लिए सरकार
ने केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन की स्थापना की। इस संगठन ने स्थापना के बाद नियमित रूप
से भारत की राष्ट्रीय आय की गणना का कार्य प्रारम्भ किया।
भारत में राष्ट्रीय आय की अद्यतन
प्रवृत्तियों अथवा विशेषताओं को निम्नलिखित प्रकार से बताया जा सकता हैं:
•
वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान सांकेतिक शुद्ध राष्ट्रीय आय (एनएनआई), जो राष्ट्रीय
आय (वर्तमान मूल्यों पर) के रूप में भी जानी जाती है, के बढ़कर 181.10 लाख करोड़ रुपये
हो जाने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में यह आंकड़ा 168.37 लाख करोड़ रुपये
था। वित्तीय वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान
लगाया गया है, जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि दर 11.3 प्रतिशत थी।
•
वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान वास्तविक अर्थों (2011-12 के मूल्यों पर) में प्रति
व्यक्ति आय के बढ़कर 96,563 रुपये हो जाने का अनुमान लगाया गया है, जबकि वित्तीय वर्ष
2018-19 में यह आंकड़ा 92,565 रुपये था। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान प्रति व्यक्ति
आय की वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि
दर 5.6 प्रतिशत थी।
•
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत की राष्ट्रीय आय में अर्थव्यवस्था के प्राथमिक
क्षेत्र का योगदान कम हुआ है जबकि द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र के योगदान में वृद्धि
हुई है। वर्ष 1950-51 से 2007-08 की अवधि में देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक
क्षेत्र का योगदान 56.5 प्रतिशत से कम होकर 19.8 प्रतिशत रह गया जबकि इसी अवधिमें
द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का योगदान क्रमशः 13.6 प्रतिशत एवं 29.9 प्रतिशत से बढ़कर
24.5 प्रतिशत एवं 55.7 प्रतिशत हो गया।
•
भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण की दर में भी तेजी आई है। वर्ष 1950 51 में सकल घरेलू
बचत की दर एवं विनियोग की दर क्रमशः 8.6 प्रतिशत एवं 8.4 प्रतिशत थी जो वर्ष 2007
08 में बढ़कर क्रमश: 37.7 प्रतिशत एवं 39.1 प्रतिशत हो गई हैं।
राष्ट्रीय आय
और भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय
आय का अत्यधिक महत्व है। यह देश के विकास का प्रमुख संकेतक है। अर्थव्यवस्था के सभी
अंग किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय आय का निरन्तर सृजन करते हैं और राष्ट्रीय आय देश
की अर्थव्यवस्था का सूचक बनकर सामाजिक आय का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है। भारत की अर्थव्यवस्था
के लिए राष्ट्रीय आय निम्नलिखित प्रकार से महत्वपूर्ण है :
• राष्ट्रीय आय देश की आर्थिक
प्रगति की प्रमुख माप है। इसके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि देश किस गति से विकास
कर रहा है।
• राष्ट्रीय आय अर्थव्यवस्था
का सही एवं विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती हैं। इससे देश में विभिन्न क्षेत्रों, संसाधनों
आदि की दशा एवं दिशा का ज्ञान मिलता है।
• राष्ट्रीय आय से देश के विभिन्न
वर्गों में आय के वितरण का अनुमान लगाया जा सकता है। इससे प्रति व्यक्ति आय एवं लोगों
के जीवन-स्तर का अनुमान मिल सकता है।
• राष्ट्रीय आय के आंकड़ों
द्वारा देश में आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है जिससे सन्तुलित आर्थिक विकास
सम्भव होता है।
• राष्ट्रीय आय के आंकड़ों की सहायता से विभिन्न वर्गो, क्षेत्रों एवं राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति की तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
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