Class XI (शाश्वती) दशमः पाठः कन्थामाणिक्यम्

Class XI (शाश्वती) दशमः पाठः कन्थामाणिक्यम्

दशमः पाठः कन्थामाणिक्यम्

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1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्

(क) रामदत्तः वचोभिः प्रसादयन् स्वामिनं किं पृच्छति ?

उत्तर: सः स्वामिनं पृच्छति यत् शीतलमानयानि किञ्चित् उष्णं वा ।

(ख) भवानीदत्तस्य स्वभावः कीदृशः वर्णितः?

उत्तर: भवानीदत्तस्य स्वभावः पूर्वं तु गुणवतां विरूद्धः आसीत् परं अन्ते तेषां पक्षे संजातः ।

(ग) भवानीदत्तस्य पत्न्याः नाम किम् अस्ति?

उत्तर: भवानीदत्तस्य पत्नयाः नाम रत्ना अस्ति।

(घ) सोमधरस्य गृहं कीदृशम् आसीत् ?

उत्तर: सोमधरस्य गृहं नातिदीर्घम्, अस्वच्छवीथिकायां स्थितं, न मार्जितं न चालङ्कृतमासीत्।

(ङ) कयो: मध्ये प्रगाढा मित्रता आसीत् ?

उत्तर: सिन्धुसोमधरयोः मध्ये प्रगाढ़ा मित्रता आसीत्।

(च) कस्य विलम्बेन आगमने रत्ना चिन्तिता?

उत्तर: सिन्धोः विलम्बेन आगमने रत्ना चिन्तिता अभवत्।

(छ) रत्ना राजपथविषये किं कथयति ?

उत्तर: सा कथयति यत् राजपथि मद्यपा वाहनचालकाः अति तीव्रवेगेन यानं चालयन्ति ।

(ज) कः प्रतिदिनं पदाति: गमनागमनं करोति स्म ?

उत्तर: सोमधरः प्रतिदिनं पदातिः गमनागमनं करोति स्म ।

(झ) कः वैद्यं दूरभाषेण आह्ह्वयति ?

उत्तर: भवानीदत्तः दूरभाषेण वैद्यं आह्वयति ।

(ञ) सोमधरः कथं धनहीनोऽपि सम्माननीयः?

उत्तर: यः गुणवान् सः सभ्यः धार्मिकः सम्माननीयः भवति । अतः सोमधरः गुणवान् अस्ति, अतः सम्माननीयः।

 

2. हिन्दीभाषया आशयं व्याख्यां वा लिखत

( क ) किं वृत्तम् ? अद्यागतप्राय एव वात्याचक्रम् उत्थापयसि ? रत्नायाः अनेन वाक्येन भवानीदत्तस्य चरित्रं उद्घाटितं भवति ।

उत्तर: भवानीदत्त जब अपने सेवकों के ढीले कार्य से अप्रसन्न होकर उन पर जैसे ही क्रोध से गर्जते है तो उनके व्यवहार पर रत्ना इस प्रकार कहती है- ‘क्या बात है? आज तो आते ही तूफान उठा दिया ।' रत्ना के इस कथन से भवानीदत्त का चरित्र स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आता है। यह स्पष्ट होता है कि भवानीदत्त किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित, क्रोधी तथा पुरातनपंथी व्यक्ति है। वह नही चाहता है कि उसका पुत्र एक बड़े वकील का बेटा होते हुए एक निर्धन सब्जी बेचने वाले के साथ रहे, उससे मित्रता करे।

(ख) पश्य, इतोऽग्रे तस्यामसभ्यवसतौ न गमिष्यसि ।

उत्तर: भवानीदत्त अपने पुत्र सिन्धु से सोमधर के विषय में पूरी जानकारी लेने के पश्चात् अन्तिम आदेश के रूप में उसे निर्देश देते हैं कि वह आज के बाद उस असभ्य गँवार लोगों की बस्ती में कभी नहीं जायेगा। भवानीदत्त नहीं चाहता उसका इकलौता पुत्र उनकी संगति में पड़कर गँवार हो जाये।

(ग) भवान् न जानाति राजपथवृत्तम् ।

उत्तर: सिन्धु विद्यालय से अपने घर नहीं आया है। पिता भवानीदत्त तथा माता रत्ना दोनों चिन्तित हैं। वे विद्यालय की प्राचार्या को फोन करते हैं। प्राचार्या द्वारा जानकारी मिलती है कि वहाँ से सवा तीन बजे छुट्टी हो गई है तथा सभी बच्चे जा चुके हैं। ऐसी स्थिति में सिन्धु के न आने पर रत्ना बेचैन होकर अपने पति भवानीदत्त से कहती है- 'आप नहीं जानते आजकल सड़कों की क्या स्थिति है। सड़कें व्यस्त रहती हैं तथा बहुत से वाहन चालक मदिरापान करके वाहन चलाते हैं। वे तेज गति से वाहन चलाते हैं। उन्हें किसी के मरने या जीने की कोई चिन्ता नहीं रहती ' वह अपने पति भवानीदत्त से कहती है कि वे जल्दी जायें तथा देखें सिन्धु घर कैसे नहीं आया ।

(घ) सिन्धो ! अलं भयेन । सर्वथानाहतोऽसि प्रभुकृपया।

उत्तर: घायल व बेहोश सिन्धु को जब होश आता है तो वह अपने को घर में पड़ा हुआ देखता है वह देखता है। वह देखता है कि उसके सामने सोमधर व पिताजी बैठे हैं। उन्हें देखकर वह घबरा जाता है। ऐसी स्थिति में मित्र सोमघर सान्त्वना देते हुए कहता है कि- 'मित्र ! सिन्धु घबराओ मत । डरो मत | तुम पूरी तरह सुरक्षित हो । ईश्वर की कृपा से तुम्हें कोई चोट नहीं आई है। आराम करो। पूर्ण स्वस्थ होने पर हम दोनों कल विद्यालय जायेंगे।

 

3. अस्य पाठस्य शीर्षकस्य उद्देश्यं संक्षेपेण एकस्मिन् अनुच्छेदे हिन्दीभाषया लिखत

उत्तर: इस पाठ का शीर्षक ‘कन्थामाणिक्यम्' है, जिसका अर्थ है- ‘गुदड़ी का लाल’। ‘गुदड़ी का लाल' वस्तुतः एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है- जो दिखाई देने में तो सामान्य होता है। परन्तु जिसके भीतर गुणों का भण्डार होता है। इस एकांकी का पात्र सोमधर मूलतः एक सामान्य परिवार से है। उसके पिताजी सब्जी व फल विक्रेता है तथा वह निर्धन बस्ती में सामान्य से मकान में रहता है। वेशभूषा भी सामान्य ही है। परन्तु उसका चारित्रिक वैशिष्ट्य उस समय सामने आता है जब वह अपने मित्र सिन्धु को दुर्घटना में बेहोश हुआ देखकर उसे बचाता है तथा रिक्शा में बिठाकर उसके घर ले जाता है। यह सब देखकर वकील भवानीदत्त भी हतप्रभ हो जाता है तथा उसे गुदड़ी का लाल कहकर उसकी प्रशंसा करता है तथा उसके अध्ययन का भार स्वयं उठाना चाहता है। वह अन्त में कहता है- अब मुझे अनुभव हुआ कि गुणवान लोग ही सभ्य, धनी व सम्मान के योग्य होते हैं।” वस्तुतः एकांकी का शीर्षक अत्यन्त सारगर्भित व उद्देश्यपूर्ण है।

 

4. अधोलिखितेषु विशेष्यपदेषु विशेषणपदानि पाठात् चित्वा योजयत

(क) ......रोषोत्तप्तांः....... मुखाकृतिम् ।

(ख)  ......कार्यव्यापृतैः....... अस्माभिः ।

(ग)  ......द्वावपि....... भृत्यौ।

(घ)  ......प्रगाढा....... मित्रता ।

(ङ)  ....वराकस्य......... दारकस्य ।

(च)  ...सर्वेऽपि.......... बालकाः ।

 

5. अधोलिखितपदानां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत

मार्जयन्, आनय, पार्श्वे, दारकेण, प्रक्षालयति, सविस्मयम्, वच्मि, शकटे, स्निह्यति, आसन्दी

उत्तर:

मार्जयन्- सेवकः अङ्गप्रच्छदेन मुखं मार्जयन् गतः ।

आनय- दशफलानि आनय ।

पार्श्वे- मम पार्श्वे एकं चित्रं वर्तते ।

दारकेण- मम दारकेण किमपि नापराद्धम् ।

प्रक्षालयति- सः जलेन मुखं प्रक्षालयति ।

सविस्मयम्- रत्ना स्वपुत्रं लालयन्ती सविस्मयं वदति ।

वच्मि- देवि ! तदेव अहं वच्मि यत्तव सिन्धुना समाचरितम् ।

शकटे- सोमधरस्य पिता शकटे निधाय फलानि विक्रीणीते ।

स्निह्यति- माता पुत्रे स्निह्यति ।

आसन्दी- रत्नायाः पार्श्वे एका आसन्दी वर्तते ।

 

6. अधोलिखितानां पदानां सन्धिं सन्धिविच्छेदं च कुरुत

(क) भग्नावशेष:         = भग्न + अवशेषः।

(ख) द्वौ + अपि         = द्वावपि ।

(ग) पश्चाच्च               = पश्चात् + च।

(घ) पराजित: + असि  = पराजितोऽसि ।

(ङ) चाप्यलङ्कृतम्   = च+अपि+अलङ्कृतम्

(च) कः + चित्         = कश्चित्।

 

7. पाठमाश्रित्य रत्नायाः सोमधरस्य च चारित्रिकवैशिष्ट्यम् सोदाहरणं हिन्दीभाषया लिखत

उत्तर: रत्ना का चारित्रिक वैशिष्ट्य- रत्ना 'कन्थामाणिक्यम्' एकांकी के प्रमुख पात्र भवानीदत्त वकील की पत्नी है वह समझदार तथा चतुर है। वह अपने पति के विचित्र स्वभाव से सहमत नही है। वह जब अपने पति को अत्यधिक क्रोध की मुद्रा में देखती है तो तुरंत कहती है- “आज आते ही तुम तूफान उठा रहे हो, क्या किसी वाद में पराजित हो गये हो क्या?”

वह अपने पुत्र सिन्धु से अत्यधिक स्नेह करती है। वह वात्सल्य भाव से परिपूर्ण है। पिता भवानीदत्त जब पुत्र सिन्धु को सेवक द्वारा कठोरतापूर्वक बुलाते हैं तो उनके व्यवहार से वह दुःखी हो जाती है। उसकी मान्यता अपने पति से भिन्न है। वह कहती है- “ जो गुणवान् होता है, वही सभ्य है, वही धनी है तथा वही आदर के योग्य है । यदि सोमधर का पिता सब्जी एवं फल बेचता है तथा इस प्रकार अपने परिवार का पालन-पोषण करता है तो इसमें कौन-सा पाप है ?” वह उदार हृदय वाली महिला है।

रत्ना का वात्यल्य भाव हमें उस समय और अधिक दिखाई देता है जब सिन्धु विद्यालय से देर तक नही लौटता है। वह घबरा जाती है तथा अपने पति से शीघ्र उसका पता लगाने के लिए कहती है। वह सड़कों पर तेज गति से चलने वाले वाहनों से चिन्तित है । वह यह भी जानती है कि वाहन चालक शराब पीकर वाहन चलाते हैं। उन्हें यह चिन्ता नहीं होती कि कोई मरे या जिए। जब उसे सिन्धु की बेहोशी का पता चलता है तो उसकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो जाती है । वह जोर से विलाप करने लगती है। कुछ समय बाद जब सिन्धु को होश आ जाता है तो रत्ना के नेत्र खुशी के अश्रुओं से भर आते हैं।

इस प्रकार रत्ना के संवादों से उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ व्यक्त हुई हैं- वह बुद्धिमती, वात्सल्य भाव से परिपूर्ण, स्नेहीमयी एवं परोपकारवृत्ति वाली महिला है । इसलिए पति भवानीदत्त को अन्त में कहना पड़ता है- “रत्ना तूने आज मेरी दोनों आँखें खोल दीं। रत्ना आज से मैं तेरी आँखों से संसार को देखूँगा ।”

सोमधर का चारित्रिक वैशिष्ट्य- सोमधर सब्जी एवं फल विक्रेता का पुत्र है। वह निर्धन परिवार से है तथा गरीब बस्ती में रहता है। परन्तु उसमें अनेक चारित्रिक विशेषताएँ है। वह पढ़ाई में चतुर है तथा एक आदर्श मित्र के रूप में एकांकी में उसका चरित्र उभर कर सामने आया है। उसका अपने धनी मित्र सिन्धु के प्रति अत्यधिक स्नेह है। वह पढ़ाई में प्रवीण है तथा अपनी कक्षा का मानीटर है। वह एक कोमल हृदय का बालक है। जब उसे पता चलता है कि विद्यालय का वाहन ट्रक से टकरा गया है । वह तुरन्त उस स्थान पर पहुँचता है तथा अपने मित्र को पहचानकर उसे रिक्शा में बिठाकर शीघ्र उसके घर की ओर रवाना हो जाता है। मार्ग में सिन्धु के पिताजी उसे मिलते हैं। उन्हें विनम्र शब्दों में वह सम्पूर्ण घटना की जानकारी देता है।

जिसे सुनकर भवानीदत्त का हृदय पिघल जाता है तथा उसे 'वत्स सोमधर' कहकर बुलाता है। वह भवानीदत्त जो पूर्व में उससे घृणा करता था, उसे उसको 'गुदड़ी का लाल' कहने पर बाध्य होना पड़ता है। सोमधर प्रतिदिन पैदल ही विद्यालय आता-जाता है। वह घर पर अपने पिता की भी उनके कार्य में पूरी सहायता करता है।

इस प्रकार वह एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श मित्र के रूप में एकांकी में उभरकर सामने आया है। वह सही अर्थो में 'गुदड़ी का लाल' है तथा 'कीचड़ में भी कमल खिलता है। इस उक्ति को उसका चरित्र पूर्णतया चरितार्थ करता है।

 

8. कोष्ठाङ्कितेषु पदेषु उपयुक्तपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत

(क) भवान् । पक्ववाटिकादीनि खादितुम् ......इच्छति......... (इच्छसि/इच्छन्ति/इच्छति ) ।

(ख) ....अस्माभिः........ न श्रुतम् । (अहम् / अस्माभिः / माम् )

(ग) हरणरामदत्तौ अट्टहासं रोद्धुं ......प्रयतेते.........। (प्रयतते/प्रयतेते/प्रयतसे) ।

(घ) नेत्राभ्यां संसारं .....द्रक्ष्यामि....... (दर्शिष्यामि / द्रक्ष्यामि )

(ङ) सोमधरः त्वां ....आनीतवान्......... (आनीत: /आनीतवान्/ आनीतम्) |

 

9. अधोलिखितानां कथनानां वक्ता कः / का?

कथनम्                                                             वक्ता

(क) तत्क्षमन्तामन्नदातार:                   -              रामदत्त:

(ख) तात! सोमधर: मयि स्निह्यति           -             सिन्धु:

(ग) अये यो गुणवान् स एव सभ्यः

      स एव धनिकः स एव आदरणीय:      -           रत्ना

(घ) त्वं पुनः शिशुरिव धैर्यहीना जायसे       -          भवानीदत्त:

(ङ) पितृव्यचरण ! स्वपितुः शाकशकट्याः 

       सज्जा मयैव करणीया वर्तते ।             -        सोमधर:

(च) वत्स सोमधर ! सत्यमेवासि त्वं

       कन्थामाणिक्यम्।                           -          भवानीदत्त:

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