Section
- A खण्ड-क
(
अति लघु उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दें। 2x5= 10
1. प्रवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रवाह का अर्थ एक आर्थिक चर की वह मात्रा है जिसे किसी समय अवधि के दौरान मापा जाता
है। प्रवाह का समय परिमाप होता है जैसे प्रति घंटा, प्रतिदिन, प्रति माह ,प्रति वर्ष
आदि। प्रवाह एक गत्यात्मक अवधारणा है।
प्रोफेसर
शपीरो के अनुसार - "प्रवाह वह मात्रा है जो कि केवल समय के एक निर्दिष्ट काल में
मापी जा सकती है।"
प्रवाह
चर का उदाहरण- नदी का जल , चलती गाड़ी की गति ,पानी की टंकी से रिसाव , गेहूं का विक्रय
आदि।
2. राष्ट्रीय आय को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
:- राष्ट्रीय आय का अर्थ है एक देश के सभी
निवासियों द्वारा एक वर्ष की अवधि में अर्जित कुल साधन
( कारक ) आय का जोड़।
यहां
NY = राष्ट्रीय आय , ∑
= कुल जोड़ , FY = कारक आय ( मजदूरी ,लगान , व्याज
, लाभ ) ,
n = एक देश के सभी सामान्य
निवासी।
3. वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विनिमय की वह प्रणाली, जिसमें विनिमय के साधन के रूप में मुद्रा
का प्रयोग नहीं होकर, वस्तु का प्रयोग होता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानी
जाती है।
4. वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) को परिभाषित
कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों के एक निश्चित प्रतिशत को अपने
पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों
के रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है जिसे वैधानिक तरलता अनुपात करते हैं। बाजार में साख के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता
अनुपात को बढ़ा देता है और यदि केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना
चाहता है तो वह तरलता अनुपात को घटा देता है।
5. प्रेरित निवेश किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रेरित निवेश वह निवेश है जो आय तथा लाभ की मात्रा पर निर्भर करता है। यह निवेश आय
तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरणा प्राप्त करता है। आय तथा लाभ के बढ़ने
की सम्भावना से यह बढ़ता है तथा इसमें होने वाली कमी से यह कम होता जाता है। प्रेरित
निवेश लाभ या आय सापेक्ष होता है।
6. प्रत्यक्ष कर को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जिस कर के भुगतान में कर भार तथा कर दायित्व एक ही व्यक्ति पर पड़ते हैं उसे प्रत्यक्ष कर कहते हैं।
जैसे
– आयकर, सम्पत्ति कर आदि।
7. व्यापार शेष में 300 करोड़ रु० का घाटा है।
निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रु० है। आयात का मूल्य कितना है ?
उत्तर:
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
-300 = 500 – आयात
आयात = 500 + 300 = 800 करोड़ रु०
Section
- B खण्ड-ख
(लघु
उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दें। 3x5= 15
8. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की किन्हीं तीन
विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था, वह आर्थिक प्रणाली है, जहाँ उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व
होता है, वस्तु का उत्पादन लाभ-प्राप्ति की दृष्टि से किया जाता है तथा आर्थिक क्रियाओं
सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता है।
विशेषताएँ-
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
(1)
पूँजीवाद में निजी सम्पत्ति का अधिकार होता है, प्रत्येक व्यक्ति को सम्पत्ति प्राप्त
करने, रखने, प्रयोग करने तथा उसका क्रय-विक्रय करने का पूर्ण अधिकार होता है।
(2)
पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक स्वतंत्रता होती है, व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी
व्यवसाय को चुन सकता है।
(3)
पूँजीवाद में लाभ उद्देश्य प्रमुख होता है, व्यक्ति केवल उन कार्यों को सम्पादित करता
है, जिसमें उसे अधिकतम लाभ प्राप्ति होती है।
(4)
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन एवम् समन्वय कीमत, यंत्र द्वारा होता है, अर्थात्
उत्पादन उपभोग एवं विनियोग सभी कीमतों द्वारा निर्धारित होते हैं।
(5)
इसके अन्तर्गत उपभोक्ता अपनी राय को इच्छानुसार विभिन्न वस्तुओं पर व्यय कर सकता है।
9. मुद्रा के किन्हीं दो कार्यों की व्याख्या
कीजिए।
उत्तर
:- प्रो. किनले ने मुद्रा के कार्यो को निम्नलिखित
तीन वर्गो में विभाजित किया है -
(A)
प्राथमिक या मुख्य कार्य :- इसे आधारभूत अथवा मौलिक कार्य
भी कहते हैं।
मुद्रा के मुख्य
कार्य दो है -
1. विनिमय का माध्यम :- वस्तु विनिमय प्रणाली की एक मुख्य कठिनाई यह थी कि उनमें आवश्यकताओ के दोहरे संयोग का अभाव पाया जाता था। मुद्रा ने इस कठिनाई को दूर कर दिया है। आज किसी वस्तु को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर ली जाती है और उस मुद्रा से आवश्यकतानुसार बाजार में वस्तुएं खरीदी जाती है। अर्थात मुद्रा विनिमय का माध्यम है।
2. मूल्य का मापक :- मुद्रा लेखे की इकाई के रूप में मूल्य का मापदंड करती है लेखे की इकाई से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु तथा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जाता है। मुद्रा के द्वारा सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य अथवा कीमतों को मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है।
(B) गौण अथवा सहायक कार्य :- इस श्रेणी में उन कार्यों को सम्मिलित करते हैं जो प्राथमिक कार्यों के सहायक है। इसमें निम्न कार्य है -
1. स्थगित भुगतानो का मान :- जिन लेन-देनो का भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है। मुद्रा को स्थगित भुगतानो का मान इसलिए माना गया है क्योंकि - (क) अन्य किसी वस्तु की तुलना में इसका मूल्य स्थिर रहता है (ख) इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है (ग) अन्य वस्तुओं की तुलना में यह अधिक टिकाऊ है (घ) स्थगित भुगतानो के मान के रूप में कार्य करके मुद्रा पूंजी निर्माण में सहायक होती है।
2. मूल्य का संचय :- मुद्रा के मूल्य संचय से अभिप्राय यह है कि मुद्रा को वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए खर्च करने का तुरंत कोई विचार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचाता है। इसे ही मूल्य का संचय कहा जाता है। मुद्रा के रूप में मूल्य का संचय करना सरल होता है क्योंकि (क) मुद्रा को सब लोग स्वीकार कर लेते हैं (ख) मुद्रा के मूल्य में अधिक कमी या वृद्धि नहीं होती है (ग) मुद्रा का संग्रह सरलता से किया जा सकता है (घ) मुद्रा के रूप में बचत करने में बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है।
3. मूल्य का हस्तांतरण :- मुद्रा मूल्य के हस्तांतरण का कार्य करती है, क्योंकि इसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी क्रय शक्ति दूसरे को दे सकता है अथवा एक स्थान पर अपनी अचल संपत्ति को बेच कर दूसरे स्थान पर संपत्ति खरीद सकता है।
10. बैंक की जमाओं के विभिन्न रूपों की विवेचना
कीजिए।
उत्तर:
प्रो, हाम के अनुसार बैंकों की जमाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(A)
प्राथमिक जमाएँ (Primary Deposits) एवं (B) व्युत्पन्न अथवा गौण जमाएँ (Derived
Deposits)।
(A)
प्राथमिक जमाएँ (Primary Deposits)-प्राथमिक जमाएँ वे जमाएँ हैं जो जमाकर्ताओं द्वारा
बैंक में वास्तुविक मुद्रा के रूप में ( अर्थात् नकदी में) जमा की जाती हैं। दूसरे
शब्दों में, जब कोई खाताधारक बैंक को नकदी देकर अपने खाते में धनराशि जमा करता है,
तब बैंक को मिलने वाली ये नकदी बैंक की नकद जमाएँ होती हैं।
उदाहरण
के लिए, यदि बैंक का ग्राहक दिनेश अपने बैंक भारतीय स्टेट बैंक में अपने बचत या किसी
अन्य खाते में ₹ 10,000 नकद जमा करता है, तब यह
₹ 10,000 भारतीय स्टेट बैंक के लिए उसकी नकद अथवा प्राथमिक जमाएँ हैं।
(B)
व्युत्पन्न अथवा गौण जमाएँ (Derived Deposits)-इसके विपरीत जब बैंक किसी व्यक्ति को
ऋण देता है, तब वह बैंक अपने ही बैंक में उसके खाते में उस ऋण राशि को डाल देता है,
तब उस खाते में बैंक द्वारा लिखी गई धनराशि व्युत्पन्न जमा कहलाती है। व्युत्पन्न जमा
प्राथमिक जमा का परिणाम होती है क्योंकि बैंक अपने नकद कोष के आधार पर ही साख प्रदान
करता है। इसीलिए इन व्युत्पन्न जमाओं को साख जमा भी कहते हैं।
11. समग्र माँग के घटकों को लिखिए।
उत्तर :- कुल ( समग्र) मांग, वह कुल व्यय है जो लोग एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान वस्तुओं और सेवाओं के खरीदने पर खर्च करने की योजना बनाते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि समग्र मांग (AD) को मापने समय हम सदा लोगों द्वारा किए जाने वाले आयोजित व्यय या प्रत्याशित व्यय के संदर्भ में बात करते हैं।
कुल मांग के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं -
1. निजी उपभोग व्यय (C) :- इसमें देश के गृहस्थो/परिवारो द्वारा एक लेखा वर्ष में, सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए
की गई मांग को शामिल किया जाता है।
2. निजी निवेश मांग (I) :- इससे अभिप्राय निजी निवेशकर्ताओं द्वारा
पूंजी पदार्थों की खरीद पर करने वाले व्यय से है।
3 सरकारी व्यय
(G) :- इसमें सरकारी उपभोग में व्यय तथा
सरकारी निवेश व्यय दोनों शामिल होते हैं।
सरकारी उपभोग व्यय से अभिप्राय है
सैन्य/सुरक्षा प्रयोग के लिए वस्तुओं के उपभोग की खरीद पर
खर्च/सरकारी निवेश व्यय से अभिप्राय है सड़कों,डैमो तथा पुलो के निर्माण पर किया जाने वाला व्यय।
4. शुद्ध निर्यात (X - M ) :- विदेशियों द्वारा हमारी वस्तु के लिए किए गए व्यय को अर्थव्यवस्था में कुल व्यय (समग्र मांग) में जोड़ा जाता है, जबकि आयात पर किए जाने वाले व्यय को घटाया जाता है। अतः X -
M (शुद्ध निर्यात) को समग्र मांग
(AD) में जोड़ा जाता है।
अतः समग्र मांग के प्रमुख
तत्त्व है -
AD = C + I + G + ( X- M) [ खुली अर्थव्यवस्था में ]
or, AD = C + I
[ बन्द अर्थव्यवस्था में ]
जहां , AD = समग्र मांग , C = निजी उपभोग व्यय , I = निजी निवेश व्यय ,G = सरकारी व्यय, X - M = शुद्ध निर्यात
चित्र में, AD वक्र का बारे से दाये ऊपर की ओर बढ़ना इस बात को दर्शाता हैं कि जैसे-जैसे आय / रोजगार की मात्रा बढ़ती जाती है, कुल मांग भी बढ़ती जाती है।
12. सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान
की जानी चाहिए। क्यों, उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुएँ ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनकी कीमत का निर्धारण बाजार कीमत तंत्र
द्वारा नहीं हो सकता। इनकी संतुलन कीमत व संतुलन मात्रा वैयक्तिक उपभोक्ताओं और उत्पादकों
के बीच संव्यवहार से नहीं हो सकती। उदाहरण-राष्ट्रीय प्रतिरक्षा, सड़क, लोक प्रशासन
आदि। सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि
(i)
सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी उपभोक्ता विशेष तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि इसका
लाभ सबको मिलता है। उदाहरण के लिए सार्वजनिक उद्यान अथवा वायु प्रदूषण को कम करने के
उपाय किये जाते हैं तो इसका लाभ सभी को मिलता है, भले ही वे इसका भुगतान करें या न
करें। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक वस्तुओं पर शुल्क लगाना कठिन या कहें असंभव होता है,
इसे 'मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है। इससे ये वस्तुएँ अर्वज्य हो जाती हैं अर्थात्
भुगतान नहीं करने वाले उपभोक्ता को इसके उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता।
(ii)
ये वस्तुएँ “प्रतिस्पर्धी” नहीं होती, क्योंकि एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के उपभोग
को कम किये बिना इनका भरपूर प्रयोग कर सकता है।
13. सरकारी बजट के किन्हीं तीन उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
:- सरकारी बजट एक वित्तीय वर्ष की अवधि के दौरान सरकार की
प्राप्तियों (आय) तथा सरकार के
व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
सरकारी बजट के उद्देश्य
(1)
आय तथा संपत्ति का पुनः वितरण :- संपत्ति
और आय का समान बटवारा सामाजिक न्याय का प्रतीक है जो कि भारत जैसे किसी भी
कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य होता है।
(2)
संसाधनों का पुनः आवंटन :- अपनी बजट
संबंधी नीति द्वारा देश की सरकार संसाधनों का आवंटन इस प्रकार करती है जिससे
अधिकतम लाभ तथा सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके
(3)
आर्थिक स्थिरता :- अर्थव्यवस्था में
तेजी और मंदी के चक्र चलते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रो से सुरक्षित रखने के लिए सदा वचनबद्ध होती है। सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करती
है।
(4) सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध :- सरकार के बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों
के माध्यम से विकास की गति को तीव्र करने के लिए उत्सुक
है। प्राय: सार्वजनिक उद्यमो को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता है जहां प्राकृतिक
एकाधिकार पाया जाता है।
14. भुगतान शेष के चालू खाता एवं पूंजी खाता में
अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- चालू खाता
चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात एवं एकपक्षीय भुगतानो का हिसाब किताब रखा जाता है।
चालू खातों के निम्नलिखित घटक है
1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात (अथवा दृश्य मदे)
2. सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अथवा अदृश्य मदे)
3. एक देश से दूसरे देश को एकपक्षीय अंतरण
पूंजी खाता
पूंजीगत खाता वह खाता है जो एक देश के निवासियों एवं शेष संसार के निवासियों के द्वारा किए गए उन सब लेन-देनो से संबंधित है जिसमें किसी देश की सरकार और निवासियों की परिसंपत्तियों और दायित्वों में परिवर्तन होता है।
पूंजी खाते के सौदों की मुख्य मदे निम्न है -
(a) सरकारी सौदे :- उन अन्तर्राष्ट्रीय सौदों को कहते हैं जिनके कारण किसी देश की सरकार या उसकी एजेंसी की परिसंपत्तियों तथा दायित्वो की स्थिति प्रभावित होती है। जैसे A देश द्वारा B देश से ऋण प्राप्त करना
(b) गैर सरकारी या निजी सौदे :- निजी सौदे गैर सरकारी सौदे होते हैं। इसमें व्यक्ति, घरेलू क्षेत्र तथा निजी व्यापारी उद्यम के सौदे शामिल होते हैं। जैसे A देश के किसी व्यक्ति द्वारा B देश में निवेश करना
(c) प्रत्यक्ष निवेश :- इसका अर्थ है विदेशों में परिसंपत्तियों का खरीदना तथा उन पर नियंत्रण रखना ।जैसे B देश की किसी कंपनी द्वारा A देश की किसी कंपनी की परिसंपत्तियों खरीदना
(d) पोर्टफोलियो निवेश :- विदेशों में परिसंपत्तियों का खरीदना किंतु उन पर कोई नियंत्रण न होना । जैसे B देश के निवासियों द्वारा A देश की किसी कंपनी के शेयर्स या बाॅड्स का खरीदना।
Section-C
खण्ड -ग
(
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दें। 5x3= 15
15. राष्ट्रीय आय क्या है ? राष्ट्रीय आय की गणना
की किसी एक विधि को समझाइए।
उत्तर
:- राष्ट्रीय आय का अर्थ है एक देश के सभी
निवासियों द्वारा एक वर्ष की अवधि में अर्जित कुल साधन
( कारक ) आय का जोड़।
NY=n∑i=1FYi
यहां
NY = राष्ट्रीय आय , ∑
= कुल जोड़ , FY = कारक आय ( मजदूरी ,लगान , व्याज
, लाभ ) , n= एक देश के सभी सामान्य निवासी।
उत्पादन अथवा मूल्य वृद्धि
विधि :- इसे औद्योगिक उद्गम विधि
या शुद्ध उत्पाद विधि भी कहा जाता है। इस पद्धति के अनुसार
वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वार्षिक उत्पत्ति में कच्चे माल की कीमत, चल एवं अचल पूंजी
का प्रतिस्थापन व्यय, अचल पूंजी की
घिसावट एवं मरम्मत का व्यय तथा कर
एवं बीमा का व्यय निकाल कर जो शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन बचता
है उसे ही राष्ट्रीय आय कहते हैं। इसी शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
को उत्पत्ति के साधनों के बीच बांटा जाता है। यद्यपि यह पद्धति लंबी एवं कठिन है तथापि आय की
गणना के लिए मुख्यत: इसी का प्रयोग किया जाता है।
16. निम्नलिखित आँकड़ा से बाजार मूल्य पर सकल
राष्ट्रीय उत्पाद (GNPmp) की गणना करें।
Items (मदें) |
Rs. (Crores) रु०
(करोड़) |
साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद |
15,500 |
अप्रत्यक्ष कर |
1,200 |
आर्थिक सहायता |
210 |
मूल्यह्रास |
50 |
शुद्ध विदेशी साधन आय |
50 |
उत्तर:
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = अप्रत्यक्ष कर - आर्थिक सहायता
= 1200 - 210
= 990
GNPMP
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + मूल्यह्रास + शुद्ध विदेशी साधन आय+शुद्ध अप्रत्यक्ष
कर
= 15500+50+50+990
= 16590 करोड़ रु.
17. वस्तु
विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों की व्याख्या कीजिए। मुद्रा ने इस समस्या का समाधान
कैसे किया ?
उत्तर:- विनिमय की वह प्रणाली, जिसमें विनिमय के साधन के रूप में मुद्रा का प्रयोग नहीं होकर, वस्तु का प्रयोग होता है, वस्तु विनिमय प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
मुद्रा
के प्रयोग द्वारा वस्तु विनिमय के निम्न दोष दूर हुए
1.
वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यमान के इकाई का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली की प्रमुख समस्या
है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि
एक व्यक्ति को 5 मीटर कपड़े की आवश्यकता है तथा उसे वह अपने पास के गेहूं से बदलना चाहता है, तब प्रति मीटर कपड़े के लिए उसे कितना गेहूं देना होगा निश्चित नहीं कर पाता। इस
प्रकार मूल्यमान के उभयनिष्ठ इकाई के अभाव में विनिमय सीमित
हो जाता है।
मुद्रा
व्यवस्था के अंतर्गत हर वस्तु अथवा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता
है, जिससे विनिमय के अनुपात को निश्चित करने में कोई कठिनाई नहीं होती।
मुद्रा
के मापक के रूप में प्रयोग करने से आर्थिक गणना का कार्य बहुत ही सुगम हो जाता है।
2.
वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य या धन संचय का कोई स्थान नहीं होता इस व्यवस्था में
सिर्फ वस्तुओं का भंडारण किया जा सकता है। उससे वस्तुओं के
खराब होने की संभावना बनी रहती है।
किंतु
मुद्रा के प्रयोग से मनुष्य भविष्य के लिए क्रय शक्ति का संचय कर सकता है। वस्तुएं
एवं सेवाएं बेचकर मुद्रा प्राप्त कर ली जाती है, उसका कुछ भाग वर्तमान आवश्यकताओं पर
व्यय कर दिया जाता है और शेष भविष्य के लिए जमा कर लिया जाता
है।
18. केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अंतर
कीजिए।
उत्तर
:- इन दोनों में मुख्य अंतर निम्न है
1.
केंद्रीय बैंक एक उच्च बैंक है। यह सब बैंकों का बैंक है। इसके विपरीत व्यापारिक बैंक केंद्रीय बैंक के नियंत्रण के अंतर्गत
कार्य करता है।
2.
व्यापारिक बैंक लाभ अधिकतमीकरण पर अपना ध्यान केंद्रित करता
है, जबकि केंद्रीय बैंक का लक्ष्य सामाजिक कल्याण है।
3.
व्यापारिक बैंक, साख निर्माण के माध्यम से, साख के प्रवाह मे अपना योगदान देते हैं। इसके विपरीत केंद्रीय बैंक साख के प्रवाह
को नियंत्रित करता है।
4.
व्यापारिक बैंक सामान्य जनता से जमाएं स्वीकार करते हैं और
व्यक्तियों तथा परिवारों को ऋण देते हैं।
केंद्रीय बैंक ऐसा नहीं करता
5.
केंद्रीय बैंक देश के विदेशी मुद्रा कोष का अभिरक्षक है। जबकि व्यापारिक बैंक नहीं है
।
6.
केंद्रीय बैंक मुद्रा जारी करता है, व्यापारिक बैंकों के पास
ऐसा अधिकार नहीं है।
7.
केंद्रीय बैंक मौद्रिक मामलों पर सरकार का सलाहकार है, जबकि व्यापारिक बैंक नहीं है।
19. गुणक क्या है ? गुणक तथा MPC में संबंध की
व्याख्या कीजिए।
उत्तर
:- 1936 में केन्स ने ," The General Theory of
Employment Interest and Money" में गुणक सिद्धांत की विस्तृत
व्याख्या की।
केन्स के अनुसार," गुणक, विनियोग में हुए परिवर्तन के फलस्वरुप आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है।"
∆ Y = K ∆ I , or ,K=△Y△I
गुणक
सीमांत
उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC ) या सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का ज्ञान होने पर गुणक का अनुमान लगाया जा सकता है। MPC और गुणक में प्रत्यक्ष
तथा MPS और गुणक में विपरीत संबंध होता है। जब MPC शुन्य होता है तो गुणक एक होगा। इसी प्रकार यदि
MPC एक हो गुणक अनन्त होगा। यदि MPC = 0, तो
K=11-MPC=11-0=11=1
MPC=1 K=11-1=10=∞