CLASS-XI Hindi Core Arts Answer Key(TERM II) 2022

CLASS-XI Hindi Core Arts Answer Key(TERM II) 2022

 

CLASS-XI ARTS (TERM II) EXAMINATION, 2022

HINDIA (CORE)

इस प्रश्नपत्र में तीन खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।

प्रश्नों के उत्तर उनके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें ।

खंड क (अपठित बोध )

1. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,

तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा ?

तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,

बस तेरे ही सुख-सार से सनी हुई है,

फिर अंत समय तू ही इसे अचल देख अपनाएगी ।

हे मातृभूमि ! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।

(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक ने किसे निवेदित किया है ?

उत्तर: यह मातृभूमि को निवेदित किया है।

(ख) यह कैसे कह सकते हैं कि देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यन्त रहता है ?

उत्तर: मनुष्य का शरीर मातृभूमि और इसके तत्वों-वायु, जल, अग्नि, भूमि और आकाश-से मिलकर बनता है और अंतत: मातृभूमि में ही मिल जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि मातृभूमि से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है।

(ग) उपर्युक्त पंक्तियों के उचित शीर्षक लिखें

उत्तर: मातृभूमि

अथवा

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

बात करने से बड़े-बड़े मसले, अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएँ तक हल हो जाती हैं। पर संवाद की सबसे बड़ी शर्तें हैं, एक-दूसरे की बातें पूरे मनोयोग से, संपूर्ण धैर्य से सुनी जाएँ । श्रोता उन्हें कान से सुने और मन से अनुभव करे, तभी उसका लाभ है, तभी समस्याएँ सुलझने की संभावना है और कम-से-कम यह समझ में आता है कि अगले के मन की परतों के भीतर है क्या ? सच तो यह है कि सुनना एक कौशल है, जिसमें हम प्रायः अकुशल होते हैं। दूसरे की बात काटने के लिए उसे समाधान सुझाने के लिए हम उतावले होते हैं और यह उतावलापन संवाद की आत्मा तक हमें पहुँचने नहीं देता। हम तो बस अपना झंडा गाड़ना चाहते हैं, तब दूसरे पक्ष को झुंझलाहट होती है, वह सोचता है व्यर्थ ही इसके सामने मुँह खोला । रहीम ने ठीक ही कहा था- "सुनि अठिलैहैं लोग सब बाँटि न लैहैं कोय ।” ध्यान और धैर्य से सुनना पवित्र आध्यात्मिक कार्य है और संवाद की सफलता का मूल मंत्र है ।

(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।

उत्तर: संवाद

(ख) हम संवाद की आत्मा तक प्रायः क्यों नहीं पहुँच पाते ?

उत्तर: हम संवाद की आत्मा तक प्रायः इसलिए पहुँच नहीं पाते क्योंकि हम अपने समाधान देने के लिए उतावले होते हैं।

(ग) संवाद की सफलता का मूल मंत्र क्या है ?

उत्तर: ध्यान और धैर्य से सुनना पवित्र आध्यात्मिक कार्य है और संवाद की सफलता का मूल मंत्र है ।

खंड-ख ( अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन )

2. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(क) प्रदूषण एवं पर्यावरण' अथवा 'मेरे सपनों का भारत' विषय पर एक निबंध लिखिए ।

उत्तर:

प्रदूषण एवं पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण प्रस्तावना: दुनिया के शुरू होने के साथ ही प्रकृति के अद्भुत संतुलन की वजह से ही इस धरती पर जीवन बना हुआ है लेकिन आज के इस आधुनिक युग में टेक्नोलॉजी की वजह से यह पूरी तरह से खतरे में है। वायु, जल और धरती ये सभी धीरे-धीरे दूषित हो रहे हैं। इस बढ़ते हुए प्रदूषण को कम करने के लिए और इसे रोकने के लिए विभिन्न प्रयास भी किए जा रहे हैं। यह प्रयास हम चार भागों में विभाजित कर सकते हैं, जैसे- प्रकृति के पूरे चक्र को समझना, प्रदूषण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना, प्रकृति की खूबसूरती को कायम रखना और उन तरीकों से काम करना जिससे धरती का पर्यावरण साफ, शुद्ध और ताजा बना रहे तथा पर्यावरण में किसी भी तरह की कोई मिलावट न हो।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण: प्रकृति से हमें जीवन यापन के लिए, हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए तथा अपना विकास तेज गति से करने के लिए बहुत से प्राकृतिक संसाधन मुफ्त में मिले हैं। परंतु समय के साथ-साथ हम इतने स्वार्थी और लालची होते जा रहे हैं कि अपने उसी पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए उसे नष्ट करने पर तुले हुए हैं। इस बात को समझे बिना ही कि अगर हमारा पर्यावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो जाएगा, तो फिर ये आने वाले समय में हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य और भविष्य पर गंभीर रूप से अपना प्रभाव डालेगा। फिर एक समय ऐसा आएगा जब हम सभी के पास पृथ्वी पर जिंदा रहने के लिए कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं बचेंगे। इसीलिए हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण को गंभीरता से लेना होगा और जल्द से जल्द इन कारणों को दूर करना होगा। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जैसे-

औद्योगिक गतिविधियों का तेज होगा

वाहन का ज़्यादा इस्तेमाल

तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण का बढ़ना

जनसंख्या अतिवृद्धि

जीवाश्म ईधन दहन

कृषि अपशिष्ट

कल-कारखाने

वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग

प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना

वृक्षों को अंधा-धुंध काटना

घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होना

खनिज पदार्थों क दोहन

सड़को का निर्माण

बांधो का निर्माण

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार: वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि सभी पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार हैं। इन सभी का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। लेकिन पर्यारवण प्रदूषण के मुख्य तीन प्रकार हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है, जैसे-

वायु प्रदूषण- हवा मानव, जानवर, पेड़-पौधे आदि सभी के जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है। हमारे इस वायुमंडल में अलग-अलग तरह की गैसें एक निश्चित मात्रा में मौजूद होती हैं और सभी जीव अपनी क्रियाओं और सांसों के माध्यम से ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड में संतुलन बनाए रखते हैं परंतु अब ऐसा हो रहा कि मनुष्य अपनी भौतिक आवश्यकताओं की आड़ में इन सभी गैसों के संतुलन को नष्ट करने में लगा हुआ है। अगर हम शहर की वायु की तुलना, गांव की वायु से करें, तो हमें एक बहुत बड़ा अंतर दिखाई देगा। एक ओर जहाँ गांव की शुद्ध और ताजा हवा हमारे तन-मन को प्रसन्न कर देती है, तो वहीं दूसरी ओर हम शहर की जहरीली हवा में घुटन महसूस करने लगते हैं। इसके पीछ सबसे बड़ा कारण है शहरों में ऐसे संसाधनों की मात्रा में लगातार वृद्धि होना जो प्रदूषण को जन्म देते हैं।

जल प्रदूषण- जल ही जीवन है और हम सभी के जीवन के लिए जल मुख्य घटकों में से एक है। जल के बिना हम में से कोई भी जीव जैसे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जिंदा रहने की कल्पना तक नहीं सकते। प्रकृति के जल में अनुचित पदार्थों या तत्वों के मिल जाने से जल की शुद्धता कम हो जाती है, जिसे हम जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की वजह से गंभीर रोग पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है और कई तरह के जीवाणु तथा वायरस पनपने लगते हैं। पानी में अलग-अलग प्रकार के खनिज, तत्व, पदार्थ और गैसें मिल जाती हैं, जिनकी मात्रा काफी होती है। अगर इन सभी की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक साबित हो सकता है। एक ओर तो हमने नदियों को माँ का दर्जा दिया हुआ है और उनकी पूजा करते हैं, लेकिन वहीं दूसरी ओर हम इसमें प्रदूषित तत्वों को घोलकर कर जल की शुद्धता को नष्ट कर रहे हैं और माँ समान उन नदियों का अपमान भी कर रहे हैं।

ध्वनि प्रदूषण- गैर ज़रूरी और ज़रूरत से ज़्यादा आवाज़ जिसे हम शोर कहते हैं, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। अगर कोई आवाज़ हमारे लिए मनोरंजन का साधन बनती है, तो हो सकता है कि वही आवाज़ किसी दूसरे व्यक्ति के लिए शोर हो। बहुत ज़्यादा आवाज़ ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है, जिससे मनुष्य की सुनने की शक्ति धीरे-धीरे कम होती चली जाती है और अगर इसपर ध्यान न दिया जाए, तो व्यक्ति अपनी सुनने की शक्ति को पूरी तरह से भी खो सकता है। किसी भी आवाज़ को अगर एक सीमित मात्रा मैं सुना जाए, तो हमारी सेहत पर उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा लेकिन वही आवाज़ ज़रूरत से ज्यादा तेज हो, तो फिर उसे सहन कर पाना मुश्किल हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण से इंसान की एकाग्रता भंग होती है और फिर वह अपने किसी भी काम को पूरी तरह से एकाग्र होकर नहीं कर पाता।

पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव: पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर कई तरह से प्रभाव पड़ रहा है। यह बताना ज़रूरी नहीं है कि पर्यावरण प्रदूषण ने मानव की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे जल, भोजन, वायु और मिट्टी के अंदर अपने विषैले तंतुओं को फैला दिया है। यह हमारे रहने, पीने और खाने को प्रभावित करता है। यह इंसानों के साथ जानवरों, पक्षियों, पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।

अलग-अलग चीजें हवा को प्रदूषित करती हैं जैसे मोटर वाहन और उद्योगों से निकलने वाली गैस, हवा के अंदर जीवाश्म ईंधन जलाना, ठोस औद्योगिक अपशिष्ट, तेल फैलना, प्लास्टिक डंप और पानी में फेंकने वाले शहर का कचरा नदी और महासागरों को प्रदूषित करता है। इसी तरह कृषि की अकार्बनिक प्रक्रियाएं मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देती हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि पानी पीने के लिए उपयोग किया जाता है, भोजन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी और साँस लेने के लिए हवा का उपयोग किया जाता है। अगर ये तीनों तत्व ही दूषित होंगे, तो मानव शरीर के अंदर अपने प्रदूषकों को डालेंगे जिससे गंभीर रोग पैदा होंगे।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अस्थमा, लंग कैंसर, स्किन कैंसर, लेड पॉइजनिंग, कार्डियोवस्कुलर डिजीज एंड स्ट्रोक, रेडिएशन इनेबल्ड कैंसर, मरकरी पॉइजनिंग, जन्मजात डिसएबिलिटी, एलर्जी, फेफड़े की बीमारियां हैं, जो ऑक्यूपेशनल एक्सपोजर के कारण होती हैं। इसलिए हमें समझना होगा कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से कैसे बचा जाए और कैसे इसका समाधान ढूंढा जाए।

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान: ये तो हम सभी देख रहे हैं कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन पर दिन किस कदर बढ़ती जा रही है और इसके जिम्मेदार भी सिर्फ और सिर्फ हम इंसान ही हैं। इसीलिए अब ये जिम्मेदारी भी हमारी ही बनती है कि इस समस्या का जल्द-से-जल्द ऐसा समाधान निकालें जिससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जड़ से ही खत्म हो जाए। बढ़ते हुए मीलों, कारखानों, मोटर वाहनों, रासायनिक उर्वरकों, कार्बन-मोनो-आक्साइड गैस से निकलने वाला अपशिष्ट और धुआँ, नालियों का गंदा पानी और वनों की अंधाधुन कटाई के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाला समय हम सभी के लिए दुःख और अशांति लेकर आएगा।

यह समस्या अगर ऐसे ही बढ़ती रही, तो इससे सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरा देश प्रभावित होगा और हम सभी को एक ऐसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिसके बारे में हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं वहाँ पर इस तरह की समस्या का होना बहुत ही आम बात है। भारत का हर व्यक्ति आज प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या की मार तो झेल रहा है लेकिन इसे दूर करने के लिए ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो कोशिश में लगे हुए हैं। पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव बहुत ही गंभीर और हानिकारक साबित होते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कारण हमारी सामाजिक स्थिति भी खंडित हो जाती है।

विश्व में जितनी भी प्राकृतिक गैसें मौजूद हैं उन सभी में संतुलन का बना रहना बहुत ही आवश्यक है, परन्तु आज इंसान अपने स्वार्थ और ज़रूरत के लिए पेड़ों और वनों को काटने में लगा हुआ है। आप ज़रा सोचिए अगर धरती पर एक भी पेड़ ही बचेगा, तो क्या हम ऑक्सीजन ले पाएंगे। जब हमें ऑक्सीजन ही नहीं मिलेगी, तो हमारा जीवित रहना मुश्किल है। पेड़ों की कमी से कार्बन-डाईआक्साइड की मात्रा ज्यादा हो जाएगी जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या अधिक बढ़ जाएगी। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों के साथ में कोई छेड़छाड़ करते हैं, तो फिर वह प्राकृतिक आपदाओं का रूप लेकर धरती पर विनाश करते हैं। यह विनाश बाढ़, आँधी, तूफान, ज्वालामुखी आदि के रूप में होता है। हम औद्योगिक विकास के लालच में प्रकृति के साथ अपने व्यवहार को भूल चुके हैं, जिस कारण हमें पर्यावरण प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं, महामहारियों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अगर हम सही में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते हैं, तो हमें निम्नलिखित समाधानों का प्रयोग अपने जीवन में करना होगा।

प्रकृति और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए जल्द ही हमें इस पर नियंत्रण करना होगा। हमें ज्यादा से ज्यादा वनीकरण की तरफ ध्यान देना होगा। हमें कम से कम पेड़ों की कटाई की कोशिश करनी होगी। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे और इसके खिलाफ जाने वाले को सख्त से सख्त सजा देनी होगी।

सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि राजनेताओं, अभिनेताओं, विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और भारत के हर नागरिक को पर्यावरण प्रदूषण दूर करने के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता फैलानी होगी। जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार माध्यमों की मदद ली जा सकती है। आज के आधुनिक युग के वैज्ञानिकों को भी प्रदूषण को खत्म करने के लिए और भी ज़्यादा प्रयास करने होंगे।

हम सभी को इस बारे में सोच-विचार करना होगा कि हमारे आसपास कूड़े के ढेर और गंदगी जमा होगा। हमें कोयला और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों का बहुत कम प्रयोग करना सीखना होगा और ऐसे विकल्प चुननें होंगे जो प्रदूषण मुक्त हों। हमें सौर ऊर्जा, सीएनजी, वायु ऊर्जा, बायोगैस, रसोई गैस, पनबिजली का ज़्यादा इस्तेमाल करना होगा। अगर हम ऐसा करते हैं, तो वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने में बहुत मदद मिल सकती है।

जिन कारखानों का निर्माण पहले हो चुका है अब तो उन्हें हटा पाना मुश्किल है लेकिन अब सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि जो भविष्य में बनने वाले कारखाने हैं, उन्हें शहर से दूर बनाया जाए। हम यातायात के ऐसे साधनों प्रयोग करें जिनमें से धुआं कम निकलता हो और जो वायु प्रदूषण को रोकने में मदद करें। सरकार को पेड़-पौधों और जंगलों को काटने पर पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए।

हमें नदियों में कचरे को फैकने से बचाना चाहिए। हमें यह भी कोशिश करनी चाहिए कि पानी को रिसाइक्लिंग की मदद से पीने योग्य बनाएं। अगर हो सके तो प्लास्टिक के बैगों और थैलियों का इस्तेमाल करना बंद करके कपड़े और जूट के बने बैगों को प्रयोग में लाएं। पर्यावरण प्रदूषण को खत्म करने के लिए जागरूक नागरिक बने और सरकार तथा कानून द्वारा सुझाए गए नियमों का पालन करते हुए इस नेक काम में अपनी भागीदारी दें।

निष्कर्ष: इतिहास इस बात का साक्षी है कि पिछले कई लाखों-करोड़ों वर्षों से धरती पर आज भी शुद्ध हवा और स्वच्छ बहता पानी मौजूद है, लेकिन हम कहीं कहीं इसकी कद्र करना भूलते जा रहे हैं। हमारे दुरुपयोग के कारण ही आज सभी प्राकृतिक संसाधन प्रदूषण की चपेट में चुके हैं। जिन वैज्ञानिकों ने अपना जीवन पर्यावरण की रक्षा करने में समर्पित कर दिया है अब वह हमें समझा रहे हैं कि कैसे हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए उसकी शुद्धता को बचाना है। वह हम मनुष्यों को जागरूक कर रहे हैं कि हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना है जो प्रकृति का संतुलन बिगड़ने या वातावरण प्रदूषित होने का कारण बने। सबसे पहले हमें किसी भी हाल में अपने गांवों को प्रदूषित होने से रोकना होगा और इस बात का भी पूरा ख्याल रखना होगा कि शहरों का प्रदूषण गांवों के पर्यावरण को प्रदूषित कर दे।

मेरे सपनों का भारत

प्रस्तावना: भारत में प्रत्येक धर्म, जाति तथा समुदाय के लोग मिल जुलकर रहते हैं। सबको समान अधिकारल प्राप्त है। मेरे देश में सभी धर्म के लोग एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते हुए आपसी भाईचारे की भावना को उजगार रखें तथा एक दूसरे के प्रति प्रेम का भाव बनाए रखें। यहीं मेरा सपना है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र के आधार पर प्रत्येक नागरिक एक समान है। भारत देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार तथा समान कर्त्तव्यों का पालन करना अनिवार्य है।

मेरे सपनों का भारत: मेरे सपनों का भारत शिक्षित, समृद्ध तथा खुशहाली से भरपूर है। जहां ओज प्रदान करने वाली सूरज की पहली किरण व्यक्ति को ओजस्वी बना देगी। रात की चांदनी भारतवासियों के मन को शीतल तथा पावन करने वाली होगी। मेरे सपनों के भारत में धान के लहलहाते खेत होंगे, उन फसलों की हरियाली किसानों के चेहरे पर खुशी लेकर आएगी। प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक भावना से परिपूर्ण होगा। मुश्किल समय में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का साथ देगा। उत्तर में खड़ा हिमालय, गंगा – यमुना – सरस्वती नदियों का उद्गम तथा वनस्पतियों की श्रृंखला में भारत का नाम अग्रणी है। देश की खूबसूरती मेरे सपनों के भारत की प्रमुख तस्वीर है। यहां का सर्द मौसम, बसंत की बहार तथा गर्मियों में बच्चों का गलियों में अटखेलियां करना मेरे सपनों के भारत की एक उद्भूत तस्वीर है।

उज्ज्वल भारत की तस्वीर: मेरे सपनों का भारत प्रत्येक क्षेत्र में उन्नतिशील होगा। विकास की ओर अग्रसर भारत देश एक विकसित देश बनेगा। जहां हर नागरिक प्रशिक्षित तथा ज्ञान से परिपूर्ण होगा। अपने हुनर तथा कौशल को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहेगा। अपनी कौशलता से भारत का हर नागरिक देश का तथा अपना नाम रोशन करेगा। शिक्षा, मेडिकल, उद्योग के क्षेत्र में उच्च स्तर पर विकास होगा। शिक्षा क्षेत्र में देश की संस्कृति तथा सभ्यता, ज्ञान विज्ञान, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि की शिक्षा प्रदान की जाएगी। जिसके साथ मेरा सपनों का देश एक उत्कृष्ट कोटि पर शिक्षा में उन्नति करेगा। मेरा सपनों का देश दुनियाभर में स्वच्छता की मिसाल कायम करेगा। भारत का हर युवा देश को तरक्की की राह पर लेकर जाएगा।

राष्ट्रीयता परम धर्म: मेरे देश में हर एक भारतवासी का परम धर्म राष्ट्र की सेवा करना होगा। हर नागरिक अपने अपने स्तर देश के हित में कार्य करेगा। सैनिकों तथा देश की बागडोर संभालने वाली पीढ़ी को सम्मानित दर्जा प्रदान किया जाएगा। जन-जन के मुख पर भारत माता की जय होगी। हर बच्चा वंदे मातरम् का जयघोष करेगा। देश का हर उत्सव एकता व सौहार्द से मनाया जाएगा।

निष्कर्ष: हमारा भारत देश ऐसी तपोभूमि है, जहां विद्वानों तथा ज्ञान के प्रकाश का भंडार रहा है। ऐसे में भारत देश दुनियाभर के तमाम देशों से एक अलग पहचान रखता है। मेरे सपनों का भारत वास्तव में एक अनोखा तथा सबको प्रेरित करने वाला होगा।

(ख) अपने क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर किसी थानाध्यक्ष को एक पत्र लिखिए ।

उत्तर:

परीक्षा भवन

हिंदपीढ़ी,

रांची

दिनांक: 16-6-2022

थाना अध्यक्ष

हिंदपीढ़ी पुलिस चौकी,

रांची

विषय: क्षेत्र में बढ़ते अपराध को रोकने हेतु आवेदन पत्र।

महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं महेश हिंदपीढ़ी का निवासी हूं। हमारा क्षेत्र पूरे शहर में अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए मशहूर है लेकिन पिछले कुछ दिनों से यहां के निवासी क्षेत्र में बढ़ती आपराधिक गतिविधियों के कारण परेशान हैं। दरअसल हमारे मोहल्ले से लगा एक निम्न आय वर्गीय लोगों का इलाका है। इस इलाके के कुछ युवा नशे के आदी हैं और रोजगार के अभाव में आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। इन्हीं लोगों के कारण यहां आए दिन ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं।

अतः आपसे निवेदन है कि आप इस क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था एवं पुलिस गश्त को बढ़ाने का कष्ट करें। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इससे इन असामाजिक तत्वों में भय का संचार होगा और हमारा क्षेत्र अपराध मुक्त हो जाएगा। आपके इस कृपा से क्षेत्र के समस्त निवासी आपके आभारी रहेंगे।

सधन्यवाद

भवदीय ,

एक जिम्मेदार नागरिक

(ग) कोरोना से बचाव के उपाय बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए ।

उत्तर:

C- 15,

हिंदपीढ़ी,

रांची।

दिनांक…..

प्रिय मित्र अक्षय,

नमस्ते।

आशा करता हूं कि आप सकुशल होंगे। गत दिन मुझे आपका पत्र प्राप्त हुआ। जिसमें आपने कोरोना वायरस से बचने के उपायों के विषय में जानकारी लेने की उत्सुकता जताई है।

मित्र, इस महामारी से बचने के लिए मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से आवश्यक है। साथ ही अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने का प्रयास कीजिए। घर में रहकर लॉकडॉउन के नियमों का पालन कीजिए। आवश्यकता होने पर ही घर से बाहर निकलने का कष्ट कीजिए। समय समय पर सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें।

इसके अतिरिक्त सामाजिक दूरी का ध्यान रखें। सामान्यतः दो गज की दूरी बनाकर रखें।

उम्मीद करता हूं कि आप इन उपायों को पालन करेगें। इन उपायों के द्वारा आप कोरोना वायरस के संक्रमण से काफी हद तक दूर रह सकते हैं।

सधन्यवाद।

तुम्हारा स्नेही मित्र,

नमन पाठक,

रांची।

(घ) 'स्वच्छ भारत अभियान' पर एक रिपोर्ट लिखें।

उत्तर: स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरम्भ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना और कूड़ा साफ रखना है। यह अभियान 2 अक्टूबर, 2014 को आरम्भ किया गया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देश को दासता से मुक्त कराया, परन्तु 'स्वच्छ भारत' का उनका सपना पूरा नहीं हुआ। महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने सम्बन्धी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट सन्देश दिया था।

स्वच्छ भारत का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है। स्वच्छ भारत मिशन विसर्जन उपयोग की निगरानी के जवाबदेह तन्त्र को स्थापित करने की भी एक पहल सरकार ने 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगाँठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौंच मुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

खंड ग (पाठ्यपुस्तक)

3. निम्नलिखित में से किसी एक का काव्य-सौंदर्य लिखिए :

(क) और इस अविश्वास-भरे दौर में

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने

          आओ मिलकर बचाएँ

          कि इस दौर में भी बचाने को

          बहुत कुछ बचा है,

          अब भी हमारे पास ।

उत्तर: प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से उद्धृत है। यह कविता संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित है। यह कविता संथाली भाषा से अनूदित है। कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक से बचाने का आहवान करती है।

व्याख्या-कवयित्री कहती है कि आज चारों तरफ अविश्वास का माहौल है। कोई किसी पर विश्वास नहीं करता। अत: ऐसे माहौल में हमें थोड़ा-सा विश्वास बचाए रखना चाहिए। हमें अच्छे कार्य होने के लिए थोड़ी-सी उम्मीदें भी बचानी चाहिए। हमें थोड़े-से सपने भी बचाने चाहिए ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार कार्य कर सकें। अंत में कवयित्री कहती है कि हम सबको मिलकर इन सभी चीजों को बचाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि आज आपाधापी के इस दौर में अभी भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है। हमारी सभ्यता व संस्कृति की अनेक चीजें अभी शेष हैं।

काव्य-सौंदर्य:-

कवयित्री का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है।

‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में खुला आहवान है।

‘थोड़ा-सा’ की आवृत्ति से भाव-गांभीर्य आया है।

मिश्रित शब्दावली है।

भाषा में प्रवाह है।

काव्यांश छंदमुक्त एवं तुकांतरहित है।

(ख) चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता है

इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं ।

उत्तर: प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा नामक लड़की की निरक्षरता के बारे में बताते हुए कहता है कि चंपा काले-काले अक्षरों को नहीं पहचानती। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है। जब कवि पढ़ने लगता है तो वह वहाँ आ जाती है। वह उसके द्वारा बोले गए अक्षरों को चुपचाप खड़ी-खड़ी सुना करती है। उसे इस बात की बड़ी हैरानी होती है कि इन काले अक्षरों से ये सभी ध्वनियाँ कैसे निकलती हैं? वह अक्षरों के अर्थ से हैरान होती है।

काव्य-सौंदर्य:-

→ निरक्षर व्यक्ति की हैरानी का बिंब सुंदर है।

→ ‘काले काले’, ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

→ ग्राम्य-भाषा का सुंदर प्रयोग है।

→ सरल व सुबोध खड़ी बोली है।

मुक्त छंद होते हुए भी लय है।

→ अनुप्रास अलंकार है।

4. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(क) पठित कविता में चंपा की किन विशेषताओं का चित्रण है ?

उत्तर: कवि ने चंपा की निम्न विशेषताओं का वर्णन किया है –

1. चंपा एक ग्रामीण बाला है। उसका स्वभाव नटखट, चंचल और शरारती है कभी-कभी वह शरारतवश खूब ऊधम मचाती है और कवि की कलम और कागज को चुराकर छिपा देती है।

2. चंपा अबोध बालिका है, वह पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व नहीं समझती।

3. चंपा का स्वभाव मुखर और विद्रोही भी है। कवि के समझाने पर भी वह पढ़ना-लिखना नहीं चाहती और अपनी मन की बात को बिना छिपाए मुँह पर कह देती है।

4. चंपा में परिवार के साथ मिलकर रहने की भावना है। वह परिवार को तोड़ना नहीं चाहती।

(ख) 'आओ मिलकर बचाएँ' में कवयित्री क्या बचाने की प्रेरणा देती है ?

उत्तर: यह कविता संथाली भाषा से अनूदित है। कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक से बचाने का आहवान करती है। व्याख्या-कवयित्री लोगों को आहवान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है।

(ग) दुष्यंत कुमार की 'गजल' में 'दरख्तों का साया' और 'धूप' का क्या प्रतीकार्थ है ?

उत्तर: 'दरख्तों का साया’ का अर्थ है-जनकल्याण की संस्थाएँ। ‘धूप’ का अर्थ है-कष्ट। कवि कहना चाहता है कि भारत में संस्थाएँ लोगों को सुख देने की बजाय कष्ट देने लगी हैं। वे भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई हैं।

5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(क) धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया ?

उत्तर: धनराम ने तेरह का पहाड़ा सारे दिन याद किया, परंतु वह इस काम में सफल नहीं हो पाया। इसके दो कारण हो सकते हैं-

(क) धनराम की मंदबुद्ध

(ख) मन में बैठा हुआ पिटाई का डर।

(ख) स्पीति में किस धर्म का प्रभाव है ? सप्रमाण उत्तर दीजिए।

उत्तर: स्पीति में बौद्ध धर्म का प्रभाव है। यहाँ की पर्वत श्रेणी को माने श्रेणी कहा जाता है। शायद इसका नाम माने के नाम पर ही हुआ हो। यदि ऐसा नहीं है तो भी यहाँ माने का जाप हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव है।

(ग) किसान सामान्यतः भारत माता का क्या अर्थ लेते थे ?

उत्तर: किसान सामान्यतः भारत माता का अर्थ अपने देश की धरती से लेते थे। नेहरू जी ने उन्हें समझाया कि उनके गाँव, जिले, नदियाँ, पहाड़, जंगल, खेत, करोड़ों भारतीय सभी भारत माता हैं।

6. शेखर जोशी अथवा त्रिलोचन की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखें ।

उत्तर: शेखर जोशी- हलवाहा और कोसी के घटवार

         त्रिलोचन- धरती और गुलाब और बुलबुल

7. लेखिका बेबी हालदार को पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित करने में तातुश का क्या योगदान रहा ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर: तातुश उसे लिखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी।

अथवा

बेबी की जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन कैसा होता ? कल्पना करें और लिखें।

उत्तर: तातुश के संपर्क में आने से पहले बेबी कई घरों में काम कर चुकी थी। उसका जीवन कष्टों से भरा था। तातुश के परिवार में आने के बाद उसे आवास, वित्त, भोजन आदि समस्याओं से राहत मिली। यहाँ उसके बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से होने लगा। यदि उसकी जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन अंधकारमय होता। उसे गंदी बस्ती में रहने के लिए विवश होना पड़ता। उसके बच्चों को शिक्षा शायद नसीब ही नहीं होती, क्योंकि उसके पास आय के स्रोत सीमित होते। बच्चे या तो आवारा बन जाते या बाल मजदूर बनते। अकेली औरत होने के कारण उसे समाज के लोगों के मात्र अश्लील व्यवहार का ही सामना नहीं करना पड़ता, अपितु उसे अवारा लोगों के शोषण का शिकार भी होना पड़ सकता था। बड़ा लड़का तो शायद ही उसे मिल पाता। उसके पिता भी उसे याद नहीं करते और माँ की मृत्यु का समाचार भी नहीं मिलता। इस तरह बेबी का जीवन चुनौतीपूर्ण तथा अंधकारमय होता।

8. अपनी प्रकाशित रचना देखने से बेबी पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?

उत्तर: बेबी को जैसे ही पैकेट में पत्रिका मिली, वह खुशी से झूम उठी तथा नीचे से ही ‘देखो-देखो,एक चीज़’ बोलती ऊपर अपने बच्चों के पास पहुँची। दोनों बच्चे दौड़कर उसके पास आ गए। उसने उनसे कहा कि बताओ इसमें क्या लिखा है? उसकी लड़की ने एक-एक कर सभी अक्षर पढ़े और बोली, बेबी हालदार! माँ तुम्हारा नाम किताब में। दोनों बच्चे हँसने लगे। उन्हें हँसता देख उसका मन खुशी से भर गया। उसने प्यार से उन्हें अपने पास खींच लिया| उन्हें प्यार करते-करते हठात् जैसे उसे कुछ याद आ गया| वह बच्चों से ‘छोड़ो, छोड़ो मैं अभी आती हूँ” कहकर उठ खड़ी हुई। नीचे आते-आते सोचा वह कितनी बुद्धू है! पत्रिका में अपना नाम देख सभी कुछ भूल गई। जल्दी-जल्दी सीढियाँ उतर वह तातुश के पास आई और उनके पैर छू कर उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने  उसके सिर पर हाथ  रखकर आशीर्वाद दिया।

अथवा

लेखिका के बाबा ने चलते समय क्या कहा ?

उत्तर: लेखिका के बाबा कभी शायद ही उससे मिलने आए हों। अब जब उन्हें कहीं से पता चला कि बेबी लेखन कार्य कर रही है तो वे लेखिका से मिलने आए । चलते समय उन्होंने लेखिका के बड़े लड़के से भी मुलाकात की। उन्होंने कहा कि तुम लोग और भी तरक्की करो। बाबा ने लेखिका से कहा कि अब उसके सुख के दिन आने वाले हैं। उसका लड़का बड़ा हो रहा है। वही एक दिन उसे सुख देगा। अभी वह थोड़ा कष्ट और उठा ले, बाद में सुख ही सुख है।

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